Thursday, October 7, 2010

सोंचता हूँ ........ बच्चे कितने निश्छल भाव के होते है

इस माह का आप-बीती ,आपने शायद इसके पहले पढ़ा होगा ,जो बनारस और 
इटारसी के बिच घटी थी.आज ही मदुरै से लौटा हूँ.मदुरै की यात्रा भी याद आ रही है .इसके बारे में भी अपना बिचार और अनुभव बाद में प्रस्तुत करूँगा,
   इसके पहले मै ,अधूरी आप-बीती,जो इटारसी और मनमाड के बीत हुई ,वह प्रस्तुत कर रहा हूँ.
    मुझे,इटारसी से मनमाड ,गाड़ी संख्या-२५३३ (पुष्पक एक्सप्रेस) से जाना था.मेरा सीट संख्या-बी-१,में ५० और ५१ था.गाड़ी अपने निर्धारित समय से डेढ़ घंटे  लेट आई.हम लोग अपने कोच में दाखिल हुए,तथा अपने सीट की तरफ बढे.हमारे सीट पर पहले से ही काफी लोग बैठे हुए थे.जो वेट लिस्ट वाले यात्री भी थे.जैसा की 
बाद में पता चला,फिर भी उन्होंने हमें बिना किसी अवरोध के अपने सीट को ग्रहण करने दिया,जो पूर्व अनुभव से बिलकुल भिन्न था.
          हमारे सीट के सामने,दो न्यू दम्पति थे.जो पुणे को जा रहे थे.मेरे बगल में एक पंजाबी सज्जन थे,जो अकेले दो ब्यक्ति का सीट ले रहे थे,पर बहेत ही नम्र तथा अच्छे इन्सान थे.क्योकि वे बार-बार ध्यान रखते थे की हमें कोई बैठने में परेशानी न हो.वे बार-बार ऐसा पूछा करते थे.
      सामने सीट पर और एक सज्जन,पुरे सफेद ड्रेस में बैठे थे.शायद वे ॐ 
शांति के अनुयाई थे.वे सबसे योग्य और सदाचार की ही बाते का रहे थे.बहुत अछे इन्सान थे,वे लखनौ से आरहे थे और उनका वेट लिस्ट confirm नहीं हुआ था साइड वाले सीट पर एक बुजुर्ग,अपने पोती के साथ तथा एक मुस्लिम भाई बैठे थे.जिनके माथे पर हरी पगढ़ी और चेहरे पर लम्बी-लम्बी दाढ़ी थी.
          इस दृश्य में किसी को किसी से कोई नफ़रत या शिकायत नहीं थी.
उस बुजुर्ग की पोती ,उन मुस्लिम सज्जन के साथ काफी घुल-मिल गई थी.हम सभी अपने आप में खोये थे तभी हमने सुना की उस छोटी बच्ची ने ,उन मुस्लिम सज्जन से एक सवाल कर बैठी की -अंकल .आपने ये दाढ़ी क्यों रखी है?  सबका ध्यान उस प्रश्न के ऊपर गया और सभी ने इस अनोखे मृदुल भाव से पूछे गए बच्ची के सवाल पर हंस दिए.यहाँ तक की उस मुस्लिम सज्जन को भी हंसी आ गई.वे भी थोड़े समय के लिए सोंच में पड़ गए की क्या जबाब दूँ. 
                  सोंचता हूँ ........ बच्चे कितने निश्छल भाव के होते है.काश हम भी उम्र के परिपक्वता के साथ निश्छल होते  फिर किसी को किसी से मत-भेद ही न होता.बातो-बातो में समय कैसे गुजर गया.पता ही न चला.मनमाड आ गया.हमने चलने की तैयारी कर दी .ट्रेन से उतरने के समय सभी ने हमें सहयोग दिया.किसी ने बैग उठाई तो किसी ने मेरे सूटकेस .हमने भी उन सभी को धन्यवाद कही और उनके आगे की यात्रा मंगल मय हो की कमाना की .
 

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