सत्ताईसवीं फरवरी २०१४ को शिवरात्रि का दिन था । उस दिन ट्रेन में आरक्षण हेतु सिकंदराबाद स्टेशन के आरक्षण खिड़की पर गया था । " क्या आप ही सबसे पीछे है ? " मैंने सामने कतार में खड़े व्यक्ति से पूछा ।उसने हाँ में सिर हिला दी । मै उसके पीछे खड़ा हो गया । मेरे सामने पुरे दस व्यक्ति खड़े थे । आध घंटे से कम नहीं लगेगा ? सोंचते हुए अनमयस्क सा लाईन में खड़ा रहा । सामने वाला बार -बार मुझे पलट कर देख रहा था । शायद कुछ पूछना चाह रहा हो । मैंने उसके तरफ ज्यादा ध्यान देना उचित नहीं समझा ।
आखिर वह पीछे पलटा और अपने टिकट को मुझे दिखाते हुए पूछा - क्या टिकट का रद्दीकरण
इसी खिड़की पर होगा ? मैंने हाँ में सिर हिला दी । पर मेरा मन माना नहीं । उसके हाथो कि
ओर फिर देखा । उसके हाथो में केवल टिकट था । मैंने उससे कहा - " रद्दीकरण के लिए फॉर्म
भरना पड़ेगा , वह कहाँ है ?" उसने सच्चाई भाप ली । उसने फॉर्म नहीं भरी थी । पूछा - " फॉर्म
कहाँ मिलेगा ?" मैंने उसे दूसरी खिड़की कि ओर इशारा कर दी । वह लाईन से बाहर चला गया ।
दिल में तशल्ली हुई ,कम से कम एक व्यक्ति सामने से कम हुआ । सामने से लाईन कम होने कि
नाम नहीं ले रही थी । सामने ग्रीष्म कालीन टूर हेतु आरक्षण वाले ज्यादा थे । मैंने देखा कि फिर वह व्यक्ति हमारे आस -पास टहलने लगा । उसके हाथो में रद्दीकरण का एक फॉर्म था । कभी मेरे तरफ तो कभी आगे वाले व्यक्ति को देख रहा था । शायद कलम कि जरूरत हो । उसके पास कलम नहीं थे । मेरे मन में भूचाल आया । मै उसे कलम नहीं देने वाला क्योकि आरक्षण कि खिड़की के
पास मेरे कई कलम गुम हो चुके है । जिन्होंने फॉर्म भरने के लिए लिए , बिन वापस किये चले गएँ ।
यह कैसी विडम्बना है कि आज - कल के ज्यादातर व्यक्तियो के पास मोबाइल / स्मार्टफोन मिल जायेंगे , पर कलम नहीं ।
तब तक लाईन में खड़े सामने वाले व्यक्ति ने उसकी मंसा को भांप लिया और अपनी जेब कि कलम उसके तरफ बढ़ा दी । वह व्यक्ति भी सहर्ष स्वीकार कर लिया । किन्तु फॉर्म भरने कि वजाय वह इधर - उधर देखते रहा । आखिर कार कलम देनेवाले ने कहा - " फॉर्म भर डालो भाई , आपकी बारी आने वाला है । "
ओह उसके मुख से आश्चर्य जनक शव्द निकले - " सर लिखने नहीं आता । " मेरा मन उसके प्रति सहानुभूति से भर गया । क्या यही है शिक्षा का अधिकार ? क्या यही है आजादी के पैंसठ वर्षो से अधिक की उन्नति ? आज भी देश के कोने - कोने में हजारो ऐसे व्यक्ति मिल जायेंगे , जो पढ़ाई से ज्यादा जीविका पर ज्यादा ध्यान देते है । अगर ऐसा ही रहा तो आधुनिक भारत की कल्पना बेकार है ।
ओह, दुखद स्थिति है ...
ReplyDeleteये दुखद स्थिति अक्सर जब् मैं दुबई से भारत जाता हूँ तो भी कई कामगरों कि देखने को मिलती है ... उन्हें लिखना पढ़ना नहीं आता ... इस स्थिति को बदलना जरूरी है देश को ...
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