जिंदगी एक सफ़र , है सुहाना । जी हाँ ..जिंदगी सफ़र ही तो है । बिलकुल जैसे ताप्ती - गंगा एक्सप्रेस । किसी भी गाडी के अन्दर प्रवेश करते ही हमें अपने सिट और सुरक्षा की चिंता ज्यादा रहती है । गाडी में सवार होने के बाद ..ट्रेन समय से चले और हम निश्चित समय से गंतव्य पर पहुँच जाएँ इससे ज्यादा कुछ भी आस नहीं । किन्तु इन सभी झंझटो को छोड़ दें तो कुछ और भी इस यात्रा में है , जो हमारे दिल पर सुनहरी छाप छोड़ जाते है ।
आस -पास बैठे सह यात्री भी वाकई दिलचस्प होते है । इसी महीने मै ताप्ती -गंगा एक्सप्रेस से यात्रा कर रहा था , जो छपरा से सूरत जा रही थी । थ्री टायर कोच के एक कुप्पे में अकेला ही बैठा था । मऊ से एक जवान पति और पत्नी सवार हुयें और साईड वाले वर्थ ग्रहण किये । शायद कुछ दिन पूर्व शादी हुयी हो । आजमगढ़ से एक विधवा , अपने जवान बेटी ( १ ८ ) के साथ आयीं । जौनपुर से एक पैसठ / सत्तर साल के दम्पति आयें । इस तरह ये कुप्पा भर गया । बुजुर्ग दम्पति ने सभी के साथ वार्तलाप की शुरुवात किये । विषय की कोई ओर छोर नहीं । धार्मिक , समाजिक , पारिवारिक या राजनीतिक , शिक्षा या अनुशासन सारांश में कहे तो कोई भी क्षेत्र अछूता नहीं बचा ।
यात्रा के अनुभव और कुछ विचार जो सबसे अच्छे लगे । प्रस्तुत है ---
१) मऊ के नव दम्पति --
उस नौजवान ने कहा की मै अपनी माँ का पैर रोज दबाता हूँ । माँ ऐसा करने नहीं देती , पर मै नहीं मानता । माँ को पत्नी के भरोसे नहीं छोड़ता । पास में बैठी पत्नी उसे घूरती रही , जिसे हम सभी ने भांप लिए । एक पत्नी के जाने से दूसरी पत्नी मिल जाएगी , किन्तु माँ नहीं मिल सकती । मै किसी को सिखाने के पूर्व करने में विश्वास करता हूँ । समझदार खुदबखुद अनुसरण करने लगेंगे ।
२) बुजुर्ग दम्पति -
अपने पतोह की बडाई करते नहीं थके क्योकि वे शुगर के मरीज थे और बहु काफी ख्याल ( खान-पान के मामले में ) रखती है । बहु को पहली संतान ओपरेसन के बाद हुआ है । फिलहाल उसे आराम की जरूरत है । अतः इन्हें खान - पान की असुबिधा है । सहन करने पड़ते है । काफी समझदार लगे । पराये की बेटी की इज्जत , अपने बेटी जैसी होनी चाहिए ।
३) विधवा और उनकी बेटी -
इनके पिता जी पोस्ट ऑफिस में कार्य करते थे । चालीस वर्ष पूर्व इन्होने बारहवी पास की थी । चाहती तो अच्छी नौकरी मिल सकती थी । पति के इच्छा के विरुद्ध नहीं गयी और घरेलू संसार में जीवन लगा दिया । आज दो बेटे नौकरी करते है । एक गाँव में रहता है । ये बेटी सीए की पढाई कर रही है । आज पिता और पति के ईमानदारी का सुख भोग रही है । बेटे के लिए बहु देखने जा रही है । बेटो को मुझपर ही भरोसा है । सभी संसकारी है ।
४ ) मेरे बारे में जानकर उन्हें काफी ख़ुशी हुयी और उनकी उत्सुकता रेलवे में हमारे कार्य के घंटे , दुरी और सुरक्षा के ऊपर अधिक जानकारी प्राप्त करने की ओर ज्यादा रही । यात्रा काफी आनंदायक और मजेदार रही । समय कितना और कब व्यतीत हो गया , किसी को पता नहीं चला । सभी भाऊक हो गए , जब मै इटारसी में उतरने लगा । कितना अपनत्व था । जो पैसे से नहीं मिलता , इसके लिए प्यार , दिल और आदर्श की जरूरत है । मैंने अपने दोनों हाथ जोड़ उन सभी को अभिवादन किया और प्लेटफोर्म पर आ गया ।
गाडी आगे बढ़ गयी और मै देखते रह गया , उन तमाम शब्दों और तस्वीरों की छाया को । कितना जिवंत और सकून था उन बीते दो क्षणों में ।
No comments:
Post a Comment