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Wednesday, April 23, 2014

लोवर बर्थ


२७ मार्च २०१४ दिन गुरुवार । राजधानी एक्सप्रेस लेकर सिकंदराबाद आया था । आज ही आल इण्डिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएसन  के आह्वान पर , लोको पायलट जनरल मैनेजर के ऑफिस के समक्ष धरने  पर बैठने वाले थे । मेरा  को -लोको पायलट सैयद हुमायूँ और मै  धरना  में शरीक हुए । दोपहर को दक्षिण मध्य रेलवे के जोनल लीडरो की  वैठक थी । पूरी रात गाड़ी चलाने  और धरना में शामिल होने कि वजह से थकावट महसूस हो रही  थी कारण  पिछले  दिन बुखार से भी ग्रसित था । अतः जोनल सदस्यों की सभा में अनुपस्थित ही रहा । 

वापसी के समय कोई गाड़ी नहीं थी । लिंक के अनुसार गरीब रथ (१२७३५) से मुख्यालय वापस जाना था । सिकंदराबाद से यह गाड़ी १९.१५ बजे छूटती  है । हम समयानुसार प्लॅटफॉर्म पर पहुँच गए । हमने एडवांस में अपने बर्थ आरक्षित कर ली थी । इस लिए कोई असुविधा  का सवाल नहीं था । कोच -७ / बर्थ संख्या -३४ और ३७ । प्लॅटफॉर्म  का नजारा अजीबो - गरीब  था । गाडी पर लेबल गरीबो की , पर पूरी उम्मीदवारी अमीरो की  थी । लगता था जैसे श्री लालू यादव जी ने अमीरो को तोहफा स्वरुप  इस ट्रेन को चलाने का निर्णय लिया था । शायद असली सच्चाई  यही हो  । इसीलिए तो गरीबो ने श्री लालू जी को गरीब बना दिए और वह बनते ही जा रहे है । सामाजिक कार्य में खोट कभी छुपती नहीं है । आज सबको मालूम है , लालू जी किस मुसीबत से जूझ रहे है । 

हमने अपने बर्थ ग्रहण किये और लिंगमपल्ली आने के पूर्व ही डिन्नर कर ली । लिंगमपल्ली में यात्रियो की  काफी भीड़ हो जाती है । आध घंटे में लिंगमपल्ली भी आ गया । कोच खचा - खच तुरंत भर गया । यात्रियो में ९०% नौजवान और १०% ही ४० वर्ष उम्र वाले या  ऊपर के होंगे । यह प्रतिसत हमेशा देखी  जा सकती है । सिकंदराबाद / हैदराबाद / बंगलूरू में जुड़वा भाई का सम्बन्ध है । प्रतिदिन लाखो की  संख्या में एक शहर से दूसरे शहर में लोगो का स्थानांतरण होते रहता है ।  अगर एक दिन भी ट्रेन सेवा रूक जाय , तो लोगो में अफरातफरी मच जायेगी

हमारे  आमने - सामने  वाले सीट पर एक दम्पति और उनके दो छोटे - छोटे प्यारे बच्चे स्थान ग्रहण किये ।  उनकी सीट भी वही थी । इनकी आयु करीब २५ - ३० वर्ष के आस - पास  होगी । पहले तो मैंने समझा कि दोनों युवक है । लेकिन ऐसा नहीं था । एक युवक और दूसरी उनकी  पत्नी थी । बिलकुल अत्याधुनिक लिबास से सज्जित । उस संभ्रांत महिला ने काले-नीले स्पोर्ट पैंट और सफ़ेद -टी  शर्ट पहन रखी थी । दृश्य का वर्णन नहीं कर सकता । आस  - पास के लोगो कि निगाहे सिर्फ उसी पर । लिबास ऐसे थे कि हमें उधर देखने में शर्म आ रही थी । अगर ऐसे पहनावे का विरोध किया जाय तो जबाब मिलेंगे  - मेरी मर्जी जैसा भी पहनू । अपने चरित्र को कंट्रोल में रखिये ।

यहाँ प्रश्न उठता है कि --

१) क्या कोई तड़क - भड़क पहनावे से महान / गुणी बन जाता है ?
२)आखिर इतनी गंदी एक्सपोज किसके लिए  ?
३)क्या ऐसे व्यक्तियो के समक्ष समाज का कोई दायित्व नहीं बनता ?
४)अपने अधिकार कि दुहाई देने वाले , क्या  दूसरे के अधिकारो का हनन नहीं करते ?
५)क्या ऐसे व्यक्ति समाज में व्यभिचार फ़ैलाने में सहयोग नहीं करते ?
६)क्या वस्त्र का निर्माण इसी दिन के लिए हुए थे या अंग ढकने के लिए ?
७)क्या हमारे समक्ष हमारी सभ्यता कोई मायने नहीं रखती ?

बहुत से ऐसे प्रश्न है , जो आज  समाज के युवा वर्ग के सामने है । अपने समाज को स्वच्छ और भारतीय बनाने में आज के युवा वर्ग को  सहयोग करनी चाहिए । इतिहास उठा के देखने से पता चलेगा कि महान व्यक्तियो के आचरण कैसे थे । स्वर्गीय और भूतपूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी जैसा अंग्रेजी आज भी कोई नहीं बोलता है और पहनावा -धोती और कुरता । स्वर्गीय इंदिराजी का इतिहास सामने है । आज के श्री मोदी जी को देखे ? डॉक्टर  अब्दुल कलाम जी को देखे है वगैरह - वगैरह । नदी में चारो तरफ जल ही जल फैली होती  है , परन्तु डुबकी किसी खास जगह ही लगायी जाती है सुरक्षित रहने के लिए । वैसे ही समाज में सुरक्षित डुबकी ( पहनावा ) क्यों नहीं ? वस्त्र तन ढकने के लिए पहने जाते है , तन दिखाने  के लिए नहीं । 

बहुत कुछ कोच में हुए जो व्यवहारिक नहीं थे । उस युवक ने हमसे पूछा - आप के बर्थ कौन से है , ये लोअर बर्थ है क्या ? हमने हामी भरते हुए कहा - जी बिलकुल सही । उसने अनुरोध किया  कि - " क्या आप लोग मेरे मीडिल बर्थ से एक्सचेंज करना  स्वीकार करेंगे  ?" हमारे मन में एक आवाज उठी ।कितने स्वार्थी हैं , ऐसे आधुनिक घोड़े पर चढ़ने वाले , हमारे लोअर बर्थ को भी छीन लेना चाहते थे  कैसी विडम्बना है । पूछने के पहले हमारे उम्र कि लिहाज तो कर लेते ? लोअर बर्थ की इच्छा सभी की होती है । ऐसे इंसानो को लोअर बर्थ  सुपुर्द करना भी उचित नहीं लगा  क्युकी गुंतकल में यात्री ज्वाइन करते  है । गुंतकल में आने वाले यात्री उन्हें डिस्टर्ब करेंगे । अतः हमने उन्हें पूरी बाते बता दी । उन्हें भी मायूसी में  संतोष करना पड़ा  । वैसे मुझे दूसरे कि पहनावे से  जलन नहीं है ,बस अपने संस्कार से वेहद लगाव है ।अपनी संस्कार छोड़ ,दूसरे की संस्कार स्वीकार करने वाले से बड़ा भिखारी भला कौन हो सकता है ?
ये वो थे जो ज़माने से बदल रहे थे , 
पर ज़माने को 
बदलने कि ताकत उनमे नहीं थी । 

Sunday, February 23, 2014

कहानी - दो पैर

मै अपने किसी कार्य हेतु तिरुपति जा रहा था । प्लेटफॉर्म के एक सीट पर बैठा  ट्रैन के आने का इंतज़ार कर रहा था । चारो तरफ गहमा - गहमी थी । सभी को सिर्फ  ट्रेन की  इंतजार थी । चारो तरफ  नजर  दौड़ाई  । शायद कोइ जानकार  
 साथी मिल जाए ? दूर भीड़ के एक कोने में एक व्यक्ति के ऊपर नजर पड़ी  । वह अपने बैशाखी के सहारे खड़ा था । अनायास उसकी नजर मेरे ऊपर पड़ी ।वह मुझे  बार - बार देख रहा था । मुझे भी वह कुछ परिचित सा लगा । शायद कहीं देखा हो  । बार -बार माथे पर बल दिया किन्तु सफलता नहीं मिली क्यूंकि अपाहिज से कभी कोई ताल्लुक नहीं रहा । ट्रेन आ चुकी थी । सभी जगह पाने कि होड़ में दौड़े । ट्रेन समय से पहले आई  थी । अतः यह तो निश्चित था कि पहले नहीं छूटेगी । 

मै एक कम्पार्टमेंट के अंदर जगह पा लीथी  । अनायास वह बैशाखी वाला व्यक्ति भी मेरे सामने वाली सीट पर आ बैठा । मेरे मुंह खुले रह गए । यह तो वही नायडू था  ,जिसे दो वर्ष पहले एक ट्रेन एक्सीडेंट ने अपाहिज बना दिया था । " नमस्ते नायडू " - नायडू से उम्र में बड़े  होने के  वावजूद भी मेरे मुख से आत्मीय स्वर निकल पड़े । नायडू ने भी स्वीकृति में - मेरी तरफ देखा और प्रशंशनीय मुद्रा में कहा - " शेखर सर  नमस्ते । कैसे है सर जी  ? बहुत दिनों के बाद मिले है ?"  उसके चेहरे 
पर एक अजीब सी ख़ुशी कि रेखाए नांच गयी ।मुझे यह जानकर ख़ुशी हुई कि वह मुझे अभी भी  
पहचान लिया था । वैसे तो उस ट्रेन एक्सीडेंट के बारे में मुझे सूचना थी ,पर नायडू ने दोनों  पैर  
गवा दिए थे , इसकी जानकारी  नहीं थी । 

" ये कैसे हुआ नायडू ?" - मैने विस्तृत जानकारी हासिल करने कि कोशिश की । उसने अगल - बगल देखें और एक लम्बी साँस लेते  हुए कहा । " सर आप को उस दुर्घटना कि जानकारी तो है ही , पर प्रशासन कि लापरवाही की  वजह से मुझे ये पैर गवाने पड़े ।रिलीफ वैन देर से आई थी  " इतना कहते  ही उसके आँखों में पानी भर आया  । " मै दो घंटे तक लोको में फँसा रहा । सभी समझ रहे थे कि मै मर गया हूँ ।अस्पताल पहुँचने के पहले ही मेरे दोनों पैर अधिक रक्तस्राव की  वजह से ढीले पड़ गए थे ।मै  उन लोको पायलटो का शुक्र गुजार हूँ जिन्होंने अपने खून दानकर मेरी जान बचाई । अन्यथा। .... । " नायडू ने अपनी आँखे पोछी और अपने हाथ कि अंगुलियो को मरोड़ने लगा । 

मैंने कहा -" ईश्वर को शायद यही मंजूर था नायडू । ईश्वर ही सबका रखवाला है । " मुझे पता था लोको पायलटो के परिवार वाले कैसे- कैसे  दर्द और अलगाव बर्दाश्त  करते है ।कुछ पूछूं ? इसके पहले ही नायडू ने कहा -"सर आज मेरी पत्नी ही मेरी दो पैर है ,इसके वजह से जिन्दा हूँ । " इतना कह नायडू ने बगल में बैठी अपनी पत्नी से परिचय करवाया । इस महान महिला के प्रति आदर स्वरूप मेरे दोनों हाथ नमस्कार हेतु  जुड़ गए ।उस साध्वी ने भी एक हल्की ख़ुशी के साथ अपने हाथ जोड़ दिए ।बिलकुल यह सच है कि लोको पायलटो को कोई सम्बल देता है तो वह है उनका परिवार ।तब - तक तिरुपति आ चूका था । हम सभी काम्पार्टमेंट से बाहर आ गए थे । नायडू ने मुझसे मिलने कि ख़ुशी जाहिर की  और सपरिवार आगे बढ़ गया ।

 मै एक टक लगाये सोंचता  रहा -यह कैसी विडम्बना है , दुनिया के मुसाफिरो को मंजिल तक ले जाने वाला , बैशाखियों के सहारे अपनी मंजिल तय कर  रहा है । क्या यह सच है  प्रशासन  इन्हे कोल्हू के बैल से ज्यादा महत्त्व नहीं देता ? जागो लोको पायलटो .... नयी सूरज की  नयी किरण अभी बाकी है । 

Friday, January 11, 2013

रेल बचाओ अभियान -कल्याण

 5वीं  और 6वीं  जनवरी 2013  को महाराष्ट्र के कल्याण शहर में आल इण्डिया  लोको रंनिंग स्टाफ एसोसिएशन के केन्द्रीय कार्यकारिणी  की बैठक अफसर क्लब /कल्याण में  हुयी । इस सभा में भारतीय रेल के सभी क्षेत्रीय सचिव और केन्द्रीय सदस्यों ने शिरकत की । इस सभा में निम्नलिखित विषयों पर चर्चा हुयी - 

1) संगठनात्मक   पोजीशन । NIT से सम्बंधित केन्द्रीय कोटा । ईस्ट  कोस्ट रेलवे खुर्दा  रोड के लोको पायलटो की कल्याणकारी कोष ।
2) केन्द्रीय औध्योगिक ट्रिब्यूनल (NIT ) और उससे सम्बंधित विषय ।
3)पिछले  निर्णय और उनके कार्यान्वयन तथा हमारे कदम ।
4) और कोई विषय , अध्यक्ष की आदेशानुसार ।

स्वर्गीय आई के गुजराल ( भुत पूर्व प्रधान ) ,सितार वादक स्वर्गीय रवि शंकर , शिव सेना सुप्रीमो स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे और बलात्कार के शिकार दिल्ली की पीडिता लड़की दामिनी  ( बदले हुए नाम ) के याद में एक मिनट का मौन रखते हुए ,  सभा  की शुरुवात अखिल भारतीय महासचिव कॉम . एम् एन प्रसाद जी  के अभिभाषण से शुरू हुयी ।  उन्होंने रेलवे के मान्यताप्राप्त AIRF /NFIR  ट्रेड संगठनो के दोहरे रवैये पर चिंता जाहिर की ।ये ट्रेड संगठन रेलवे के भाडा बढ़ने के पुर जोर पैरवी कर रहे है  किन्तु 300 से ज्यादा अनावश्यक अफसरों के बिना वर्क शैलरी लेने का विरोध नहीं कर रहें है । CAG  के अपने रिपोर्ट के अनुसार रेलवे में सबसे ज्यादा  भ्रष्टाचार व्याप्त है । अच्छे -अच्छे  भवनो को तोड़ , अनावश्यक निर्माण और ठेकेदारी से पैसे उगाहने का चलन जोरो पर है । जब -तक हम कमजोर रहेंगे , हमारी मांगे नहीं मिलेगी । आज सरकार और इसके ठेकेदारों में भ्रष्टाचार व्याप्त है । साधारण जन मानस त्रस्त  है । हमें अपने संगठन को हर शिखर पर मजबूत बनाने होंगे , तभी लंबित मांगे मिल सकती है । AILRSA ही वह संगठन है जो लोको पायलटो की हित की बात करती है । रेलवे करीब 2 00 करोड़ रुपये मान्यताप्राप्त संगठनो पर खर्च करती है । इससे यह जग जाहिर है की वे सरकार के नीतियों के खिलाफ नहीं जायेंगे । यही वजह है की हमने पिछले कई वर्षो से रेल बचाओ अभियान  छेड़ रखी है । इसे तीब्र गति देने की जरूरत है ।  प्रसाद जी ने सभी को सचेत करते हुए कहा की हमें हर लेबल पर लडाई लड़नी पड़ेगी और मजदूर विरोधी संगठनो से सावधान रहना पड़ेगा । 

कोलकत्ता से आये कॉम एन सरकार जी ने सभा की अध्यक्षता की ।

                   कॉम जित सिंह टैंक - केन्द्रीय कोसध्यक्ष जी ने वर्ष 2012 की वित्त रिपोर्ट पेश की ।
 कॉम कोपरकर जी ने कहा की आज हमारे अनवरत आन्दोलन के कारन ही NIT  का गठन हो सका है ।रेलवे NIT  और लेबर मिनिस्ट्री को अपने पक्ष में प्रभावित करने की कोशिश में है । जब जज साहब ने एक्स-पार्टे की निर्णय सुनाने वाले थे , तब रेलवे आया और कोर्ट की कार्यवाही में भाग लेने की मंशा जाहिर की है । जज साहब ने इसे लिखित रूप में माँगा है । दोस्तों रेलवे के नियत में खोंट है । हम अपने निर्णय को 07 जनवरी 2013 को जज साहब को बताएँगे । आज लोको पायलटो को 12/16 घंटा रेस्ट न देकर , उन्हें 10/14 घंटे में ड्यूटी पर बुलाया जा रहा है । जो विरोध  करते है , उन्हें अधिकारीयों के कोप भाजन  का शिकार होना पड़ता है । आज PIL की जरुरत है । सरकार ऐसे सुनने वाली नहीं है । सहायक लोको पायलटो और लोको पायलटो के सैलरी / भत्ते में काफी  अंतर के वावजूद भी सजा बराबर क्यों ? आज रेलवे के अफसर अपने अधिकारों का गलत इस्तेमाल कर रहे है ।
                           पूर्वी रेलवे से आये सिंह जी ने अपने मंडल के हरासमेंट को उजागर किया ।
पश्चिम रेलवे जो अगले अखिल भारतीय सम्मलेन को आयोजित करने वाला है , ने पैसे की चिंता जाहिर की ।

                                                         कॉम जोमी जोर्ज मेरे साथ ।
दक्षिण रेलवे के महासचिव जोमी जोर्ज ने सभी को आगाह करते हुए कहा की हमें NIT  के भरोसे चुप नहीं बैठना चाहिए । आज रेलवे अपने ही नियम को इम्प्लीमेंट नहीं कर रही है ।  आज हमें SPAD ( सिग्नल पासिंग एट डेंजर ) के सुझाओ को इम्प्लीमेंट करवाने के लिए आन्दोलन जारी रखने की जरूरत है । कॉम जोर्ज ने कुछ सुझाव और जानकारिय बतायीं -

क )  MACP के बारे में जो जजमेंट / एर्नाकुलम  कोर्ट ने दी है , वह फिलहाल हाई कोर्ट में है ।
ख )  ट्रेड यूनियन के इलेक्शन के समय , हम AIRF /NFIR   को मदद  न करें  ।
ग )  हमारे रंनिंग भत्ते पर  25%  बढ़ोतरी होने के बाद , हमारे दस हजार रुपये के रंनिंग अलाउंस के छुटपर               भी 25% की बढ़ोतरी होनी चाहिए ।
घ )  CCC /CC  का पोस्ट रनिंग स्टाफ का है , सुपरवयिजरो की नियुक्ति बर्दाश्त नहीं । ये पद रनिंग कर्मियों से भरी जानी चाहिए  ।अतः लेटेस्ट सर्कुलर  रद्द की जाय ।
च ) PR /Judgement   जो  कर्नाटक  हाई कोर्ट ने दी है , इसे पास करने के लिए प्रयत्न जरुरी है ।
छ ) कॉम पांडियन /मदुरै का सफल  CONCILIATION  RLC /MAS में पेंडिंग है । रेलवे शरीक नहीं हो रही है । ऐसा कब तक चलेगा ।
ज )  तत्काल टिकट  PASS /PTO  पर  भी मिलनी चाहिए ।

दक्षिण मध्य रेलवे के तरफ से अपने विचार  रखते हुए कॉम जी एन शॉ  ने दक्षिण रेलवे के सुझाव का भरपूर सपोर्ट  किये । अपने कार्यकर्ताओ को  जानकारी  हेतु ट्रेड यूनियन  क्लास के आयोजन पर प्रकाश डालें   । AILRSA के ऐतिहासिक कार्यकलापो पर बुक प्रकाशन की आवश्यकता बतायीं । रेलवे में बोनस को बैंक के माध्यम से ही दिया जाना चाहिए । ट्रेड यूनियन के चुनाव में AIRF /NFIR के बजाय किसी  तीसरे को चुनना जरुरी है ।
दक्षिण पश्चिम रेलवे के सी सुनिस ने 19 वि अखिल भारतीय सम्मलेन के बंगलुरु में सफलता के लिए सभी के सहयोग का  आभार व्यक्त कियें तथा अपने जोन में कार्यान्वित  विभिन्न आंदोलनों का जिक्र किया । उन्होंने सभी से अनुरोध की कि सब लोग अपने जोन / मंडल के समाचार को फायर पत्रिका  में प्रकाशन हेतु समय से भेंजे ।
रविचंद्रन /मद्रास ने NIT को सरकारी गजट में प्रकाशित न होने पर चिंता जताई । उन्होंने  PME  के दौरान फिट सर्टिफिकेट तक की पूरी अवधी को ड्यूटी माने जाने की सफलता की घटना को उजागर किया । इस सभा के प्रमुख वक्ता---
                                                           कॉम मोरे ( भुसावल) ,
                                                           कॉम  मूर्ती ( सिकंदराबाद ),
                                                           कॉम एम् पि देव ( नागपुर ),
                                                                  कॉम ठाकुर ,
                                                      कॉम के सी जेम्स ( पलक्काड  ),
                                                        कॉम डी  के साहू ( झरसगुदा ),
                                                         कॉम मनोज कुमार ( sealdah ),
                                                 कॉम एम् एम् रोल्ली (त्रिवेंद्रम ),
                                               कॉम एस के चौबे ( विशाखापत्तनम ),
                                                 कॉम राम प्रसाद बिश्मिल ( गोरखपुर ),
                                                   कॉम लूना राम सियागी (कोटा )
 इत्यादी ने भी अपने - अपने विचार रखते हुए सभा को  संबोधित किया । संक्षेप में कहें तो  यह केन्द्रीय कार्यकारिणी की सभा भरपूर सफल रही । अगली केन्द्रीय कार्यकारिणी भोपाल में होने की संभावना है ।
Some of decision were adapted in this meeting , which should be implemented accordingly-

Sunday, May 20, 2012

बंगलुरु में सिसकती रही जिंदगी ......

थोड़ी सी बेवफाई ....के बाद आज आप के सामने हाजिर हूँ  ! स्कूल के बंद होने और यात्राओ पर  जाने के  दिन  , शुरू हो गए है ! ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ ! नागपुर गया वाराणसी गया , बलिया गया और बंगलुरु की याद और संयोग वापस खींच ले आई ! कारण  ये थे की लोको चालको की उन्नीसवी अखिल भारतीय अधिवेसन , जो बंगलुरु में  सोलह और सत्रह मई को निश्चित था , में  शरीक होना था   ! पडोसी जो ठहरा ! एक तरह से वापसी अच्छी ही रही !  माथे  की गर्मी और  पसीने से निजात  मिली ! उत्तर और दक्षिण भारत के गर्मी में इस पसीने की एक मुख्य भूमिका  अंतर  के लिए काफी है !

                                                ज्ञान ज्योति आडिटोरियम / बंगलुरु
बंगलुरु जैसे मेगा सीटी में इस अधिवेशन का होना , अपने आप में एक महत्त्व रखता है ! देश के -कोने - कोने से सपरिवार लोको चालको का आना स्वाभाविक था  और इससे इस अधिवेशन में चार चाँद लग गए ! इसके सञ्चालन की पूरी जिम्मेदारी दक्षिण-पच्छिम रेलवे के ऊपर थी और दक्षिण तथा दक्षिण मध्य रेलवे की सहयोग  प्राप्त थी !

इस अधिवेशन में चर्चा  के  मुख्य विषय थे  --
1) अखिल भारतीय कार्यकारिणी का नए सिरे से चुनाव
2) पिछले सभी कार्यक्रमो की समीक्षा
3)लंबित समस्याओ के निराकरण के उपाय
4)संगठनिक कमजोरी / उत्थान के निराकरण / सदस्यों में प्रचार
5) छठवे वेतन आयोग के खामियों के निराकरण में आई कठिनाईयों और बाधाओं का पर्दाफास
6)सभी लोकतांत्रिक शक्तियों के एकीकरण के प्रयास में आने वाली बाधाओं पर विचार
7)नॅशनल इंडस्ट्रियल त्रिबुनल और अब तक के प्रोग्रेस .
8) चालको के ऊपर दिन प्रति दिन  बढ़ते . दबाव और अत्याचार
वगैरह - वगैरह ..

                                                        आडिटोरियम का मंच 
इस अधिवेशन को  उदघाटन  कामरेड  बासु देव आचार्य जी ने अपने भाषणों से किया ! उन्होंने कहा की सरकार श्रमिको के अधिकारों के हनन में सबसे आगे है ! आज श्रमिक वर्ग चारो तरफ से , सरकारी  आक्रमण के शिकार हो रहे  है ! उनके अधिकारों को अलोकतांत्रिक तरीके से दबाया जा रहा है ! अधिवेशन के पहले दिन विभिन्न संगठनो के नेताओ  ने अपने विचार रखे ! सभी नेताओ ने सरकार की गलत नीतियों की बुरी तरह से आलोचना की ! चाहे महंगाई हो या रेल भाड़े की बात , पेट्रोल की कीमत हो या सब्जी के भाव ! 99% जनता त्रस्त  और 1% के हाथो में दुनिया की पूरी सम्पति ! गरीब और गरीब , तो अमीर और अमीर !

 दोपहर भोजन के बाद बंगलुरु रेलवे स्टेशन से लेकर ज्ञान ज्योति आडिटोरियम तक मास रैली निकाली  गयी , जिसमे हजारो सदस्यों  ने भाग लिया !

                                        बंगलुरु स्टेशन से आगे बढ़ने के लिए तैयार रैली !

                                    रैली के सामने कर्नाटक के लोक नर्तक , अगुवाई करते हुए !

राजस्थान से आये इप्टा के रंग कर्मियों ने भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा लिखित अंधेर नगरी , चौपट राजा  के तर्ज पर - आज के रेलवे की हालत से सम्बंधित नाटक का प्रदर्शन किया ! 


दुसरे दिन डेलिगेट अभिभाषण में चालक सदस्यों ने  कुछ इस तरह के मुद्दे सामने  प्रस्तुत किये , जो काफी सोंचनीय है --

(1)  लोको चालको को  इस अधिवेशन से दूर रखने और भाग न लेने के लिए , भरसक हथकंडे अपनाये गए ! कईयों की  डेपो में  मुख्य कर्मीदल निरीक्षक के द्वारा छुट्टी पास  नहीं  हुयी  !

(2)  कई डेपो में लोको चालको को साप्ताहिक रेस्ट नहीं दिया जा रहा है , क्योकि गाडियों को चलाने  के लिए  प्रशासन के पास अतिरिक्त चालक नहीं है ! बहुतो को लिंक रेस्ट भी डिस्टर्ब हो जाते है ! कारण गाड़िया तो नहीं रुक सकती ! माल गाडी के चालको को पंद्रह से   बीस घंटो तक कार्य करने पड़ते है ! समय से कार्य मुक्त नहीं हो पाते  है ! कईयों को रिलीफ पूछने पर चार्ज सीट के शिकार होने पड़े है ! अफसरों की मनमानी चरम सीमा पर है ! चालको के परिवार एक अलग ही  घुटन भरे जीवन जी रहे  है ! घर वापस आने पर बच्चे सोये या स्कूल गए मिलते है ! पारिवारिक / सामाजिक जीवन से लगाव  दूभर हो गए है ! "  पापा कब घर आयेंगे ? " - पूछते हुए बच्चे माँ के अंक में सो जाते है ! चालको की पत्त्निया हमेशा ही मानसिक और शारीरिक बोझ से  दबी रहती है ! घर में  सास - ससुर और बच्चो की परवरिश की जिम्मेदारी इनके ऊपर ही होती है ! अजीब सी जिंदगी है !

अणिमा दास  ( स्वर्गीय एस. के . धर , भूतपूर्व सेक्रेटरी जनरल /ऐल्र्सा की पत्नी सभा को संबोधित करते ह !)  इन्होने लोको चालको के पत्नियो से आह्वान किया की वे अपने पति के मानसिक तनाव को समझे तथा सहयोग बनाये रखे !

(3 अस्वस्थता की हालत में रेलवे हॉस्पिटल के डाक्टर चालको को मेडिकल छुट्टी पर नहीं रख रहे है ! उन्हें जबरदस्ती वापस विदा  कर देते है ! परिणाम -कईयों को ड्यूटी के दौरान मृत्यु /ह्रदय गति  रुकने से मौत तक हो गयी है ! डॉक्टर घुश खोर हो गए है !

(4) चालको के डेपो इंचार्ज ...मनमानी कर रहे है , उनके आवश्यकता के अनुसार  उनकी बात न मानने पर , तरह - तरह के हथकंडे अपना कर परेशान  करते है ! इस विषय पर एक कारटून प्रदर्शित किया गया था -जैसे =
" सर दो दिनों की छुट्टी चाहिए !" - एक लोको चालाक मुख्य कर्मीदल निरीक्षक से आवेदन करता है ! करीब  सुबह के नौ बजे !
" दोपहर बाद मिलो !" निरीक्षक के दो टूक जबाब !
लोको चालक दोपहर को ऑफिस में गया और अपनी बात दोहरायी !
" शाम को 5  बजे आओ !" निरीक्षक ने संतोष जताई !
बेचारा लोको चालक 5 बजे के बाद ऑफिस में गया ! निरीक्षक की कुर्सी खाली  मिली !
ये वास्तविकता है !

(5) चालको के अफसर भी कम नहीं है ! अनुशासित को दंड और बिन - अनुशासित की पीठ थपथपाते है ! अलोकतांत्रिक रवैये अपना कर ,चार्ज सीट दे रहे है ! छोटे - छोटे गलतियों के लिए मेजर दंड दिया जा रहा है !  डिसमिस  / बर्खास्त  उनके हाथ के खेल  हो गए है ! कितने तो पैसे कमाने के लिए चार्ज सीट दे रहे है !

(6) सिगनल लाल की स्थिति में पास करने पर ..सीधे चालको को बर्खास्त किया जा रहा है ,बिना सही कारण जाने हुए ! जब की कोई भी चालक ऐसी गलती नहीं करना चाहता  ! इसके पीछे कई कारण होते है ! अपराधिक क्षेत्र में सजा के अलग - अलग प्रावधान है , पर चालको के लिए कारण जो भी हो , सजाये सिर्फ एक --बर्खास्त / डिसमिस  ! सजा का एक घिनौना रूप !


(7) कई एक रेलवे में लोको चालको को बुरी तरह से परेशान  किया जा रहा है ! बात - बात पर नोक - झोंक !

(8) रेलवे में घुश खोरी अपने चरम पर है ! अफसर बहुत ही घुश खोर हो गए है ! उनके पास रेलवे से एकत्रित की गयी अकूत सम्पदा है ! सतर्कता विभाग लापरवाह है ! घुश खोरी का मुख्य मार्ग ठेकेदारी है , जिसके माध्यम से घुश अर्जित किये जाते है ! यही वजह है की ठेकेदारी जोरो पर है !

(9) अस्पतालों,रेस्ट रूम और खान-पान व्यवस्था बुरी तरह से क्षीण हो चुकी है ! लोको चालक इनसे बुरी तरह परेशान है ! शिकायत कोई सुनने वाला नहीं है ! शिकायत  सुनने वाला  घोड़े बेंच कर सो रहा है !

(10) रेलवे का राजनीतिकरण हो गया है ! राज नेता इसे तुच्छ स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करने लगे है ! कुछ दिनों में इसकी हालत इन्डियन वायु सेवा  जैसी हो जाएगी ! यह एक गंभीर समस्या है !

  और भी बहुत कुछ भारतीय व्यवस्था के ऊपर करारी चोटें   हुयी , जो सभी को रोजाना प्रत्यक्ष दिख रहा है !

सभी के प्रश्नों का जबाब देते हुए काम. एम्.एन. प्रसाद सेक्रेटरी जनरल ने कहा की आज सभी श्रमिक वर्ग को सचेत और एकता बनाये रखते हुए ...आर - पार की लडाई लड़नी  पड़ेगी   !

अधिवेशन  के आखिरी में नए राष्ट्रिय कार्यकारिणी का चुनाव हुए ! जिसमे एल.मणि ( राष्ट्रिय अध्यक्ष ),एम् एन प्रसाद (राष्ट्रिय सेक्रेटरी ) और जीत  सिंह टैंक ( राष्ट्रिय कोषाध्यक्ष ) निर्विरोध चुने गए !
                                                   सजग प्रहरी एक चौराहे पर  



Wednesday, April 11, 2012

व्हाई दिस कोलावेरी दी ........

वर्ष १९७० में भारतीय रेलवे में कुल ९ ज़ोन और ५० मंडल थे ! लेकिन  आज  हमारे  पास कोंकण  रेलवे  से अलग १६ ज़ोन  और  ६८  मंडल  है !  इसका  सीधा अर्थ है   की  ७ अधिक  महाप्रबंधक  , सी.एम्.यी.,सी.यी.यी.,सी.यी.एन.,सी.पि.ओ., सी.एस.टी.यी.,सी.ओ.पि.,ऍफ़.ये.और सी.ये.ओ तथा  दुसरे  विभागाध्यक्ष बनाये  गए  है  ( अब  अधीक्षक  शब्द  भी  प्रबंधक  में  बदल  गया  है  )! अधिकतर  रेलवे जोनो में अतिरिक्त महाप्रबंधक तथा बिभागाध्यक्ष  भी मौजूद है ! इसी तरह १८ नए मंडलों में डी.आर.एम्, ये.डी.आर.एम्,सीनियर डी.एम्.यी.,सीनियर डी.यी.यी.,सीनियर डी.यी .एन.,सीनियर डी.ओ.एम्.,सीनियर डी.सी.एस.,सीनियर डी.एस.टी.यी.,सीनियर.डी.ऍफ़.एम्.,सीनियर डी.पि.ओ. तथा दुसरे मंडल विभागीय अध्यक्ष साथ में डी.एम्.यी.,डी.यी.यी.,डी.एम्.यी.विद्युत् ,डी.ओ.एम्.,डी.ऍफ़.एम्.,डी.एस.टी.यी.,डी.पि.ओ. और भी साथ में दुसरे सहायक अधिकारी ये.एम्.यी.,ये.यी.यी.,ये.यी.एन.,ये.ओ.एम्.,ये.सी.एस.,ये.एस.टी.यी.ये.ये.ओ.की नियुक्ति हुयी है !रेलवे ट्रैक किलो मीटर ना के बराबर बढ़ा है , जो इन बढे हुए पदों को  जायज ठहरा सके !

मंडल अधीक्षक शव्द अब मंडल रेल प्रबंधक में बदल गया है ! जिसकी ग्रेड पे  विभागीय अध्यक्ष के बराबर हो गयी है और सभी मंडलों के बिभागीय मुखिया अब मंडल अधीक्षक की ग्रेड पे पर पहुँच गए है  !

यहाँ यह ध्यान देना भी अतिआवश्यक होगा की ७ नए जोनो तथा १८ नए मंडलों के लिए रेलवे को नयी बिल्डिंगे बनानी पड़ी !अधिकारियो और स्टाफ के नए मकान तथा बिभागो के लिए नए दफ्तर बनाने पड़े है ! जिसमे रेलवे की एक बड़ी पूंजी बर्बाद हुयी ! इस ग्रुप में आज तक एक  अधिकारी का भी पद सरेंडर नहीं हुआ है ! साथ ही प्रति एक मंडल में पर्यवेक्षक स्टाफ भी पूरा भरा हुआ है , जो बिना किसी खास कार्य के बड़ा वेतन  पा   रहा है !

इन उपरोक्त विषयो पर रेलवे को कभी अर्थ व्यवस्था की याद नहीं आई ! कितनी बड़ी  पूंजी रेलवे की बर्बाद हुयी , इसके ऊपर रेलवे ने कभी विचार तक नहीं किया ! लेकिन जब लोको रंनिंग स्टाफ की जायज मांगो के ऊपर विचार करने का समय आया तब रेलवे की निति पूरी तरह बदल गयी तथा अर्थव्यवस्था का ठीकरा कर्मचारियों की मांगो के ऊपर फोड़ा जा रहा है ! प्रति वर्ष नयी रेल गाड़िया बढ़ रही है , बहुत साडी रेल गाडियों का रन स्पान बढाया जा रहा है फिर भी इन गाडियों को चलने के लिए लोको पायलट और सहायक लोको पायलटो की संख्या में बढ़ोतरी नहीं की जा रही है !


उपलब्ध स्टाफ का कार्यभार बढाया जा रहा है ! यह रेलवे की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है ! सुरक्षा श्रेणियों में तुरंत स्टाफ को बढाया जाना चाहिए तथा पहले से खाली पड़े पदों को भरा जाना चाहिए !

लोको रंनिंग स्टाफ के ऊपर अमानवीय कृ लिंक थोपा जा रहा है !
उनमे अत्यधिक घंटे १०+२+१ =१३ घंटे को न्यूनतम मनाकर कार्य लिया जा रहा है !
लगातार ६ नाईट ड्यूटी करायी जा रही है !
साप्ताहिक / आवधिक विश्राम भी नहीं दिया जा रहा है !
नियमो का गलत अर्थ निकल कर १० घंटे तथा १४ घंटे के बाद कॉल दिया जा रहा है
तीन - चार दिन तक मुख्यालय से बाहर रखा जा रहा है !
दयनीय गर्मी तथा सर्दियों में रंनिंग रूमों के विपरीत रेस्ट हाउसों में विश्राम के लिए बाध्य किया जा रहा है !
खाना खाने तथा प्राकृतिक कॉल के लिए भी समय नहीं दिया जा रहा है
यदि संक्षेप में कहें तो लोको रंनिंग स्टाफ के साथ जानवरों तथा मशीनों से भी बदतर व्यवहार किया जा रहा है !

नए रेल मंत्री ने पटरी से उतरी रेलवे को पटरी के ऊपर लाने  के लिए भारत सरकार से १०.००० हजार करोड़ रुपये मांगे ! रेलवे को पटरी से उतारने का बड़ा कार्य  पूर्व रेल मंत्री लालू प्रसाद यादव ने किया !जिसको लोग मैनेजमेंट गुरु  कहने लगे ! यहाँ इस विषय पर गौर करना भी अतिआवश्यक होगा की पिछले ८ सालो से रेलवे ने किराये के दामो में जरा भी वृद्धि नहीं की जबकि सारी वस्तुओ के दाम  ३-४ गुना तक बढे है !

छठा वेतन आयोग आने से कर्मचारियों और पेंशनभोगियो का वेतन भी बढ़ा  है ! उदहारण के लिए  ---पलक्कड़  से बंगलुरु तक का एक्सप्रेस ट्रेन का किराया १०४ रुपये है , स्लीपर श्रेणी का १७९ तथा वातानुकूलित चेयरकार का ३९० रुपये है ! वही पलक्कड़ से बंगलुरु का बस का किराया ५०० रुपये है ! पैसेंजर गाडियों का किराया तो न के बराबर है !

रेलवे को इतने सस्ते में यात्रियों को क्यों ढोना चाहिए ?  आखिर क्यों ?
इसके लिए लोको रंनिंग स्टाफ अकेले बलि का बकरा बन रहे है  !

वास्तव में रेलवे की ऐसी हालत गलत फैसलों , मिस मैनेजमेंट , भ्रष्टाचार , सस्ती वाहवाही तथा घिनौनी राजनीती के कारण  हुयी है !

Why this kolaveri DAI........ 

( सौजन्य - फायर मैगजीन /बंगलुरु /फरवरी अंक /लेखक -वि.के.श्रीकुमार ,भूतपूर्व क्षेत्रीय  सचिव /ailrsa  /दक्षिण रेलवे / अंग्रेजी में )

Wednesday, February 15, 2012

नीयत में खोट !

                                                            इन्द्रधनुष  के सात रंग

दुनिया के इतिहास में ....चौदह फरवरी का दिन बहुत ही मायने रखती है ! बच्चो  से लेकर... क्या बुड्ढ़े  ?  सभी अपने - आप में मस्त , प्रायः पश्चिमी देशो में ! कोई भी त्यौहार ..हमें भाई चारे और सदभावनाए  बिखेरने  , एक दुसरे को प्यार से गले लगाने या इजहार करने के सबक देते है ! किसी भी तरह के त्यौहार / पर्व में हिंसा का कोई स्थान नहीं है ! चाहे वह किसी भी जाति /धर्म /मूल /देश - प्रदेश के क्यों न हों !  आज - कल हम  इस क्षेत्र में कहाँ तक सफल हो पाए है . यह सभी के लिए चिंतनीय और विचारणीय विषय है ! आये दिन -सभी जगह हिंसा और व्यभिचार अपना स्थान लेते जा रहा है !

अब आयें विषय पर ध्यान केन्द्रित करते है ! कहते है  जो जैसा  बोयेगा , वो  वैसी  ही फसल कटेगा ! जैसा अन्न - जल खायेंगे , वैसी ही बुद्धि और विचार भी प्रभावित होती है ! ! जैसी राजा , वैसी प्रजा ! जैसी ध्यान वैसी वरक्कत ! यानी व्यक्ति का गुण ... हमेशा  उसके प्रकाश / बिम्ब को ...दुसरे के सामने प्रकट कर ही देता है ! हर व्यक्ति में एक छुपी हुयी आभा होती है ! जो उसके स्वभाव को प्याज के छिलके के सामान ...उधेड़ कर प्रदर्शित करती है ! 

कल प्यार  और मिलन का दिन बीत गया ! वह भी अजीब सी थी ! मै कल ( १४-०२-२०१२ ) सिकंदराबाद में था ! सुना था और आज साक्षी पेपर में छपा हुआ मिला - की हमारे मंडल का  एक कर्मचारी संगठन ( दक्षिण मध्य रेलवे एम्प्लोयी यूनियन ) ने मंडल रेल मैनेजर के कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन किया था ! उनकी मांग यह थी की रायल सीमा एक्सप्रेस , जो रोजाना - तिरुपति से हैदराबाद जाती है... को लिंक संख्या -२ में जोड़ दिया जाय ! यह ट्रेन फिलहाल लिंक संख्या -४ में है ! लिंक संख्या दो - सुपर फास्ट ट्रेनों की लिंक है , जो वरिष्ठ लोको पायलटो के द्वारा कार्यरत है ! रायलसीमा एक्सप्रेस फास्ट पैसेंजर ही समझे !
अब प्रश्न यह उठता है की ऐसा क्यों ? 

 उपरोक्त यूनियन कांग्रेस समर्थित है ! लिंक संख्या दो में ज्यादातर उसके समर्थक नहीं है ! रायलसीमा को गुंतकल से हैदराबाद लेकर जाना काफी कष्ट प्रद है ! वह ( यूनियन ).. अन्य यूनियन के  समर्थको को सबक सिखाना चाहती है ! उसने अपने पेपर स्टेटमेंट में कहा है- की हमने लिंक दो में रायलसीमा को जोड़ने के लिए हस्ताक्षर किये थे , फिर यह लिंक चार में कैसे जुट गया ! मंडल यांत्रिक इंजिनियर लापरवाह हैं ! वह अपनी मर्जी को कर्मचारियों के ऊपर थोप रहे हैं !....वगैरह - वगैरह !

लिंक क्या है ? 
 कई ट्रेन के समूह को संयोजित रूप में इकट्ठा कर - इस तरह से सजाया जाता है की लोको पायलट को यह ज्ञात हो की कब कौन सी ट्रेन लेकर कहाँ तक जानी है और वहां से कौन सी ट्रेन लेकर वापस आनी  है ! इससे प्रशासन और लोको पायलट दोनों को ही लाभ होते है ! इसे तैयार करते समय सभी मूल भूत नियम और कानून को ध्यान में रखा जाता है ! इस लिंक को वरिष्ट लोको इंस्पेक्टर तैयार करते है ! इसे तैयार करते समय बहुत ही माथापच्ची करनी पड़ती है ! जिससे लोको पायलट को पूर्ण रात्रि विश्राम / साप्ताहिक विश्राम वगैरह सठिक रूप से मिले ! इस तरह से भारतीय रेलवे में प्रायः दो तरह के लिंक होते है १) साप्ताहिक ट्रेनों की और २ ) रोजाना ट्रेनों की ! कौन सी ट्रेन को किस लिंक में शामिल किया जाय - इसके लिए कोई प्रावधान /कानून नहीं है ! बस स्वतः सेट अप पर निर्भर करता है !

किसी भी यूनियन को क्या करनी चाहिए ?
प्रत्येक यूनियन को  कर्मचारियों के बहुआयामी  हित को ध्यान में रख कर - निर्णय लेने चाहिए ! उनके सामने सभी कर्मचारी बिना भेद - भाव के सामान होते है ! उन्हें ओछे हरकतों और कार्यो से बाज आनी चाहिए , जिसमे कर्मचारियों के हित कम और नुकशान ज्यादा हो ! इनके नेताओ को और भी जागरुक और सतर्क रहनी चाहिए ,जिससे की कोई उन पर अंगुली न दिखाए ! और भी बहुत कुछ ...
उपरोक्त यूनियन  ने क्या किया ? 
इस लिंक से उस लिंक की मांग कर अपने सम्यक धर्म को ताक पर रख दिया है ! जो इन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था ! इन्हें तो समस्याओ को निदान करने के तरीके धुंधने चाहिए ! कोई भी लिंक हो ...एक ..दो...या तीन ..सभी को एक लोको पायलट ही कार्यान्वित करता है ! यहाँ  इस यूनियन ने ....एक लिंक  को  समर्थन कर -- दुसरे लिंक के समस्या को बढाने का कार्य कर रही  है !  यह यूनियन  अपने धर्म को तक पर रख , स्वार्थ में वशीभूत हो ..अनाप - सनाप बयान बाजी और आरोप लगाये जा रही है !  शायद खानदानी असर है ! यह... एक ओछे ज्ञान की पूरी  पोल खुलती नजर आ रही है   ---हाय रे  विवेक हिन् यूनियन !
प्रशासन का खेल ....
 रेलवे प्रशासन मौन मूक है !  लड़ाओ और राज करो - के तारे नजर आ रहे है !  क्या प्रशासनिक अधिकारी अपने कर्तव्य को सही ढंग से निभा पाने में असमर्थ है ? जब की मै भी अपने इंजिनियर साहब  से मिला था और विस्तृत बात हुयी थी ! समस्याओ को उजागर किया था !  उसके निदान के लिए बिना किसी नंबर को उधृत किये हुए ..समस्याओ के निदान की सलाह भी  दी थी ! इंजिनियर साहब ने आश्वासन भी दिया था ! उनके इमानदारी पर तो शक नहीं किया जा सकता , पर उच्च  पद का दबाव  और शक्ति कई बार मनुष्य को लाचार  बना देती है ! वह  असहाय हो जाता है !
समीक्षा  ---
 और कुछ नहीं , बस इनके नियत में खोट है ! कोई भी यूनियन आँख बंद कर कोई हस्ताक्षर नहीं करती ! अगर कर भी दिए तो जल्द बताते नहीं ! इनकी नेताओ की कारगुजारी सामने आ गयी है ! जिसकी कड़ी आलोचना होनी ही चाहिए !  इन्होने अपने  प्यार का इजहार आरोप - प्रत्यारोप में किया , वह भी प्यार के दिन ! मुह में नमक हो तो मिठाई मीठी नहीं लगती ! इसीलिए तो दो नंबर ही पसंद है --है तो दो नम्बरी !  इन्हें एक नम्बरी /  एक याद नहीं आती ! इन जैसी लोलुप और चाटुकार.... वंशी यूनियनों की जीतनी भी भर्त्सना की जाय , वह कम ही है !  कुछ भला  करते हुए और जीवन जियें ....जिससे की  दुनिया याद करे ! नतमस्तक करे ! वह जीवन ..जीवन  नहीं ,    जिसकी कोई कहानी न हो !  कुछ मर के  भी सदैव जिन्दा रहते  है और  कुछ रोज मर-मर  के  जीवन जीते  है ! 
                       पतझड़ में भी फूल खिलते है - पलास के ....आशा अभी भी  जिन्दा है ! !

Friday, December 16, 2011

लोको पायलटो की अजब कहानी !




                          रेलवे में ज्वाईन करने के अदभुत कारण                  ( रुन्निंग स्टाफ बनने के परिणाम /  लोको पायलट )


   १) मुझे मम्मी - पापा का साथ अच्छा नहीं लगता !
    २) मुझे रविवार और त्यौहार के दिन से सख्त नफ़रत है !
    ३)मुझे दोस्तों से मिलना - जुलना पसंद नहीं !
    ४)अपनी जीवन को बचपन में ही जी लिया हूँ !


                                          ५)पांच - छः घंटे सोना गन्दी बात होती है !
                                           ६)बीबी बच्चे अपने आप पल जायेंगे !


     ७)जीवन में चिंता/टेंसन  न हो तो जीने की क्या मजा ?
     ८)समय पर खान - पान महा पाप है !


                                          ९)गिफ्ट में चार्ज सिट लेना अच्छा लगता है !
         हा   हा ...हा...हा...हा...हां...



Wednesday, December 7, 2011

पटरी पर दौड़ती हैं सांसें

                                              तिरुपति रेलवे स्टेसन का बाहरी दृश्य 

किसी भी ट्रेन में सफ़र करते वक्त मुशाफिर की चिंता  होती है सिर्फ अपनी सीट की और अपने गंतव्य की ! मगर उस  ट्रेन में एक व्यक्ति ऐसा भी सफ़र करता है , जिसे सारे मुशाफिरो की फिक्र होती है !ये व्यक्ति इंजन / ट्रेन का लोको पायलट ( ड्राईवर )होता है ! देखने सुनने में लगता है की इसका काम बहुत आसान है  की इंजन स्टार्ट किया और गाड़ी अपने - आप पटरियों पर दौड़ने लगती है ,  हजारो जानो  को सही - सलामत उनके अपनो तक पहुँचाने का काम किसी इबादत से कम नहीं है ! रेल इंजन का ड्राईवर / लोको पायलट होना यानि पहियों के साथ अपनी सांसों को भी पटरियों  पर दौड़ना ,  वक्त की पावंदी और न ठहरने का तय मुकाम ....बस चलते जाना ! यही लोको पायलट / ड्राईवर की पूरी जिंदगी का असली सार है !


                                 बड़ा मुश्किल है --  

रमाशंकर तिवारी ( लोको पायलट ) के अनुसार --" अब काम करना लगातार मुश्किल होता जा रहा है ! रेस्ट के  घंटो में भी  वर्किंग से उब गए है ! अफसर है की समझने को तैयार नहीं और हमारे साथ लगातार ज्यादातिया हो रही है !"

( भास्कर  )

Tuesday, November 29, 2011

ट्रेन हादसा: पत्रकारों का पागलपन

 ब्लॉग जगत एक समुद्र है ! इसमे तैरने के बाद , जो मिला वो विस्मित कर देता है ! आप भी पढ़े महेंद्र श्रीवास्तव जी का  " आधा सच "

 http://aadhasachonline.blogspot.com/2011/07/blog-post_14.html

Thursday, 14 July 2011


ट्रेन हादसा: पत्रकारों का पागलपन

मित्रों  

आज बात तो रेल हादसे पर करने आया था, लेकिन मुंबई ब्लास्ट का जिक्र ना करुं तो लगेगा कि मैने अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से नहीं निभाई। मुंबई में तीन जगह ब्लास्ट में अभी तक लगभग 20 लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन कई लोग गंभीर रूप से घायल होकर अस्पताल में इलाज करा रहे हैं। ब्लास्ट दुखद है, हम सभी की संवेदना उन परिवारों के साथ है, जिन्होंने इस हादसे में अपनों को खोया है। लेकिन ब्लास्ट के बाद सरकार के रवैये पर बहुत गुस्सा आ रहा है।

बताइये किसी देश का  गृहमंत्री यह कह कर सरकार का बचाव करे कि 31 महीने के बाद मुंबई में हमला हुआ है। इसे अपनी उपलब्धि बता रहा है। इससे ज्यादा तो शर्मनाक कांग्रेस के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी का है। वो कहते हैं कि ऐसे हमलों को रोकना नामुमकिन है। ऐसे बयानों से तो इनके लिए गाली ही निकलती है, लेकिन ब्लाग की मर्यादा में बंधा हुआ हूं। फिर इतना जरूर ईश्वर से प्रार्थना करुंगा कि आगे जब भी ब्लास्ट हो, उसमें मरने वालों में मंत्री का भी एक बच्चा जरूर हो। इससे कम  से कम ये नेता संवेदनशील तो होंगे। चलिए अब मैं आता हूं अपने मूल विषय रेल दुर्घटना पर...


 बीता रविवार मनहूस बनकर आया। मेरे आफिस और बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी, लिहाजा घर में आमतौर पर सुबह से शुरू हो जाने वाली भागदौड़ नहीं थी। आराम से हम सब ने लगभग 11 बजे सुबह का नाश्ता किया और लंच में क्या हो, ये बातें चल रही थीं। इस बीच आफिस के एक फोन ने मन खराब कर दिया। चूंकि आफिस में मैं रेल महकमें जानकार माना जाता हूं, लिहाजा मुझे बताया गया कि यूपी में फतेहपुर के पास मालवा स्टेशन पर हावडा़ कालका मेल ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हो गई है और इससे ज्यादा कोई जानकारी नहीं है। मुझे इतना भी समय नहीं दिया गया कि मैं दुर्घटना के बारे में आगे कोई जानकारी कर सकूं और मेरा फोन सीधे एंकर के साथ जोड़ दिया गया। 

चूंकि कई साल से मैं रेल महकमें को कवर करता रहा हूं और कई तरह की दुर्घटनाओं से मेरा सामना हो चुका है, लिहाजा सामान्य ज्ञान के आधार पर मैं लगभग आधे घंटे तक दुर्घटना की बारीकियों यानि ऐसे कौन कौन सी वजहें हो सकती हैं, जिससे इतनी बड़ी दुर्घटना हो सकती है, ये जानकारी देता रहा। बहरहाल मैने आफिस को बताया कि थोड़ी देर मुझे खाली करें तो मैं इस दुर्घटना के बारे में और जानकारी करूं। आफिस में हलचल मची हुई थी, कहा गया सिर्फ पांच मिनट में पता करें, आपको दुबारा फोन लाइन पर लेना होगा।

बहरहाल मैने रेल अफसरों को फोन घुमाना शुरू किया। अब इस बात पर जरूर गौर कीजिए.. पहले तो दिल्ली और इलाहाबाद के कई अफसरों ने  फोन ही नहीं उठाया, क्योंकि छुट्टी के दिन रेल अफसर फोन नहीं उठाते  हैं। इसके अलावा सात आठ अधिकारियों को रेल एक्सीडेंट के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी। उन्होंने उल्टे  मुझसे पूछा कि क्या यात्री ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हुई है या मालगाड़ी। अब आप समझ सकते हैं कि देश में रेल अफसर ट्रेन संचालन को लेकर कितने गंभीर हैं। 

खैर बाद में रेलवे के एक दूसरे अफसर से बात हुई। मोबाइल उन्होंने आंन किया, लेकिन वो रेलवे के फोन पर किसी और से बात कर रहे थे, इस दौरान मैने इतना भर सुना कि सेना को अलर्ट पर रखना चाहिए, क्योंकि उनके आने से क्षतिग्रस्त बोगी में फंसे यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकालने में आसानी होगी। ये बात सुनते ही मेरे कान खड़े हो गए,  क्योंकि ये साफ हो गया कि एक्सीडेंट छोटा मोटा नहीं है। बहरहाल इस अधिकारी ने इतना तो जरूर कहा कि महेन्द्र जी बडा एक्सीडेंट है, लेकिन इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं बता सकता, कोशिश है कि पहले कानपुर और इलाहाबाद की एआरटी (एक्सीडेंट रिलीफ ट्रेन) जल्द घटनास्थल पर पहुंच जाए। 

अफसर का फोन काटते ही मैने आफिस को फोन घुमाया और बताया कि दुर्घटना बड़ी है, क्योंकि सेना को अलर्ट किया गया है। बस इतना सुनते ही आफिस ने फिर ब्रेकिंग न्यूज चला दी और मेरा फोन एंकर से जोड़ दिया गया। इस ब्रेकिंग को लेकर मैं काफी देर तक एंकर के साथ जुडा रहा और ये बताने की कोशिश की किन हालातों में सेना को बुलाया जाता है। चूंकि रेल मंत्रालय सेना को बुला रहा है इसका मतलब है कि कुछ बड़ी और बुरी खबर आने वाली है। खैर कुछ देर बाद ही बुरी खबर आनी शुरू हो गई और मरने वाले यात्रियों की संख्या तीन से शुरू होकर आज 69 तक पहुंच चुकी है। 

ट्रेन हादसे की वजह

ट्रेन हादसे की वजह को आप ध्यान से समझें तो आपको पत्रकारों के पागलपन को समझने में आसानी होगी। हादसे की तीन मुख्य वजह है। पहला रेलवे के ट्रैक प्वाइंट में गड़बड़ी। ट्रैक प्वाइंट उसे कहते हैं जहां दो लाइनें मिलतीं हैं। कई बार ये लाइनें ठीक से नहीं जुड़ पाती हैं और सिगनल ग्रीन हो जाता है। इस दुर्घटना में इसकी आशंका सबसे ज्यादा जताई जा रही है। दूसरा रेल फ्रैक्चर । जी हां कई बार रेल की पटरी किसी जगह से टूटनी शुरू होती है और ट्रेनों की आवाजाही से ये टूटते टूटते इस हालात में पहुंच जाती है कि इस तरह की दुर्घटना हो जाती है। इसके लिए गैंगमैन लगातार ट्रैक की पेट्रोलिंग करते हैं, पटरी टूटने पर वो इसकी जानकारी रेल अफसरों को देते हैं और जब तक पटरी ठीक नहीं होती, तब तक ट्रैक पर ट्रेनों की आवाजाही बंद रहती है। तीसरी वजह कई बार इंजन के पहिए में  दिक्कत हो जाती है इससे भी ऐसी गंभीर दुर्घटना हो सकती है। 

ट्रेन के ड्राईवर ने अफसरों को बताया है कि वो पूरे स्पीड से जा रहा था, अचानक इंजन के नीचे गडगड़ाहट हुई, और इसके पहले की मैं कुछ समझ पाता ट्रेन दुर्घटना हो चुकी थी। बताया जा रहा है कि ट्रैक प्वाइंट आपस में ठीक तरह से नहीं जुड पाया और तकनीकि खामी के चलते सिग्नल ग्रीन हो गया। कालका मेल अपनी पूरी रफ्तार से दिल्ली की ओर बढ रही थी,  एक झटके में वो पटरी से उतर गई और उसके कई डिब्बे एक दूसरे के ऊपर चढ गए। 
दुर्घटना सहायता ट्रेन
हां दुर्घटना के बाद राहत का काम कैसे चला इसकी बात जरूर की जानी चाहिए। मित्रों ट्रेनों का संचालन मंडलीय रेल प्रबंधक कार्यालय में स्थापित कंट्रोल रुम से किया जाता है। जैसे ही कोई ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त होती है, उसके आसपास के बड़े रेलवे स्टेशनों पर सायरन बजाए जाते हैं, जिससे रेल अफसर, डाक्टर और कर्मचारी बिना देरी किए एक्सीडेंट रिलीफ ट्रेन (एआरटी) में पहुंच जाते हैं। इस एआरटी में एक उच्च श्रेणी का मेडिकल वैन भी होता है, जिसमें घायल यात्रियों को भर्ती करने का भी इंतजाम होता है। सूचना मिलने के बाद 15 मिनट के भीतर कानपुर और इलाहाबाद से एआरटी को घटनास्थल के लिए रवाना हो जाना चाहिए था और 45 मिनट से एक घंटे के भीतर इसे मौके पर होना चाहिए था। लेकिन रेलवे के निकम्मेपन की वजह से ये ट्रेन चार घंटे देरी से घटनास्थल पर पहुंची। सच ये है कि अगर रिलीफ ट्रेन सही समय पर पहुंच जाती तो मरने वालों की संख्या कुछ कम हो सकती थी। 
पत्रकारों का पागलपन
जी हां अब बात करते हैं पत्रकारों के पागलपन की या ये कह लें उनकी अज्ञानता की। रेलवे के अधिकारी अपने निकम्मेपन को छिपाने के लिए अक्सर कोई भी दुर्घटना होने पर इसकी जिम्मेदारी ड्राईवर पर डाल देते हैं। जैसे एक ट्रेन दूसरे से टकरा गई तो कहा जाता है कि ड्राईवर ने सिगनल की अनदेखी की, जिससे ये दुर्घटना हुई। रात में कोई ट्रेन हादसा हो गया तो कहा जाता है कि ड्राईवर सो गया था, इसलिए ये हादसा हुआ। मित्रों आपको इस बात की जानकारी होनी चाहिए, अगर कोई एक्सीडेंट होता है तो सबसे पहले ड्राईवर की जान को खतरा रहता है, क्योंकि सबसे आगे तो वही होता है। लेकिन निकम्मे अफसर ड्राईवर की गल्ती इसलिए बता देते हैं कि ज्यादातर दुर्घटनाओं में ड्राईवर की मौत हो जाती है, उसके बाद जांच का कोई निष्कर्ष ही नहीं निकलता। 

ऐसी ही साजिश इस दुर्घटना में भी की गई। कहा गया कि ड्राईवर ने इमरजेंसी ब्रेक लगा दिया, इसकी वजह से दुर्घटना हुई। अब इनसे कौन पूछे कि अगर इमरजेंसी ब्रेक इतना ही खतरनाक है तो इसका प्रावीजन इंजन में क्यों किया गया है। इसे तो हटा दिया जाना चाहिए। लेकिन नहीं, पागलपन की इंतहा देखिए, पत्रकारों ने घटनास्थल से चीखना शुरू कर दिया कि इमरजेंसी ब्रेक लगाने से दुर्घटना हुई और ये क्रम दूसरे दिन भी जारी रहा। 

हकीकत ये है दोस्तों को अफसरों को लगा कि इतनी बड़ी दुर्घटना हुई है ड्राईवर की मौत हो गई होगी, लिहाजा उस पर ही जिम्मेदारी डाल दी जाए। लेकिन जैसे ही पता चला कि ड्राईवर और सहायक दोनों जिंदा हैं तो रेल अफसरों ने कहना शुरू कर दिया कि इमरजेंसी ब्रेक से ऐसी दुर्घटना नहीं हो सकती। लेकिन तब तक पत्रकारों ने माहौल तो खराब कर ही दिया था। 
  

25 comments:

संध्या शर्मा said...
ट्रेन हादसा तो हो ही गया और ऐसे हादसे आये दिन होते रहते हैं. जो बातें सामने आती हैं उसे पत्रकारों का पागलपन कहें या अज्ञानता या फिर रेलवे के अधिकारियों का निकम्मापन लोग तो मारे जाते हैं और सारे सफाई देते रह जाते हैं, क्या ये दुर्घटनायें रोकी नहीं जा सकती... सार्थक विचार...
अरुण चन्द्र रॉय said...
महेंद्र जी जब हम पढ़ रहे थे पत्रकार बनना एक सपना हुआ करता है... समर्पित हुआ करते थे लोग सपने के लिए.. भाषा और विषय पर पकड़ हुआ करती थी... अब तो विषय और भाषा पर पकड़ ही नहीं है... बस चीखना चिल्लाना है.. कई मेरे स्ट्रिंगर मित्र मुझ से स्क्रिप्ट लिखवाते हैं फिर फ़ोनों करते हैं.... क्या पत्रकार मित्र इसको समझेंगे कि बिना तैयारी के रिपोर्टिंग नहीं करनी चाहिए...
mahendra srivastava said...
अरुण जी, आप तो स्ट्रिंगर की बात कर रहे हैं, मैन जो उल्लेख किया है, वो दिल्ली और लखनऊ के पत्रकारों का हाल है। विषय की जानकारी के बगैर कुछ भी आंय बांय शांय बोलते रहते हैं।
Suman said...
इस हादसे को टी वी पर देखकर बड़ा दुःख हुआ ! बढ़िया जानकारी दी है आपने आभार आपका !
मनोज कुमार said...
आपकी रिपोर्टिंग ग़ज़ब की है। घटना की तह में जाकर आपने कई ऐसी जानकारी दी है जो हमारे लिए नई थी। चाहे वह आपके पत्रकार बिरादरी की ही बात क्यों न हो। ऐसी निष्पक्ष रिपोर्टिंग कम ही देखने को मिलती है।
Kailash C Sharma said...
आज कल घटना की तह में न जाकर केवल sensational reporting करना टी वी चंनेल्स में आम बात होती जा रही है. आपने निष्पक्ष रिपोर्टिंग का जो रूप प्रस्तुत किया है वह काबिले तारीफ़ है..आभार
रविकर said...
धीरज रखें || हमेशा ऐसा नहीं होगा || हम जरुर सुधरेंगे || हर-हर बम-बम बम-बम धम-धम | थम-थम, गम-गम, हम-हम, नम-नम| शठ-शम शठ-शम व्यर्थम - व्यर्थम | दम-ख़म, बम-बम, तम-कम, हर-दम | समदन सम-सम, समरथ सब हम | समदन = युद्ध अनरथ कर कम चट-पट भर दम | भकभक जल यम मरदन मरहम || राहुल उवाच : कई देशों में तो, बम विस्फोट दिनचर्या में शामिल है |
रविकर said...
पकडे गए इन दुश्मनों ने, भोज सालों है किया | मारे गए उन दुश्मनों की लाश को इज्जत दिया || लाश को ताबूत में रख पाक को भेजा किये | पर शिकायत यह नहीं कि आप कुछ बेजा किये --- राम-लीला हो रही | है सही बिलकुल सही || रेल के घायल कराहें, कर्मियों की नजर मैली | जेब कितनों की कटी, लुट गए असबाब-थैली | तृन-मूली रेलमंत्री यात्री सब घास-मूली संग में जाकर बॉस के कर रहे थे अलग रैली | राम-लीला हो रही | है सही बिलकुल सही || नक्सली हमले में उड़ते वाहनों संग पुलिसकर्मी | कूड़ा गाडी में ढोवाये, व्यवस्था है या बेशर्मी | दोस्तों संग दुश्मनी तो दुश्मनों से बड़ी नरमी || राम-लीला हो रही | है सही बिलकुल सही ||
Rajesh Kumari said...
Mahendra ji aapka bahut bahut dhanyavaad aapne baat ki tah tak panhuch kar ye jaankari di hai.isi tarah agar sabhi apni jimmedari sahi dhang se nibhayen to ye haadse hi na ho.aur humaare desh ki security kitni majboot hai yeh to main haal me hi dekh chuki hoon.
रविकर said...
ड्राइवर को दोषी बता, बचा रहे थे जान, जान नहीं पाए उधर, जिन्दा है इंसान | जिन्दा है इंसान, थोपते जिम्मेदारी, आलोचक की देख, बड़ी भारी मक्कारी | कह रविकर समझाय, निकाले मीन-मेख सब- मुंह मोड़े चुपचाप, मिले उनको जिम्मा जब ||
ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ (Zakir Ali 'Rajnish') said...
सही कहा आपने। पत्रकार कब किस चीज को किस रूप में प्रस्‍तुत कर दें, कहा नहीं जा सकता। ------ जीवन का सूत्र... लोग चमत्‍कारों पर विश्‍वास क्‍यों करते हैं?
ZEAL said...
आपकी पोस्ट के माध्यम से पूरा सच जान पड़ा ! लोग अपनी गलतियों की जिम्मेदारी दुसरे पर आसानी डाल देते हैं ! ड्राईवर की कोई गलती न होते हुए भी इल्जाम मढ़ा जा रहा था ! पूरे प्रकरण में राहुल गांधी का बयान बेहद भद्दा , बचकाना और गैरजिम्मेदाराना है. शर्मनाक !
रेखा said...
आपने बहुत सारी जानकारी दी है जो हमें पता ही नहीं थी ......इन नेताओं के बयानों को सुनकर कभी -कभी खुद को ही शर्म आने लगाती है
Babli said...
बहुत ही दर्दनाक हादसा रहा जिसमें मासूम लोगों की जान चली गयी! बहुत दुःख हुआ देखकर! आपने बहुत ही बढ़िया जानकारी दी है! मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है- http://seawave-babli.blogspot.com/ http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
inqlaab.com said...
:)
Maheshwari kaneri said...
आपकी पोस्ट के माध्यम से पूरा सच जान पड़ा...बहुत ही दर्दनाक हादसा रहा ।नेताओं के बयानों को सुनकर शर्म आती है...
निर्मला कपिला said...
दर्दनाक हादसे का कडवा सच जान कर दुख हुया। पता नही हमारा मीडिया कब सुधरेगा। आभार।
Vivek Jain said...
बहुत ही दर्दनाक हादसा विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
Amrita Tanmay said...
बहुत अच्छा लिखा है .जैसा दिखाया जाता है समाचारों में वो आधा सच ही होता है .लेकिन आपको पढ़कर बहुत कुछ साफ-साफ समझ में आता है..
Surendra shukla" Bhramar"5 said...
शालिनी पाण्डेय जी - जागरण जंक्शन में बहुत कम मिलते हैं हम ...?? अच्छी जानकारी सुन्दर सन्देश छवियाँ दिल को छू गयीं -ऐसा अक्सर होता है लोग दूसरे के कंधे पर रख बन्दूक से गोली दाग देते हैं - --ढेर सारी शुभ कामनाये - शुक्ल भ्रमर ५ लेकिन जैसे ही पता चला कि ड्राईवर और सहायक दोनों जिंदा हैं तो रेल अफसरों ने कहना शुरू कर दिया कि इमरजेंसी ब्रेक से ऐसी दुर्घटना नहीं हो सकती।
Surendra shukla" Bhramar"5 said...
प्रिय महेंद्र श्रीवास्तव जी क्षमा करियेगा ऊपर की टिपण्णी हटा दीजियेगा कुछ भूल .. अच्छी जानकारी सुन्दर सन्देश छवियाँ दिल को छू गयीं -ऐसा अक्सर होता है लोग दूसरे के कंधे पर रख बन्दूक से गोली दाग देते हैं - --ढेर सारी शुभ कामनाये - शुक्ल भ्रमर ५
Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...
आदरणीय महेंद्र श्रीवास्तव जी सादर वंदेमातरम् ! ट्रेन हादसा: पत्रकारों का पागलपन आपकी ऊर्जावान लेखनी से निकले अन्य आलेखों की तरह ही प्रभावशाली है । अपराध की हद तक ग़ैरज़िम्मेवाराना हरक़तें करते टुक्कड़खोर पत्रकार जो कह-लिख-कर जाए वो कम … … … और… मुंबई ब्लास्ट की ताज़ा घटना हर सच्चे भारतीय को आहत कर रही है , वहीं इस नपुंसक-नाकारा सरकार की बेशर्मी आग में घी का काम कर रही है … - ऐसे हमलों को रोकना नामुमकिन है। - 31 महीने के बाद मुंबई में हमला हुआ है। उत्तरदायित्वों को निभाने में सर्वथा असफल रहने के बावजूद भी ऐसे कायरतापूर्ण और बेशर्मी भरे बयान देने वाले नेताओं को चुल्लू पानी में डूब मरना चाहिए … आतंक और आतंकियों के संबंध में मैंने लिखा है - अल्लाहो-अकबर कहें ख़ूं से रंग कर हाथ ! नहीं दरिंदों से जुदा उन-उनकी औक़ात !! दाढ़ी-बुर्के में छुपे ये मुज़रिम-गद्दार ! फोड़ रहे बम , बेचते अस्लहा-औ’-हथियार !! मा’सूमों को ये करें बेवा और यतीम ! ना इनकी सलमा बहन , ना ही भाई सलीम !! इनके मां बेटी बहन नहीं , न घर-परिवार ! वतन न मज़हब ; हर कहीं ये साबित ग़द्दार !! शस्वरंपर आ’कर पढ़ने और अपने बहुमूल्य विचार रखने के लिए निवेदन है … हमेशा ही आवश्यक विषयों पर उत्कृष्ट लेखन द्वारा समाजहित में भावाभिव्यक्ति के लिए आपका आभार ! हार्दिक मंगलकामनाएं- शुभकामनाएं ! -राजेन्द्र स्वर्णकार
सुनीता शानू said...
आपकी पोस्ट की चर्चा कृपया यहाँ पढे नई पुरानी हलचल मेरा प्रथम प्रयास
Rachana said...
mahendra ji aapne to aankhen hi hol din itni gahri baat batai ab kya kahun desh bhi apna aye yahan ke log bhi .bahut dukhta hai dil aap ka abhar rachana
वर्ज्य नारी स्वर said...
सही और सार्थक आलेख