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Sunday, March 19, 2017

लघु कथा - नोटबंदी पार्ट -2

मैं आज टी वी के सामने बैठा हुआ था । ऑफिस में बहुत देर हो गयी थी । सामने अखबार पड़ा हुआ था । ऑफिस में काम से कहा फुर्सत मिलती है । एक नजर दौड़ाई । देश और दुनिया में शांति से ज्यादा अशांति ही दिखाई दी । मैडम चाय लेकर आई । सामने रख दी । चाय की चुस्की लेते हुए टीवी की ओर देखा । साढ़े आठ बज रहे थे ।

देखा मोदी जी का कोई संबोधन प्रसारित हो रहा था ।
मोदी जी कह रहे थे -

" भाईयो और बहनों ,
आप ने देखा कि देश के भ्रष्टाचार को कम करने के लिए मैंने नोटबंदी का सहारा लिया । जिससे छुपे हुए कालाधन बाहर आ सके । यह आंशिक रूप से सफल और कारगर साबित हुआ है । फिर भी बहुत से कालाबाजारी कुछ बैंक की मदद से अपने छुपे धन को सफ़ेद करने में  कामयाब रहे । मैं उन्हें छोड़ने वाला नहीं । सभी पर कार्यवाही होगी और जरूर होगी ।
आज बारह बजे रात से कोई भी नोट कार्य नहीं करेगा । जिनके - जिनके पास नए 2 हजार और 5 सौ के नोट है , वे कल बैंक में जाकर अपने खाते में जमा करवा दें । पुराने नोट को अपने खाते में कोई भी सिर्फ एक बार जमा कर सकेगा । पुराने नोट एक ही खाते में दुबारा स्वीकार नहीं किये जायेंगे । 

यह  सुविधा 5 दिनों तक लागू रहेगा ।

50 हजार से ज्यादा जमा का लेख जोखा देना होगा अन्यथा स्वीकार नहीं किये जायेंगे । अब एटीएम से प्लास्टिक के नए नोट मिलेंगे ।

भाईयो और बहनों - 

मुझे आशा है आप लोग मेरे इस कार्यवाही को नोटबंदी एक की तरह  सहर्ष स्वीकार करेंगे । बाकी जानकारी बैंक वाले बता देंगे । आप सभी का धन्यवाद 
बन्दे मातरम भारत माता की जय ।" 

मेरे शरीर में सिहरन समा गयी । ये क्या नोटबंदी 2 आ गया ? ओह माय गॉड । मैं तो मर गया । 15 लाख कैश घर में रखे पड़े है । अब क्या होगा । लक्ष्मी लक्ष्मी लक्ष्मी दौड़ो ? 


पत्नी ने जोर से झटके दी । अरे सोये सोये ये क्या चिल्ला रहे थे । मैंने अपनी आँख को रगड़ते हुए कहा - " लक्ष्मी आज मैंने बहुत बुरी स्वप्न देखी है । देखा - मोदी जी ने नोटबंदी 2 लागू कर दी है । भगवान न करे ये कही सही हो जाय । लक्ष्मी जल्दी से तैयार हो जाओ । बैंक चलने है । मैंने पत्नी से अनुरोध किया । 

क्यों ? पत्नी ने एक झटके में पूछा । 

भाग्यवान , तुम मेरी लक्ष्मी हो । अलमारी में 15 लाख रखे है । कृपया अपने खाते में जमा करा दो । मैंने प्यार से गुहार किया । 

आखिर 15 लाख आये कहाँ से ? बोलो ना ? पत्नी जानने हेतु जिद्द करती रही । न चाहते हुए भी बताना पड़ा । कहा - " मोदी जी ने कर्मचारियों के वार्षिक इंक्रीमेंट के लिए - वैरी गुड - सर्विस रिकॉर्ड में होना अनिवार्य कर दिया है । अतः मैंने अपने अंतर्गत कर्मचारियों से 1 से लेकर 3 हजार तक बसूले है वैरी गुड रिमार्क के लिये । " 

पत्नी के मुख से निकले - पापी कही के । इतना कह पत्नी बाहर की ओर जाने लगी । मैं जाती हुई लक्ष्मी को आश्चर्य से देखता रह गया ।

( नोट - यह एक काल्पनिक लघु कथा है । सत्य से कोई सरोकार नहीं । )

Friday, March 11, 2016

नपुंशक

आज कल शिक्षा का क्षेत्र  काफी विकसित हो गया है । जो समय की मांग है । वही इस शैक्षणिक संस्थानों से निकलने वाले भरपूर सेवा का योगदान नहीं देते है । सभी को सरकारी नौकरी ही चाहिए , वह भी आराम की तथा ज्यादा सैलरी होनी चाहिए किन्तु अपने फर्ज निभाते वक्त आना कानी करते है । कई तो कोई जिम्मेदारी निभाना ही नहीं चाहते । किस किस विभाग को दोष दूँ समझ में नहीं आता । ऐसा हो गया है की सरकारी बाबुओ और अफसरों के ऊपर से विश्वास ही उठता जा रहा है । आज हर कोई किसी भी विभाग  में किसी कार्य के लिए जाने के पहले ही यह तय करता है कि उसका कार्य कितने दिनो में संपन्न होगा और उसे कौन कौन सी बाधाओं का सामना करना पड़ेगा  । वह दोस्तों से अधिक जानकारी की भी आस लगाये रखता है  ।

क्या यह सब सरकारी विफलताओं को दोष देने से दूर हो जायेगा ? कतई नहीं । हम सभी का सहयोग बहुत जरुरी है । बच्चे का जन्म होते ही उसकी जिम्मेदारिया बढ़नी शुरू हो जाती है । वह किसी की अंगुली पकड़ कर चलने का प्रयास करता है । उसे अपने माता -पिता के प्यार से आगे की कर्मभूमि का ज्ञान शिक्षण संस्थाओ से मिलता है । उस ज्ञान का दुरूपयोग या उपयोग उसके शैक्षणिक  शक्ति पर निर्भर करता है । पुराने ज़माने में गुरुकुल या छोटे छोटे स्कुल हुआ करते थे । हमने देखा है उस समय  शिक्षक और शिष्य में एक अगाध प्रेम हुआ करता था । दोनों एक दूसरे की इज्जत करते थे । मजाल है की शिष्य गुरु के ऊपर कोई आक्षेप गढ़ दे या गुरु शिष्य पर क्यों की आपसी मेल जोल काफी सुदृढ़ होते थे । उस समय नैतिक विचार नैतिक आचरण सर्वोपरि थे । छोटे बड़ो की इज्जत और बड़े छोटे को भी सम्मान देते थे । कटुता और द्वेष का अभाव था । ऐसे गुरुकुल या शिक्षण स्कुल से निकलकर आगे बढ़ने वालो के अंदर एक उच्च कार्य करने की क्षमता थी । शायद ही कभी कोई किसी को शिकायत का अवसर देता था । इस तरह एक स्वच्छ समाज और देश का निर्माण होता था । 

आज कल की दुर्दसा देख रोने का दिल करता है । शैक्षणिक संस्थान व्यवसाय के अड्डे बनते जा रहे है । शिक्षा के नाम पर कोई सम्मान जनक सिख तो दूर समाज को बर्बादी के रास्ते पर चलने को उकसाए जा रहे है । शैक्षणिक संस्थान रास लीला , नाच और गान के केंद्र बनते जा रहे है । नयी सोंच और नयापन इतना छा गया है कि कभी कभी बेटे  बाप को यह कहते हुए शर्म नहीं करते कि चुप रहिये आप को कुछ नहीं पता । अब आप का जमाना नहीं है । पिता के प्रति पुत्र का आचरण आखिर समाज को किधर मोड़ रहा है । बलात्कार , देश के प्रति अनादर , व्यभिचार समाज में इतना भर गया है और हम नैतिक रूप से इतने गिर गए है कि अगर कोई बहन को भी लेकर बाहर निकले तो देखने वाले तरह तरह के विकार तैयार कर लेते है , फब्तियां कसेंगे देखो किसे लेकर घूम रहा है। ऐसा नहीं है  की सभी ऐसे ही है पर अच्छो की संख्या नगण्य है । उनको कोई इज्जत नहीं मिलती । 

हमारे रेलवे में दो रूप है । प्रशासक और कर्मचारी । आज सभी शिक्षित है चाहे जिस किसी भी रूप में कार्यरत हो ।कर्मचारियों को हमेशा उत्पादन देना है जिसे वे हमेशा जी जान से पूरा करते है चाहे दस आदमी का कार्य हो और उस दिन 5 ही क्यों न हो । इस असंतुलन से कर्मचारी सामाजिक  , पारिवारिक , धार्मिक और राजनितिक उपेक्षा से प्रभावित हो जाते है । क्या एक कर्मचारी किसी गदहे जैसा है ? जो मालिक को खुश करने के लिए अपना सब कुछ समर्पण कर देता है । क्या कहे हम तो मजदूर है नीव की ईंट से लेकर  भवन के कंगूरे को सजाते है । फिर भी हमारी जिंदगी नीव की ईंट के बराबर ही है  । सभी कंगूरे की सुंदरता देखते है नीव की ईंट पर किसी का ध्यान नहीं जाता । शायद उन्हें नहीं मालूम की यह भव्य सुंदरता नीव की ईंट पर ही ठहरी है ।प्रशासक उन उच्च श्रेणी में आते है जो हमेशा  कर्मचारियों पर बगुले की तरह नजर गड़ाये रहते है । इन्हें विशेषतः उत्पादकता को बढ़ाना तथा कर्मचारियों के कल्याणकारी योजनाओ को सुरक्षित रखना होता है  । जो एक क़ानूनी दाव पेंच के अंदर क्रियान्वित होता या करना पड़ता  है । यह भी एक जटिल क़ानूनी प्रक्रिया के अनुरूप होता है । लेकिन ज्यादातर देखा गया है की प्रशासक इस क़ानूनी प्रक्रिया का दुरूपयोग करते  है जिससे उनकी स्वार्थ सिद्धि हो सके । मेरा अपना अनुभव है की अच्छे प्रशासक बहुत कम हुए है और है । आज कल इन्हें अपने को दायित्वमुक्त व् फ्री रखने की आदत बन गयी है । ये सब उपरोक्त सड़ी हुयी शिक्षा का असर ही तो है । कौन अच्छा अफसर है ? आज कल समझ पाना बड़ा मुश्किल है । आम आदमी यही सोचता है की चलो ये अफसर ख़राब है तो अगला अच्छा है , आगे बढे। काम जरूर हो जायेगा । किन्तु सच्चाई कुछ और ही होती है । 

इसे आप क्या कहेंगे ? 

उस दिन जब बंगलुरु स्टेशन पर  बॉक्स पोर्टर ने मेरे बॉक्स को पटक कर बुरी तरह से तोड़ दिया था । जुलाई 2015 की घटना है । मैंने इसकी सूचना सभी को दी चाहे मेरे मंडल का अफसर हो या बंगलुरु का । फिर भी कोई कार्यवाही नहीं हुयी । मुझे संतोष नहीं हुआ और मैंने फिर एक लिखित शिकायत मंडल रेल मैनेजर बंगलुरु को भेजा । इसकी कॉपी अपने मंडल रेल मैनेजर को व्हाट्सएप्प से भेजा । फिर भी कोई न कारवाही हुयी और न enquiry । शायद छोटी और अपने स्टाफ की शिकायत समझ इस पर कोई कार्यवाही करना किसी ने उचित नहीं समझा । अगर वही हमसे कोई गलती हो जाय तो हमें नाक पकड़ कर बैठाते है । उस पर धराये लगाकर सजा की व्यवस्था तुरंत करते है क्यों की उनके लिए ये आसान है । ऐसे समाज और कार्यालयों  की त्रुटियों को आखिर बढ़ावा कौन दे रहा है ।  शायद हमारे सड़ी हुयी शिक्षा का प्रभाव है । जिसे इन नपुंशक अफसरों की वजह से औए बढ़ावा मिलता है और एक दिन यह एक नासूर बन जाता है । आज कल ऐसे नासूरों का इलाज करना अति आवश्यक हो गया है । आखिर इसका इलाज कौन करेगा ? 

आज हमारे नए प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के कुछ कार्यक्रमो से काफी खुश हूँ क्यों की इन नपुंशको को  एक सठीक इलाज मिलने वाली है । रेलवे ने फिल्ट्रेशन शुरू कर दी है इसके अंतर्गत उन अफसरों पर गाज गिरेगी और उन्हें CR के अंतर्गत निकाल दिया जायेगा जिन्होंने 30 वर्ष सर्विस या 55 वर्ष की उम्र को पूरी कर ली है तथा अच्छे रिकार्ड नहीं है । काश ऐसे नपुंशको पर जल्द गाज गिरे । समाज बहुत सुधर जायेगा और कर्मठ कर्मचारियों के जीवन में एक नए सबेरे का उदय होगा ।

कर्मठ और मेहनत कश मजदूरो को नमस्कार । यह लेख उन मेहनती  कर्मचारी समूह को समर्पित है ।



Monday, January 11, 2016

एक कहानी - मनरेगा ।

सड़क के किनारे वह अधमरा कराह रहा था । उसे किसी की सख्त मदद की जरुरत थी । भीड़ उमड़ता जा रहा था । पर कोई भी मदद के लिए आगे नहीं आ रहा था । यह भी एक सामाजिक कुरीति है ।  लोगो के जबान पर फुस  फुसाहट की ध्वनि आ रही थी । माजरा क्या है ? समझ से बाहर था । हम भीड़ को चीरते हुए आगे बढ़ने को उतावले थे । उस घायल व्यक्ति के नजदीक पहुँच खड़े  थे । कैमरा मैन वीडियो लेने के लिए तैयार उतावला  था वह मेरे अनुमति का इंतजार कर रहा था ।

तभी एक महिला एक छोटे बच्चे को गोद में लिए आयी और उस व्यक्ति के शारीर पर गिर रोने लगी । हमने उस महिला से कुछ पूछने की कोसिस  कि पर वह चिल्लाने लगी  और जोर जोर से  बोली - मैं कहती थी कि बैर मत मोलो । हम भूखे रह लेंगे । पैसे दे दो । हे भगवान कोई तो हमारे ऊपर रहम करो ? हमसे रहा न गया । मैंने उस महिला को अपना परिचय दिया और पूरी जानकारी हासिल करने की एक कोशिश की । पर वह महिला कुछ भी बताने से इंकार कर दिया  । उनके पहनावे और व्यवहार से यही लगता था कि वे बेहद गरीब थे । मीडियावाले है सुनते ही कुछ भी कहने से इंकार कर दी । अगल बगल के लोगो से कुछ जानकारी चाही किन्तु असफल रहा । मामला गंभीर था । हमने कुछ करने की सोंची ।  तभी हमारे पास एक लंबा चौड़ा और बड़ी बड़ी मुच्छो वाला आ खड़ा हुआ । वह गुर्राते हुए बोला । अबे नया नया आया है क्या ? तेरे को समाचार चाहिए । आ मेरे साथ मैं सब कुछ बताऊंगा । मैं उसके मुह को देखने लगा । देखा की भीड़ अपने आप खिसकने लगी । जाहिर था यह कोई यहाँ का दबंग है ।

हम पत्रकारो को कभी कभी आश्चर्य तो होता है पर डर नहीं । जी हम पत्रकार है । हमें इस घटना की जानकारी चाहिए । मैंने कहा । जरूर मिलेगा । आईये मेरे साथ । कह कर वह मुड़ा और हम उसके पीछे हो लिए । अब हम एक बड़ी हवेली के सामने खड़े थे । दरवाजे पर दो लठैत बिलकुल पहरेदार जैसा । हवेली के सामने एक बड़ा आम का बगीचा था वही हमें बैठने के लिए कहा गया । स्वागत सत्कार के बिच उन्होंने हमें सब कुछ बता दिया था । सुन कर पूरी घटना समझ में आई ।ऐसे शासन और जनता के सुविधाओकी धज्जिया उड़ते  कभी नहीं देखा था । उन्होंने बताया की वे इस गांव के मुखिया है । मनरेगा के नाम पर काफी रुपये आते है । गांव वालो को काम के नाम पर जो पैसे आते है उन्हें उसमे से मुखिया को  पैसे देने होते है । सभी के बैंक खाते है । मजदूरी के पैसे सीधे खाते में जाते है । सभी को उसमे से मुखिया को कमीशन देने पड़ते है । मुखिया किसी से कोई काम नहीं करवाता है और सभी का हाजरी बना कर भेज देता है । इसी एवज में कमीशन लेता है । उस व्यक्ति ने कमीशन देने से इंकार कर दिया था । अतः मुखिया के कोप भाजन का शिकार बन गया था । अब समझ में आया मनरेगा का पैसा कैसे बर्बाद होता है और इससे कोई विकास भी नहीं ।

मुखिया हमें मुख्य द्वार तक छोड़ने आया और धीरे से एक सौ की गड्डी हाथ में पकड़ा दी । हमने मनाही की पर वह न माना । कहने लगा - रख लीजिये ये तो एक छोटा सा नजराना है । दिल बेचैन था । कर्तव्य के साथ खिलवाड़ करने का मन कतई नहीं था । एक उपाय सुझा । हम सीधे उस गरीब के घर गए । देखा उसके दरवाजे पर एक्का दुक्का व्यक्ति खड़े थे । उस व्यक्ति की पत्नी दरवाजे पर बाहर बैठी थी । छोटा बच्चा उसे बार बार नोच रहा था । गरीबी ठहाके लगा रही थी । मेरे हाथ एक छोटी सी मदद के लिए उसके तरफ बढे और मैंने उस महिला की ओर उस सौ की गड्डी को बढ़ा दी जिसे मुखिया ने नजराने की तौर पर दी थी । वक्त को करवट बदलते देर न लगा । उस महिला ने उस गड्डी को घुमा कर जोर से दूर फेक दिया । मेरे दरवाजे से चले जाओ मुझे भीख नहीं चाहिए । हम जितना में  है उसी में जी लेंगे ।

मैं हतप्रभ हो देखते रह गया । मैं हार चूका था । हम धनवान होकर भी गरीब थे और वे गरीब होकर भी अमीर क्यों की उनके पास ईमान और इज्जत आज भी बरकरार थी ।

Friday, May 23, 2014

कुशल प्रशासक

मनुष्य किसके अधीन है किस्मत या कर्म , यह कह पाना बड़ा ही कठिन है ।मनुष्य सामाजिक प्राणी है । इसे घर के अंदर परिवार से तो बाहर समाज से सामना करना पड़ता है । हर व्यक्ति के स्वाभाव में हमेशा ही अंतर दिखती है। सभी के कार्य कलाप और व्यवहारिक दिशा भिन्न - भिन्न तरह  की  होती है । कुछ में बदलाव के कारण पारिवारिक  अनुवांशिकता , तो कुछ में स्वतः जन्मी असंख्य सामयिक और बौद्धिक गुण होते  है । यही कारण है कि सभी व्यक्ति अपने - अपने क्षेत्र में विभिन्नता से परिपूर्ण  होते है ।

चोर चोरी के तजुर्बे खोजने में माहिर तो पुलिस चोर को पकड़ने के तिकड़म में सदैव लिप्त रहते है । वैज्ञानिक विज्ञानं कि तो व्यापारी व्यापर लाभ की  । सभी कि मंशा के पीछे स्वयं का हित ही छुपा होता  है । जो इस क्षेत्र के बाहर निकलते है , वही महात्मा कि श्रेणी में गिने जाते है या महात्मा हो जाते है क्योकि उनके अंदर परोपकार कि भावना ज्यादा भरी होती है । पेड़ पौधे अपने फल और  मिठास को दान कर , सबका प्रिय हो जाते है ।

आज - कल सरकारी दफ्तरों को सामाजिक कार्यो से कोई सरोकार नहीं है । दूसरे की भलाई से कुछ लेना - देना नहीं है । जो शासन के पराजय और भ्रष्टाचार का एक विराट रूप ही है ।  इसका मुख्य कारण दिनोदिन हो रहे नैतिक पतन ही तो है । भ्रष्टाचार ही है । अनुशासन हीनता है । एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ है । इस कुबेर की भाग दौड़ में सिर्फ साधारण जनता ही पिसती है । इस प्रथा के शिकार साधारण जन ही होते है । कोई नहीं चाहता कि उसे किसी कार्य हेतु कुछ देने पड़े । एक कार्य के लिए दस बार दौड़ने के बाद स्वतः मनुष्य  टूट जाता है और इस नासूर से छुटकारा पाने के लिए मजबूरन असामान्य पथ  को अखतियार कर लेता   है ।लिपिको के पास कमाई से ज्यादा धन कहाँ से आ जाते  है ? ऑफिसरो के पास अनगिनत सम्पति के सोर्स कौन से है ? घरेलू पत्नी करोडो की मालकिन कैसे हो जाती है ।स्कूल में पढने वाले बच्चे के अकाउंट में लाखो कैसे ?

ऐसे ही परिस्थितियों के शिकार यि. सि. यस राव ( लोको पायलट ) थे । जिनका मन पत्नी के देहांत के बाद अशांत रहने लगा था । कार्य से अरूचि होने लगी थी । इस अशांत मन से ग्रसित हो  गाडी चलाना सुरक्षा की दृष्टि से एक गुनाह से कम नहीं था  । उनका मन नहीं लग रहा था  । अतः उन्होंने यह निर्णय लिया  कीअब  स्वैक्षिक अवकाश ले लेना चाहिए । कई राय सुमारी के बाद दरख्वास्त लगा दिए । इस अवकाश के लिए अधिक से अधिक तीन महीने ही लगते है । तीन महीने भी गुजर गए , पर अवकाश की स्वीकृति का पत्र नहीं आया । एक लिपिक से दूसरे लिपिक , एक चैंबर से कई चैंबर काट चुके । बात  बनती नजर नहीं आई । दोस्तों से आप बीती सुनाते  रहे । सुझाव मिली , कुछ दे लेकर बात सलटा लीजिये । किन्तु सदैव अनुशासन की पावंद रहने वाला व्यक्तित्व भला ये कैसे कर सकता था । उन्होंने और अन्य साथियो ने मुझसे इस केश को देखने का आग्रह किये ।

यह शिकायत हमारे समक्ष आते ही लोको रनिंग स्टाफ  का मंडल सचिव होने के नाते मेरी और संगठन की  जिम्मेदारी बढ़ गयी । अपने अध्यक्ष के साथ  मै इस केश में जुट गया । लिपिक और कुछ कनिष्ट ऑफिसरों से मिलने के बाद पता चला की यि. सि. यस राव के सर्विस रिकार्ड्स के कुछ डाक्यूमेंट्स गायब थे । इसी की वजह से केश पेंडिंग था । हम कनिष्ट पर्सनल अफसर से जाकर मिले । उसने वही बात दुहरायी । हमने कहाकि डॉक्यूमेंट आप के कस्टडी में था , फिर पेपर गायब कैसे हुए ? जैसे भी हो इस महीने में अवकाश पत्र मिल जाने चाहिए , अन्यथा वरिष्ठ ऑफिसरों से शिकायत करेंगे । उस अफसर के कान पर जू तक न रेंगा । महीने का आखिरी दिन भी चला गया ।

हमने एडिशनल मंडल रेल प्रबंधक श्री राजीव चतुर्वेदी जी से शिकायत की । राजीव जी बहुत ही नम्र किन्तु अनुशासन प्रिय अफसर थे । हमने सोंचा  की ये भी दूसरे अन्य  ऑफिसरों  की तरह कहेंगे - ठीक है केश देखूंगा और केश जस का तस डस्ट बिन में पड़ा रहेगा । पर यह धारणा  बिलकुल गलत साबित हुई  । उन्होंने तुरंत उस कनिष्ट पर्सनल अफसर को हमारे सामने ही तलब  किया । वह अफसर आया और हमें  यहाँ देख , उसे मामले की गंभीरता  समझते देर न लगी । ADRM  साहब ने उनसे पूछा -यि. सि. यस राव का केश क्यों पेंडिंग है । वह अफसर शकपकाया और कहा - सर एक हफ्ते में पूरा हो जायेगा । तब श्री राजीव चतुर्वेदी जी ने उन्हें हिदायत दी -  " लोको पायलट बहुत ही परिश्रमी कर्मचारी हैं । उन्हें हेड क्वार्टर में आराम की जरूरत होती है । मै नहीं चाहता कि कोई भी लोको पायलट अपने ग्रीवेंस के लिए आराम के समय ऑफिस का चक्कर काटें ।  आप खुद लोको पायलट होते , तो किस चीज की आकांक्षी होते  ? "

न्याय के इस विचित्र पहलू से हमें भी हैरानी हुयी , क्योकि इस तरह के अफसर बहुत काम ही मिलते है । हमने ADRM  साहब  धन्यवाद दी । कुछ ही दिनों में सफलता मिली और यि. सी यस राव का स्वैक्षिक अवकाश का पत्र समयानुकूल आ गया । यह एक कुशल प्रशासक के नेतृत्व का कमाल था । चतुर्वेदी जी के स्वर हमेशा गूजँते रहे । हमने ग्रीवेंस रजिस्टर की माँग तेज की , जो प्रत्येक लॉबी में होनी चाहिए ।  आज सभी लॉबी में ग्रीवेंस रजिस्टर उपलब्ध है । ऐसे सच्चे ईमानदार प्रशासको को नमन । 

Friday, July 26, 2013

लघु कथा - धीमे चलिए , पुल कमजोर है

कौड़ी के मोल जमीन खरीदकर हीरे के दाम पर  ठेकेदारी बेंची जा रही थी । बड़े ओहदे वाले लाल -लाल हो रहे   थे . नीतीश को अभियंता हुए कुछ ही दिन हुए थे . एक समय था , जब उन्हें बाजार पैदल चलकर ही जाना पड़ता था . आज उसके पास सब कुछ है . दो कारे  , कई दुपहिये और निजी पसंद के बंगले में  कई नौकर चाकर . आस पडोश वाले  शान देख हैरान थे . 


कहते है - जब उसकी नौकरी लगी ,  सभी ने उसकी  उपरवार कमाई के बारे में जानने की कोशिश की थी . नीतीश बहुत इमानदार प्रवृति का था . यह कह कर बात टाल देता की सरकारी तनख्वाह काफी है . साथी कहते कि सरकारी तनख्वाह तो ईद का चाँद है यार . वह झेप जाता था . 


परिस्थितिया बदलती चली गयी . ईमानदारी बेईमानी में बदल गयी . नीतीश  इतना बदल गया कि उसे सरकारी तनख्वाह कम पड़ने लगे . अंग्रेजो द्वारा बनायीं हुयी पुल को तोड़ दिया गया , जिसके ऊपर अभी भी ७५ किलो मीटर की गति से बसे चलती थी . नए पुल का निर्माण किया गया . करोड़ो रुपये लगाये गए . धूमधाम से उदघाटन हुए थे और पुल के दोनों किनारों पर ,एक वर्ष के भीतर ही सूचना बोर्ड लग  गया था . जिस पर लिखा था - 

" धीमे चलिए , पुल कमजोर है "


Monday, March 4, 2013

अंक की बिंदिया

कहते है -जो होनी है , वह जरूर होगी | जो हुआ , वह भी ठीक  था  | अथार्थ हर घटना के पीछे कुछ न कुछ कारण होते ही है | पछतावा ,मात्र संयोग रूपी घाव ही है | घटनाओं के अनुरूप सजग प्रहरी , कुछ न कुछ विश्लेषण निकाल  ही लेते है | जो मानव को उसके शिखर पर ले जाने के लिए पर्याप्त होती है | हमें इस संसार में    विभिन्न  परीक्षाओ से गुजरने पड़ते है ,उतीर्ण या अनुतीर्ण , हमारे कर्मो की देन है | 

मन की अभिलाषाएं -असीमित  है | इस असंतोष की  भंवर में जो भी फँस गया , उसे उबरने की आस कम ही होती है | संतोष ही परम धन है | मैंने  अपने  जीवन में सादा  विचार और सादा  रहन - सहन को अहमियत दी है | सदैव पैसे अमूल्य ही रहे है | यही वजह था की उच्च शिक्षा  के वावजूद भी १९८७ में फायर मेन के तौर पर रेलवे की नौकरी स्वीकार की थी | वह एक अपनी  इच्छा थी | उस समय की ट्रेनों को देख मन में ललक होती थी , काश मै भी ड्राईवर होता | किन्तु वास्तविकता से दूर | मुझे ये पता नहीं था कि फायर मेन को करने क्या है ? ड्राईवर का जीवन कितना दूभर है ?

इस नौकरी में आने के बाद , इसकी जानकारी मिली | स्टीम इंजन के साथ लगना पड़ा था | कठिन  कार्य | श्रम करने पड़ते थे | इंजन के अन्दर कोयले के टुकडे को डालना , वह भी बारीक़ करके | कभी - कभी मन में आते थे कि नाहक प्रधानाध्यापक की नौकरी छोड़ी | चलो वापस लौट चले ? पर  दिल की  ख्वायिस और  इच्छा के आगे  घुटने टेकने पड़े थे | मनुष्य उस समय बहुत ही दुविधा  का शिकार हो जाता  है , जब उसके सामने  बहुत सी सुविधाए और अवसर के  मार्ग उपलब्ध हो  |    

मेरे लिए गुंतकल एक नया स्थान था |  मैंने अपने जीवन में इस जगह के नाम को  कभी नहीं सुना था | भारतीय मानचित्र के माध्यम से  -इस जगह को खोज निकाला  था | वह भी दक्षिण भारत | एक नए स्थान में अपने को स्थापित करने की उमंग और आनंद ही कुछ और होते  है | बिलकुल नए घर को बसाना , अपनी दुनिया और प्यार को संवारना  |  बिलकुल एक नयी अनुभव | एक वर्ष के बाद ही पत्नी  को साथ रख लिया था | बिलकुल हम और सिर्फ हम दोनों , इस नयी जगह और  नयी दुनिया के परिंदे | कोई संतान नहीं | नए जीवन की शुरुआत और अपने ढंग से सवारने में मस्त थे | उस समय की  कोमल और अधूरी यादें मन को दर्द और  प्रेरणा मयी जीने की राह प्रदान करती   है | 

उस दिन की काली कोल सी  , काली भयावह रातें  कौन भूल सकता है | जो ड्राईवर या लोको पायलटो के जीवन का एक अंग है | भयावह रातें , असामयिक परिस्थितिया , अनायास  दर्द ही तो उत्पन्न  कराती है | परिजनों से दूर , सामाजिक कार्यो से विरक्तता , वस् एक ही दृष्टि सतत आगे सुरक्षित चलते रहना है और चलते रहने के लिए सदैव तैयार बने रहो  | हजारो के जीवन की लगाम इन प्यारी हाथो में बंधी होती है |

 उस दिन मै एक पैसेंजर ट्रेन ( स्टीम इंजन से चलने वाली  ) में कार्य करते हुए , हुबली से गुंतकल को आ रहा था | संचार व्यवस्था सिमित थी  | संचार को गुप्त रखना भी एक मान्यता थी | रात  के करीब नौ बजे होंगे ,गुंतकल पहुँच चुके थे | शेड में साईन ऑफ करने के लिए जा रहा था | सामने पडोसी महम्मद इस्माईल जी ( जो ड्राईवर ट्रेंनिंग स्कूल के इंस्ट्रक्टर भी थे ) को देख अभिवादन किया | साईनऑफ हो गया हो तो हाथ मुह धो लें - उन्होंने मुझसे कहा  | यह सुन दिल की धड़कन बढ़ गयी | आखिर ये ऐसा क्यूँ कह रहे है ? आखिर इस वक़्त इनके यहाँ आने की वजह क्या है ? मन में तरह - तरह की शंकाएं हिलोरे  लेने लगी | मैंने उनसे पूछ - अंकल क्या बात है ? उन्होंने कहा - कोई बात नहीं है , आप की पत्नी की  तवियत ठीक नहीं है | वह अस्पताल में भरती है |

अब हाथ - मुहं कौन धोये | तुरंत अस्पताल को चल दिए | अस्पताल बीस मीटर की दुरी पर ही था | महिला वार्ड में पत्नी -बिस्तर पर लेटे हुए थी | पास में ही महम्मद इस्माइल जी की पत्नी खड़ी थी | उनके चेहरे पर भी दुःख के निशान नजर आ रहे थे  | पत्नी मुझे देख मुस्कुरायी और धीमे से हंसी | जैसे कह रही हो , मेरी ही गलती है | मै दृश्य को समझ चूका था | एक पूर्ण  औरत की ख़ुशी और उसके अंक  की पहली बिंदी गिर चुकी थी | आँखों में पानी भर आयें | मेरे आँखों में पानी देख पत्नी के हौसले भी ढीले पड़ गएँ , उसके भी  आँखों में आंसू भर आयें  |  दिल के गम को बुझाने के लिए , आंसू की लडिया लगनी वाजिब थी | महम्मद इस्माईल की पत्नी दोनों को संबोधित कर बोलीं - आप लोग दुखी मत होवो , घबड़ाओ मत , अभी जीवन बहुत बाकी है | 

एक दूर अनजान देश में , जहाँ अपने करीब नहीं थे , परायों ने अपनत्व की वारिस की | हम अलग हो सकते है , पर अगर दिल में थोड़ी भी  मानवता है  , तो हमें नजदीक खीच लाती  है | उस समय की असमंजस भरी ठहराव , दृढ संकल्प और कुछ कर सकने की दिली तमन्ना , आज उपुक्त परिणाम उगल रही  है | आज हम दो और हमारे दो है | फायर मेन से उठकर सर्वोच शिखर पर पहुँच राजधानी ट्रेन में कार्य करने की इच्छा पूर्ण हुयी है | आज अनुशासन भरी जिंदगी , एक उच्च कोटि के अभियंता से ऊपर  सैलरी  और जहाँ - चाह  वही राह के मोड़ पर खड़ी जिंदगी , से ज्यादा जीवन में और कुछ क्या चाहिए  ?

 अपने लगन और अनुशासन के बल पर जीवन जीना और इसके अनुभव की खुशबू ही  अनमोल है | आयें हम सब मिल कर , अनुशासन के मार्ग पर चलते हुए , एक नए भारत की सृजन करें | जहाँ भ्रष्टाचार का नामोनिशान न हो | 

Saturday, February 16, 2013

बिल्ली के गले में घंटी बांधे


Corruption easily could be removed.Bail the cat . It is necessary to change the model of currency above Rs.100/- and allow citizen to exchange old Note with New Note through Banks within one month.There by huge hiding currency in hide houses of big bulls will get fused. If the corrupted  are comes out with their huge black currency ,they would be catch by different laws of the land. Are Govt ready ? Provided a smile in your's children future.

घुश्खोरी आसानी से मिट सकती है |बिल्ली के गले में घंटी बांधे  |१०० रुपये के ऊपर के सभी नोटों के प्रकार को बदल दें और नागरिको को  एक महीने के अन्दर पुराने नोटों को नए नोटों में  बैंक से बदल लेने  की सूचना दी जाए | इससे यह होगा की अथाह नोट के पुलिंदे , जो घुसखोरो के घरो में छिपे हुए है , बेकार हो जायेंगे | यदि घुसखोर अपने नोटों के साथ बाहर  आते है तो देश के  विभिन्न नियमो के अनुशार पकडे जायेंगे | क्या सरकार तैयार है ? अपने बच्चो के भविष्य पर चार चाँद लगाये |

Friday, January 11, 2013

रेल बचाओ अभियान -कल्याण

 5वीं  और 6वीं  जनवरी 2013  को महाराष्ट्र के कल्याण शहर में आल इण्डिया  लोको रंनिंग स्टाफ एसोसिएशन के केन्द्रीय कार्यकारिणी  की बैठक अफसर क्लब /कल्याण में  हुयी । इस सभा में भारतीय रेल के सभी क्षेत्रीय सचिव और केन्द्रीय सदस्यों ने शिरकत की । इस सभा में निम्नलिखित विषयों पर चर्चा हुयी - 

1) संगठनात्मक   पोजीशन । NIT से सम्बंधित केन्द्रीय कोटा । ईस्ट  कोस्ट रेलवे खुर्दा  रोड के लोको पायलटो की कल्याणकारी कोष ।
2) केन्द्रीय औध्योगिक ट्रिब्यूनल (NIT ) और उससे सम्बंधित विषय ।
3)पिछले  निर्णय और उनके कार्यान्वयन तथा हमारे कदम ।
4) और कोई विषय , अध्यक्ष की आदेशानुसार ।

स्वर्गीय आई के गुजराल ( भुत पूर्व प्रधान ) ,सितार वादक स्वर्गीय रवि शंकर , शिव सेना सुप्रीमो स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे और बलात्कार के शिकार दिल्ली की पीडिता लड़की दामिनी  ( बदले हुए नाम ) के याद में एक मिनट का मौन रखते हुए ,  सभा  की शुरुवात अखिल भारतीय महासचिव कॉम . एम् एन प्रसाद जी  के अभिभाषण से शुरू हुयी ।  उन्होंने रेलवे के मान्यताप्राप्त AIRF /NFIR  ट्रेड संगठनो के दोहरे रवैये पर चिंता जाहिर की ।ये ट्रेड संगठन रेलवे के भाडा बढ़ने के पुर जोर पैरवी कर रहे है  किन्तु 300 से ज्यादा अनावश्यक अफसरों के बिना वर्क शैलरी लेने का विरोध नहीं कर रहें है । CAG  के अपने रिपोर्ट के अनुसार रेलवे में सबसे ज्यादा  भ्रष्टाचार व्याप्त है । अच्छे -अच्छे  भवनो को तोड़ , अनावश्यक निर्माण और ठेकेदारी से पैसे उगाहने का चलन जोरो पर है । जब -तक हम कमजोर रहेंगे , हमारी मांगे नहीं मिलेगी । आज सरकार और इसके ठेकेदारों में भ्रष्टाचार व्याप्त है । साधारण जन मानस त्रस्त  है । हमें अपने संगठन को हर शिखर पर मजबूत बनाने होंगे , तभी लंबित मांगे मिल सकती है । AILRSA ही वह संगठन है जो लोको पायलटो की हित की बात करती है । रेलवे करीब 2 00 करोड़ रुपये मान्यताप्राप्त संगठनो पर खर्च करती है । इससे यह जग जाहिर है की वे सरकार के नीतियों के खिलाफ नहीं जायेंगे । यही वजह है की हमने पिछले कई वर्षो से रेल बचाओ अभियान  छेड़ रखी है । इसे तीब्र गति देने की जरूरत है ।  प्रसाद जी ने सभी को सचेत करते हुए कहा की हमें हर लेबल पर लडाई लड़नी पड़ेगी और मजदूर विरोधी संगठनो से सावधान रहना पड़ेगा । 

कोलकत्ता से आये कॉम एन सरकार जी ने सभा की अध्यक्षता की ।

                   कॉम जित सिंह टैंक - केन्द्रीय कोसध्यक्ष जी ने वर्ष 2012 की वित्त रिपोर्ट पेश की ।
 कॉम कोपरकर जी ने कहा की आज हमारे अनवरत आन्दोलन के कारन ही NIT  का गठन हो सका है ।रेलवे NIT  और लेबर मिनिस्ट्री को अपने पक्ष में प्रभावित करने की कोशिश में है । जब जज साहब ने एक्स-पार्टे की निर्णय सुनाने वाले थे , तब रेलवे आया और कोर्ट की कार्यवाही में भाग लेने की मंशा जाहिर की है । जज साहब ने इसे लिखित रूप में माँगा है । दोस्तों रेलवे के नियत में खोंट है । हम अपने निर्णय को 07 जनवरी 2013 को जज साहब को बताएँगे । आज लोको पायलटो को 12/16 घंटा रेस्ट न देकर , उन्हें 10/14 घंटे में ड्यूटी पर बुलाया जा रहा है । जो विरोध  करते है , उन्हें अधिकारीयों के कोप भाजन  का शिकार होना पड़ता है । आज PIL की जरुरत है । सरकार ऐसे सुनने वाली नहीं है । सहायक लोको पायलटो और लोको पायलटो के सैलरी / भत्ते में काफी  अंतर के वावजूद भी सजा बराबर क्यों ? आज रेलवे के अफसर अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल कर रहे है ।
                           पूर्वी रेलवे से आये सिंह जी ने अपने मंडल के हरासमेंट को उजागर किया ।
पश्चिम रेलवे जो अगले अखिल भारतीय सम्मलेन को आयोजित करने वाला है , ने पैसे की चिंता जाहिर की ।

                                                         कॉम जोमी जोर्ज मेरे साथ ।
दक्षिण रेलवे के महासचिव जोमी जोर्ज ने सभी को आगाह करते हुए कहा की हमें NIT  के भरोसे चुप नहीं बैठना चाहिए । आज रेलवे अपने ही नियम को इम्प्लीमेंट नहीं कर रही है ।  आज हमें SPAD ( सिग्नल पासिंग एट डेंजर ) के सुझाओ को इम्प्लीमेंट करवाने के लिए आन्दोलन जारी रखने की जरूरत है । कॉम जोर्ज ने कुछ सुझाव और जानकारिय बतायीं -

क )  MACP के बारे में जो जजमेंट / एर्नाकुलम  कोर्ट ने दी है , वह फिलहाल हाई कोर्ट में है ।
ख )  ट्रेड यूनियन के इलेक्शन के समय , हम AIRF /NFIR   को मदद  न करें  ।
ग )  हमारे रंनिंग भत्ते पर  25%  बढ़ोतरी होने के बाद , हमारे दस हजार रुपये के रंनिंग अलाउंस के छुटपर               भी 25% की बढ़ोतरी होनी चाहिए ।
घ )  CCC /CC  का पोस्ट रनिंग स्टाफ का है , सुपरवयिजरो की नियुक्ति बर्दाश्त नहीं । ये पद रनिंग कर्मियों से भरी जानी चाहिए  ।अतः लेटेस्ट सर्कुलर  रद्द की जाय ।
च ) PR /Judgement   जो  कर्नाटक  हाई कोर्ट ने दी है , इसे पास करने के लिए प्रयत्न जरुरी है ।
छ ) कॉम पांडियन /मदुरै का सफल  CONCILIATION  RLC /MAS में पेंडिंग है । रेलवे शरीक नहीं हो रही है । ऐसा कब तक चलेगा ।
ज )  तत्काल टिकट  PASS /PTO  पर  भी मिलनी चाहिए ।

दक्षिण मध्य रेलवे के तरफ से अपने विचार  रखते हुए कॉम जी एन शॉ  ने दक्षिण रेलवे के सुझाव का भरपूर सपोर्ट  किये । अपने कार्यकर्ताओ को  जानकारी  हेतु ट्रेड यूनियन  क्लास के आयोजन पर प्रकाश डालें   । AILRSA के ऐतिहासिक कार्यकलापो पर बुक प्रकाशन की आवश्यकता बतायीं । रेलवे में बोनस को बैंक के माध्यम से ही दिया जाना चाहिए । ट्रेड यूनियन के चुनाव में AIRF /NFIR के बजाय किसी  तीसरे को चुनना जरुरी है ।
दक्षिण पश्चिम रेलवे के सी सुनिस ने 19 वि अखिल भारतीय सम्मलेन के बंगलुरु में सफलता के लिए सभी के सहयोग का  आभार व्यक्त कियें तथा अपने जोन में कार्यान्वित  विभिन्न आंदोलनों का जिक्र किया । उन्होंने सभी से अनुरोध की कि सब लोग अपने जोन / मंडल के समाचार को फायर पत्रिका  में प्रकाशन हेतु समय से भेंजे ।
रविचंद्रन /मद्रास ने NIT को सरकारी गजट में प्रकाशित न होने पर चिंता जताई । उन्होंने  PME  के दौरान फिट सर्टिफिकेट तक की पूरी अवधी को ड्यूटी माने जाने की सफलता की घटना को उजागर किया । इस सभा के प्रमुख वक्ता---
                                                           कॉम मोरे ( भुसावल) ,
                                                           कॉम  मूर्ती ( सिकंदराबाद ),
                                                           कॉम एम् पि देव ( नागपुर ),
                                                                  कॉम ठाकुर ,
                                                      कॉम के सी जेम्स ( पलक्काड  ),
                                                        कॉम डी  के साहू ( झरसगुदा ),
                                                         कॉम मनोज कुमार ( sealdah ),
                                                 कॉम एम् एम् रोल्ली (त्रिवेंद्रम ),
                                               कॉम एस के चौबे ( विशाखापत्तनम ),
                                                 कॉम राम प्रसाद बिश्मिल ( गोरखपुर ),
                                                   कॉम लूना राम सियागी (कोटा )
 इत्यादी ने भी अपने - अपने विचार रखते हुए सभा को  संबोधित किया । संक्षेप में कहें तो  यह केन्द्रीय कार्यकारिणी की सभा भरपूर सफल रही । अगली केन्द्रीय कार्यकारिणी भोपाल में होने की संभावना है ।
Some of decision were adapted in this meeting , which should be implemented accordingly-

Sunday, May 20, 2012

बंगलुरु में सिसकती रही जिंदगी ......

थोड़ी सी बेवफाई ....के बाद आज आप के सामने हाजिर हूँ  ! स्कूल के बंद होने और यात्राओ पर  जाने के  दिन  , शुरू हो गए है ! ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ ! नागपुर गया वाराणसी गया , बलिया गया और बंगलुरु की याद और संयोग वापस खींच ले आई ! कारण  ये थे की लोको चालको की उन्नीसवी अखिल भारतीय अधिवेसन , जो बंगलुरु में  सोलह और सत्रह मई को निश्चित था , में  शरीक होना था   ! पडोसी जो ठहरा ! एक तरह से वापसी अच्छी ही रही !  माथे  की गर्मी और  पसीने से निजात  मिली ! उत्तर और दक्षिण भारत के गर्मी में इस पसीने की एक मुख्य भूमिका  अंतर  के लिए काफी है !

                                                ज्ञान ज्योति आडिटोरियम / बंगलुरु
बंगलुरु जैसे मेगा सीटी में इस अधिवेशन का होना , अपने आप में एक महत्त्व रखता है ! देश के -कोने - कोने से सपरिवार लोको चालको का आना स्वाभाविक था  और इससे इस अधिवेशन में चार चाँद लग गए ! इसके सञ्चालन की पूरी जिम्मेदारी दक्षिण-पच्छिम रेलवे के ऊपर थी और दक्षिण तथा दक्षिण मध्य रेलवे की सहयोग  प्राप्त थी !

इस अधिवेशन में चर्चा  के  मुख्य विषय थे  --
1) अखिल भारतीय कार्यकारिणी का नए सिरे से चुनाव
2) पिछले सभी कार्यक्रमो की समीक्षा
3)लंबित समस्याओ के निराकरण के उपाय
4)संगठनिक कमजोरी / उत्थान के निराकरण / सदस्यों में प्रचार
5) छठवे वेतन आयोग के खामियों के निराकरण में आई कठिनाईयों और बाधाओं का पर्दाफास
6)सभी लोकतांत्रिक शक्तियों के एकीकरण के प्रयास में आने वाली बाधाओं पर विचार
7)नॅशनल इंडस्ट्रियल त्रिबुनल और अब तक के प्रोग्रेस .
8) चालको के ऊपर दिन प्रति दिन  बढ़ते . दबाव और अत्याचार
वगैरह - वगैरह ..

                                                        आडिटोरियम का मंच 
इस अधिवेशन को  उदघाटन  कामरेड  बासु देव आचार्य जी ने अपने भाषणों से किया ! उन्होंने कहा की सरकार श्रमिको के अधिकारों के हनन में सबसे आगे है ! आज श्रमिक वर्ग चारो तरफ से , सरकारी  आक्रमण के शिकार हो रहे  है ! उनके अधिकारों को अलोकतांत्रिक तरीके से दबाया जा रहा है ! अधिवेशन के पहले दिन विभिन्न संगठनो के नेताओ  ने अपने विचार रखे ! सभी नेताओ ने सरकार की गलत नीतियों की बुरी तरह से आलोचना की ! चाहे महंगाई हो या रेल भाड़े की बात , पेट्रोल की कीमत हो या सब्जी के भाव ! 99% जनता त्रस्त  और 1% के हाथो में दुनिया की पूरी सम्पति ! गरीब और गरीब , तो अमीर और अमीर !

 दोपहर भोजन के बाद बंगलुरु रेलवे स्टेशन से लेकर ज्ञान ज्योति आडिटोरियम तक मास रैली निकाली  गयी , जिसमे हजारो सदस्यों  ने भाग लिया !

                                        बंगलुरु स्टेशन से आगे बढ़ने के लिए तैयार रैली !

                                    रैली के सामने कर्नाटक के लोक नर्तक , अगुवाई करते हुए !

राजस्थान से आये इप्टा के रंग कर्मियों ने भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा लिखित अंधेर नगरी , चौपट राजा  के तर्ज पर - आज के रेलवे की हालत से सम्बंधित नाटक का प्रदर्शन किया ! 


दुसरे दिन डेलिगेट अभिभाषण में चालक सदस्यों ने  कुछ इस तरह के मुद्दे सामने  प्रस्तुत किये , जो काफी सोंचनीय है --

(1)  लोको चालको को  इस अधिवेशन से दूर रखने और भाग न लेने के लिए , भरसक हथकंडे अपनाये गए ! कईयों की  डेपो में  मुख्य कर्मीदल निरीक्षक के द्वारा छुट्टी पास  नहीं  हुयी  !

(2)  कई डेपो में लोको चालको को साप्ताहिक रेस्ट नहीं दिया जा रहा है , क्योकि गाडियों को चलाने  के लिए  प्रशासन के पास अतिरिक्त चालक नहीं है ! बहुतो को लिंक रेस्ट भी डिस्टर्ब हो जाते है ! कारण गाड़िया तो नहीं रुक सकती ! माल गाडी के चालको को पंद्रह से   बीस घंटो तक कार्य करने पड़ते है ! समय से कार्य मुक्त नहीं हो पाते  है ! कईयों को रिलीफ पूछने पर चार्ज सीट के शिकार होने पड़े है ! अफसरों की मनमानी चरम सीमा पर है ! चालको के परिवार एक अलग ही  घुटन भरे जीवन जी रहे  है ! घर वापस आने पर बच्चे सोये या स्कूल गए मिलते है ! पारिवारिक / सामाजिक जीवन से लगाव  दूभर हो गए है ! "  पापा कब घर आयेंगे ? " - पूछते हुए बच्चे माँ के अंक में सो जाते है ! चालको की पत्त्निया हमेशा ही मानसिक और शारीरिक बोझ से  दबी रहती है ! घर में  सास - ससुर और बच्चो की परवरिश की जिम्मेदारी इनके ऊपर ही होती है ! अजीब सी जिंदगी है !

अणिमा दास  ( स्वर्गीय एस. के . धर , भूतपूर्व सेक्रेटरी जनरल /ऐल्र्सा की पत्नी सभा को संबोधित करते ह !)  इन्होने लोको चालको के पत्नियो से आह्वान किया की वे अपने पति के मानसिक तनाव को समझे तथा सहयोग बनाये रखे !

(3 अस्वस्थता की हालत में रेलवे हॉस्पिटल के डाक्टर चालको को मेडिकल छुट्टी पर नहीं रख रहे है ! उन्हें जबरदस्ती वापस विदा  कर देते है ! परिणाम -कईयों को ड्यूटी के दौरान मृत्यु /ह्रदय गति  रुकने से मौत तक हो गयी है ! डॉक्टर घुश खोर हो गए है !

(4) चालको के डेपो इंचार्ज ...मनमानी कर रहे है , उनके आवश्यकता के अनुसार  उनकी बात न मानने पर , तरह - तरह के हथकंडे अपना कर परेशान  करते है ! इस विषय पर एक कारटून प्रदर्शित किया गया था -जैसे =
" सर दो दिनों की छुट्टी चाहिए !" - एक लोको चालाक मुख्य कर्मीदल निरीक्षक से आवेदन करता है ! करीब  सुबह के नौ बजे !
" दोपहर बाद मिलो !" निरीक्षक के दो टूक जबाब !
लोको चालक दोपहर को ऑफिस में गया और अपनी बात दोहरायी !
" शाम को 5  बजे आओ !" निरीक्षक ने संतोष जताई !
बेचारा लोको चालक 5 बजे के बाद ऑफिस में गया ! निरीक्षक की कुर्सी खाली  मिली !
ये वास्तविकता है !

(5) चालको के अफसर भी कम नहीं है ! अनुशासित को दंड और बिन - अनुशासित की पीठ थपथपाते है ! अलोकतांत्रिक रवैये अपना कर ,चार्ज सीट दे रहे है ! छोटे - छोटे गलतियों के लिए मेजर दंड दिया जा रहा है !  डिसमिस  / बर्खास्त  उनके हाथ के खेल  हो गए है ! कितने तो पैसे कमाने के लिए चार्ज सीट दे रहे है !

(6) सिगनल लाल की स्थिति में पास करने पर ..सीधे चालको को बर्खास्त किया जा रहा है ,बिना सही कारण जाने हुए ! जब की कोई भी चालक ऐसी गलती नहीं करना चाहता  ! इसके पीछे कई कारण होते है ! अपराधिक क्षेत्र में सजा के अलग - अलग प्रावधान है , पर चालको के लिए कारण जो भी हो , सजाये सिर्फ एक --बर्खास्त / डिसमिस  ! सजा का एक घिनौना रूप !


(7) कई एक रेलवे में लोको चालको को बुरी तरह से परेशान  किया जा रहा है ! बात - बात पर नोक - झोंक !

(8) रेलवे में घुश खोरी अपने चरम पर है ! अफसर बहुत ही घुश खोर हो गए है ! उनके पास रेलवे से एकत्रित की गयी अकूत सम्पदा है ! सतर्कता विभाग लापरवाह है ! घुश खोरी का मुख्य मार्ग ठेकेदारी है , जिसके माध्यम से घुश अर्जित किये जाते है ! यही वजह है की ठेकेदारी जोरो पर है !

(9) अस्पतालों,रेस्ट रूम और खान-पान व्यवस्था बुरी तरह से क्षीण हो चुकी है ! लोको चालक इनसे बुरी तरह परेशान है ! शिकायत कोई सुनने वाला नहीं है ! शिकायत  सुनने वाला  घोड़े बेंच कर सो रहा है !

(10) रेलवे का राजनीतिकरण हो गया है ! राज नेता इसे तुच्छ स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करने लगे है ! कुछ दिनों में इसकी हालत इन्डियन वायु सेवा  जैसी हो जाएगी ! यह एक गंभीर समस्या है !

  और भी बहुत कुछ भारतीय व्यवस्था के ऊपर करारी चोटें   हुयी , जो सभी को रोजाना प्रत्यक्ष दिख रहा है !

सभी के प्रश्नों का जबाब देते हुए काम. एम्.एन. प्रसाद सेक्रेटरी जनरल ने कहा की आज सभी श्रमिक वर्ग को सचेत और एकता बनाये रखते हुए ...आर - पार की लडाई लड़नी  पड़ेगी   !

अधिवेशन  के आखिरी में नए राष्ट्रिय कार्यकारिणी का चुनाव हुए ! जिसमे एल.मणि ( राष्ट्रिय अध्यक्ष ),एम् एन प्रसाद (राष्ट्रिय सेक्रेटरी ) और जीत  सिंह टैंक ( राष्ट्रिय कोषाध्यक्ष ) निर्विरोध चुने गए !
                                                   सजग प्रहरी एक चौराहे पर  



Wednesday, February 15, 2012

नीयत में खोट !

                                                            इन्द्रधनुष  के सात रंग

दुनिया के इतिहास में ....चौदह फरवरी का दिन बहुत ही मायने रखती है ! बच्चो  से लेकर... क्या बुड्ढ़े  ?  सभी अपने - आप में मस्त , प्रायः पश्चिमी देशो में ! कोई भी त्यौहार ..हमें भाई चारे और सदभावनाए  बिखेरने  , एक दुसरे को प्यार से गले लगाने या इजहार करने के सबक देते है ! किसी भी तरह के त्यौहार / पर्व में हिंसा का कोई स्थान नहीं है ! चाहे वह किसी भी जाति /धर्म /मूल /देश - प्रदेश के क्यों न हों !  आज - कल हम  इस क्षेत्र में कहाँ तक सफल हो पाए है . यह सभी के लिए चिंतनीय और विचारणीय विषय है ! आये दिन -सभी जगह हिंसा और व्यभिचार अपना स्थान लेते जा रहा है !

अब आयें विषय पर ध्यान केन्द्रित करते है ! कहते है  जो जैसा  बोयेगा , वो  वैसी  ही फसल कटेगा ! जैसा अन्न - जल खायेंगे , वैसी ही बुद्धि और विचार भी प्रभावित होती है ! ! जैसी राजा , वैसी प्रजा ! जैसी ध्यान वैसी वरक्कत ! यानी व्यक्ति का गुण ... हमेशा  उसके प्रकाश / बिम्ब को ...दुसरे के सामने प्रकट कर ही देता है ! हर व्यक्ति में एक छुपी हुयी आभा होती है ! जो उसके स्वभाव को प्याज के छिलके के सामान ...उधेड़ कर प्रदर्शित करती है ! 

कल प्यार  और मिलन का दिन बीत गया ! वह भी अजीब सी थी ! मै कल ( १४-०२-२०१२ ) सिकंदराबाद में था ! सुना था और आज साक्षी पेपर में छपा हुआ मिला - की हमारे मंडल का  एक कर्मचारी संगठन ( दक्षिण मध्य रेलवे एम्प्लोयी यूनियन ) ने मंडल रेल मैनेजर के कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन किया था ! उनकी मांग यह थी की रायल सीमा एक्सप्रेस , जो रोजाना - तिरुपति से हैदराबाद जाती है... को लिंक संख्या -२ में जोड़ दिया जाय ! यह ट्रेन फिलहाल लिंक संख्या -४ में है ! लिंक संख्या दो - सुपर फास्ट ट्रेनों की लिंक है , जो वरिष्ठ लोको पायलटो के द्वारा कार्यरत है ! रायलसीमा एक्सप्रेस फास्ट पैसेंजर ही समझे !
अब प्रश्न यह उठता है की ऐसा क्यों ? 

 उपरोक्त यूनियन कांग्रेस समर्थित है ! लिंक संख्या दो में ज्यादातर उसके समर्थक नहीं है ! रायलसीमा को गुंतकल से हैदराबाद लेकर जाना काफी कष्ट प्रद है ! वह ( यूनियन ).. अन्य यूनियन के  समर्थको को सबक सिखाना चाहती है ! उसने अपने पेपर स्टेटमेंट में कहा है- की हमने लिंक दो में रायलसीमा को जोड़ने के लिए हस्ताक्षर किये थे , फिर यह लिंक चार में कैसे जुट गया ! मंडल यांत्रिक इंजिनियर लापरवाह हैं ! वह अपनी मर्जी को कर्मचारियों के ऊपर थोप रहे हैं !....वगैरह - वगैरह !

लिंक क्या है ? 
 कई ट्रेन के समूह को संयोजित रूप में इकट्ठा कर - इस तरह से सजाया जाता है की लोको पायलट को यह ज्ञात हो की कब कौन सी ट्रेन लेकर कहाँ तक जानी है और वहां से कौन सी ट्रेन लेकर वापस आनी  है ! इससे प्रशासन और लोको पायलट दोनों को ही लाभ होते है ! इसे तैयार करते समय सभी मूल भूत नियम और कानून को ध्यान में रखा जाता है ! इस लिंक को वरिष्ट लोको इंस्पेक्टर तैयार करते है ! इसे तैयार करते समय बहुत ही माथापच्ची करनी पड़ती है ! जिससे लोको पायलट को पूर्ण रात्रि विश्राम / साप्ताहिक विश्राम वगैरह सठिक रूप से मिले ! इस तरह से भारतीय रेलवे में प्रायः दो तरह के लिंक होते है १) साप्ताहिक ट्रेनों की और २ ) रोजाना ट्रेनों की ! कौन सी ट्रेन को किस लिंक में शामिल किया जाय - इसके लिए कोई प्रावधान /कानून नहीं है ! बस स्वतः सेट अप पर निर्भर करता है !

किसी भी यूनियन को क्या करनी चाहिए ?
प्रत्येक यूनियन को  कर्मचारियों के बहुआयामी  हित को ध्यान में रख कर - निर्णय लेने चाहिए ! उनके सामने सभी कर्मचारी बिना भेद - भाव के सामान होते है ! उन्हें ओछे हरकतों और कार्यो से बाज आनी चाहिए , जिसमे कर्मचारियों के हित कम और नुकशान ज्यादा हो ! इनके नेताओ को और भी जागरुक और सतर्क रहनी चाहिए ,जिससे की कोई उन पर अंगुली न दिखाए ! और भी बहुत कुछ ...
उपरोक्त यूनियन  ने क्या किया ? 
इस लिंक से उस लिंक की मांग कर अपने सम्यक धर्म को ताक पर रख दिया है ! जो इन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था ! इन्हें तो समस्याओ को निदान करने के तरीके धुंधने चाहिए ! कोई भी लिंक हो ...एक ..दो...या तीन ..सभी को एक लोको पायलट ही कार्यान्वित करता है ! यहाँ  इस यूनियन ने ....एक लिंक  को  समर्थन कर -- दुसरे लिंक के समस्या को बढाने का कार्य कर रही  है !  यह यूनियन  अपने धर्म को तक पर रख , स्वार्थ में वशीभूत हो ..अनाप - सनाप बयान बाजी और आरोप लगाये जा रही है !  शायद खानदानी असर है ! यह... एक ओछे ज्ञान की पूरी  पोल खुलती नजर आ रही है   ---हाय रे  विवेक हिन् यूनियन !
प्रशासन का खेल ....
 रेलवे प्रशासन मौन मूक है !  लड़ाओ और राज करो - के तारे नजर आ रहे है !  क्या प्रशासनिक अधिकारी अपने कर्तव्य को सही ढंग से निभा पाने में असमर्थ है ? जब की मै भी अपने इंजिनियर साहब  से मिला था और विस्तृत बात हुयी थी ! समस्याओ को उजागर किया था !  उसके निदान के लिए बिना किसी नंबर को उधृत किये हुए ..समस्याओ के निदान की सलाह भी  दी थी ! इंजिनियर साहब ने आश्वासन भी दिया था ! उनके इमानदारी पर तो शक नहीं किया जा सकता , पर उच्च  पद का दबाव  और शक्ति कई बार मनुष्य को लाचार  बना देती है ! वह  असहाय हो जाता है !
समीक्षा  ---
 और कुछ नहीं , बस इनके नियत में खोट है ! कोई भी यूनियन आँख बंद कर कोई हस्ताक्षर नहीं करती ! अगर कर भी दिए तो जल्द बताते नहीं ! इनकी नेताओ की कारगुजारी सामने आ गयी है ! जिसकी कड़ी आलोचना होनी ही चाहिए !  इन्होने अपने  प्यार का इजहार आरोप - प्रत्यारोप में किया , वह भी प्यार के दिन ! मुह में नमक हो तो मिठाई मीठी नहीं लगती ! इसीलिए तो दो नंबर ही पसंद है --है तो दो नम्बरी !  इन्हें एक नम्बरी /  एक याद नहीं आती ! इन जैसी लोलुप और चाटुकार.... वंशी यूनियनों की जीतनी भी भर्त्सना की जाय , वह कम ही है !  कुछ भला  करते हुए और जीवन जियें ....जिससे की  दुनिया याद करे ! नतमस्तक करे ! वह जीवन ..जीवन  नहीं ,    जिसकी कोई कहानी न हो !  कुछ मर के  भी सदैव जिन्दा रहते  है और  कुछ रोज मर-मर  के  जीवन जीते  है ! 
                       पतझड़ में भी फूल खिलते है - पलास के ....आशा अभी भी  जिन्दा है ! !

Saturday, January 21, 2012

अंधेर नगरी चौपट राजा और दीप तले अँधेरा !

देश के महान विचारक एवं दार्शनिक स्वामी विवेकानंद ने कहा था - " कि अपने जीवन में सत्यता हेतु जोखिम उठाना चाहिए ! अगर आप कि विजय होती है , तो  आप अन्य लोगो का नेतृत्व करेंगे ! अगर आप पराजित होते है , तो अन्य लोगो को अपना अनुभव बता कर साहसी बनायेंगे !" 



                          एक बुजुर्ग प्लास्टिक के कचरे / बोतल बीनते हुए !
 उपरोक्त व्यक्ति को  चित्र में देखें -
 इस तस्वीर को मैंने लोको से ली थी ! उस समय जब देश में अन्ना हजारे का आन्दोलन तेज था ! लोकपाल के लिए मन्नत और विन्नत दोनों जोरो पर थे ! सत्यवादी  ईमानदार- समर्थक और लोलुप /लालची /बेईमान इस आन्दोलन से कन्नी काट रहे थे ! काट रहे है ! जैसे लोकपाल उनके आमदनी और बेईमानी पर कालिख पोत देगी !
 किन्तु इस तस्वीर को देखने से हमें बहुत कुछ जानकारी मिल जाती है ! 
क्या यह बुजुर्ग मेहनती नहीं है ?  क्या यह कोई चोर लगता है ?  क्या यह स्वार्थी है ? क्या पेट पालने के लिए , नाजायज तौर तरीके अपना रहा है ? क्या यह समाज का सेवा नहीं कर रहा है ? क्या इस तरह के लोगो कि दुर्दशा - समाज के लिए कलंक नहीं है ? क्या उत्थान कि दुन्दुभी पीटने वाली सरकारे --ऐसे लोगो के लिए कुछ नहीं कर सकती ? और भी बहुत कुछ , पर यह बृद्ध व्यक्ति निस्वार्थ ,दूसरो कि गन्दगी साफ करते हुए , जीने की राह पर अग्रसर है !
जीने के लिए तो बस --रोटी , कपड़ा और मकान ही ज्यादा है ! फिर इससे ज्यादा बटोरने की होड़ क्यों ? हमारे देश के लोकतंत्र में अमीर ...और अमीर ..तो गरीब ..और गरीब होते जा रहा है ! देश का लोक तंत्र बराबरी का अधिकार देता है , फिर धन और दौलत में क्यों नहीं ? क्यों १% लोगो के पास अरबो की सम्पति है ?  और  ९९% जनता - रोटी / कपड़ा/ मकान के लिए तरसती  फिरती  है ! इसे लोक तंत्र की सबसे बुरी खामिया कह सकते है ! 
लोगो के समूह से परिवार , परिवार से घर , घर से समाज ,समाज से गाँव , गाँव से शहर , शहर से और आगे बहुत कुछ बनता जा रहा है ! परिवार  को ही ले लें  एक ही घर में पति और पत्नी नौकरी करते मिल जायेंगे ! एक ही परिवार में कईयों के पास नौकरी के खजाने भरे मिलेंगे ! वही पड़ोस में एक परिवार बिलबिलाते हुए दिन गुजार रहे होंगे ! आखिर क्यों ? 
क्या सरकार ऐसा कोई बिधेयक नहीं ला सकती , जिसके द्वारा--
१) एक परिवार( पति - पत्नी और संताने  दो ) में एक व्यक्ति को ही नौकरी मिले !
२) नौकरी वाले  पति / पत्नी , में कोई एक ही नौकरी करे !
३) सरकार - सरकारी कर्मचारियों में लोलुप व्यवहार और आदत को रोकने के लिए - कुछ मूल भुत सुबिधाओ को मुहैया करने के लिए कदम उठाये , जिससे उनकी भ्रष्ट आदतों/ अपराधो  पर लगाम लगे  जैसे-नौकरी लगते ही ---
अ) घर की गारंटी !
बी)बच्चो की शिक्षा की गारंटी !
क)बिजली , पानी  और गैस की सुबिधा ! 
डी) मृत्यु तक स्वास्थ्य और सुरक्षा की गारंटी ! वगैरह - वगैरह 
४) धन रखने की सीमा निर्धारित हो ! जिससे की उससे ज्यादा कोई भी धन न रख सके !
५) सभी लेन- देन इलेक्ट्रोनिक कार्ड से हो !
६)बैंको में कैश की भुगतान न हो !
७)किसी भी चीज को बेचने या खरीदने का दर सरकार ही निर्धारित करें और उसके कैश भुगतान न हो केवल इलेक्ट्रोनिक भुगतान लागू हो !
उपरोक्त कुछ सुझाव मेरे अपने है !  टिपण्णी के द्वारा -आप इसे जोड़ या घटा सकते है ! संभवतः इस प्रक्रिया से कुछ हद तक  गरीबी दूर की जा सकती है ! भ्रष्टाचार दूर की जा सकती है !अपराध में कमी आ सकती है ! कुछ - कुछ होता है ! पर बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधेगा ?
आज कल भ्रष्ट  का ही बोल बाला है ! भ्रष्टाचार  बढ़ और फल फूल रहा है ! इसके भी कारण स्वार्थ ही है ! स्वार्थ जो न कराये ! हम अमीर है ! हमारा देश सोने की चिड़िया है  ! इसीलिए तो एक डालर के लिए ५०.३५ रुपये( आज का भाव ) देते है ! गरीब देश थोड़े ही देगा ! फिर भी ..अंधेर नगरी चौपट राजा और  दीप तले अँधेरा !