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Monday, October 29, 2012

फर्क तो है ।


जिस तरह दुनिया में कंटीले या बेकार के वृक्ष  कहीं भी स्वतः उग जाते है तथा सदुपयोगी  वृक्ष सभी    जगह नहीं मिलतें  , वैसे ही संसार में बुरे प्रवृति के व्यक्ति सभी जगह भरे पड़े है । अच्छे लोगो की पहचान और उपस्थिति का आभास बड़ा ही कठिन है । अच्छे लोगो की आवश्यकता उनके अनुपस्थिति के समय महसूस होती  है । संसार में बुरे लोग इस तरह से छाये है कि उनके आगे नियम - क़ानून सब फीके पड़  जाते है । रावण  हो या महिसाशुर , कंश  या दुर्योधन सभी  अपने युग के कालिमा / कलंक थे । अंततः विजय उजाले की ही होती है । सच्चे व्यक्ति में त्याग की भावना चरम पर होती है  , यही वह शक्ति है , जो उसे स्वार्थ से दूर ले जाती है , और एक दिन उसके अन्दर ईश्वरीय  शक्ति का विकास हो जाता है । वह इश्वर स्वरुप  बन जाता है । उसके वाणी में ओज , मुख पर आकर्षण और कार्य में शक्ति भर आती है ।

हम इस क्षेत्र में कहाँ तक आगे है , खुद ही महसूस  कर सकते है । मनुष्य जाती ही एक ऐसा प्राणी है , जो कुछ सोंच और महसूस कर सकता है । अन्यथा पत्थर .......और उसमे कोई भिन्नता नहीं । भारतीय संघ में प्रशासन के कई रूप है । कई नियम - कानून । सभी नियम कानून सर्वजन हिताय से प्रेरित है । फिर भी इसके अनुचित उपयोग और परिणाम निकल आते है । आखिर क्यों ?

यह  व्यक्ति विशेष के व्यवहार  और  इमानदारी पर निर्भर करता है । उसके सकारात्मक सोंच पर निर्भर करता है । अब देखिये ना ......हमारे रेलवे में एक प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति चाहे जो भी हो ....वह निरिक्षण के दौरान लोको के अन्दर ....लोको पायलट के सिट पर नहीं बैठ सकता । इससे लोको पायलटो के कार्यनिष्पादन  , सिग्नल को देखने और बहुत सी चीजो में व्यवधान पड़ती है , जो ट्रेन को सुरक्षित परिचालन के लिए सही नहीं है । अब आप ही परख लें ---कौन कैसा है ?

1)  मै  एक दिन 12163 दादर - चेन्नई सुपर लेकर गुंतकल से रेनिगुंता जा रहा था । गुंतकल में ही मंडल सिगनल अधिकारी लोको के अन्दर तशरीफ लायें और आते ही सहायक के सिट पर  ऐसे बैठ गए , जैसे जल्दी ग्रहण ( बैठो  ) करो नहीं तो दूसरा कोई बैठ जायेगा । तादीपत्री   में उतर गएँ ।

2) इसी ट्रेन में कडपा  से एक और अधिकारी लोको में आयें .....आते ही अपना परिचय दिए ...मै सहायक  निर्माण अधिकारी / कडपा हूँ और राजम पेटा  तक आ रहा हूँ । लोको में खड़ा रहे  । सहायक के सिट पर नहीं बैठे । सहायक ने शिष्ठाचार बस  बैठने का आग्रह भी किया ।

3) एक बार मै सिकन्दराबाद से 12430 राजधानी एक्सप्रेस ( हजरत निजामुद्दीन से बंगलुरु  ) आ रहा था । ट्रेन के आने की इंतजार में प्लेटफ़ॉर्म पर खड़ा था । तभी एक व्यक्ति मेरे पास आया और अपना परिचय चीफ कमर्शियल  मैनेजर के निजी सचिव के रूप में करते हुए कहा - कि साहब आपके लोको में फूट प्लेट इन्स्पेक्सन  के लिए आ रहे है । मैंने कहा मोस्ट वेलकम सर । ट्रेन आई । साहब आयें । उन्होंने भी आते ही मुझसे हाथ मिलायी , परिचय का आदान - प्रदान हुयी । लोको के अन्दर आये ।

दक्षिण मध्य रेलवे का मुख्य कमर्शियल मैनेजर ....यह स्वाभाविक   था  कि  हम उनका भरपूर   स्वागत करें  । ट्रेन  चल दी । हमने उनसे सहायक के सिट पर बैठने के लिए आग्रह की , पर वे ऐसा करने से साफ़ इंकार कर  गएँ  और प्यार भरे शव्दों में कहा कि आप लोग मेरे बारे में चिंता न करे ....आप लोगो का कार्य महत्वपूर्ण है । अंततः वे 304 किलो मीटर तक लोको में -खड़े  खड़े  यात्रा / निरिक्षण कियें  और रायचूर में जाते समय दो टूक बधाई देना भी न भूलें ।

जी हाँ --अब आप क्या कहेंगे ?   एक ही कानून ....एक ही संस्था ...किन्तु कार्यप्रणाली ...बदल जाती है । इसके भागीदार हम और आप ही तो है । आखिर फर्क तो है ।

Sunday, May 20, 2012

बंगलुरु में सिसकती रही जिंदगी ......

थोड़ी सी बेवफाई ....के बाद आज आप के सामने हाजिर हूँ  ! स्कूल के बंद होने और यात्राओ पर  जाने के  दिन  , शुरू हो गए है ! ऐसा ही मेरे साथ भी हुआ ! नागपुर गया वाराणसी गया , बलिया गया और बंगलुरु की याद और संयोग वापस खींच ले आई ! कारण  ये थे की लोको चालको की उन्नीसवी अखिल भारतीय अधिवेसन , जो बंगलुरु में  सोलह और सत्रह मई को निश्चित था , में  शरीक होना था   ! पडोसी जो ठहरा ! एक तरह से वापसी अच्छी ही रही !  माथे  की गर्मी और  पसीने से निजात  मिली ! उत्तर और दक्षिण भारत के गर्मी में इस पसीने की एक मुख्य भूमिका  अंतर  के लिए काफी है !

                                                ज्ञान ज्योति आडिटोरियम / बंगलुरु
बंगलुरु जैसे मेगा सीटी में इस अधिवेशन का होना , अपने आप में एक महत्त्व रखता है ! देश के -कोने - कोने से सपरिवार लोको चालको का आना स्वाभाविक था  और इससे इस अधिवेशन में चार चाँद लग गए ! इसके सञ्चालन की पूरी जिम्मेदारी दक्षिण-पच्छिम रेलवे के ऊपर थी और दक्षिण तथा दक्षिण मध्य रेलवे की सहयोग  प्राप्त थी !

इस अधिवेशन में चर्चा  के  मुख्य विषय थे  --
1) अखिल भारतीय कार्यकारिणी का नए सिरे से चुनाव
2) पिछले सभी कार्यक्रमो की समीक्षा
3)लंबित समस्याओ के निराकरण के उपाय
4)संगठनिक कमजोरी / उत्थान के निराकरण / सदस्यों में प्रचार
5) छठवे वेतन आयोग के खामियों के निराकरण में आई कठिनाईयों और बाधाओं का पर्दाफास
6)सभी लोकतांत्रिक शक्तियों के एकीकरण के प्रयास में आने वाली बाधाओं पर विचार
7)नॅशनल इंडस्ट्रियल त्रिबुनल और अब तक के प्रोग्रेस .
8) चालको के ऊपर दिन प्रति दिन  बढ़ते . दबाव और अत्याचार
वगैरह - वगैरह ..

                                                        आडिटोरियम का मंच 
इस अधिवेशन को  उदघाटन  कामरेड  बासु देव आचार्य जी ने अपने भाषणों से किया ! उन्होंने कहा की सरकार श्रमिको के अधिकारों के हनन में सबसे आगे है ! आज श्रमिक वर्ग चारो तरफ से , सरकारी  आक्रमण के शिकार हो रहे  है ! उनके अधिकारों को अलोकतांत्रिक तरीके से दबाया जा रहा है ! अधिवेशन के पहले दिन विभिन्न संगठनो के नेताओ  ने अपने विचार रखे ! सभी नेताओ ने सरकार की गलत नीतियों की बुरी तरह से आलोचना की ! चाहे महंगाई हो या रेल भाड़े की बात , पेट्रोल की कीमत हो या सब्जी के भाव ! 99% जनता त्रस्त  और 1% के हाथो में दुनिया की पूरी सम्पति ! गरीब और गरीब , तो अमीर और अमीर !

 दोपहर भोजन के बाद बंगलुरु रेलवे स्टेशन से लेकर ज्ञान ज्योति आडिटोरियम तक मास रैली निकाली  गयी , जिसमे हजारो सदस्यों  ने भाग लिया !

                                        बंगलुरु स्टेशन से आगे बढ़ने के लिए तैयार रैली !

                                    रैली के सामने कर्नाटक के लोक नर्तक , अगुवाई करते हुए !

राजस्थान से आये इप्टा के रंग कर्मियों ने भारतेंदु हरिश्चंद्र द्वारा लिखित अंधेर नगरी , चौपट राजा  के तर्ज पर - आज के रेलवे की हालत से सम्बंधित नाटक का प्रदर्शन किया ! 


दुसरे दिन डेलिगेट अभिभाषण में चालक सदस्यों ने  कुछ इस तरह के मुद्दे सामने  प्रस्तुत किये , जो काफी सोंचनीय है --

(1)  लोको चालको को  इस अधिवेशन से दूर रखने और भाग न लेने के लिए , भरसक हथकंडे अपनाये गए ! कईयों की  डेपो में  मुख्य कर्मीदल निरीक्षक के द्वारा छुट्टी पास  नहीं  हुयी  !

(2)  कई डेपो में लोको चालको को साप्ताहिक रेस्ट नहीं दिया जा रहा है , क्योकि गाडियों को चलाने  के लिए  प्रशासन के पास अतिरिक्त चालक नहीं है ! बहुतो को लिंक रेस्ट भी डिस्टर्ब हो जाते है ! कारण गाड़िया तो नहीं रुक सकती ! माल गाडी के चालको को पंद्रह से   बीस घंटो तक कार्य करने पड़ते है ! समय से कार्य मुक्त नहीं हो पाते  है ! कईयों को रिलीफ पूछने पर चार्ज सीट के शिकार होने पड़े है ! अफसरों की मनमानी चरम सीमा पर है ! चालको के परिवार एक अलग ही  घुटन भरे जीवन जी रहे  है ! घर वापस आने पर बच्चे सोये या स्कूल गए मिलते है ! पारिवारिक / सामाजिक जीवन से लगाव  दूभर हो गए है ! "  पापा कब घर आयेंगे ? " - पूछते हुए बच्चे माँ के अंक में सो जाते है ! चालको की पत्त्निया हमेशा ही मानसिक और शारीरिक बोझ से  दबी रहती है ! घर में  सास - ससुर और बच्चो की परवरिश की जिम्मेदारी इनके ऊपर ही होती है ! अजीब सी जिंदगी है !

अणिमा दास  ( स्वर्गीय एस. के . धर , भूतपूर्व सेक्रेटरी जनरल /ऐल्र्सा की पत्नी सभा को संबोधित करते ह !)  इन्होने लोको चालको के पत्नियो से आह्वान किया की वे अपने पति के मानसिक तनाव को समझे तथा सहयोग बनाये रखे !

(3 अस्वस्थता की हालत में रेलवे हॉस्पिटल के डाक्टर चालको को मेडिकल छुट्टी पर नहीं रख रहे है ! उन्हें जबरदस्ती वापस विदा  कर देते है ! परिणाम -कईयों को ड्यूटी के दौरान मृत्यु /ह्रदय गति  रुकने से मौत तक हो गयी है ! डॉक्टर घुश खोर हो गए है !

(4) चालको के डेपो इंचार्ज ...मनमानी कर रहे है , उनके आवश्यकता के अनुसार  उनकी बात न मानने पर , तरह - तरह के हथकंडे अपना कर परेशान  करते है ! इस विषय पर एक कारटून प्रदर्शित किया गया था -जैसे =
" सर दो दिनों की छुट्टी चाहिए !" - एक लोको चालाक मुख्य कर्मीदल निरीक्षक से आवेदन करता है ! करीब  सुबह के नौ बजे !
" दोपहर बाद मिलो !" निरीक्षक के दो टूक जबाब !
लोको चालक दोपहर को ऑफिस में गया और अपनी बात दोहरायी !
" शाम को 5  बजे आओ !" निरीक्षक ने संतोष जताई !
बेचारा लोको चालक 5 बजे के बाद ऑफिस में गया ! निरीक्षक की कुर्सी खाली  मिली !
ये वास्तविकता है !

(5) चालको के अफसर भी कम नहीं है ! अनुशासित को दंड और बिन - अनुशासित की पीठ थपथपाते है ! अलोकतांत्रिक रवैये अपना कर ,चार्ज सीट दे रहे है ! छोटे - छोटे गलतियों के लिए मेजर दंड दिया जा रहा है !  डिसमिस  / बर्खास्त  उनके हाथ के खेल  हो गए है ! कितने तो पैसे कमाने के लिए चार्ज सीट दे रहे है !

(6) सिगनल लाल की स्थिति में पास करने पर ..सीधे चालको को बर्खास्त किया जा रहा है ,बिना सही कारण जाने हुए ! जब की कोई भी चालक ऐसी गलती नहीं करना चाहता  ! इसके पीछे कई कारण होते है ! अपराधिक क्षेत्र में सजा के अलग - अलग प्रावधान है , पर चालको के लिए कारण जो भी हो , सजाये सिर्फ एक --बर्खास्त / डिसमिस  ! सजा का एक घिनौना रूप !


(7) कई एक रेलवे में लोको चालको को बुरी तरह से परेशान  किया जा रहा है ! बात - बात पर नोक - झोंक !

(8) रेलवे में घुश खोरी अपने चरम पर है ! अफसर बहुत ही घुश खोर हो गए है ! उनके पास रेलवे से एकत्रित की गयी अकूत सम्पदा है ! सतर्कता विभाग लापरवाह है ! घुश खोरी का मुख्य मार्ग ठेकेदारी है , जिसके माध्यम से घुश अर्जित किये जाते है ! यही वजह है की ठेकेदारी जोरो पर है !

(9) अस्पतालों,रेस्ट रूम और खान-पान व्यवस्था बुरी तरह से क्षीण हो चुकी है ! लोको चालक इनसे बुरी तरह परेशान है ! शिकायत कोई सुनने वाला नहीं है ! शिकायत  सुनने वाला  घोड़े बेंच कर सो रहा है !

(10) रेलवे का राजनीतिकरण हो गया है ! राज नेता इसे तुच्छ स्वार्थ के लिए इस्तेमाल करने लगे है ! कुछ दिनों में इसकी हालत इन्डियन वायु सेवा  जैसी हो जाएगी ! यह एक गंभीर समस्या है !

  और भी बहुत कुछ भारतीय व्यवस्था के ऊपर करारी चोटें   हुयी , जो सभी को रोजाना प्रत्यक्ष दिख रहा है !

सभी के प्रश्नों का जबाब देते हुए काम. एम्.एन. प्रसाद सेक्रेटरी जनरल ने कहा की आज सभी श्रमिक वर्ग को सचेत और एकता बनाये रखते हुए ...आर - पार की लडाई लड़नी  पड़ेगी   !

अधिवेशन  के आखिरी में नए राष्ट्रिय कार्यकारिणी का चुनाव हुए ! जिसमे एल.मणि ( राष्ट्रिय अध्यक्ष ),एम् एन प्रसाद (राष्ट्रिय सेक्रेटरी ) और जीत  सिंह टैंक ( राष्ट्रिय कोषाध्यक्ष ) निर्विरोध चुने गए !
                                                   सजग प्रहरी एक चौराहे पर  



Saturday, April 28, 2012

थोड़ी सी वेवफाई... ..

थोड़ी सी वेवफाई... .. आज के छोटे विचार ....

सज्जन हमेशा  दूसरो को हँसाते है ! 
दुर्जन / दुष्ट हमेशा ही दूसरो को रुलाते है !
जब ......
सज्जन व्यक्ति मरता  है ,
सभी रोने लगते है !
जब ...
दुर्जन / दुष्ट मरता है , 
सभी हंसते है , चलो एक दुष्ट की तो कमी  हुई !
( सौजन्य =मुनिश्री महाराज )

                                 
                                                                                                   ध्यान से देंखे - तस्वीर के अन्दर 

Wednesday, February 15, 2012

नीयत में खोट !

                                                            इन्द्रधनुष  के सात रंग

दुनिया के इतिहास में ....चौदह फरवरी का दिन बहुत ही मायने रखती है ! बच्चो  से लेकर... क्या बुड्ढ़े  ?  सभी अपने - आप में मस्त , प्रायः पश्चिमी देशो में ! कोई भी त्यौहार ..हमें भाई चारे और सदभावनाए  बिखेरने  , एक दुसरे को प्यार से गले लगाने या इजहार करने के सबक देते है ! किसी भी तरह के त्यौहार / पर्व में हिंसा का कोई स्थान नहीं है ! चाहे वह किसी भी जाति /धर्म /मूल /देश - प्रदेश के क्यों न हों !  आज - कल हम  इस क्षेत्र में कहाँ तक सफल हो पाए है . यह सभी के लिए चिंतनीय और विचारणीय विषय है ! आये दिन -सभी जगह हिंसा और व्यभिचार अपना स्थान लेते जा रहा है !

अब आयें विषय पर ध्यान केन्द्रित करते है ! कहते है  जो जैसा  बोयेगा , वो  वैसी  ही फसल कटेगा ! जैसा अन्न - जल खायेंगे , वैसी ही बुद्धि और विचार भी प्रभावित होती है ! ! जैसी राजा , वैसी प्रजा ! जैसी ध्यान वैसी वरक्कत ! यानी व्यक्ति का गुण ... हमेशा  उसके प्रकाश / बिम्ब को ...दुसरे के सामने प्रकट कर ही देता है ! हर व्यक्ति में एक छुपी हुयी आभा होती है ! जो उसके स्वभाव को प्याज के छिलके के सामान ...उधेड़ कर प्रदर्शित करती है ! 

कल प्यार  और मिलन का दिन बीत गया ! वह भी अजीब सी थी ! मै कल ( १४-०२-२०१२ ) सिकंदराबाद में था ! सुना था और आज साक्षी पेपर में छपा हुआ मिला - की हमारे मंडल का  एक कर्मचारी संगठन ( दक्षिण मध्य रेलवे एम्प्लोयी यूनियन ) ने मंडल रेल मैनेजर के कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन किया था ! उनकी मांग यह थी की रायल सीमा एक्सप्रेस , जो रोजाना - तिरुपति से हैदराबाद जाती है... को लिंक संख्या -२ में जोड़ दिया जाय ! यह ट्रेन फिलहाल लिंक संख्या -४ में है ! लिंक संख्या दो - सुपर फास्ट ट्रेनों की लिंक है , जो वरिष्ठ लोको पायलटो के द्वारा कार्यरत है ! रायलसीमा एक्सप्रेस फास्ट पैसेंजर ही समझे !
अब प्रश्न यह उठता है की ऐसा क्यों ? 

 उपरोक्त यूनियन कांग्रेस समर्थित है ! लिंक संख्या दो में ज्यादातर उसके समर्थक नहीं है ! रायलसीमा को गुंतकल से हैदराबाद लेकर जाना काफी कष्ट प्रद है ! वह ( यूनियन ).. अन्य यूनियन के  समर्थको को सबक सिखाना चाहती है ! उसने अपने पेपर स्टेटमेंट में कहा है- की हमने लिंक दो में रायलसीमा को जोड़ने के लिए हस्ताक्षर किये थे , फिर यह लिंक चार में कैसे जुट गया ! मंडल यांत्रिक इंजिनियर लापरवाह हैं ! वह अपनी मर्जी को कर्मचारियों के ऊपर थोप रहे हैं !....वगैरह - वगैरह !

लिंक क्या है ? 
 कई ट्रेन के समूह को संयोजित रूप में इकट्ठा कर - इस तरह से सजाया जाता है की लोको पायलट को यह ज्ञात हो की कब कौन सी ट्रेन लेकर कहाँ तक जानी है और वहां से कौन सी ट्रेन लेकर वापस आनी  है ! इससे प्रशासन और लोको पायलट दोनों को ही लाभ होते है ! इसे तैयार करते समय सभी मूल भूत नियम और कानून को ध्यान में रखा जाता है ! इस लिंक को वरिष्ट लोको इंस्पेक्टर तैयार करते है ! इसे तैयार करते समय बहुत ही माथापच्ची करनी पड़ती है ! जिससे लोको पायलट को पूर्ण रात्रि विश्राम / साप्ताहिक विश्राम वगैरह सठिक रूप से मिले ! इस तरह से भारतीय रेलवे में प्रायः दो तरह के लिंक होते है १) साप्ताहिक ट्रेनों की और २ ) रोजाना ट्रेनों की ! कौन सी ट्रेन को किस लिंक में शामिल किया जाय - इसके लिए कोई प्रावधान /कानून नहीं है ! बस स्वतः सेट अप पर निर्भर करता है !

किसी भी यूनियन को क्या करनी चाहिए ?
प्रत्येक यूनियन को  कर्मचारियों के बहुआयामी  हित को ध्यान में रख कर - निर्णय लेने चाहिए ! उनके सामने सभी कर्मचारी बिना भेद - भाव के सामान होते है ! उन्हें ओछे हरकतों और कार्यो से बाज आनी चाहिए , जिसमे कर्मचारियों के हित कम और नुकशान ज्यादा हो ! इनके नेताओ को और भी जागरुक और सतर्क रहनी चाहिए ,जिससे की कोई उन पर अंगुली न दिखाए ! और भी बहुत कुछ ...
उपरोक्त यूनियन  ने क्या किया ? 
इस लिंक से उस लिंक की मांग कर अपने सम्यक धर्म को ताक पर रख दिया है ! जो इन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था ! इन्हें तो समस्याओ को निदान करने के तरीके धुंधने चाहिए ! कोई भी लिंक हो ...एक ..दो...या तीन ..सभी को एक लोको पायलट ही कार्यान्वित करता है ! यहाँ  इस यूनियन ने ....एक लिंक  को  समर्थन कर -- दुसरे लिंक के समस्या को बढाने का कार्य कर रही  है !  यह यूनियन  अपने धर्म को तक पर रख , स्वार्थ में वशीभूत हो ..अनाप - सनाप बयान बाजी और आरोप लगाये जा रही है !  शायद खानदानी असर है ! यह... एक ओछे ज्ञान की पूरी  पोल खुलती नजर आ रही है   ---हाय रे  विवेक हिन् यूनियन !
प्रशासन का खेल ....
 रेलवे प्रशासन मौन मूक है !  लड़ाओ और राज करो - के तारे नजर आ रहे है !  क्या प्रशासनिक अधिकारी अपने कर्तव्य को सही ढंग से निभा पाने में असमर्थ है ? जब की मै भी अपने इंजिनियर साहब  से मिला था और विस्तृत बात हुयी थी ! समस्याओ को उजागर किया था !  उसके निदान के लिए बिना किसी नंबर को उधृत किये हुए ..समस्याओ के निदान की सलाह भी  दी थी ! इंजिनियर साहब ने आश्वासन भी दिया था ! उनके इमानदारी पर तो शक नहीं किया जा सकता , पर उच्च  पद का दबाव  और शक्ति कई बार मनुष्य को लाचार  बना देती है ! वह  असहाय हो जाता है !
समीक्षा  ---
 और कुछ नहीं , बस इनके नियत में खोट है ! कोई भी यूनियन आँख बंद कर कोई हस्ताक्षर नहीं करती ! अगर कर भी दिए तो जल्द बताते नहीं ! इनकी नेताओ की कारगुजारी सामने आ गयी है ! जिसकी कड़ी आलोचना होनी ही चाहिए !  इन्होने अपने  प्यार का इजहार आरोप - प्रत्यारोप में किया , वह भी प्यार के दिन ! मुह में नमक हो तो मिठाई मीठी नहीं लगती ! इसीलिए तो दो नंबर ही पसंद है --है तो दो नम्बरी !  इन्हें एक नम्बरी /  एक याद नहीं आती ! इन जैसी लोलुप और चाटुकार.... वंशी यूनियनों की जीतनी भी भर्त्सना की जाय , वह कम ही है !  कुछ भला  करते हुए और जीवन जियें ....जिससे की  दुनिया याद करे ! नतमस्तक करे ! वह जीवन ..जीवन  नहीं ,    जिसकी कोई कहानी न हो !  कुछ मर के  भी सदैव जिन्दा रहते  है और  कुछ रोज मर-मर  के  जीवन जीते  है ! 
                       पतझड़ में भी फूल खिलते है - पलास के ....आशा अभी भी  जिन्दा है ! !

Friday, February 3, 2012

पत्नी व्रती और ससुर जी

इस फ्लैश समाचार को देख न चौकें ! इसे देख कुछ यादे ताजी हो गयी ! जो प्रस्तुत कर रहा हूँ ! यह हमारे लोब्बी में टंगा हुआ नोटिश बोर्ड है ! इस पर वही लिखा जाता है , जो अति जरुरी होता है ! इस तरह से प्रमुख घटनाओ की जानकारी , हमें यानि लोको पायलटो को मिलती रहती है ! आज  ( २५-०१.२०१२ ) जब मैंने लोब्बी में प्रवेश किया तो इस सूचना को देखा ! इसे आप भी आसानी से पढ़ सकते है ! " मुख्यतः इस बात पर जोर दिया गया है की जब किसी लोको पायलट के ट्रेन के निचे कोई व्यक्ति आकर आत्म  हत्या या दुर्घटना ग्रष्ट होता है ,तो लोको पायलटो को  इसकी  समुचित जानकारी जी.आर.पि /आर.पि.ऍफ़ को तुरंत  देनी चाहिए ! अन्यथा शिकार व्यक्ति के परिवार / रिश्तेदार टिकट लाश के ऊपर रख कर मुआवजा की मांग करेंगे !"  यह भी एक अजीब सी बात है ! सही है होता होगा !


 अब देखिये ना - हम लोको पायलटो को भी अजीब दौर से गुजरना पड़ता है ! बहुतो को कटी हुई लाश देख चक्कर आने लगते है ! बहुत तो देख भी नहीं सकते ! चलती ट्रेन के सामने लोगो का आत्म हत्या वश आ जाना -आज कल जैसे यह स्वाभाविक सा हो गया है ! घर में , परिवार में , पढाई में या यो कहें और कुछ कारण ...बात ..बात में ट्रेन के सामने आकर अपनी जान दे देना ...कहाँ की बहादुरी है ! जीवन   जीने की एक कला है ! इसे जीना चाहिए और इसकी खुबसूरत  रंगों को इस दुनिया में बिखेरते रहना चाहिए ! अगर दूसरो को कुछ न दें सके तो खैर कोई और बात है .. कम से कम ..अपने लिए तो जीना सीखें ! 

 कुछ सत्य घटनाये प्रस्तुत है -
भाव वश  इस तरह के निर्णय कायरपन है ! एक बार की वाकया याद आ गया ! उस समय दोपहर  के वक्त  थे ! मै उस समय मालगाड़ी का लोको पायलट था ! तारीख याद नहीं ! किन्तु कृष्नापुरम और कडपा के मध्य की घटना है ! मै केवल लोको लेकर कडपा को जा रहा था ! रास्ते में एक नहर पड़ती है ! नहर के उस पार एक गाँव है !  अचानक देखा की , गाँव के बाहर एक बुजुर्ग दम्पति  दोनों लाईन के ऊपर आकर सो गए !मंशा साफ है .. कहने की जरुरत नहीं ! चुकी केवल लोको लेकर जा रहा था , इसलिए तुरंत रोकने में परेशानी नहीं हुई ! लोको रुक गया ! हम देखते रह गए , पर वे दोनों नहीं उठे ! मैंने अपने सहायक को कहा की जाकर उन्हें उठाये और समझाये , जिससे वे दोनों इस भयंकर कृति से मुक्त हो जाएँ ! सहायक गया , समझाया ,पर वे उठने के नाम नहीं ले रहे थे ! मुझसे भी देखा न गया ! मैंने अपने लोको को सुरक्षित कर उनके पास गया ! हम दोनों उन्हें पकड़ कर दोनों लाईन से बाहर कर दिए ! उनके हिम्मत को परखने के लिए - मैंने कहा की आप लोग पहले यह सुनिश्चित करे की पहले कौन मरना चाह रह है और वह आकर लाईन पर सो जाये ..मै लोको चला दूंगा ! यह सुन उनके चेहरे उड़ गए और गाँव की तरफ चले  गए ! इस घटना के पीछे कौन से कारण होंगे ? सोंचने वाली बात है ! बच्चो से तकरार / बहु बेटियों से तकरार  / कर्ज - गुलाम /सामाजिक उलाहना ..वगैरह - वगैरह ! जिस माँ - बाप ने बचपन से अंगुली पकड़ कर ..जवानी की देहली पर पहुँचाया , उसे बुढ़ापे में इस तरह की तिरस्कार का कोप भजन क्यों बनना पड़ता है ? क्या बच्चे माँ - बाप के बोझ को नहीं ढो सकते !

दूसरी घटना - 
तारीख -२३ अगस्त २००८ की बात है ! सिकंदराबाद  से गुंतकल , गरीब रथ एक्सप्रेस ले कर आ रह था ! मेरे सहायक का नाम  श्री के.एन.एम्.राव था ! गार्ड श्री एस.मोहन दास ! शंकरापल्ली स्टेशन के लूप लाईन से पास हो रहे थे ! थोड़ी दूर बाद लेवल क्रोसिंग गेट है ! इस गेट पर  ट्राफिक काफी है !समय रात के करीब  आठ बजते होंगे ! मैंने ट्रेन की हेड लाईट में देखा की एक व्यक्ति अचानक दौड़ते हुए लाईन पर आकर सो गया है ! उसके सिर  लाईन पर और धड ट्रक के बाहर !मैंने तुरंत ट्रेन के आपात  ब्रेक लगायी ! ट्रेन रुक गयी और वह बच गया ! जैसा होना चाहिए - सहायक को जा कर देखने और उसे उठाने के लिए कहा ! चुकी गेट नजदीक था अतः गेट मैन भी सजग हो गया और दौड़ते हुए घटना स्थल पर आ गया ! मैंने घटने की पूरी जानकारी स्टेशन मैनेजर को भी वल्कि - तल्की के द्वारा दे दी ! गेट मैन  और मेरे सहायक के काफी समझाने के बाद वह व्यक्ति उठ कर जाने लगा ! मैंने गेट मैन को कहा की सावधानी से उसे ले जाये और समझाये !  मेरा सहायक ने जो सूचना मुझे दी वह इस प्रकार है ! उसके आत्महत्या के कारण --उसके ससुर जी थे ! वह अपने ससुराल में आया था ! वह पत्नी को लिवा जाना चाहता था ! पर हठी ससुर के आगे उसकी न चली ! 

यह भी एक गजब ! अब तक सास के अत्याचार सुने थे , पर ससुर के नहीं ! ससुर के अत्याचार से पीड़ित , उसने यह निर्णय ले लिया था ! वैसे  पत्नी से प्यार करता था ! उसने अपने ससुर जी से कहा की अगर आप बिदाई नहीं करोगे , तो ट्रेन के निचे सर रख दूंगा ! ससुर ने कहा जा रख दें ! इसी का यह परिणाम ! यह घटना भी एक मिसाल - पत्निव्रता और ससुर जी का !

आये ज्योति  जलाये , पर किसी की  बत्ती न बुझायें ! जीवन अनमोल है ! इसकी संरक्षा और सुरक्षा पर ध्यान दें !लोको पायलट की  हैसियत से यह जरुर कहूँगा की जब भी मैंने किसी की जान बचायी है , तब एक अजीब सी  ख़ुशी महसूस हुई है ! जिसे शब्दों में पिरोना मेरे वश में नहीं ! सबका मालिक एक !

तिरुपति के तिरचानूर --पद्मावती मंदिर के समक्ष ली गयी हम दोनों की तश्वीर -दिनांक  २७-०१-२०१२ 

Wednesday, January 4, 2012

सूरज की आखिरी किरण

संसार में जीवो में  जीव महामानव ....मानव ही है ! दुनिया की गन्दगी इसी में है ! थोड़े समय के लिए सोंच लें -अगर मानव के शारीर में पेट नहीं होता , तो वह परिस्थितिया कैसी होती थी ? क्या जीवो के अन्दर हिंसा या अहिंसा होती ? क्या हम सभी लोग आपस में सामाजिक और सम सामायिक  समस्याओ से घिरे होते ? आज दुनिया में आर्थिक राजनीतिक ,सामाजिक और आधुनिक जंग छिड़ी हुयी  है ! कोई भी किसी के सामने झुकने को तैयार नहीं ! इस पेट की आग ऐसी लगी है , जो मरते दम तक बुझ नहीं सकती ! दुनिया के सारे  अनर्थ का अर्थ  यही है !

मै पिछले  वर्ष और दिसंबर के आखिरी माह में  , अपने रिफ्रेशर  ट्रेंनिंग के दौरान  काजीपेट स्टेशन के आस - पास टहल रहा था ! हम कुल तीन थे ! संध्या वेला ! हमने देखा एक तीन वर्ष का लड़का - अंगार के ऊपर मक्के को सेंक रहा था ! बिलकुल काम में  तल्लीन ! मैंने तुरंत उसके फोटे ले लिए  और उसे दिखाया ! वह बहुत खुश हुआ ! उस ख़ुशी  में निश्छल मुस्कराहट छिपी हुयी थी !  मेरे फोटो लेने का अभिप्राय क्या था ? उसे कुछ भी नहीं मालूम ! वह हँसता रहा और पंखे को जोर से झटकते हुए बोला -एम् कवाली ( क्या चाहिए ? ) मुझे उसके परिस्थिति को देख दया आ गई  ! पर वेवस - मेरे पास कोई जादुई चिराग तो  नहीं की उसके जीवन को बदल दूँ ! हमने उससे तीन मक्के खरीद लिए और रोज आने की वादा कर ..आगे बढ़ गए ! जब तक वहा थे - रोजाना मक्का ख़रीदे और मक्के के लुत्फ उठाये  !
 कुछ तस्वीर प्रस्तुत है -
                                                    कल  की लगन और जलते अंगारे !
                                        इनके आँखों में भी एक सुनहरा भारत है ! बेबस
                                  चमकीली आँखें और सुनहले भविष्य ! भारत का एक कोना !  
वैसे मुझे चलते - चलते कहीं भी , तस्वीर लेने की आदत सी पड़ गयी है ! यह उसी का एक अंग है ! आज हम सभी लोक पाल जैसी सख्त कानून की पैरवी में लगे है ! लेकिन इस कोने को कुछ भी नहीं मालूम ! लोकतंत्र क्या है ? आर्थिक स्वतंत्रता कहा है ? सूरज की आखरी किरण कैसी है ? काश उन चमकीले पत्थरो के ऊपर चलने वालो की नजर --एक बार इन जैसे  लोगो पर पड़ती ? वह सोने की चिड़िया कहाँ बंद है ? आज हम स्वतंत्र है या गुलाम ? इन मासूमो की तस्वीरे बहुत कुछ बोलती है !