Saturday, May 18, 2013

मेरे नैना ...क्यू भर आयें ?

जीवन से मृत्यु का सफ़र सभी के लिए खुशनसीब नहीं होतें । संघर्ष भरी कड़ी का अंत ही तो मृत्यु  है । इन्होने जीवन को  एक कर्मयोगी की तरह जी थी । ऐसे पुरूष विरले ही देंखे थे , जिन्हें कभी गुस्सा आया हो ? किसी को भी मुस्कुराकर स्वीकार करने की शक्ति इनमे थी । बच्चे हो या नौजवान या हमउम्र ...सभी से हंसते हुए व्यवहार ..गजब से थे । ह्रदय में गुस्से की प्रतिशत नाममात्र भी नहीं । मैंने अपने जीवन का बचपन इनके आगोश में ही  विताएं । मुझे  याद है , एक ..... बस एक  बार थप्पड़ मारे थे , वह भी स्कूल जाने के लिए । पिताजी ऐसे थे , जिन्हें एक भी शत्रु नहीं थे । उनकी सक्सियत विरले ही मिलेगी । खुद हम भी उनके कदमो  पर चलने में असमर्थ है । 

पढ़े नहीं । स्कूल नहीं गए थे । रामायण की चौपाई या दोहें सामने बैठे बच्चो को प्यार से सुनाते  थे । किताबे धीरे - धीरे पढ़ लेते थे । कागजातों पर हिंदी में अपनी हस्ताक्षर कर लेते थे । गाँधी जी को देंखे थे हमें उनके बारे में भी बताते थे । उन्होंने कभी भी पैसे नहीं पूछे । निस्वार्थ व्यक्तित्व के धनी । उन्हें गाय - गरू और खेती बहुत प्रिय थे । जब -तक शरीर में दम थे ,खेती को नहीं छोड़ें । 
उनकी बराबरी करने की शक्ति हम दोनों भाईयो में नहीं है । 

पिछले एक वर्ष से वे कमजोर हो गए थे । दावा -दारू चल रहा था । विस्तर पकड़ लिए थे ।  दिनांक ८ अप्रैल २ ० १ ३ को मेरे दादा जी के छोटे भाई का देहांत हो गया । पिताजी ने  घर के अन्दर से ही उनके पार्थिव शरीर को अंतिम संस्कार के लिए ले जाते समय देखा । वे भाव - विह्वल हो गए ।  " काका मुझे छोड़ कर चले गए । "- कह -कह कर रोने लगे थे । इसके उपरांत पिताजी की तबियत और ख़राब होने लगी । खान - पान बंद होने लगे । सभी को आशा की किरण कम नजर आने लगी । मुझे इसकी सूचना मिली । 2 3 अप्रैल 2 0 1 3 को बछिया के पूंछ पकडाने और उसको ब्राह्मण को दान देने की विधि संपन्न कराई गयी । इसके बाद उनकी आँखे और बात - चित बंद हो गयी । 

इस गंभीर समाचार के बाद मैंने अपनी यात्रा शुरू कर दी । 2 5 अप्रैल 2 0 1 3 को ट्रेन पकड़ी । गुंतकल से बलिया जाने में कम से कम 4 8 घंटे लगते है । इधर सभी परेशां थे क्यूंकि उनके काकाजी का क्रियाकर्म 2 5 /2 6 अप्रैल 2 0 1 3 को होनी थी । डाक्टरों ने हाथ खड़े कर दिए थे । यात्रा के दौरान हर घडी की खबर मुझे दी जा रही थी । 2 6 अप्रैल 2 0 1 3 को इलाहबाद पहुंचा । देखा -मोबाईल का स्क्रीन क्रैक हो गया था । मन में डर पैदा हो गया । वातानुकूलित डिब्बे में अपने बर्थ में मुंह छुपा कर रो दिया था । 

शाम को साढ़े छह बजे बलिया पहुंचा । मेरे बहनोई मुझे लेने के लिए आयें । घर पहुँचाने में बस आध घंटे की दुरी बाकी थी । तभी बहनोई की मोबाईल बजी । बहन का फोन था । फोन रखते ही उनकी आँखे भर आई । माजरा समझते देर न लगी । पिताजी जी मुझसे मिले वगैर प्रस्थान कर चुके थे । रात का अँधेरा , चारो तरफ फैला हुआ था । जो उत्तर - प्रदेश की उन्नति का गवाह था । घर में कदम रखते ही माँ , बहन और अन्य सभी रो पड़े । मै  पिताजी के पार्थिव शरीर से चिपक कर रोने लगा । माँ सुध खोये जा रही थी । अपने ऊपर कंट्रोल किया और माँ को सान्तवना दी की आप के सामने अभी मै हूँ । आप निः फिक्र रहे । 

कितनी विडम्बना थी की 2 5 /2 6 अप्रैल 2 0 1 3 को जब -तक उनके काकाजी का क्रिया कर्म और भोज की प्रक्रिया चली  , उनके प्राण नहीं निकलें ।शायद  पिताजी की आत्मा अपने काकाजी  के रस्म में खलल नहीं डालनी चाहती थी  । सभी कह रहे थे की अंतिम क्षणों में तीन बार भगवान का नाम लिए थे । दुसरे दिन 2 7 अप्रैल 2 0 1 3 को पिताजी के पार्थिव शरीर को अग्नि के सुपूर्त कर दिया गया । कईयों की इच्छा गंगा में परवाह करने की थी । किन्तु माँ ने इच्छा जाहिर कि  की  हमारे पुरखे जिस जगह अग्नि को सुपुर्द हुए है  , वही इनका भी संस्कार होगा । माँ की इच्छा भला कौन टाले  ?  ज्येष्ठ पुत्र के नाते मुझे ही मुखाग्नि देनी पड़ी । बाकी सभी क्रिया कर्म गरूण पुराण के अनुसार पूर्ण हुए । 

कुछ सार्थक मुहूर्त होते है । जो कुछ न कुछ कह जाते है । सभी को इस मृत्यु रूपी सच्चाई का सामना करना है । दुनिया से जाने वाले , जाने चले जाते है कहाँ ? बस अपने कर्मो के पद छाप छोड़ जाते है । 


                                             मेरी रेलवे की नौकरी दिनांक - 2 6 जून 1 9 8 7 । 
                                             मेरे दादाजी की मृत्यु दिनांक - 2 6  जून 1 9 9 6 । 
                                            मेरे पिताजी की मृत्यु दिनांक -2 6 अप्रैल 2 0 1 3 । 
                                             "--------------------------- "-2 6 .                    ?

जीवन की सबसे बहुमूल्य समय गवा दिया था । पिताजी का अंतिम आशीर्वाद से वंचित रहा । यह हमेशा ही खलेगा । मेरे नैना  फिर भर आयें ....फिर भर आयें ......



8 comments:

  1. गोरख जी.
    बेशक उनके अंतिम समय में आप उनके पास नहीं थे लेकिन माता-पिता का आशीर्वाद हमेशा साथ रहता है।
    ईश्वर से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को अपने चरणों में स्थान दें। परिजनों को इस शोक की वेला में धैर्य और शक्ति प्रदान करें। हमारी संवेदनायें आप सबके साथ हैं।

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  2. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दे! आप जैसे बच्चों की परवरिश से ही उनकी सज्जनता का पता लग जाता है।

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  3. श्रद्धासुमन.....
    :-(
    पिछले माह मैंने भी अपने पिता को खोया...उनका चेहरा मेरे दोनों हाथों के बीच था और वो चले गए....
    जीवन में इतना असहाय कभी महसूस नहीं किया खुद को.
    :-(

    सादर
    अनु

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  4. maut jindgi ki katu sacchai hai maine bhi 30 november ko apni 52 warshiy bahan ko khoya hai abhi tak dil manne ko taiyar nahi ....bhagwaan aapke dadajee avm pitajee ki aatma ko shanti de aur aapke pariwaar aur aapko dukh sahan karne ki shakti ...

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  5. विनम्र श्रद्धांजलि...
    मौत पर किसीका बस नहीं, बहुत मुश्किल होता है इस सत्य को स्वीकार कर पाना... उनका प्यार आशीर्वाद हमेशा आपके साथ है...

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  6. माता-पिता प्रकृति का उपहार होते हैं.आपके पिता जी के चल बसने का दुख हुआ. उनकी स्मृति को सादर नमन.

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  7. ऐसी करनी चलें ,हम हँसे जग रोये .ॐ शान्ति .

    वह पुण्य आत्मा जहां रहे प्रसन्न रहे ,आनंद में रहे .ॐ शान्ति .

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