आज 6 मई 2016 है । आज कोई प्रोग्राम तो नहीं है । सुबह करीब 10 बजे होटल मैनेजर का फोन आया । उसका कहना था कि दोपहर तक 24 घंटे हो जायेंगे , अतः कमरा खाली करेंगे या एक्सटेंशन लेंगे ? मैंने उसे बताया कि दस ग्यारह बजे रात को कमरा खाली करूँगा । उसने कहा कि तब दो दिनों के चार्ज लगेंगे । " कैसा इंसाफ है यार , कुछ ही घंटो की तो बात है । क्या कुछ एडजस्ट नहीं कर सकते क्या ? " - मैंने उससे पूछा । मैं कुछ नहीं कर सकता सर , ये तो लॉज के नियम में शामिल है । मालिक के साथ गद्दारी तो नहीं कर सकता । उसने बड़ी ही नम्रता से अपनी बात कह डाली । इस कर्मचारी के ईमानदारी पर खुशी भी हुयी । फिर उसने ही कहा - साब एक काम कीजिये आप 6 बजे तक खाली कर दें । केवल आधे दिन का एक्स्ट्रा चार्ज पे कर दीजियेगा । चलो ठीक है । नहीं से कुछ तो भला । मैंने हामी भर दी । सुबह बाजार जाने का प्लान था किंतु शाम को 6 बजे के बाद क्या करेंगे ? अतः प्रोग्राम कैंसिल करनी पड़ी । जो खरीदना है वह शाम को ही खरीद लेंगे ।जम्मू के वातावरण में कोई खास गर्मी नहीं थी । हल्का धुप था । वादे के मुताबिक करीब 6 बजे संध्या को लॉज खाली कर दिए । जम्मू स्टेशन सामने ही था अतः ऑटो वगैरह नहीं करनी पड़ी । चलिये ऑटो के पैसे बच गए । हम पैदल ही स्टेशन आ गए , सिर्फ 5 मिनट लगे । स्टेशन के सुरक्षा घेरो को पार कर स्टेशन परिसर में दाखिल हुए । सोंचा रिटायरिंग रुम में कोई कमरा मिल जाय तो बहुत अच्छा होगा । कोशिस की किन्तु कमरे ख़ाली नहीं थे । सामान के साथ बाजार में घूमना मुश्किल था । हमने अपने सामान को लॉकर में जमा कर दिए । हमारी ट्रेन संख्या 22462 एक्सप्रेस थी , जिसका आगमन / जम्मू में रात बारह बजे के बाद था । हमने टिकट कटरा से लिए थे और बोर्डिंग जम्मू से करवा ली थी ।अब निश्चिन्त हो बाजार की तरफ निकल पड़े । समय को व्यतीत करना भी तो मुश्किल लग रहा था । हमने बाजार से सूखे फल , रेन कोट , स्वीट , सेव और कुछ ऊनि साल ख़रीदे क्योंकि हमारे शहर के अपेक्षा बहुत सस्ते थे । साउथ इंडियन होने की वजह से नार्थ के खाने कुछ अरुचिकर लग रहे थे । फिर भी जहा तक हो समन्वय बनाना भी जरुरी था । एक दुकान वाले ने बताया कि सामने वैष्णो देवी ट्रस्ट का निवास स्थल है । कमरे वगैरह मिलते है । ग्राउंड फ्लोर पर होटल है ववहाँ हर तरह के खाने मिलते है और बहुत साफ सुथरे है । आप लोग वहां जाकर भोजन कर सकते है सुझाव अच्छे लगे । हमने उस दूकानदार को धन्यवाद दी और उस निवास की तरफ चल पड़े । उसने ठीक ही कहा था । बिलकुल सुन्दर अट्टालिका , साफ सुथरी । पर्यटकों के लिए किफायती दर पर कमरे उपलब्ध थे । वातानुकूलित या नॉन वातानुकूलित दोनों । खैर हमें कमरे से मतलब नहीं था फिर भी पता चला की कोई रुम नहीं है । हमने रात्रि भोजन किये । साउथ इंडियन वड़े भी खाने के लिए लिये , पर वे उतने टेस्टी नहीं थे ।जम्मू स्टेशन के आस पास साफ सफाई नहीं थी । जहाँ देखो वही गन्दगी दिखाई दे रही थी । ये स्थानीय निकायों की देन है ।ज्यादा चहल पहल भी नहीं थी । जो पब्लिक थी वह यात्री या दुकान व् दुकानदारी वाले ही थे । हम भोजन के बाद वैष्णो देवी निवास के सामने बने बगीचे में टहलने लगे । अभी बहुत समय है इसीलिए वही एक खली पड़े बेंच पर बैठ गए । इंतजार के समय बहुत ही कष्टकर लगते है । इधर उधर की बाते करते रहे । अब समय साढ़े दस बजने वाले थे । हम वापस स्टेशन की तरफ चल दिए । रास्ते में पत्नी को अचानक एक पत्थर से ठोकर लगी । वह बुरी तरह गिर पड़ी । हमने सहारा देकर उन्हें उठा दिए । उन्हें जोर से घुटने में चोट लग गई थी। पत्नी उसी तरह कराहते हुए स्टेशन के लॉकर तक पहुंची । ये क्या लॉकर के दरवाजे के ऊपर ताले लगे थे । पास के फल वाले दूकानदार से पूछा जो दुकान बंद कर रहा था ।उसने कहा - लॉकर दस बजे बंद हो जाते है अब सुबह 6 बजे खुलेंगे । ये सुन ऐसा महसूस हुआ जैसे हमारे शरीर के खून ही सुख गए हो । अनायास मुख से निकला - ओह अब क्या होगा । हमारी गाड़ी साढ़े बारह बजे है और वह भी रिजर्व सीट ।खैर जो होगा , अब तो कुछ करना ही पड़ेगा । हम पूछ ताछ कार्यालय में अपनी कहानी दोहरायी । पर उस पीआरओ के कान पर जु तक नहीं रेंगी । उलटे उसने हमें सिख देने लगा - क्या आप को मालूम नहीं है कि ऑफिस दस बजे बंद हो जाते है । देखते ही देखते और कुछ यात्री जमा हो गए , जिनके सामान लॉकर में थे और वे भी घबड़ाये हुए थे । उसने किसी भी प्रकार के मदद से इंकार कर दिया । फिर हम टीटीई के कार्यालय में गए , शायद कुछ मदद मिल सके । उस कार्यालय में कोई नहीं था , सिर्फ एक व्यक्ति दिखा जिसने सुझाव दिया की स्टेशन मास्टर से मिलिए । वह कुछ कर सकता है क्यों की वही स्टेशन का इंचार्ज है । हम स्टेशन सुपरिटेंडेंट के कार्यालय में भी गए पर दरवाजे पर बाहर से ताला लटका रहा था । कैरेज स्टाफ मिल गए । उनसे पूछा तो उन्होंने कहा कि रात के समय यहाँ कोई नहीं रहता । मुझे आश्चर्य हो रहा था क्या ये रेलवे की संस्था है या कोई और कुछ । जहाँ देखो वहाँ किसी को भी प्रोपर ड्यूटी करते नहीं देख पा रहा हूँ । जैसे जैसे समय बीत रहा था और ट्रेन के आने का अंतर काम हो रहा था , दिल में घबराहट बढ़ती जा रही थी । दिमाग में एक सूझ आई । पार्सल ऑफिस में गया क्योंकि लॉकर इसी वाणिज्य विभाग के अंतर्गत आता है । वहाँ एक क्लर्क मिला । उसने कहा - अब कुछ नहीं हो सकता आप सुबह 6 बजे आ जाए । मैंने अपनी दुखड़ा सुनाई पर वो बिलकुल इंकार कर गया ।मैं अपने को निःसहाय महसूस करने लगा । देखा धीरे धीरे सभी आस पास की दुकानें बंद होते जा रही थी और जम्मू स्टेशन वीरान होते जा रहा था । जो बचे थे वे सिर्फ यात्री गण ही थे। जिन्हें कोई न कोई ट्रैन पकड़नी थी । अचानक मुझे सामने लोको पायलट की लॉबी नजर आयी । मैंने अब तक के किसी भी पूछ ताछ के समय अपनी परिचय जाहिर नहीं की थी । एक साधारण पब्लिक की तरह ही मदद की पेशकस की थी । मैं लॉबी के अंदर गया और अपना पूरा परिचय देते हुए अपनी समस्या बताई । क्रू कंट्रोलर आश्चर्यचकित हुआ और तुरन्त पार्सल ऑफिस से कांटेक्ट किये । कुछ बात बनती नजर आई । उन्होंने फोन कट कर दी और एक बॉक्स बॉय के साथ मुझे पार्सल ऑफिस में जाने के लिए निर्देश दिए । अब मैं पार्सल ऑफिस में था और वह बॉक्स बॉय जिससे मुझे मिलाया , वह वही क्लर्क था जो पहले इंकार कर चुका था । वह कुछ शर्मिंदगी महसूस किया और बोला - आप लॉकर के पास इंतजार कीजिये मैं एक ट्रेन आ रही है उसमें पार्सल के सामान लोड करवा कर आता हूँ । मैंने स्वीकृति में हामी भर दी किन्तु लॉकर के पास नहीं गया । डर था कि कंही ये भूल न जाय इसीलिए वही ट्रेन आने तक खड़ा रहा । ट्रेन आई , उसने कुछ सामान गार्ड ब्रेक में लोड किये और एक खलासी को लॉकर की चाभी देते हुए बोला- जाओ लॉकर खोलकर साहब का सामान दे दो । हम सभी लॉकर के पास थे । अपने सामान ले लिए । अब हम अपने को बहुत सफल महसूस कर रहे थे , जैसे कोई लड़ाई जीत ली हो । और होनी भी चाहिए , ये स्वाभाविक है । हमने कुछ पैसे उस खलासी को उपहार स्वरूप देने चाहे , पर उसने लेने से इंकार कर दिया । फिर भी मेरी पत्नी उसके पॉकेट में जबरदस्ती रख दी ।पत्नी को गंभीर चोट लगी थी पर इस आफत की घडी ने सब भुलने के लिए मजबूर कर दिया था । मैंने कई बार रेलवे की शिकायत वाली नंबर पर फोन की परंतु दूसरे तरफ से कॉल रिसीव नहीं किया गया । ऐसा लगता था जैसे कुछ समय के लिए रेलवे ठप्प पड़ गयी हो । एक छोटी सी भूल ( यानि नोटिस और सूचना पट्ट ) ने हमें इस जगह परेशानी में डाल दिया था । प्रायः हम छोटी छोटी सूचनाओं को नजर अंदाज कर देते है । पर ऐसा नहीं है । सभी अपने महत्त्व को उजागर कर ही देते है । आज हमें सिख मिल गयी थी कि हमेशा सतर्क और क़ानूनी प्रक्रिया पर ध्यान देनी चाहिए । थोड़ी सी गलती बड़ी परेशानी उत्तपन्न कर देती है । सरकारी कर्मचारी पब्लिक से कैसा व्यवहार करते है , वह सामने था । यही नहीं कभी कभी ये अपने कर्मचारी को भी मदद करने से नजरअंदाज कर देते है । एक सरकारी कर्मचारी को सदैव मदद के लिए तैयार रहना चाहिए । शायद आज के युग में स्वार्थी ज्यादा और परोपकारी बहुत कम है । यही नहीं , पब्लिक की सहनशीलता इन्हें निकम्मा बना देती है । पब्लिक को चाहिए की शिकायत पुस्तिका का उपयोग जरूर करें । आज हमारे और आप के विचारों में सकारात्मक बदलाव जरुरी है । सकारात्मक विचार उत्थान और नकारात्मक पतन के धोत्तक है ।आगे की यात्रा के लिए इंतजार कीजिये - माँ वैष्णो देवी यात्रा - 5
यह ब्लॉग मेरे निजी अनुभवों जो सत्य और वास्तविक घटना पर निर्भर करता है - पर आधारित है ! वह जीवन - जीवन ही क्या जिसकी कोई कहानी न हो! जीवन एक सवाल से कम नहीं ! सवाल का जबाब देना और परिणाम प्राप्त करना ही इस जीवन के रहस्य है !! सवाल की हेरा-फेरी या नक़ल उचित नहीं!इससवाल के जबाब स्वयं ढूढ़ने पड़ेगे!THIS BLOG IS PURELY DEDICATED TO LABORIOUS,CORRUPTION-LESS ,PUNCTUAL AND DISCIPLINED LOCO PILOTS OF INDIAN RAILWAYS ( please note --this blog is in " HINDI ")
LOCO PILOTS OF INDIAN RAILWAY.
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Friday, November 25, 2016
माँ वैष्णो देवी यात्रा - 4
Saturday, September 24, 2016
माँ वैष्णो देवी यात्रा -3
Saturday, July 2, 2016
माँ बैष्णो देवी यात्रा - 2
मेरी जीवन संगिनी और बाला जी । कटरा स्टेशन |
हम स्टेशन से बाहर निकले । इस अनजान शहर में एक आश्रय की जरुरत थी । कोई जान पहचान वाला नहीं था । अतः होटल के कमरे लेना जरुरी था । सामने रोड पर एक दलाल घूम रहा था । हमें खड़े देख पास आया और पूछा - साब रूम चाहिए क्या ? हमने हामी भरी तो उसने कहा - मिल जायेगा । ये सी या नार्मल ? कटरा का वातावरण बिलकुल ठंढा था अतः वातानुकूलित का प्रश्न नहीं था । हमने कहा - नार्मल रूम चलेगा । किन्तु साफ सुथरा रहनी चाहिए । उसने कहा - आप चल कर कमरा देख ले । पसंद आये तो रहे अन्यथा दूसरे जगह ले चलूँगा । 1200/- लगेगा । हमने कम कराये तो हजार पर राजी हो गया । उसने किसी को फोन किया और एक कार सामने आकर रुकी । हमें बैठने का इशारा हुआ । हम लोग कार में बैठ गए । करीब 2 मिनट में कार एक होटल के पोर्टिको में प्रवेश किया । जिसका नाम होटल टुडे है जो रेलवे स्टेशन रोड में स्थित है । हमने प्रोग्राम के अनुरूप रुम का मुआयना किया । रूम बिलकुल अच्छे थे । हमारी सहमति के बाद कागजी प्रक्रिया पूरी हुई । होटल का मैनेजर हमारी आईडी नहीं पूछा । जबकि हम तैयार होकर चले थे । हमने हमारे कमरे में प्रवेश किया जो ग्राउंड फ्लोर पर ही था ।
हम दिन चर्या से निवृत होकर तैयार थे । नास्ते का समय था । हमने होटल से ही आलू पराठे और दही लिए । आदत तो नहीं था पर स्वाद अच्छे लगे । आज आराम करने का प्रोग्राम था चुकी कोई थकावट तो नहीं थी । इसीलिए हमने आज ही मंदिर जाने के प्रोग्राम तय कर ली । होटल वालो ने भी बताया की अभी जाने से शाम तक वापसी संभव है । यहाँ के होटलो में एक समानता है । सभी के पास अपनी कार है । ये यात्रियों को मुफ़्त में रेलवे स्टेशन या वैष्णो देवी यात्रा की शुरुवाती द्वार वाणगंगा तक ले जाते है और वापस भी ले आते है । तो हमने पूर्णतः आज ही मंदिर जाने का निश्चय कर लिया ।
बालाजी होटल के मुख्य द्वार पर । |
कुछ आगे बढ़ते ही पालकी और घोड़ो के मालिको से सामना हुई । वे भी घेर लिए । श्रीमती जी शुगर की मरीज है । पैदल यात्रा संभव नहीं था । घोड़े या पालकी जरुरी था । मुझे भी पैदल की आदत नहीं है । पालकी वाले 5 हजार और घोड़े वाले ने 1850/- की मांग रखे वह भी प्रति व्यक्ति । हेलीकॉप्टर से जाने का प्लान था किन्तु इसकी बुकिंग 2 माहपूर्व करनी पड़ती है । करेंट संभव नहीं था । माँ की यात्रा , और पॉकेट पर बल न पड़े अतः हमने घोड़े की सवारी का निर्णय किया । बहुत जद्दो जहद के बाद 1500/- प्रति व्यक्ति पर जाने और ले आने की बात बनी । घोड़े पर सवार होने के लिए जगह जगह प्लेटफॉर्म बने हुए है । घोड़े की सवारी भी अजीब लगी । घोड़े के टॉप और हमारे शरीर में उछल कूद आनंददायी थे पर यात्रा के बाद कमर को दर्द का अहसास हुआ । वाणगंगा से मंदिर की चढ़ाई 13 किलोमीटर है । इसी रास्ते में अर्धकुआरी माता जी का मंदिर है । जिनका दर्शन करने के लिए एक गुफा से गुजरना पड़ता है । जो सभी के लिए उपयुक्त नहीं है । घोड़े से यात्रा करने के समय यह मंदिर बाईपास हो जाता है । अगर मन में इच्छा हो तो घोड़े के मालिको से कह , यहाँ भी जाया जा सकता है । चढ़ाई के रास्ते पक्के है । जगह जगह शेड भी मिल जाते है । छोटे छोटे दुकान भी मिलते है। रास्ते में पड़ने वाले दुकान बहुत पैसे वसूल करते है क्योंकि उन्हें अपने सामान घोड़े के माध्यम से लाने पड़ते है । वैसे तो गर्मी का मौसम था किन्तु सुबह से धुप नदारद थी । उस पर यात्रा के दौरान एक दो जगह बारिस भी हुई जिससे मौसम खुशनुमा हो गया था । लोग पेट के लिए क्या क्या न करते है । हम घोड़े पर बैठे थे और उनका मालिक उन्हें पकड़ कर निचे चल रहे थे । यात्रा के दौरान जगह जगह चेक पोस्ट मिले ।
तीन साढ़े तीन घंटे के बाद हम मंदिर के क्षेत्र में प्रवेश कर गए । घोड़े वाले अपने घोड़े के साथ आराम गृह में चले गए और अपना मोबाइल नंबर देकर गए । जम्मू कश्मीर में प्रीपेड मोबाइल ( बाहर राज्य के ) काम नहीं करते है । पोस्ट पेड कार्य करते है । मेरे पास पोस्टपेड था । मंदिर के प्रांगण में जुत्ते चप्पल मोबाइल बेल्ट या कोई भी सामान लेकर जाना पूरी तरह से प्रतिबंधित है । हमने अपने सभी सामान शिरीन बोर्ड के लॉकर में जमा कर दिए । मंदिर के अंदर जाने के पूर्व हमारे पंजीकरण कार्ड सुरक्षा कर्मियो ने ले लिए । दर्शन के लिए ज्यादा समय नहीं लगा । माताजी का दर्शन आराम से हो गया ।
बाहर निकलने के वक्त मिश्री के पैकेट और एक चांदी के सिक्के प्रसाद के रूप में मिले । करीब तीन बजते होंगे । बाहर शिरीन के भोजनालय में भोजन करना पड़ा । पहाड़ियों को काट कर सरकारी या प्राइवेट इमारते बनी है । इतनी ऊँचाई पर जहाँ सामग्री को लाना काफी कष्टकर और महंगा है , फिर भी पूर्ण सुविधा उपलब्ध है । हाँ एक बात जरूर है कि किसी आपदा के समय राहत कार्य बहुत कठिन साबित हो सकता है । कोई भी यहाँ ज्यादा ठहराना नहीं चाहेगा । माताजी के दर्शन अधूरे समझे जाते है यदि आपने भैरव बाबा के दर्शन नहीं किये । भैरव बाबा का मंदिर करीब 2 किलोमीटर ऊपर है । हमने लॉकर से सामान लिए और भैरव बाबा जी के लिए रवाना हो गए । ये एक छोटा सा मंदिर है । इसके समीप एक गैलरी है । जहाँ से निचे के नजारे अदभुद दिखाई देते है । यहाँ हमने भैरव बाबा के दर्शन किये । आकाश में बदल घिर आये थे । कभी भी बारिस आ सकती थी । लौडस्पीकर में उदघोषणा हो रही थी कि भक्तो से निवेदन है कि यहाँ न ठहरे । कृपया वापसी के लिए तुरंत प्रथान करें क्योंकि मौसम अच्छा नहीं है । अब हम भी घोड़े से वापस चल दिए ।
चढ़ाई के वक्त तकलीफ महसूस नहीं हुआ पर पहाड़ के ढलान पर घोड़े की दौड़ तकलीफदेह लगी । करीब 7 बजे तक वाणगंगा आ गए । हमने माता के दरबार में फिर आने के कामना के साथ माँ से दुआ मांगी और एक होटल में जाकर भोजन किये । होटल मैनेजर को फोन किये । उसने अपनी कार भेजी और हम अब होटल के प्रांगण में थे । कोई भी यात्रा सुखदायी नहीं होती पर हमारे अदम्य साहस और आस्था वहां खीच ले जाती है । सुख की घरेलु व्यवस्था सभी जगह नहीं मिलती है । हमें अपने को यात्रा के बिच आने वाले अड़चनों से सामंजस्य बनाये रखना पड़ता है । यह भी सत्य है कि यह सबके लिए नसीब नहीं होता ।
आगे की कथा भाग - 3 में ।
तीन साढ़े तीन घंटे के बाद हम मंदिर के क्षेत्र में प्रवेश कर गए । घोड़े वाले अपने घोड़े के साथ आराम गृह में चले गए और अपना मोबाइल नंबर देकर गए । जम्मू कश्मीर में प्रीपेड मोबाइल ( बाहर राज्य के ) काम नहीं करते है । पोस्ट पेड कार्य करते है । मेरे पास पोस्टपेड था । मंदिर के प्रांगण में जुत्ते चप्पल मोबाइल बेल्ट या कोई भी सामान लेकर जाना पूरी तरह से प्रतिबंधित है । हमने अपने सभी सामान शिरीन बोर्ड के लॉकर में जमा कर दिए । मंदिर के अंदर जाने के पूर्व हमारे पंजीकरण कार्ड सुरक्षा कर्मियो ने ले लिए । दर्शन के लिए ज्यादा समय नहीं लगा । माताजी का दर्शन आराम से हो गया ।
बाहर निकलने के वक्त मिश्री के पैकेट और एक चांदी के सिक्के प्रसाद के रूप में मिले । करीब तीन बजते होंगे । बाहर शिरीन के भोजनालय में भोजन करना पड़ा । पहाड़ियों को काट कर सरकारी या प्राइवेट इमारते बनी है । इतनी ऊँचाई पर जहाँ सामग्री को लाना काफी कष्टकर और महंगा है , फिर भी पूर्ण सुविधा उपलब्ध है । हाँ एक बात जरूर है कि किसी आपदा के समय राहत कार्य बहुत कठिन साबित हो सकता है । कोई भी यहाँ ज्यादा ठहराना नहीं चाहेगा । माताजी के दर्शन अधूरे समझे जाते है यदि आपने भैरव बाबा के दर्शन नहीं किये । भैरव बाबा का मंदिर करीब 2 किलोमीटर ऊपर है । हमने लॉकर से सामान लिए और भैरव बाबा जी के लिए रवाना हो गए । ये एक छोटा सा मंदिर है । इसके समीप एक गैलरी है । जहाँ से निचे के नजारे अदभुद दिखाई देते है । यहाँ हमने भैरव बाबा के दर्शन किये । आकाश में बदल घिर आये थे । कभी भी बारिस आ सकती थी । लौडस्पीकर में उदघोषणा हो रही थी कि भक्तो से निवेदन है कि यहाँ न ठहरे । कृपया वापसी के लिए तुरंत प्रथान करें क्योंकि मौसम अच्छा नहीं है । अब हम भी घोड़े से वापस चल दिए ।
चढ़ाई के वक्त तकलीफ महसूस नहीं हुआ पर पहाड़ के ढलान पर घोड़े की दौड़ तकलीफदेह लगी । करीब 7 बजे तक वाणगंगा आ गए । हमने माता के दरबार में फिर आने के कामना के साथ माँ से दुआ मांगी और एक होटल में जाकर भोजन किये । होटल मैनेजर को फोन किये । उसने अपनी कार भेजी और हम अब होटल के प्रांगण में थे । कोई भी यात्रा सुखदायी नहीं होती पर हमारे अदम्य साहस और आस्था वहां खीच ले जाती है । सुख की घरेलु व्यवस्था सभी जगह नहीं मिलती है । हमें अपने को यात्रा के बिच आने वाले अड़चनों से सामंजस्य बनाये रखना पड़ता है । यह भी सत्य है कि यह सबके लिए नसीब नहीं होता ।
आगे की कथा भाग - 3 में ।
Thursday, June 2, 2016
माँ वैष्णो देवी यात्रा ।
झेलम एक्सप्रेस का खाना |
माँ बैष्णो देवी के दर्शन के बाद लौटते हुए |
बहुत दिनों से जम्मू कश्मीर की यात्रा की इच्छा थी । वह भी वैष्णो देवी माँ का दर्शन । सुना था की मंदिर तक पैदल रास्ता ही है । जेब भारी हो तो और भी दूसरे साधन उपलब्ध है जैसे घोड़े या पालकी या हेलीकॉप्टर । 1983 वर्ष में श्रीनगर गया था । किन्तु बैष्णो देवी माँ के दर्शन करने की इच्छा पूरी न हो सकी थी क्यों की किसी और कार्य से गया था । वैसे लोग कहते है कि माँ जिन्हें बुलाती है , वही उनके दरबार तक जा पाता है । उस समय विवाह भी नहीं हुई थी । किन्तु जम्मू कश्मीर में उस समय किसी तरह का डर भय या आतंकवाद नहीं था ।हमारे घर में एक यात्रा का प्रोग्राम प्रति वर्ष बन ही जाता है । ये सच है की किसी भी यात्रा में आर्थिक परिस्थिति ही साथ देती है जो आप को प्रति क्षण संयोजे रखती है । आज कल देश का भ्रमण सबके लिए बस की बात नहीं है । दिन ब दिन महंगाई दबोचे जा रही है । हमारे साथ भी यही समस्या आ खड़ी थी जिसका नियोजन यात्रा के पूर्व ही कर लिया था ।
मंदिर की लोकेशन जेहन में भय पैदा कर रही थी । फिर भी हिम्मत से सभी तैयार हो गए । जेब खाली हो तो यात्रा दर्शन के नज़ारे मनहूस सा लगते है । हमें एक चीज का फायदा जरूर है की ट्रेन के यात्रा खर्च बच जाते है । फ्री पास जो उपलब्ध है । हमने पूरी तैयारी के साथ गुंतकल से नई दिल्ली से कटरा से लुधियाना से फिर नई दिल्ली से शिरडी से गुंतकल का अग्रिम टिकट बुक कर लिए थे । सारे के सारे कंफर्म हो गए थे । 2 मई 2016 को कर्नाटक एक्सप्रेस से नई दिल्ली के लिए रवाना हो गए । ट्रेन चलाते वक्त जो अनुभूति मिलती है उससे ज्यादा आनंद ट्रेन से यात्रा में है जो मुझे बहुत पसंद है । वह भी लंबी दुरी हो तो कुछ और ही ।
मैं बहुत अनुशासित हूँ , मुझे नाइंसाफी पसंद नहीं है । अतः किसी भी हद का विरोध जल्द कर देता हूँ । कर्नाटक एक्सप्रेस में खाने पिने के लिए पैंट्री उपलब्ध है । आज कल ट्रेन में कोई भी चीज सस्ती नहीं है । अतः मेरा सुझाव है कि आप अपनी यात्रा के पूर्व खाने पिने की व्यवस्था घर से करके ही चले तो सुखमय है । एक जगह एक वेंडर 20 रुपये में एक बोतल पानी दे रहा था । जिसके ऊपर मैं गुस्सा हो गया था और कोच से बाहर चल जाने के लिये कहा क्योंकि पैंट्री वाले 15 रुपये में दे रहे थे । खाने के मामले में पैंट्री वाले पैसे बहुत वसूलते है पर खाना ऐसा की एक छोटे बच्चे का पेट भी नहीं भरेगा । चलिए इसी बहाने पैसे से आंशिक उपवास भी हो जाता है ।
3 मई को दिल्ली पहुँच गए । रिस्तेदार बहुत है । उन्होंने घर आने की रिकुवेस्ट की थी । किन्तु फिर शाम को 5.30 बजे श्रीशक्ति एक्सप्रेस से कटरा के लिए रवाना होना था । अतः चार 5 घंटे के लिए कहीं दूर जाना मुनासिब नहीं लगा । दस बज रहे थे अतः रिटायरिंग रूम में समय व्यतीत कर लेना ही उचित समझा । रिटायरिंग रूम में डबलबेड वाला रूम 250/- में मिल गयी । 5 बजे शाम तक के लिए केवल ।हमलोग स्नान वगैरह कर स्टेशन के बगल में स्थित बाजार में चल पड़े । जहाँ कुछ छोटी मोटी खरीदारी हुई और दोपहर का भोजन । छोले भटूरे। नया नाम पर सुना हुआ । हमारे दक्षिण में नहीं मिलती है । हमने इसके स्वाद चखे । चटक और मजेदार लगा । वापसी में अनार ख़रीदे जो सौ रुपये से भी ज्यादा प्रति किलो था । हमारे यहाँ 60 या 70 के दर में मिल जाते है । समय कैसे बिता । पता ही नहीं चला । मौसम भी नरम और अनुकूल था ।
सामान समेट कर 17 बजे प्लेटफॉर्म में आ गए । अभी श्रीशक्ति एक्सप्रेस ( 22461 ) का रेक बैक नहीं हुआ था । 15 मिनट बाद हम 2 टेयर ऐसी कोच में प्रवेश किये । समय से ट्रेन रवाना हुई । संध्या होने वाली थी । वेंडर कोच में फिरना शुरू कर दिए थे । हमने पनीर पकौड़े के दो पैकेट ख़रीदे । चार्ज 120 रुपये लगा । पैकेट खोले । प्रति पैकेट में शायद 5 पकोड़े थे , वह भी छोटे छोटे । दुःख हुआ इस नाइंसाफी के लिए । हमारे पास रात्रि भोजन भी नहीं था । ट्रेन में खरीद कर हल्का फुल्का खा लेंगे , समझ कर बाहर से नहीं लाये थे । पैंट्री में ही 3 भोजन ( शाकाहारी ) का आर्डर दे दिया । ट्रेन अम्बाला पहुच गयी थी , पता ही नहीं चला । किन्तु 30 मिनट से खड़ी थी । आखिर क्यों ? पता नहीं चल रहा था । ट्रेन से बाहर आकर लोगो से पता किया । किसी ए सी कोच में ए सी काम नहीं कर रहा था अतः लोग इसकी मरम्मत चाह रहे थे । अंततः करीब एक घंटे बाद ट्रेन रवाना हुई ।
इसी बीच एक दोस्त को फोन लगाया जो लुधियाना में लोको पायलट है । उन्हें जान कर बहुत ख़ुशी हुई की मैं इस ट्रेन से कटरा जा रहा हूँ । उन्होंने घर से भोजन उपलव्ध कराने की इच्छा जाहिर की । हमने धन्यवाद कह मना कर दी क्यों की खाने का आर्डर दिया जा चूका था । कुछ समय बाद रात्रि भोजन का पैकेट हमारे सामने था । रात्रि के साढ़े नौ से ऊपर हो रहे थे । जल्द भोजन ग्रहण किये किन्तु भोजन किसी काम का नहीं था । स्वाद से ज्यादा गुस्सा बढ़ा गया । ट्रेन है सोंच कर बर्दास्त कर लिए । हम सभी अपने अपने बर्थ पर सो गए । मैं ऊपर के बर्थ पर सो गया । आधे घंटे बाद पैंट्री बॉय पैसे वसूलने आया । मैंने उसे पांच सौ के नोट दिए । वह मुझे कुछ छुट्टे वापस से जल्द चला गया । मैंने गिनने शुरू किये ये तो 140/- रुपये ही है । वह 360/- रुपये 3 भोजन का ले लिया था ।
ये तो पब्लिक के साथ बहुत बड़ा धोखा है । कुछ करना चाहिए । ये सरासर बेईमानी है । मैंने तुरंत रेलवे को इसकी शिकायत की । दूसरी तरफ से मेरी शिकायत दर्ज की गयी और कार्यवाही का भरोसा दिया गया । कुछ देर बाद रेलवे का कॉल आया और मुझे बताया गया की आप पैंट्री मैनेजर से शिकायत दर्ज करा दीजिये । मैंने कहा आप लोग अपनी तरफ से कार्यवाही करे मैं सबेरे शिकायत लिख दूंगा और आराम से सो गया । कुछ देर बाद टीटी साहब आये और मुझे जगा कर पूरी जानकारी लिए । उन्होंने कहा की आप ने इतनी ऊपर शिकायत क्यों कर दी । मुझसे कहना था । मैंने कहा कि आप को कहाँ कहाँ ढूढता फिरू । ठीक है देखता हूँ - कह कर चले गए और सबेरे तक वापस नहीं आये । सुबह ट्रेन कटरा पहुंची । हम निचे उतरे । प्लेटफॉर्म पर टीटी महोदय दिखाई दिए । फिर उनसे पूछा ? भोजन के बारे में क्या कार्यवाही हुई ? पैंटी का मैनेजर उनके पास ही था । उन्होंने उससे मेरा परिचय कराया।
मैनेजर मुझे पैंट्री के अंदर ले गया और शिकायत न करने की विनती करने लगा । उसने मेरे हाथो पर 60 रुपये वापस दिए । मैंने कहा - फिर भी 100 रुपये का भोजन हुआ और वह भी घटिया । वह गिड़गिड़ाने लगा और बोला - सर आप माँ का दर्शन करने आये है । हमें क्षमा कर दे माँ आप को देंगी । वह बच्चा नया है । गलती हो गयी । हम गरीब लोग है । अब मेरा मन भी शिकायत के मूड में नहीं था । उन्हें दुबारा ऐसी गलती न हो की हिदायत दे बाहर आ गया ।
आगे की यात्रा विवरण अगली क़िस्त में पढ़िए ।
मंदिर की लोकेशन जेहन में भय पैदा कर रही थी । फिर भी हिम्मत से सभी तैयार हो गए । जेब खाली हो तो यात्रा दर्शन के नज़ारे मनहूस सा लगते है । हमें एक चीज का फायदा जरूर है की ट्रेन के यात्रा खर्च बच जाते है । फ्री पास जो उपलब्ध है । हमने पूरी तैयारी के साथ गुंतकल से नई दिल्ली से कटरा से लुधियाना से फिर नई दिल्ली से शिरडी से गुंतकल का अग्रिम टिकट बुक कर लिए थे । सारे के सारे कंफर्म हो गए थे । 2 मई 2016 को कर्नाटक एक्सप्रेस से नई दिल्ली के लिए रवाना हो गए । ट्रेन चलाते वक्त जो अनुभूति मिलती है उससे ज्यादा आनंद ट्रेन से यात्रा में है जो मुझे बहुत पसंद है । वह भी लंबी दुरी हो तो कुछ और ही ।
मैं बहुत अनुशासित हूँ , मुझे नाइंसाफी पसंद नहीं है । अतः किसी भी हद का विरोध जल्द कर देता हूँ । कर्नाटक एक्सप्रेस में खाने पिने के लिए पैंट्री उपलब्ध है । आज कल ट्रेन में कोई भी चीज सस्ती नहीं है । अतः मेरा सुझाव है कि आप अपनी यात्रा के पूर्व खाने पिने की व्यवस्था घर से करके ही चले तो सुखमय है । एक जगह एक वेंडर 20 रुपये में एक बोतल पानी दे रहा था । जिसके ऊपर मैं गुस्सा हो गया था और कोच से बाहर चल जाने के लिये कहा क्योंकि पैंट्री वाले 15 रुपये में दे रहे थे । खाने के मामले में पैंट्री वाले पैसे बहुत वसूलते है पर खाना ऐसा की एक छोटे बच्चे का पेट भी नहीं भरेगा । चलिए इसी बहाने पैसे से आंशिक उपवास भी हो जाता है ।
3 मई को दिल्ली पहुँच गए । रिस्तेदार बहुत है । उन्होंने घर आने की रिकुवेस्ट की थी । किन्तु फिर शाम को 5.30 बजे श्रीशक्ति एक्सप्रेस से कटरा के लिए रवाना होना था । अतः चार 5 घंटे के लिए कहीं दूर जाना मुनासिब नहीं लगा । दस बज रहे थे अतः रिटायरिंग रूम में समय व्यतीत कर लेना ही उचित समझा । रिटायरिंग रूम में डबलबेड वाला रूम 250/- में मिल गयी । 5 बजे शाम तक के लिए केवल ।हमलोग स्नान वगैरह कर स्टेशन के बगल में स्थित बाजार में चल पड़े । जहाँ कुछ छोटी मोटी खरीदारी हुई और दोपहर का भोजन । छोले भटूरे। नया नाम पर सुना हुआ । हमारे दक्षिण में नहीं मिलती है । हमने इसके स्वाद चखे । चटक और मजेदार लगा । वापसी में अनार ख़रीदे जो सौ रुपये से भी ज्यादा प्रति किलो था । हमारे यहाँ 60 या 70 के दर में मिल जाते है । समय कैसे बिता । पता ही नहीं चला । मौसम भी नरम और अनुकूल था ।
सामान समेट कर 17 बजे प्लेटफॉर्म में आ गए । अभी श्रीशक्ति एक्सप्रेस ( 22461 ) का रेक बैक नहीं हुआ था । 15 मिनट बाद हम 2 टेयर ऐसी कोच में प्रवेश किये । समय से ट्रेन रवाना हुई । संध्या होने वाली थी । वेंडर कोच में फिरना शुरू कर दिए थे । हमने पनीर पकौड़े के दो पैकेट ख़रीदे । चार्ज 120 रुपये लगा । पैकेट खोले । प्रति पैकेट में शायद 5 पकोड़े थे , वह भी छोटे छोटे । दुःख हुआ इस नाइंसाफी के लिए । हमारे पास रात्रि भोजन भी नहीं था । ट्रेन में खरीद कर हल्का फुल्का खा लेंगे , समझ कर बाहर से नहीं लाये थे । पैंट्री में ही 3 भोजन ( शाकाहारी ) का आर्डर दे दिया । ट्रेन अम्बाला पहुच गयी थी , पता ही नहीं चला । किन्तु 30 मिनट से खड़ी थी । आखिर क्यों ? पता नहीं चल रहा था । ट्रेन से बाहर आकर लोगो से पता किया । किसी ए सी कोच में ए सी काम नहीं कर रहा था अतः लोग इसकी मरम्मत चाह रहे थे । अंततः करीब एक घंटे बाद ट्रेन रवाना हुई ।
इसी बीच एक दोस्त को फोन लगाया जो लुधियाना में लोको पायलट है । उन्हें जान कर बहुत ख़ुशी हुई की मैं इस ट्रेन से कटरा जा रहा हूँ । उन्होंने घर से भोजन उपलव्ध कराने की इच्छा जाहिर की । हमने धन्यवाद कह मना कर दी क्यों की खाने का आर्डर दिया जा चूका था । कुछ समय बाद रात्रि भोजन का पैकेट हमारे सामने था । रात्रि के साढ़े नौ से ऊपर हो रहे थे । जल्द भोजन ग्रहण किये किन्तु भोजन किसी काम का नहीं था । स्वाद से ज्यादा गुस्सा बढ़ा गया । ट्रेन है सोंच कर बर्दास्त कर लिए । हम सभी अपने अपने बर्थ पर सो गए । मैं ऊपर के बर्थ पर सो गया । आधे घंटे बाद पैंट्री बॉय पैसे वसूलने आया । मैंने उसे पांच सौ के नोट दिए । वह मुझे कुछ छुट्टे वापस से जल्द चला गया । मैंने गिनने शुरू किये ये तो 140/- रुपये ही है । वह 360/- रुपये 3 भोजन का ले लिया था ।
ये तो पब्लिक के साथ बहुत बड़ा धोखा है । कुछ करना चाहिए । ये सरासर बेईमानी है । मैंने तुरंत रेलवे को इसकी शिकायत की । दूसरी तरफ से मेरी शिकायत दर्ज की गयी और कार्यवाही का भरोसा दिया गया । कुछ देर बाद रेलवे का कॉल आया और मुझे बताया गया की आप पैंट्री मैनेजर से शिकायत दर्ज करा दीजिये । मैंने कहा आप लोग अपनी तरफ से कार्यवाही करे मैं सबेरे शिकायत लिख दूंगा और आराम से सो गया । कुछ देर बाद टीटी साहब आये और मुझे जगा कर पूरी जानकारी लिए । उन्होंने कहा की आप ने इतनी ऊपर शिकायत क्यों कर दी । मुझसे कहना था । मैंने कहा कि आप को कहाँ कहाँ ढूढता फिरू । ठीक है देखता हूँ - कह कर चले गए और सबेरे तक वापस नहीं आये । सुबह ट्रेन कटरा पहुंची । हम निचे उतरे । प्लेटफॉर्म पर टीटी महोदय दिखाई दिए । फिर उनसे पूछा ? भोजन के बारे में क्या कार्यवाही हुई ? पैंटी का मैनेजर उनके पास ही था । उन्होंने उससे मेरा परिचय कराया।
मैनेजर मुझे पैंट्री के अंदर ले गया और शिकायत न करने की विनती करने लगा । उसने मेरे हाथो पर 60 रुपये वापस दिए । मैंने कहा - फिर भी 100 रुपये का भोजन हुआ और वह भी घटिया । वह गिड़गिड़ाने लगा और बोला - सर आप माँ का दर्शन करने आये है । हमें क्षमा कर दे माँ आप को देंगी । वह बच्चा नया है । गलती हो गयी । हम गरीब लोग है । अब मेरा मन भी शिकायत के मूड में नहीं था । उन्हें दुबारा ऐसी गलती न हो की हिदायत दे बाहर आ गया ।
कटरा रेलवे स्टेशन और बालाजी । |
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Thursday, April 14, 2016
सर्प दंश
सर्प सर्प और सर्प । ये सुनते ही देह में सिहरन आ जाती है । कोई भी ऐसा शख्स नहीं होगा जो सर्प से न डरता हो । कोई भी इंसान सर्प के सामने नहीं आना चाहता । वजह साफ है की इसके डंस से सभी भयभीत हो जाते है । तो फिर क्या सर्प डंस ने मारे तो क्या करे ? यही तो उसके हथियार है जिसके सहारे वह अपनी रक्षा करता है । सर्प के पास कोई हाथ तो होती नहीं । ये कई किस्म के होते है । जहरीले से लेकर प्यारे । शायद ही मनुष्य को सभी किस्मों की जानकारी हो । सर्प का निवास सभी जगह है । चाहे पानी या जमीन हो या पेड़ पौधे या घर द्वार । जमीन या पेड़ या घरो में रहने वाले सर्प बहुत ही नुकसान देह होते है ।
वैसे तो सर्प के बारे में पूरी दुनिया में कई किस्से मशहूर है किताबो से ज्यादा चलचित्र में । नाग और नागिन पर आधारित चलचित्र मनोरंजन के प्रमुख साधन है । चलचित्र में नाग या नागिन द्वारा अपने दुश्मन से बदला लेने की कला सबको चकित कर देती है । मन में ये दृश्य ऐसे समा जाते है जैसे सच में भी यह संभव है । चलचित्र की कहानिया सही हो या न हो पर वास्तविक जीवन में कुछ घटनाये गहरी दर्द दे जाती है । कुछ घटनाये ऐसी होती है जिन्हें याद करते ही शारीर में सिहरन दौड़ जाती है । मैं खुद और मेरे परिवार के लोग कई बार सर्प से सामना कर चुके है । यहाँ तक की एक बहुत ही पुराना सर्प मेरे घर में वर्षो से निवास कर रहा था और इसकी भनक किसी को नहीं । भगवान की दया है की कोई नुकशान नहीं झेलने पड़े ।
एक बार तो एक सर्प दो बार मेरे पैर से दब गया जब मैं आधी रात को बाथ रूम में गया था । इसकी जब अहसास हुई तब तक सर्प गायब हो चूका था । घर के अंदर सर्प का गायब होना कई संदेह उत्तपन्न किया । हो न हो वह कही छुप गया है या कोई गृह देव हो जैसी भ्रांतिया भी मन में घर करने लगी थी । लेकिन घर के अंदर की छुप ज्यादा दिनों तक नही टिकती है एक न एक दिन बाहर आ ही गयी । हुआ यूँ की सर्प महाशय एक सप्ताह बाद फिर बाहर निकले । पत्नी की नजर पड़ गयी क्यों की सर्प महाशय किचन से निकले । शाम को सात बज रहे होंगे । हो हल्ला मचा । तभी पत्नी जी ने देखा की वह किवाड़ के पास के एक छिद्र में घुस रहा है । छिद्र इतना बडा था कि देखते ही देखते वह सर्प पूरा अंदर चला गया । अब कुछ करना मुमकिन नहीं था । पत्नी जी को एक उपाय सूझी । घर में ही बालू और सीमेंट था । उन्होंने तुरंत घोल बनायीं और उस छिद्र को भर दिया । आज तक वह छिद्र बंद है । सर्प कहाँ गया किसी को नहीं पता ।
सर्प का बार बार घर के पास निकलना खतरे से खाली नहीं होता । बहुतो को कहते सुना गया है की जहाँ सर्प होते है वहाँ सुख शांति और धन की कुबेर होते है । ये कहाँ तक शुभ है कह नहीं सकता । ये सब भ्रांतिया हो सकती है । पर ये सत्य है की हमारे घर में और घर के आस पास सर्प निकलते ही रहते है । आज तक हमें कोई इससे असुविधा नहीं हुई और न ही किसी प्रकार की कमी । सब ऊपर वाले की महिमा है । उसी ने सभी को बनाया है और वही सभी को समय पर बुला लेगा । इसमे कोई संदेह नहीं होनी चाहिए । ऐसा ही कुछ उस दिन भी हुआ था ।
सभी की आँखों में पानी ही पानी । औरतो का बुरा हाल था । शायद औरते दुःख को जल्द अनुभव करती है । पुरुष भी संवेदनशील होते है पर वे प्रकट नहीं होने देते । मेरी दूर की भतीजी थी भारती । वह पुरे परिवार के साथ मथुरा में रहती थी । उस समय वह सात या आठ वर्ष की होगी । घर के पिछवाड़े एक पुराने गवर्नमेंट ऑफिस का खँडहर था । उसके बगल में लाइब्रेरी । एक दिन की बात है । अपने मम्मी के साथ वह कपडे धोने के लिए बाहर नल पर गयी । कुछ समय बाद घर में बाल्टी के साथ वापस लौटी । घर में अँधेरा था । करंट भी नहीं थी । अचानक उसके पैर किसी मोटे चीज पर पड़ गयी । उसने उसे लकड़ी समझकर बिना देखे ही पैर से दूर धकेल दी । अरे यह तो एक लंबा सर्प था । सर्प गुस्से में भारती के पैर में डंक मार दिया और फुर्ती से बाहर निकल गया ।
भारती की नजर उस सर्प पर पड़ी । वह चिल्लाते हुए मम्मी के पास गयी और अपने पैर को दिखाते हुए बोली - मुझे सर्प ने डस लिया है माँ । माँ तो माँ ही होती है । तुरंत अपनी बेटी को गोद में बैठा ली और पैर की मुआयना की । यह सच था । पैर में सर्प के डंस के निशान थे खून बह रहे थे । देखते ही देखते भारती के होस् शिथिल पड़ने लगे । शोर गुल सुन आस पास के लोग भी एकत्रित हो गए । जिसको जो सुझा सभी ने प्रयत्न जारी रखा । धीरे धीरे भारती बेहोश हो गयी । और वह भी क्षण आये जब एक माँ को सब कुछ लुटते हुए दिखाई दिया । सभी प्रयत्न असफल रहे और भारती मृत घोषित कर दी गयी । पुरे परिवार को गम ने अपने आगोस में ले लिया था । भारती के पिता के आँखों की अश्रु रुकने का नाम नहीं ले रही थी । भारती अपने माँ बाप की एकलौती वेटी और एक गुड़िया जैसी सबकी प्यारी थी ।
कहते है लाख बैरी क्यों न हो जाये पर जिसे वह नहीं मार सकता उसे कोई कैसे मारे । अब अर्थी के अंतिम संस्कर की बारी थी । कहते है कुँवारे को आग में नहीं जलाते । अतः दो ही विकल्प थे मिटटी में दफ़न या नदी में विसर्जन । विसर्जन पर ही सबकी सहमति बनी । सभी लोग अर्थी विसर्जन के लिए अर्थी को लेकर यमुना नदी की ओर चल दिए । रास्ते में एक अनजान व्यक्ति मिला और पूछा - किसकी अर्थी है ? किसी ने पूरी बात बता दी । सर्प डंस की जानकारी मिलते ही उस व्यक्ति ने अर्थी को रोक लिए और कहा अर्थी को निचे रखें । सभी ने उसकी बात मान ली डूबते को तिनके का सहारा । उस व्यक्ति ने कड़ी मेहनत की घंटो तक । क्या किया , इसे उजागर नहीं करना ही उचित है । और किसी ने भी नहीं की थी । कुछ घंटो बाद भारती के शरीर में हलचल हुए , पैर , हाथ और आँखों की पलक खुलने लगे । सभी के होठो पर मुस्कान और आँखों में खुसी के आंसू निकल आये । अदभुद नजारा था मथुरा नागरी में । जहाँ कभी कृष्ण की बंसी गूँजा करती थी । कालिया नाग अत्याचार किया करता था । फिर क्या था भारती उठ कर बैठ गयी और वह व्यक्ति अपने रास्ते चला गया । उसने कोई आता पाता नहीं बताई ।
जी हाँ । मुझे मालूम है आप विश्वास नहीं करेंगे । न करे । अपनी अपनी मर्जी । इतना तो सत्य है जिन खोजा तिन पाईया । आज भारती शादी सुदा है और दो बच्चों की माँ । उसे सर्प से बहुत डर लगता है किन्तु मृत्यु से नहीं इसीलिए तो वह बार बार कहती है जिंदगी दो दिनों की है जिलो शान से । मृत्यु किसी ने नहीं देखी । किन्तु वह तो मृत्यु से वापस आई है । वह जीवन को ख़ुशी से जीने में ही विश्वास करती है ।
जीवन जीने के लिए है । मृत्यु तो मरने नहीं देती ।
एक बार तो एक सर्प दो बार मेरे पैर से दब गया जब मैं आधी रात को बाथ रूम में गया था । इसकी जब अहसास हुई तब तक सर्प गायब हो चूका था । घर के अंदर सर्प का गायब होना कई संदेह उत्तपन्न किया । हो न हो वह कही छुप गया है या कोई गृह देव हो जैसी भ्रांतिया भी मन में घर करने लगी थी । लेकिन घर के अंदर की छुप ज्यादा दिनों तक नही टिकती है एक न एक दिन बाहर आ ही गयी । हुआ यूँ की सर्प महाशय एक सप्ताह बाद फिर बाहर निकले । पत्नी की नजर पड़ गयी क्यों की सर्प महाशय किचन से निकले । शाम को सात बज रहे होंगे । हो हल्ला मचा । तभी पत्नी जी ने देखा की वह किवाड़ के पास के एक छिद्र में घुस रहा है । छिद्र इतना बडा था कि देखते ही देखते वह सर्प पूरा अंदर चला गया । अब कुछ करना मुमकिन नहीं था । पत्नी जी को एक उपाय सूझी । घर में ही बालू और सीमेंट था । उन्होंने तुरंत घोल बनायीं और उस छिद्र को भर दिया । आज तक वह छिद्र बंद है । सर्प कहाँ गया किसी को नहीं पता ।
सर्प का बार बार घर के पास निकलना खतरे से खाली नहीं होता । बहुतो को कहते सुना गया है की जहाँ सर्प होते है वहाँ सुख शांति और धन की कुबेर होते है । ये कहाँ तक शुभ है कह नहीं सकता । ये सब भ्रांतिया हो सकती है । पर ये सत्य है की हमारे घर में और घर के आस पास सर्प निकलते ही रहते है । आज तक हमें कोई इससे असुविधा नहीं हुई और न ही किसी प्रकार की कमी । सब ऊपर वाले की महिमा है । उसी ने सभी को बनाया है और वही सभी को समय पर बुला लेगा । इसमे कोई संदेह नहीं होनी चाहिए । ऐसा ही कुछ उस दिन भी हुआ था ।
सभी की आँखों में पानी ही पानी । औरतो का बुरा हाल था । शायद औरते दुःख को जल्द अनुभव करती है । पुरुष भी संवेदनशील होते है पर वे प्रकट नहीं होने देते । मेरी दूर की भतीजी थी भारती । वह पुरे परिवार के साथ मथुरा में रहती थी । उस समय वह सात या आठ वर्ष की होगी । घर के पिछवाड़े एक पुराने गवर्नमेंट ऑफिस का खँडहर था । उसके बगल में लाइब्रेरी । एक दिन की बात है । अपने मम्मी के साथ वह कपडे धोने के लिए बाहर नल पर गयी । कुछ समय बाद घर में बाल्टी के साथ वापस लौटी । घर में अँधेरा था । करंट भी नहीं थी । अचानक उसके पैर किसी मोटे चीज पर पड़ गयी । उसने उसे लकड़ी समझकर बिना देखे ही पैर से दूर धकेल दी । अरे यह तो एक लंबा सर्प था । सर्प गुस्से में भारती के पैर में डंक मार दिया और फुर्ती से बाहर निकल गया ।
भारती की नजर उस सर्प पर पड़ी । वह चिल्लाते हुए मम्मी के पास गयी और अपने पैर को दिखाते हुए बोली - मुझे सर्प ने डस लिया है माँ । माँ तो माँ ही होती है । तुरंत अपनी बेटी को गोद में बैठा ली और पैर की मुआयना की । यह सच था । पैर में सर्प के डंस के निशान थे खून बह रहे थे । देखते ही देखते भारती के होस् शिथिल पड़ने लगे । शोर गुल सुन आस पास के लोग भी एकत्रित हो गए । जिसको जो सुझा सभी ने प्रयत्न जारी रखा । धीरे धीरे भारती बेहोश हो गयी । और वह भी क्षण आये जब एक माँ को सब कुछ लुटते हुए दिखाई दिया । सभी प्रयत्न असफल रहे और भारती मृत घोषित कर दी गयी । पुरे परिवार को गम ने अपने आगोस में ले लिया था । भारती के पिता के आँखों की अश्रु रुकने का नाम नहीं ले रही थी । भारती अपने माँ बाप की एकलौती वेटी और एक गुड़िया जैसी सबकी प्यारी थी ।
कहते है लाख बैरी क्यों न हो जाये पर जिसे वह नहीं मार सकता उसे कोई कैसे मारे । अब अर्थी के अंतिम संस्कर की बारी थी । कहते है कुँवारे को आग में नहीं जलाते । अतः दो ही विकल्प थे मिटटी में दफ़न या नदी में विसर्जन । विसर्जन पर ही सबकी सहमति बनी । सभी लोग अर्थी विसर्जन के लिए अर्थी को लेकर यमुना नदी की ओर चल दिए । रास्ते में एक अनजान व्यक्ति मिला और पूछा - किसकी अर्थी है ? किसी ने पूरी बात बता दी । सर्प डंस की जानकारी मिलते ही उस व्यक्ति ने अर्थी को रोक लिए और कहा अर्थी को निचे रखें । सभी ने उसकी बात मान ली डूबते को तिनके का सहारा । उस व्यक्ति ने कड़ी मेहनत की घंटो तक । क्या किया , इसे उजागर नहीं करना ही उचित है । और किसी ने भी नहीं की थी । कुछ घंटो बाद भारती के शरीर में हलचल हुए , पैर , हाथ और आँखों की पलक खुलने लगे । सभी के होठो पर मुस्कान और आँखों में खुसी के आंसू निकल आये । अदभुद नजारा था मथुरा नागरी में । जहाँ कभी कृष्ण की बंसी गूँजा करती थी । कालिया नाग अत्याचार किया करता था । फिर क्या था भारती उठ कर बैठ गयी और वह व्यक्ति अपने रास्ते चला गया । उसने कोई आता पाता नहीं बताई ।
जी हाँ । मुझे मालूम है आप विश्वास नहीं करेंगे । न करे । अपनी अपनी मर्जी । इतना तो सत्य है जिन खोजा तिन पाईया । आज भारती शादी सुदा है और दो बच्चों की माँ । उसे सर्प से बहुत डर लगता है किन्तु मृत्यु से नहीं इसीलिए तो वह बार बार कहती है जिंदगी दो दिनों की है जिलो शान से । मृत्यु किसी ने नहीं देखी । किन्तु वह तो मृत्यु से वापस आई है । वह जीवन को ख़ुशी से जीने में ही विश्वास करती है ।
जीवन जीने के लिए है । मृत्यु तो मरने नहीं देती ।
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