कहते है -जो होनी है , वह जरूर होगी | जो हुआ , वह भी ठीक था | अथार्थ हर घटना के पीछे कुछ न कुछ कारण होते ही है | पछतावा ,मात्र संयोग रूपी घाव ही है | घटनाओं के अनुरूप सजग प्रहरी , कुछ न कुछ विश्लेषण निकाल ही लेते है | जो मानव को उसके शिखर पर ले जाने के लिए पर्याप्त होती है | हमें इस संसार में विभिन्न परीक्षाओ से गुजरने पड़ते है ,उतीर्ण या अनुतीर्ण , हमारे कर्मो की देन है |
मन की अभिलाषाएं -असीमित है | इस असंतोष की भंवर में जो भी फँस गया , उसे उबरने की आस कम ही होती है | संतोष ही परम धन है | मैंने अपने जीवन में सादा विचार और सादा रहन - सहन को अहमियत दी है | सदैव पैसे अमूल्य ही रहे है | यही वजह था की उच्च शिक्षा के वावजूद भी १९८७ में फायर मेन के तौर पर रेलवे की नौकरी स्वीकार की थी | वह एक अपनी इच्छा थी | उस समय की ट्रेनों को देख मन में ललक होती थी , काश मै भी ड्राईवर होता | किन्तु वास्तविकता से दूर | मुझे ये पता नहीं था कि फायर मेन को करने क्या है ? ड्राईवर का जीवन कितना दूभर है ?
इस नौकरी में आने के बाद , इसकी जानकारी मिली | स्टीम इंजन के साथ लगना पड़ा था | कठिन कार्य | श्रम करने पड़ते थे | इंजन के अन्दर कोयले के टुकडे को डालना , वह भी बारीक़ करके | कभी - कभी मन में आते थे कि नाहक प्रधानाध्यापक की नौकरी छोड़ी | चलो वापस लौट चले ? पर दिल की ख्वायिस और इच्छा के आगे घुटने टेकने पड़े थे | मनुष्य उस समय बहुत ही दुविधा का शिकार हो जाता है , जब उसके सामने बहुत सी सुविधाए और अवसर के मार्ग उपलब्ध हो |
मेरे लिए गुंतकल एक नया स्थान था | मैंने अपने जीवन में इस जगह के नाम को कभी नहीं सुना था | भारतीय मानचित्र के माध्यम से -इस जगह को खोज निकाला था | वह भी दक्षिण भारत | एक नए स्थान में अपने को स्थापित करने की उमंग और आनंद ही कुछ और होते है | बिलकुल नए घर को बसाना , अपनी दुनिया और प्यार को संवारना | बिलकुल एक नयी अनुभव | एक वर्ष के बाद ही पत्नी को साथ रख लिया था | बिलकुल हम और सिर्फ हम दोनों , इस नयी जगह और नयी दुनिया के परिंदे | कोई संतान नहीं | नए जीवन की शुरुआत और अपने ढंग से सवारने में मस्त थे | उस समय की कोमल और अधूरी यादें मन को दर्द और प्रेरणा मयी जीने की राह प्रदान करती है |
उस दिन की काली कोल सी , काली भयावह रातें कौन भूल सकता है | जो ड्राईवर या लोको पायलटो के जीवन का एक अंग है | भयावह रातें , असामयिक परिस्थितिया , अनायास दर्द ही तो उत्पन्न कराती है | परिजनों से दूर , सामाजिक कार्यो से विरक्तता , वस् एक ही दृष्टि सतत आगे सुरक्षित चलते रहना है और चलते रहने के लिए सदैव तैयार बने रहो | हजारो के जीवन की लगाम इन प्यारी हाथो में बंधी होती है |
उस दिन मै एक पैसेंजर ट्रेन ( स्टीम इंजन से चलने वाली ) में कार्य करते हुए , हुबली से गुंतकल को आ रहा था | संचार व्यवस्था सिमित थी | संचार को गुप्त रखना भी एक मान्यता थी | रात के करीब नौ बजे होंगे ,गुंतकल पहुँच चुके थे | शेड में साईन ऑफ करने के लिए जा रहा था | सामने पडोसी महम्मद इस्माईल जी ( जो ड्राईवर ट्रेंनिंग स्कूल के इंस्ट्रक्टर भी थे ) को देख अभिवादन किया | साईनऑफ हो गया हो तो हाथ मुह धो लें - उन्होंने मुझसे कहा | यह सुन दिल की धड़कन बढ़ गयी | आखिर ये ऐसा क्यूँ कह रहे है ? आखिर इस वक़्त इनके यहाँ आने की वजह क्या है ? मन में तरह - तरह की शंकाएं हिलोरे लेने लगी | मैंने उनसे पूछ - अंकल क्या बात है ? उन्होंने कहा - कोई बात नहीं है , आप की पत्नी की तवियत ठीक नहीं है | वह अस्पताल में भरती है |
अब हाथ - मुहं कौन धोये | तुरंत अस्पताल को चल दिए | अस्पताल बीस मीटर की दुरी पर ही था | महिला वार्ड में पत्नी -बिस्तर पर लेटे हुए थी | पास में ही महम्मद इस्माइल जी की पत्नी खड़ी थी | उनके चेहरे पर भी दुःख के निशान नजर आ रहे थे | पत्नी मुझे देख मुस्कुरायी और धीमे से हंसी | जैसे कह रही हो , मेरी ही गलती है | मै दृश्य को समझ चूका था | एक पूर्ण औरत की ख़ुशी और उसके अंक की पहली बिंदी गिर चुकी थी | आँखों में पानी भर आयें | मेरे आँखों में पानी देख पत्नी के हौसले भी ढीले पड़ गएँ , उसके भी आँखों में आंसू भर आयें | दिल के गम को बुझाने के लिए , आंसू की लडिया लगनी वाजिब थी | महम्मद इस्माईल की पत्नी दोनों को संबोधित कर बोलीं - आप लोग दुखी मत होवो , घबड़ाओ मत , अभी जीवन बहुत बाकी है |
एक दूर अनजान देश में , जहाँ अपने करीब नहीं थे , परायों ने अपनत्व की वारिस की | हम अलग हो सकते है , पर अगर दिल में थोड़ी भी मानवता है , तो हमें नजदीक खीच लाती है | उस समय की असमंजस भरी ठहराव , दृढ संकल्प और कुछ कर सकने की दिली तमन्ना , आज उपुक्त परिणाम उगल रही है | आज हम दो और हमारे दो है | फायर मेन से उठकर सर्वोच शिखर पर पहुँच राजधानी ट्रेन में कार्य करने की इच्छा पूर्ण हुयी है | आज अनुशासन भरी जिंदगी , एक उच्च कोटि के अभियंता से ऊपर सैलरी और जहाँ - चाह वही राह के मोड़ पर खड़ी जिंदगी , से ज्यादा जीवन में और कुछ क्या चाहिए ?
अपने लगन और अनुशासन के बल पर जीवन जीना और इसके अनुभव की खुशबू ही अनमोल है | आयें हम सब मिल कर , अनुशासन के मार्ग पर चलते हुए , एक नए भारत की सृजन करें | जहाँ भ्रष्टाचार का नामोनिशान न हो |
सुन्दर प्रस्तुति है बालाजी पर-
ReplyDeleteशुभकामनाएं मित्र-
आप चारों को
निरंतर आगे बढ़ते रहें-
सादर
इस बात का पता किसी को नही कि किसके मन में क्या है और कोन काम आ जाये
ReplyDeleteनिश्चय ही परदेश में सबसे प्यारी वस्तु होती है, अच्छे व्यक्ति। बस उनकी संख्या में कोई कमी न आये।
ReplyDeleteलगन और अनुशासन के साथ जीवन के अनुभव की खुशबू ही अनमोल होती है |
ReplyDeleteRecent post: रंग,
सच है अपनों की जगह ये अच्छे लोग ही अपने बन जाते हैं दूर देस .... मर्मस्पर्शी संस्मरण
ReplyDelete्यही है जीने का जज़्बा ………कब कहाँ कैसे कौन अपना मिल जाता है या बन जाता है पता नही चलता
ReplyDeleteप्रेरणा दायक है आपकी पोस्ट.
ReplyDeleteईश्वर कदम कदम पे इम्तिहान लेता है ... ओर मनुष्य अगर चाहे तो उसी शिक्षा के बदोलत अनुशासन औए नियमति हो सकता है ...
ReplyDeleteआपकी पोस्ट प्रेरणा देती है ... आशा का संचार करती है ...