अरे कलुआ ( बदले हुए नाम ) ...कहाँ है रे | तू बाहर आ | क्या कर दिया रे | आज मेरे पुत्र को क्या हो गया ? बहुत कुछ बडबडाते हुए वह औरत आगे बढ़ रही थी | रात्रि का पहर | चारो तरफ अँधेरा ही अँधेरा | गाँव का मामला | बिजली की आस नहीं | झींगुरो की आवाज गूंज रही थी | कुत्ते भूकने लगे थे | आचानक वह महिला चिल्लाते हुए कलुआ के दरवाजे पर आ धमकी | उसके पीछे लोगो का झुण्ड किसी के हाथ में लाठी , तो किसी के हाथ में डंडे | टार्च की रोशनी फैल रही थी | शोर गुल तेज हो गए | आस - पास के लोग भी अपने घरो से बाहर निकल आये | किसी को माजरा समझ में नहीं आ रहा था, आखिर बात क्या है ?
उस गरीब के झोपड़ी के सामने , इन दबंगों के भीड़ को देख सभी समझ गए की जरुर कुछ लफडा है | लगता था जैसे भीड़ कलुआ को चिर कर खा जाने के लिए तत्पर हो चली थी | उस झोपड़ी के अन्दर तेल के मद्धिम दीप की रोशनी में कलुआ की बीबी चूल्हे पर कुछ पका रही थी | दो छोटे बच्चे पास में ही चिपके हुए थे | कलुआ पास में बैठा ,बीडी पिने में मशगुल था | घर के बाहर उसके सास और ससुर चौकी पर लेटे हुए थे | इतनी हुजूम , देखते ही उनके अन्दर डर समां गयी | अँधेरे में भी उन्हें समझते देर न लगी की कौन उनके घर के पास खड़ा है और चिल्लाये जा रहा है |
' बबुआ की माँ जी का बात है ?'-कलुआ के बाप के मुह से सहमी सी आवाज निकली | पहले बता कलुआ कहा है ? भीड़ से किसी ने कहा | तब तक कलुआ झोपड़ी के अन्दर से धीरे - धीरे बाहर निकला | उसके बाहर आते ही वह बुड्ढी ( जो संपन्न / दबंग घर की महिला थी ) कलुआ के पैर पर गिर पड़ी | कलुआ मेरे बेटे को बचा लो | मेरा बेटा मर जायेगा | मेरा बेटा मर जायेगा | वह एक साँस में बोले जा रही थी , रुकने का नाम नहीं ले रही थी और कहते - कहते बिलख कर रोने लगी | सभी हतप्रभ थे , किसी को समझ में नहीं आया | आखिर मामला क्या है ?
चाची जी रौआ उठी | ऐसन का बात हो गईल , जो इतना परेशान बानी | उसने भोजपुरी लहजे में ही कहा और अपने पैर को दूर खिंच लिया | वृद्धा उठ चौकी के एक कोने में बैठ गयी और अपनी बात दुहराते हुए फिर बोल पड़ी - बेटा कलुआ , मेरे बेटे से गलती हो गयी | अगर उसने कुछ गलत किये हो तो , उसके लिए मै माफी मांगती हूँ , माफ कर दो | तेरे सभी पैसे मै देने के लिए तैयार हूँ | कुछ कर धर ( मतलब कोई टोटके ) दिया हो तो उसे वापस ले लो | तू भी मेरे बेटे सामान है | कलुआ मेरा बेटा मर जायेगा | और बहुत कुछ ....
कलुआ हक्का बक्का सा गुमसुम खड़ा रहा | उसे समझ में नहीं आ रहा था की मामला क्या है ? असमंजस सी स्थिति | आस - पास वाले भी कुछ न समझ पाए |
गाँव के हाट बाजार | जो सप्ताह में दो दिन , वह भी संध्या समय ही लगते है - रविवार और बुधवार | उस दिन रविवार थे | बाजार खाचा - खच भर गया था | इस हाट बाजार में दबंगों की दबंगई जोरो पर रहती है | अतः सभी व्यापारी , इस बाजार में आने से डरते है | कुछ परिस्थिति से सामंजस्य बना लेते है | कलिया (मांस ) के दूकान एक या दो लगती है | मछुआरे एक तरफ चार या पांच की संख्या में आते है | उसमे कलुआ भी एक था | वह अपने टोकरी में मछली लेकर बिक्री कर रहा था | लेने वालो के हुजूम लगे हुए थे | कोई भाव पूछ रहा था तो कोई मोल भाव में व्यस्त | तभी अमर सिंह ( बदले हुए नाम ) दबंगों का झुण्ड आ डाटा | उन्होंने कलुआ से मछली का रेट पूछा | बीस रूपए किलो साहब | अबे बीस रुपये मछली कहाँ है रे ? दस रूपए में दे दो | नहीं साहब घाटा हो जायेगा | कलुआ गिडगिडाने लगा | दबंगों ने जबरन दो किलो मछली तौल लिए और जाते - जाते पैसे भी नहीं दिए | कलुआ मुह देखते रह गया |
घर की औरतो ने मछली बहुत मसालेदार बनायीं | घर के सभी छोटे - बड़े .. बारी - बारी से भोजन ग्रहण कर लिए थे | जब अमर सिंह भोजन करने लगा ( जिसने कलुआ से जबरन मछली छीन कर लायी थी ) अचानक उसके गले में मछली के कांट फँस गए | बहुत चेष्टा की ,सादे भात खाए पर निकलना मुश्किल | घर वाले गाँव के स्वास्थ्य केंद्र में ले गए | डॉक्टर ने जबाब दे दिया | डॉक्टर ने कहा - शहर के अस्पताल में ले जाएँ | शहर के अस्पताल ने वनारस को रेफर कर दिया | घटना क्रम से प्रभावित हो किसी साथी ने कह दी की मुफ्त की मछली का नतीजा है | कलुआ ने कोई जादू - टोना की होगी | परिणाम सामने है सभी घर वाले क्षमा - याचना वस् कलुआ के घर दुहाई के लिए जुट गए थे | कलुआ की अनुनय - विनय हो रही थी |
संसार में जीवो की उत्पति ही कुछ न कुछ अर्थ रखती है | मनुष्य सबसे चालक और उत्कृष्ट माना जाता है | इसके कार्यकलापो से हवा के अन्दर जो स्पंदन उठती है , वह आस - पास की सभी चीजो को प्रभावित करती है | आग के पास बैठने से गर्मी या सर्दी नही | आम से आम या इमली नही | परिणाम हमारे कर्मो की देन है ,फिर आंसू किस लिए ? इसीलिए कहते है -- कर भला - हो भला |
( यह सत्य घटना मेरे गाँव की | परिणाम बहुत ही दर्दनाक रहें | तीन महीने बाद अमर सिंह की मृत्यु हो गयी | आज गाँव में यह घटना एक उदहारण बन गयी है | जैसी करनी वैसी भरनी | मछुआरो ने गाँव का बहिष्कार कर दिया था | )
जैसे कर्म वैसे मर्म..
ReplyDeleteहोनी इसी का नाम है।
ReplyDeleteहटकु उठाया हाट से, नहीं चुकाया दाम |
ReplyDeleteमच्छ-घातिनी में फँसा, बुरा एक अंजाम |
बुरा एक अंजाम, पकी स्वादिष्ट मछलियाँ |
मछली कांटा कंठ, करे व्याकुल घर गलियाँ |
मछुवारा अनजान, मदद कुछ कर ना पाया
रोया बहुत दबंग, हटकु यमराज उठाया ||
महज़ इत्तेफाक है कांटे का फंसना .जैसी करनी पार उतरनी होती तो आज गणतंत्र ६४ वें साल में भी इतना द्यानीय न होता .नेता सारे के सारे जेलों के तीर्थ तिहाड़ में होते .आप काहे चीज़ों में तर्क ढूंढते हैं .पाप पुण्य देखते हैं .ये कल युग है रौरव नरक .यहीं मिलता है गलत करते करते आदमी फंसता है .फंसना इत्तेफाक है .गलत कर्म नियम .
ReplyDeleteदेश के 64वें गणतन्त्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाएँ!
ReplyDelete--
आपकी पोस्ट के लिंक की चर्चा कल रविवार (27-01-2013) के चर्चा मंच-1137 (सोन चिरैया अब कहाँ है…?) पर भी होगी!
सूचनार्थ... सादर!
जैसे को तैसा,,,
ReplyDeleteगणतंत्र दिवस की हार्दिक शुभकामनाए,,,
recent post: गुलामी का असर,,,
सच है कर्म के फल यहीं मिल जाते है......
ReplyDelete@ वीरेंदर कुमार शर्मा जी ... नमस्कार | आप के विचार नकारात्मक सोंच की ओर इंगित करते है | आम पाने के लिए आम के वृक्ष के वजाय , बागीचे में जाना ..समय की बर्बादी है | सूर्य एक है , उसकी रोशनी को भोग करने वाले अनेक | अगर किसी की शरीर जल जाए तो इसमे सूर्य की क्या दोष |अपनी डफली अपनी राग | रही तिहाड़ और नेताओ की बात ...तो वे भी मुशीबत में है | अगर नहीं है तो इस लोकतंत्र में हम अपने अधिकार का सही उपयोग नहीं करते है | देर है , अंधेर नहीं |फंसना इत्तेफाक है , गलत कर्म नियम को जारी रखे |
ReplyDeleteबढ़िया प्रस्तुति |
ReplyDeleteआपके ब्लॉग को यहा शामिल किया गया है |
ReplyDeleteजरूर पधारें |
ब्लॉग"दीप"
विज्ञान कहता है की प्रत्येक क्रिया की प्रतिक्रिया होती है ,स्वाभाविक सी बात है बबूल में काटे ही लगेगे आम नहीं ,दूसरे को दुखी करके आप सुखी नहीं हो सकते किसी ने ठीक कहा है -
ReplyDeleteदुर्बल को न सतायिये जाकी मोटी हाय ,मुई खाल के स्वास ते सार भसम होई जाय ,
टोना-टोटका का आरोप लगा कर कलुआ के साथ कुछ घटित नहीं हुआ, यह सबसे बड़ी बात है. वरना आज भी बहुत से गाँव में टोना-टोटका का आरोपी सार्वजनिक रूप से सज़ा पाता/ पाती है. अमर सिंह की मृत्यु उसके कुकर्मों का परिणाम है. कलुआ को अच्छे कर्म का फल क्या मिला, यह जानने की उत्सुकता है.
ReplyDeleteइन्सान के अन्दर आत्म विश्वास है गुरु मंत्र का जाप चलते फिरते काम धंधा करते हुए भी ले सकते हैं dailymajlis.blogspot.in/2013/01/soulpower.html
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