Wednesday, September 24, 2014

कोई शक्ति है ।


कहते है समय बलवान होता है । कब क्या हो जाये किसी को पता नहीं होता । कोई तो है ; जो हमारी सांसो को कंट्रोल करता है । उसके मर्जी के बिना कुछ सम्भव नहीं है । गाड़िया चलती है तभी जब चलाने वाला हो ।
उस दिन ऐसा ही कुछ होने से रह गया । दिनांक 20 जून 2014 को सपरिवार शादी में  शरीक होने जा रहा था । झिम झिम बारिस पड  रही थी । बस स्थानक में खड़े थे । बसे उस स्थानक पर नहीं रुकती है । कुछ समय के बाद एक बस आई और हमने रुकने के लिए हाथो  से इसरा किया ।
बस रुकी और हम जल्दी से उसके अन्दर प्रवेश किये ।बस  चल दी । कुछ दूर बढ़ने के बाद खलासी ने ड्राईवर को रुकने के लिए कहा । ड्राइवर ने बस तुरंत रोक दी ।खलासी बस से उतरा और पीछे की और गया । उसके आश्चर्य का ठिकाना न रहा । देखा की -पीछे के चक्के के पुरे नट बाहर निकलने वाले थे ।
फिर क्या था तुरंत अपने औजारों से टाइट किया । बस फिर गंतव्य की ओर रवाना हो गयी । कंडक्टर ने कहा -आज सबकी जान बच गयी अन्यथा एक्सीडेंट होने वाला था ।नटो के बाहर निकलते ही चक्के बाहर आ जाते थे । शुक्र है समय से लिया गया निर्णय सभी को सुरक्षित रखा ।
कहते है -एक छोटा छिद्र नाव को डुबो देता है । कही यह भी सही है की एक धर्मात्मा की वजह से असंख्य की जान बच  जाती है । कोई तो है जो सब कुछ जानता है । कब और क्या करना है ?

Saturday, August 23, 2014

आधुनिक आचरण

" बहुत बेशर्म हो जी |" मुझे गुस्सा आ गया और अनायास ही ये शव्द मेरे मुह से निकल पड़े | बगल में बैठी पत्नी भी घबड़ाते हुए पुछि -"_ क्या हो गया ? मै पत्नी के प्रश्नो का जबाब देता की वह युवा बोल उठा - " किसे बोल रहे है ? " 

उसके ऐसा कहते ही मै और भड़क गया | उसे डाटते हुए बोला - " गलती करते हो और सीना जोरी भी | सॉरी कहने के वजाय मुह लड़ाते हो ? यही शिष्टाचार सीखे हो ? थोड़ा भी संस्कार नहीं है और पूछते हुए शर्म नहीं आती है ? " अभी तक उस युवक को यह समझ नहीं आया की उसकी क्या गलती थी ? वह चुप हो गया | 
युवा का विपरीत वायु होता है | युवाओ को जोश में बुरे या अच्छे का ज्ञान नहीं होता |
मै पत्नी की तरफ देखते हुए बोला - " देखो जी इस भोजन के नजदीक पैर रख दिया | " अब क्या था पत्नी  भी उस युवक को खरी - खोटी सुनाने लगी | वह युवक निःशव्द हो गया | उसे अपने गलती का एहसास हो चुकी थी | उसने कहा - सॉरी अंकल | 

 उस दिन १९ जून २०१४ था और हम पवन एक्सप्रेस के दूसरी दर्जे के वातानुकूलित  कोच में यात्रा कर रहे थे | एक लोअर , एक उप्पर बर्थ हमारा था | बालाजी अलग साईड बर्थ पर थे | उस युवक का बर्थ हमारे विपरीत वाला ऊपर का था | मै दोपहर का भोजन कर रहा था | सभी खाने कि सामग्री लोअर बर्थ पर फैली हुयी थी | वह युवक टॉयलेट से आया और सीढ़ी से ऊपर बर्थ पर न जाकर  दोनों लोअर बर्थ के ऊपर पैर रखते हुए छलांग लगाया और अपने ऊपर के बर्थ पर चढ़ गया | ऐसा करते वक्त उसके एक पैर मेरे खाने के प्लेट से सिर्फ चार अंगुल दूर थे | इस गन्दी  हरक्कत को भला कौन बर्दाश्त कर सकता है ?

प्राचीन काल से इस आधुनिक युग कि तुलना काफी अलग है | शिक्षा के स्वरुप काफी विकसित और अभूतपूर्व है | उसके मुताबिक मनुष्य के रहन - सहन में काफी बदलाव आएं है | किन्तु इन सब के बावजूद  मष्तिष्क निधि के गिराव जोरो पर है | परमार्थ , हितकारी , मददगार , उपयोगी  शिष्टाचार जैसे गुड़ी शव्दो का कोई महत्त्व नहीं रहा | जिसके लिए हमारे पूर्वज जान भी दे देते थे |  

यही शायद असली कलयुग है | उच्च शिक्षा का मतलब यह कतई नहीं कि हम अपने सामाजिक कर्तव्य और शिष्टाचार को भूल जाय | शिष्टाचार का स्वरुप ऐसा हो कि हम जो भी कार्य करें उससे किसी को भलाई के सिवा कुछ न मिले | जो भी हो हमें समाज से सतर्क और समय से जागरूक होनी चाहिए | एक अनुशासित व्यक्ति , परिवार , समाज ,राज्य और देश के  स्वस्थ वातावरण को जीवित रख सकता है | सोंचने वाली बात है - क्या मै अनुशासित और शिष्टाचारी हूँ ? 

हमारे मनीषियों ने काल को कई खंडो में विभाजित किया है । आदि , वर्त्तमान या भविष्य जो भी हो एक विभिन्नता से भरपूर है । 
बलिया में उतरने के पूर्व - चलते - चलते कुछ सुझाव भी दे डाला | दुखी मत होवें हमेशा खुश रहे |  जीवन में कभी कोई गलती हो जाए  , तो मुझे याद कर लेना | हिम्मत और शक्ति मिलेगी |

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Wednesday, July 23, 2014

दयनीय पिता और अर्थहीन दशा



आज बहुत दिनों के बाद शकील मुझे मिला था । वह उस डिपो में चतुर्थ श्रेणी का कर्मचारी था । मुझेबहुत ही आदर करता  था । यह उसकी अपनी बड़प्पन थी । वह देखते ही सलाम किया । मै भी मुस्कुराते हुए स्वीकृति में हाथ उठा दिया और उससे पूछा - कहो शकील कैसे हो ? गुंतकल कैसे आना हुआ ? सर ऑफिस काम से ही आया हूँ । बातो - बातो में यह भी पूछ लिया - परिवार कहाँ रखे हो ? और हा वह नवीन कैसा है ? परिवर गुंतकल में ही है सर । फिर वह कुछ उदास सा हो गया । आगे कहने लगा -सर आप के ट्रांसफर के करीब दो - तीन महीने बाद ही नवीन का देहांत हो  गया ।मेरा  मुह आश्चर्य से खुले के खुले रह गए । पूछा - वह कैसे हुआ ? क्या बीमार था ? नहीं सर । लोग कहते है - स्टोव से जल कर मर गया । 

अजीब समाचार था । घर आया । दिल में  एक अनजाने दर्द ने घर कर  लिया जैसे मैंने घोर अपराध कर दिए हो । बातो ही बातो में इस घटना की जिक्र पत्नी से भी कर दिया । पत्नी ने अफ़सोस जाहिर की  । पत्नी बोली - आप ने गलती कर दी अन्यथा ऐसी घटना नहीं होती थी । उस वक्त उसे आप को उसकी  मदद करनी चाहिए थी । मैंने लम्बी साँस ली । किसे मालूम था एक दिन ऐसा भी होगा ?


उन दिनों मै एक छोटे से डिपो में कार्य करता था । शाम का समय । अभी - अभी ड्यूटी से उतरा था । पत्नी चाय नास्ते बनाने के लिए किचन के अंदर व्यस्त थी । मै बाथ रूम में मुह -हाथ धोने के लिए अंदर गया । तभी दरवाजे पर लगी काल बेल को किसी ने दबाया । घंटी बजी , पत्नी ने बाहर जाकर देखने की प्रयत्न की । नवीन आया है । पत्नी ने आवाज दी ।  अरे अभी - अभी ही गाड़ी लेकर आया हूँ , यह क्यों आ गया ? ठीक  ही कहते है इन पियक्कड़ों की कोई भरोसा नहीं होती ? पैसे की कमी पड़ी होगी ? बाथरूम में मन ही मन बुदबुदाया और पत्नी से बोला - कह दीजिये थोड़ा इन्तेजार करे । अभी आया । 

घर से बाहर निकला । देखा नवीन दोनों हाथो को सामने सीने के ऊपर मोड़े  हुए स्थिर खड़ा था । लम्बा , गोरा और पतला छरहरा आधे उम्र का इंसान । मुझसे उम्र में बड़ा किन्तु प्रशासनिक पद में छोटा था । देखते ही नमस्कार किया और सहमे हुए खड़ा रहा । शायद उसके मुह से कोई शव्द नहीं निकल पा रहे थे । मैंने ही पूछ लिया  - कहो क्या बात है ? देखा उसके चहरे पर उदासी झलक रही थी । सर एक जरूरी काम है । कहो ? मैंने हामी भरी । सर मै रेलवे नौकरी से स्वैक्षिक अवकाश लेना चाहता हूँ  कृपया एक दरख्वास्त लिख दे । 

वस इतनी सी बात । कल सुबह भी आ सकते थे ? किन्तु मेरा मन कारण जानने के लिए जागरूक हो गया । सच में आखिर इसकी क्या वजह है ? कोई मेहनत की नौकरी भी नहीं है । इसके पिने की लत से सभी वाकिफ  है । सभी एडजस्ट भी करते है । मैंने उससे पूछ ही डाला -" नवीन आखिर क्यों ऐसा करना चाहते हो ? " वह रोने लगा । बोला - " सर मेरा बेटा मुझसे कहता है ,जा के कहीं  मर क्यों नहीं जाते । कम से कम उसे एक नौकरी मिल जाएगी अन्यथा हम ही किरोसिन छिड़क कर तुम्हे मार डालेंगे ।"  मै इसे  गम भीरता से नहीं लिया और उसे समझा बुझा कर -कल सुबह लिख दूंगा कह कर बिदा कर दिया । फिर वह कई बार मिला किन्तु दरख्वास्त लिखने की अनुरोध कभी  नहीं  दुहरायी । 

आज मन विचलित था । शायद उसने सही अभिव्यक्ति की थी । एक दयनीय पिता अपने दयनीय अर्थ से परास्त हो चूका था । काश ऐसा न होता । संसय कहाँ तक उचित है - कह नहीं सकता । ( नाम और स्थान काल्पनिक किन्तु सत्य ) 

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Monday, June 23, 2014

चार - चार चौदह

समय स्वतः ही एक  समाचार है । कौन है जो  आज  समाचार से ग्रस्त नहीं  है । हम भी इस  समाचार के एक पहलू है ।  समाचार कई तरह के हो सकते है जैसे - घरेलू , सामाजिक , देशिक,  प्रादेशिक या विश्वस्तरीय  वगैरह -  वगैरह  । रेल गाडी का  चलन भी एक समाचार से कम  नहीं है , तो इसे चलाने वाले चालक इससे परे क्यों रहे । देश में इलेक्शन का दौर शुरू हो गया  है । भारतीय नागरिको को अपने मताधिकार का सदुपयोग अप्रैल - मई २०१४ के महीने में करना है । सोलहवीं लोकसभा और पंद्रहवी प्रधानमंत्री का चुनाव वेहद ही लोकप्रिय बन गया है  , जब की बी जे पि ने अपने अगले प्रधान मंत्री के रूप में श्री नरेंद्र मोदी जी को अपना उम्मीदवार घोषित कर दी है  । सारी राजनीतिक पार्टिया अपने बैचारिक भिन्नता को भुला , एक जुट हो - शाम ,  दाम -  भेद से बशीभूत हो , अपनी पूरी शक्ति श्री नरेंद्र मोदी को रोकने में लगा दी है । फिर भी अगर श्री नरेंद्र मोदी की जीत होती है , तो ये अपने - आप में व्यक्तिक जीत ही होगी । देखना है होता है क्या ?

चार -चार - चौदह । यानी चौथा अप्रैल २०१४ का दिन । कुछ अजीब सा रहा ।

घर में  टी. वीं पर नजर गयी । किसी स्टिंग का प्रसारण चल रहा था । सभी चैनल इसके प्रसारण में व्यस्त । इसके दिखाने का मकसद सिर्फ यही था कि बाबरी मस्जिद के विधवंश के पीछे बी जे पी के शीर्ष नेताओ के हाथ होने को पब्लिक के समक्ष प्रस्तुत कर बीजेपी को नुकशान पहुँचाया जाय  । साथ ही यह स्टिंग मतदान पर भी असर डाल सकती है । चौदह वर्ष पहले की स्टिंग और आज प्रसारण का मकसद क्या हो सकता है ? राजनीतिक लाभ / ब्लैकमेल /आर्थिक लाभ या और कुछ ? समय के साथ समाचार का काला युग ? मेरे विचार से ऐसे स्टिंगर और प्रसारण करने वालो को तुरंत गिरफ्तार कर लेना चाहिए क्योकि उस स्टिंग का इस समय कोई औचित्य नहीं था । अगर यह सही था तो मिडिया ने इसे चौदह वर्ष क्यों दबा कर रखा ? समयाभाव की वजह से पूरा प्रसारण  नहीं देख  पाया । राजकोट एक्सप्रेस को लेकर वाड़ी जाना था ।  डेढ़ बजने वाले थे । कड़ाके की धुप में घर से  निकल पड़ा ।समय पालन अतिआवश्यक जो है ।

गाड़ी आने की इंतजार में लॉबी के लॉन्ग में बैठा हुआ था । सहसा एक लोको पायलट मेरे तरफ मुड़े और अभिवादन करते हुए बोले - सर - आज  कल दिखाई नहीं दे रहे है ? उनके मुह से शव्दो के साथ थूक के छींटे मेरे हाथो पर गिर पड़े । वे बहुत ही क्लोज लोको पायलट है । इसका मुझे ख्याल ही न रहा और झिड़की देते हुए उनपर बरस पड़ा , बोला - " आप शव्दो के साथ थूक न फेंके जी । हाथ गन्दा हो गया । " उन्हें  मेरी भावनाओ की   कठोरता  महसूस नहीं  हुआ  । वे तुरंत मेरे हाथो को रुमाल से पोंछने लगे औरनम्रता से  बोलें - सॉरी सर । मेरे चेहरे  पर क्षमा सी मुस्कान खिल उठीं  । इसे कहते है पॉजिटिव ईमेज / एप्रोच  ।

 राजकोट गाड़ी आ चुकी थी । लॉबी से  निकलने का दिल नहीं कर  रहा था । ऐ.सी. की भीनी - भीनी ठंढक दिल को मोह रही थी । वध्यता थी निकलना ही पड़ा । गाड़ी दस मिनट लेट गुंतकल से रवाना हुई । गाड़ी नँचरला रेलवे स्टेशन को लूप लाइन से पास कर रही थी क्योकि  मेन लाइन में  इंजीनियरिंग काम चल रहा था गाड़ी की गति सिर्फ ३० किलोमीटर / घंटा थी । इंजीनियरिंग स्टाफ वालो ने वॉकी -टॉकी पर हमें अनुरोध के साथ सूचना दी कि लोको पायलट साहब कृपया गाड़ी को  धीमी गति से चलाते  हुए आगे बढे , कुछ हमारे इंजीनियरिंग स्टाफ दोपहर के खाने के पैकेट के साथ उतरना चाह रहे है । हम लोगो ने अभी तक भोजन नहीं किया है । स्वाभाविक है , अपने रेल  कर्मी थे और इस चिलचिलाती धुप में कठिन कर्मरत । मैंने गाड़ी की गति काफी  कम कर दी । सभी भोजन सामग्री के साथ उत्तर गए । उन्होंने वॉकी -टॉकी पर धन्यवाद कहा ।

सामने मलोगावलि स्टेशन  आने वाला था । गाड़ी १०० किलोमीटर / घंटे  गति से दौड़ रही थी । अचानक दो गायों की  झुण्ड  लाइन पर आ गई । जब तक गाड़ी की ब्रेक लगाते , दुरी कम और दोनों के चिथड़े उड़ गए । गाड़ी के दो कोचों के बीच ब्रेक पाईप अलग हो गए । गाड़ी रुक गई । कैसा संयोग था ? कैसी विडम्बना थी -मौत / यमराज की गति नँचरला में धीमी हुई और दोनों गायों की मौत मलोगावलि  में । हर जीव की मौत सुनिश्चित है । उनके  मालिको के प्रति दिल में दर्द उठा । अफसोस हजारो की नुकशान हो चुकी थी । काश अपने पशुओ की संरक्षा और सुरक्षा की ध्यान रखते ?

राजकोट एक्सप्रेस के कोच में पानी मंत्रालयम स्टेशन में  भरा जाता है । नदी सुख गयी है अतः पानी कृष्णा स्टेशन  में भरा जायेगा | इसीलिए  मंत्रालयम स्टेशन में गाड़ी नहीं रुकी ।  कृष्णा रेलवे स्टेशन पर कोचों में पानी भरा जा रहा था | मै लोको में बैठा सिग्नल का इंतजार कर रहा था | तभी एक यात्री लोको के पास आया और लोको के नंबर प्लेट ( १६६७२ ) की तरफ इंगित करते हुए पूछा - " साहब क्या इस गाडी का नंबर यही है ? मैंने कहा - नहीं , ये मेरे लोको का नंबर है | वह कुछ देर तक शांत रहा | इधर - उधर देखा | फिर पूछ बैठा -तब इस गाडी का नंबर क्या है ? मैंने कहा -१६६१४ और उसे देखता रहा | उसके मुखमंडल पर रेखाएं दौड़ती नजर आयीं असंतोष के भाव  , शायद उसके मन में कोई उत्सुकता जगी जैसे और कुछ जानकारी  चाहता हो | मुझे देखते हुए फिर बोला - " सर रिज़र्वेशन किस नंबर का करेंगे ? मै थोड़े समय के लिए अवाक् रह   गया , कैसा अजनवी है जिसे रिजर्वेशन कैसे करते है , का भी ज्ञान नहीं है  |  इस आधुनिक युग के दौर में ऐसे लोग भी है ?

 इस व्यक्ति को इसकी  भाषा में समझाना जरूरी था | अतः मैंने उसे प्यार से समझाने की कोशिश की और कहा - " ये नंबर मेरे लोको का है यहाँ मै बैठता हूँ | आप कोच में बैठते है और उस गाडी का नंबर १६६१४ है , अतः आप को उसी नंबर का रिज़र्वेशन करना चाहिए , जहाँ आप बैठते है | मैंने अनुभव किया - अब वह समझ गया था | गाड़ी का सिगनल हो चूका था | सहायक ने सिटी बजायी | सभी लोग दौड़ - भाग कर कोच में चढ़ गए थे | गाड़ी आगे चल दी ।

आज जीवन के विचित्र अनुभव मिले थे | शायद जाने - अनजाने सभी के साथ ऐसा कुछ होता ही होगा ? बिरले ही हम सीरियसली लेते होंगे | दर्द को गहराई से सोंचने पर दर्द की विशालतम रूप दिखाई देती है अन्यथा हास्य | हम रहें या न रहें - गाड़ी की सिटी बजती ही रहेगी ? जो संभल गया वही मुकद्दर का सिकंदर अन्यथा मौत । 







Friday, May 23, 2014

कुशल प्रशासक

मनुष्य किसके अधीन है किस्मत या कर्म , यह कह पाना बड़ा ही कठिन है ।मनुष्य सामाजिक प्राणी है । इसे घर के अंदर परिवार से तो बाहर समाज से सामना करना पड़ता है । हर व्यक्ति के स्वाभाव में हमेशा ही अंतर दिखती है। सभी के कार्य कलाप और व्यवहारिक दिशा भिन्न - भिन्न तरह  की  होती है । कुछ में बदलाव के कारण पारिवारिक  अनुवांशिकता , तो कुछ में स्वतः जन्मी असंख्य सामयिक और बौद्धिक गुण होते  है । यही कारण है कि सभी व्यक्ति अपने - अपने क्षेत्र में विभिन्नता से परिपूर्ण  होते है ।

चोर चोरी के तजुर्बे खोजने में माहिर तो पुलिस चोर को पकड़ने के तिकड़म में सदैव लिप्त रहते है । वैज्ञानिक विज्ञानं कि तो व्यापारी व्यापर लाभ की  । सभी कि मंशा के पीछे स्वयं का हित ही छुपा होता  है । जो इस क्षेत्र के बाहर निकलते है , वही महात्मा कि श्रेणी में गिने जाते है या महात्मा हो जाते है क्योकि उनके अंदर परोपकार कि भावना ज्यादा भरी होती है । पेड़ पौधे अपने फल और  मिठास को दान कर , सबका प्रिय हो जाते है ।

आज - कल सरकारी दफ्तरों को सामाजिक कार्यो से कोई सरोकार नहीं है । दूसरे की भलाई से कुछ लेना - देना नहीं है । जो शासन के पराजय और भ्रष्टाचार का एक विराट रूप ही है ।  इसका मुख्य कारण दिनोदिन हो रहे नैतिक पतन ही तो है । भ्रष्टाचार ही है । अनुशासन हीनता है । एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ है । इस कुबेर की भाग दौड़ में सिर्फ साधारण जनता ही पिसती है । इस प्रथा के शिकार साधारण जन ही होते है । कोई नहीं चाहता कि उसे किसी कार्य हेतु कुछ देने पड़े । एक कार्य के लिए दस बार दौड़ने के बाद स्वतः मनुष्य  टूट जाता है और इस नासूर से छुटकारा पाने के लिए मजबूरन असामान्य पथ  को अखतियार कर लेता   है ।लिपिको के पास कमाई से ज्यादा धन कहाँ से आ जाते  है ? ऑफिसरो के पास अनगिनत सम्पति के सोर्स कौन से है ? घरेलू पत्नी करोडो की मालकिन कैसे हो जाती है ।स्कूल में पढने वाले बच्चे के अकाउंट में लाखो कैसे ?

ऐसे ही परिस्थितियों के शिकार यि. सि. यस राव ( लोको पायलट ) थे । जिनका मन पत्नी के देहांत के बाद अशांत रहने लगा था । कार्य से अरूचि होने लगी थी । इस अशांत मन से ग्रसित हो  गाडी चलाना सुरक्षा की दृष्टि से एक गुनाह से कम नहीं था  । उनका मन नहीं लग रहा था  । अतः उन्होंने यह निर्णय लिया  कीअब  स्वैक्षिक अवकाश ले लेना चाहिए । कई राय सुमारी के बाद दरख्वास्त लगा दिए । इस अवकाश के लिए अधिक से अधिक तीन महीने ही लगते है । तीन महीने भी गुजर गए , पर अवकाश की स्वीकृति का पत्र नहीं आया । एक लिपिक से दूसरे लिपिक , एक चैंबर से कई चैंबर काट चुके । बात  बनती नजर नहीं आई । दोस्तों से आप बीती सुनाते  रहे । सुझाव मिली , कुछ दे लेकर बात सलटा लीजिये । किन्तु सदैव अनुशासन की पावंद रहने वाला व्यक्तित्व भला ये कैसे कर सकता था । उन्होंने और अन्य साथियो ने मुझसे इस केश को देखने का आग्रह किये ।

यह शिकायत हमारे समक्ष आते ही लोको रनिंग स्टाफ  का मंडल सचिव होने के नाते मेरी और संगठन की  जिम्मेदारी बढ़ गयी । अपने अध्यक्ष के साथ  मै इस केश में जुट गया । लिपिक और कुछ कनिष्ट ऑफिसरों से मिलने के बाद पता चला की यि. सि. यस राव के सर्विस रिकार्ड्स के कुछ डाक्यूमेंट्स गायब थे । इसी की वजह से केश पेंडिंग था । हम कनिष्ट पर्सनल अफसर से जाकर मिले । उसने वही बात दुहरायी । हमने कहाकि डॉक्यूमेंट आप के कस्टडी में था , फिर पेपर गायब कैसे हुए ? जैसे भी हो इस महीने में अवकाश पत्र मिल जाने चाहिए , अन्यथा वरिष्ठ ऑफिसरों से शिकायत करेंगे । उस अफसर के कान पर जू तक न रेंगा । महीने का आखिरी दिन भी चला गया ।

हमने एडिशनल मंडल रेल प्रबंधक श्री राजीव चतुर्वेदी जी से शिकायत की । राजीव जी बहुत ही नम्र किन्तु अनुशासन प्रिय अफसर थे । हमने सोंचा  की ये भी दूसरे अन्य  ऑफिसरों  की तरह कहेंगे - ठीक है केश देखूंगा और केश जस का तस डस्ट बिन में पड़ा रहेगा । पर यह धारणा  बिलकुल गलत साबित हुई  । उन्होंने तुरंत उस कनिष्ट पर्सनल अफसर को हमारे सामने ही तलब  किया । वह अफसर आया और हमें  यहाँ देख , उसे मामले की गंभीरता  समझते देर न लगी । ADRM  साहब ने उनसे पूछा -यि. सि. यस राव का केश क्यों पेंडिंग है । वह अफसर शकपकाया और कहा - सर एक हफ्ते में पूरा हो जायेगा । तब श्री राजीव चतुर्वेदी जी ने उन्हें हिदायत दी -  " लोको पायलट बहुत ही परिश्रमी कर्मचारी हैं । उन्हें हेड क्वार्टर में आराम की जरूरत होती है । मै नहीं चाहता कि कोई भी लोको पायलट अपने ग्रीवेंस के लिए आराम के समय ऑफिस का चक्कर काटें ।  आप खुद लोको पायलट होते , तो किस चीज की आकांक्षी होते  ? "

न्याय के इस विचित्र पहलू से हमें भी हैरानी हुयी , क्योकि इस तरह के अफसर बहुत काम ही मिलते है । हमने ADRM  साहब  धन्यवाद दी । कुछ ही दिनों में सफलता मिली और यि. सी यस राव का स्वैक्षिक अवकाश का पत्र समयानुकूल आ गया । यह एक कुशल प्रशासक के नेतृत्व का कमाल था । चतुर्वेदी जी के स्वर हमेशा गूजँते रहे । हमने ग्रीवेंस रजिस्टर की माँग तेज की , जो प्रत्येक लॉबी में होनी चाहिए ।  आज सभी लॉबी में ग्रीवेंस रजिस्टर उपलब्ध है । ऐसे सच्चे ईमानदार प्रशासको को नमन ।