दिल के अरमां ..आंसुओ में बह गएँ ! मनुष्य दुनिया में सबसे सर्वोत्तम प्राणी के श्रेणी में गिना जाता है !विचार , रहन - सहन ,पराक्रम और बुद्धि में अंतर स्वाभाविक है ! यही मनुष्य को अलग - अलग चोटियों पर ले जाते है ! कुछ गिर जाते है , कुछ सम्हल जाते है तो कुछ ऐसी स्थान प्राप्त कर लेते है , जहाँ सबके पहुँचने की आस कम ही होती है !
आखिर ये सब कैसे और क्यूँ होता है ?
दुनिया में आने और जाने के रास्ते तो एक जैसा ही है ! बीच में इतने अंतर क्यूँ ? क्या ये सब हमारे मुट्ठी में बंद तकदीर का कमाल है या कोई आप रूपी शक्ति कंट्रोल करती है ! जो भी हो मै तो तक़दीर और अंगुलियों के सतरंगी ध्वनि पर ही विश्वास करता हूँ ! हम अपने अंगुलियों के कर्म रूपी शक्ति से तक़दीर रूपी घरौंदे का निर्माण करते है ! सभी के तकदीर सुनिश्चित है ! इसमे फेर बदल हमारे कर्मो पर निर्भर है ! अगर ऐसा नहीं होता तो आकाश में फेंकी हुई पत्थर इधर - उधर न गिर , हमारे निशान पर ही गिरते !
कुछ मेरे अपने अनुभव है , जो मै यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ ! मैंने अपने २६ वर्षो के सर्विस जीवन में जो देखा , वह कुछ सोंचने पर बाध्य कर देते है ! मेरे श्रेणी ( लोको चालक ) में मैंने देखा है की बहुत से लोको चालक कई प्रकार के कठिनाईयों से गुजरे है ! जैसे -
(1) दोस्त की बहाली सिकंदराबाद हुई, वह स्वतः आवेदन कर सोलापुर गया और शादी के एक दिन पूर्व स्कूटर दुर्घटना में चल बसा ! (2) दोस्त की बहाली गुंतकल हुयी और स्वतः आवेदन पर हुबली गया और हार्ट अटैक का शिकार हो चल बसा ! (3) एक घटना दो कर्मचारियों के अदलाबदली पर हुयी , एक रिलीफ लेकर दुसरे कार्यालय में ज्वाइन किया , दुसरे ने आत्म हत्या कर ली !(4) एक लोको पायलट की बहाली विजयवाडा में हुई और स्वतः आवेदन पर चेन्नई गया ..ड्यूटी के वक्त दो ट्रेन की टक्कर हुई और वह सजा भुगत रहा है !(5) एक लोको पायलट स्वतः आवेदन पर रेनिगुनता गया और माल गाडी के दुर्घटना में उसके दोनों पैर कट गए ! (6) एक लोको पायलट रायचूर से स्वतः आवेदन पर पकाला होते हुए रेनिगुनता गया , कार्य करते वक्त किसी ने लोको के ऊपर पत्थर मारी और उसके आँख ख़राब ! आज वह लोको पायलट के जॉब से मुक्त है !(7) एक लोको पायलट काटपादी गया और ट्रेन चलते वक्त उसे दुर्घटना के शिकार होना पड़ा !
अभी बहुत से उदहारण मेरे पास है ! जो ये सिद्ध करते है कि जो कार्य स्वतः होते है , हमारे तकदीर है , उन्हें छेड़ना हमें कमजोर कर देती है ! दाने - दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम ! यही वजह है कि राजस्थान का निवासी बंगाल , बंगाल का निवासी तमिलनाडू या अन्यत्र बहाल हो जाते है ! दाने न छोड़ें !
( इस उदहारण में नाम भी लिखा जा सकता है , पर लेख कुरूप हो जायेगा अतः नाम प्रस्तुत नहीं किया हूँ !.ये पुरे मेरे विचार और अनुभव है .कोई जरुरी नहीं आप भी मानें !)
कुछ मेरे अपने अनुभव है , जो मै यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ ! मैंने अपने २६ वर्षो के सर्विस जीवन में जो देखा , वह कुछ सोंचने पर बाध्य कर देते है ! मेरे श्रेणी ( लोको चालक ) में मैंने देखा है की बहुत से लोको चालक कई प्रकार के कठिनाईयों से गुजरे है ! जैसे -
(1) दोस्त की बहाली सिकंदराबाद हुई, वह स्वतः आवेदन कर सोलापुर गया और शादी के एक दिन पूर्व स्कूटर दुर्घटना में चल बसा ! (2) दोस्त की बहाली गुंतकल हुयी और स्वतः आवेदन पर हुबली गया और हार्ट अटैक का शिकार हो चल बसा ! (3) एक घटना दो कर्मचारियों के अदलाबदली पर हुयी , एक रिलीफ लेकर दुसरे कार्यालय में ज्वाइन किया , दुसरे ने आत्म हत्या कर ली !(4) एक लोको पायलट की बहाली विजयवाडा में हुई और स्वतः आवेदन पर चेन्नई गया ..ड्यूटी के वक्त दो ट्रेन की टक्कर हुई और वह सजा भुगत रहा है !(5) एक लोको पायलट स्वतः आवेदन पर रेनिगुनता गया और माल गाडी के दुर्घटना में उसके दोनों पैर कट गए ! (6) एक लोको पायलट रायचूर से स्वतः आवेदन पर पकाला होते हुए रेनिगुनता गया , कार्य करते वक्त किसी ने लोको के ऊपर पत्थर मारी और उसके आँख ख़राब ! आज वह लोको पायलट के जॉब से मुक्त है !(7) एक लोको पायलट काटपादी गया और ट्रेन चलते वक्त उसे दुर्घटना के शिकार होना पड़ा !
अभी बहुत से उदहारण मेरे पास है ! जो ये सिद्ध करते है कि जो कार्य स्वतः होते है , हमारे तकदीर है , उन्हें छेड़ना हमें कमजोर कर देती है ! दाने - दाने पर लिखा है खाने वाले का नाम ! यही वजह है कि राजस्थान का निवासी बंगाल , बंगाल का निवासी तमिलनाडू या अन्यत्र बहाल हो जाते है ! दाने न छोड़ें !
( इस उदहारण में नाम भी लिखा जा सकता है , पर लेख कुरूप हो जायेगा अतः नाम प्रस्तुत नहीं किया हूँ !.ये पुरे मेरे विचार और अनुभव है .कोई जरुरी नहीं आप भी मानें !)
" जाको राखे साईयां, मार सके न कोई " और जहाँ इश्वेर ने अंत लिख दिया हैं वहां चाहकर भी कोई रोक नहीं सका हैं..यह सब उस अकालपुरख का किया हैं .जब हमारी मर्जी से जनम नहीं हो सकता तो मौत कैसे मुमकिन हैं ..सबका दाना-पानी लिखने वाला एक ही परमात्मा हैं जिसे सब अलग -अलग नामो से पूजते हैं ....
ReplyDeleteनसीब अपना अपना,ईश्वर के आगे कोई कर भी क्या सकता है,,,,,,
ReplyDeleteRECENT POST .... काव्यान्जलि ...: अकेलापन,,,,,
कभी कभी ऐसा लगता है कि सब पहले से निर्धारित था कहीं पर, हम बस निमित्त मात्र बन बैठे।
ReplyDeleteEverything is destined. we are mere puppets in his hands.
ReplyDeletethoughtful post but not scientific
ReplyDeleteसुधि पाठक गण..इस पोस्ट में कुछ समानताएं देखिये--(१) सभी की बहाली यानि किसी कार्य क्षेत्र में आगमन = लोको पायलट के रूप में हुई है ! इसे उनकी स्थानीय अन्न , जो तकदीर में था ..समझ सकते है ! (२) सभी ने स्वयं आवेदन कर दाने( तकदीर ) की स्थिति बदली ! आवेदन सभी के साथ , कामन सत्य है !(३) स्थान बदलते ही परिणाम मिलने लगे ! अर्थार्त लोको चालक के रूप में किसी सुरक्षित परिधि में आना और कार्य करना , ही उत्तम था ! जैसे ही उन्होंने उस परिधि की रेखा को पार कर , स्वतः आवेदन के द्वारा जगह बदली , तरह - तरह के परिणाम भुगतने पड़े ! अगर पहले ही स्थिति में रहते , तो परिणाम कुछ और ही होते !वे सुखी संपन्न रह सकते थे ! जैसा की स्थान न बदलने वाले सुखी जीवन यापन कर रहे है !अतः अपने भाग्य के विधाता हम स्वयः ही है !
Deleteसहमत हूँ..... ऐसा कई बार महसूस किया है कि सब पहले से ही तय है....
ReplyDeleteजीवन बहुत से आश्चर्यों से भरा पड़ा है ... हर किसी का .... शायद यही बस एक बात होती है जो अपने से अलग ऊपर वाले के अस्तित्व को मानने पे विबश करती है ...
ReplyDeleteबहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
sach me prabhu ki leela aparampar hai ...!!
ReplyDeletesarthak post...
tabhi to kaha hai ki hum upr waale ke haanth kee kathputlee hain....
ReplyDeletesaadar.
बहुत बेहतरीन व प्रभावपूर्ण रचना....
ReplyDeleteमेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है।
sab kuchh waqt ke anusaar hota hai---sir hamaare haath me kuchh bhi nahi
ReplyDeletejaisa iswar chahta hai vahi hota hai-----
poonam
aapki baton se puri tarah sahmat hun.....
ReplyDeletebahut hi prabhavshali pravishti .....Praveen Pandey ji ki bato se poori tarah sahmat hoon .
ReplyDeleteजो हो रहा है, हो रहा है और ठीक हो रहा है. इससे आगे कुछ कहने की हिम्मत नहीं होती.
ReplyDeleteजेहि विधि राखे राम, ...
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