इश्वर ने हमें वह सब कुछ दिया है , जो सृष्टि के किसी प्राणी को उचित ढंग से , नहीं मिली ! देखने के लिए आँख , सुनने के लिए कान , खाने के लिए मुंह ..आदी ! इसमे सबसे योग्य हमारा मष्तिक है , जो हमसे सब कुछ करवाने के लिए , मार्ग दर्शन देता है ! उचित और अनुचित को इंगित भी करता है ,! बहुत सारे लोग अनुचित की पहचान नहीं कर पाते और दुर्व्यवहार के आदि हो जाते है ! जब तक पहचान होती है , बहुत देर हो चुकी होती है ! धर्म और कर्म का बहुत ही बड़ा सम्बन्ध है ! बिना धर्म के शुद्ध कर्म नहीं ! बिन कर्म , कोई धर्म नहीं ! बिना धर्म का किया हुआ कर्म जंगली फल की तरह है ! अतः धर्म से फलीभूत कर्म ही सुफल देता है !
मै लोब्बी में साईन आफ करने के बाद , अपने गार्ड का इंतज़ार कर रहा था ! " सर आप को मालूम है ? "- उस क्लर्क ने मुझसे पूछा ? क्या ? मै तुरंत प्रश्न कर वैठा ! " सर आज उस अफसर ( नाम बताया ) के वेटे का देहांत हो गया है !" उसने जबाब दिया ! थोड़े समय के लिए मै सन्न रह गया ! समझ में नहीं आया , कैसे दुःख व्यक्त करूँ ,और कुछ कहू ? कितनी बड़ी विडम्बना ! कुदरत ने कितने कहर ढाये थे , उस पर !क्षण भर के लिए मै मौन ही रहना उचित समझा
!
मेरे मष्तिक में उसके अतीत घूम गएँ ! एक ज़माना था , जब सब उससे डरते थे ! उसने किसी के साथ भी न्याय नहीं किया था ! बात - बात पर किसी को भी चार्ज सीट दे देना , उसके बाएं हाथ का खेल था ! तीन हजार से ज्यादा कर्मचारी उसके अन्दर काम करते थे ! किसी ने भी उसे अच्छा नहीं कहा था ! सभी की बद्दुआ शायद उसे लग गयी थी ! यही वजह था की उसकी पत्नी ने भी अपने आखिरी वक्त में यहाँ तक कह दी थी की - " मै तुम्हारे पापो की वजह से आज मर रही हूँ ! तुमने आज तक किसी का उपकार किये है क्या ?"
जी उसकी पत्नी कैंसर से पीड़ित थी , बहुत दिनों तक अपोलो अस्पताल में भरती रही और इस दुनिया को छोड़ चली गयी ! उसके शव को दूर शहर में हाथ देने वाले कोई नहीं थे , फिर भी .. उसके अधीनस्थ कर्मचारी ही , उस शव को ..ताबूत में भर कर उसके गाँव भेजने में उसकी मदद को , आगे आये थे !वह अपनी करनी पर फफक - फफक कर रोया था ! उसके बाद उसमे बहुत कुछ सुधार नजर आये थे ! हर कर्मचारी को मदद करने के लिए तैयार रहता था ! अपने रिटायर मेंट तक , किसी को कोई असुबिधा महसूस होने नहीं दिया था ! यह एक संयोग ही था , जो वह इतना बदल गया था ! काश इश्वर उसे अब भी माफ कर दिए होते ! किन्तु नियति के खेल निराले ! न जाने उसके कोटे में पाप कितना था की आज उसकी दुनिया से उसका एकलौता वेटा भी उसे छोड़ कर चल बसा ! आज वह अकेला है ! जिंदगी के गुनाहों को गिनने में व्यस्त ! सब कुछ कर्मो का फल है !
( सत्य पर आधारित घटना ! वह व्यक्ति ज़िंदा है ! नाम छुपा दिए गए है ! )
क्या कहा जा सकता है...
ReplyDeleteबहुत सही लिखा है आपने.शीर्षक के अनुकूल.जीवन में जब हमें ठोकरें मिलें उससे पहले ही सही मार्ग अपना लें तो शायद प्रभु भी माफ करदें.
ReplyDeleteसुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.
भाग्य पर किसी का वश नहीं।
ReplyDeleteकर्मों का फल तो भोगना ही पड़ता है ........प्रेरक आलेख
ReplyDeleteभाग्य कर्मों का अवशिष्ट फल ही होता है।अतः कर्मों की शुद्धता पर ही ध्यान देना चाहिए।
ReplyDeleteSach mein aise logon ko dekhkar baad mein bahut dukh hota hai, lekin kuch log jeete jee jeena kabhi samjh hi nahi paate hain..
ReplyDeletebahut marmik prastuti ke liye aabhar!
सरक-सरक के निसरती, निसर निसोत निवात |
ReplyDeleteचर्चा-मंच पे आ जमी, पिछली बीती रात ||
http://charchamanch.blogspot.com/
होनी को कौन टाल सकता है ?
ReplyDeleteभाई साहब ,व्यक्ति चरित निराले हैं ,ज़िन्दगी में कर्म सुधार की गुंजाइश हमेशा रहती है .कृपया "आदी "यानी अभ्यस्थ कर लें आदि के स्थान पर जिसका मतलब इत्यादि ,अनेक होता है .आप शुद्ध लिखतें हैं इसलिए यह चूक अखरी,अपने से हैं इसीलिए हौसला हुआ बताने का जो आपका दिया हुआ है .
ReplyDeletethoughtful post
ReplyDeletejasi karni wasi bharani
आपने तो मेरे बताए शीर्षक को सार्थक किया इस पोस्ट के माध्यम से ... जीवन के कुछ खट्टे मीठे अनुभव सदा अपने मार्ग में परिवर्तन लाने को प्रेरित करते हैं .. बस उन्हें देखने और सोचने की जरूरत होती है ...
ReplyDeleteवीरू भाई साहब - आप के सुझाव शिरोधार्य है ! गलती के लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ! वैसे मेरी हिंदी दक्षिण भारतीय रूप में ही है ! सुधार कर दिया हूँ ! बहुत - बहुत धन्यबाद !
ReplyDeleteकर्मों का फल तो भोगना ही पड़ता है|बहुत सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार|
ReplyDeleteक्या कहूं,कर्म नहीं, शायद भाग्य ही कभी-कभी साथ छोड़ देता है,
ReplyDeleteविवेक जैन vivj2000.blogspot.com
यही जीवन है.... हर रंग को जीना होता है समय समय पर ...
ReplyDeleteG. N. Saw ji
ReplyDeleteआप मेरे ब्लॉग पर आये , मुझे समर्थन दिया , आपका बहुत - बहुत आभारी हूँ / आखिर आप जैसे कुछ लोग तो हैं जो सच के साथ खड़े हैं ,
आपकी प्रस्तुति भी आप की सोच का आइना है , बहुत सुन्दर पोस्ट , बधाई
भाग्य कर्मों का फल ही होता है| मार्मिक प्रस्तुति, आभार
ReplyDeleteभाई साहब आप ही असली हिंदी भाषी हैं भाषा सीखने की लगन रखतें हैं .प्रेम से सब कुछ परवान चढ़ता है .यह पोस्ट दोबारा पढ़ी -इसीलिए कहा गया है -आदमी गुड़ न दे तो गुड़ जैसी बात तो कह दे मीठा बोलना एक कला है जिसे आती है सुखी रहता है सहज रहता है .
ReplyDeletehttp://kabirakhadabazarmein.blogspot.com/
ReplyDeleteकृपया इसे भी बांचें .
कल 06/09/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
ReplyDeleteधन्यवाद!
जीवन दर्शन का अनुक्रम ।
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