Monday, January 11, 2016

एक कहानी - मनरेगा ।

सड़क के किनारे वह अधमरा कराह रहा था । उसे किसी की सख्त मदद की जरुरत थी । भीड़ उमड़ता जा रहा था । पर कोई भी मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था । यह भी एक सामाजिक कुरीति है ।  लोगो के जबान पर फुस  फुसाहट की ध्वनि आ रही थी । माजरा क्या है ? समझ से बाहर था । हम भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़ने को उतावले थे । उस घायल व्यक्ति के नजदीक पहुँच खड़े  थे । कैमरा मैन वीडियो लेने के लिए तैयार उतावला  था वह मेरे अनुमति का इंतजार कर रहा था ।

तभी एक महिला एक छोटे बच्चे को गोद में लिए आयी और उस व्यक्ति के शारीर पर गिर रोने लगी । हमने उस महिला से कुछ पूछने की कोसिस  कि पर वह चिल्लाने लगी  और जोर जोर से  बोली - मैं कहती थी कि बैर मत मोलो । हम भूखे रह लेंगे । पैसे दे दो । हे भगवान कोई तो हमारे ऊपर रहम करो ? हमसे रहा न गया । मैंने उस महिला को अपना परिचय दिया और पूरी जानकारी हासिल करने की एक कोशिश की । पर वह महिला कुछ भी बताने से इंकार कर दिया  । उनके पहनावे और व्यवहार से यही लगता था कि वे बेहद गरीब थे । मीडियावाले है सुनते ही कुछ भी कहने से इंकार कर दी । अगल बगल के लोगो से कुछ जानकारी चाही किन्तु असफल रहा । मामला गंभीर था । हमने कुछ करने की सोंची ।  तभी हमारे पास एक लंबा चौड़ा और बड़ी बड़ी मुच्छो वाला आ खड़ा हुआ । वह गुर्राते हुए बोला । अबे नया नया आया है क्या ? तेरे को समाचार चाहिए । आ मेरे साथ मैं सब कुछ बताऊंगा । मैं उसके मुह को देखने लगा । देखा की भीड़ अपने आप खिसकने लगी । जाहिर था यह कोई यहाँ का दबंग है ।

हम पत्रकारो को कभी कभी आश्चर्य तो होता है पर डर नहीं । जी हम पत्रकार है । हमें इस घटना की जानकारी चाहिए । मैंने कहा । जरूर मिलेगा । आईये मेरे साथ । कह कर वह मुड़ा और हम उसके पीछे हो लिए । अब हम एक बड़ी हवेली के सामने खड़े थे । दरवाजे पर दो लठैत बिलकुल पहरेदार जैसा । हवेली के सामने एक बड़ा आम का बगीचा था वही हमें बैठने के लिए कहा गया । स्वागत सत्कार के बिच उन्होंने हमें सब कुछ बता दिया था । सुन कर पूरी घटना समझ में आई ।ऐसे शासन और जनता के सुविधाओकी धज्जिया उड़ते  कभी नहीं देखा था । उन्होंने बताया की वे इस गांव के मुखिया है । मनरेगा के नाम पर काफी रुपये आते है । गांव वालो को काम के नाम पर जो पैसे आते है उन्हें उसमे से मुखिया को  पैसे देने होते है । सभी के बैंक खाते है । मजदूरी के पैसे सीधे खाते में जाते है । सभी को उसमे से मुखिया को कमीशन देने पड़ते है । मुखिया किसी से कोई काम नहीं करवाता है और सभी का हाजरी बना कर भेज देता है । इसी एवज में कमीशन लेता है । उस व्यक्ति ने कमीशन देने से इंकार कर दिया था । अतः मुखिया के कोप भाजन का शिकार बन गया था । अब समझ में आया मनरेगा का पैसा कैसे बर्बाद होता है और इससे कोई विकास भी नहीं ।

मुखिया हमें मुख्य द्वार तक छोड़ने आया और धीरे से एक सौ की गड्डी हाथ में पकड़ा दी । हमने मनाही की पर वह न माना । कहने लगा - रख लीजिये ये तो एक छोटा सा नजराना है । दिल बेचैन था । कर्तव्य के साथ खिलवाड़ करने का मन कतई नहीं था । एक उपाय सुझा । हम सीधे उस गरीब के घर गए । देखा उसके दरवाजे पर एक्का दुक्का व्यक्ति खड़े थे । उस व्यक्ति की पत्नी दरवाजे पर बाहर बैठी थी । छोटा बच्चा उसे बार बार नोच रहा था । गरीबी ठहाके लगा रही थी । मेरे हाथ एक छोटी सी मदद के लिए उसके तरफ बढे और मैंने उस महिला की ओर उस सौ की गड्डी को बढ़ा दी जिसे मुखिया ने नजराने की तौर पर दी थी । वक्त को करवट बदलते देर न लगा । उस महिला ने उस गड्डी को घुमा कर जोर से दूर फेक दिया । मेरे दरवाजे से चले जाओ मुझे भीख नहीं चाहिए । हम जितना में  है उसी में जी लेंगे ।

मैं हतप्रभ हो देखते रह गया । मैं हार चूका था । हम धनवान होकर भी गरीब थे और वे गरीब होकर भी अमीर क्यों की उनके पास ईमान और इज्जत आज भी बरकरार थी ।

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