Wednesday, January 21, 2015

ऐसा भी होता है ।

दिसंबर का महीना था ।कड़ाके की सर्दी । कुहासे की वजह से रेल गाड़ियों के आवा जाही पर असर पड़ा था । यानि  दिनांक 15 और वर्ष 2014 । आज रिफ्रेशर क्लास का आखिरी दिन था । वक्त गुजरता जा रहा था ।समय जैसे ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था । सभी को , जिन्हें ट्रेन पकड़नी थी उन्हें एक ही चिंता  सता रही थी की कब रिलीफ पत्र मिलेगा । मैं भी उसमे से एक था । शाम को करीब पौने पाँच बजे रिलीफ पत्र मिला । जैसे - तैसे हास्टल को भागे । पहले से  ही पर्सनल सामान सहेज के रख दिया था । राजधानी का समय हो चला था । भागते हुए काजीपेट के प्लेटफॉर्म संख्या दो पर पहुंचे  । तब तक राजधानी एक्सप्रेस जा चुकी थी । अनततः ईस्ट कॉस्ट एक्सप्रेस से हैदराबाद के लिए रवाना हुवे ।

हैदराबाद से गुंतकल के लिये  कोल्हापुर एक्सप्रेस जाती है । उसमे हम सभी का रिजर्वेशन था । रात ग्यारह बजे ट्रेन को प्लेटफॉर्म में लगाया गया । मेरे साथ कई लोको पायलट थे । मुझे नींद आ रही थी । अतः बिना देर किये , अपने 2 टायर कोच में पवेश किया । मेरा लोअर बर्थ था । मेरे सामने के ऊपरी बर्थ पर एक बुजुर्ग अपने बिस्तर को सहेज रहे थे ।अपने सामानों को सुव्यवस्थित रख , थोड़े समय के लिए टॉयलेट या   बाहर चले गए । 

कुछ समय के उपरान्त लोको पायलट मुरली आ धमाके । मैंने पूछा _ आप की बर्थ कौन सी है ? उन्होंने  मेरे सामने की ऊपर वाली बर्थ की तरफ इशारा किया । मैंने कहाकि उसपर एक बुजुर्ग है । गलती से आया होगा , कहते हुए बुजुर्ग के बैग को मुरली जी ने निचे रख दिए और  मेरे बगल में ही बैठ गए । हम एक दूसरे से वार्तालाप में व्यस्त थे । तभी वह बुजुर्ग आये । अपने बैग को बर्थ से गायब देख , जोर से चिल्लाने लगे । मेरा बैग कहा गया ? मुरली जी ने उसके तरफ रुख करते हुए जबाब दिया की  आप का बैग यहाँ निचे है । अब तो वह बुजुर्ग आप से बाहर हो गए और बोले किसने यहाँ रखी ? मुरली ने तुरंत स्वीकारते हुए कह दी _ मैंने रखी है ये बर्थ मेरा है । बुजुर्ग कंट्रोल से बाहर । मुरली के तरफ इशारा करते हुए  बोले _ मेरा बैग ऊपर रखो जल्दी । ये बर्थ मेरा है । 

ज्यादा बात न बढे इसलिए मैंने हस्तक्षेप किया । दोनों से उनकी टिकट  फिर से देखने का आग्रह किया । चार्ट में मेरा नाम मुरली लिखा हुआ है _ मुरली ने कहा । वह बुजुर्ग व्यक्ति टपक से कहा मेरा नाम मुरली है । मैंने मुरली से उनकी टिकट दिखाने को कहा । किन्तु टिकट उनके पास नहीं था ।टिकट उनके सहायक के पास था । उस व्यक्ति ने अपनी टिकट दिखाई । वह बर्थ उसी का था । अतः मुरली उसके कोप का अधिकारी न बने , मैंने ही उसकी बैग उसके बर्थ पर तुरंत रख दिया । वह व्यक्ति गुस्से में लाल हो गया था । बहुत कुछ कहा जो यहाँ उद्धृत करना जरूरी नहीं समझता । मुरली को अपने गलती का अहसास हो गया था । अब शांत और चुप्पी के सिवाय कोई औचित्य नहीं था । मुरली इस मामले को नजरअंदाज करते हुए चुपके से खिसक गए । सहायक लोको पायलट के आने के बाद पता चला की उनका बर्थ कहीं और था ।


जी हाँ आये दिन हमसे ऐसी गलतिया होती रहती है । पर हम में कितने लोग है जो गंभीरता से सोंचते है ? थोड़ी भी सूझ बुझ से  की गयी कार्य हमारे स्वाभिमान में चार चाँद लगा देते है । मनुष्य मात्र ही एक ऐसा प्राणी है जिसे सूझ बुझ की शक्ति प्राप्त है अन्यथा जानवर और मनुष्य में फर्क कैसे ? स्वच्छ और सशक्त नागरिक देश के उन्नति के नीव है ।

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