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Monday, May 16, 2011

साई मंगलम ......साई नाम मंगलम.......

                                                                                                                                                                               
     दुनिया में समय - समय पर महापुरुषों का आगमन होता रहा है ! महापुरुषों को समझ पाना......
किसी साधारण ब्यक्ति के वश में नहीं ! जब तक ..हमने उन्हें समझा , तब तक काफी देर हो चुकी होती है ! महापुरुषों ने अपने अद्भुत कार्यप्रणाली के द्वारा ..हमें हमेशा आश्चर्य चकित करते रहे है ! उनके पग - पग पर मानवता के सद्गुणों की महक हवा के झोंको के साथ ..इस पृथ्वी पर बिखरती रही है ! जिन्होंने चाहा , उन्होंने उसे लूट लिया ! सफल हो गए ! बहारे आती है , मनुष्य के जीवन में हरियाली फैलती है , जीवन सोना हो जाता है ..जब हम अपने काम ,क्रोध लोभ ,और स्वार्थ को भूल जाते है ! जीवन के हर पल हमें कुछ करने के लिए उकसाते है ! परमार्थ हित में किये गए हर कार्य ....की प्रसंशा होती है ! यही जीवन दायनी और मन को शान्ति प्रदान कराती है ! 
                
                       शासन में मनुष्य को कुछ शक्ति मिलती है , उस शक्ति का इस्तेमाल परोपकार में होनी चाहिए या अपने जीवन में इसे ढाल बनाना चाहिए ! जिसकी सोंच जैसी होगी वैसी ही ....फल उत्पन्न  होगे ! आम लगाओ   आम खाओ ! इमली लगी ...इमली  मिली, फिर इसमे किसका दोष ! इसीलिए कहते है , जैसी करनी वैसी भरनी ! जिनके दिल में  आस्था और समर्पण की भावना होती है ...उनके समक्ष प्रभु को आते देर नहीं लगती ! प्रभु तो प्रेम के भूखे है ! प्रेम तो प्रेम है , जो पत्थर को भी मोम बना देता है !

                       मेरे साई के बारे में कुछ भी न कहे ! वो तो सर्व ब्याप्त है ! दिल से प्यार करने पर , वे तुरंत भाग कर ..अपने भक्त के पास आते है ! स्वप्न में आना , असमय किसी न किसी रूप में मदद करना , चिंता के समय बुद्धि  या राह बताना , तो उनके आने के आभास है ! अपने जीवन काल में उन्होंने बहुत से अद्भुत कार्य किये , जो किसी भी इंसान को भगवान बनाने के लिए काफी है ! वे कहा करते थे --" मै रहू या न रहू ..पर याद करते ही भाग   दौड़ा आउंगा ! यह कार्य मै हजारो वर्षो तक करता रहूंगा !" 
                            
                          जी हाँ आप मानो या न मानो ....पर यह बिलकुल  सच है ! मै पहले यह सभी बातें ,सुना करता था ! अतः एक दिन योजना बना ली और शिर्डी  के लिए सपरिवार रवाना हो गया ! दिनांक ११ से १५ जनवरी २००५ ...का समय शिर्डी में बीता ! मुझे दान - दक्षिणा देने की बहुत लालसा रहती है ! शक्ति के मुताबिक़ दे ही देता हूँ ! तारीख १३-०१-२००५ ...सुबह का समय ...साई मंदिर में साई बाबा का दर्शन कर  बाहर सड़क पर टहल रहे थे ! सोंचा  कुछ साई ट्रस्ट में दान देनी चाहिए ! आज शिर्डी में आये तीसरा दिन था ! काफी पैसे खर्च हो गए थे ! मेरे पास बस ५ हजार रुपये बचे थे ! इस पैसे को दान दे कर .....जोखिम नहीं उठाना चाहता था ! अतः ये.टी.एम्  की खोज में निकल गया ! शिर्डी में ये.टी.एम् बहुत कम थे ! दुसरे ये.टी.एम्.से पैसे निकालने पर सर्विस चार्ज देने पड़ते थे ! मेरे पास SBI  के ATM कार्ड था ! मैंने बहुत लोगो से SBI  का ATM   कहा है ? पूछा !गली -गली फिरा ,पर कही पता नहीं चला !

                             मै पुरे परिवार के साथ , वि .आई.पि गेट के पास खडा था और पत्नी से कहा - " कल हमें औरंगाबाद जाना है , वहा पर ATM होगा ! वही से पैसा ड्रा कर ले आयेंगे और ट्रस्ट में दे देंगे ! " यह बात आई और गयी ! दोपहर का खाना खाने के पास , हम अपने होटल  के  कमरे में जाकर सो गए ! थके होने की वजह से नींद जल्दी आ गयी ! मैंने करीब साढ़े तीन बजे के करीब ....एक स्वप्न देखी ! एक भिखारी बच्चा मेरी अंगुली पकड़ कर ...खींच रहा था और मै उस वि.आई.पि.गेट पर ही खडा था ! बच्चा कह रहा था -वो देखो ..उधर है ..( भक्ति निवास की तरफ इशारा करते हुए ) यानी वह मुझे SBI का ATM   के बारे में बता रहा था ! अचानक मेरी आँखे खुल गयी और मै उठ बैठा ! देखा....... दोनों बेटे और पत्नी साहिबा आपस में बाते कर रहे थे ! शाम के चार बजने वाले थे ! मैंने स्वप्न वाली बात ..पत्नी जी को बता दी ! किसी ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया ! न ही कोई महत्व समझा ! सायं काल ..... फिर शिर्डी दर्शन के लिए निकले ! अचानक घुमाते हुए ..उसी रास्ते पर हो लिया  , जिधर उस भिखारी बच्चे ने ...ATM   के बारे में  स्वप्न में  ...बतायी थी ! 
                                 
                             मेरे हर्ष का पारावार न रहा ! देखा ...सड़क के बाए तरफ ..SBI  का ATM ..एक lodge के  प्रांगण में  था ! मैंने तुरंत पैसे निकाले और ट्रस्ट में जमा करा दिए ! ये है मेरे साई के चमत्कार ! है न .....! आज वही ATM /SBI ..मंदिर के प्रांगण में सिफ्ट हो गया है !  इसके बाद बहुत से चमत्कार देखने को मिले ! जी हां आप लोगो ने ..साई बाबा के बहुत से चमत्कारों की कहानियाँ ..रामानंद सागर के सीरियल - साई बाबा ..में भी देंखे होंगे ! मेरे साई ने मुझे प्रत्यक्ष मदद दी !
                                 
                                 
            इसी लिए कहते है -- साई मंगलम..साई नाम मंगलम ...

Thursday, March 10, 2011

बाबा को पुष्पांजलि.................

                          भारत की लम्बी संत परंपरा में हम ऐसे अनेक इश्वर  भक्त  महात्माओ की गड़ना कर सकते है ,जिनका नाम मात्र  लेने से ही भक्तो के पाप नस्ट  हो जाते है  और अन्तः-करण   निर्मल हो जाता है ! ऐसी पुनीत संत परंपरा में ही महारास्त्र  के ब्रह्म लीला , संत श्री साईं नाथ महाराज की भी श्रद्धालु भक्त  बड़े आदर से स्मरण करते है ! इस महान बिभूति ने अपने जीवन काल  में लोक -कल्याण के इतने अलौकिक कार्य किये ,की मुमुक्षुओ ने ने उन्हें चमत्कार का नाम दे दिया !
          श्री साईं बाबा के चरित्र  का जो भी अध्ययन करेंगे , उन्हें ज्ञात  होगा की मानव  जाती  की ब्यवस्था से  ब्यथित होकर ,  उसका दुःख दूर करने में , श्री बाबा के जीवन का एक - एक क्षण किस प्रकार ब्यातित होता था !श्री बाबा ने अपने प्रचार या प्रसार के लिए  कोई संस्था  या साईं दर्शन जैसी तत्व बिबेचना करने वाली कोई शाखा नहीं बनायीं !
                   साईं बाबा का आगमन सन-१८३८ से १९१८ पर्यंत ८० वर्षो की काल मर्यादा में हिन्दू , मुसलमान तथा अन्य धर्मो के असंख्य भावुक लोगो को सन्मार्ग की ओर , कार्य , निसंदेह पुन्योतोया , भागीरथ के पवित्र अविरत प्रवाह की भाक्ति, सतत अदभुत  और रहस्य मय ढंग से चलता रहा !  
           श्री साईं बाबा का शिर्डी में आगमन , उस पत्थर पर, निम् के पेड़ के निचे  बैठना , वगैरह - वगैरह चीजे आज भी विद्मान है !श्री साईं बाबा के शारीर पर जो बस्तर होते थे ,उनकी उन्हें कोई सुध - बुध नहीं रहती थी !उनका आचरण एक दीवाने , सीडी मनुष्य के भाति ही रहता था ! सारा लोक भी उन्हें दीवाना फकीर ही समझता था और भरसक .. उपेक्षा  की भावना से देखते थे ! किन्तु संतो के उन्नति के मार्ग में यह भी एक अवस्था होती है ! भीख मांगना  और स्वंम बना कर खाना , उनके दिन चर्या थी !
           सभा में भक्तो की मन की बात जान लेना तथा उनके संसय का निवारण तुरंत बताना ....किसी  ईश्वरीय शक्ति से कम नहीं थी !जिसकी बात वह कह देते , वह उनके सामने बिना सीर झुकाए जा ही नहीं सकता था !श्री साईं बाबा के बारे में बिस्तृत जानकारी ..शिर्डी साईं संसथान के पुस्तकों को पढ़ने से पूरी तरह मील जाती है
     यात्रानुभाव ----  
                           अब आये इस यात्रा  के कुछ अनुभाव , जो मेरे साथ घटे ( तारीख-२-०३-२०११ से ५-०३-२०११ तक ) को आप
के सामने ,प्रस्तुत कर रहा हूँ !वैसे मै सपरिवार  शिर्डी प्रति वर्ष जाता हूँ ! उपरोक्त तिथि का प्रोग्राम भी मैंने एक माह पूर्व ही बना लिया था ! किन्तु कर्नाटक एक्सप्रेस का बर्थ कन्फर्म नहीं था ! अतः मैंने अपने बड़े पुत्र को ..इमरजेंसी  कोटा के लिए ..मंडल रेलवे मैनेजर आफिस में भेजा और कहा की सीधे जाकर ..मंडल आफिस के कमर्शियल  लिपिक  को दे देना ! काम हो जायेगा , किन्तु हुआ कुछ और ही ..रास्ते  में उसे ,उसके दोस्त के ..डैडी मिल गए , जो मंडल संचालन  मैनेजर के निजी सचिव है , उनहोने उस दरख्वास्त को लेकर ..मंडल संचालन मैनेजर को प्रेषित किया ..!  पैरवी के लिए ..! मैनेजर साहब ने पत्र को देखा ..तो सचिव से पूछे- "आप shaw को कब से जानते हो ?..shaw बहुत ही परेशान करने वाला ब्यक्ति है !"  शायद मेरे अनुशासन की सख्ती  , उन्हें कभी परेशानी में डाला हो ! वास्तव में लापरवाह लोग ,अनुशासन पसंद नहीं करते ! जो भी हो -फिर भी उन्होंने हस्ताक्षर कर दिया और हमारे बर्थ कंफर्म  हो गए ! हमने अपनी यात्रा पूरी की !  कोपरगाँव उतारे ! वहा  से ऑटो के द्वारा शिर्डी धाम पहुंचे ! शाम के साढ़े तीन बजने वाले थे ! इसी दिन  शिव रात्रि का भी पर्व था ...शिव की पूजा और साईं दर्शन की अभिलाषा  , साथ - साथ  थी ! अतः साईं संस्थान  द्वारा निर्मित आश्रम  में रूम के लिए चले गए ! जो अभी नव - निर्मित , व्  पूरी आधुनिक सुबिधा के साथ श्रधालुओ के लिए उपलब्ध है !   चित्र में देंखे -                                                                                                                       
द्वारावती भक्त निवास सामने का दृश्य ! निचे कार पार्किंग की भी सुबिधा उपलब्ध है !
अन्दर का परिदृश्य ..द्वारावती भक्त निवास --बहुत ही आधुनिक परिधान में सज्जित ! चार मंजिला ईमारत ! उप्पर जाने - आने के लिए बिद्युत सीढ़ी की  व्यवस्था ! वर्त्तमान में -वातानुकूलित का दर -२४ घंटे के लिए ..एक हजार रुपये और नान वातानुकूलित - २४ घंटे के लिए -५०० रुपये ! प्रति तीन ब्यक्ति ,एक्स्ट्रा ब्यक्ति के लिए पचास रुपये ..एक्स्ट्रा देने होते है !         द्वारावाती भक्त निवास के सामने बहुत ही सुन्दर --बागीचा !बच्चो के लिए बिशेष साधन !                                                        
एक खबर ---
02 March 2011      BLOGWORLD.COM

 वह जीवन क्या जिसकी कोई कहानी न हो.जी एन शा

उन आँखों का हँसना भी क्या..जिन आँखों में पानी ना हो । वो जिंदगी जिंदगी नहीं जिसकी कोई कहानी ना हो । जी हाँ यही मानना है । श्री जी एन शा जी का । जो इस जीवन रूपी यात्रा मे जाने कितने मुसाफ़िरों को उनकी मंजिल तक पहुँचा चुके हैं । और इसीलिये श्री शा जी जिंदगी को बेहद करीब से छूते हुये गुजरते हैं । प्रेरणादायी । परिश्रमी । भृष्टाचार रहित । समय का पाबन्द और अनुशासित होना ही उनका सिद्धांत है । इसी प्रकार की । सत्य पर आधारित..सत्य घटनायें । उनके ब्लाग्स पर मिलती है ।..मैं तो डर गया भाई । शा जी तो बहुत कङक हैं । मैं सोच रहा था । मस्का मार के..फ़्री रेल जर्नी..बट ही इज तो..करप्शन लैस मेन । एन्ड सेयस..I like discipline in all corner of life and society.Respect all good did and good people.Protest all evils.Hi please go through my all pages and enjoy.Thank u.Have a good moment..Is life more than water,air and fire ? वह जीवन..जीवन ही क्या जिसकी कोई कहानी न हो । बालाजी ओम साईंरामजी एम्प्लायमेंट ।
                                                                                                                                                                                                                            4 comments:
mridula pradhan said...
प्रेरणादायी । परिश्रमी । भृष्टाचार रहित । समय का पाबन्द और अनुशासित होना ही उनका सिद्धांत है । wah.is se achcha aur kya hoga.
Sawai Singh Raj. said...
मे रा ब्लॉग "AAJ KA AGRA" को भी अपने इस प्रयास में शामिल कर लेंना जी मेरा ब्लॉग का लिंक्स दे रहा हूं! http://rajpurohitagra.blogspot.com/
दर्शन कौर धनोए said...
राजीव जी के इस ब्लाक के जरिए हमे नित नए व्यक्तियों का परिचय मिलाता हे ..आज हमे जिस शख्सियत से आपने मिलवाया उनका कोई सानी नही वो लाजबाब हे.... श्री जी.ऍन शा साहब आपको बधाई |
रजनी मल्होत्रा नैय्यर said...
ahut achha laga is parichay se milkar .....rajiv ji aabhar aapko ..
            


                                                                   


 

Sunday, October 31, 2010

मदुरै की यात्रा भाग-२

    मदुरै की यात्रा भाग-२,आज प्रस्तुत करने जा रहा हूँ.मदुरै हिन्दुओ की एक पबित्र धर्म-स्थली है.जो तमिलनाडू में स्थित है. कहा जाता है की-पुराने ज़माने में ,एक कदम्वानाम नाम का एक जन्गल था.यहाँ लोर्ड इन्द्र ने स्वयंभू की पूजा की थी.इसी लिंग को , जो कदम ब्रिक्ष के निचे था , धनजय नाम का एक किसान ने देखा था और उस दृश्य को ,राजा कुरुक्षेत्र पंडया को सूचित किया.राजा  ने उस जंगल को साफ़ कराइ तथा एक सुन्दर मंदिर का निर्माण करवाया.धीरे-धीरे वहा  एक  शहर वस गया. इसी शहर के ऊपर अमृत का एक बूंद टपका,अतः इसे मधुरं कहा जाने लगा.धीरे-धीरे यही नाम...मदुरै में बदल गया.      यह चित्र मदुरै स्टेशन के बाहरी दृश्य है. हम तारीख ०४.१०.२०१०.को रात साढ़े नौ बजे मदुरै स्टेशन पर पहुंचे.प्रोग्राम के मुताबिक मेरे मदुरै के साथियों ने रेतिरिंग रूम बुक करके रख दिया था.मै आपने परिवार के साथ उस रात कही जाने का प्लान नहीं किया बिसराम करना ही श्रेयस्कर समझा.दुसरे दिन यानि तारीख ०५.१०.२०१०.को मदुरै ने हमारा स्वागत चाय और समाचर पात्र से किया.यानि रेतिरिंग रूम के केयर तकर ने ब्यवस्था के मुताबिक चाय और समाचार पत्र,हमें लाकर दिया ,जो हर occupant को प्रति दिन फ्री में दिया जाता है.जैसा की उन्होंने मुझे सूचित किया.सुबह की क्रिया -कर्म से निब्रित होकर हम मंदिर दरसन के लिए चल पड़ें. पहली बार की यात्रा होने की वजह से हमें ,मीनाक्षी मंदिर का रास्ता नहीं मालूम था.किसी से पूछने में भी हिचक हो रही थी,क्योकि सुना था तमिलियन लोग हिंदी नहीं बोलते है.किन्तु यहाँ जो देखा वह बिलकुल अलग सा एवं झूठा लगा.प्रायः हर शिक्षित तमिलियन उलटी-पुलती हिंदी बोल रहे थे एवंग हमारे प्रश्नों का जबाब देनेका भरपूर कोसिस कर रहे थे.यहाँ के लोग मुझे काफी पसंद आये.बाद में मुझे एक लोकल दोस्त ने घुमाने में साथ  दिया.
         मंदिर में देवी को चढाने के लिए ,हमने प्रसाद ली जिसके लिए उस दुकानदार ने हमसे एक सौ रुपये लिए.मैंने भी दे दी जो मेरी पुराणी आदत है,क्यों की मंदिर या पूजास्थली में मै मोल-भाव नहीं करता.पश्चिम दिशा से मंदिर में प्रवेस किये और घूम कर दक्षिण के दरवाजे से मंदिर के प्रांगन में पहुंचे.                                  बाये बगल का चित्र हजार खम्भे वाला मंदिर  से लिया गया है जिसे ठोकने से ,कहा जाता है की सात  सुर निकलते है.मंदिर की कारीगरी देखा कर प्राचीन ज़माने के लोगो के हुनर को बारीकी से समझा जा सकता है.मंदिर में पूजा करने हेतु ,मंदिर  का एक कर्मचारी हमारे साथ हो लिया.  उसने हमें एक बोर्ड के तरफ इशारा  करके  बताया की स्पेशल दरसन के लिए सौ रुपये लगते है.हमने स्वीकार कर लिया.उसने हमें मीनाक्षी देवी तथा शिव लिंग की पूजा करवाने के लिए अपने  साथ ले गया.  बाद में मेरा दोस्त जो लोकल बासिन्दा हैं वह भी मंदिर में ही आ गए और उन्होंने मंदिर दर्शन के समय पूरा साथ दिया  



      सात सुरों वाला खम्भा.


















तिरुमलै निक्कर प्लेस में एक खम्भे की बनावट.जो देखने लायक है.इसमे जाने के लिए प्रवेश शुल्क देना पड़ता है.














थिरुमलाई निक्कर पलास के एक खम्भे की बनावट.





















थिरुमलाई निक्कर पैलेस के अन्दर जाते समय ,दिखाई देता सभा गृह .




























गाँधी मुजियम से ली गई ,गाँधी जी अपने पत्नी के साथ .






























हजार खम्भे वाली मंदिर में एक पत्थर से बनी हाथी के साथ फोटो खिंचवाते ,बालाजी.
















यह मदुरै के एक वाटर टंक है,जिसे मरिंमन  मंदिर, के नाम से जाना जाता है.कहते है की इसी के मिटटी से यहाँ का राजा ,माँ मीनाक्षी की प्रतिमा को बनवाया थे. इतना ही नहीं बरसात के दिनों में ,नदी का पानी,यहाँ स्टोर किया जाता है ,जो मदुरै सिटी में वाटर supply के काम आता है.टैंक के बीचो-बिच मंदिर भी है,जो साफ दिखाई दे रहा है.तस्बीर में बालाजी तस्बीर खिंचवाते हुए.












 
















गाँधी मुजियम से ली गई तस्बीर,गाँधी जी बिस्तर पर सोये है तथा इंदिरा गाँधी (बचपन का तस्बीर )सिरहाने बैठी हुई है.











 
















मिनाक्षी मंदिर में ,सरस्वती जी की पत्थर की मूर्ति .













     
















मदुरै के एक चौराहे की फोटो,जो मीनक्षी मंदिर के पूरब दिशा में है.













     












हजार खम्भे वाली मंदिर में एक बैठे हुए बैल के साथ फोटो खिंचवाते हुए बालाजी और मेरी धर्मपत्नी.












     
















पज्हमुथिर चोली (हिल्स) के अन्दर ,बंदरो को बादाम देते हुए मेरी धर्मपत्नी.बन्दर भी आनंद  के साथ लेते हुए.कमल के जंतु .फोटोग्राफी बालाजी.

































मिनाक्षी मंदिर का एक भाग.जिसके कला का जबाब नहीं .हम इक्कीसवी सदी में आ गए पर पूर्वजों से ज्यादा न दे सके है ,पूर्वजो के नमूनों/स्मारकों को देख कर संतुस्ट हो रहे है.कमाल  का कलयुग है.
































बन्दर को बुलाते हुए ,मेरी धर्म पत्नी और बालाजी.
































पज्ह्ज्मुथिर चोली(हिल्स) मंदिर के अन्दर जाने का मुख्य  द्वार.मंदिर के बाहर भिखारी बैठे हुए.

































मीनक्षी मंदिर का एक भाग.मंदिर के अन्दर कैमरे ले जाना मना है.मोबाइल से ली गई फोटोग्राफी.






























वाटर टैंक का एक हिस्सा जिसके पीछे नदी है.
(मरिंमन टेम्पले)













सूर्यास्त के समय पज्ह्ज्मुथिर चोली मंदिर के अन्दर से ली गई तस्वीर .इसके अन्दर तिरुपथी के बालाजी की मूर्ती है .जिसे आंध्र प्रदेश के किसी राजा ने बनवाई थी.कहते है यह आठ सौ बरस पुराणी मंदिर है.इसके ज्यादा तर हिस्से टूट-फुट  गए है.तमिलनाडु सरकार इसे अपने कब्जे में करके मरमत का काम सुरु कर दिया है.














मदुरै रेलवे स्टेशन का प्लेटफ़ॉर्म नंबर एक और साफ़-सफाई में जुटी सफाई कर्मी.यह भारतीय रेलवे की अथक प्रयास है.हम भारतीय नागरिको को गन्दगी को कण्ट्रोल करना चाहिए.यदि ऐसा न कर पाए तो काम से काम गन्दगी न फैलाये.































सफाई की अनवरत प्रयास.

































sedam रेलवे स्टेशन का एक वीएव.फोटोग्राफी बालाजी.जो बतानुकुलित  coach के अन्दर से ली गयी.




























रेलवे स्टेशन का एक view फोटोग्राफी-बालाजी..





























रेलवे स्टेशन.फोटोग्राफी--बालाजी.















Thursday, October 21, 2010

मदुरै की यात्रा.


 मदुरै की यात्रा.............. भी मेरे लिए यादगार बन गई.वैसे हमेशा से,मेरे जेहन में एक कमी खलती थी और सोंचता था की कब,मदुरै जाऊ. वैसे मै इतना दूर भी नहीं हूँ.लोगो से सुना था और पढ़ा भी था की मदुरै एक हिन्दुओ का पवन तीर्थ स्थान है जो तमिलनाडु राज्य में स्थित है.फिर क्या था वह दिन भी आ गया ,मै अपने परिवार के साथ,दिनांक..०४.१०.२०१० को गाड़ी संख्य.६३३९,जो मुंबई से चल कर नागरकोइल को जाती है,से चल दिया.ट्रेन गुंतकल स्टेशन पर साढ़े चार बजे के करीब आई. मैंने चार बर्थ 2ac में reserve किया था.मेरा बड़ा बेटा ,परीक्षा के वजह से न आ सका था ,फिर भी बालाजी हमारे साथ  थे.मेरा बर्थ संखया .२१,३६,४२,और ४५ था.प्रातः  कल होने की वजह से हम सब अपने -अपने बर्थ पर सो गए.सबेरे करीब साढ़े आठ बजे के करीब हम उठे.उस समय ट्रेन बंगलुरु सिटी से पास हो रही थी.सुबह का नजारा कुछ और ही था ,चारो तरफ हरियाली की छटा दिखाई दे रही थी.हमारे सामने वाले बर्थ पर एक ६२ वर्ष के ब्यक्ति बैठे थे ,जिनका मोटर रिपेयर गैराज का व्यापार मुंबई में था .वे मुंबई में १९६२ से रह रहे थे फिलहाल अपने बेटे की शादी  में नागरकोइल जा रहे थे वे बहुत ही मिलनसार व्यक्तित्व वाले थे ,क्यों की किसी के न चाह कर भी बोलने के लिए मजबूर कर देते थे.यह भी एक मनुष्य की कला है.
एक और मध्य उम्र के लोग थे ,ये लोग भी किसी परताल के लिए मदुरै जा रहे थे.बाद में मालूम पड़ा की वे लोग भी रेलवे में काम करते है और सहायक सब - इंस्पेक्टर थे.एक चोरी के केस की जाँच के लिए यात्रा पर थे.हमारी यह यात्रा बड़े संतोष जनक रूप से  गुज़री क्यों की सभी ने अपने ढंग की , अपनी अनुभव सबके सामने रखी ! सबसे पहले हम ६२ वर्षीय  ब्यक्ति की बात करे.उनका कहना था की हम सभी को यात्रा के दौरान मिल जुल कर रहना चाहिए ,विशेष कर अकेले यात्रा के समय! क्यों की अगर कुछ हो गया तो आस-पास वाले कम  से कम ,हमारे बॉडी को हमारे पते पर भेंज देंगे.वैसे कब किसे क्या हो जायेगा,किसी को नहीं पता.कहने को वे तमिलियन थे पर काफी सुन्दर हिंदी बोल रहे थे.ऐसा मुंबई में रहने का असर  हो ,किन्तु ऐसा नहीं था. गैराज  में समय का पालन करना उनका मुख्य  धर्म था,ऐसा करने से ही ग्राहक आएंगे.उन्होंने यह भी बताया की जब सलमान खान छोटे थे तो उनके पिता जी भी मेरे गैराज  में उनको लेकर गाड़ी की मरमत करने आते थे.अभी भी आ जाते है हमें यह कोई नयापन नहीं लगा धंधे में यह सब कुछ होता है.किसके पास कौन आ जाये किसी को नहीं पता.खाने में भी काफी मस्त थे .वे घर से ही खाने के पैकेट लेकरके आए थे,वह भी अलग-अलग पैकेट  ,जिससे खाने में तकलीफ न हो.

 अब आए उन ,बाकि लोगो के अनुभव को जाने जो रेलवे में सुरक्षा से सम्बन्ध रखते है,यानि,वे सब - इंस्पेक्टर..,जी हाँ.उनकी भी ब्यथा कुछ काम नहीं......उनका कहना था हम हमेशा अपने परिवार से दूर और अलग सा महसूस करते है. हमारे लिए कोई त्यौहार नहीं है या हम अपने परिवर के साथ कोई त्यौहार मना ही नहीं सकते क्यों की उस दिन हमें सुरक्षा  को बनाये रखने के लिए स्पेशल तौर पर ड्यूटी करना पड़ता है...२)हम अपने बच्चो की परवरिस ठीक से नहीं कर पाते. यह काम बिशेस कर पत्नी के ऊपर आ जाता है.जिससे पत्नी भी उखड़ी सी रहती है...०३)बाहर की आदत घर में भी उखड जाती है जैसे घर में आते ही सबसे झगड़ जाना.बातो-बातो में गुस्सा आना..वगैरह-वगैरह...०४) हम पुलिस वाले ब्लड प्रेसर , सुगर जैसे बिमारिओ से ग्रस्त हो जाते है क्यों की हमारा काम हमें हमेशा टेंशन में रखता है...०५)समाज में हमारे बच्चो को शादी के लिए रिश्ता मिलाना बहुत कठिन होता है.कोई भी ब्यक्ति पुलिश  वाले के बेटे-बेटियों से शादी में नहीं बंधना चाहता है.,०६)पुलिश वाले प्रायः हार्ट अटैक  के शिकार होते है. ०७)परिवार से दूर रहना,पत्नी का सहयोग न होना ,अपनो से दुरी वगैरह-वगैरह कारण ,पुलिश वालो को अनैतिक व्यभिचार के रास्ते पर धकेल देता है..०८) हमें समाज में हमेशा तिरस्कार की नजरो से देखा जाता है,भले हमारे सामने कोई कुछ  न बोले.      सभी ने  कुछ न कुछ अपनी सुना दी फिर मेरे बारे में जाने वगैर कैसे रह    सकते थे

मैंने भी अपने बारे में बता दी...मै राजधानी,  गरीब रथ और सुपर फास्ट ट्रेन का लोको   चालक हूँ. मेरा हेड कुँर्टर गुंतकल में है.मुझे   गुंतकल से बंगलुरु,सिकुंदाराबाद,सोलापुर   रेनिगुनता के तरफ ट्रेन लेकर जाना पड़ता है. ०२)हमें भी आठ घंटे की ड्यूटी करना पड़ता है. ०३)हमारे कार्य में कोई दखल नहीं दे सकता. ०४)लगातार दो-दो/तिन-तिन घन्टे  चलने के बाद,गाड़ी रुकती है.इस समय जरा सी भी चुक हजारो की जान ले सकती है.    
 ०५)ड्यूटी के समय हमें अनेको फाटक ,सिगनल,un -ussual परिस्थितियों से गुजरना  पड़ता है.०६)हम पानी का सेवन तक काम कर देते है.क्यों की हमारे लोको में टोइलेट की व्यवस्था नहीं है.टोइलेट के लिए हमें नेक्स्ट स्टॉप का इंतजार करना पड़ेगा या emergency में गाड़ी को खड़ा कर जाना होगा.  ०७)लगातार बिना पलक गिराए काम करने से आँखों की रोसनी भी कम हो जाती है.  ०८)कोई काम या आयोजन होने पर छूटी मिलना,बड़ा कठिन होता है.हमें छूटी कब मिलेंगा,शायद भगवान को भी नहीं पता.०९)लोको चालक घुस-खोर नहीं होते ,क्योकि इन्हें किसी प्रकार से पब्लिक संपर्क नहीं होता.१०)हमें जितना ड्यूटी दिया जाता है हम उसे ईमानदारी से निभाते है जैसे एक लिपिक अपने काम को कल पर धकेल देगा .वैसा लोकोचालाको के साथ संभव नहीं है.उसे अपने ट्रेन को लेकर नियत स्थान पर जाना ही है. ११)अगर कोई एक्सिडेंट हो जाती है,तब लोको चालको को किसी न किसी तरह एक भागीदारी बना दिया जाता है.१२)रेलवे में लोकोचालाको को ज्यादा सजा मिलाता है.हर आदमी की उंगली लोकोचालाको के प्रति ज्यादा उठती है.१३)काम के घंटे काम हो इसकी मांग बरसो से है पर प्रशासन के कानो पर जू तक नहीं रेंगती है............वगैरह.....वगैरह.....प्रश्न लोगो ने किये  जिनका उत्तर ही मैंने ऊपर नोट किया है.
 साथियों हर किसी को अपने काम से शिकायत है पर आज के इस कलियुग में ,राम मिलना मुश्किल  है.उधिष्टिर मिलना मिश्किल  है .कोई राजा हरीश चन्द्र   बनने को तैयार नहीं.फिर मै न्याय की अपेक्षा कैसे करू . आज बस इतना ही .....इसके आगे की यात्रा -२ , समय मिलने पर बाद में पोस्ट करूँगा.