कभी - कभी जीवन में ऐसा लगता है कि हर चीज और अनुभव सबके बस की नहीं होती । बहुत सी ऐसी चीजे है , जिन्हे धनवान नहीं समझ सकते । ठीक वैसे ही धनवानो की कुछ अनुभव कमजोर के पहुँच से बाहर होती है । कुछ समाज या व्यक्ति विशेष असाधारण प्रतिभावान होते है , पर असुविधा कि वजह से अपनी प्रतिभा को विखेर नहीं पाते । शायद इसी लिए पांचो अंगुलिया बराबर नहीं है और इसी भिन्नता कि वजह से समाज में संतुलन बना रहता है ?
लोको पायलटो की जिंदगी भी अजीब सी होती है । दिन में सोना , रात्रि पहर जागते हुए कार्य को पूर्ण रूप देना ,दिनचर्या सी बन गयी है । हजारो सिगनलों , सैकड़ो मानव रहित / मानव विहीन समपार फाटको , सर्दी या गर्मी , वरसात या सुखा , विभिन्न प्रकार के गाड़ियों / इंजनो , रुकन या प्रस्थान वगैरह - वगैरह को अनुशासन के भीतर रहते हुए पूर्णरूप देना ही तो है लोको पायलट । समाज से दूर , परिवार से दूर बस गाड़ी के यात्रियों को ही परिवार मानकर सतत आगे बढ़ते रहते है । लोको पायलटो का मुख्य ध्येय - अनुशासन में रहते हुए जान - माल की रक्षा , रेलवे और देश की प्रगति में चार चाँद लगाना ही तो है । आप एक क्षण के लिए लोको पायलट बन , इनके जीवन की अनुभूतियों को महसूस कर सकते है ।
लोको पायलटो को कार्य के समय कई छोटे या बड़े मुश्किलो का सामना करना पड़ता है । सफलता पूर्वक त्रुटियों को झेल जाना भी एक बड़ी अनुभव होती है । हमने सिनेमा घरो में कई बार देखा होगा कि नायक /नायिका रेलगाड़ी में सफ़र कर रहे होते है । कोई छोटी वस्तु / घी के डब्बे / टिफिन बॉक्स को खतरे की जंजीर से बांध देते है । तदुपरांत रेलगाड़ी रूक जाती है । रेलगाड़ी के कर्मचारी अपने निरिक्षण के दौरान इस गलती को देख लेते है और नायक / नायिका को खरी खोटी सुनाते है । थोड़े समय के लिए दर्शक हँसे बिना नहीं रह पाते और कुछ ताली तक बजा देते है । जी हाँ यह छवि गृह / सिनमोघरो के छवि/ चलचित्र में निर्देशक द्वारा प्रेषित , दर्शको के लिए मनोरंजन के एक मसाले के साधन मात्र होते है । ऐसी घटना वास्तविकता से परे समझी जाती है । लेकिन -
सभ्य और शिक्षित समाज इस कार्य को कार्यान्वित कर दें , तो आप क्या कहेंगे ? क्या आपने कभी ऐसी कल्पना कि है ? जी शायद आप को पता नहीं , यह वास्तविक जीवन में भी सम्भव हो सकता है , जब राजधानी एक्सप्रेस ठहर गयी । कल यानि २१ नवम्बर २०१३ कि घटना प्रस्तुत है । कल मै राजधानी एक्सप्रेस को लेकर सिकंदराबाद जा रहा था । राजधानी एक्सप्रेस सेडम स्टेशन पर रुकी । इसके फर्स्ट क्लास के डिब्बे से एक यात्री उतर गया , जो लोअर बर्थ का यात्री था । राजधानी फिर रवाना हो गयी । कुछ चार / पञ्च किलोमीटर कि यात्रा के बाद किसी ने खतरे कि जंजीर खिंच दी । फिर क्या था राजधानी एक्सप्रेस तुरंत रुक गयी । जाँच के दौरान पता चला कि फर्स्ट क्लास के कोच में उप्पर बर्थ का यात्री लोअर बर्थ में सोने के लिए निचे उतरने के लिए इस जंजीर का सहारा लिया था । शायद वह यह नहीं समझ पाया कि यह कोई साधारण जंजीर नहीं है बल्कि खतरे की जंजीर है । अनपढ़ की गलती क्षम्य है पर सभ्य और पढ़े - लिखे कि ? जब उसकी गलती से राजधानी एक्सप्रेस रुक गयी ।
राजधानी रोक कर ही माना, उसे कोई दन्ड़ तो नहीं दिया ना?
ReplyDeleteसभी को सचेत रहना होगा ...ऐसी गलतियों से बचा जाय तो बेहतर ...
ReplyDeleteकोई नेताजी तो नहीं थे?
ReplyDeleteगलती तो कोई कर सकता है..इसमें पढ़े-लिखे और अनपढ़ का भेद क्या ?
ReplyDeleteनयी पोस्ट@ग़ज़ल-जा रहा है जिधर बेखबर आदमी