हमें जन्म से मृत्यु तक कभी भी शांति नहीं मिलती ! अशांति का मुख्य जड़ स्वार्थ और बिवसता है ! स्वार्थ बस हाथ हिलाते है और विवस हो पैर स्वतः रुक जाते है ! मनुष्य इन्ही उधेड़ बुन में फँस कर , जो भी कृत्य कर बैठता है वही उसके कर्मो के फलदाता बन जाते है ! अर्थार्थ जैसी करनी , वैसी भरनी ! अतः मनुष्य का जीवन कर्म प्रधान है !
हमारे शरीर में मन का बहुत बड़ा स्थान / देन है ! मन की बातों को कोई भी न समझ सका ! इसकी गहराई समुद्र से भी गहरी होती है ! हम मन के नाव पर बैठ सारी दुनिया की भ्रमण कर आते है ! तो क्या हमें मन की चंचलता स्वप्न में भी जगाती है ? हम स्वप्न क्यों देखते है ? आखिर वह कौन सी दुनिया है , जिसमे सोने के बाद तैरने लगते है ? सोये हुए बिस्तर पर बकना , चिल्लाना , रो पड़ना , डर जाना वगैरह - वगैरह क्रियाये क्यों होती है ? अगर किसी को जानकारी हो तो मेरे जिज्ञासा की पूर्ति करें !
अब आयें एक घटना की जिक्र करें ! उस समय मै सहायक लोको पायलट के पद पर कार्य रत था ! मॉल गाड़ी में कार्य करता था ! मै उस दिन नंदलूर आराम गृह में ठहरा हुआ था ! वापसी के लिए ट्रेन काफी देर से आने वाली थी ! अतः कुछ लोको पायलट और सहायक लोको पायलट मिल कर सिनेमा देखने चले गएँ ! पिक्चर तेलुगु भाषा में थी ! जिसका अनुबाद हिंदी में भी हो गया है ! शायद - " जुदाई " जिसमे अनिल कपूर , श्रीदेवी और एक हिरोईन है , नाम याद नहीं आ रहे है ! कथानक यह है की - पत्नी अपनी शानशौकत के लिए पति को भी बेच देने के लिए राजी हो जाती है ! अंत में तरह - तरह के परेशानियों से गुजरती है ! देखने वाले चौक जाते है - यह भी एक अजीब सी लेखक के दिमाग की पैदायिस थी ! फ़िल्म काफी हिट हुई थी ! हिंदी बाद में बनी ! पर तेलगू फ़िल्म की कथानक और सेट अच्छी लगती है !
अब आयें विषय पर लौटे --
फ़िल्म देख बारह बजे रात के करीब लौटे ! आते ही हम सभी रेस्ट रूम में अपने बिस्तर पर सो गए ! दिन भर की थकावट और देर तक फ़िल्म देखने की वजह से नींद तुरंत आ गयी !
नींद के बाद की वाक्या -
ओबलेसू जो उस समय रेस्ट रूम का वाच मैन था , अब टी.टी हो गया है , बरांडे में बैठा पेपर पढ़ रहा था ! वह मुझे जोर से झकझोरने लगा ! मेरी नींद टूट गयी ! उसने पूछा - " क्या हो गया जी , इतनी जोर से चिल्ला रहे हो ?"
मै सकपका गया ! कुछ समझ में नहीं आया ! बिस्तर पर पड़े हुए ही बोला -" न जाने कौन मेरे सीने पर बैठ , गले को जोर से दबा रहा था , ताकि मेरी मौत हो जाए ! उसके सिर और दाढ़ी के बाल लम्बे - लम्बे थे ! भयानक सा दिख रहा था !"" फिर रुक कर बोला - " मदद हेतु स्वप्न में चिल्ला रहा था ! शायद यही शोर तुम्हे सुनाई दी हो !" इतना कह उठ बैठा ! शरीर में डर समां गया ! कुछ और सह-कर्मी उठ बैठे ! सभी ने कहना शुरू की यह बिस्तर ठीक नहीं है ! जो भी सोता है , उसके साथ यही होता है ! रात्रि- लैम्प क्यों बंद कर दिए हो ? इसे जला कर सो जाओ !
जी हाँ
क्या इस आधुनिक ज़माने के लोग इसे विश्वास करेंगे ? अगर नहीं - तो ऐसी घटनाये आखिर क्यों होती है और ये क्या है ? अगर किसी को कोई लिंक की सूचना / जानकारी हो तो मुझे/मेरी शंका का समाधान करें ?( नोट -किसी अंधविश्वास से प्रेरित कथा सर्वथा न समझे , यह ब्लॉग स्वयं में सत्य पर आधारित है !)
satya ghatna hai!!! ....mujhe bhi swapn to bahut aate hain parantu yesa kabhi nahi dekha haan kuch swapn satya jaroor hue koi manovegyaanik athva mastishk ka doctor hi kuch bata sakta hai varna main bhoot pret me vishvaas nahi karti.
ReplyDeleteजी बढ़िया ।
ReplyDeleteभयानक
भाव ।।
गुप्ता जी डरना मना है ! हा..हा..हा..
DeleteOh... Kya Kaha jaye...?
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति
ReplyDeleteMY RESENT POST...काव्यान्जलि... तुम्हारा चेहरा.
सामान्य नहीं है, पर न जाने किसका संकेत है।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर और प्रेरक और विचारणीय आलेख लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा प्रस्तुती
बहुत दिनों बाद आपके ब्लॉग पर आना हुआ जी ..सॉरी . आप भी कभी नहीं आए ,,क्या बात थी ?? ऐसी धटनाए अक्सर होती रहती हैं इसलिए इन चीजो पर विश्वास भी है ....
ReplyDeleteक्षमा प्रार्थी हूँ धनोय जी ! प्रयास जरी रखूँगा !ड्यूटी और समय ही ऐसा है !
Deleteभाई साहब जहां तक स्वप्नों का सवाल है वह हमारे ही अवचेतन का विस्फोट हैं .आपके साथ अकसर ऐसी अनहोनी होनी का घटना घटते रहना मुझे उकसाता है आप से दो टूक कहूं परामर्श करें किसी क्लिनिकल साइकोलोजिस्ट से आज कल कोंसेलिंग आम सुलभ है .मेरे कहे को नेता न लें .कोंसेलिंग से बल मिलता है विवेक मिलता है खुद को बूझने का यकीन मानिए मैं भी कई सन्दर्भों से आजिज़ आकर सलाह मशविरा ले चुका हूँ कोंसेलर से .
ReplyDeleteभाई साहब -आप के सुझाव शिरोधार्य है ! प्रयास करूँगा !
Deleteआपने जो कथा बताई है उस कथा के सत्य होने में संदेह नहीं है. लेकिन मनोविज्ञान की दृष्टि से मनुष्य को ऐसे अनुभव या तो भय के कारण होते हैं या किसी के प्रति सघन घृणा (विशेषकर धार्मिक घृणा) के कारण होते हैं. स्नायविक कमज़ोरी से भी ऐसा संभव है.
ReplyDeleteन किसी काउंसिलर पर जाएँ न ही मनोवैज्ञानिक पर।
ReplyDeleteआप KALI PHOS 6X शक्ति की बायोकेमिक दवा किसी होम्योपेथी स्टोर से ले कर अपने साथ रखें और इसका 3 tds सेवन करें लाभ होगा।
गुरूजी यह घटना लगभग बीस वर्ष पहले की है !सुझाव शिरोधार्य है और मै अकेले सफ़र नहीं हुआ , मेरे अन्य साथी भी इसके प्रभाव को उस बिस्तर पर अनुभव कर चुके थे !
Deletepath ko padhkar maja aaya......................waah kya manse kahani banai he................
ReplyDeleteapka lekh pada, bilkul apki baat se sehmat hoon.aap mane ya na mane abhi bhi apka sir bhari rehta hoga .agar apko aisa lagta hai to mujhe avashya bataye shayad me apki kuch help kar sakunga.
ReplyDeletepunitksp@gmail.com
Sir ye to hota rahata hai jeshe koi manusya he uska do bhale or do bure chahane wale bi hote he mera matlab he ki bhagwan he to uske vipreet bi buri taagat he
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