" जी हुजुर ..हमने ही इनकी घी को छिनी थी !" घिघियाते हुए एक ने स्वीकार की तथा बाकि सभी ने हामी में सिर हिलाई ! दरोगा ने अपने तेवर बदले ! वह कार्यवाही नहीं करना चाहते थे ! वे जानते थे , ये चारो गाँव के दबंग के बेटे है ! बुरे बापों की दबंगई , इन्हें नालायक बना रखी है ! दरोगा की अंतरात्मा कार्यवाही करने से डर रही थी , फिर भी कर्तव्य का पालन जरुरी था ! न चाह कर भी कुछ तो करना ही था अन्यथा पद की गरिमा गिरेगी और इनकी हिम्मत बढ़ेगी ! उसने मिल -मिलाप का रास्ता सोंचा और कहा --" तुम लोगो का अपराध सिद्ध हो चूका है ! एक काम करो ? तुम लोग ,इनके घी की कीमत चूका दो , मै तुम लोगो को छोड़ दूंगा !"
यह कह कर वह सेठ की तरफ मुखातिब हुआ और पूछा -" कहो सेठ घी कितने का था ? "हुजुर ..बस दो सौ रुपये का ...बेचने के बाद ..करीब तीन सौ कमा लेता ! - सेठ ने मुस्कुराते हुए कहा ! " चलो तुम लोग जल्दी रुपये अदा करो अन्यथा रिपोर्ट दर्ज करनी पड़ेगी !" - दरोगा उन चारो को संबोधित कर कहा ! फिर क्या था , उन चार नालायको ने दरोगा के पैर पकड़ लिए !
"हुजुर हमें माफ करे ! हम इतने पैसे नहीं दे सकते ! उन चार घी के डब्बो में घी नहीं पानी था !" वे गिड़गिड़ाने लगे ! " हुजुर ये झूठ बोल रहे है !' -सेठ झल्लाते हुए बोला ! " मुझे मालूम है " -दरोगा ने हामी भरी ! दरोगा जनता था की सुकई सेठ अपने इलाके के नामी - गिरामी सेठ है और वर्षो से इनके बाप - दादे तेल और घी का व्यापार करते आ रहे है ! पानी कभी हो ही नहीं सकता !
उनकी अनुनय विनय रुकने वाली नहीं थी ! वे अंत में सेठ के पैर पकड़ रोने लगे ! सेठ जी हमें माफ करें ऐसी गलती हम कभी नहीं करेंगे! आप ही हमें बचा सकते है ! दरोगा को समझ में नहीं आ रहा था ये क्या हो रहा है ! उनके आंसू और दयनीय दृश्य को देख सेठ का भी दिल पिघल गया ! उसके दिल में भी एक इन्सान जिन्दा था ! उसने दरोगा को कहा -" हुजुर इन्हें माफ कर दे बशर्ते ये ऐसी घटिया हरकत फिर कभी नहीं करेंगे !"
फिर क्या था वे तुरंत कह बैठे - " जी हुजुर ... हम लोग वादा करते है कभी ऐसी गलती नहीं करेंगे !" दरोगा को कुछ समझ में नहीं आया ! पाई - पाई को मरने वाला कंजूस सेठ दो सौ रुपये को भूल ..इन्हें कैसे क्षमा करने के लिए राजी हो गया ! " ठीक है , तुम लोगो को छोड़ देता हूँ आईंदा कोई शिकायत आई तो जेल में बंद कर दूंगा !" वे चारो दरोगा और सुकई सेठ को प्रणाम कर बाहर भाग गए !
" सेठ जी ..मुझे मामला कुछ समझ में नहीं आया ? आप इतना नुकसान कैसे सह लिए ! "- दरोगा ने सेठ से पूछा ! सेठ ने कहना शुरू किया -
" जी हुजुर ..बात परसों की है ! जब मै चार घी के डब्बो को घोड़े पर लाद कर व्यापार के लिए जा रहा था ! ये चारो रास्ते में मिल गए और खाने-पीने के लिए पैसे मांगने लगे ! मैंने साफ इंकार कर दिया तो इन्होने मुझे धमकी देते हुए कहा की ये मुझे कल से इस रास्ते व्यापार के लिए नहीं जाने देंगे ! अगर भूले भटके चला भी गया तो सारे के सारे घी छीन लेंगे ! मैंने भी इनकी शर्त मान ली और आप को इसके बारे में बता दिया था !"
सेठ कुछ समय के लिए रुका और गंभीर साँस लेते हुए फिर कहना शुरू किया -" मै इन चारो को सबक सिखाना चाहता था ! मैंने दुसरे दिन चार घी के डब्बे घोड़े पर लादे ....किन्तु उन डब्बो में घी न रख... पानी भर दिए थे !" दरोगा सेठ के अकलमंदी पर आश्चर्य चकित हो गया !
( करीब ६० वर्ष पहले की घटना जब दो या तीन सौ की कीमत काफी थी !वह भी मेरे पडोसी सेठ की ! सत्य घटना पर आधारित )
बहुत,बेहतरीन अच्छी प्रस्तुति,सुंदर सटीक सीख देती कहानी के लिए बधाई,.....
ReplyDeleteMY NEW POST...आज के नेता...
आभार धीरेन्द्र जी
Deleteफालोवर बन गया हूँ आपभी बने मुझे खुशी होगी,.....बहुत,बेहतरीन
ReplyDeleteMY NEW POST...आज के नेता...
धीरेन्द्र जी बहुत दिनों से मै आप का फोल्लोवर हूँ ! सादर अभिनन्दन
Deleteजैसे तो तैसा .... सबक तो मिला
ReplyDeleteआभार मोनिका जी
Deleteसुमन जी मै आप के प्रोफाईल में गया , पर आप का निजी ब्लॉग न जान पाया ! सभी ब्लॉग को पढ़ने का समयाभाव भी एक कारण ! आभार
ReplyDeleteजैसा देस वैसा भेस - सेठ जी ने सही सबक सिखाया!
ReplyDeleteबिलकुल सठिक !
Deleteइस कहानी के माध्यम से एक आदर्श सबक दिया गया है।
ReplyDeleteरणधीर सिंह 'सुमन' जी बाराबंकी CPI के सहायक जिला मंत्री हैं और इनके सभी ब्लाग्स सामूहिक हैं। आप 'लोकसंघर्ष' शायद देखते भी हैं।
गुरु जी प्रणाम . लोकसंघर्ष के बारे में पूरी जानकारी देने के लिए बहुत - बहुत आभार !
ReplyDeleteप्रस्तुति एवं प्रयास अच्छा लगा । मेरे पोस्ट "भगवती चरण वर्मा" पर आपका स्वागत है । धन्यवाद ।
ReplyDeleteबहुत आभार साहब , जरुर आऊंगा !
Deleteबहुत अच्छे बालाजी .आज के सन्दर्भ की सटीक कथा
ReplyDeleteभाई साहब ..बालाजी के मंदिर में घी का महत्त्व ही ज्यादा है ! घी के लड्डू दुनिया में मशहूर है ! हा..हा..हा.. आभार
Deleteघी से अकल बनती है और अकलमन्द घी बना लेता है...रोचक कहानी...
ReplyDeleteसर जी ..आप की सतरंगी टिप्पणिया और आप की तस्वीर ..बहुत मेल खाती है !हा..हा..हा..बहुत - बहुत आभार सर जी
Deleteइस संदर्भ में बुद्धि और घी पर्यायवाची हैं. एकदम मलाईदार कहानी. हम खा लिए.
ReplyDeleteसर जी ..आप के विचार और दिल की संतुष्टि ....मुझे प्रेरणा देती है ! बहुत - बहुत आभार
Deletebadhiya kahaani
ReplyDeleteआभार अवंती जी
Deleteरोचक और सार्थक कहानी ... घी का महत्त्व है ...:)
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार नासवा जी !
ReplyDeleteआज के सन्दर्भ की सटीक कथा| होली की शुभकामनाएँ।
ReplyDeleteआप को भी होली की बहुत - बहुत शुभ कामनाएं सर जी ! आभार
Deleteजीवन में इस तरह के सबक ही समाज को ठीक रास्ते पर रखते हैं....बशर्ते ये होता रहे..
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा आपने सर ! आप को भी होली की बहुत - बहुत शुभ कामनाएं ! आभार
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