आज का दिन और इस आक्रोश को शायद ही कोई भूल पायेगा । किसी ने नहीं सोच था कि रनिंग स्टाफ का परिवार मंडल रेल प्रबंधक को इस तरह बंधक बना लेगा । छोटे छोटे बच्चे और रंग विरंगी परिधान में सजी उनकी पत्निया चारो तरफ से मंडल रेल प्रबंधक को अपने घेरे में ले रखी थी । बच्चे पास में पड़े सोफे पर कूदने लगे थे । सभी का चेहरा गुस्से से लाल । मंडल रेल प्रबंधक की हालत देखते बनती थी । उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे । हम सभी लोको चालक उन महिलाओ के चारो तरफ खड़े थे । सभी महिलाये कुछ न कुछ कहना चाह रही थी । शोर इतना बढ़ गया कि कुछ भी आवाज समझ से बाहर थी । डी आर एम् को सभी से प्रार्थना करना पड़ा कि कोई एक महिला आगे बढिए और सभी के तरफ से अपनी मांग मुझे बताये या कोई ज्ञापन हो तो दीजिये । सभी की आवाज एक साथ सुनना संभव नहीं है ।
हमें मालूम था ऐसा ही होगा अतः हमारे यूनियन के सचिव की पत्नी ही आगे बढ़ी और अपनी मांग डी आर एम् साहब के सामने परत दर परत खोलने लगीं । सुबह से लेकर पति के घर लौटने तक की अथक और अनगिनत कहानी सुन डी आर एम् साहब भी स्तंभित रह गए । वैसे सभी अफसरों को मालूम है कि लोको पायलटो की पत्निया एक अभूतपूर्व त्याग करती है । जिनके मूक योगदान को भुलाया नहीं जा सकता । करीब दो घंटे तक सभी महिलाये ऑफिस के अंदर डटी रही और डी आर एम् साहब ने सभी की बातें ध्यान से सुनी । सभी महिलाये टस से मस नहीं हुई आखिर में डी आर एम् को ये आश्वाशन देना पड़ा कि वे एक सप्ताह के भीतर सभी मांगो को निपटाएंगे ।जो उनके अधिकार क्षेत्र में होगा ।
जी हाँ , कभी सोचा है आपने कि लोको पायलटों की पत्निया कैसी जिंदगी जीती है । एक जमाना था की लोग ड्राइवर को अपनी बेटी देना ( शादी का बंधन ) पसंद नहीं करते थे । फिर भी पुत्री अपने को परिवेश में बदल लेगी के कायल हो समाज की अवधारणा बदलती गई । कौन पिता होगा जो अपने पुत्री को सुखी नहीं देखना चाहता ? सब कुछ ताक पर रख शादिया होती ही है । हर दुलहन शादी के पहले अपने एक सपनो की दुनिया बुन ही लेती है । नए संसार में प्रवेश के पहले दिल का धड़कन बढना वाजिब है । ये करेंगे वो करेंगे । पति के साथ ज्यादा समय दूंगी । पति को अपने अंगुली पर नाचाऊंगी ।जब मन करे पिक्चर जाउंगी । खाली वक्त सखियो को बताउंगी कि शादी सुदा जीवन कैसे गुजर रहा है । वगैरह वगैरह । लेकिन कौन जानता था ये सिर्फ स्वप्न ही है क्योंकि उसकी शादी एक लोको चालक के साथ होने वाली है । जो कब घर में रहेगा और कब आएगा - भगवान को भी नहीं मालूम । मोनिका के साथ ऐसा ही तो हुआ था । जब वह शादी के बाद पहली बार ससुराल गयी थी । चार माह तक लगातार पति के साथ रही और ऊब गयी थी । मैके आते ही माँ के गोद में सिर रख रो दी थी । यहाँ तक की वह दुबारा जाने से इंकार कर दी । माँ को सब कुछ जानते हुए भी सहज लहजे में सिर्फ इतना ही कहते बना - बेटी सब नसीब का खेल है । भगवान सभी की जोड़ा बना कर भेजते है । शायद तुम्हारे नसीब में यही था । मोनिका माँ की बातो को इंकार न कर सकी । बस रोते रही थी ।
हम यहाँ किसे दोष दे ? रेलवे प्रशासन को या उस लोको चालक को जो कोल्हू की तरह पिसता रहता है । खुद को रेल सेवा में समर्पित । लोको चालक दुधारी तलवार पर लटकता रहता है । उसकी पूरी जिंदगी रेलवे प्रशासन द्वारा गन्ने की जूस की तरह चूस ली जाती है । गन्ने रूपी लोको चालक को सुरक्षित और सींचने का कार्य उसकी पत्नी करती है । लोको पायलटो की पत्नियो के बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता । रात हो या दिन समय पर भोजन तैयार करना । पति को मंगल कामनाओ के साथ भोजन का कैरियर हाथो में पकड़ा कर बिदा करना ।सकुशल लौटने की दुआ भगवान से करना । पति की अनुपस्थिति में सास ससुर और अपने बच्चों की परवरिश करना । दुःख दर्द में भी मर्द का फर्ज सिर आँखों पर रखना । बाजार से लेकर स्कूल तक की भाग दौड़ कितना बताऊँ । कोल्हू की बैल की तरह 24×7 पिसती रहती है । धन्य है ये पत्निया जिनके कार्य की मूल्यांकन किसी के बस की नहीं।
आज गणतंत्र दिवस है । सभी गवर्नमेंट कार्यालय बंद है । प्रिया को पति के साथ मार्केटिंग किये बहुत दिन हो गए थे । आज उसके लोको पायलट पति घर पर ही थे । सांय काल मार्केटिंग का प्रोग्राम बन गया था । प्रिया सिंगार और तैयारी में व्यस्त थी । दोनों बेटे भी काफी खुश थे क्यूंकि स्कूल भी नहीं था और आज उन्हें डैडी के साथ मार्किट जाने का अवसर मिला था और उनकी इच्छा पूरी होगी । सभी घर से बाहर निकले ही थे कि कॉल बॉय आ गया और बोला साहब सात बजे दादर एक्सप्रेस जाना है । साहब ने बहुत आनाकानी की परंतु कोई नहीं है के आगे विवस होना पड़ा । कॉल बॉय बोला अगर आप नहीं गए तो ट्रेन रुक जायेगी । फिर इसका जबाबदेही आप ही होंगे । मजबूरी क्या न कराये । दादर एक्सप्रेस जाने की हामी भरनी पड़ी । देखते ही देखते पत्नी और बच्चों की आकांक्षाएं और अभिलाषाओ पर पानी फिर गया । आज का प्रोग्राम रद्द हो गया । उनके दिल पर क्या गुजरी सोंचने वाली बात है ।
सुषमा ऐसी ही तो धीरेन्द्र की पत्नी थी । धीरेन्द्र ऑन लाइन पर थे । उनकी एकलौती बेटी बीमार पड़ गयी । सुषमा भी इस शहर के लिए नयी थी । दो वर्ष पहले उनकी शादी हुयी थी । अचानक बेटी की तबियत बिगड़ने लगी । सुषमा को कुछ समझ में न आया पति के आने की इंतजार करती रही । लेकिन देर हो चुकी थी पुरे घर में अवसाद छा गया । सुषमा का तो बुरा हाल हो गया था । पास पड़ोस को बाद में पता चला तो धीरेन्द्र को जल्द वापस लाने के लिए कंट्रोल रूम को खबर दी गयी । इतनी ज्यादा यातायात होने के वावजूद भी धीरेन्द्र को घर वापस आने में 20 घंटे लगे थे । धीरेन्द्र के आंसू सुख गए थे । बेटी के मृत देह को सीने से लगा लिए थे । हम लोगो को देख उनकी आँखे भर आई थी । आँखों आँखों में हमने धैर्य बनाये रखे की प्रेरणा दी थी ।
उपरोक्त तो कुछ गिनी चुनी उदहारण है । लोको पायलटो और उनकी पत्नियो को दर्द जैसे चोली दामन का रिश्ता हो । ये हमेशा ही तनाव की जिंदगी जीते है । ये शायद ही कोई मुहूर्त सपरिवार मानते हो । इनके जीवन में पर्व और उत्सव कोई मायने नहीं रखता । सालो भर पत्निया अपने भाग्य पर रोती है और जीवन से समझौता करने पर मजबूर । पत्नियो को पैसा मिलता है पर पति का साथ नहीं । एक सम्यक लोको पायलट की कार्य करने की कुशलता में उनके परिवार और पत्नी का काफी योगदान होता है । काश ये निष्ठुर रेलवे प्रशासन समझ पाता और इनके सामाजिक जीवन के बारे में भी कुछ सुधारवादी कदम उठाता । बच्चे पापा के इंतजार में सो जाते है । जब उठते है तो पापा सोते रहते है और वे उन्हें तंग नहीं करना चाहते क्योंकि रात्रिकाल फिर ट्रेन लेकर जानी है । पत्निया पति के आगमन पर दिल से पति की स्वागत करती है जैसे इससे ज्यादा धन उनके आँचल में है ही नहीं । पति चाह कर भी ख़ुशी जाहिर नहीं कर पाता क्योंकि वह थकावट से चूर रहता है । इनकी खट्टी मीठी जिन्दगी अनुशासन पूर्ण रही तो स्वर्ग दिखाई देता है अन्यथा नरक । कईयो के परिवार टूटते हुए भी दिखे है । जो भी हो । जीने के लिए संगनी का अर्पण वाज़िब तारीफ है । इन लोको पायलटो की पत्नियो को सत् सत् नमन करता हूँ । जो जीवन में हर रिश्ते को सफलता पूर्वक निभाने के लिए लोको पायलटो के साथ उनके छाये की तरह उनसे चिपटी रहती है । इनके मदद के बिना कोई लोको पायलट पूर्ण और रेलवे की आर्थिक प्रगति संभव नहीं ।
( यह लेख लोको पायलटो की पत्नियो को समर्पित है । ग्वालियर के विजया जी का बहुत बहुत आभार जो इस लेख के लिए प्रेरणा की स्रोत है । )
आज गणतंत्र दिवस है । सभी गवर्नमेंट कार्यालय बंद है । प्रिया को पति के साथ मार्केटिंग किये बहुत दिन हो गए थे । आज उसके लोको पायलट पति घर पर ही थे । सांय काल मार्केटिंग का प्रोग्राम बन गया था । प्रिया सिंगार और तैयारी में व्यस्त थी । दोनों बेटे भी काफी खुश थे क्यूंकि स्कूल भी नहीं था और आज उन्हें डैडी के साथ मार्किट जाने का अवसर मिला था और उनकी इच्छा पूरी होगी । सभी घर से बाहर निकले ही थे कि कॉल बॉय आ गया और बोला साहब सात बजे दादर एक्सप्रेस जाना है । साहब ने बहुत आनाकानी की परंतु कोई नहीं है के आगे विवस होना पड़ा । कॉल बॉय बोला अगर आप नहीं गए तो ट्रेन रुक जायेगी । फिर इसका जबाबदेही आप ही होंगे । मजबूरी क्या न कराये । दादर एक्सप्रेस जाने की हामी भरनी पड़ी । देखते ही देखते पत्नी और बच्चों की आकांक्षाएं और अभिलाषाओ पर पानी फिर गया । आज का प्रोग्राम रद्द हो गया । उनके दिल पर क्या गुजरी सोंचने वाली बात है ।
सुषमा ऐसी ही तो धीरेन्द्र की पत्नी थी । धीरेन्द्र ऑन लाइन पर थे । उनकी एकलौती बेटी बीमार पड़ गयी । सुषमा भी इस शहर के लिए नयी थी । दो वर्ष पहले उनकी शादी हुयी थी । अचानक बेटी की तबियत बिगड़ने लगी । सुषमा को कुछ समझ में न आया पति के आने की इंतजार करती रही । लेकिन देर हो चुकी थी पुरे घर में अवसाद छा गया । सुषमा का तो बुरा हाल हो गया था । पास पड़ोस को बाद में पता चला तो धीरेन्द्र को जल्द वापस लाने के लिए कंट्रोल रूम को खबर दी गयी । इतनी ज्यादा यातायात होने के वावजूद भी धीरेन्द्र को घर वापस आने में 20 घंटे लगे थे । धीरेन्द्र के आंसू सुख गए थे । बेटी के मृत देह को सीने से लगा लिए थे । हम लोगो को देख उनकी आँखे भर आई थी । आँखों आँखों में हमने धैर्य बनाये रखे की प्रेरणा दी थी ।
उपरोक्त तो कुछ गिनी चुनी उदहारण है । लोको पायलटो और उनकी पत्नियो को दर्द जैसे चोली दामन का रिश्ता हो । ये हमेशा ही तनाव की जिंदगी जीते है । ये शायद ही कोई मुहूर्त सपरिवार मानते हो । इनके जीवन में पर्व और उत्सव कोई मायने नहीं रखता । सालो भर पत्निया अपने भाग्य पर रोती है और जीवन से समझौता करने पर मजबूर । पत्नियो को पैसा मिलता है पर पति का साथ नहीं । एक सम्यक लोको पायलट की कार्य करने की कुशलता में उनके परिवार और पत्नी का काफी योगदान होता है । काश ये निष्ठुर रेलवे प्रशासन समझ पाता और इनके सामाजिक जीवन के बारे में भी कुछ सुधारवादी कदम उठाता । बच्चे पापा के इंतजार में सो जाते है । जब उठते है तो पापा सोते रहते है और वे उन्हें तंग नहीं करना चाहते क्योंकि रात्रिकाल फिर ट्रेन लेकर जानी है । पत्निया पति के आगमन पर दिल से पति की स्वागत करती है जैसे इससे ज्यादा धन उनके आँचल में है ही नहीं । पति चाह कर भी ख़ुशी जाहिर नहीं कर पाता क्योंकि वह थकावट से चूर रहता है । इनकी खट्टी मीठी जिन्दगी अनुशासन पूर्ण रही तो स्वर्ग दिखाई देता है अन्यथा नरक । कईयो के परिवार टूटते हुए भी दिखे है । जो भी हो । जीने के लिए संगनी का अर्पण वाज़िब तारीफ है । इन लोको पायलटो की पत्नियो को सत् सत् नमन करता हूँ । जो जीवन में हर रिश्ते को सफलता पूर्वक निभाने के लिए लोको पायलटो के साथ उनके छाये की तरह उनसे चिपटी रहती है । इनके मदद के बिना कोई लोको पायलट पूर्ण और रेलवे की आर्थिक प्रगति संभव नहीं ।
( यह लेख लोको पायलटो की पत्नियो को समर्पित है । ग्वालियर के विजया जी का बहुत बहुत आभार जो इस लेख के लिए प्रेरणा की स्रोत है । )