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Friday, July 26, 2013

लघु कथा - धीमे चलिए , पुल कमजोर है

कौड़ी के मोल जमीन खरीदकर हीरे के दाम पर  ठेकेदारी बेंची जा रही थी । बड़े ओहदे वाले लाल -लाल हो रहे   थे . नीतीश को अभियंता हुए कुछ ही दिन हुए थे . एक समय था , जब उन्हें बाजार पैदल चलकर ही जाना पड़ता था . आज उसके पास सब कुछ है . दो कारे  , कई दुपहिये और निजी पसंद के बंगले में  कई नौकर चाकर . आस पडोश वाले  शान देख हैरान थे . 


कहते है - जब उसकी नौकरी लगी ,  सभी ने उसकी  उपरवार कमाई के बारे में जानने की कोशिश की थी . नीतीश बहुत इमानदार प्रवृति का था . यह कह कर बात टाल देता की सरकारी तनख्वाह काफी है . साथी कहते कि सरकारी तनख्वाह तो ईद का चाँद है यार . वह झेप जाता था . 


परिस्थितिया बदलती चली गयी . ईमानदारी बेईमानी में बदल गयी . नीतीश  इतना बदल गया कि उसे सरकारी तनख्वाह कम पड़ने लगे . अंग्रेजो द्वारा बनायीं हुयी पुल को तोड़ दिया गया , जिसके ऊपर अभी भी ७५ किलो मीटर की गति से बसे चलती थी . नए पुल का निर्माण किया गया . करोड़ो रुपये लगाये गए . धूमधाम से उदघाटन हुए थे और पुल के दोनों किनारों पर ,एक वर्ष के भीतर ही सूचना बोर्ड लग  गया था . जिस पर लिखा था - 

" धीमे चलिए , पुल कमजोर है "


Monday, September 24, 2012

जिंदगी के सफ़र

यात्रा में  मानवी सहकारिता , संयोग , मिलन और अपनापन का एक अनूठा समिश्रण चार चाँद लगा देता है । कभी - कभी यह दुखदायी भी बन जाता है । समयाभाव की वजह मुझे ब्लॉग से दुरी बनाने के लिए मजबूर किये बैठी है । संक्षिप्त में पोस्ट लिखना मेरी मजबूरी बनते जा रही है । एक समाचार मुझे उद्वेलित कर गयी ।

परसों की बात है । जनरल डिब्बे में दो महिलाये बातों - बातों में  ..इस कदर ---- सिट के लिए झगड़ बैठी की एक ने दुसरे की गले को ऐसे दबा दिया , की उसके प्राण पखेरू उड़ गए । माँ के शारीर को पकड़ छोटे बच्चे का बिलखना ....सभी को बिचलित कर दिया । मामला गंभीर था . गाडी रुक गयी  । पुलिस  आई उस महिला को पकड़ कर ले गयी । पत्रकारों  का झुण्ड उमड़ पड़ा । कल समाचार जरूर छपी होगी ।

यात्रा में सावधानी , बरतनी जरूरी है। 

Monday, August 20, 2012

छिपकली - डूबते को तिनके का सहारा



थोड़ी सी भूल ....लाखो की बर्बादी  । संभव है सभी सजग ही रहते हों । कोई भी गलती नहीं करना चाहता , समय वलवान है , अन्यास ही हो जाता है । कुछ दिन पहले एक टी .वि.चैनल पर देखा था । बिशाक्त भोजन करने के बाद कई बच्चो को अस्पताल में भरती करवाया गया था । प्रायः नित - प्रति दिन ऐसे खबर आते ही रहते है ।  

ऐसी ही एक वाकया यहाँ प्रस्तुत है । शायद कुछ लोग विश्वास करें या न करें - अपनी - अपनी मर्जी । मै  तो बस उन्ही दृश्यों को पोस्ट करता हूँ , जो मेरे आस - पास गुजर चुकी है , ये धार्मिक हो या अधार्मिक । उन्ही को प्रस्तुत करता हूँ , जिससे समाज की भलाई हो या कुछ सिखने को मिले । अधर्म का बोल बाला हमेशा ही रहा है । राम का युग हो या कृष्ण का -  कंस या रावण उतपन्न हो ही गएँ । आज की विसात ही क्या है । जहाँ देखो वहीँ अधर्मियों के हथकंडे दिख जाएँगे । आखिर अधर्म है क्या ? धर्म में विश्वास नहीं करना या गड्ढे खोदना । जो भी हो विषय नहीं बदलना चाहता ।


उस दिन की बात है , जब हम सभी लोको चालक अपने रेस्ट रूम में एक साथ मिलकर खाना पकाते थे और साथ में बैठ कर खाते भी थे । धर्मावरम रेस्ट रूम । प्रायः सहायक लोको पायलट एक साथ मिल कर खाने -पिने का सामान खरीद कर ले आते थे और रेस्ट रूम के कूक को पकाने के लिए दे देते थे । पन्द्रह - बीस स्टाफ के लिए दाल  लाया गया और पकाने के लिए दे दिया गया था । दाल में भाजी वगैरह भी डाला गया था । दिन के साढ़े बारह बजते होंगे । मैंने एक सहायक से पूछा  - खाना तैयार है या नहीं ? अभी नहीं सर । मथने वाला मसालची बाहर  गया है । दाल मथना बाकी है ।

अन्यास ही मै किचन में गया और कलछुल ( बड़ा सा चम्मच ) से दाल को चला कर  देखा , पतला है या गाढ़ा । मै सन्न रह गया - देखा एक बड़ी सी छिपकली दाल के पतीली में मरी हुयी है । मैंने सभी को आवाज दी , सभी देख घबडा गएँ ।  सभी  के मुंह में बुदबुदाहट ....काश ऐसा नहीं होता तो मसालची छिपकली के साथ ही दाल को मथ  देता  था और आज हम सभी लोको पायलट  विषाक्त फ़ूड के शिकार हो जाते थे । मामले को दबा दिया गया । कोई शिकायत नहीं की गयी ..ड्यूटी वाले कूक के उपर ।

फिर क्या था , उस दाल को नाले में डाल  दिया गया और नए सिरे से तैयारी  की गयी । आज कईयों की जान बच गयी । कर - भला हो भला ।


Monday, March 26, 2012

शैतान की पीड़ा !


हमें जन्म से मृत्यु तक कभी भी शांति नहीं मिलती  ! अशांति का मुख्य जड़ स्वार्थ और बिवसता है ! स्वार्थ बस  हाथ हिलाते है और विवस हो पैर स्वतः  रुक  जाते है ! मनुष्य  इन्ही उधेड़ बुन में फँस कर , जो भी कृत्य कर बैठता है वही उसके कर्मो के फलदाता बन जाते है ! अर्थार्थ जैसी करनी , वैसी भरनी ! अतः मनुष्य का जीवन कर्म प्रधान है !
हमारे शरीर में मन का बहुत बड़ा स्थान / देन है ! मन की बातों को कोई भी न समझ सका ! इसकी गहराई समुद्र से भी गहरी होती है ! हम मन के नाव  पर बैठ सारी दुनिया की भ्रमण कर आते है ! तो क्या  हमें मन की चंचलता  स्वप्न में भी जगाती है ? हम स्वप्न क्यों देखते है  ? आखिर वह कौन सी दुनिया है , जिसमे सोने के बाद तैरने लगते है ? सोये हुए बिस्तर पर बकना , चिल्लाना , रो पड़ना , डर जाना वगैरह - वगैरह क्रियाये क्यों होती है ? अगर किसी को जानकारी हो तो मेरे जिज्ञासा की पूर्ति करें !

अब आयें एक घटना की जिक्र करें ! उस समय मै सहायक लोको पायलट के पद पर कार्य रत था ! मॉल गाड़ी में कार्य करता था !  मै उस दिन नंदलूर आराम गृह में ठहरा हुआ था ! वापसी के लिए ट्रेन काफी देर से आने वाली थी ! अतः कुछ लोको पायलट और सहायक लोको पायलट मिल कर सिनेमा देखने चले गएँ ! पिक्चर तेलुगु भाषा में थी  ! जिसका अनुबाद हिंदी में भी हो गया है ! शायद - " जुदाई " जिसमे अनिल कपूर , श्रीदेवी और एक हिरोईन है , नाम याद नहीं आ रहे है ! कथानक यह है की - पत्नी अपनी शानशौकत के लिए पति को भी बेच देने के लिए राजी हो जाती है ! अंत में तरह - तरह के परेशानियों से गुजरती है ! देखने वाले चौक जाते है - यह भी एक अजीब  सी लेखक के दिमाग की पैदायिस थी ! फ़िल्म काफी हिट हुई थी ! हिंदी बाद में बनी ! पर तेलगू फ़िल्म की कथानक और सेट अच्छी लगती है !

अब आयें विषय पर लौटे --
फ़िल्म देख बारह बजे रात के करीब लौटे ! आते ही हम सभी रेस्ट रूम में अपने बिस्तर पर सो  गए ! दिन भर की थकावट और देर तक फ़िल्म देखने की वजह से  नींद  तुरंत आ गयी ! 

 नींद के बाद की  वाक्या - 
ओबलेसू जो उस समय रेस्ट रूम का वाच मैन था , अब टी.टी हो गया है , बरांडे  में बैठा पेपर पढ़ रहा था ! वह   मुझे जोर से झकझोरने लगा ! मेरी नींद टूट गयी ! उसने पूछा - "  क्या हो गया जी , इतनी जोर से चिल्ला रहे हो  ?"

मै सकपका गया ! कुछ समझ में नहीं आया ! बिस्तर पर पड़े हुए ही बोला -" न जाने कौन मेरे  सीने पर बैठ , गले को जोर से दबा रहा था , ताकि मेरी  मौत हो जाए ! उसके सिर  और दाढ़ी के बाल लम्बे - लम्बे थे ! भयानक सा दिख रहा था !"" फिर रुक कर बोला - " मदद हेतु स्वप्न में  चिल्ला रहा था ! शायद यही शोर तुम्हे सुनाई दी हो !" इतना कह  उठ बैठा ! शरीर में डर समां गया ! कुछ और सह-कर्मी उठ बैठे ! सभी ने कहना शुरू की यह बिस्तर ठीक नहीं है ! जो भी सोता है , उसके साथ यही होता है ! रात्रि- लैम्प क्यों बंद कर दिए हो ? इसे जला कर सो जाओ !

जी हाँ 
क्या इस आधुनिक ज़माने के लोग इसे विश्वास करेंगे ? अगर नहीं - तो ऐसी घटनाये आखिर क्यों होती है और ये  क्या है ? अगर किसी को कोई लिंक की  सूचना / जानकारी हो तो मुझे/मेरी शंका का समाधान करें ?(  नोट -किसी अंधविश्वास से प्रेरित कथा सर्वथा न समझे , यह ब्लॉग स्वयं में  सत्य पर आधारित है !)