जिस तरह दुनिया में कंटीले या बेकार के वृक्ष कहीं भी स्वतः उग जाते है तथा सदुपयोगी वृक्ष सभी जगह नहीं मिलतें , वैसे ही संसार में बुरे प्रवृति के व्यक्ति सभी जगह भरे पड़े है । अच्छे लोगो की पहचान और उपस्थिति का आभास बड़ा ही कठिन है । अच्छे लोगो की आवश्यकता उनके अनुपस्थिति के समय महसूस होती है । संसार में बुरे लोग इस तरह से छाये है कि उनके आगे नियम - क़ानून सब फीके पड़ जाते है । रावण हो या महिसाशुर , कंश या दुर्योधन सभी अपने युग के कालिमा / कलंक थे । अंततः विजय उजाले की ही होती है । सच्चे व्यक्ति में त्याग की भावना चरम पर होती है , यही वह शक्ति है , जो उसे स्वार्थ से दूर ले जाती है , और एक दिन उसके अन्दर ईश्वरीय शक्ति का विकास हो जाता है । वह इश्वर स्वरुप बन जाता है । उसके वाणी में ओज , मुख पर आकर्षण और कार्य में शक्ति भर आती है ।
हम इस क्षेत्र में कहाँ तक आगे है , खुद ही महसूस कर सकते है । मनुष्य जाती ही एक ऐसा प्राणी है , जो कुछ सोंच और महसूस कर सकता है । अन्यथा पत्थर .......और उसमे कोई भिन्नता नहीं । भारतीय संघ में प्रशासन के कई रूप है । कई नियम - कानून । सभी नियम कानून सर्वजन हिताय से प्रेरित है । फिर भी इसके अनुचित उपयोग और परिणाम निकल आते है । आखिर क्यों ?
यह व्यक्ति विशेष के व्यवहार और इमानदारी पर निर्भर करता है । उसके सकारात्मक सोंच पर निर्भर करता है । अब देखिये ना ......हमारे रेलवे में एक प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति चाहे जो भी हो ....वह निरिक्षण के दौरान लोको के अन्दर ....लोको पायलट के सिट पर नहीं बैठ सकता । इससे लोको पायलटो के कार्यनिष्पादन , सिग्नल को देखने और बहुत सी चीजो में व्यवधान पड़ती है , जो ट्रेन को सुरक्षित परिचालन के लिए सही नहीं है । अब आप ही परख लें ---कौन कैसा है ?
1) मै एक दिन 12163 दादर - चेन्नई सुपर लेकर गुंतकल से रेनिगुंता जा रहा था । गुंतकल में ही मंडल सिगनल अधिकारी लोको के अन्दर तशरीफ लायें और आते ही सहायक के सिट पर ऐसे बैठ गए , जैसे जल्दी ग्रहण ( बैठो ) करो नहीं तो दूसरा कोई बैठ जायेगा । तादीपत्री में उतर गएँ ।
2) इसी ट्रेन में कडपा से एक और अधिकारी लोको में आयें .....आते ही अपना परिचय दिए ...मै सहायक निर्माण अधिकारी / कडपा हूँ और राजम पेटा तक आ रहा हूँ । लोको में खड़ा रहे । सहायक के सिट पर नहीं बैठे । सहायक ने शिष्ठाचार बस बैठने का आग्रह भी किया ।
3) एक बार मै सिकन्दराबाद से 12430 राजधानी एक्सप्रेस ( हजरत निजामुद्दीन से बंगलुरु ) आ रहा था । ट्रेन के आने की इंतजार में प्लेटफ़ॉर्म पर खड़ा था । तभी एक व्यक्ति मेरे पास आया और अपना परिचय चीफ कमर्शियल मैनेजर के निजी सचिव के रूप में करते हुए कहा - कि साहब आपके लोको में फूट प्लेट इन्स्पेक्सन के लिए आ रहे है । मैंने कहा मोस्ट वेलकम सर । ट्रेन आई । साहब आयें । उन्होंने भी आते ही मुझसे हाथ मिलायी , परिचय का आदान - प्रदान हुयी । लोको के अन्दर आये ।
दक्षिण मध्य रेलवे का मुख्य कमर्शियल मैनेजर ....यह स्वाभाविक था कि हम उनका भरपूर स्वागत करें । ट्रेन चल दी । हमने उनसे सहायक के सिट पर बैठने के लिए आग्रह की , पर वे ऐसा करने से साफ़ इंकार कर गएँ और प्यार भरे शव्दों में कहा कि आप लोग मेरे बारे में चिंता न करे ....आप लोगो का कार्य महत्वपूर्ण है । अंततः वे 304 किलो मीटर तक लोको में -खड़े खड़े यात्रा / निरिक्षण कियें और रायचूर में जाते समय दो टूक बधाई देना भी न भूलें ।
जी हाँ --अब आप क्या कहेंगे ? एक ही कानून ....एक ही संस्था ...किन्तु कार्यप्रणाली ...बदल जाती है । इसके भागीदार हम और आप ही तो है । आखिर फर्क तो है ।
हाँ, बहुत कुछ व्यक्ति पर निर्भर करता है. अच्छा व्यवहार याद रह जाता है.
ReplyDeleteतरह तरह के लोग ||
ReplyDeleteबढ़िया पोस्ट |
आभार ||
सकारात्मक सोच तो प्रभावित करती ही है.... और किसी का अच्छा व्यवहार तो एक सुखद अनुभव भी ही होता है
ReplyDeleteहमें तो खड़े होकर ही सेक्शन अच्छा दिखायी पड़ता है..
ReplyDeleteसही है ..
ReplyDeleteआंध्रप्रदेश के एक लेखक की उपन्यास पढ़ी थी, उसके हिंदी संस्करण के विमोचन कार्यक्रम में भी शामिल हुआ था. उन्होने लोकोपायलट के जीवन के सभी पक्षों का चित्रण किया है। जब आपका ब्लाग पढ़ता हूँ तो वही पात्र मेरे सामने होता है......... आभार
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