Thursday, July 9, 2015

एक कप चाय

हमारे हिन्दू धर्म में सात का बहुत महत्त्व है । सात फेरे हो या सात दिन . सात जन्म हो या सात समंदर । वगैरह वगैरह । हमारे लिए भी सात वही महत्त्व रखता है । परम्पराये जीवित है ।जो समझते है उनके लिए बहुत महत्त्व रखती है । घडी की सुई निरंतर अंको को रौंदती रहती है और बार बार समय की अनुमान प्रस्तुत करती है । क्या घडी की सुई ही एक मात्र साधन है जो समय बताती है ?

जी नहीं मैं ऐसा नहीं समझता । हमारे आस पास घटित सभी घटनाये कुछ न कुछ सूचनाये देती है । बशर्ते हम उनका अवलोकन और समीक्षा करे । आईये ऐसी ही एक घटना पर नजर डाले ।

दिनांक 7 जुलाई 2015 की बात है । मैं सिकंदराबाद से राजधानी कार्य करने के लिए तैयार था । मेरा को - लोको पायल एम् वि कुमार थे । ड्यूटी में ज्वाइन होने के पूर्व किचन की तरफ मुड़े । शायद कुमार को चाय पिने की चस्का ज्यादा है । कुमार ने कूक से एक कप चाय मांगी । मैं और हमारे गार्ड दोनों बगल में ही खड़े थे । कूक ने एक कप चाय कुमार को पकड़ाया । कुमार ने चाय के कप को मेज के ऊपर रखनी चाही । लेकिन असुरक्षित । चाय का प्याला लुढक गया । पूरी की पूरी चाय मेज पर पसर गयी ।

ओह । मेरे मुह से ये शव्द यू ही निकाला । लगता है आज कुछ  होने वाला है ? आज सतर्क रहना पड़ेगा । गार्ड ने सहमति जाहिर की किन्तु कुमार ने अविश्वास मे सिर हिलाकर नाकारात्मक विचार प्रकट किये । ये सब बहम है । लेकिन मैं परिस्थितियों को उपेक्षित नहीं समझता । शांत रहा ।

हमें राजधानी के समय पर आने की सूचना दी गयी थी । किन्तु ट्रेन  लेट आई और एक घने लेट सिकंदराबाद से रवाना हुई । मैंने सफ़र के दौरान करीब आध घंटे तक विलम्ब कम कर लिया । आशा थी गुंतकल समय से आगमन होगी ।काश मन के विचार समय से मेल खाते । राजधानी को चितापुर स्टेशन में सिग्नल नहीं मिला । एक लोरी फाटक के बैरियर में अटक गई थी । मास्टर को गेट बंद करने में परेशानी हो रही थी । अंततः राजधानी एक्सप्रेस को 58 मिनट होम सिगनल पर सिगनल के लिए इंतजार करना पड़ा । जो कुछ भी बिलंब कम हुआ था वह फिर बढ़ गया । मैंने कुमार को याद दिलाया । देख लिए न मैंने किचन के सामने क्या कहा था ? कुमार निरुत्तर सा रह गए । खैर अभी भी यात्रा काफी बाकी है ।

चलते चलते समय बदलती रहती है । काश अपशगुन भी बदल जाते । अब अदोनी आ रहा था । राजधानी गाड़ी को अदोनी में रुकना पड़ा । स्टेशन मैनेजर ने सतर्कता आदेश भेजा जिसके अनुसार हमें अदोनी और नगरुर स्टेशन के बिच सतर्क होकर वाकिंग गति से जाना चाहिए क्यों की शोलापुर का चालक किसी अप्रिय हलचल की सूचना दी थी । जो पीछे वाली गाड़ी के लिए अप्रिय या असुरक्षित हो सकता है । हमारे लोको में इंजीनियरिंग स्टाफ भी आये । इस तरफ सतर्कता आदेश की पालन करते हुए 6 मिनट की सफ़र के लिए 30 मिनट लगा । मैंने कुमार को किचन वाली चाय की याद दिलाई । इस बार वे शांत रहे जैसे मेरी बातो में कुछ तो है जिसे इंकार नहीं किया जा सकता ।

आखिर कार हमें यात्रा  के दौरान दो विभिन्न घटनाओ से सामना करना पड़ा । जिसकी सूचना चाय की प्याली ने दे दी थी । आप हंसेंगे , न मानेंगे कोई बात नहीं । अपनी अपनी मन पसंद है ।जो पढ़ेगा वही पास होगा ।

Thursday, May 14, 2015

अनहोनी

13 मार्च 2015 । अलार्म बजने लगा था । तुरंत उठ गया और पास में सोये हुए जुबेदुल्ला जी को भी उठाया । शायद गुंतकल आने वाला था । अलार्म भी इसीलिए तो सेट किया था । हम दोनों बैठ गए । तभी जुबेदुल्ला जी का मोबाइल बज उठा । उन्होंने काल रिसीव किया । कुछ हलकी सी बाते हुयी । मैंने पूछा - किसका काल था ? ऐसेमेल राम का । फिर उदासी भरे लहजे में बोले - एक और spad हो गया । कहाँ ? अचानक मेरे शव्द निकले । उन्होंने कहा - इसी ट्रेन का यानि गरीब रथ एक्सप्रेस का और इसके लोको पायलट शेर खान । मेरे मुह खुले रह गए । आश्चार्य और दुःख , विषाद चेहरे पर फ़ैल गया ।कुछ विश्वास नहीं हो रहा था । ट्रेन प्लेटफॉर्म पर लग रही थी । हमने लोको के नजदीक जाने की तैयारी की जिससे इस ट्रेन के लोको पायलट से कुछ जानकारी ली जा सके ।

हम लोको के पास पहुंचे । यह क्या ? ट्रेन का लोको पायलट कोई और था । अब किसी अविश्वास की कोई गुन्जाईस  नहीं थी । हमने इस लोको पायलट से पूछा ? उसने भी घटना को सही बताया । लोको पायलट के जीवन की सबसे दुष्कर वक्त इससे ज्यादा कोई नहीं है । Spad के बाद वह असहाय हो जाता है । कोई भी उसकी हमदर्दी में सहयोग नहीं देता । सिवा कुछ लोको पायलटो के अपने संघठन के । इसी लिए सर्वथा कहते सुना जाता है की एक लोको पायलट हजारो की जाने बचा सकता है पर हजार एक साथ मिलकर एक लोको पायलट को जीवन दान नहीं दे सकते । ये कैसी विडम्बना है ?

कहते है तकदीर से ज्यादा और समय से पहले कुछ नहीं मिलता । वाकई सही है । कल ही सिकंदराबाद रनिंग रूम में हम एक साथ चाय पिए थे । बातो - बातो में मैंने शेरखान से पूछ था की कब पार्टी दे रहे हो ? उन्होंने अत्यधिक ख़ुशी जाहिर करते हुए कहा था । पार्टी जरूर दूंगा वह भी इसी माह में । ओफ्फिसियल पत्र जल्द आने वाला है । हमने भी ख़ुशी जताई ।

शेरखान लारजेश स्किम के तहत रिटायर होने वाले थे । वह भी इसी माह में क्योकि उनके बेटे का चयन की परिक्रिया पूरी हो गयी थी । शेरखान के बेटे की बहाली सहायक लोको पायलट के रूप में होनेवाली तय  थी और उन्हें वीआरएस । शेरखान के लिए अब सारे सपने अधूरे शाबित होंगे यदि रेलवे प्रशासन कठोर कार्यवाही करती है । आज कल spad की घटनाओ में लोको पायलट को सर्विश से हाथ धोना पड़ता है । ऐसी कठोर सजा और कहीं नहीं मिलती ।

लोको पायलट का जीवन कोल्हू के बैल जैसा है । रेलवे उसे मनमानी ढंग से उपयोग करती है । न रात को चैन न ही दिन में । बिना मांगे साप्ताहिक अवकाश भी दूर । तीज त्यौहार की क्या कहने ।आप अपने बर्थ पर आराम से सोते है । लोको पायलट रात भर पलक झपकाये बिना आप को आपके मंजिल तक सुरक्षित पहुंचाते है । और भी बहुत कुछ जो छुपी हुयी है । क्या आपने कभी लोको पायलटो के जीवन में झांकने की कोशिश की है ? अगर नहीं तो हर व्यक्ति को जाननी चाहिए ? एक बार सोंच कर तो देंखे यदि आप एक लोको पायलट होते ?

आज शेरखान ससपेंड है । विभागीय ऑफिसर से मिला और शेरखान के केश को सहानुभूति पूर्वक संज्ञान में लेने की अनुरोध भी कर चूका हूँ  । विभागीय अफसर से सकारात्मक उत्तर मिला  है । प्रशासनिक कार्यवाही जारी है । देखना है समय की छड़ी किस आवाज से पुकारती है  ।

हम लोको पायलटो की संवेदना उनके साथ है । हम लोको पायलट कर्मठ भी और असुरक्षित ।

Wednesday, January 21, 2015

ऐसा भी होता है ।

दिसंबर का महीना था ।कड़ाके की सर्दी । कुहासे की वजह से रेल गाड़ियों के आवा जाही पर असर पड़ा था । यानि  दिनांक 15 और वर्ष 2014 । आज रिफ्रेशर क्लास का आखिरी दिन था । वक्त गुजरता जा रहा था ।समय जैसे ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था । सभी को , जिन्हें ट्रेन पकड़नी थी उन्हें एक ही चिंता  सता रही थी की कब रिलीफ पत्र मिलेगा । मैं भी उसमे से एक था । शाम को करीब पौने पाँच बजे रिलीफ पत्र मिला । जैसे - तैसे हास्टल को भागे । पहले से  ही पर्सनल सामान सहेज के रख दिया था । राजधानी का समय हो चला था । भागते हुए काजीपेट के प्लेटफॉर्म संख्या दो पर पहुंचे  । तब तक राजधानी एक्सप्रेस जा चुकी थी । अनततः ईस्ट कॉस्ट एक्सप्रेस से हैदराबाद के लिए रवाना हुवे ।

हैदराबाद से गुंतकल के लिये  कोल्हापुर एक्सप्रेस जाती है । उसमे हम सभी का रिजर्वेशन था । रात ग्यारह बजे ट्रेन को प्लेटफॉर्म में लगाया गया । मेरे साथ कई लोको पायलट थे । मुझे नींद आ रही थी । अतः बिना देर किये , अपने 2 टायर कोच में पवेश किया । मेरा लोअर बर्थ था । मेरे सामने के ऊपरी बर्थ पर एक बुजुर्ग अपने बिस्तर को सहेज रहे थे ।अपने सामानों को सुव्यवस्थित रख , थोड़े समय के लिए टॉयलेट या   बाहर चले गए । 

कुछ समय के उपरान्त लोको पायलट मुरली आ धमाके । मैंने पूछा _ आप की बर्थ कौन सी है ? उन्होंने  मेरे सामने की ऊपर वाली बर्थ की तरफ इशारा किया । मैंने कहाकि उसपर एक बुजुर्ग है । गलती से आया होगा , कहते हुए बुजुर्ग के बैग को मुरली जी ने निचे रख दिए और  मेरे बगल में ही बैठ गए । हम एक दूसरे से वार्तालाप में व्यस्त थे । तभी वह बुजुर्ग आये । अपने बैग को बर्थ से गायब देख , जोर से चिल्लाने लगे । मेरा बैग कहा गया ? मुरली जी ने उसके तरफ रुख करते हुए जबाब दिया की  आप का बैग यहाँ निचे है । अब तो वह बुजुर्ग आप से बाहर हो गए और बोले किसने यहाँ रखी ? मुरली ने तुरंत स्वीकारते हुए कह दी _ मैंने रखी है ये बर्थ मेरा है । बुजुर्ग कंट्रोल से बाहर । मुरली के तरफ इशारा करते हुए  बोले _ मेरा बैग ऊपर रखो जल्दी । ये बर्थ मेरा है । 

ज्यादा बात न बढे इसलिए मैंने हस्तक्षेप किया । दोनों से उनकी टिकट  फिर से देखने का आग्रह किया । चार्ट में मेरा नाम मुरली लिखा हुआ है _ मुरली ने कहा । वह बुजुर्ग व्यक्ति टपक से कहा मेरा नाम मुरली है । मैंने मुरली से उनकी टिकट दिखाने को कहा । किन्तु टिकट उनके पास नहीं था ।टिकट उनके सहायक के पास था । उस व्यक्ति ने अपनी टिकट दिखाई । वह बर्थ उसी का था । अतः मुरली उसके कोप का अधिकारी न बने , मैंने ही उसकी बैग उसके बर्थ पर तुरंत रख दिया । वह व्यक्ति गुस्से में लाल हो गया था । बहुत कुछ कहा जो यहाँ उद्धृत करना जरूरी नहीं समझता । मुरली को अपने गलती का अहसास हो गया था । अब शांत और चुप्पी के सिवाय कोई औचित्य नहीं था । मुरली इस मामले को नजरअंदाज करते हुए चुपके से खिसक गए । सहायक लोको पायलट के आने के बाद पता चला की उनका बर्थ कहीं और था ।


जी हाँ आये दिन हमसे ऐसी गलतिया होती रहती है । पर हम में कितने लोग है जो गंभीरता से सोंचते है ? थोड़ी भी सूझ बुझ से  की गयी कार्य हमारे स्वाभिमान में चार चाँद लगा देते है । मनुष्य मात्र ही एक ऐसा प्राणी है जिसे सूझ बुझ की शक्ति प्राप्त है अन्यथा जानवर और मनुष्य में फर्क कैसे ? स्वच्छ और सशक्त नागरिक देश के उन्नति के नीव है ।

Monday, November 17, 2014

मैं शराबी नहीं हूँ ।

बहुत दर्द हो रहा है मेरे मुह से निकल गया । पत्नी जो किचन में खाना बना रही थी मेरी आवाज को   सुन ली थी । वही से पूछ वैठी ? क्यों जी क्या हो गया । मै अनसुना सा बैठ रहा  । दिल कुछ कहने के पक्ष में नहीं था । पत्नी और वह भी जाने बगैर कैसे रह सकती थी ? पास आ गयी और पुलिसिया प्रश्नो के बौछार शुरू कर दी । बिना कुछ जाने मेरी खैर नहीं । अपनत्व जो गंभीर है । शादी के वक्त कसम भी तो खाये थे कि हम एक दूसरे के दुःख सुख के साथी जीवन भर बने रहेंगे ।

दर्द बेहद असहनीय था । दाहिने हाथ के अंगूठे को बाए हाथ से सहलाते हुए बोला - इस अंगूठे और पंजे में खून जम गया है और सूजन भी बहुत है । कुछ क्षण के लिए चुप हो गया । पत्नी बगल में बैठते हुए मेरे हाथ को अपने हाथो से पकड़ ली और डॉक्टर की तरह जांच मुआयने करने लगी । ओह बहुत सूज गया है । पत्नी के इन शव्दों में कितना प्यार और अपनत्व था , आसानी से एक प्रेमी युगल ही समझ सकता है । वह हाथ को सहलाते हुए पूछने लगी - ये तो चोट है , आखिर कैसे हुआ ? और उठ बेड रूम से पतंजलि के दिव्य पीड़ान्तक तेल ले आई । तुरंत मालिस करने लगी । पतली और कोमल  अंगुलियो के दबाव भी असहनीय पीड़ा उत्तपन्न कर रही थी , पर पुरुष को सहने की शक्ति भी कम नहीं होती ? मुह बंद कर दर्द को सहन करता रहा। पत्नी फिर अपने प्रश्नो को दुहरायी । क्यों जी यह कैसे हुआ बोलते क्यों नहीं है ? 

वाकया उस दिन की थी जब मेरी ट्रेन को बिफोर समय चलने की वजह से एक स्टेशन पर खड़ा कर दिया गया था । मै और मेरा सहायक लोको में बैठे हुए थे । अचानक एक नौजवान लोको के अंदर प्रवेश किया । उसके हाव भाव से लग रहा था कि उसने शराब पी रखी थी । हमने उसे तुरंत बाहर जाने के लिए कहा , पर बाहर जाने का नाम नहीं ले रहा था और अनावश्यक शव्दों को बके जा रहा था । सहायक उसे खिंच बाहर ले गया । निचे उतरकर भी उसके व्यवहार में कोई अंतर नहीं आया। पीछे से मैं भी प्लेटफॉर्म पर उतर गया । अब वह मुझसे उलझ पड़ा । हमने उसे दूर जाने की हिदायत दी । कुछ और यात्री भी समझाये , पर उसे कुछ असर नहीं पड़ा । हमारे प्रति उसके व्यवहार में कोई बदलाव नहीं आये । हमारे सहनशीलता पर दबाव बढ़ने लगा था

अचानक मैंने अपना कंट्रोल खो दिया था और मैंने उसे दूर ढकेलते हुए कई थप्पड़ जड़ दिया । उसे होश था या मदहोशी मालूम नहीं तुरंत मेरे पैर पकड़ लिया । शक्ति और पराजय शांत हो गए । उस समय कुछ महसूस नहीं हुआ था । क्रोध अँधा होता है । उस समय कुछ समझ से बाहर था । कोमल और सुकुवार हाथ में धीरे धीरे दर्द शुरू होने लगा । आराम गृह में रात भर सो नहीं सका था । दाहिने हाथ की हथेली और अंगूठे में सघन पीड़ा थी जो उस व्यक्ति को पीटने का नतीजा था ।परिणाम ख़त्म हो चूका था और नतीजे मैं भुगत रहा था ।

पत्नी शांत मुद्रा में सुनती रही । मेरे शव्दों पर विराम लगते ही वह विफर पड़ी । मेरे प्रति प्यार और दर्द गायब हो गए । उसके हृदय में  उस शराबी के प्रति प्यार और सहानुभूति उमड़ पड़े ।वह  गुस्से में दुर्गा की रूप धर ली और कहने लगी - आप को अपनी शक्ति और क्रोध पर लगाम लगानी चाहिए । उस नौजवान ने शराब पी थी , आप तो शराबी नहीं हो । आप में और उसमे अंतर ही क्या रह गया ? आप अपने को कंट्रोल करना सीखिये । अब भुगते करनी का फल । उसका श्राप लग गया है । आप हमेशा ऑन लाइन जाते रहते है , किसी दिन अपने साथियो के साथ आप पर हमला कर देगा तो क्या कीजियेगा ? 

आज पत्नी मुझे कठघरे में खड़ा कर  जो जी में आया कोसती रही । उसके भावनाओ में कोई खोट नहीं थे । मैं अपने को कोसता रहा । यह मेरे जीवन की बड़ी गलती थी । स्वर्ण अलग धातु से मिल अपनी चमक खो चूका था । मुझे बस इतना ही कहते बना -मैं शराबी नहीं हूँ । घोर गलती हो गई । अब पछताने के सिवा कुछ नहीं बचा । क्रोध का अंत कुछ भी नहीं है । बस राख ही राख । सहनशीलता महान है । प्यार जीत और द्वेष हार एवं पीड़ा ही देती है ।


ओह अंगुली में अभी भी दर्द है ।

Wednesday, October 29, 2014

कुत्ते कहीं के ।

प्राणी मात्र में ही उथल - पुथल ज्यादा होते है ; ऐसा नहीं है । इस उथल पुथल को संसार के सभी अवयवो में देखा जा सकता है जिसमे जीव की मात्र उपस्थित होती है । सभी के रंग और व्यवहार अलग अलग होते है । मनुष्य मात्र ही ऐसा प्राणी है जिसे अच्छे बुरे का ज्ञान होता है । प्रकृति का सर्वोत्तम प्राणी का ताज इसे ही प्राप्त है ।किन्तु यह भी सत्य है और जिससे प्रायः हमें कोई सरोकार नहीं होते कीअन्य जीव जंतु भी हमारी तरह सोच विचार करते है । समय के अनुसार बदले की भावना उनमे भी भरी होती है । ये बदला लेने के लिए काफी आक्रामक भी हो जाते है ।यहाँ तक की जान की भी परवाह नहीं करते । 

ऐसी  ही कुछअन होनी आ धमकी थी।बाजार से लौटते समय  बालाजी और रामजी ने एक जोड़े कुत्ते को सड़क के किनारे बैठे  देखा । एक लाल और दूसरी सफ़ेद रंग की थी । दोनों के बारे में कोई जानकारी नहीं थी । वे सड़क छाप और कुत्ते कहीं के थे। जाहिर  है किसी भी प्राणी के बच्चे बहुत लुभावने होते है । अतः उनके मन में भी इच्छा जगी की इन्हें घर ले चला जाए । 

दोनों घर के सदस्यों से घुल मिल गए  और एक साथ ही घुमते खाते पिते थे । अकेले किसी एक को भोजन देने से मजाल है जो कोई अकेले खाए यानि दोनों की उपस्थिति जरुरी थी । एक दिन दोनों सड़क के किनारे खेल और कूद रहे थे तभी कोई बाईक सवार सफ़ेद बच्चे को कुचल कर चला गया । वह अधमरा सा हो गई । उसका बचना असंभव सा प्रतीत होने लगा । बड़े पुत्र रामजी और पत्नी को उसकी पीड़ा बर्दास्त नहीं हुयी । तुरंत उसे जानवर के डॉक्टर के पास ले जाया गया । डॉक्टर ने एक सुई लगाई और कहा कि एक सप्ताह में ठीक हो जायेगा  अन्यथा इसका बचना मुश्किल है । पत्नी को रहा नहीं गया तो एक रुपये से साईं बाबा जी से मन्नत मांग ली । मन्नत और दवा रंग लायी और उसकी  जान बच गई।

फिर दोनों कुत्ते साथ साथ रहने लगे । दीपावली के एक सप्ताह पहले की बात है । उस दिन लाल कुत्ते को एक मरा हुआ मेढक मिल गया था  उसे पाने के लिए फ़ेद वाले ने झपटा मारी । गहरी  दोस्ती दुश्मनी में बदल गई । दोनों में खूब  युद्ध हुआ  दोनों का शरीर लहू लुहान हो गया । अब रोजाना लडाई होने लगी । अतः हमने दोनों को अलग अलग रखने का निर्णय किया  । एक को पिछवाड़े और दुसरे को बंगले के अगवाड़े रखा जाने लगा ।

अचानक दीपावली के बाद सफ़ेद कुत्ते की तबीयत ख़राब हो गयी । घाव गहरे हो गए थे । आखिर कार वह 25 अक्टूवर 2014 को चल बसी ।सभी से इतना घुल मिल गयी थी कि उसकी यादे भुलाये नहीं भूलती । लाल कुत्ते को फ्री करते ही वह उसके मृत शरीर के पास गयी और उसके चारो तरफ एक चक्कर लगायी और उसके सिर के नजदीक कुछ समय के लिए बैठ गई जैसे वह अपने दोस्त की मृत्यु की शोक मना रही हो और कह रही हो कि मुझे माफ़ करना मै ही तुम्हारे मृत्यु का कारण हूँ । हमें भी इसकी अनुभूति हई । देखा लाल वाली कुत्ते के मुह पर उदासी की रेखाए थी ।

कुत्ते कहीं के होते है पर इनके स्वामी भक्ति की मिसाल जल्दी नहीं मिलती । मात पिता बंधू बांधव सभी को भूल अपने स्वामी के हो जाते है । आज का इंसान कब जागेगा और आतंकवाद हिंसा कब रुकेगी ?