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Saturday, December 5, 2015

प्रकोप

जीवन संघर्ष का नाम है तो मृत्यु चिर बिश्राम । यही जीवन का यथार्थ है । जन्मते ही मृत्यु की तरफ अग्रसर होना एक चिंता का विषय हो सकता है पर कुछ कर सकने के लिए दिनोदिन समय का अभाव भी तो है । जीवन  - मृत्यु की सच्चाई हमारे सामने मुंह बाये खड़ी रहती है और हम है जो व्यर्थ के कामो में समय बर्बाद कर रोते रहते है । आंसुओ की धारा हमारे अभाव को कभी नहीं धो सकती । अभाव को आत्मशक्ति और कुछ कर सकने की सबल इच्छा शक्ति ही पार लगा सकती  है । हँसने वाले का साथ सभी देते है रोने वाले का साथ बहुत कम ।

हम कितने स्वार्थी होते है जब अपने स्वार्थ में बशीभूत हो दूसरे के अधिकारो को मसलने में थोडी भी सकुचाहट महसूस नहीं करते । आज के परिप्रेक्ष्य में ऐसे स्वभाव लोकतंत्र के पर्याय नहीं हो सकते । लोकतंत्र हमें दुसरो के अधिकारो की ऱक्षा के लिये वाध्य करता है । अन्यथा प्रकोप अतिसंभव । 

30 सितम्बर 1993 की वो डरावनी रात । आज भी याद है । प्रकोप को कुछ भी नजर नहीं आता । न धर्म की पहचान न इंसान की न ही किसी के स्वाभिमान की । सभी कुछ इसके चपेट में आकर नष्ट हो जाते है । जो शेष  बच जाते है उनके पास रोने और बोने के सिवा कुछ नहीं बचता । उस रात मैं रायचूर में कार्यरत था । नाईट ड्यटी में तैनात था । अपने ऑफिस यानी लॉबी में कुर्सी पर बैठे क्रू पोजीशन की लेख जोखा देख रहा था । करीब रात के दो बज रहे होंगे । प्लेटफॉर्म पर सन्नाटा छाया हुआ था । कोई ट्रेन आने वाली नहीं थी । सिर्फ चेन्नई एक्सप्रेस के क्रू को तीन बजे कॉल सर्व करना था । कॉल बॉय पास के बेंच पर सो रहा था करता भी क्या । यह भी स्वस्थ रहने का एक सदुपयोग है ।

अचानक मुझे जोर का झटका लगा और जैसे मेरे कुर्सी को कोई पकड़ कर हिला रहा हो । मैंने समझा की कॉल बॉय मेरे कुर्सी को झकझोर रहा है । मैं बुक में कुछ लिखते हुए ही जोर से डपट लगायी  । अरे ये क्या कर रहे हो । फिर मुड़ कर देखा , कॉल बॉय अपने बेंच पर इतमिनान से सो रहा था । पीछे मुड़ कर देखा वहा भी कोई नहीं था । स्टेशन में किसी ट्रेन के आने की आवाज सुनाई दी । पर कोई ट्रेन नहीं आई ।शरीर में थोड़े समय के लिए सिहरन पैदा हो गयी । शायद कोई शैतानी प्रकोप तो नहीं । तभी कंट्रोल रूम का फोन बजा । कंट्रोल साहब ने पूछा - रायचूर में भूकंप आया है क्या ? मैंने कहा नहीं पर हाँ  जोर की ध्वनि और कुर्सी जरूर हिलते हुए महसूस किया हूँ । कंट्रोलर ने कहा यही तो भूकंप के झटके है ।

जी हाँ जो भी महसूस हुआ था वह भूकंप ही था । चारो तरफ समाचार फ़ैल गया । दूसरे दिन सभी समाचार पत्रो  ने बिस्तृत रिपोर्ट छापे । महाराष्ट्र के लातूर में इस भूकंप से काफी तबाही हुयी थी । सरकार बचाव कार्य में जुट  चुकी थी । बहुत जान माल की नुकशान हुई थी । महाराष्ट्र और आस पास के राज्यो में सतर्कता की सूचना दे दी गयी । एक सप्ताह तक सभी पडोसी  राज्यो के लोग रात को घर के बाहर सोते रहे  । अंततः ये प्रकोप की घटनाये होती क्या है ? बिज्ञान ने इसे  तरह तरह के क्रिया और प्रक्रिया  के परिणाम बताते रहे है । कुछ ईश्वरीय गुस्सा । जो कुछ भी हो इतना तो सत्य है जो बोएगा वही काटेगा । कुछ तो है जो हमें हमारे कर्मो की सजा देता है । मनुष्य की शक्ति के आखिरी छोर के बाद ही तो वह है जिसे ईश्वर के नाम से जानते है । जिसकी शक्ति अनंत और अंतहीन है । मानो तो देव नहीं तो पत्थर ।

Thursday, July 9, 2015

एक कप चाय

हमारे हिन्दू धर्म में सात का बहुत महत्त्व है । सात फेरे हो या सात दिन . सात जन्म हो या सात समंदर । वगैरह वगैरह । हमारे लिए भी सात वही महत्त्व रखता है । परम्पराये जीवित है ।जो समझते है उनके लिए बहुत महत्त्व रखती है । घडी की सुई निरंतर अंको को रौंदती रहती है और बार बार समय की अनुमान प्रस्तुत करती है । क्या घडी की सुई ही एक मात्र साधन है जो समय बताती है ?

जी नहीं मैं ऐसा नहीं समझता । हमारे आस पास घटित सभी घटनाये कुछ न कुछ सूचनाये देती है । बशर्ते हम उनका अवलोकन और समीक्षा करे । आईये ऐसी ही एक घटना पर नजर डाले ।

दिनांक 7 जुलाई 2015 की बात है । मैं सिकंदराबाद से राजधानी कार्य करने के लिए तैयार था । मेरा को - लोको पायल एम् वि कुमार थे । ड्यूटी में ज्वाइन होने के पूर्व किचन की तरफ मुड़े । शायद कुमार को चाय पिने की चस्का ज्यादा है । कुमार ने कूक से एक कप चाय मांगी । मैं और हमारे गार्ड दोनों बगल में ही खड़े थे । कूक ने एक कप चाय कुमार को पकड़ाया । कुमार ने चाय के कप को मेज के ऊपर रखनी चाही । लेकिन असुरक्षित । चाय का प्याला लुढक गया । पूरी की पूरी चाय मेज पर पसर गयी ।

ओह । मेरे मुह से ये शव्द यू ही निकाला । लगता है आज कुछ  होने वाला है ? आज सतर्क रहना पड़ेगा । गार्ड ने सहमति जाहिर की किन्तु कुमार ने अविश्वास मे सिर हिलाकर नाकारात्मक विचार प्रकट किये । ये सब बहम है । लेकिन मैं परिस्थितियों को उपेक्षित नहीं समझता । शांत रहा ।

हमें राजधानी के समय पर आने की सूचना दी गयी थी । किन्तु ट्रेन  लेट आई और एक घने लेट सिकंदराबाद से रवाना हुई । मैंने सफ़र के दौरान करीब आध घंटे तक विलम्ब कम कर लिया । आशा थी गुंतकल समय से आगमन होगी ।काश मन के विचार समय से मेल खाते । राजधानी को चितापुर स्टेशन में सिग्नल नहीं मिला । एक लोरी फाटक के बैरियर में अटक गई थी । मास्टर को गेट बंद करने में परेशानी हो रही थी । अंततः राजधानी एक्सप्रेस को 58 मिनट होम सिगनल पर सिगनल के लिए इंतजार करना पड़ा । जो कुछ भी बिलंब कम हुआ था वह फिर बढ़ गया । मैंने कुमार को याद दिलाया । देख लिए न मैंने किचन के सामने क्या कहा था ? कुमार निरुत्तर सा रह गए । खैर अभी भी यात्रा काफी बाकी है ।

चलते चलते समय बदलती रहती है । काश अपशगुन भी बदल जाते । अब अदोनी आ रहा था । राजधानी गाड़ी को अदोनी में रुकना पड़ा । स्टेशन मैनेजर ने सतर्कता आदेश भेजा जिसके अनुसार हमें अदोनी और नगरुर स्टेशन के बिच सतर्क होकर वाकिंग गति से जाना चाहिए क्यों की शोलापुर का चालक किसी अप्रिय हलचल की सूचना दी थी । जो पीछे वाली गाड़ी के लिए अप्रिय या असुरक्षित हो सकता है । हमारे लोको में इंजीनियरिंग स्टाफ भी आये । इस तरफ सतर्कता आदेश की पालन करते हुए 6 मिनट की सफ़र के लिए 30 मिनट लगा । मैंने कुमार को किचन वाली चाय की याद दिलाई । इस बार वे शांत रहे जैसे मेरी बातो में कुछ तो है जिसे इंकार नहीं किया जा सकता ।

आखिर कार हमें यात्रा  के दौरान दो विभिन्न घटनाओ से सामना करना पड़ा । जिसकी सूचना चाय की प्याली ने दे दी थी । आप हंसेंगे , न मानेंगे कोई बात नहीं । अपनी अपनी मन पसंद है ।जो पढ़ेगा वही पास होगा ।

Wednesday, September 24, 2014

कोई शक्ति है ।


कहते है समय बलवान होता है । कब क्या हो जाये किसी को पता नहीं होता । कोई तो है ; जो हमारी सांसो को कंट्रोल करता है । उसके मर्जी के बिना कुछ सम्भव नहीं है । गाड़िया चलती है तभी जब चलाने वाला हो ।
उस दिन ऐसा ही कुछ होने से रह गया । दिनांक 20 जून 2014 को सपरिवार शादी में  शरीक होने जा रहा था । झिम झिम बारिस पड  रही थी । बस स्थानक में खड़े थे । बसे उस स्थानक पर नहीं रुकती है । कुछ समय के बाद एक बस आई और हमने रुकने के लिए हाथो  से इसरा किया ।
बस रुकी और हम जल्दी से उसके अन्दर प्रवेश किये ।बस  चल दी । कुछ दूर बढ़ने के बाद खलासी ने ड्राईवर को रुकने के लिए कहा । ड्राइवर ने बस तुरंत रोक दी ।खलासी बस से उतरा और पीछे की और गया । उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा । देखा की -पीछे के चक्के के पुरे नट बाहर निकलने वाले थे ।
फिर क्या था तुरंत अपने औजारों से टाइट किया । बस फिर गंतव्य की ओर रवाना हो गयी । कंडक्टर ने कहा -आज सबकी जान बच गयी अन्यथा एक्सीडेंट होने वाला था ।नटो के बाहर निकलते ही चक्के बाहर आ जाते थे । शुक्र है समय से लिया गया निर्णय सभी को सुरक्षित रखा ।
कहते है -एक छोटा छिद्र नाव को डुबो देता है । कही यह भी सही है की एक धर्मात्मा की वजह से असंख्य की जान बच  जाती है । कोई तो है जो सब कुछ जानता है । कब और क्या करना है ?

Monday, September 23, 2013

पूर्वाभास

हमारे जीवन में सोते वक्त स्वप्न और जागते वक्त कल्पनाएँ -प्रतिक्षण कुरेदती  रहती है । कोई स्वप्न देखना नहीं चाहता  , तो कोई कल्पना मात्र  से भी डरता है । फिर भी हमारे हाथ पैर इन्हें साकार करने हेतु प्रयत्नशील रहते है । हमारे मष्तिष्क की उपज है ये  स्वप्न और कल्पनाएँ । स्वप्न में भयावह दृश्य हो  सकती है , आनंदायी भी और उमंग भरी भी ।  पर कल्पनाएँ  जागरुक और सुखमय ही कर जाती  है । 

स्वप्न और कल्पनाएँ दोनों  मिलकर एक हकीकत को रंग देती है । स्वप्न और कल्पनाएँ निजी सम्पदा है । निजी प्रयत्नों से कामयाब होती है । बोतल की नीर , बोतल से ही निकलेगी , घड़े से नहीं । दुनिया में बहुत कम लोग होंगे जिन्हें स्वप्न या कल्पनाओ की अनुभूति न हुई   हो । कभी - कभी ये सच का रूप भी  लेती है । मंथन से अमृत निकल सकता है , तो जिज्ञासा से सच्चाई क्यों नहीं ? तभी तो कहते हुए सुना गया है -जिन   खोजा तिन पाईया ।  

जब स्वप्न और कल्पनाओ की बातें हो ही  गयी तो एक उदहारण भी प्रस्तुत है -
           मै वाड़ी में  था और मुझे उस  दिन शिर्डी साईं नगर एक्सप्रेस लेकर गुंतकल आना था । दोपहर को भोजन के उपरांत  सो गया । मुझे एक स्वप्न आया कि  मै गेंहू पिसवा  रहा हूँ , पर गेंहू गीला हो जाता था । सो कर उठने के बाद परेशान हो गया ।दिमाग चलायमान हो चूका था ।  किसी अशुभ घटना के संकेत थे क्युकी कहते है शिरडी में हैजा की बीमारी के समय , साईं बाबा जी ने चाकरी में गेंहू की पिसाई की थी और औरतो से कहाकि  गाँव के चारो ओर सीमा पर छिड़क दें । सूखे आटा को सीमा पर छिड़कने से हैजा से मुक्ति मिली थी । पर यहाँ तो आटा गिला हो रहे थे ?

ड्यूटी में पौने पांच बजे शाम को ज्वाईन हुआ  । मिसेस जी का  फ़ोन काल आया । उन्होंने सूचना दी कि मिनी के सास की मृत्यु हो गई  , जो बनारस में ब्रेन फीवर की वजह से भरती थीं । मिनी मेरे बहन की बड़ी बेटी है ।  सूखे आटे कि जगह यह है गीली आटे का स्वप्न । स्वास्थ्य के वजाय अस्वस्थ सूचना ।  जी ऐसी कितने पूर्वाभास हमें होते रहते है । सिर्फ हम उन्हें हल्के में ले लेते है । अगर उनकी समीक्षा की जाये , तो जरूर निष्कर्ष पर पहुंचा जा सकता है । फिर भी जरूरी नहीं कि आप मुझसे सहमत हों । 

Saturday, June 15, 2013

शिर्डी वाले साईं बाबा



दोनों एक समय  के जिगरी दोस्त थे । बहुत दिनों के बाद एक साथ और परिवार के साथ  मिले थे । वह भी महाराष्ट्र के मशहूर धार्मिक नगर शिर्डी में । दो दिनों का प्रोग्राम था । दोनों छुट्टी पर थे । एक एयर फ़ोर्स में कार्यरत शिव थे , तो दुसरे रेलवे के अधीन महादेव ।  नाम  अलग - अलग , पर अर्थ एक जैसे । यह भी एक इत्तेफाक था । पहले दिन नासिक दर्शन को  गए थे । थकावट में रात गुजरी । सुबह होते ही बाबा के दर्शन करने के बाद , शिर्डी  से प्रस्थान की व्यवस्था हो चुकी थी । 

दुसरे दिन वही हुआ , जो प्रोग्रमित था ।  दोनों दोस्त दोपहर के भोजन के बाद भक्ति निवास में लौट आयें । यही दो कमरे बुक हुए  थे । दोनों  दो बजे रेलवे स्टेशन के लिए रवाना होने वाले थे । शिव की ट्रेन नासिक से थी और महादेव की कोपर गाँव से । अतः शिव ने एक कार को भक्ति निवास में ही बुक कर लिया । कोपर गाँव जाने के लिए कोई साधन भक्ति निवास में उपलब्ध नहीं थे । साईं बाबा के मंदिर के सामने ही कोपर गाँव के लिए साधन मिलते है । 

दोनों के जुदा होने का वक्त आ गया था । भक्ति निवास में शिव अपने परिवार के साथ कार में जा बैठा । महादेव और उनके परिवार वालो ने विदाई हेतु अपने हाथ को हवा में लहराए । तभी महादेव के दिमाग में  एक तरकीब जगी , क्यों न हम सभी  इसी कार में साईं बाबा के मंदिर तक चल चले ? और दो मिनट  एक साथ रहेंगे । शिव ने भी ख़ुशी जाहिर की । महादेव भी परिवार के साथ उस कार में बैठ गया । कार पोर्टिको से बाहर सड़क की ओर चल दी । 

ओ ..ड्राईवर कार रोको ? किसी ने कार ड्राईवर को इशारा करते हुए कहा । ड्राईवर ने कार रोक दी । शायद वह ऑटो वाले थे । उसने ड्राईवर को  मराठी भाषा में कुछ हिदायत दी और न मानने की हालत में सौ रुपये जुरमाना देने को कहा । दस मिनट हो चुके थे । माजरा क्या है ?  जानने के लिए महादेव ने ड्राईवर से प्रश्न किया  । ये लोग दो परिवार को क्यों बैठाये हो -के मुद्दे पर प्रश्न खड़ा कर रहे है । एक ही परिवार को ले जाने के लिए कह रहे है । यह सून कर बड़ा ही ताज्जुब हुआ । ड्राईवर  और महादेव ने उन्हें समझने की लाख कोशिस की और उन्हें बताया गया कि एक परिवार मंदिर के पास उतर जाएगी । किन्तु उन लोगो के कान पर जू तक न रेंगी । उनकी बात न सुनी गयी , तो कार के चक्के की हवा निकाल देंगे । 

मामला गंभीर न हो जाए अतः महादेव  स्वयं परिवार सहित कार से निचे उतर गए और अफसोस के साथ दोस्त को अलबिदा किया । धर्म के स्थल पर यह घोर अन्याय है । महादेव मन ही मन बुद  बुदाये । ऑटो वाले ठीक नहीं कर रहे है । महादेव ने गुस्से के साथ पत्नी से कहा कि हम यहाँ से किसी ऑटो को किराये पर नहीं लेंगे और पैदल ही मंदिर तक जायेंगे । 

पहिये वाली सूट केस और बैग को सड़क पर खींचते हुए मंदिर की तरफ चल दिए , जहाँ से कोपरगाँव की   ऑटो / जीप  मिलती है । ऑटो वाले देखते रह गए । सहसा एक ऑटो आकर उनके समक्ष रूका , जिसे कोई बारह या पंद्रह वर्ष का लड़का चला  रहा था । लडके ने कहा - ऑटो में बैठिये मै मंदिर तक छोड़ देता हूँ । महादेव के मन में गुस्सा था । उसने सीधे इंकार कर दिया । किन्तु ऑटो वाला अपने   जिद्द पर अड़ा  रहा । अंततः महादेव ऑटो में बैठ गया ।



 दो मिनट में मंदिर स्थल आ गया । महादेव ऑटो से उतरने के बाद भाडा देने हेतु अपने पर्स खोलने लगे  । पर ऑटो वाला बिना देर किये , बिना भाडा लिए ही , वहां से  फुर्र हो  गया । जबकि भक्ति निवास से मंदिर तक का ऑटो चार्ज बीस रुपये था । महादेव आश्चर्य चकित थे । भला जिस पैसे के लिए उन ऑटो वालो ने हमे कार से उतरने के लिए विवश कर दिया था , वही बिन भाडा कैसे जा सकते है ? उन्हें समझते देर न लगी । साईं बाबा ने अपने भक्तो को कभी भी उदास नहीं किया है । सभी की बिदाई ख़ुशी से करते है । महादेव ने मन ही मन साईं बाबा को प्रणाम किया । 

ॐ साईं .....ॐ साईं ....ॐ साईं .....

( साथियों ....यह घटना सत्य पर आधारित है । परिवेश वही है , पर नाम बदल दिए गए है । दूर घर बैठे फोन के माध्यम से अपनो से बात चित हो जाती है । क्या यह सत्य नहीं की मंदिर रूपी फोन  के माध्यम  से हमारी आवाज भी ईश्वर तक पहुँच जाती है ?) 

Friday, April 12, 2013

एक लघु कथा --माँ की ममता पर प्रहार |

लक्षम्मा  झोपड़ी में बैठी बी. .पि.एल चावल के कंकडो को चुन रही थी | जीर्ण शीर्ण सी झोपड़ी और वैसे ही  अंग के चिर  | फिर भी सूर्य की किरण का चुपके से झोपड़ी में आना , उस कड़वी ठण्ड और बरसात  से बेहतर लग रही  थी |

  " लक्षम्मा ..वो लोग आये है |" - उसका पति वीरन्ना बोला | लक्षम्मा धीरे से मुड़ी , उसके मुख पर भय  की रेखाए और शरीर में सिहरन दौड़ गयी | उसके मुख से शव्द नहीं निकल रहे थे  | वश केवल  - "  नहीं  " शव्द ही निकल पायें | देखो ..हमारी  दिन - दशा ठीक नहीं है | चार वेटिया है | जीना  दूभर हो गया है | ऐसे कब तक घुट - घुट कर  जियेंगे | वैसे भी अभी तीन और है |  लक्षम्मा जब - तक कुछ और कहे  , वीरन्ना ने सबसे छोटी दो वर्ष की  विटिया  को उसके नजदीक से खिंच लिया , जो माँ से चिपटी हुयी गहरी नींद में सो रही थी |

उन  व्यक्तियों में से एक  ने वीरन्ना के हाथो  पर  एक नोट का  बण्डल  रखते हुए बोला  - "  गिन लो , पुरे पांच हजार है | " फिर छोटी बिटिया को एक बिस्कुट का पैकेट पकड़ा दिए और वह ख़ुशी से खाने लगी | चलते है ! कह कर उन्होंने छोटी विटिया को गोद में उठा  आगे बढ़ गए  | लक्षम्मा दरवाजे पर खड़ी.. बाएं हाथ से साडी के पल्लू को मुह पर रख ली और दाहिने हाथ को आगे बढ़ाई...जैसे कह रही हो - नहीं .. रुक जाओ ...मेरी विटिया मुझे वापस दे दो | धीरे - धीरे वे दोनों व्यक्ति आँखों से ओझल हो गए |

लक्षम्मा के दोनों आँखों के कोर आंसुओ से भींज गएँ थे  | मुड़ कर पीछे की ओर  देखी | उसका निर्मोही  मर्द पैसे गिनने में व्यस्त था | अचानक वह बोला - ""  अरे ..ये तो पांच सौ कम है और जल्दी से  उनके पीछे दौड़ पड़ा | लक्षम्मा धम्म से जमीन पर बैठ  गयी ..इस आश  में की अब  उसकी बिटिया  वापस आ जाएगी ........

Monday, March 4, 2013

अंक की बिंदिया

कहते है -जो होनी है , वह जरूर होगी | जो हुआ , वह भी ठीक  था  | अथार्थ हर घटना के पीछे कुछ न कुछ कारण होते ही है | पछतावा ,मात्र संयोग रूपी घाव ही है | घटनाओं के अनुरूप सजग प्रहरी , कुछ न कुछ विश्लेषण निकाल  ही लेते है | जो मानव को उसके शिखर पर ले जाने के लिए पर्याप्त होती है | हमें इस संसार में    विभिन्न  परीक्षाओ से गुजरने पड़ते है ,उतीर्ण या अनुतीर्ण , हमारे कर्मो की देन है | 

मन की अभिलाषाएं -असीमित  है | इस असंतोष की  भंवर में जो भी फँस गया , उसे उबरने की आस कम ही होती है | संतोष ही परम धन है | मैंने  अपने  जीवन में सादा  विचार और सादा  रहन - सहन को अहमियत दी है | सदैव पैसे अमूल्य ही रहे है | यही वजह था की उच्च शिक्षा  के वावजूद भी १९८७ में फायर मेन के तौर पर रेलवे की नौकरी स्वीकार की थी | वह एक अपनी  इच्छा थी | उस समय की ट्रेनों को देख मन में ललक होती थी , काश मै भी ड्राईवर होता | किन्तु वास्तविकता से दूर | मुझे ये पता नहीं था कि फायर मेन को करने क्या है ? ड्राईवर का जीवन कितना दूभर है ?

इस नौकरी में आने के बाद , इसकी जानकारी मिली | स्टीम इंजन के साथ लगना पड़ा था | कठिन  कार्य | श्रम करने पड़ते थे | इंजन के अन्दर कोयले के टुकडे को डालना , वह भी बारीक़ करके | कभी - कभी मन में आते थे कि नाहक प्रधानाध्यापक की नौकरी छोड़ी | चलो वापस लौट चले ? पर  दिल की  ख्वायिस और  इच्छा के आगे  घुटने टेकने पड़े थे | मनुष्य उस समय बहुत ही दुविधा  का शिकार हो जाता  है , जब उसके सामने  बहुत सी सुविधाए और अवसर के  मार्ग उपलब्ध हो  |    

मेरे लिए गुंतकल एक नया स्थान था |  मैंने अपने जीवन में इस जगह के नाम को  कभी नहीं सुना था | भारतीय मानचित्र के माध्यम से  -इस जगह को खोज निकाला  था | वह भी दक्षिण भारत | एक नए स्थान में अपने को स्थापित करने की उमंग और आनंद ही कुछ और होते  है | बिलकुल नए घर को बसाना , अपनी दुनिया और प्यार को संवारना  |  बिलकुल एक नयी अनुभव | एक वर्ष के बाद ही पत्नी  को साथ रख लिया था | बिलकुल हम और सिर्फ हम दोनों , इस नयी जगह और  नयी दुनिया के परिंदे | कोई संतान नहीं | नए जीवन की शुरुआत और अपने ढंग से सवारने में मस्त थे | उस समय की  कोमल और अधूरी यादें मन को दर्द और  प्रेरणा मयी जीने की राह प्रदान करती   है | 

उस दिन की काली कोल सी  , काली भयावह रातें  कौन भूल सकता है | जो ड्राईवर या लोको पायलटो के जीवन का एक अंग है | भयावह रातें , असामयिक परिस्थितिया , अनायास  दर्द ही तो उत्पन्न  कराती है | परिजनों से दूर , सामाजिक कार्यो से विरक्तता , वस् एक ही दृष्टि सतत आगे सुरक्षित चलते रहना है और चलते रहने के लिए सदैव तैयार बने रहो  | हजारो के जीवन की लगाम इन प्यारी हाथो में बंधी होती है |

 उस दिन मै एक पैसेंजर ट्रेन ( स्टीम इंजन से चलने वाली  ) में कार्य करते हुए , हुबली से गुंतकल को आ रहा था | संचार व्यवस्था सिमित थी  | संचार को गुप्त रखना भी एक मान्यता थी | रात  के करीब नौ बजे होंगे ,गुंतकल पहुँच चुके थे | शेड में साईन ऑफ करने के लिए जा रहा था | सामने पडोसी महम्मद इस्माईल जी ( जो ड्राईवर ट्रेंनिंग स्कूल के इंस्ट्रक्टर भी थे ) को देख अभिवादन किया | साईनऑफ हो गया हो तो हाथ मुह धो लें - उन्होंने मुझसे कहा  | यह सुन दिल की धड़कन बढ़ गयी | आखिर ये ऐसा क्यूँ कह रहे है ? आखिर इस वक़्त इनके यहाँ आने की वजह क्या है ? मन में तरह - तरह की शंकाएं हिलोरे  लेने लगी | मैंने उनसे पूछ - अंकल क्या बात है ? उन्होंने कहा - कोई बात नहीं है , आप की पत्नी की  तवियत ठीक नहीं है | वह अस्पताल में भरती है |

अब हाथ - मुहं कौन धोये | तुरंत अस्पताल को चल दिए | अस्पताल बीस मीटर की दुरी पर ही था | महिला वार्ड में पत्नी -बिस्तर पर लेटे हुए थी | पास में ही महम्मद इस्माइल जी की पत्नी खड़ी थी | उनके चेहरे पर भी दुःख के निशान नजर आ रहे थे  | पत्नी मुझे देख मुस्कुरायी और धीमे से हंसी | जैसे कह रही हो , मेरी ही गलती है | मै दृश्य को समझ चूका था | एक पूर्ण  औरत की ख़ुशी और उसके अंक  की पहली बिंदी गिर चुकी थी | आँखों में पानी भर आयें | मेरे आँखों में पानी देख पत्नी के हौसले भी ढीले पड़ गएँ , उसके भी  आँखों में आंसू भर आयें  |  दिल के गम को बुझाने के लिए , आंसू की लडिया लगनी वाजिब थी | महम्मद इस्माईल की पत्नी दोनों को संबोधित कर बोलीं - आप लोग दुखी मत होवो , घबड़ाओ मत , अभी जीवन बहुत बाकी है | 

एक दूर अनजान देश में , जहाँ अपने करीब नहीं थे , परायों ने अपनत्व की वारिस की | हम अलग हो सकते है , पर अगर दिल में थोड़ी भी  मानवता है  , तो हमें नजदीक खीच लाती  है | उस समय की असमंजस भरी ठहराव , दृढ संकल्प और कुछ कर सकने की दिली तमन्ना , आज उपुक्त परिणाम उगल रही  है | आज हम दो और हमारे दो है | फायर मेन से उठकर सर्वोच शिखर पर पहुँच राजधानी ट्रेन में कार्य करने की इच्छा पूर्ण हुयी है | आज अनुशासन भरी जिंदगी , एक उच्च कोटि के अभियंता से ऊपर  सैलरी  और जहाँ - चाह  वही राह के मोड़ पर खड़ी जिंदगी , से ज्यादा जीवन में और कुछ क्या चाहिए  ?

 अपने लगन और अनुशासन के बल पर जीवन जीना और इसके अनुभव की खुशबू ही  अनमोल है | आयें हम सब मिल कर , अनुशासन के मार्ग पर चलते हुए , एक नए भारत की सृजन करें | जहाँ भ्रष्टाचार का नामोनिशान न हो | 

Saturday, January 26, 2013

कर भला हो भला |

अरे कलुआ ( बदले हुए नाम ) ...कहाँ है रे |  तू बाहर  आ  | क्या कर दिया रे | आज मेरे पुत्र को क्या हो गया  ? बहुत कुछ बडबडाते  हुए वह  औरत आगे बढ़ रही थी | रात्रि  का पहर  | चारो तरफ अँधेरा ही अँधेरा | गाँव का मामला | बिजली की आस नहीं | झींगुरो की आवाज गूंज रही थी | कुत्ते भूकने लगे थे | आचानक वह महिला चिल्लाते हुए कलुआ के दरवाजे पर आ धमकी  | उसके पीछे लोगो का झुण्ड   किसी के हाथ में लाठी  , तो किसी के हाथ में डंडे | टार्च की रोशनी फैल रही थी | शोर गुल तेज हो गए | आस - पास के लोग भी अपने घरो से बाहर  निकल आये | किसी को माजरा  समझ में नहीं आ रहा था, आखिर बात  क्या है ?

उस गरीब के झोपड़ी के सामने , इन दबंगों के भीड़ को देख सभी समझ गए की जरुर कुछ लफडा है | लगता था जैसे भीड़ कलुआ को चिर कर खा जाने के लिए तत्पर हो चली थी  | उस झोपड़ी के अन्दर तेल के मद्धिम  दीप की  रोशनी में कलुआ की बीबी चूल्हे पर कुछ पका रही थी | दो छोटे बच्चे पास में ही चिपके हुए थे | कलुआ पास में बैठा ,बीडी पिने में मशगुल था  | घर के बाहर  उसके सास और ससुर  चौकी पर लेटे हुए थे | इतनी हुजूम ,  देखते ही उनके अन्दर डर समां गयी | अँधेरे में भी उन्हें समझते देर न लगी की कौन उनके घर के पास खड़ा है और  चिल्लाये जा रहा है |

' बबुआ की माँ जी का  बात है ?'-कलुआ के बाप के मुह से सहमी सी  आवाज निकली | पहले बता कलुआ कहा है ? भीड़ से किसी ने कहा | तब तक कलुआ झोपड़ी के अन्दर से धीरे - धीरे  बाहर निकला | उसके बाहर  आते ही वह बुड्ढी ( जो  संपन्न / दबंग घर की महिला थी ) कलुआ के पैर पर गिर पड़ी | कलुआ मेरे बेटे को बचा लो | मेरा बेटा मर जायेगा | मेरा बेटा मर जायेगा | वह एक साँस में बोले जा रही थी  ,  रुकने का नाम नहीं ले रही थी और कहते - कहते बिलख कर रोने लगी | सभी हतप्रभ थे , किसी को समझ में नहीं आया | आखिर मामला क्या है ?

चाची जी रौआ उठी | ऐसन का बात हो गईल , जो इतना परेशान बानी | उसने  भोजपुरी लहजे में   ही कहा  और अपने पैर को दूर खिंच लिया |  वृद्धा उठ चौकी के एक कोने में बैठ गयी  और अपनी बात दुहराते हुए फिर बोल पड़ी  - बेटा  कलुआ , मेरे बेटे से गलती हो गयी | अगर उसने कुछ गलत किये हो तो , उसके लिए मै माफी मांगती हूँ , माफ कर दो | तेरे सभी पैसे मै देने  के लिए तैयार हूँ | कुछ कर धर ( मतलब कोई टोटके ) दिया हो तो उसे वापस ले लो | तू भी मेरे बेटे सामान है | कलुआ मेरा बेटा मर जायेगा | और बहुत कुछ ....

कलुआ हक्का बक्का सा गुमसुम खड़ा रहा  | उसे समझ में नहीं आ रहा था की मामला क्या है ? असमंजस सी स्थिति | आस - पास वाले भी कुछ न समझ पाए |

गाँव के हाट बाजार | जो सप्ताह में दो दिन , वह भी संध्या समय ही लगते है - रविवार और बुधवार | उस दिन रविवार थे | बाजार खाचा - खच भर गया था | इस हाट बाजार में दबंगों की दबंगई जोरो पर रहती है | अतः सभी व्यापारी , इस बाजार में आने से डरते है | कुछ परिस्थिति से सामंजस्य बना लेते है | कलिया (मांस ) के दूकान एक या दो लगती है | मछुआरे एक तरफ चार या पांच की संख्या में आते है | उसमे कलुआ भी एक था | वह अपने टोकरी में मछली लेकर बिक्री कर रहा था | लेने वालो के हुजूम लगे हुए थे | कोई भाव पूछ रहा था तो कोई मोल भाव में व्यस्त | तभी अमर सिंह ( बदले हुए नाम )  दबंगों का झुण्ड आ डाटा | उन्होंने कलुआ से  मछली का रेट पूछा  | बीस रूपए किलो साहब | अबे बीस रुपये मछली कहाँ है रे ?  दस रूपए में दे दो | नहीं साहब घाटा  हो जायेगा | कलुआ गिडगिडाने लगा | दबंगों ने जबरन दो किलो मछली तौल  लिए और जाते - जाते पैसे भी नहीं दिए | कलुआ मुह देखते रह गया |

घर की औरतो ने  मछली  बहुत मसालेदार  बनायीं | घर के सभी छोटे - बड़े .. बारी - बारी से भोजन ग्रहण कर लिए थे | जब अमर सिंह  भोजन करने लगा  ( जिसने कलुआ से जबरन मछली छीन कर लायी थी ) अचानक उसके गले में मछली के कांट फँस गए | बहुत चेष्टा की ,सादे भात खाए  पर  निकलना मुश्किल | घर वाले गाँव के स्वास्थ्य केंद्र में ले गए | डॉक्टर ने जबाब दे दिया |  डॉक्टर ने कहा - शहर के अस्पताल में ले जाएँ | शहर के अस्पताल ने वनारस को रेफर कर दिया | घटना क्रम से प्रभावित हो किसी साथी  ने कह दी की मुफ्त की मछली का नतीजा है | कलुआ ने कोई जादू - टोना की होगी | परिणाम सामने है सभी घर वाले क्षमा - याचना वस् कलुआ के घर दुहाई के लिए जुट गए थे  | कलुआ की अनुनय - विनय हो रही थी |

 संसार में जीवो की उत्पति ही कुछ न कुछ अर्थ रखती  है | मनुष्य सबसे चालक और उत्कृष्ट माना जाता है | इसके कार्यकलापो से  हवा के अन्दर जो स्पंदन उठती  है , वह आस - पास की सभी चीजो को प्रभावित करती है | आग के पास बैठने से गर्मी या सर्दी नही | आम से आम या इमली नही | परिणाम हमारे कर्मो की देन है ,फिर आंसू किस लिए ? इसीलिए कहते है -- कर  भला - हो भला | 

(  यह सत्य घटना मेरे गाँव की | परिणाम बहुत ही दर्दनाक रहें | तीन महीने बाद अमर सिंह की मृत्यु हो गयी | आज गाँव में यह घटना एक उदहारण बन गयी है | जैसी करनी वैसी भरनी | मछुआरो ने गाँव का बहिष्कार कर दिया था |  )

Thursday, August 2, 2012

दर्द , दवा और दुवाएँ एक भँवर

जिंदगी में कभी - कभी साहस की परीक्षा भी हो जाती है । मेरे लिए दिनांक 17 जुलाई से 29 जुलाई 2012 का समय , एक चुनौती भरा रहा । एक तरफ दर्द तो दूसरी तरफ कर्तव्य । यही वजह था ,जो मुझे कुछ दिनों के लिए ब्लॉग जगत से दूर रखा । यहाँ..., मै उन अनुभूतियो को रखना चाहूँगा । अगर ध्यान से पढ़ा जाय  तो बहुत कुछ समझा जा सकता है । अवश्य पढ़ें
दिनांक 17 जुलाई 2012 -गुंतकल 
मै दिनांक 17 जुलाई को प्रशांति एक्सप्रेस से विजयवाडा जाने वाला था और वातानुकूलित श्रेणी में बर्थ कन्फर्म था । ट्रेन रात को साधे आठ बजे थी ।रिजर्व टिकट किसी दुसरे साथी के पास था । सुबह से ही पूरी तैयारी  कर ली थी । ग्यारह बजे गंगाधरन ने फोन की और कहा की सिखामनी सभी टिकट कैंसिल करवा दिया है । मेरे होश उड़ गए । अब क्या होगा ? जोनल सम्मेलन  में जाना ही होगा , अन्यथा सभी क्या कहेंगे । किन्तु बाद में पता चला की मेरे टिकट सुरक्षित थे ।
दिनांक -18 जुलाई 2012-विजयवाडा 
आल इंडिया लोको रुन्निंग स्टाफ असोसिएसन दक्षिण मध्य रेलवे का ग्यारहवा कांफेरेंस आयोजित था । सभी  कार्यकर्ता और सदस्य एकत्रित हो रहे  थे । मुझे सब्जेक्ट  कमिटी का  चैरमैन बनाया गया था । सभा के कार्यकर्म सुनियोजित ढंग से चल रहे थे । दोपहर बाद गुंतकल से काल आया । फोन मैडम ( पत्नी ) ने किया था । मैडम ने सूचना दी  कि बड़ा बेटा  राम जी अस्पताल में भरती है ! यह खबर घबराहट देने वाली थी  और  मै सभा गृह से बाहर  आ गया । पूरी जानकारी ली ।  अस्पताल में भरती होने का कारण पूछा ? जबाब नकारात्मक थे , क्यों कि डॉक्टर ने कुछ बताने से इंकार कर दिया था । डॉक्टर मुझे ही बताने की जिज्ञासा जाहिर की थी । मैंने मैडम से पूछा -क्या मेरी उपस्थिति जरुरी है ? अगर ऐसा है तो मै  तुरंत घर आने की चेष्टा करता हूँ । मैडम ने कहा कि आप कांफेरेंस  की प्रक्रिया पूरी करके भी आ सकते है । मुझे कुछ शांति मिली और प्रोग्राम में यथास्वरूप शामिल रहा । अंततः रात्रि के साढ़े आठ बजे प्रोग्राम की समाप्ति हुयी । विजयवाडा से गुंतकल जाने के लिए कोई एक्सप्रेस ट्रेन नहीं थी , अतः पसेंजर द्वारा यात्रा शुरू हुयी । ट्रेन करीब रात  के नौ बजे छुटी ।

दिनांक -19 जुलाई 2012 -फिर से गुंतकल 
मै  सुबह नौ बजे गुंतकल पहुंचा । घर आने पर पाया कि मैडम अस्पताल में है ।सुबह के नित्यक्रियाकर्म में व्यस्त हो गया , सोंचा  कि  रिफ्रेश होकर अस्पताल में जाऊं । शेव के लिया तैयार हो ही रहा था कि मोबाइल की आवाज आई । बड़े पुत्र की आवाज थी । मद्धिम  स्वर । डैडी डॉक्टर साहब जल्दी बुला रहे है । मैंने शेव के कार्यक्रम को स्थगित कर जैसे - तैसे चल दी । अस्पताल घर के पास ही है । वार्ड में जाते ही नर्सो ने पे स्लिप के जेरोक्स  और declaration फॉर्म की प्रक्रिया पूरी करने को कहा । मै   अपने साथियों को कुछ कार्य सौप कर डॉक्टर से मिलने चला गया । डॉक्टर श्रीनिवासुलु उस समय महिला वार्ड में निरिक्षण पर थे । मामले की गंभीरता को देखते हुए मै  उनसे वही मिलने चला गया , पर वे मुझसे वहां  मिलने से इंकार कर गए और कहा की मै उनका इंतजार आई सी यु में करूँ , जल्द आ रहे है । करीब  आधे घंटे बाद वे अपने चेंबर में आयें ।मै  अन्दर गया । उन्होंने मुझे बैठने को कहा । मेरे बेटे की रिपोर्ट को देखते हुए उन्होंने कहा कि -मेरे बेटे को डेंगू बुखार है । ह्विट प्लेट लेट की संख्या डेढ़ लाख से 23000 हजार को आ गयी है । इस उपचार  की व्यवस्था अस्पताल में नहीं है , अतः जितना जल्द हो सके लालागुडा ले जाएँ ,वहां व्यवस्था  होगा अन्यथा वे लोग प्राइवेट अस्पताल में रेफर करेंगे । मुझे जैसे सांप सूंघ गया । स्थिति भयावह थी ।  ट्रेन दोपहर और रात को थी । ट्रेन से हैदराबाद जाना , खतरे से खाली  नहीं था । । अस्पताल से अम्बुलेंस की मांग की , पर एक ही अम्बुलेंस है कह कर कन्नी काट लिया गया । मैंने एक दोस्त को फोन की और टाटा सुमो को लाने  को कहा । फिर क्या था , समाचार चारो तरफ फैलते देर न लगी । आधे घंटे में गाडी तैयार ।

गुंतकल से हैदराबाद का सफर 
घर के सभी सदस्य चलने के लिए तैयार । हमारी यात्रा साढ़े ग्यारह बजे शुरू हुयी । हैदराबाद पहुँचने में करीब 6 घंटे लगेगे । टाटा सुमो  बंगलोर - हैदराबाद हाईवे पर दौड़ रही थी । किसी को भी मैंने रोग के बारे में नहीं बताई थी । मुझे पता था - समय बहुत कम है और बेटे की जान खतरे में है । कल क्या होगा ? किसी को नहीं पता ? हाईवे के रास्ते  में एक दुर्गा जी का मंदिर है । कहते है - जो भी बिना पूजा किये  इसे पास करता  है , उसके साथ कोई न कोई अनहोनी होती है । हमने यहाँ पूजा की . नारियल फोड़े और प्रसाद खाते हुए आगे बढ़ चले । कर्नूल के करीब से बेटे की तबियत और बिगड़ने लगी , बुखार बढ़ने लगा । आँखे लाल हो गयी । बदन में दर्द तेज । अस्पताल ने बिना किसी औषधि / नर्स के बिदा कर दिया था । हमें भी जल्दी में कुछ नहीं सुझा था । पत्नी साईं बाबा की गुहार लगाये जा रही थी । बाबा बेटे की जान बचाना । मेरे दिल में धड़कन बढ़ रही थी । भगवान के सिवा , कोई नजर नहीं आ रहा था । रुमाल भींगा कर बेटे के सिर पर रखे थे । अपने साथियों को इतल्ला कर दी थी । वे हैदराबाद के लालागुडा अस्पताल में बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। पांच  बजे तक शहर के सीमा पर पहुँच गए ।  ट्राफिक  जाम की वजह से सात बजे अस्पताल में पहुंचे । ड्यूटी पर अपातकाली डॉक्टर मौजूद थी ...डॉक्टर पद्द्माप्रिया  । हम  पति -पत्नी के उस डॉक्टर से अच्छे रिश्ते थे क्युकी वे गुंतकल अस्पताल में काम कर चुकी थी । उन्होंने स्थिति को भांप लीं और बिना देर किये ... तुरंत यशोदा अस्पताल को रेफर कर दी , जो एक कारपोरेट अस्पताल है । साढ़े   साथ बजे हम यशोदा अस्पताल के इमरजेंसी में थे ।

यशोदा अस्पताल / सिकंदराबाद 
डोक्टरो  की टीम मुआयेने में जुट गयी । मेरे बेटे की जान खतरे में थी । किसी ने ग्लुकोसे के बोतल चढ़ाये । तो किसी ने खून निकले , जांच के लिए । बाद में किडनी के खराबी की आशंका की वजह से सिने और पेट के स्कैनिंग कराये गए । जांच जोरो पर थी । इस तरह की इलाज सरकारी अस्पतालों में नहीं मिलती। मेरा बेटा नरम पड़ते जा रहा था । दुआ के सिवा कुछ नहीं बचा था । मेरे पुत्र को ACU वार्ड में दाखिल कर दिया गया । जिसे ACUTE केयर UNIT के नाम से जानते है । हम सभी परिवार वेटिंग हॉल में रात गुजार  रहे थे । पल - पल की जानकारी के लिए उत्सुक । रात के बारह बजे के बाद वार्ड से  मुझे फोन आया । मेरा दिल बैठ गया । हे भगवान , मदद करना । मै  जल्द ही लिफ्ट से छठे फ्लोर पर गया । मुझे अन्दर बुलाया गया । मैंने देखा ..मेरा पुत्र बिस्तर पर लेटे  हुए था , उसे नींद नहीं आ रही थी । मुझे देख हल्का सा मुस्कुराया , जैसे कह रहा हो - डैडी मै  बिलकुल ठीक  हूँ आप चिंता न करें । मुझे हिम्मत आई , पूछा ?  तबियत कैसी है । पेशाब नहीं हो रहा है । पेट फूल गया है । नर्स ने मुझे डिस्टर्ब नहीं किया । हम दोनों  की बाते पूरी होने के बाद उसने कहा - हमें जल्द white प्लेट लेट चाहिए , क्युकी  प्लेट लेट की संख्या 13000 आ गयी है । मैंने कहा सिस्टर जैसे भी हो रात को ब्लड  बैंक से मदद ले । अभी तो मै असमर्थ हूँ । सुबह इंतजाम हो जायेगा । ऐसा ही हुआ । ब्लड बैंक से white प्लेट लेट दिया गया ।


दिनांक -20 जुलाई 2012 -की सुबह-शाम 
मैंने तुरंत अपने असोसिएसन के सिकंदराबाद और हैदराबाद के पदाधिकारियों को फोन की । दिन भर लोको पायलटो की आवाजाही शुरू हो गयी । blood  ग्रुप  ओ पोजिटिव की जरुरत  थी । अंततः तीन  लोको पायलट  श्री एन सत्यनारायण , श्री एस सूर्यनारायण  और एम् शिवालकर  चुने गए । एम् शिवालकर सहायक लोको पायलट की white प्लेट लेट को मेरे बेटे को समर्पित किया गया ।

दिनांक -21 जुलाई 2012 -प्लेट लेट 
 सभी देवो के देव महादेव ( एम् शिवालकर ) के खून की शक्ति रंग लायी । प्लेट लेट की संख्या बढ़  कर  20000 हो गयी । सभी के जी में जान आई । फिर क्या था । राम जी  की दशा भी सुधरने लगी । शिर्डी से  डॉक्टर मुकुंद सिंह की काल आई ।  मेरे रूआसे ध्वनि को वे परख लिए और उन्होंने पूछ - सर क्या बात है ? मै  सब कुछ बता दिया । उन्होंने कहा -आप बाबा की भभूती पुत्र को चटायें , मै मंदिर में प्राथना के लिए जा रहा हूँ । बाबा ने भभूती पहले ही भेंज दी थी । मुझे तुरंत पूर्व की घटना याद आ गयी  । पिछले महीने डॉक्टर साहब ने मुझे शिर्डी का प्रसाद और भभूती दी थी , जब वे शिर्डी से बंगलूर कर्नाटक एक्सपेस से जा रहे थे । मैंने वैसा  ही किया । कुदरत की लीला गजब है ।

परिस्थितिया बदली । लोगो के आने का सिलसिला बढ़ने लगा । किन्तु अस्पताल के अन्दर बिना पास के अन्दर जाना मना  है , एक पास पर एक ही व्यक्ति । सैकड़ो  दुआओं के हाथ उठे । प्रतिदिन प्लेट लेट की संख्या बढ़ने लगी । 22 जुलाई को 30000 , 23 जुलाई को 40000 , 24जुलाई को 50000 । हमने डॉक्टर को कहला दिया था की जितना blood  चाहिए , उतना देने के लिए हमारे लोग हमेशा तैयार है । यहाँ तक की इन्डियन एयर फाॅर्स के जवान भी तैयार थे । किन्तु जरुरत नहीं पड़ी । डॉक्टर धीमी गति से  प्लेट लेट के बढ़ोतरी से चिंतित थे । अतः बोन मैरो जाँच की शंका जाता रहे थे । फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और मेरे पुत्र को स्वस्थ घोषित कर 24 जुलाई 2012 को संध्या बेला में ACU  वार्ड से साधारण वार्ड में सिफ्ट कर दिए ।

साधारण वार्ड -
धीरे - धीरे पुत्र की दशा में सुधार  होने लगा । 25 जुलाई को प्लेट लेट की संख्या 70000 , 26 जुलाई को 100000 और 27 जुलाई को 1.5 लाख हो गए , जो स्वस्थ व्यक्ति के लिए जरुरी सीमा है । अंततः सैकड़ो हाथो की दुआए और देवी - देवताओ  के आशीर्वाद मेरे पुत्र को संकट से बचा लिए । 27 जुलाई को उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया । 28 जुलाई को रेलवे अस्पताल / लालागुडा  को रिपोर्ट किया । वापसी के राह में भी वही डॉक्टर मिली । दवा लिखने के बाद केश गुंतकल को रेफर हुआ । 28 जुलाई को रायलसीमा ( 17429 एक्सप्रेस) के द्वारा हम हैदराबाद से गुंतकल को रवाना  हुए ।  हम  29 जुलाई 2012 , रात को बारह बज कर दस मिनट पर गुंतकल पहुंचे । 30 जुलाई को गुंतकल रेलवे अस्पताल के फिजिसियन से मिले और हमारे लोगो ने उसकी बहुत फजीयत की । उसकी चर्चा यहाँ नहीं करना चाहता ।

अनुभव का भंवर -
इसे क्या कहेंगे ?

1) अस्पताल में भारती की तारीख = 18 और इसके योग =9  ,समय =एक बजे दोपहर के आस- पास 
2)लालागुडा पहुँचाने का समय =19 घंटे और इसमे भी =9
3)ACU  में वेड संख्या =  9
4) साधारण वार्ड में दाखिल और  कमरे की संख्या = 9 , मंजिल के तल्ले भी = 9
5)अस्पताल से डिस्चार्ज की तारीख =27 जुलाई और इसके योग =9
6)वापसी में ट्रेन संख्या = 1742 9 और इस संख्या के आखिरी में = 9
7)गुंतकल पहुँचाने का समय =रात के बारह बजे के बाद और एक के पहले , तारीख 29 जुलाई और इसमे भी आखिरी = 9
आखिर ये क्या है ? नौ देवियाँ या नौ ग्रह या नवरत्न या और भी बहुत कुछ । जो भी हो किसी शक्ति के प्रभाव से इंकार नहीं किया जा सकता ।
पुत्र का नाम - राम जी . इश्वर का नाम । जिस डॉक्टर ने लालागुडा रेफर किया उसका नाम भी - श्रीनिवासुलु
लालागुडा  अस्पताल के  आपातकालीन डॉक्टर का नाम - पद्मप्रिया ,यशोदा के प्रांगन  में जिस डॉक्टर के निगरानी में इलाज चला - उनके नाम भी - शिवचरण और जिस अस्पताल में रेफर हुआ , उस अस्पताल का नाम भी यशोदा ( कृष्ण जी की माता जी/ पालनकर्ता  )
जिनके blood कामयाब हुए , उनके नाम भी - इश्वर के
सत्यानारायण , सुर्यनारायण और शिवालकर । शिव जी संहारक है , शिव जी ने मेरे पुत्र को जीवन दान दी है , शिवालकर ।
इश्वर ने अपने भक्त को कभी नहीं रुलाई । जहाँ आस्था है , वहीँ भक्ति । जहाँ भक्ति है , वही शक्ति । मेरा परिवार उन सभी देवी - देवताओ और सभी सज्जनों को प्रणाम करता है , जिनकी दवा और दुआएं मेरे पुत्र को जीवन दान दिया है । 
( कृपया वैज्ञानिक टिपण्णी न करें = विज्ञानं ने सब कुछ दिया है । घास से दूध नहीं बनायीं । आज तक खून नहीं बना सका है ।)

Wednesday, June 13, 2012

मानवता की पहचान बड़ी मुश्किल है !

वह कभी बेंच पर बैठता , तो कभी उठ जाता  ! बिलकुल बेचैन ! घबराहट में चहलकदमी , आगंतुक सा राह  को निहारते हुए ! समझ में नहीं  आ रहा था की क्या करे ? माथे पर सिकन भरी ! होठ सुखते जारहे थे ! हर आने वाले से यही पूछता की डॉक्टर साहब कब आ रहे है ? कोई उन्हें जल्दी बुलाओ ना ? नर्सो से बार - बार , एक ही सवाल ..डॉक्टर साहब आ रहे है या नहीं ? नर्सो के सकारात्मक उत्तर भी नकारात्मक सा लग रहे थे ! सहसा एक व्यक्ति का आगमन होते दिखा  ! ड्यूटी पर उपस्थित नर्स ने  इशारे से कहा - वो .. डॉक्टर साहब आ रहे है !

वह व्यक्ति आपे से बाहर ! उसे समझ में नहीं आया की वह किससे तर्क करने जा रहा है और बोल बैठा -" आप ऐसे ही लेट  आते है क्या ? आप को जरा भी सेन्स नहीं है ! मेरा बच्चा सर्जरी के लिए कब से आपरेसन  थियेटर में पड़ा हुआ है ! वह खतरे से खेल रहा है  और आप है जो ..थोड़ी भी समझ नहीं है ..." वह व्यक्ति एक साँस में बोले जा रहा था !

डॉक्टर  मुस्कुराया और बोला --" मै  आप का क्षमा प्रार्थी हूँ ! मै  अस्पताल में नहीं था ! मुझे जैसे ही नर्स की कॉल मिली , भागे - दौड़े  आ रहा हूँ !"  - डॉक्टर अभी अपने सर्जरी  लिबास में भी नहीं था ! दिखने से लग रहा था की वह पहनावे की फिक्र किये बिना ही आ गया था !

" चुप रहो ,,आप के बेटे  के साथ  ऐसा होता , तो खामोश बैठते क्या ? आप का बेटा इस हालत में मर जाए तो क्या करते ?" उस  बच्चे का पिता  गुस्साए हुए भाव से पूछ बैठा ! डॉक्टर ने मायूस स्वर में कहा - " मेरा जो धर्म है . करूँगा ! हम सब मिट्टी  के बने है और एक दिन मिट्टी  में मिल जायेंगे ! भगवान पर भरोसा रखे .सब ठीक  हो जायेगा ! जाईये  बेटे के  लिए भगवान से प्रार्थना  करें ! " इतना कह और देर न करते हुए .. डॉक्टर आपरेसन थियेटर के अन्दर चला गया !

करीब एक घंटे से ज्यादा ..सर्जरी की प्रक्रिया चली ! डॉक्टर  थियेटर से  तेजी से बाहर  निकला और तेज कदमो से  आगे जाते हुए बच्चे के पिता की ओर( जो बेंच पर घबडाये हुए बैठा था ) मुखातिब हो कहा - " life saved  भगवान का शुक्र है ! अगर कोई बात हो तो नर्स से पूछ लेना !" और तेज कदमो में आँखों से ओझल हो गया !

" वाह .. कितना गुस्से में है ...एक क्षण रूक कर मेरे बेटे के बारे में नहीं बता सकता  क्या ? "- वह व्यक्ति फुसफुसाया ! तब तक नर्स उसके सामने आ चुकी थी और वह  उसके शव्दों को सुन ली थी ! वह व्यक्ति नर्स की तरफ देखा ! नर्स की आँखों में आंसू की लडिया बहे जा रही थी ! व्यक्ति को कुछ समझ में नहीं आया ! वह घबडाये  सा उसे देखने लगा ! नर्स ने कहा -"  डॉक्टर के  बेटा  का शव ..श्मसान घाट में उनका इंतजार कर रहा है ! कल सड़क दुर्घटना में उसकी मृत्यु हो गयी थी ! जिस समय उन्हें कॉल मिली उस समय वे उसके अंतिम संस्कार में   व्यस्त थे  ! किन्तु संस्कार की प्रक्रिया बिच में ही छोड़ सर्जरी करने के लिए आ गए !"

मानवता की पहचान बड़ी मुश्किल  है !

( सौजन्य - डॉक्टर श्री मुकुंद सिंह / शिर्डी ..जो सत्य घटना पर आधारित है ! अगर कोई सुधि पाठक उनसे बात करना चाहता है , तो मै  उनका मोबाईल संख्या दे सकता हूँ !)

Friday, March 16, 2012

....... माँ का आंचल ......



माँ पलंग  से उतर  ..तुरंत अपने अंक में भर ली  ! मेरी कपकपी दूर हो गयी ! माँ के आंचल से बड़ा सुख , इस दुनिया के किसी  तम्बू में नहीं है ! वह घबडा गयी ! वह घबरायी हुयी - अमला  ( मेरी छोटी बहन ) से बोली --"  जा ..बेटी  जरा मिर्ची  या काली मिर्च लाओ !" बहन  ने माँ के आज्ञा का तुरंत  पालन किया और  तुरंत हाजीर  हो गयी और माँ के हथेली पर रख दी ! माँ  मेरे तरफ मुखातिब हो बोली - " लो बेटा इसे खाओ !" मैंने न में सिर हिलाई , आनाकानी की  किन्तु माँ नहीं  मानी ! जबरन मुझे काली मिर्च खानी ही पड़ी ! तब तक छोटी दादी , चाची और कई लोग आँगन के प्रांगन  में हाजिर हो गए थे ! मेरे आंख में आंसू आ गए  ! काली  मिर्च काफी तीता लग रहा था ! 

माँ ने पूछा - " कैसा लग रहा है ? "   ....." बहुत तीता !" मैंने अपने हाथो से आँख के पोरों पर लुढ़क रहे आंसू के बूंदों को पोंछते हुए कहा ! फिर माँ बोली -" कुछ नहीं हुआ ! वहां  क्यों गए थे ? उस तरफ नहीं जाना था !" और माँ मेरे आंसुओ को  अपने साड़ी के आँचल से पोछने लगी ! मेरा दिल भी हल्का हो गया ! मैंने देखा , माँ के आँखों में भी आंसू भर आयें थे ! जो मौन मूक थे ! छोटी दादी  और सभी ने कौतुहल वस्  पूछ बैठे - " आखिर ऐसा  क्या  हो गया जी ? जो इतनी घबडाई हो !" 
"  इसी से पूछ लीजिये  ! " - माँ ने कहा और सबकी नजर मेरे तरफ ! 
" मेरे पैर के नजदीक से बड़ा  सांप गुजर गया था ! और क्या ? " मैंने  भी संक्षेप में ...अनमनी - शरारती   अंदाज में उत्तर दे दिया  ! आखिर बचपना जो था ! उस समय सांप या किसी जहरीले जंतु से बड़ा भय लगता था ! सभी के मुख से बस एक ही आवाज - "  वापरे ..वाप !" गोरखनाथ बहुत नसीब वाले हो ! सभी मेरे मुख को देखते रह गए !

जी हाँ  ! बिलकुल सही और सत्य घटना है , जब एक दफा , एक लम्बा सांप  , मेरे पैर के  बहुत करीब से गुजर गया था !
 घटना  कुछ  इस प्रकार है --
 मई के महीने थे  ! स्कुलो में छुट्टिया हो गयी थी ! अतः  पिताजी सपरिवार कोलकाता से गाँव आ गए थे ! उस समय कुछ संभ्रांत परिवारों को छोड़ , किसी के भी घर में शौचालय नहीं हुआ करते थे ! स्त्री हो या पुरुष ..सभी को शौच के लिए गाँव के बाहर जाने पड़ते थे ! फिर भी किसी की ये हिम्मत नहीं होती थी कि किसी के भी बहु -बेटियों को छेड़े ! 

कारण एक संस्कार और सभी की इज्जत कि भावना जिन्दा थी ! सभी रीति और रिश्ते की भैलू समझते थे ! सभी के दिलो में बड़ो के प्रति इज्जत और छोटो के प्रति प्यार भरा था ! जिसकी आज - कल की आधुनिकता की होड़ वाली दुनिया में आभाव  ही आभाव नजर आता है ! जो समाज में ब्याभिचार को जन्म देने के लिए काफी है !


! दोपहर का समय ! मुझे शौच लगा ! मेरी उम्र करीब तेरह वर्ष की  होगी ! मै अकेले खेतो की तरफ निकल पड़ा ! शहर में रहने की वजह से - खुले मैदान में शौच की आदत नहीं थी ! शर्म की वजह से एक गन्ने के खेत में जा बैठा ! कुछ देर बाद मुझे सरसराहट की आवाज सुनाई दी ! गन्ने के पत्ते हिलने लगे , जो जमीन पर पड़ी हुयी थी ! मुझे सियार या भेडिये का शक हुआ ! बैठे - बैठे ही  सिर आस - पास घुमा कर  देखने लगा ! कुछ भी नजर नहीं आया ! अचानक पैर के करीब नजर गयी ! देखा एक बड़ा ( करीब दो मीटर का होगा ) और मोटा सांप रेंगते हुए मेरे सामने से पीछे की ओर जा रहा है ! मेरे खून सुख गए ! जरा भी हिला नहीं ! उसके चले जाने तक स्थिर बैठा रहा ! कुछ क्षण रुक कर भाग खड़ा हुआ ! शरीर कांप रहे थे ! जैसे - तैसे घर आया और सारी घटना , माँ को कह सुनाई ! 


कहते है - जिसे सांप काट लेता है , उसे मिर्च या काली मिर्च की तीतापन महसूस नहीं होता ! यह कहाँ तक सही है , मै भी नहीं समझता ! शायद इसी से अभिभूत हो माँ ने मुझे काली मिर्च खाने को दी थी ! 

इस घटना को सुन सभी दंग रह गए ! माँ से ज्यादा संतान का दुःख किसी को नहीं महसूस होता ! माँ और उसका भय   वाजिब था ! दूसरी माँ मिल सकती है , पर माँ का दूध नहीं मिल सकता ! माँ के ऊपर  अपने सारे प्यार और सभी सुख ... न्योक्षावर कर देने पर भी  ...हम उसके  दूध की कर्ज....   अदा नहीं कर सकते  !    माँ तो माँ होती है !
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Wednesday, August 24, 2011

प्यारा सर्प ,मेरी पत्नी और बालाजी

                         उस पहाड़ी के ऊपर तिरुमाला मंदिर स्थित है !रेनिगुनता से ली गयी तस्वीर !
अक्षराज जी को कोई संतान न थी ! एक दिन सुक जी ने उन्हें सुझाव दिया की महाराज - आप पुत्र -कमेष्टि यज्ञं  करे तथा खेत में हल चलाये ! अक्षराज जी ने ऐसा ही किया ! खेत में हल चलाते  वक्त ,एक संदूक मिला ! उन्होंने देखा की उस संदूक में एक लड़की है ! अक्षराज ने उस लड़की को पल-पोस  कर बड़ा किये ! लड़की का नाम पद्मावती   रखा  गया !


  अक्ष राज ने पद्मावती की विवाह के लिए योग्य वर की तलास शुरू की ! वृहस्पति और सुक महर्षि से राय -विमर्श किये ! श्रीनिवास को इसके लिए  सुयोग्य करार दिया गया ! विवाह पक्की हो गयी ! श्रीनिवास के पास शादी के  लिए धन का आभाव था ! ब्रह्मा और महेश ने कुबेर से उधार  लेने का प्रस्ताव रखा ! कुबेर उधार देने के लिए   राजी हो गए ! ब्रह्मा और महेश  ने अस्वाथ  बृक्ष के निचे पत्र  पर गवाह  के तौर पर हस्ताक्षर किये ! ब्रह्मा महेश और सभी देवो के उपस्थिति में श्रीनिवास और पद्मावती का विवाह संपन्न हुए ! इस तरह से यह भू - लोक , देव लोक में बदल गया ! शादी के बाद सुक  महर्षी  और लक्ष्मी देवी कोल्हापुर को चले  गएँ  !

        अब बकाया धन - कुबेर को वापस करने की बारी आई ! पद्मावती ने लक्ष्मी जी को बुलाने के लिए कहा ! अतः श्रीनिवास जी कोल्हापुर गए ! वहा लक्ष्मी जी न मिली ! श्रीनिवास जी ने कमल का फूल रख तपस्या और लक्ष्मी जी को ध्यान करनी शुरू की ! लक्ष्मी जी उसी कमल के फूल से  कार्तिक पंचमी को ( कार्तिक  पंचमी को लक्ष्मी जी की विशेष पूजा होती है ) बाहर निकली ! श्रीनिवास ,ब्रह्मा और महेश के सुझाव पर लक्ष्मी जी आनंदानिलय को प्रवेश की ! इस प्रकार लक्ष्मी जी धन और समृधि  की दात्री  बन गई ! इनके मदद से श्रीनिवास जी ने कुबेर के कर्ज को अदा करना शुरू किये ! लक्ष्मी जी जब जाने लगी तो - श्रीनिवास जी ने उनसे आग्रह किया की आप यही रहे ! आप की मदद से मै कलियुग तक कुबेर के कर्ज को वापस कर दूंगा ! 


 इसी आस्था के अनुरूप -आज भी भक्त -गण तिरुपति के बालाजी / श्रीनिवास मंदिर में दान देने से नहीं हिचकिचाते क्यों की श्रीनिवास जी उन्हें सूद के साथ वापस दे देंगे ! जो गरीब है वे पैसे न होने की परिस्थिति में अपने सीर के बाल  , मुंडन हो, दे  देते है ! सभी की यही आस रहती है की जितना ज्यादा हुंडी में डालेंगे - उतना ही ज्यादा बालाजी देंगे ! यह धारणा , आज तक चली आ रही है ! इसीलिए यह मंदिर भारत का एक अजूबा ही है ! जिन खोजा , तिन पाईय ! जैसी सोंच , वैसी मोक्ष !


मै १९९६ से १९९९ दिसम्बर तक पकाला  डिपो   में लोको पायलट ( पैसेंजर ) के रूप में   कार्य  किया था ! पकाला से काट  पाडी , धर्मावरम   और तिरुपति  तक  ट्रेन   लेकर जाना पड़ता था ! पकाला से तिरूपती महज ४२ किलो मीटर है ! अतः जब मर्जी तब बालाजी के दर्शन के लिए सोंचने नहीं पड़ते थे ! सुबह   नहा -धोकर निकलो और शाम तक वापस ! बहुत ही लोकप्रिय जगह था ! बालाजी सर्प के फन और  उसके कुंडली भरी सैया पर विराजमान होते है ! यह संयोग ही है -कि इस क्षेत्र में या चितूर जिले में ( इसी जिले में तिरुपति शहर है ) सर्प प्रायः बहुतायत में देखने को मिलते है ! मैंने अन्य जगहों में ऐसा नहीं देखा,  न ही अब तक पाया   है !


इस  पोस्ट को ज्यादा लम्बा नहीं करना चाहता ! आयें विषय  पर लौटें  ! मै धर्मावरम  से पकाला- ट्रेन संख्या - २४८ ले कर आया था ! अपने निवास  पर आ स्नान वगैरह कर , चाय - पानी के इंतजार में टीवी पर सोनी चैनल  देखने लगा था ! पत्नी जी चाय लेकर आई  और  चाय देते हुए कहने लगी -- " आज  मै मरने से बच गयी !" मेरे मुह से तुरंत निकला - " ऐसा क्या हो गया जी ! "
 इसके जबाब में  पत्नी जी ने क्या कहा ?  आप उनके शब्दों में ही सुने - 





" मै  सोनू  ( यानि बड़े बेटे राम जी का प्यारा नाम , जो उस समय चौथी कक्षा में पढ़ते  थे   )  को  स्कुल में खाना खिलने के बाद  (दोपहर को) यही पर चटाई के ऊपर लेट गयी थी ! कब नींद आ गयी , मालूम नहीं ! सोयी रही , करवट बदलती रही ! कभी - कभी केहुनी और हाथ से कुछ स्पर्स होता था - ठंढा सा महसूस हुआ ! सोयी रही ! कानो में कुछ हलकी सी हवा जैसी आवाज सुनाई दे रही थी , जैसे कोई फुफकार रहा हो ! ध्यान नहीं दी ! सोयी रही ! बार - बार ठंढी और कोमल चीज के स्पर्स से अनभिग्य ! अचानक नींद टूट गयी ! उठ बैठी ! जो देखी - उस दृश्य पर विश्वास नहीं हो रहा  ! तुरंत शरीर  में , काठ समा  गया ! कूद कर पलंग पर चढ़ गयी ! देखा - दो मीटर का लम्बा   सांप ठीक मेरे बगल में मुझसे सट कर सोया हुआ है ! किसी मनुष्य की तरह - सीधे ! उसकी पूंछ  मेरे पैर की तरफ और मुह मेरे सिर के करीब ! तुरंत पुजारी अंकल को खिड़की से मदद के लिए पुकारी  ! ( मेरा निवास रामांजयालू मंदिर से सटा हुआ था ! खिड़की के पीछे पुजारी , अपने परिवार के साथ रहते थे )


                                                      मंदिर के पुजारी और रामजी !
 पुजारी  और  उनके  सभी   लडके  दौड़े आये !  तब - तक वह सर्प रेंगते हुए - टीवी के ऊपर जाकर ,अपने फन को फैला हम सभी को देख रहा था ! सभी हतप्रभ थे ! किसी ने कहा - इसे मारना जरा मुश्किल है !  लड़को ने पूछा  - आका इने एम् चे लेदा कदा ? ( बहन -इसने कुछ किया है क्या ?) मैंने  सारी घटना को जिक्र कर कहा - इसने मुझे कुछ नहीं किया है ! सभी ने उसे बाहर जाने का आग्रह किया ! किसी की हिम्मत साथ नहीं दे रही थी ! पुजारी - जो उम्र में करीब ६०/६५ वर्ष के थे , ने एक बड़ा लट्ठ लेकर उसे मारने  चले ! मैंने उनके हाथ पकड लिए - - अंकल मत मारिये ? नहीं - नहीं  बहुत खतरनाक सांप है - उन्होंने कहा !  पुजारी अंकल नहीं माने ! सर्प के टीवी से नीचे उतरते ही  उन्होंने जोर के वार किये और दो मीटर का सर्प घायल हो गया ! तुरंत सभी ने मिल कर उसे मार डाला ! काफी हुजूम भी जुट गया था ! क्यों की दोपहर के करीब तीन बजे की बात थी ! पुजारी के लड़को ने कहा की इसे इसी तरह रख दिया जाय  ! अंकल आएंगे तो देखेगे ! किन्तु फिल्मी स्टाईल में सभी ने तुरंत जला देने की सिपारिश की ! तो उस सर्प को लकड़ी के चीते पर रख जला दिया गया ! चलिए उसके राख को दिखा  दूँ !"
    पत्नी के मुख से इतना सुन मै अवाक् रह गया ! मेरे रोंगटे खड़े हो गए ! बहुत ही संवेदन  शील और पूछ बैठा - तुम्हे सुंघा -ऊंघा तो  नहीं है ? चलो नया जन्म हो गया ! पत्नी को सर्प  मरण -दो -तीन दिनों तक सालता रहा ! उस प्यारा सर्प ने कुछ नुकसान  नहीं किया था !

१९९९ दिसंबर में  मुझे लोको पायलट ( मेल ) की पदोन्नति हुयी और पोस्टिंग गुंतकल डिपो में मिली ! मै पकाला  से गुंतकल सपरिवार आ गया ! यहाँ आने के बाद पता चला की पत्नी को गर्भ है ! सकुशल -मंगल से २७ अगस्त २००० , दिन -रविवार , समय -सुबह ६ से ७ बजे के बीच ,सिजेरियन आपरेशन के बाद , मेरे बालाजी का आगमन हुआ !  वजन -ढाई किलो के ऊपर ! पत्नी जी को अस्पताल  में एक सप्ताह से ज्यादा रहना पड़ा था ! एक दिन की बात है मेरी मम्मी , (जो देख - रेख के लिए  गाँव  से यहाँ आई हुयी थीं  ,) अस्पताल में बालाजी को गोद में लेकर हलके - हलके डोला रही थी --अचानक बोल बैठी - समझ में नहीं आ रहा है ये ( बालाजी ) क्यों सांप जैसा जीभ बार - बार बाहर  निकल रहा है ! ऐसा तो कोई बच्चे नहीं करते है ! मैंने   भी कभी ध्यान नहीं दिया था ! देखा- बात सही थी ! 

 जी हाँ , बिलकुल ठीक  ! बालाजी जन्म के बाद से दो - तीन माह तक अपने जीभ को सांप जैसा बाहर लूप-लूप कर निकालते रहते थे ! बाद में पत्नी ने माँ को पकाला वाली घटना बताई ! माँ ने कहा - " लगता है , वही जन्म लिया है क्या ? " अचानक सभी के सोंच में परिवर्तन ....कुछ बिचित्र सा लगा ! अंततः हमने   भी विचार   किया की इस  पुत्र का नाम - साँपों  की शैया पर आसीन ..तिरुपति बालाजी के नाम पर बालाजी ही रखा जाय     ! कितना संयोग है - बालाजी जिस अस्पताल में जन्म लिए, उस अस्पताल का नाम " पद्मावती नर्सिंग होम " है !


     कहानी यही ख़त्म नहीं होती ! सज्जनों हमने बालाजी में ऐसी बहुत सी क्रिया - कलाप देखी है जो माँ के कथनों को  उपयुक्त  करार देती है ! ( इस सन्दर्भ में  और बहुत कुछ , हमने देखा  था और अनुभव किया  है , यहाँ मै उन घटनाओ को नहीं रखना चाहता - इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ! ) अब भविष्य में इस तरह के संतान , किस पथ पर अग्रसर होंगे - नहीं कह सकता !

                                          नाग देव को नमन
 ( अगली पोस्ट -- जादुई  छड़ी !)


Monday, August 8, 2011

अपनी मिट्टी और अपनत्व

सुबह सभी को प्यारी होती है ! गर्मी में शीतल हवाए ,वरसात में बूंदा - बांदी, जाड़े में शबनम की बुँदे तथा बसंत में कोयल की कू-कू  सुबह ही तो देखने को मिलती है !.सुबह -सुबह ही पूजा -अराधना होती है ! मंदिरों में घंटिया बजने लगती है ! सुबह सभी शांत और कोमलता से पूर्ण होते है ! इसी समय घर के सदस्यों में प्यार भी देखने को मिलती है ! सूर्य कड़क होकर भी , इस समय उसकी रोशनी ज्यादा गर्म  नहीं होती ! झगड़े भी सुबह नहीं होते ! अतः सुबह की आगमन हमेशा ही खुशनुमा और लुभावन होती  है ! सुबह की हवाए ..प्रेम और जीवन बिखेरती है !


फूल भी सुबह ही खिलते है ! कहते है - सुबह को जन्म लेने वाली संताने अति तेजस्वी , लायक  और चतुर  होते है ! सुबह पढ़ी हुई विषय लम्बे समय तक याद रहती है ! हमें भी इस वक्त सभी अच्छे कार्यो को  लगन से करने की नीति निर्धारण करनी  चाहिए ! इसी तरह जीवन में भी  कई ऐसे क्षण आते है - जब हमें स्वयं  ही , सही वक्त को परखने पड़ते है ! हमारे देश यानी भारत वर्ष में  महंगाई की बिगुल भी आधी रात को पेट्रोल की दर बढ़ा कर की जाती है ! इससे यह साबित होता है की दिन की पहली पहर हमेशा ही किसी शुभ कार्य के लिए उपयुक्त समझी गयी है !


जब मै कोलकाता में था !  उस दिन कड़ाके की सर्दी थी ! घर के सामने सड़क के ऊपर खड़े होकर , हल्की. और कोमल - कोमल  सूर्य की किरणों की रसा - स्वादन कर रहा था ! आस - पास ..पास पड़ोस  के लोग भी थे !  एक योगी घर के पास आये ! उनके मुख से राजा भरथरी के गीत और हाथ सारंगी के ऊपर ! मधुर स्वर हवा में गूंज रहे थे !  कर्णप्रिय ! आकर प्रत्यक्ष खड़े हो गए !  एक क्षण के लिए आवाज और सारंगी पर विराम लग गई  !  वे नीचे झुके और हाथ जमीन पर  कुछ उठाने के लिए बढ़ गई ! देखा ..उन्होंने कुछ मिटटी को अपने हाथो से उठाये ! उनके हाथ मेरे तरफ बढे ! मैंने देखा - उनके द्वारा मिटटी  रगड़ने पर - मिटटी के रंग बदल गए और वह सिंदूर जैसा हो गया ! उस सिंदूर से उस योगी ने मेरे ललाट पर तिलक लगाए ! - " जाओ वेटा घर से कुछ भिक्षा लाओ ! यह योगी दरवाजे पर खडा है ! "


मै घर के अन्दर गया और दो पैसे के सिक्के लाकर ,उन्हें दे दिया ! सभी ने देखा ! कोई कुतूहल नहीं ! साधारण सी घटना ! उस योगी ने पैसे लेते हुए -आशीर्वाद स्वरुप कहा -" जाओ वेटा ,तुम्हारे भाग्य में बहुत तेज है ! दक्षिण  और विदेश सफ़र के योग है ! " और आगे चले गए ! फिर वही भरथरी के गीत और मधुर सारंगी के धुन वातावरण में गूंज उठे ! किसी को इसकी परवाह नहीं ! बात आई और गई सी रह गई ! 


माने या न माने - जब उस योगी के कथनों को कई बार याद किया तो पाया की  उनके वे शब्द अक्षरसः  सत्य लग रहे है ! आज मै दक्षिण भारत में ही हूँ ! जिसके बारे में मैंने कभी सोचा भी न था ! रही दूसरी बात - विदेश सफ़र की तो वह भी सत्य ही हुई ! पांच -छह माह पूर्व ही मुझे दीपुटेशन पर विदेश जाने के आफर मिले , जिसे मै यह कह कर ठुकरा दिया की मै अपने देश में ही खुश हूँ ! मेरे कुछ साथियों को वह आफर स्वीकार थे और वे जुलाई में विदेश कार्य पर चले गए !


 इस घटना के बाद मैंने अपने माता - पिता और पड़ोसियों  से उस योगी के बारे में जानकारी ली ! सभी ने कहा - वह योगी फिर कभी नहीं दिखे ! उस सुबह की तिलक और वह  स्वर्णिम चक्र आज - तक निरंतर गतिमान  है ! उस स्वप्न और शब्दों को सुनने के लिए कान  ब्याकुल और नेत्र राह देख रहे  है ! ईश्वरीय लीला और इस आभा के खेल सदैव निराले - कोई इसे न समझ सके , तो क्या कहने ? जैसी सोंच वैसी मोक्ष !