Friday, April 20, 2012

ईश्वर अल्ला तेरो नाम ..सबको सन्मति दे भगवान !

 आयें आज कुछ नेकी- बदी की बात हो जाय ! कल यानि दिनांक १९ अप्रैल २०१२ को मुझे १२१६३ दादर - चेन्नई सुपर फास्ट लेकर रेनिगुन्ता जाना था ! अतः समय से साढ़े दस बजे गुंतकल लोब्बी में पहुंचा !  जैसे ही ये.सी.लाँग में जाने के लिए दरवाजा खोला ! सामने मेरा एक सह -कर्मी ( लोको पायलट/ नाम न बताने की मनाही है  ) बाहर आते हुए मिल गए और तुरंत हाथ मिलाते हुए , उन्होंने मुझे कहा -"  आप को   भगवान स्वास्थ्य और समृधि प्रदान करें !" 

मै कुछ समय के लिए सकारात्मक भाव , जड़वत  खड़े रहा और उनके मुंह और दाढ़ी को देख- मुस्कुराया !  ख़ुशी जाहिर की ! " और कुछ दुवा करूँ ?"- उन्होंने प्रश्न जड़ दिया ! मैंने कहा - "  हाजी अली ...आप  और भगवान की कृपा बनी रहे ! इससे ज्यादा क्या चाहिए ? वैसे भगवान को मालूम है , मुझे किस चीज की आवश्यकता है !" फिर क्या था वे भी हंस दिए ! मेरे साथ फिर ये.सी.रूम के अन्दर वापस  आ गए ! मेरी ट्रेन के आने में आधे घंटे की देरी थी ! उन्होंने मेरी अंगुली पकड़ जबरदस्ती बैठने के लिए कहा ! मै अपने सूट केश और बैग को साईड में रख , उनके साथ बैठ गया !

" कहिये ?  क्या कोई खास समाचार है  ? "- मैंने पूछ बैठा !
" नहीं यार ! आप  ने भगवान का नाम लिया और मुझे एक वाकया याद आ गयी ! समझ - समझ की बात है ,बिलकुल ईश्वर हमारे ख्याल रखते है !" उन्होंने कहा ! एक लम्बी साँस और छोटी सी विराम ! मै सुनाने को उतावला ! उन्होंने  आगे जो कहा , वह इस प्रकार है--

" मै पिछले हप्ते  एक मॉल गाड़ी लेकर धर्मावरम से गूटी आ रहा था ! मेरी गाड़ी कई घंटो के लिए रामराजपल्ली रेलवे स्टेशन पर रोक दी गयी क्यों की गूटी जंक्शन के यार्ड में लाईन खाली नहीं थी ! दोपहर का समय , कड़ाके की धुप ,पानी ही सब कुछ !  हम लोग बिना खाने का पैकेट लिए ही  चल दिए थे , इस आस में की जल्द घर पहुँच जायेंगे ! पेट में चूहे कूद रहे थे ! खाने का सामान न मेरे पास था , न ही सहायक के पास  ! उसमे रामराज पल्ली में पानी तक नहीं मिलता है ! दोपहर हो चला था ! लोको के कैब में ही नमाज के लिए बैठ गया ! नमाज अदा करने के  समय ही मन में विचार आये --या अल्ला .गाड़ी को जल्दी लाईन क्लियर मिल जाये तो अच्छा हो ! भूख सता रही है ! 

 नमाज पढ़ , स्टेशन मास्टर के ऑफिस की तरफ चल दिया ! मास्टर मुझे देखते ही बोले --पायलट साहब खाना वगैरह हो गया या नहीं ? मैंने कहा - नहीं सर ! खाने के लिए कुछ नहीं है ! फिर क्या था , मास्टर जी अपने भोजन के कैरियर खोल मुझे खाने के लिए दे दिए ! मै  कुछ हिचकिचाया , मन ही मन सोंचा - आखिर सहायक को छोड़ कैसे खा लूं ! उन्होंने दूसरी कप को मुझे देते हुए कहा - ये अपने सहायक  को दे दें !

तब -तक देखा एक रेलवे  ठेकेदार जीप में अपने लेबर के लिए बहुत से खाने का पैकेट लेकर आया और  जबरदस्ती एक पैकेट हमें दे चला गया !

इतना ही नहीं -जब मै लोको के पास आया तो सहायक ने मुझे इत्तला दी की पावर कंट्रोलर गूटी से खाने का दो पैकेट ट्रेन संख्या -११०१३ एक्सप्रेस ( कुर्ला - बंगलुरु ) में भेंजे है ! ट्रेन आते ही उसे पिक अप करनी है ! "

शा जी  ..है न आश्चर्य की बात ! उस परवर दिगार ने एक नहीं , दो नहीं ,  तीन -तीन खाने की बन्दों बस्त कर दी ! मै तो वैसे ही धार्मिक विचार का व्यक्ति हूँ ! यह सुन आस्था और मजबूत हो गयी ! मैंने उनसे और जानकारी चाही , ताकि भालिभक्ति ब्लॉग पर पोस्ट कर सकूँ ! उन्होंने इससे इंकार कर दिया और बोले -नेकी कर दरिया में डाल ! मेरी ट्रेन  आने वाली थी अतः इजाजत ले बाहर आ गया !

जी हाँ इसी लिए मैंने भी  यहाँ उनके नाम को उजागर नहीं किया है ! वे हाजी है ! मै उन्हें संक्षेप में हाजी अली कह कर ही पुकार लेता हूँ ! वे मुझसे एक वर्ष बड़े ही है ! सब कुछ विश्वास और भावना के ऊपर निर्भर है ! ये तो सही है , जो पढ़ेगा और परीक्षा देगा , उसे ही सर्टिफिकेट मिलेगी ! अन्य तो बिन ...?...सुन !

बस इतना ही ....
मै तो   उसके  प्यार  में अँधा हूँ.,
क्यूँ की उसका एक नेक  बंदा हूँ  !

10 comments:

  1. अगर ईश्वर पर मन से आस्था और आपमें हिम्मत है तो हर कार्य पूरे होते है,....
    बहुत बढ़िया ईश्वर के प्रति विश्वाश पैदा करती सुंदर प्रस्तुति,..

    MY RECENT POST काव्यान्जलि ...: कवि,...

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  2. जी हाँ , विश्वास और भावना सबसे ऊपर हैं... सुंदर पोस्ट

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  3. ईश्वर सुनता है, प्रमाण भी हो गया।

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  4. सच कहा है असल बात तो आस्था और विश्वास कों कायम रहने की है ...

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  5. आशा और विश्वास ताकत देता है सब कुछ बर्दाश्त करने की .कुछ मिले न मिले .

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  6. aastha aur iishwr dono hi alg 2 chij hain iishwr bina kisi hetu ke sb pr kripa krte hain kisi se iishwr ko dushmni nhi hai n hi kisi se vishesh pyar hain n hi us ka koi ek putr ya prtinidhi hai us ke ps putr hain sn us ke apne hain yh to apne 2 krmon ka lekha jokha hai jise n koi km kr skta hai aur n hio koi jyada kr skta hai bs us kii kripa ko anubhv krna hai vishvash aur aastha ke sath
    kya vh kisi pshu kii kurbani ya bli kii ijajt dega ydi nhi to fir yh sb kyon hai aur ydi iishwr ki aise swikriti hai to iishvr ya koi aur yani allaah ya god ho hi nhi skta
    yh to aap kii dridh ichchha shkti ya aastha kii dridhta hai jise sb nbaye rkhen pr kisi aadmbr me n pd kr iishwr kw prti bs prem hi srvopri ho

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  7. पत्थर में रहने वाले कीट की संभाल हो जाती है तो इंसानों की क्यों नहीं होगी. विश्वास फल देता है.

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  8. विद्वानो की टिप्पणियाँ पढ़ कर बेहद दुख हुआ। आस्था और विश्वास की बातें 'कायरता' की हैं। हाँ यह आपका कथन ही सही है-"जो पढ़ेगा और परीक्षा देगा , उसे ही सर्टिफिकेट मिलेगी ! "

    कर्म=सदकर्म,दुष्कर्म और अकर्म के अनुसार फल मिलते हैं किसी आस्था या विश्वास से नहीं। पढे-लिखे समझदार लोग क्यों भटकते हैं यह समझ से परे है।

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