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Friday, November 25, 2016

माँ वैष्णो देवी यात्रा - 4

आज 6 मई 2016 है । आज कोई प्रोग्राम तो नहीं है । सुबह करीब 10 बजे होटल मैनेजर का फोन आया ।  उसका कहना था कि दोपहर तक 24 घंटे हो जायेंगे , अतः कमरा खाली करेंगे या एक्सटेंशन लेंगे ? मैंने उसे बताया कि दस ग्यारह बजे रात  को कमरा खाली करूँगा । उसने कहा कि तब दो दिनों के चार्ज लगेंगे । " कैसा इंसाफ है यार , कुछ ही घंटो की तो बात है । क्या कुछ एडजस्ट नहीं कर सकते क्या ? " -  मैंने उससे पूछा । मैं कुछ नहीं कर सकता सर , ये तो लॉज के नियम में शामिल है । मालिक के साथ गद्दारी तो नहीं कर सकता । उसने बड़ी ही नम्रता से अपनी बात कह डाली । इस कर्मचारी के ईमानदारी पर खुशी भी हुयी । फिर उसने ही कहा - साब एक काम कीजिये आप 6 बजे तक खाली कर दें । केवल आधे दिन का एक्स्ट्रा चार्ज पे कर दीजियेगा । चलो ठीक है । नहीं से कुछ तो भला । मैंने हामी भर दी । सुबह बाजार जाने का प्लान था  किंतु शाम को 6 बजे के बाद क्या करेंगे ? अतः प्रोग्राम कैंसिल करनी पड़ी । जो खरीदना है वह शाम को ही खरीद लेंगे ।

जम्मू के वातावरण में कोई खास गर्मी नहीं थी । हल्का धुप था । वादे के मुताबिक करीब 6 बजे संध्या को लॉज खाली कर दिए । जम्मू स्टेशन सामने ही था अतः ऑटो वगैरह नहीं करनी पड़ी । चलिये ऑटो के पैसे बच गए । हम पैदल ही स्टेशन आ गए , सिर्फ 5 मिनट लगे । स्टेशन के सुरक्षा घेरो को पार कर स्टेशन परिसर में दाखिल हुए । सोंचा रिटायरिंग रुम में कोई कमरा मिल जाय तो बहुत अच्छा होगा । कोशिस की किन्तु कमरे ख़ाली नहीं थे । सामान के साथ बाजार में घूमना मुश्किल था । हमने अपने सामान को लॉकर में जमा कर दिए । हमारी ट्रेन संख्या 22462 एक्सप्रेस थी , जिसका आगमन / जम्मू में रात बारह बजे के बाद था । हमने टिकट कटरा से लिए थे और बोर्डिंग जम्मू से करवा ली थी ।

अब निश्चिन्त हो बाजार की तरफ निकल पड़े । समय को व्यतीत करना भी तो मुश्किल लग रहा था । हमने बाजार से सूखे फल , रेन कोट , स्वीट , सेव और कुछ ऊनि साल ख़रीदे क्योंकि हमारे शहर के अपेक्षा बहुत सस्ते थे । साउथ इंडियन होने की वजह से नार्थ के खाने कुछ अरुचिकर लग रहे थे । फिर भी जहा तक हो समन्वय बनाना भी जरुरी था । एक दुकान वाले ने बताया कि  सामने वैष्णो देवी ट्रस्ट का निवास स्थल है । कमरे वगैरह मिलते है । ग्राउंड फ्लोर पर होटल है ववहाँ हर तरह के खाने मिलते है और बहुत साफ सुथरे है । आप लोग वहां जाकर भोजन कर सकते है  सुझाव अच्छे लगे । हमने उस दूकानदार को धन्यवाद दी और उस निवास की तरफ चल पड़े । उसने ठीक ही कहा था । बिलकुल सुन्दर अट्टालिका , साफ सुथरी । पर्यटकों के लिए किफायती दर पर कमरे उपलब्ध थे । वातानुकूलित या नॉन वातानुकूलित दोनों । खैर हमें कमरे से मतलब नहीं था फिर भी पता चला की कोई रुम नहीं है । हमने रात्रि भोजन किये । साउथ इंडियन वड़े भी खाने के लिए लिये , पर वे उतने टेस्टी नहीं थे । 

जम्मू स्टेशन के आस पास साफ सफाई नहीं थी ।  जहाँ देखो वही गन्दगी दिखाई दे रही थी । ये स्थानीय निकायों की देन है ।ज्यादा चहल पहल भी नहीं थी । जो पब्लिक थी वह यात्री या दुकान व् दुकानदारी वाले ही थे । हम भोजन के बाद वैष्णो देवी निवास के सामने बने बगीचे में टहलने लगे । अभी बहुत समय है इसीलिए वही एक खली पड़े बेंच पर बैठ गए । इंतजार के समय बहुत ही कष्टकर लगते है । इधर उधर की बाते करते रहे । अब समय साढ़े दस बजने वाले थे । हम वापस स्टेशन की तरफ चल दिए । रास्ते में  पत्नी को अचानक एक पत्थर से ठोकर लगी । वह बुरी तरह गिर पड़ी । हमने सहारा देकर उन्हें उठा  दिए । उन्हें जोर से घुटने में चोट लग गई थी। पत्नी उसी तरह कराहते हुए  स्टेशन के लॉकर तक पहुंची । ये क्या लॉकर के दरवाजे के ऊपर ताले लगे थे । पास के फल वाले दूकानदार से पूछा जो दुकान बंद कर रहा था ।उसने कहा - लॉकर दस बजे बंद हो जाते है अब सुबह 6 बजे खुलेंगे । ये सुन  ऐसा महसूस हुआ जैसे हमारे शरीर के खून ही सुख गए हो । अनायास मुख से निकला - ओह अब क्या होगा । हमारी गाड़ी साढ़े बारह बजे है और वह भी रिजर्व सीट ।

खैर जो होगा , अब तो कुछ करना ही पड़ेगा । हम पूछ ताछ कार्यालय में अपनी कहानी दोहरायी । पर उस पीआरओ के कान पर जु तक नहीं रेंगी । उलटे उसने हमें सिख देने लगा - क्या आप को मालूम नहीं है कि ऑफिस दस बजे बंद हो जाते है । देखते ही देखते और कुछ यात्री जमा हो गए , जिनके सामान लॉकर में थे और वे भी घबड़ाये हुए थे । उसने किसी भी प्रकार के मदद से इंकार कर दिया । फिर हम टीटीई के कार्यालय में गए , शायद कुछ मदद मिल सके । उस कार्यालय में कोई नहीं था , सिर्फ एक व्यक्ति दिखा जिसने सुझाव दिया की स्टेशन मास्टर से मिलिए । वह कुछ कर सकता है क्यों की वही स्टेशन का इंचार्ज है । हम स्टेशन सुपरिटेंडेंट के कार्यालय में भी गए पर दरवाजे पर बाहर से ताला  लटका रहा था । कैरेज स्टाफ मिल गए । उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि रात के समय यहाँ कोई नहीं रहता । मुझे आश्चर्य हो रहा था क्या ये रेलवे की संस्था है या कोई और कुछ । जहाँ देखो वहाँ किसी को भी प्रोपर ड्यूटी करते नहीं देख पा रहा हूँ । जैसे जैसे समय बीत रहा था और ट्रेन के आने का अंतर काम हो रहा था , दिल में घबराहट बढ़ती जा रही थी । दिमाग में एक सूझ आई । पार्सल ऑफिस में गया क्योंकि लॉकर इसी वाणिज्य विभाग के अंतर्गत आता है । वहाँ एक  क्लर्क मिला । उसने कहा - अब कुछ नहीं हो सकता आप सुबह 6 बजे आ जाए । मैंने अपनी दुखड़ा सुनाई पर वो बिलकुल इंकार कर गया । 

मैं अपने को निःसहाय महसूस करने लगा । देखा धीरे धीरे सभी आस पास की दुकानें बंद होते जा रही थी और जम्मू स्टेशन वीरान होते जा रहा था । जो बचे थे वे सिर्फ यात्री गण ही थे। जिन्हें कोई न कोई ट्रैन पकड़नी थी । अचानक मुझे सामने लोको पायलट की लॉबी नजर आयी । मैंने अब तक के किसी भी पूछ ताछ के समय अपनी परिचय जाहिर नहीं की थी । एक साधारण पब्लिक की तरह ही मदद की पेशकस की थी । मैं लॉबी के अंदर गया और अपना पूरा परिचय देते हुए अपनी समस्या बताई । क्रू कंट्रोलर आश्चर्यचकित हुआ और तुरन्त पार्सल ऑफिस से कांटेक्ट किये । कुछ बात बनती नजर आई । उन्होंने फोन कट कर दी और एक बॉक्स बॉय के साथ मुझे पार्सल ऑफिस में जाने के लिए निर्देश दिए । अब मैं पार्सल ऑफिस में था और वह बॉक्स बॉय जिससे मुझे मिलाया , वह वही क्लर्क था जो पहले इंकार कर चुका था । वह कुछ शर्मिंदगी महसूस किया और बोला - आप लॉकर के पास इंतजार कीजिये मैं  एक ट्रेन आ रही है उसमें पार्सल के सामान लोड करवा कर आता हूँ । मैंने स्वीकृति में हामी भर दी किन्तु लॉकर के पास नहीं गया । डर था कि कंही ये भूल न जाय इसीलिए वही ट्रेन आने तक खड़ा रहा । ट्रेन आई , उसने कुछ सामान गार्ड ब्रेक में लोड किये और एक खलासी को लॉकर की चाभी देते हुए बोला- जाओ लॉकर खोलकर साहब का सामान दे दो । हम सभी लॉकर के पास थे । अपने सामान ले लिए । अब हम अपने को बहुत सफल महसूस कर रहे थे , जैसे कोई लड़ाई जीत ली हो । और होनी भी चाहिए , ये स्वाभाविक है । हमने कुछ पैसे उस खलासी को उपहार स्वरूप देने चाहे , पर उसने लेने से इंकार कर दिया । फिर भी मेरी पत्नी उसके पॉकेट में जबरदस्ती रख दी ।

पत्नी को गंभीर चोट लगी थी पर इस आफत की घडी ने सब भुलने के लिए मजबूर कर दिया था । मैंने कई बार रेलवे की शिकायत वाली नंबर पर फोन की परंतु दूसरे तरफ से कॉल रिसीव नहीं किया गया । ऐसा लगता था जैसे कुछ समय के लिए रेलवे ठप्प पड़ गयी हो । एक छोटी सी भूल ( यानि नोटिस और सूचना पट्ट ) ने हमें इस जगह परेशानी में डाल दिया था । प्रायः हम छोटी छोटी सूचनाओं को नजर अंदाज कर देते है । पर ऐसा नहीं है । सभी अपने महत्त्व को उजागर कर ही देते है । आज हमें सिख मिल गयी थी कि हमेशा सतर्क और क़ानूनी प्रक्रिया पर ध्यान देनी चाहिए । थोड़ी सी गलती बड़ी परेशानी उत्तपन्न कर देती है । सरकारी कर्मचारी पब्लिक से कैसा व्यवहार करते है , वह सामने था । यही नहीं कभी कभी ये अपने कर्मचारी को भी मदद करने से नजरअंदाज कर देते है । एक सरकारी कर्मचारी को सदैव मदद के लिए तैयार रहना चाहिए । शायद आज के युग में स्वार्थी ज्यादा और परोपकारी बहुत कम है । यही नहीं , पब्लिक की सहनशीलता इन्हें निकम्मा बना देती है । पब्लिक को चाहिए की शिकायत पुस्तिका का उपयोग जरूर करें । आज हमारे और आप के विचारों में सकारात्मक बदलाव जरुरी है । सकारात्मक विचार उत्थान और नकारात्मक पतन के धोत्तक है ।

आगे की यात्रा के लिए इंतजार कीजिये -  माँ वैष्णो देवी यात्रा - 5 

Friday, March 11, 2016

नपुंशक

आज कल शिक्षा का क्षेत्र  काफी विकसित हो गया है । जो समय की मांग है । वही इस शैक्षणिक संस्थानों से निकलने वाले भरपूर सेवा का योगदान नहीं देते है । सभी को सरकारी नौकरी ही चाहिए , वह भी आराम की तथा ज्यादा सैलरी होनी चाहिए किन्तु अपने फर्ज निभाते वक्त आना कानी करते है । कई तो कोई जिम्मेदारी निभाना ही नहीं चाहते । किस किस विभाग को दोष दूँ समझ में नहीं आता । ऐसा हो गया है की सरकारी बाबुओ और अफसरों के ऊपर से विश्वास ही उठता जा रहा है । आज हर कोई किसी भी विभाग  में किसी कार्य के लिए जाने के पहले ही यह तय करता है कि उसका कार्य कितने दिनो में संपन्न होगा और उसे कौन कौन सी बाधाओं का सामना करना पड़ेगा  । वह दोस्तों से अधिक जानकारी की भी आस लगाये रखता है  ।

क्या यह सब सरकारी विफलताओं को दोष देने से दूर हो जायेगा ? कतई नहीं । हम सभी का सहयोग बहुत जरुरी है । बच्चे का जन्म होते ही उसकी जिम्मेदारिया बढ़नी शुरू हो जाती है । वह किसी की अंगुली पकड़ कर चलने का प्रयास करता है । उसे अपने माता -पिता के प्यार से आगे की कर्मभूमि का ज्ञान शिक्षण संस्थाओ से मिलता है । उस ज्ञान का दुरूपयोग या उपयोग उसके शैक्षणिक  शक्ति पर निर्भर करता है । पुराने ज़माने में गुरुकुल या छोटे छोटे स्कुल हुआ करते थे । हमने देखा है उस समय  शिक्षक और शिष्य में एक अगाध प्रेम हुआ करता था । दोनों एक दूसरे की इज्जत करते थे । मजाल है की शिष्य गुरु के ऊपर कोई आक्षेप गढ़ दे या गुरु शिष्य पर क्यों की आपसी मेल जोल काफी सुदृढ़ होते थे । उस समय नैतिक विचार नैतिक आचरण सर्वोपरि थे । छोटे बड़ो की इज्जत और बड़े छोटे को भी सम्मान देते थे । कटुता और द्वेष का अभाव था । ऐसे गुरुकुल या शिक्षण स्कुल से निकलकर आगे बढ़ने वालो के अंदर एक उच्च कार्य करने की क्षमता थी । शायद ही कभी कोई किसी को शिकायत का अवसर देता था । इस तरह एक स्वच्छ समाज और देश का निर्माण होता था । 

आज कल की दुर्दसा देख रोने का दिल करता है । शैक्षणिक संस्थान व्यवसाय के अड्डे बनते जा रहे है । शिक्षा के नाम पर कोई सम्मान जनक सिख तो दूर समाज को बर्बादी के रास्ते पर चलने को उकसाए जा रहे है । शैक्षणिक संस्थान रास लीला , नाच और गान के केंद्र बनते जा रहे है । नयी सोंच और नयापन इतना छा गया है कि कभी कभी बेटे  बाप को यह कहते हुए शर्म नहीं करते कि चुप रहिये आप को कुछ नहीं पता । अब आप का जमाना नहीं है । पिता के प्रति पुत्र का आचरण आखिर समाज को किधर मोड़ रहा है । बलात्कार , देश के प्रति अनादर , व्यभिचार समाज में इतना भर गया है और हम नैतिक रूप से इतने गिर गए है कि अगर कोई बहन को भी लेकर बाहर निकले तो देखने वाले तरह तरह के विकार तैयार कर लेते है , फब्तियां कसेंगे देखो किसे लेकर घूम रहा है। ऐसा नहीं है  की सभी ऐसे ही है पर अच्छो की संख्या नगण्य है । उनको कोई इज्जत नहीं मिलती । 

हमारे रेलवे में दो रूप है । प्रशासक और कर्मचारी । आज सभी शिक्षित है चाहे जिस किसी भी रूप में कार्यरत हो ।कर्मचारियों को हमेशा उत्पादन देना है जिसे वे हमेशा जी जान से पूरा करते है चाहे दस आदमी का कार्य हो और उस दिन 5 ही क्यों न हो । इस असंतुलन से कर्मचारी सामाजिक  , पारिवारिक , धार्मिक और राजनितिक उपेक्षा से प्रभावित हो जाते है । क्या एक कर्मचारी किसी गदहे जैसा है ? जो मालिक को खुश करने के लिए अपना सब कुछ समर्पण कर देता है । क्या कहे हम तो मजदूर है नीव की ईंट से लेकर  भवन के कंगूरे को सजाते है । फिर भी हमारी जिंदगी नीव की ईंट के बराबर ही है  । सभी कंगूरे की सुंदरता देखते है नीव की ईंट पर किसी का ध्यान नहीं जाता । शायद उन्हें नहीं मालूम की यह भव्य सुंदरता नीव की ईंट पर ही ठहरी है ।प्रशासक उन उच्च श्रेणी में आते है जो हमेशा  कर्मचारियों पर बगुले की तरह नजर गड़ाये रहते है । इन्हें विशेषतः उत्पादकता को बढ़ाना तथा कर्मचारियों के कल्याणकारी योजनाओ को सुरक्षित रखना होता है  । जो एक क़ानूनी दाव पेंच के अंदर क्रियान्वित होता या करना पड़ता  है । यह भी एक जटिल क़ानूनी प्रक्रिया के अनुरूप होता है । लेकिन ज्यादातर देखा गया है की प्रशासक इस क़ानूनी प्रक्रिया का दुरूपयोग करते  है जिससे उनकी स्वार्थ सिद्धि हो सके । मेरा अपना अनुभव है की अच्छे प्रशासक बहुत कम हुए है और है । आज कल इन्हें अपने को दायित्वमुक्त व् फ्री रखने की आदत बन गयी है । ये सब उपरोक्त सड़ी हुयी शिक्षा का असर ही तो है । कौन अच्छा अफसर है ? आज कल समझ पाना बड़ा मुश्किल है । आम आदमी यही सोचता है की चलो ये अफसर ख़राब है तो अगला अच्छा है , आगे बढे। काम जरूर हो जायेगा । किन्तु सच्चाई कुछ और ही होती है । 

इसे आप क्या कहेंगे ? 

उस दिन जब बंगलुरु स्टेशन पर  बॉक्स पोर्टर ने मेरे बॉक्स को पटक कर बुरी तरह से तोड़ दिया था । जुलाई 2015 की घटना है । मैंने इसकी सूचना सभी को दी चाहे मेरे मंडल का अफसर हो या बंगलुरु का । फिर भी कोई कार्यवाही नहीं हुयी । मुझे संतोष नहीं हुआ और मैंने फिर एक लिखित शिकायत मंडल रेल मैनेजर बंगलुरु को भेजा । इसकी कॉपी अपने मंडल रेल मैनेजर को व्हाट्सएप्प से भेजा । फिर भी कोई न कारवाही हुयी और न enquiry । शायद छोटी और अपने स्टाफ की शिकायत समझ इस पर कोई कार्यवाही करना किसी ने उचित नहीं समझा । अगर वही हमसे कोई गलती हो जाय तो हमें नाक पकड़ कर बैठाते है । उस पर धराये लगाकर सजा की व्यवस्था तुरंत करते है क्यों की उनके लिए ये आसान है । ऐसे समाज और कार्यालयों  की त्रुटियों को आखिर बढ़ावा कौन दे रहा है ।  शायद हमारे सड़ी हुयी शिक्षा का प्रभाव है । जिसे इन नपुंशक अफसरों की वजह से औए बढ़ावा मिलता है और एक दिन यह एक नासूर बन जाता है । आज कल ऐसे नासूरों का इलाज करना अति आवश्यक हो गया है । आखिर इसका इलाज कौन करेगा ? 

आज हमारे नए प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के कुछ कार्यक्रमो से काफी खुश हूँ क्यों की इन नपुंशको को  एक सठीक इलाज मिलने वाली है । रेलवे ने फिल्ट्रेशन शुरू कर दी है इसके अंतर्गत उन अफसरों पर गाज गिरेगी और उन्हें CR के अंतर्गत निकाल दिया जायेगा जिन्होंने 30 वर्ष सर्विस या 55 वर्ष की उम्र को पूरी कर ली है तथा अच्छे रिकार्ड नहीं है । काश ऐसे नपुंशको पर जल्द गाज गिरे । समाज बहुत सुधर जायेगा और कर्मठ कर्मचारियों के जीवन में एक नए सबेरे का उदय होगा ।

कर्मठ और मेहनत कश मजदूरो को नमस्कार । यह लेख उन मेहनती  कर्मचारी समूह को समर्पित है ।



Wednesday, February 10, 2016

चैट कीजिये ।

मैं पत्नी को देखते ही मोबाइल के स्क्रीन को तुरंत बदल दिया किन्तु पत्नी को समझते देर न लगी । चैट कीजिये - वह बिना किसी संकोच के बोली । मेरी ख़ामोशी को भाप गयी। बोली - मुझे कोई ऐतराज नहीं है । आप तो स्वयं समझदार है । आप कोई गलती नहीं कर सकते । मुझे पूरा भरोसा है । ये कह कर न जाने क्यों फिर जिधर से आई थी उधर ही चली गयी । आज सूर्य पूर्व के सिवाय पश्चिम से उदय होता नजर आया । वह पत्नी जो चैट के नाम पर क्रोध करती और आग बबूला हो जाया करती थी वही चैट करने के लिए स्वतंत्र रूप से आजादी दे रही थी । मैं आश्चर्य चकित था । पत्नी जी फिर  चाय के प्याले के साथ उपस्थित हुई । मुझसे रहा न गया , बरबस साहस कर पूछ ही लिया । देवी जी आज कैसे खुश हुई कोई कारण ? चाय का प्याला मेरे सामने रखते हुए बोली - वही जयपुर वाली आप की बेटी । बहुत सुन्दर और रहन दार है । भगवान ऐसी ही बेटी सभी को दें । फिर एक क्षण के लिए रुकी और एक लंबी साँस लेते हुए बोलीं - भगवान भी कितना अन्याय करते है । कुछ न कुछ कमी सभी को देते है । काश उसे जबान दी होती । इतना कहने के बाद उसका गला  भर आया । मैं कुछ नहीं बोल सका बस निःशब्द हो खयालो में खो गया ।

ये उन दिनों की बात है । जब मैं एंड्राइड स्मार्ट फोन का इस्तेमाल शुरू किया था । नई यांत्रिकी थी । नेट में तैरना अच्छा लगता था । एक मुठ्ठी भर का  यंत्र काफी कुछ के लिए मदद गार  था । उस दिन मैं सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन के प्लेटफॉर्म संख्या 10 पर बैठा था । राजधानी एक्सप्रेस लेकर जाना था । ट्रेन आने में देरी थी अतः समय वश व्हाट्सप्प पर टहल रहा था । देखा एक अनजान व्यक्ति का कुछ मैसेज वेटिंग में था । पढना शुरू किया तभी एक मैसेज डिस्प्ले हुआ । आप क्या कर रहे है । मैंने उस अज्ञात व्यक्ति की परिचय पूछा । जबाब मिला मैं लक्ष्मी देव हूँ जयपुर से । फिर कल मिलेंगे - कह कर , मैंने मोबाइल बंद कर दी । मेरी ट्रेन आ चुकी थी ।

दूसरे दिन सुबह सोकर उठा । आदत वस सबसे पहले मोबाइल नेट को देखना शुरू किया । देखा लक्ष्मी देव ने कई चुटकुले और पिक पोस्ट किये थे । पढ़ा और बहुत आनंदित हुआ । अनचाहे मन से रिप्लाई भी पोस्ट कर दी - अच्छे लगे । वैसे व्हाट्सप्प के कई दोस्त और ग्रुप है जिन्हें रोज  पढ़ते रहता हूँ । इस दौरान मैंने लक्ष्मी देव की टिप्पणी देखी जो इस तरह की थी ~ " जय जवान जय किसान जय चालक । आप की डयुटी एक फौजी से कम नही है । अच्छा लिखते है आप सब drivers भाईयो को सलाम । जिस वक्त हम अपने बिस्तरो मे दुबके हुये रहते है उस वक्त आप हमारे लिये पटरियो पर सघर्ष करते है और और रेल संचालन का परिपूर्ण रूप से करते है " टिप्पणी पढ़ कर मन गदगद होना स्वाभाविक था । जीवन में पहली बार किसी ने जय जवान जय किसान स्लोगन के साथ जय चालक शव्द को जोड़ा था ।

मेरी जिज्ञासा लक्ष्मी देव के बारे में जानने की हुई । मैंने एक दिन पूछा - आप क्या करते है । जबाब मिला ~ मैं हाउसवाइफ हूँ । मेरे पति व्यापारी है । मेरे कान खड़े हो गए । आज तक मैं जिस व्यक्ति को पुरुष समझ रहा था वह एक महिला निकली । कहानी यही ख़त्म नहीं हुई । एक पुरुष और महिला का आकर्षण सर्व बिदित है । फिर क्या था । दिनोदिन चैट का सिलसिला शुरू हो गया । इस दौरान हम दोनों एक दूसरे के बारे में काफी जान चुके थे । घर गृहस्थी          हो या पारिवारिक लोग  या सामाजिक तंत्र या स्थानीय शहर या पति पत्नी और  हमारे बच्चे सभी के बारे में हम दोनों को एक दूसरे के बारे में पूरी जानकारी हो चुकी थी । प्रतिदिन कोई न कोई एक नए विषय पर चैट होती थी ।कभी कभी पत्नी भी बगल में बैठे होने के नाते मैं क्या कर रहा हूँ को समझ जाती थी ।अतः  पत्नी को भी इस बात की जानकारी दे दी थी। पहले तो वह गुस्सा हुई पर नरम पड़ गयी जब उसे यह मालूम हुआ कि मैं लक्ष्मी देव को एक पुत्री के रूप में स्वीकार किया  हूँ  । और यह सही भी था क्योंकि कि लक्ष्मी देव और मुझमे स्वच्छ चैट ही होते थे । एक बार मैंने एक वीडियो सांग लक्ष्मी देवको भेजी । लक्ष्मी ने उसके गलत अर्थ लगाते हुए मुझे कोसे थे । उस समय मैंने उसे समझते हुए कहा था कि किसी चीज का अर्थ हमारे मानसिक सोच पर निर्भर करता है । गलत सोच गलत और सही सोच सही मार्ग पर ले जाते है । उसके बाद लक्ष्मी देव ने अपने गलती का एहसास की थी ।

चैटिंग के साथ ही हम दोनों के पारिवारिक रिश्ते भी सुदृढ़ हो गए । किन्तु कोई भी एक दूसरे को प्रत्यक्ष न देखा था न ही कभी मिला था । लक्ष्मी देव अपने परिवार में काफी खुश थी और कोई आभाव महसूस नहीं करती थी । सभी उन्हें प्यार करते थे । मैंने कई बार फोन पर बात करना चाही पर लक्ष्मी देव को ये पसंद नहीं था । मेरी पत्नी भी एब बार बात करने की इच्छा जाहिर की , पर बाद में फिर कभी कह कर लक्ष्मी देव मुकर गयी । उनके परिवार में एक दबंग थी उनकी एकलौती सास , जिससे काफी डरती थी । एक बार उन्होंने अपने घूँघट को नाक तक चढ़ा ली थी जिससे उनकी सास कुपित हो बड़ी मार मारी  थी । आखिर घर की मालकिन सास ही थी किसी भी मर्द की नहीं चलती थी । एक तरह से मेरा अनुभव ये कहता है कि जिस घर की मालकिन औरत होती है उस घर में झगड़े और कलह नामात्र के होती है । लक्ष्मी देव को कई बार सेल्फ़ी भेजने की विनती की पर वह इसे भी इंकार कर दी यह कहकर की लोग पिक का गलत इस्तेमाल करते है । मैंने भी कोई जिद्द नहीं की थी ।

हम दोनों की दिल्ली इच्छा थी की किसी जगह मिले । मैं जा सकता था पर लक्ष्मी देव जयपुर छोड़ कही नही जा सकती थी ।  कहते है समय बहुत बलवान होता है । जिसे चाहे मिला दे या अलग भी कर दे । किसी की वश नहीं चलता । मुझे किसी काम वश जोधपुर जाना था । लक्ष्मी देव से संपर्क किया और पूछा की अगर वो जयपुर में मिल सकती है तो मैं एक दिन के लिए जयपुर रुकने के लिए तैयार हूँ । जैसे मैंने लक्ष्मी देव की , उनके मुहं की बात छीन ली हो , वह तुरंत तैयार हो गयी । मुझे भो आत्मशांति मिली चलो अब उन्हें प्रत्यक्ष देख पाउँगा । आज तक केवल चैट और कल्पनाओ की आँख से ही देखता था । कभी भी वह सेल्फ़ी या कोई पिक भेजने से इंकार करती रही थी । अब सामने खड़ी होगी और हम खूब बात करेंगे । मन की दुविधा दूर हो जायेगी ।

मैं जयपुर पहुँच गया था । अपने होटल के कमरे में सपरिवार ठहरा था । पत्नी भी जल्द तैयार हो गयी थी। लक्ष्मी देव की आगवानी जो करनी थी । दस बजने वाले थे । हम सभी आतुरता से उनकी  इंतजार में बैठे थे । मैं बेचैन था क्योंकि अब तक मैं उसे औरत नहीं समझ सका था । मेरे दिमाग में एक ही बात घुसी हुयी थी कि ये कोई पुरुष ही है जो मुझे औरत के रूप में चैट कर ब्लैकमेल कर रहा है । इसकी पुष्टि भी आज हो जायेगी । उसने दस बजे तक आने की वचन दी थी । बार बार घडी पर नजर जा रही थी अब साढ़े दस बजने वाले थे । सब झूठ है । वह धोकेबाज है । वह नहीं आएगी । वह आप से चैट तक ही सम्बन्ध रखना चाहती है । पत्नी भी मायूस हो शव्दों की प्रश्न चिन्ह खड़ी कर दी । मैं भी अशांत समुद्री लहर सा चुप चाप सुनता रहा । तभी किसी के दरवाज़े को ठोकने की ध्वनि सुनाई दी । अन्मयस्क सा उठा , बेयरा होगा बुदबुदाया और दरवाजे की तरफ बढ़ गया । ग्यारह बजने वाले थे । दरवाजा खोला । सामने चार लोगो को खड़े पाया । एक गोरी सी खूबसूरत महिला एक जवान पुरुष और दो छोटे बच्चे । कुछ देर के लिए खामोश । क्या वही चैट वाली प्रोफाइल वाली औरत सामने खड़ी है ? पत्नी को आवाज लगाई  । इधर आना । वे लोग मुझे घूरते रहे या हो सकता है वे भी मुझे सही पहचानने की कोशिश कर रहे  थे । पत्नी बगल में आ खड़ी हुई थी । आप ही लक्ष्मी देव है ? मैंने औरत की तरफ अंगुली से इशारा करते हुए पूछा । जबाब के वजाय वह औरत झुक कर हम दोनों के पैर छु लिए । मुझे जबाब मिल चूका था । पत्नी ने उन्हें अंदर आने की अनुग्रह की । हमारे साथ वे लोग अंदर आ गए । हमने उन्हें सोफे पर बैठने का  आग्रह  किया और बगल में ही बैठ गए ।


अंकल ये है मेरी पत्नी लक्ष्मी देव और ये दोनों पुत्र विवेक और शिवांग । मेरा नाम विजय है । आप सभी से मिलकर ख़ुशी हुई । लक्ष्मी देव जी आप को कैसा लग रहा है। चैट तो दमदार करती है । मैंने बेहिचक अपने वाक्य कह दिए । लक्ष्मी देव बिलकुल शांत बैठी रही और अपने पैर की अंगुलियो को ध्यान से सर झुकाये देख रही थी । जी लक्ष्मी कैसी हो ? अब खुल कर बात करो न ? पत्नी ने सवाल किये । मम्मी बोल नहीं सकती - शिवांग ने कहा । क्या ? हम दोनों के मुख से ये शव्द निकले । जी अंकल ये सही है - विजय ने कहा । देखा लक्ष्मी के हाथ में एक नॉट बुक था । अपने पति की जेब से कलम निकल कर कुछ लिखने लगी और हमारे तरफ पलट दिया । लिखा था - सॉरी अंकल ये सही है । मैं बचपन से ही गूंगी हूँ । बोल नहीं सकती । मैं यह आप से छुपाये रखा । कृपया क्षमा करे । हमदोनो पति - पत्नी की आँखे भर आई । देखा लक्ष्मी भी रो रही थी । पत्नी खुद रोते हुए उसे चुप कराने लगी । आज हम जीवन में एक अजीब सच्चाई से सामना कर रहे थे जिसकी कभी कल्पना भी नहीं की थी । अब समझ में आ गया था आखिर लक्ष्मी फ़ोन में बात करने से क्यों कतरा रही थी । हे भगवान आप ने बिन आवाज ऐसी खूबसूरत मूर्ती क्यों बना दी । लक्ष्मी साक्षात् दुर्गा की मूर्ती लग रही थी । बस कमी एक ध्वनि की थी । आप से चैट कर के लक्ष्मी बहुत खुश रहती है अंकल । मुझे सब मालूम था । मैंने चैट करने की अनुमति दे रखी थी । विजय ने कहा । मैंने पूछा - आप लोग मुझे पहले क्यों नहीं बताये की लक्ष्मी देव बात नहीं कर सकती ?  विजय ने कहा - अंकल लक्ष्मी आप की ब्लॉग बहुत पसंद करती है । एक लेखक  से चैट करके इसे गर्व महसूस होता है । लक्ष्मी ने नॉट बुक में  कुछ लिखी और मेरे तरफ मोड़ दी लिखा था - " हमें डर था कहीँ असलियत का पता चलते ही आप चैट बंद कर देंगे । इसीलिए हमने आप को इसकी खबर नहीं होने दी । " एक पाठक मुझसे चैट कर इतना खुश था , जान कर बहुत हर्ष हुआ । मैंने कहा - एक लेखक बहुत ही संवेदनशील होता है । लेखक हमेशा जोड़ता है , तोड़ता नहीं । हमारी आँखे सुखने का नाम ही नहीं ले रही थी । सबसे ज्यादा पत्नी का जो लक्ष्मी का सिर गोद में रख कर एक माँ जैसा प्यार न्योछावर कर रही थी । दुर्लभ दृश्य ।

बेयरा भोजन की सामग्री रख कर चला गया था । दोपहर का भोजन हो चूका था । हमलोगो के बिच बहुत सी बाते हुई । मैंने विजय को कहा - आप एक महान पुरुष से कम नहीं जो ऐसे दिव्यांग से शादी कर ख़ुशी से जीवन बिता रहे है । आप वास्तव में एक पूण्य के भागीदार है । विजय मुस्कुरा कर स्वीकृती दी । मैंने उन्हें अपने बेटे की शादी में आने का अनुरोध किया । लक्ष्मी अपने पति की ओर देखने लगी जैसे कह रही हो - जबाब दीजिये । विजय ने कहा - अंकल जरूर आएंगे । इन्हें खूब पढ़ाओ बच्चों की तरफ इशारा कर कहा । लक्ष्मी नॉट बुक पर कुछ लिखने लगी और मेरे तरफ पढने के लिए बढ़ा दी । लिखा था - एक को लोको पायलट और दूसरे को प्लेन का पायलट बनाउंगी । पक्के और दृढ इरादे के आगे मैं नतमस्तक था । लक्ष्मी को देखते हुए मुस्कुरा दिया । बोला भगवान आप की मनोकामना पूरी करे । यही तो है दिव्यांग । लक्ष्मी  नॉट बुक में फिर कूछ लिखी - लिखा था मेरे बेटो के शादी में आप लोग जरूर आएंगे । हमने हामी भर दी । मजाक मजाक में मेरे मुह से निकल गया - आप की आने वाली बहुए आप को चैतानी कहेंगी । सभी खिलखिला कर हंस दिए । लक्ष्मी शर्म से मुस्कुराते हुए सिर निचे झुका ली ।

जीवन का एक अदभुद अनुभव था । शव्दों में गूँथना काफी नहीं है । उन्हें जाने देने का मन नहीं कर रहा था । मैं अपने प्रोग्राम को अधूरा छोड़ यहाँ उनके लिए रुक था । जिसका लक्ष्मी और उसके पति ने धन्यवाद जाहिर की । शाम को बिदाई के समय पत्नी ने गिफ्ट का पैकेट लक्ष्मी को दिए जिसे हमने पहले से ही तैयार रखा था । मैंने लक्ष्मी के दोनों बेटो के हाथ पर सौ सौ के नोट पकड़ा दिए । फिर एक बार लक्ष्मी ने हम दोनों के पैर छुए । हमने आशीर्वाद हेतु अपने हाथ उसके सिर पर रख दिए । जाते जाते हमने देखा लक्ष्मी की आँखे गीली हो गयी । वह अपने साड़ी के पल्लू को मुँह पर दबाएं  सपरिवार आगे बढती जा रही थी और घूम घूम कर हमें देख रही थी जैसे कह रही हो अंकल गलती माफ़ करना । हमने उसके आँखों में आंसुओ की धारा बहते देखा । हमारी आँखे भी नम हो गयी और हाथ स्वतः ऊपर उठ गए आशीर्वाद हेतु ।



(यह पोस्ट माननीय प्रधान मंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी के " बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ " योजना को समर्पित है । यह एक समसामयिक लेख है । इसका यथार्थ से आंशिक सम्बन्ध  है । यह सत्य घटनाओ पर आधारित है नाम , जगह काल्पनिक है  । चित्र  - साभार व्हाट्सप्प )














Friday, January 22, 2016

कभी सोचा है आपने ।

आज का दिन और इस आक्रोश को शायद ही कोई भूल पायेगा । किसी ने नहीं सोच था कि रनिंग स्टाफ का परिवार मंडल रेल प्रबंधक को इस तरह बंधक बना लेगा । छोटे छोटे बच्चे और रंग विरंगी परिधान में सजी उनकी पत्निया चारो तरफ से मंडल रेल प्रबंधक को अपने घेरे में ले रखी थी । बच्चे पास में पड़े सोफे पर कूदने लगे थे । सभी का चेहरा  गुस्से से लाल । मंडल रेल प्रबंधक की हालत देखते बनती थी । उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करे । हम सभी लोको चालक उन महिलाओ के चारो तरफ खड़े थे । सभी महिलाये कुछ न कुछ कहना चाह रही थी । शोर इतना बढ़ गया कि कुछ भी आवाज समझ से बाहर थी । डी आर एम् को सभी से प्रार्थना करना पड़ा कि कोई एक महिला आगे बढिए और सभी के तरफ से अपनी मांग मुझे बताये या कोई ज्ञापन हो तो दीजिये । सभी की आवाज एक साथ सुनना संभव नहीं है । 

हमें मालूम था ऐसा ही होगा अतः हमारे यूनियन के सचिव की पत्नी ही आगे बढ़ी और अपनी मांग डी आर एम् साहब के सामने परत दर परत खोलने लगीं । सुबह से लेकर पति के घर लौटने तक की अथक और अनगिनत  कहानी  सुन डी आर एम् साहब भी स्तंभित रह गए । वैसे सभी अफसरों को मालूम है कि लोको पायलटो की पत्निया एक अभूतपूर्व त्याग करती है । जिनके मूक योगदान को भुलाया नहीं जा सकता । करीब दो घंटे तक सभी महिलाये ऑफिस के अंदर डटी रही  और डी आर एम् साहब ने सभी की बातें ध्यान से सुनी । सभी महिलाये टस से मस नहीं हुई आखिर में  डी आर एम् को ये आश्वाशन  देना पड़ा कि वे एक सप्ताह के भीतर सभी मांगो को निपटाएंगे ।जो उनके अधिकार क्षेत्र में होगा ।

जी हाँ , कभी सोचा है आपने कि लोको पायलटों की पत्निया कैसी जिंदगी जीती है । एक जमाना था की लोग ड्राइवर को अपनी बेटी देना ( शादी का बंधन ) पसंद नहीं करते थे । फिर भी पुत्री अपने को परिवेश में बदल लेगी के कायल हो समाज की अवधारणा बदलती गई । कौन पिता होगा जो अपने पुत्री को सुखी नहीं देखना चाहता ? सब कुछ ताक पर रख शादिया होती ही है । हर दुलहन शादी के पहले अपने एक सपनो की दुनिया बुन ही लेती है । नए संसार में प्रवेश के पहले दिल का धड़कन बढना वाजिब  है । ये करेंगे वो करेंगे । पति के साथ ज्यादा समय दूंगी । पति को अपने अंगुली पर नाचाऊंगी ।जब मन करे पिक्चर  जाउंगी । खाली वक्त सखियो  को बताउंगी कि शादी सुदा जीवन कैसे गुजर रहा है । वगैरह वगैरह । लेकिन कौन जानता था ये सिर्फ स्वप्न ही है क्योंकि उसकी शादी एक लोको चालक के साथ होने वाली है । जो कब घर में रहेगा और कब आएगा - भगवान को भी नहीं मालूम । मोनिका के साथ ऐसा ही तो हुआ था । जब वह शादी के बाद पहली बार ससुराल गयी थी । चार माह तक लगातार पति के साथ रही और ऊब गयी थी । मैके आते ही माँ के गोद में सिर रख रो दी थी । यहाँ तक की वह दुबारा जाने से इंकार कर दी । माँ को सब कुछ जानते हुए भी  सहज लहजे में सिर्फ इतना ही कहते बना - बेटी सब नसीब का खेल है । भगवान सभी की जोड़ा बना कर भेजते है । शायद तुम्हारे नसीब में यही था । मोनिका माँ की बातो को इंकार न कर सकी । बस रोते रही थी । 

हम यहाँ किसे दोष दे ? रेलवे प्रशासन को या उस लोको चालक को जो कोल्हू की तरह पिसता रहता है । खुद को रेल सेवा में समर्पित । लोको चालक दुधारी तलवार पर लटकता रहता है । उसकी पूरी जिंदगी रेलवे प्रशासन द्वारा गन्ने की जूस की तरह चूस ली जाती है । गन्ने रूपी लोको चालक को सुरक्षित और सींचने का कार्य उसकी पत्नी करती है । लोको पायलटो की पत्नियो के बलिदान को कभी नहीं भुलाया जा सकता । रात हो या दिन समय पर भोजन तैयार करना । पति को मंगल कामनाओ के साथ भोजन का कैरियर हाथो में पकड़ा कर बिदा करना ।सकुशल लौटने की दुआ भगवान से करना । पति की अनुपस्थिति में सास ससुर  और अपने बच्चों की परवरिश करना । दुःख दर्द में भी मर्द का फर्ज सिर आँखों पर रखना । बाजार से लेकर स्कूल तक की भाग दौड़ कितना बताऊँ । कोल्हू की बैल की तरह 24×7 पिसती रहती है । धन्य है ये पत्निया जिनके कार्य की मूल्यांकन किसी के बस की नहीं।

आज गणतंत्र दिवस है । सभी गवर्नमेंट कार्यालय बंद है । प्रिया को पति के साथ मार्केटिंग  किये बहुत दिन हो गए थे । आज उसके लोको पायलट पति घर पर ही थे । सांय काल  मार्केटिंग का प्रोग्राम बन गया था । प्रिया  सिंगार और तैयारी में व्यस्त थी । दोनों बेटे भी काफी खुश थे क्यूंकि स्कूल भी नहीं था और आज उन्हें डैडी के साथ मार्किट जाने का अवसर मिला था और उनकी इच्छा पूरी होगी । सभी घर से बाहर निकले ही थे कि कॉल बॉय आ गया और बोला साहब सात बजे दादर एक्सप्रेस जाना है । साहब ने बहुत आनाकानी की परंतु कोई नहीं है के आगे विवस होना पड़ा । कॉल बॉय बोला अगर आप नहीं गए तो ट्रेन रुक जायेगी । फिर इसका जबाबदेही आप ही होंगे । मजबूरी क्या न कराये । दादर एक्सप्रेस जाने की हामी भरनी पड़ी । देखते ही देखते पत्नी और बच्चों की आकांक्षाएं  और अभिलाषाओ पर पानी फिर गया । आज का प्रोग्राम रद्द हो गया । उनके दिल पर क्या गुजरी सोंचने वाली बात है ।

सुषमा ऐसी ही तो धीरेन्द्र की पत्नी थी  । धीरेन्द्र ऑन लाइन पर थे । उनकी एकलौती बेटी बीमार पड़ गयी । सुषमा भी इस शहर के लिए नयी थी । दो वर्ष पहले उनकी शादी हुयी थी । अचानक बेटी की तबियत बिगड़ने लगी । सुषमा को कुछ समझ में न आया पति के आने की इंतजार करती रही । लेकिन देर हो चुकी थी पुरे घर में अवसाद छा गया । सुषमा का तो बुरा हाल हो गया था । पास पड़ोस को बाद में पता चला तो धीरेन्द्र को जल्द वापस लाने के लिए कंट्रोल रूम को खबर दी गयी । इतनी ज्यादा यातायात होने के वावजूद भी धीरेन्द्र को घर वापस आने में 20 घंटे लगे थे । धीरेन्द्र के आंसू सुख गए थे । बेटी के मृत देह को सीने से लगा लिए थे । हम लोगो को देख उनकी आँखे भर आई थी । आँखों आँखों में हमने धैर्य   बनाये रखे की  प्रेरणा दी थी ।

उपरोक्त तो कुछ गिनी चुनी उदहारण है । लोको पायलटो और उनकी पत्नियो को दर्द जैसे चोली दामन का रिश्ता हो । ये हमेशा ही तनाव की जिंदगी जीते है । ये शायद ही कोई मुहूर्त सपरिवार मानते हो । इनके जीवन में पर्व और उत्सव कोई मायने नहीं रखता । सालो भर पत्निया अपने भाग्य पर रोती है और जीवन से समझौता करने पर मजबूर । पत्नियो को पैसा मिलता है पर पति का साथ नहीं । एक सम्यक लोको पायलट की कार्य करने की कुशलता में उनके परिवार और पत्नी का काफी योगदान होता है । काश ये निष्ठुर रेलवे प्रशासन समझ पाता और इनके सामाजिक जीवन के बारे में भी कुछ सुधारवादी कदम उठाता । बच्चे पापा के इंतजार में सो जाते है । जब उठते है तो पापा सोते रहते है और वे उन्हें तंग नहीं करना चाहते क्योंकि रात्रिकाल फिर ट्रेन लेकर जानी है । पत्निया पति के आगमन पर दिल से पति की स्वागत  करती है जैसे  इससे ज्यादा धन उनके आँचल में है ही नहीं । पति चाह कर भी ख़ुशी जाहिर नहीं कर पाता क्योंकि वह थकावट से चूर रहता है । इनकी खट्टी मीठी जिन्दगी अनुशासन पूर्ण रही तो स्वर्ग दिखाई देता है अन्यथा नरक । कईयो के परिवार टूटते हुए भी दिखे है । जो भी हो । जीने के लिए संगनी का अर्पण वाज़िब  तारीफ है । इन लोको पायलटो की पत्नियो को सत् सत् नमन करता हूँ । जो जीवन में हर रिश्ते को सफलता पूर्वक निभाने के लिए लोको पायलटो के साथ उनके छाये की तरह उनसे चिपटी रहती है । इनके मदद के बिना कोई लोको पायलट पूर्ण और रेलवे की आर्थिक प्रगति संभव नहीं ।



( यह लेख लोको पायलटो की पत्नियो को समर्पित है । ग्वालियर के विजया जी का बहुत बहुत आभार जो इस लेख के लिए प्रेरणा  की स्रोत है । )