रामेश्वर मंदिर तथा समुद्र के तट पर स्नान का आनंद लेने के बाद -अब वापस जाने की तयारी शुरू हो गयी ! बंगाल की खाड़ी का यह समुद्र तट बिलकुल शांत था ! पानी में कोई ज्यादा लहर नहीं ! शायद समुद्र लक्ष्मन के तीर से डरा हुआ था ! इसे देख अतीत के यादो में खो जाना वाजिब ही था ! शाम होने वाली थी ! टूरिस्ट बस वाले ने सभी को पुकारना शुरू कर दिया !
हम तो करीब ही पत्थर के सीट पर बैठे हुए थे !
रात को करीब नौ बजे , मदुरै पहुंचे ! दिन भर की थकावट , लाईट डिन्नर लेने के बाद -सभी बिस्तर पकड़ लिए !
बालाजी को तो दक्षिण भारतीय डोसा बहुत प्रिय है ! खाने में व्यस्त , बहुत मजा है - मदुरै की दोसे में !
दुसरे दिन कोद्दैकैनल जाने का प्रोग्राम था ! मेरी श्रीमती जी कुछ ज्यादा ही थकावट महसूस कर रही थी ! अतः इस प्रोग्राम को बस्ते में डालना पड़ा ! दिन भर मदुरै के कुछ और मंदिर देखने चले गए ! इसमे एक प्रमुख है - बालाजी का मंदिर ! भव्य मंदिरों का शहर है - मदुरै !
मंदिर के अन्दर ही हाथी को देख बालाजी काफी खुश ! एक हाथी मीनाक्षी मंदिर के अन्दर भी है ! पैसा देते ही यह हाथी अपने सूड को ऊपर उठा आशीर्वाद देता है ! बच्चे बहुत खुश होते है !
मदुरै में किसी भाषा की प्रॉब्लम नहीं है ! यहाँ के रिक्से वाले भी टूटी - फूटी हिंदी बोल लेते है ! जो नहीं बोल सकते -वे बोलने की प्रयास करते है !भाषाई बंधन आप को फिल नहीं होगा ! मेरी यह दूसरी यात्रा था ! फिर मुझे यहाँ के लोगो ने ०२-११-२०११ को आमंत्रित किया था ! कुछ पर्सनल समयाभाव में न जा सका !
हमने दिन भर मदुरै में ही बिताये और रात को दो बजे -कन्याकुमारी जाने के लिए तैयार हो --प्लेटफार्म पर आ गए ! दो बजे के करीब , चेन्नई-कन्याकुमारी एक्सप्रेस में रिजर्वेशन था ! ट्रेन समय से आधे घंटे लेट आई ! ट्रेन में दाखिल हुए ! सभी ने अपनी - अपनी सीट ग्रहण की ! नींद आ रही थी ! सभी सो गए ! लेकिन मुझे नीद में खलल महसूस हो रही थी ! वजह यह की बार - बार कोच झटका दे रही थी ! इसके भी टेकनिकल कारण है ! बस एक तस्वीर देख लें -
अंततः सबेरे नींद लग गयी ! अचानक आँख खुली ! आस - पास देखा , कोई नजर नहीं आया ! घबडा गया ! लगा जैसे कन्याकुमारी आ गया था ! सभी चले गए थे और हम सो रहे थे ! जल्दी से उठा ! वातानुकूलित कोच होने की वजह से बाहर का दृश्य मालूम न हो रहा था ! उठा और कोच से बाहर आया ! देखा ट्रेन नागरकोयिल स्टेशन पर खाड़ी थी !
जी में जान आया ! बालाजी भी बाहर आ गए ! मैंने उनकी एक तस्वीर प्लेटफोर्म पर ले ली ! जो ऊपर लगा हुआ है ! नगरकोयिल से महज बीस मिनट दूर कन्याकुमारी है ! बिलकुल समुद्र का और भारतीय भूमि की आखिरी जमीं ! हरियाली से ओत - प्रोत ! छोटा सा स्टेशन ! कन्याकुमारी एक दम छोटा रेलवे स्टेशन है ! ट्रेनों की रिपेयर या जाँच नगरकोयिल जंक्शन पर ही होता है ! कन्याकुमारी रेलवे यार्ड की एक दृश्य देंखे-जो मैंने स्टेशन बिल्डिंग के ऊपर चढ़ कर ली थी !
खैर जैसे भी हो , कन्याकुमारी पहुँच गए ! प्रोग्राम के मुताबिक नागराजन - मेल लोको पायलट - त्रिवेंद्रम ने एक ये..सी.रिटायरिंग रूम बुक कर दिए थे ! हमने अपने कमरे में जा कर स्नान वगैरह और तैयारी में लग गए ! नौ बजे के करीब -बाहर निकले ! चुकी यह मेरी पहली यात्रा थी , अतः पूछ - ताछ कर बाहर जाना पड़ा ! वैसे मेरे साथियों ने कैसे रहना है और क्या देखना है - के बारे में पूरी तरह से हमें जानकारी दे दी थी ! यह एक छोटा सा भारतीय भूमि का आखिरी छोर है ! शहर भी बिलकुल छोटा ! सैलानियों के सिवा कुछ नहीं ! सैलानियों के लिए हर सुबिधा के अनुसार , छोटे - बड़े लोज ! रेलवे स्टेशन से ही समुद्र दिखाई दे रहा था ! सैलानियों और लोज को निकल दिया जाय , तो कन्याकुमारी एक गाँव जैसा ही लगेगा ! यहाँ पर मुस्लिम और ईसाईयों की संख्या ज्यादा है ! किन्तु इन्हें सीधे नहीं पहचाना जा सकता ! नाम से ही जानकारी मिलती है ! यहाँ पर मस्जिद या चर्च , ज्यादा नहीं दिखाई देते ! समुद्र तट से लगे -- एक कन्यामायी देवी का पुराना मंदिर भी है !
बाहर सड़क पर जाते ही यह पालकी वाले दिखे ! किसी प्रोग्राम के बाद वापस जाते हुए !
हमें दो दिनों तक यहाँ ठहरना था ! आज पहला दिन था ! नास्ते के बाद कही निकलना चाहिए ? यह निर्णय हमने कर लिए था ! लोकल भ्रमण दुसरे दिन किया जायेगा ! अतः हमने एक कार लेना उचित समझा ! टूरिस्ट साप में गए और समय काफी बीत जाने के बावजूद भी एक कार मिल गयी ! हमने पद्मनाभ मंदिर / त्रिवेंद्रम देखने की योजना बनायीं ! फिर क्या था -निकल पड़े -
मौसम में नमी थी ! वैसे तमिलनाडू में हमेशा गर्मी का कहर रहता है ! खुशनुमा , ठंढी हवा मन को शांति ही प्रदान क़र रही थी ! कार ड्राईवर हिंदी बोल लेता था ! जगह - जगह जानकारी देते रहा ! वैसे वह मुश्लिम था ! बड़ा ही सज्जन और शांत ! हमारे हर आज्ञा का पालन कर रहा था ! रोड के किनारे हरी - हरी झाडिया और नारियल के बृक्ष ! रोड बहुत ही पतला था ! दो वाहनों के क्रोस के समय सावधानी बरतनी पड़ती थी ! तमिलनाडू के मंदिर, ज्यादातर बारह बजे बंद हो जाते है और फिर तीन बजे खुलते है ! करीब पौने बारह बजे हम एक शुशिन्द्र स्वामी मंदिर के पास पहुंचे ! कार ड्राईवर ने कहा , जल्दी जाएँ और जितना हो सके अन्दर घूम लें ! मंदिर बंद होने वाला है ! मंदिर में गए और देखा की बहुत ही प्राचीन किन्तु विराट - गणेश और शिव की मुर्तिया ! ज्यादा न घूम सके ! अन्यथा दुसरे देवताओ से भी मिल लेते थे ! मंदिर के बाहर आये ! देखा की लोक नृत्य वाले दक्षिण भारतीय कला का प्रदर्शन क़र रहे थे ! एक झलक --
बाहर सड़क पर जाते ही यह पालकी वाले दिखे ! किसी प्रोग्राम के बाद वापस जाते हुए !
हमें दो दिनों तक यहाँ ठहरना था ! आज पहला दिन था ! नास्ते के बाद कही निकलना चाहिए ? यह निर्णय हमने कर लिए था ! लोकल भ्रमण दुसरे दिन किया जायेगा ! अतः हमने एक कार लेना उचित समझा ! टूरिस्ट साप में गए और समय काफी बीत जाने के बावजूद भी एक कार मिल गयी ! हमने पद्मनाभ मंदिर / त्रिवेंद्रम देखने की योजना बनायीं ! फिर क्या था -निकल पड़े -
मौसम में नमी थी ! वैसे तमिलनाडू में हमेशा गर्मी का कहर रहता है ! खुशनुमा , ठंढी हवा मन को शांति ही प्रदान क़र रही थी ! कार ड्राईवर हिंदी बोल लेता था ! जगह - जगह जानकारी देते रहा ! वैसे वह मुश्लिम था ! बड़ा ही सज्जन और शांत ! हमारे हर आज्ञा का पालन कर रहा था ! रोड के किनारे हरी - हरी झाडिया और नारियल के बृक्ष ! रोड बहुत ही पतला था ! दो वाहनों के क्रोस के समय सावधानी बरतनी पड़ती थी ! तमिलनाडू के मंदिर, ज्यादातर बारह बजे बंद हो जाते है और फिर तीन बजे खुलते है ! करीब पौने बारह बजे हम एक शुशिन्द्र स्वामी मंदिर के पास पहुंचे ! कार ड्राईवर ने कहा , जल्दी जाएँ और जितना हो सके अन्दर घूम लें ! मंदिर बंद होने वाला है ! मंदिर में गए और देखा की बहुत ही प्राचीन किन्तु विराट - गणेश और शिव की मुर्तिया ! ज्यादा न घूम सके ! अन्यथा दुसरे देवताओ से भी मिल लेते थे ! मंदिर के बाहर आये ! देखा की लोक नृत्य वाले दक्षिण भारतीय कला का प्रदर्शन क़र रहे थे ! एक झलक --
ये कलाकार काली माँ और राक्षस की मुद्रा में नृत्य क़र रहे है ! स्थानीय ड्रम और संगीत की मधुर आवाज - मन को मुग्ध क़र देती थी ! समय ब्यर्थ न क़र हम जल्दी आगे बढ़ गए ! धीरे - धीरे तमिलनाडू की सीमा ख़त्म होने लगी और केरला आने वाला था ! हवा की ठंढी झोके ने बालाजी को निद्रा के आगोश में ले लिया !
बालाजी कार की अगली सीट पर सोते हुए !
क्रमश:
बहुत सुंदर चित्र और यात्रा वृतांत .....
ReplyDeleteमैं कई बार रामेश्वरम और कन्याकुमारी गई हूँ! आपने बहुत सुन्दरता से यात्रा का वर्णन किया है और मुझे ऐसा लगा जैसा में फिर से घूमकर आ गई! सभी चित्र बहुत सुन्दर लगा खासकर आपके बेटे का चित्र जो मन लगाकर बड़े ही आनंद से पसंदीदार दोसा खा रहा है!
ReplyDeleteआपकी यात्रा वृतांत बहुत खूब बधाई...
ReplyDeleteमेरी नई पोस्ट में आपका स्वागत है
रामेश्वरम, मदुरै, कन्याकुमारी ... आप के साथ साथ दक्षिण भारत की सैर हम भी कर रहे अहिं रेल द्वारा ... सुंदरता से कलमबद्ध कर रहे अहिं आप इस यात्रा को ....
ReplyDeleteचित्रमय रोचक यात्रा वृत्तांत ने चित्रों को सजीव कर दिया.
ReplyDeleteहम तो अपनी यात्रा में केरल से कन्याकुमारी गए थे
ReplyDeleteऔर आ़प कन्याकुमारी से केरल जा रहे हैं.
वाह! क्या बात है.
रोचक संस्मरण प्रस्तुत किया है आपने.
आभार.