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Friday, September 7, 2012

लोहा सिंह

नर - नारी ,  घर परिवार , समाज , जिला ,  प्रदेश , देश - विदेश , संसार और यह व्योम । सम नहीं है , भला मनुष्य सम कैसे हो सकता है । हर मनुष्य में कुछ कर सकने की शक्ति छुपी हुयी होती है । कोई पढ़ने में , कोई खेलने में , कोई राजनीति में , तो कोई -भोग  विलास और योग के क्षेत्र में  माहिर है । एक ही कक्षा में कई विद्यार्थी , एक ही शिक्षक के द्वारा  शिक्षा ग्रहण करने के वावजूद भी अलग - अलग मार्ग पर अग्रसर हो जाते है । एक ही धरती ..अलग - अलग बीज   ग्रहण कर , अलग -अलग आकार   देती है । ये तो व्यापारी और ग्राहक का एक अनूठा सम्बन्ध है ।

कुछ जीवन की अनुभूति -

बाबूलाल यादव का नाम आते ही  सभी यही समझ जाते थे .....पढाई में कमजोर विद्यार्थी । शिक्षक के डांट  या फटकार का  कोई असर नहीं । लोहा सिंह इसके नाम का पर्याय बन चुका था । सभी शिक्षको  के उपहास का पात्र । कोई भी उसके तरफ ध्यान नहीं देते थे । होम वर्क नक़ल कर कक्षा  में ही  तैयार करना , शिक्षको की अनुपस्थिति में क्लास के  अन्दर शोर गुल का भागी दार बनना , उसे बेहद पसंद   था ।

कक्षा -6 , स्कूल के दुसरे मंजिल पर क्लास । उस दिन क्लास का आखिरी पीरियड , वह भी व्यायाम और उससे सम्बंधित । पशु  पति सिंह जी इसके शिक्षक थे  । भलामानस व्यक्तित्व वाले । समय - समय पर सामाजिक कार्यकलापो का जिक्र करने में माहिर । क्लास में आयें , किन्तु देर से । हम  सभी शांत मुद्रा में , अगले विषय के इंतज़ार में । क्लास में सन्नाटा । हम सभी की ओर उन्मुख हो उन्होंने अचानक एक प्रस्ताव रखा । उन्होंने कहा की -" इस दुसरे  मंजिल से निचे कौन कूद सकता है ? हाथ उठाये ?"
 
सभी के बीच सन्नाटा छा  गया । शिक्षक महोदय बारी - बारी से सभी की ओर देखने लगे । एक मिनट , दो मिनट और पांच  मिनट गुजर गए । आखिर में असहाय सा प्रतीत होते देख , एक बार फिर उन्होंने अपनी बात दुहरायी । और ये क्या ? सभी को आश्चर्य ...ही ..आश्चर्य । सभी के सामने ..बाबू लाल यादव ने अपने हाथ ऊपर उठायें । बाबू लाल ने कहा -सर मै  निचे कूद सकता हूँ । इधर आओं । पीपी सिंह जी बाबू लाल को अपने पास बुलाते हुए कहा  । सभी लड़को के बीच  फुसफुसाहट की ध्वनि गूंजने  लगी ।

 पीपी सिंह जी ने कहा - इसका फैसला कल प्रेयर के बाद होगा । दुसरे दिन ..सभी लडके - लड़कियों के बीच सिर्फ बाबू लाल यादव की ही चर्चा । इसके हाथ - पैर जरूर टूट जायेंगे । अपने को तीसमार खा समझता है । पछतायेगा । इसे इस तरह के जोखिम लेने की  क्या जरूरत थी ।..अब क्या होगा ? जानने के लिए सब उतसुक । प्रथम पीरियड ..पीपी सिंह जी का न हो कर भी वह ..कक्षा में आयें । उनके मुख पर मुस्कान की छटा । उन्होंने - बाबू लाल यादव की तरफ इशारा करते हुए कहा -" इधर आओ ।" बाबू लाल उनके करीब जाकर खड़ा हो गया ।  दोस्तों के तरह - तरह की बातो को सुन वह सहम सा गया था । मुख पर सहमी सी मुस्कराहट । पीपी सिंह जी ने  एक बार फिर  बाबू लाल के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा  -" कूदने के लिए तैयार हो ?" बाबू लाल ने हां में सिर हिलाई ।

पीपी सिंह जी हँसे और अपने पाकेट से एक बाल पेन निकाल कर बाबू लाल को उपहार स्वरुप आगे बढ़ाये । उन्होंने कहा -  " बच्चो .. वास्तव में बाबू लाल लोहा सिंह है ।"

Wednesday, July 4, 2012

पढ़े लिखे अनपढ़

रेलवे हमें भारतीयता की पहचान  दिलाती है !रेल ही हमें एकता का सन्देश देती है ! यह देश के एक भाग से दुसरे भाग को छूती है , जोड़ती है ! एकता का ऐसा मिसाल शायद ही कोई होगा ! हमें सैकड़ो वर्षो तक गुलाम रहने पड़े ! फिर भी शासको को भारत की उन्नति की ओर ध्यान खींचता रहा ! इसकी एक मिसाल रेल और उसकी स्थापना है ! वृतानियो को अपने देश से रेल को आयातित करने पड़े ! तब  जाकर भारत में रेलवे की नीव पड़ी ! अकसर लोग कहते मिल जायेंगे कि देश में रेलवे को काफी आमदनी है ! रेलवे  चाहे तो सोने की पटरी बिछा सकती है ! बिलकुल सही - भावना ! दूसरी तरफ -लुटेरे इसे कंगाल बनाने में पीछे नहीं रहते ! वर्षो अंग्रेजो ने लूटा - अब भारतीय लूट रहे है ! लूटेरो की भीड़ इतनी बढ़ गयी है कि सही व्यक्ति की पहचान मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया है ! जो इमानदार है , उनकी कोई अस्तित्व नहीं !

बचपन में जब रेल गाड़ी की छुक - छुक या -भक - भक की आवाज सुनता तो इस कार्य को  करने की इच्छा मन में हिलोरे लेने लगती थी  ! कौन  ..जाने की  यह एक दिन  सच में बदल जाएगा ! गाँव या वनारस / बलिया जाने के लिए हावड़ा स्टेसन से ट्रेन पकड़नी पड़ती थी ! उस  समय ट्रेनों में जनरल कम्पार्टमेंट ज्यादा और रिजर्व कम होते थे ! पढ़े-  लिखे लोगो की संख्या कम हुआ करती थी ! साधन संपन्न रिजर्व करके यात्रा करते थे ! साधनों की कमी ! यात्री ट्रेन पर चढने के पहले ,  कईयों से - बार बार पूछते थे की फलां  ट्रेन / यह ट्रेन कहाँ जा रही है  ! पूरी तरह चेतन होने के बाद ही ट्रेन पर चढते थे ! यात्रा के दौरान पूरी तरह से सजग ! घर से चलने के पूर्व ही घर के बुजुर्ग सन्देश हेतु कहते थे - किसी के हाथ का  दिया हुआ नहीं खाना  जी ! न जाने - क्या क्या मिला हुआ होता है ! यात्रा भी बड़े ही गंभीरता   के साथ गुजरती थी ! मजा भी था और यात्रा के समय अपनापन भी !

आज - कल कुछ बदला सा ! ट्रेनों की संख्या सुरसा के मुख की भाक्ति दिनोदिन और प्रति बजट में  बढ़ती जा रही है ! शिक्षा का समुद्र लहरे मार रहा है ! अनपढो की संख्या काफी कुछ कम हो गयी है ! ट्रेनों में कोचों की संख्या काफी बढ़ गयी है और बढ़ते जा रही है ! जनरल डिब्बो की संख्या कम हो गयी है ! उनकी जगह आरक्षित और वातानुकूलित डिब्बो की संख्या की बढ़ोतरी ने ले ली  है ! जन सैलाब थमने का नाम नहीं ले रहा है ! आरक्षण की अवधि एक सप्ताह से पखवाडा , पखवाडा से महीना   और महीना  से कई महीनो में बदल चूका है ! फिर भी तत्तकाल पर मारा-  मारी ! वह शांति दूत भारत , अब अशांत सा भागम- भाग में शरीक है ! भागने वाले को यह भी पता नहीं कि  वह किस जगह बैठा /  खड़ा / घुस चूका है ! एक छोटा सा उदहारण --

कल सिकंदराबाद से गरीब - रथ काम कर के आ रहा था ! नाम से परिलक्षित है की यह ट्रेन गरीबो द्वारा इस्तेमाल होती है ! किन्तु वास्तविकता कुछ और है ! इस ट्रेन को चलाने की मनसा... मंत्री जी के मन में क्या थी ? वह मै  नहीं कह सकता ! पर  इतना जरूर है , इसे साफ्ट वेयर इंजिनियर और एक बड़ा शिक्षित तबका जो मेट्रो पोलिटन शहरों में जीवन यापन कर रहा है / से जुड़े हुए है ..100% कर रहा है ! ऐसे लोगो से गलती की अपेक्षा भी करना जुर्म होगा ! किन्तु बार - बार ... प्रति ट्रिप ...चैन  खींचना कोई  इनसे सीखे ! जी हाँ .. यह बिलकुल सत्य है , हम लोको पायलट इन पढ़े लिखे  अनपढ़ लोगो से परेशान हो गए है ! आप पूछेंगे ..आखिर क्यों ?

बात यह है की सिकंदराबाद - यशवंतपुर गरीब रथ 19.15 बजे सिकंदराबाद से चलती है और सिकंदराबाद -विशाखापत्तनम गरीब रथ ..20.15 बजे ! दोनों की दिशाएं भी अलग है ! समय से यशवंतपुर गरीब रथ चलती है और विशाखापत्तनम के यात्री इस ट्रेन में आ कर बैठ जाते है ! ट्रेन के चलने के बाद , जब उन्हें ज्ञात होता है की गलत ट्रेन में चढ़ गए है तो चैन पुल करते है ! जब की गलती का कोई कारण  भी नहीं है क्यों की ट्रेन के प्रतेक डिब्बे पर बोर्ड लगे हुए होते है -सिकंदराबाद--यशवंतपुर गरीब रथ !  आप भी सोंचे ? इसे  क्या कहेंगे -आज का पढ़े लिखे अनपढ़ !

Sunday, December 18, 2011

दक्षिण भारत दर्शन --कन्याकुमारी भाग -२

गतांक से आगे -
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कहने की जरुरत तो नहीं है कि कन्याकुमारी की सारी चीजे हमारी आँखों को ही नहीं , बल्कि मन को भी आनंद देती है !  प्रकृति  ने इस बालू में अपनी पूर्ण निपुणता  दिखाई है ! हजारो लोग यहाँ आते है और प्रकृति से सुन्दर दृश्य का अवलोकन कर , अनुभूति लिए लौट जाते है ! वे सभी धन्य है , जिनको कन्याकुमारी के दर्शन करने के सौभाग्य मिले है !
यह दक्षिण भारत दर्शन का आखिरी अंक है ! इसमे ज्यादा विषय को पोस्ट न कर , मै अपने कुछ गुदगुदी भरे अनुभओं को बांटने का प्रयास करूँगा ! 

                 विवेकानंद राक से लेकर गोधुली के दर्शन - यहाँ प्रस्तुत है !
             विवेकानंद राक के अन्दर - विवेकानंद  का स्मारक भवन 
                             सूर्योदय से सूर्यास्त तक का नक्शा !
                            ध्यान कक्ष के बाहर लगे सूचना पट्ट 
 राक के अन्दर बना यह कुण्ड , जो वर्षा के पानी को एकत्र करने के काम आता है ! इस पानी को इस जगह पीने के लिए इस्तेमाल किया जाता है ! चूकी समुद्र का पानी पीने योग्य नहीं होता ! 
 इस सुन्दर पत्थर  के हाथी के साथ फोटो खिंचवाते - बालाजी ! हाथी को छूना सख्त मन है !इस भव्य मेमोरियल का उदघाटन तात्कालिक राष्ट्रपति श्री वि.वि.गिरी.जी ने किया था !
                      जल बोट से ली गयी विवेकानंद राक की तश्वीर !
                                 बालाजी की फोटोग्राफी और मै !
 सूर्यास्त के पहले , संगम पर उमड़ता जन सैलाब ! सूर्य की बिदाई के लिए आतुर !सबकी नजर पश्चिम की ओर !जैसे - जैसे पल नजदीक सभी के चेहरे उदास सी दिखने लगे थे ! चिडियों का कोलाहल बंद और पर्यटक भी अपने आश्रय की ओर उन्मुख !भावबिभोर ...  
बिन औरत भला कोई समारोह सफल होता है क्या ? जी यहाँ भी देंखे --मेरी  धर्म पत्नी जी को ..जहाँ रहेंगी , वहां चुप नहीं बैठती ! वश बोलना ही है ! अगल - बगल वाले लोगों  को प्रेरित कर ही लेती है ! बालू के ऊपर बैठे और सूर्यास्त के इंतजार में बैठी , स्पेनिस युवतियों से बात - चीत करने लगीं  ! मुझे दबी जुबान से हंसी आ गयी तब , जब  स्पैनिश युवतियों ने कहा की- हम हिंदी नहीं जानतीं ! फिर क्या था मैडम ने भी उसी तर्ज पर कह दीं  - आई डोंट नो स्पेनिस एंड इंग्लिश ! फिर क्या था - दोनों तरफ से हंसी फुट पड़ी  और आस - पास बैठे / खड़े लोग  भी हंस दिए ! यह भाषा भी गजब की चीज  है !
जीवन चलने का नाम है ! हार - जीत आनी ही है ! बिना हार की जीत और बिन दुःख की  सुख की मजा ही क्या ? दिवस के बाद का अँधेरा हमेशा कुछ कहता है ! सूर्य की आखरी किरण को बिदा देते पर्यटक ! जैसे समुद्र की लहरे भी शांत होती चली गयी !देखते ही देखते अँधेरे का आलम छ गया !
                      बालाजी के हाथ में बत्ती का बाळ ! बहुत खुश -- 
 संगम के किनारे  बने गाँधी स्मारक ! १२ फरवरी सन १९४८ को गाँधी जी के चिता भस्म को कन्याकुमारी के तीर्थ में अर्पण कर दिया गया !उस समय के तिरु- कोचीन सरकार  ने यहाँ एक स्म्मारक बनवाने का वादा किया !अतः आचार्य कृपलानी ने 20 जून १९५४ को इसकी नीव डाली ! सन १९५६ को यह बन कर तैयार हुआ !इस स्मारक का निर्माण उड़ीसा के शिल्प कला पर किया गया है ! याद रखने की बात यह है को दो अक्टूबर को सूर्य की किरणे छत की छिद्र  से हो कर , अन्दर रखी मूर्ति पर पड़ती है ! दिन में इसके ऊपर चढ़ कर समुद्र के क्रिया - कलापों का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है !
कहते है ह़र चीज का अंत एक याद गार होता है , चाहे ख़ुशी भरा हो या दुखी ! मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ ! पर मै इस चीज को आप के साथ नहीं बांटना चाहता ! अच्छा तो हम चलते है , फिर कभी मिलेंगे ! 

अलबिदा कन्याकुमारी ! कन्यामयी !

Sunday, December 4, 2011

दक्षिण भारत दर्शन -कन्याकुमारी !

गतांक से आगे -
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 रात होने को थी , अतः समय जाया न कर , हम जल्दी कन्याकुमारी के लिए रवाना हो गए !त्रिवेंद्रम सिटी से बाहर निकलते ही रात्रि और ट्यूब लाईट की चमक सड़क को कुछ गमगीन और डरावनी बना रही थी ! सड़क बिलकुल सूना ही सुना ! रास्ते में कोई किसी के उप्पर आक्रमण कर दे - तो बचाने  वाले शायद ही कोई मिले ! मैंने अपनी उत्सुकता  के निवारण हेतु कार ड्राईवर से पूछ ही लिया ! उसने मेरे संदेह को बिलकुल सही ठहराते हुए , कहा की आप बिलकुल ठीक सोंच रहे है ! इधर नौ बजे रात के बाद - कार लेकर चलने में हमें भी डर  लगता है ! न जाने कहाँ लूटेरे छुपे बैठे हो या पेड़ो की डाली सड़क पर बिछा रखी हो ! 

 जैसे भी हो रात्रि  का भोजन स्वादिष्ट रहा और हम नौ बजे के करीब कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन  पहुँच गएँ ! कार वाले ने शुभ रात्रि कह और दुसरे दिन भी बुलाने का न्योता दे चला गया !  कन्याकुमारी का सूर्योदय बहुत ही प्रसिद्ध है ! अतः हमने भी सुबह जल्द उठने के लिए  साढ़े पाँच बजे का अलार्म लगा सो गए ! स्टेशन के छत के ऊपर जा कर सूर्योदय को भलिभात्ति देखा जा सकता है , यह हमने एक नोटिस देख कर समझ गए ! जो रिटायरिंग   रूम के एक किनारे  दरवाजे पर लगा हुआ था !
                            समुद्र के पीछे से सूर्य का उदय !
 अब आज का दिन ही शेष था ! सुबह जल्द तैयार हो ..त्रिवेणी संगम  ( यानि समुद्र तट , जहाँ बंगाल की खाड़ी, हिन्दमहासागर और अरब सागर - एक साथ मिलते है ! ) के लिए रवाना हो गए ! सुबह के करीब नौ बज रहे होंगे ! सामने तीन सागर , उसकी उच्ची लहरे  रंग बिरंगे बालुओ से रंगी तीर भूमि , आस - पास के चट्टानों से अटखेली करती समुद्री लहरे , लहरों के बीच बच्चे , बूढ़े , नर और नारी स्नान करते और खेलते नजर आ रहे थे ! जिसे देख मन को अजीब सी ख़ुशी महसूस होने लगती है !
                            कन्याकुमारी का त्रिवेणी संगम

                                बालाजी और फिल्मी स्टाईल !

                           चांदनी लहरे और नर - नारी के सुनहले सपने

 माँ की अंदरूनी भय - बालाजी को समुद्र और चट्टानों पर चढ़ने से रोकते हुए !
चलिए बहुत हो गया ! वो देखो - घोडा ! चलिए चढ़ते है !

 घोडा दौड़ा , घोड़े वाला दौड़ा और बालाजी ने एडी मरी ! बहुत मजा आ रहा है !
बहुत हो गया !  चले मंदिर की ओर ! देवी कन्याकुमारी के दर्शन कर लें !

सामने  गली में कन्याकुमारी  मंदिर दिखाई दे रहा है !

 कन्याकुमारी जाने के पूर्व बहुतो को  कहते -सुनते देखा था की कन्याकुमारी में केवल कुवांरी  कन्याये है  या भूतकाल में वहा कोई कुवांरी कन्या रही होगी ! इसी लिए इस जगह का नाम कन्याकुमारी पड़ा होगा ! लेकिन यहाँ जाने के बाद और कुछ किताबो में पढ़ने के बाद , जो कुछ मालूम हुआ , वह कुछ हद तक सही ही था ! कहते है हजारो वर्ष पूर्व यहाँ एक राजा राज करते थे !उस राजा के एक पुत्री और आठ पुत्र थे !बुढ़ापे के कारण राजा ने अपनी सारी सम्पति अपने पुत्र और पुत्रियों में बाँट दिया ! तब कन्या कुमारी का यह भू-भाग इस कन्या के हिस्से लगा और इस स्थान का नाम कन्याकुमारी पड़ा ! पुराणों  के मुताबिक देवी पराशक्ति यहाँ तपस्या करने आई थी ! मंदिर के कुछ शिला लेखो से यह मालूम होता है की पांडिय राजाओ के शासन  काल में देवी की प्रतिमा को समुद्र तट के इस मंदिर में रख दिया गया  ! और भी बहुत सी किद्वान्ति और कथाये है ! जो किसी कन्या के कुवारेपन की तरफ इंगित करते है और वह कुवारा पन ही  - इस जगह का नाम कन्याकुमारी के लिए एक कारण बना !
 मंदिर के अन्दरजाने के पूर्व  , पुरुषो को अपने तन के कपडे उतरने पड़ते है ! मंदिर के अन्दर सेल या कैमरे ले जाना मना  है ! मंदिर के खुले रहने पर आराम से देवी के दर्शन किये जा सकते है ! खैर दर्शन अच्छी तरह से हो गए !मंदिर का पूर्व द्वार बंद रहता है अतः उत्तर भाग से प्रवेश मिलता है ! मंदिर के उत्तर , दक्षिण और पच्छिम  में समुद्री सीप या जन्तुओ से बने , हाथ करघा के सामान  और  तरह -तरह के छोटे और बड़े दुकान , खाने - पीने के होटल है !चारो तरफ लाज बने हुए है ! कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन के आस - पास कुछ भी नहीं है ! जो कुछ भी है वह त्रिवेणी संगम और कन्याकुमारी / कन्यामायी मंदिर के पास ही है ! दुनिया और देश के कोने - कोने के लोग यहाँ देखने को मिल जाते है ! विशेष कर उड़िया और बंगाली ज्यादा !
         मंदिर के बाहर ..पर्यटकों के भाग्य बांचते चित्रगुप्त ( तोतेराम )
यहाँ से निकल कर बाहर आयें ! करीब बारह बजने वाले थे !सभी दोस्तों ने बताई थी की विवेकानंद रॉक को जाने के लिए - बारह से एक बजे का समय बेहद उपयुक्त होता है और वहां शाम पाँच बजे तक रहा जा सकता है !  वहां जाने का एक मात्र साधन स्टीमर है ! जो तमिलनाडू सरकार के द्वारा चलाये जाते है ! फिर क्या था मैंने भी अपनी पत्नी और बाला जी को एक उचित स्थान .(.टिकट खिड़की के पास ) पर बैठा लाईन में खड़ा होने के लिए आखिरी छोर को चल पड़ा ! ये क्या ? आखिरी छोर का अंत ही नहीं ! करीब दो किलो मीटर तक लाईन ! मै यह देख दंग रह गया ! विवेकानंद रॉक को जाना ही था ! करीब दो घंटे तीस मिनट के बाद - टिकट खिड़की के पास पहुंचा ! प्रति व्यक्ति  २०  रुपये टिकट ! गर्मी भी कम नहीं थी !

स्वामी विवेकानंद रॉक को जाने के लिए - बोट की टिकट के लिए लगी लम्बी लाईन !एक नमूना !

 अंतरीप कन्याकुमारी के पूर्व में करीब ढाई किलोमीटर दुरी पर समुद्र के बीच में है !यहाँ दो सुन्दर चट्टानें है !ये चट्टानें समुद्र तल से पचपन फूट ऊँची है !इस चट्टान पर पद मुद्रा है , जिसे लोग देवी के चरणों के निशान मानते है !सन १८९२ में ,स्वामी विवेकानंद हिमालय से अपनी यात्रा आरम्भ कर - रास्ते के अनेक पुन्य स्थलों के दर्शन करते हुए , कन्याकुमारी आये थे ! देवी के दर्शन कर - समुद्र में तैर इस चट्टान पर आये और यहाँ बैठ कर चिंतन मनन करने लगे !आत्म बल प्राप्त होने के बाद यहाँ से वे सीधे अमेरिका चले गए ! अपने जोर दर भाषणों से पश्चिमी लोगो को दंग कर दिए ! इस घटना के बाद जिस चट्टान पर बैठ कर आत्मज्ञान पा लिया था उसे विवेकानंद चट्टान कहने लगे !
                         टिकट खिड़की के द्वार !
                        टिकट लेकर फेरी घाट को जाते हुए पर्यटक !
                     खिड़की से समुद्री किनारे के दृश्य 
                   स्टीमर पर चढ़ने के पहले लाईफ गार्ड लेते हुए लोग !
 स्टीमर से ली गयी - एक दुसरे रॉक की तस्वीर , जिसमे एक सन्यासी को खड़े दिखाया गया है !
      लाईफ गार्ड के साथ बालाजी और उनकी मम्मी स्टीमर के अन्दर 
 क्रमशः 




Monday, November 21, 2011

दक्षिण भारत - एक दर्शन-रामेश्वरम के आगे-भाग -2

गतांक से आगे -
केरला को दक्षिण भारत में प्राकृतिक सौन्दर्य का जैसे वरदान मिला है ! इसके हर भाग में हरियाली आप के स्वागत के लिए हमेशा तैयार रहती है ! जिधर देंखें उधर ही हरियाली ही हरियाली ! छोटे - छोटे पौधे और उनके बीच नारियल का पेड़ सिर उठाये जैसे कह रहा हो - मै आप के स्वागत और संस्कृति को सदैव बनाये रखने की लिए अबिरल तैयार खड़ा हूँ ! इजाजत दें ! जी हाँ -केरला राज्य को प्रकृति ने उपहार स्वरुर अति मनोरम सुन्दरता से सजाया है ! एक तरफ हरियाली तो दुसरे तरफ समुद्र की मंद - मंद लहरे सिने ताने  समुद्र स्थल पर खेलती मिल जाती है !  

 केरला के सीमा में घुसते ही हमने एक अनुपम शीतलता का अनुभव किया ! सड़क के किनारे का कोई भी जगह ऐसा नहीं होगा , जहाँ झाडिया और घर न हों ! सभी गाँव सड़क के किनारे ही बसे है ! हम सोंचने पर मजबूर हो गए की यहाँ के लोग रात को कैसे रहते होने ? क्या इन्हें सांप और बिच्छु से डर नहीं लगता ?  एक जगह हमने यहाँ के   लालिमा  सा गहरे  रंग  वाले  केले  ख़रीदे ! जो  ४० रुपये किलो  थे  ! धुप की  छटा  देखने  को  नहीं मिल रही थी ! बदल से घिरा मौसम  ! कहते है यहाँ बारिस भी सदैव होती रहती ही ! किन्तु हमें इस मौसम के लुभावने अंदाज नहीं मिले !  तीन  बजने  वाले थे  ! पेट पूजा का समय बिता जा रहा था ! हमने ड्राईवर को किसी होटल में ले चलने के लिए कहा ! रास्ते में कोई भी होटल नजर नहीं आ रहे थे ! ड्राईवर ने एक जगह कार को पार्क  किया और एक छोटी सी होटल की तरफ इशारा किया ! छोटा पर कामचलाऊ था ! नॉन - भेज  और भेज  दोनों  की  व्यवस्था ! अजब सा लगा   ! भोजन के  बाद संतुष्टि नहीं मिली ! हर चीज में नारियल और उसका तेल ! चावल के दाने मटर के सामान  ! संतुष्टि के लिए समुद्री फराई  फिश  - कुछ   बेहतर !

 भूख लगी थी , खाने पड़े ! मजबूरी थी ! जीवन में पहली अनुभव - केरला के खाने का ! विचित्र लगा !  पिने के लिए गर्म पानी मिला ! पूछने  पर  मालूम हुआ की गर्म पानी नहीं पिने से इन्फेक्सन  होने का डर रहता है ! हमें मलयालम नहीं आता था और होटल वाले को हिंदी ! सर्ट  शब्दों में काम चलाने पड़े ! आगे बढे - कुछ और तस्वीर -
 यहाँ हम बोटिंग करनी चाही ! किन्तु भूतकाल की कुछ यादें -डर पैदा कर दी और निर्णय ख़त्म !
                                  बालाजी का प्रकृति प्रेम !
                                 प्रकृति के प्रांगन   में - एक आवास !
आगे का पड़ाव -अरबियन सागर की तरफ , जिसकी हहाकारती समुद्री लहरे जी में उमंग पैदा कर देती थी ! जैसे कह रही हो -जीवन में कभी मत हारो !  जो हार गया -समझो मर गया ! समुद्र की लहरों का जमीन के किनारे आकर टकराना और मधुर ध्वनि पैदा करना भी अजीब  होता है !
                                     कोवलम  बीच और जन सैलाब !
                   अरबियन सागर और उसकी उछलती , चमकीली तरंगे !
                                          मै और मेरे  बालाजी 
                                     त्रिवेंद्रम का पद्मनाभम  मंदिर!     
पद्मनाभन मंदिर कुछ  दिन पूर्व -अपने  अपार सम्पदा संग्रह की वजह से समाचार की सुर्खियों में था !  इस मंदिर के कई कमरों को खोलने के बाद करोडो की सम्पदा मिली थी ! अभी भी कई कमरे है , जिनके अन्दर अपार सम्पति के होने की आशा है ! किन्तु इसे कौन खोले ?-पर संसय बनी  हुयी   है ! कहा जाता है की दरवाजे खोलने वाले मृत्यु के ग्रास हो जायेंगे ! इस मंदिर की कलात्मक निर्माण खास नहीं है ! लेकिन सम्पति के चलते  ज्यादा प्रसिद्धी मिली है ! त्रिवेंद्रम स्टेशन के  करीब ही है ! यही वजह था की हम भी इस ओर हो लिए ! मंदिर के अन्दर भगवान विष्णु जी  सर्प  सैया पर  लेटे हुए है ! जिन्हें हम एक ही दरवाजे से नहीं देख सकते ! अन्दर से एक ही कमरा , किन्तु  बाहर से तीन दरवाजे है ! पहले दरवाजे से विष्णु जी के सिर , दुसरे से पेट का भाग और तीसरे से पैर  को देखा  जा सकता है !   ! यही वजह होगा  क्यों की स्थानीय लोग इस मंदिर को  ब्रह्मा , विष्णु और महेश का मंदिर भी कहते है ! रात होने को था ! हमने यहाँ वक्त के सीमा में दर्शन कर मंदिर के अन्दर भी एक नजर दौडाई ! मंदिर के अन्दर लुंगी ( पुरुष  )और महिलाओ को साड़ी में प्रवेश करने होते  है ! इसके लिए  मंदिर के बाहर  उचित  व्यवस्था है ! भाड़े पर लुंगी / साड़ी मिल  जाते है ! मै और बालाजी  दो नए लुंगी खरीद कर पहने ! अकसर दक्षिण भारत के बहुत से   मंदिरों    में निजी वस्त्र के  साथ  प्रवेश  निषेध  है ! कुल  मिलकर  इस  मंदिर का दर्शन संतोष जनक रहा !
                                          मंदिर का  प्रवेश   द्वार   !
क्रमशः 

Wednesday, October 19, 2011

दक्षिण भारत - एक दर्शन-रामेश्वरम

एक  अबोध बालक - बालू पर खेलते हुए ! रामेश्वरम शहर के सड़क के किनारे !
अब मै दक्षिण भारत- एक दर्शन के दूसरी पड़ाव की ओर चलता हूँ ! मदुरै में तीन दिन  तक रहा ! पहले दिन मंदिर के दर्शन और स्थानीय साथियों से मिलने में ही गुजर गया ! दिन भर कोई न कोई आकर मुझसे मिलते रहा ! सबसे प्रमुख रहे श्री आर.एस.पांडियन जी , जो रिटायर मेल लोको पायलट तथा भुत पूर्व महा सचिव ( दक्षिण रेलवे / ऐल्र्सा ) रह चुके है ! ये मेरे  साथ रिटायरिंग रूम में करीब डेढ़ घंटे तक साथ रहे !  बहुत बातें  हुयी ! उन्होंने मेरे अगले यात्रा के बारे में पूछा ? मैंने कहा की कल रामेश्वरम के लिए निकल रहा हूँ ! उन्होंने सुझाव दिया की सुबह ६ बजे मदुरै से रामेश्वरम के लिए ट्रेन जाती है , उसमे चले जाय! मैंने सहमति में हामी भरी , किन्तु तमिल नाडू को करीब से देखना चाहता हूँ , अतः टूरिस्ट बस बुक कर लिया हूँ ....से - उन्हें अवगत करा दिया ! उन्होंने क्या और कैसे रामेश्वरम की यात्रा करनी चाहिए , कौन सी सावधानी बरते ,  वगैरह के बारे में मुझे समझा दिए ! अब आयें यात्रा पर चलें --
 दुसरे दिन टूरिस्ट बस साढ़े सात बजे --रामेश्वरम के लिए रवाना होने वाली थी ! इसमे करीब पच्चीस यात्री सवार हो सकते है ! सुबह पूरी तरह से तैयार होकर टूरिस्ट बुकिंग कार्यालय के पास आ गए ! जो पहले से निर्धारित था ! किराया -३००/- रुपये प्रति व्यक्ति लंच के साथ ( मदुरै -रामेश्वरम -मदुरै ), वापसी शाम को साढ़े सात बजे ही ! निर्धारित समय से बस आ गयी और हम तीन अपने रिजर्व सिट पर जा बैठे ! करीब एक घंटे तक बस ड्राईवर इस लोज से उस लोज तक जा -जा कर यात्रिओ को लिफ्ट देते रहा ! करीब नौ बजे टूरिस्ट बस अपने गंतव्य के लिए रवाना हो चली !
                  टूरिस्ट बस के अन्दर से बाहरी दृश्य
तमिलनाडू के रोड सुन्दर ही थे ! आस - पास की हरियाली , नारियल  के पेड़ , कटीली झाडिया , लाल मिटटी मन को मोह ही लेती थी ! कही कहीं गाँव हमारे उत्तर भारत से बिलकुल अलग ! छोटे - छोटे दुकान गाँव की कलपना साकार कर रही थी ! एक जगह बस ड्राईवर ने बस रोकी ! अपने सिट से उठ कर हम लोगो के बिच आया और टूटी - फूटी हिंदी में कहने लगा की आप सभी मुझे २० रुपये पर हेड दें ! यह चार्ज सामान की देख - रेख और जगह - जगह लगाने वाले टिकट के एवज में लिया जा रहा है , जो मै सामूहिक रूप में अदा करते रहूँगा !आप लोगो को कोई परेशानी नहीं होगी ! कुछ ने इसका बिरोध किया ! प्रायः सभी उत्तर भारतीय ही थे ! अंत में एक राय बन ही गयी , तब जब  उसने कहा की अगर आप लोग चाहे तो सभी जगह अपना खर्च अपने बियर करें !
रास्ते में टिफिन के लिए बस रुकी ! हमने टिफिन कर लिया था ! नारियल के पानी पर भीड़ गएँ ! बहुत सस्ता केवल 25/-रुपये  अन्दर!
                          ये है हमारे टूरिस्ट बस की संख्या !
रास्ते भर मै सेल से ही तश्वीर खींचता रहा ! साढ़े तीन घंटे के बाद -रामेश्वरम के करीब आ गए !रामेश्वरम एक छोटा द्वीप है ! बिलकुल शंख के सामान - जैसे विष्णु जी इसे अपने हाथो में धारण किये हुए हो ! यह भारत की जमीं से कुछ अलग होकर समुद्र के बिच है ! समुद्र के बिच बनी रेलवे की पटरिया पामान और मंडप स्टेशन  को जोड़ती है ! रेलवे की पामबन ब्रिज जरुरत पड़ने पर उप्पर भी उठाई जा सकती है , जिससे की जहाज इस ओर से उस ओर जा सके !अन्नायी इंदिरा गाँधी रोड -भारतीय भूमि को समुद्र में स्थित रामेश्वरम से जोड़ता है ! यहाँ की जमी समुद्री रेत और नारियल के पेड़ो से भरी पड़ी है ! यह भी इसे खुबसूरत   बना ही देता है ! यहाँ के लोगो का जीवन यापन टूरिस्ट और नारियल से ही सम्बंधित ज्यादा है !

                            बाहर से रामेश्वर मंदिर का दृश्य 
कहते है की काशी यात्रा तभी पूरी  होती है , जब रामेश्वरम में स्नान व् पूजा की जाय ! इससे मालूम होता है की काशी और रामेश्वरम की  महिमा दोनों  सामान है !अतः यह कहा जा सकता है की रामायण जितना पुराना है उतनी ही यह रामेश्वरम ! यहाँ का विराट मंदिर अपने ज़माने का अद्वितीय  और आज का एक अद्भुत उदहारण ही है !जिसे बनाना आज के धनाढ्यो के वश की बात नहीं है ! रामेश्वरम के मंदिर में देवाधिदेव प्रभु शिव की शिवलिंग है !जिसे राम ने स्वयं स्थापित कर पूजा की थी ! कहते है --
जब रावन का बध कर  राम लक्षमण सीता सहित लौट रहे थे तब गंधानाहन पर्वत के कुछ तपस्वी राम पर ब्राहमण बध का दोष लगा कर उनसे  घृणा  करने लगे  ! राम ने उस स्थान पर शिव लिंग बना कर पूजा करके पाप धोने का निश्चय किया ! किन्तु बालू के रेत से शिव लिंग बनाना मुश्किल काम था ! इसके लिए मुहूर्त निकला गया ! राम ने हनुमान को कैलाश जा कर शिव लिंग लाने  का आदेश दिया !लेकिन बहुत देर हो गयी ! सीताजी ने रेत से शिव लिंग बनायीं और राम ने मुहूर्त अनुसार पूजा की ! जब हनुमान जी शिव लिंग लेकर आये तो सब कुछ जान गुस्से से भर गए ! रामजी ने कहा ठीक है रेत की लिंग हटा कर शिव लिंग की स्थापना कर दें ! किन्तु हनुमान जी पूरी बल लगाकर भी रेत की लिंग न हटा सके ! राम ने कहा ठीक है आप की लिंग की पूजा पहले हो ! आज भी यह प्रथा है ! हनुमान जी की लिंग की पूजा ही पहले होती है !
मंदिर के भीतर और बाहर  कई तीर्थ है ! भीतर के तीर्थ जगह - जगह जा कर शरीर के ऊपर पानी डाल कर होती है !पंडो से बच कर रहने पड़ते है ! वैसे उत्तर भारत के पंडो की चापलूसी जैसी यह स्थान नहीं है !फिर भी सतर्क रहना जरुरी है ! रामेश्वरम के बारे में अधिक जानकारी - मंदिर के वेब साईट पर की जा सकती है ,ये है -  
www.rameswaramtemple.org
 समुद्र के ऊपर बनी रेल ब्रिज और रेलवे लाइन ! जो  सुनामी की वजह से निलंबित है !
 भारतीय भूमि और रामेश्वरम के बिच समुद्र पर बनी अन्ने इंदिरा गाँधी रोड से समुद्र को निहारते हम दोनी !                                                                     फोटो ग्राफी -बालाजी 
पामबन ब्रिज को पार करने के बाद - रामेश्वरम के भूमि में कुछ दूर जाने के बाद यह एक मकबरा है , जिसे बने करीब सवासौ वर्ष हो गए है ! यह एक मुश्लिम लडके की मकबरा है , जिसकी लम्बाई सोलह फुट थी ! इस मकबरे की लम्बाई भी सोलह फुट से ज्यादा है !
   लक्ष्मन तीर्थ के अन्दर सरोवर और चंचल मछलिया मन को मोह लेती है !
 सीता  कुंड में पानी का वनवास ही दिखा ! पार यह भी पवित्र स्थल है !
सीता कुंड के बाद तैरते हुए पत्थर देखने गए ! विडिओ ग्राफी या फोटो लेना मना था ! अतः कोई तश्वीर नहीं है ! यह भी देख हम काफी ताज्जुब कर गए ! पानी में बड़े - बड़े पत्थर रखे हुए थे , जो बिलकुल तैर रहे थे ! हमने उसे पानी में जोर से दबाये , किन्तु वे डुबे नहीं ! अद्भुत -  जीवन में पहली बार तैरते हुए पत्थर देखे थे ! इसे देखने के बाद हनुमान द्वारा समुद्र के ऊपर पत्थर रख पूल बनाने की बात की विश्वसनीयता बढ जाती है !
 समुद्री चीजो और हस्थाकला से निर्मित - दुकान जो वातानुकूलित है ,हमने यहाँ से  दो शंख ख़रीदे !
              स्वाति   सी शेल क्राफ्ट  दुकान के अन्दर का दृश्य 
  बहुत दर्शन हो गए !  भूख लगी है ! टूरिस्ट बस वाले ने होटल की तरफ ले चला ! उत्तर और दक्षिण की समागम ! मजा तो नहीं आया , पर अच्छा रहा ! काम चल सकता है !
 रामेश्वरम में ---सेतु स्नान करना , रामलिंगेश्वर के दर्शन करना - हर एक हिन्दू के जीवन में मुख्य और अनिवार्य मना जाता है ! जो ऐसा नहीं कर पता उसका जीवन निष्फल मना जाता है !भारत भर में सैकड़ो पवन मंदिर है ! पवित्र तीर्थ है !लेकिन एक ही जगह पर तीर्थ और दर्शन दोनों प्रमुख हो तो इस सेतु के आलावा और कोई जगह / क्षेत्र नहीं है ! हमने भी समुद्र में स्नान किये ! इसके लिए अलग से कपडे लेकर गएँ थे ! जिनके पास अलग से कपडे नहीं थे , वे समुद्र की शांत  लहरों  को ही देखते  रह गए !
बालाजी सेतु स्नान के लिए मेरे आने  के  इंतजार में , समुद्र के निश्छल  तरंग को निहारते हुए !
             बालाजी समुद्र  की तस्वीर  लेने  में तल्लीन !
और भी बहुत से तस्वीर है ! कुछ प्रमुख प्रस्तुत किया हूँ ! रामेश्वरम  की यात्रा में एक अनुभूति और आस्था जरुर दृढ हुयी - वह यह की देवाधिदेव  शिव की महिमा ने  इस शहर को सुनामी से बचाए रखा ! जब की तमिलनाडू के सभी तटीय शहर , सुनामी के प्रकोप से तबाह हो गए ! रामेश्वरम शिव की गुण गाते रहा ! इस शहर में जान - माल की हानी बहुत ही कम हुयी ! यह कोई एक अद्भुत शक्ति ही कर सकती  है ! यह बात मुझे यहाँ के स्थानीय लोगो से मालूम हुयी ! जय शिव और शिव शक्ति !
अगली यात्रा -त्रिवेंद्रम की !