२७ मार्च २०१४ दिन गुरुवार । राजधानी एक्सप्रेस लेकर सिकंदराबाद आया था । आज ही आल इण्डिया लोको रनिंग स्टाफ एसोसिएसन के आह्वान पर , लोको पायलट जनरल मैनेजर के ऑफिस के समक्ष धरने पर बैठने वाले थे । मेरा को -लोको पायलट सैयद हुमायूँ और मै धरना में शरीक हुए । दोपहर को दक्षिण मध्य रेलवे के जोनल लीडरो की वैठक थी । पूरी रात गाड़ी चलाने और धरना में शामिल होने कि वजह से थकावट महसूस हो रही थी कारण पिछले दिन बुखार से भी ग्रसित था । अतः जोनल सदस्यों की सभा में अनुपस्थित ही रहा ।
वापसी के समय कोई गाड़ी नहीं थी । लिंक के अनुसार गरीब रथ (१२७३५) से मुख्यालय वापस जाना था । सिकंदराबाद से यह गाड़ी १९.१५ बजे छूटती है । हम समयानुसार प्लॅटफॉर्म पर पहुँच गए । हमने एडवांस में अपने बर्थ आरक्षित कर ली थी । इस लिए कोई असुविधा का सवाल नहीं था । कोच -७ / बर्थ संख्या -३४ और ३७ । प्लॅटफॉर्म का नजारा अजीबो - गरीब था । गाडी पर लेबल गरीबो की , पर पूरी उम्मीदवारी अमीरो की थी । लगता था जैसे श्री लालू यादव जी ने अमीरो को तोहफा स्वरुप इस ट्रेन को चलाने का निर्णय लिया था । शायद असली सच्चाई यही हो । इसीलिए तो गरीबो ने श्री लालू जी को गरीब बना दिए और वह बनते ही जा रहे है । सामाजिक कार्य में खोट कभी छुपती नहीं है । आज सबको मालूम है , लालू जी किस मुसीबत से जूझ रहे है ।
हमने अपने बर्थ ग्रहण किये और लिंगमपल्ली आने के पूर्व ही डिन्नर कर ली । लिंगमपल्ली में यात्रियो की काफी भीड़ हो जाती है । आध घंटे में लिंगमपल्ली भी आ गया । कोच खचा - खच तुरंत भर गया । यात्रियो में ९०% नौजवान और १०% ही ४० वर्ष उम्र वाले या ऊपर के होंगे । यह प्रतिसत हमेशा देखी जा सकती है । सिकंदराबाद / हैदराबाद / बंगलूरू में जुड़वा भाई का सम्बन्ध है । प्रतिदिन लाखो की संख्या में एक शहर से दूसरे शहर में लोगो का स्थानांतरण होते रहता है । अगर एक दिन भी ट्रेन सेवा रूक जाय , तो लोगो में अफरातफरी मच जायेगी ।
हमारे आमने - सामने वाले सीट पर एक दम्पति और उनके दो छोटे - छोटे प्यारे बच्चे स्थान ग्रहण किये । उनकी सीट भी वही थी । इनकी आयु करीब २५ - ३० वर्ष के आस - पास होगी । पहले तो मैंने समझा कि दोनों युवक है । लेकिन ऐसा नहीं था । एक युवक और दूसरी उनकी पत्नी थी । बिलकुल अत्याधुनिक लिबास से सज्जित । उस संभ्रांत महिला ने काले-नीले स्पोर्ट पैंट और सफ़ेद -टी शर्ट पहन रखी थी । दृश्य का वर्णन नहीं कर सकता । आस - पास के लोगो कि निगाहे सिर्फ उसी पर । लिबास ऐसे थे कि हमें उधर देखने में शर्म आ रही थी । अगर ऐसे पहनावे का विरोध किया जाय तो जबाब मिलेंगे - मेरी मर्जी जैसा भी पहनू । अपने चरित्र को कंट्रोल में रखिये ।
यहाँ प्रश्न उठता है कि --
यहाँ प्रश्न उठता है कि --
१) क्या कोई तड़क - भड़क पहनावे से महान / गुणी बन जाता है ?
२)आखिर इतनी गंदी एक्सपोज किसके लिए ?
३)क्या ऐसे व्यक्तियो के समक्ष समाज का कोई दायित्व नहीं बनता ?
४)अपने अधिकार कि दुहाई देने वाले , क्या दूसरे के अधिकारो का हनन नहीं करते ?
५)क्या ऐसे व्यक्ति समाज में व्यभिचार फ़ैलाने में सहयोग नहीं करते ?
६)क्या वस्त्र का निर्माण इसी दिन के लिए हुए थे या अंग ढकने के लिए ?
७)क्या हमारे समक्ष हमारी सभ्यता कोई मायने नहीं रखती ?
बहुत से ऐसे प्रश्न है , जो आज समाज के युवा वर्ग के सामने है । अपने समाज को स्वच्छ और भारतीय बनाने में आज के युवा वर्ग को सहयोग करनी चाहिए । इतिहास उठा के देखने से पता चलेगा कि महान व्यक्तियो के आचरण कैसे थे । स्वर्गीय और भूतपूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी जैसा अंग्रेजी आज भी कोई नहीं बोलता है और पहनावा -धोती और कुरता । स्वर्गीय इंदिराजी का इतिहास सामने है । आज के श्री मोदी जी को देखे ? डॉक्टर अब्दुल कलाम जी को देखे है वगैरह - वगैरह । नदी में चारो तरफ जल ही जल फैली होती है , परन्तु डुबकी किसी खास जगह ही लगायी जाती है सुरक्षित रहने के लिए । वैसे ही समाज में सुरक्षित डुबकी ( पहनावा ) क्यों नहीं ? वस्त्र तन ढकने के लिए पहने जाते है , तन दिखाने के लिए नहीं ।
७)क्या हमारे समक्ष हमारी सभ्यता कोई मायने नहीं रखती ?
बहुत से ऐसे प्रश्न है , जो आज समाज के युवा वर्ग के सामने है । अपने समाज को स्वच्छ और भारतीय बनाने में आज के युवा वर्ग को सहयोग करनी चाहिए । इतिहास उठा के देखने से पता चलेगा कि महान व्यक्तियो के आचरण कैसे थे । स्वर्गीय और भूतपूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर जी जैसा अंग्रेजी आज भी कोई नहीं बोलता है और पहनावा -धोती और कुरता । स्वर्गीय इंदिराजी का इतिहास सामने है । आज के श्री मोदी जी को देखे ? डॉक्टर अब्दुल कलाम जी को देखे है वगैरह - वगैरह । नदी में चारो तरफ जल ही जल फैली होती है , परन्तु डुबकी किसी खास जगह ही लगायी जाती है सुरक्षित रहने के लिए । वैसे ही समाज में सुरक्षित डुबकी ( पहनावा ) क्यों नहीं ? वस्त्र तन ढकने के लिए पहने जाते है , तन दिखाने के लिए नहीं ।
बहुत कुछ कोच में हुए जो व्यवहारिक नहीं थे । उस युवक ने हमसे पूछा - आप के बर्थ कौन से है , ये लोअर बर्थ है क्या ? हमने हामी भरते हुए कहा - जी बिलकुल सही । उसने अनुरोध किया कि - " क्या आप लोग मेरे मीडिल बर्थ से एक्सचेंज करना स्वीकार करेंगे ?" हमारे मन में एक आवाज उठी ।कितने स्वार्थी हैं , ऐसे आधुनिक घोड़े पर चढ़ने वाले , हमारे लोअर बर्थ को भी छीन लेना चाहते थे कैसी विडम्बना है । पूछने के पहले हमारे उम्र कि लिहाज तो कर लेते ? लोअर बर्थ की इच्छा सभी की होती है । ऐसे इंसानो को लोअर बर्थ सुपुर्द करना भी उचित नहीं लगा क्युकी गुंतकल में यात्री ज्वाइन करते है । गुंतकल में आने वाले यात्री उन्हें डिस्टर्ब करेंगे । अतः हमने उन्हें पूरी बाते बता दी । उन्हें भी मायूसी में संतोष करना पड़ा । वैसे मुझे दूसरे कि पहनावे से जलन नहीं है ,बस अपने संस्कार से वेहद लगाव है ।अपनी संस्कार छोड़ ,दूसरे की संस्कार स्वीकार करने वाले से बड़ा भिखारी भला कौन हो सकता है ?
ये वो थे जो ज़माने से बदल रहे थे ,
पर ज़माने को
बदलने कि ताकत उनमे नहीं थी ।
ये वो थे जो ज़माने से बदल रहे थे ,
पर ज़माने को
बदलने कि ताकत उनमे नहीं थी ।
क्या कहें .... हर तरह के अनुभव करवाती हैं यात्रायें.....
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