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Sunday, May 1, 2011

..उसकी अस्मिता लूटती रही और मेरा दृढ निर्णय ...

                           जीवन में हर मोड़ पर ..किसी न किसी निर्णय को लेना या करना पड़ता है !राम ने पिता के आज्ञा को पालन करने का निर्णय लिया था !दसरथ ने कैकेयी के वर और अपने वचनों के पालन का निर्णय लिया था ! लक्षमण  ने राम के साथ वन जाने का निर्णय लिया था ! सीता ने पति धर्म निभाते हुए ...पति के साथ वनवास जाने का निर्णय लिया था ! रावण ने सीता का अपहरण करने का निर्णय लिया और यह एक घोर और भीषण लडाई का कारण बना था !बिभीषण ने न्याय का पक्ष लेने का निर्णय किया और घर के भेदी जैसे शुभ नाम से जाना जाने लगें ! राम भक्त हनुमान ने अपने ईस्ट देव / प्रभु राम का साथ देने का निर्णय किया !

                         महाभारत में देंखे तो युधिष्ठिर ने लडाई से परे रहने का निर्णय लिया ! दुर्योधन ने एक इंच भी जमीन पांडवो को न देने का निर्णय किया और एक लम्बी युद्ध को निमंत्रण दे बैठा ! कृष्ण ने पांडवो का पक्ष लिया , यह भी एक योग रूपी निर्णय था !
              हर निर्णय को देंखे तो हमें  दो रूप ही दिखाई देते है ! 
              पहला - परोपकार हेतु निर्णय और 
              दूसरा- स्वार्थ  वश !

              इसी धुरी पर केन्द्रित निर्णय ..हमें रोज जीवन में लेने पड़ते है ! भुत , वर्त्तमान और भविष्य ...कोई भी काल क्यों न हो हमेशा एक न एक निर्णय के साए में ही ...फला और पनपा है ! सभी दृस्तियो में निर्णय  ही भावी रहा है !

              ज्यादा शब्द बोझ न देते हुए ...संक्षेप में इस कड़ी को पूरी करना चाहता हूँ !
              मै दोपहर को सो कर ही उठा था और टी.वि.देख रहा था , तभी बरिष्ट लोको इंस्पेक्टर जनाब ताज्जुद्दीन का फ़ोन आया ! उन्होंने कहा की जल्द चार पास पोर्ट साइज़ फोटो  लेकर ऑफिस में आ जाईये !  
            मैंने पूछा -क्यों ?
           "अरे यार आओ ना " चुकी बैच  मेट है , इसीलिए उन्होंने भी सहज रूप में जबाब दिया ! मै थोड़ा घबरा सा गया ! आखिर कौन सी बात आ टपकी ! सर्टीफिकेट का मामला हो सकता है - मैंने सोंचा ! उन्होंने जिद्द कर दी ,अतः मै चार फोटो के साथ ऑफिस में चला गया ! 
            फोटो देते हुए फिर पूछा -"  सर मेरे प्रश्न का जबाब नहीं मिला है ? 
         ' यू आर सलेक्टेड फॉर जी .एम्. अवार्ड ! उन्होंने तुरंत जबाब दिया !
         " मै नहीं मानता ,भला मुझ जैसे निकम्मे को जी.एम्. अवार्ड कौन देगा ? " - मैंने ब्यंगात्मक भाव से पूछा !        " बिलकुल सच ,यार !" जबाब  मिला !. यह घटना मार्च माह के प्रथम वीक की है ! 

                   तारीख ०८-०४-२०११ को मै रेनिगुन्ता से सुपर -१२१६४ काम करके आया और आगे जाने वाले लोको पायलट को ट्रेन का कार्यभार सौप रहा था! देखा - बरिष्ट लोको इंस्पेक्टर श्री मुर्ती जी चले आ रहे है ! वे मुझसे उम्र में बड़े है तथा नौकरी में भी बरिष्ट ! आते ही मुझे - " congratulation "  कहा !
                मैंने पूछा - किस बात का सर ?
             आप का नाम जी.एम्.अवार्ड के लिए अनुमोदित हो गया है ! १३ अप्रैल / ११ अप्रैल को दिया जाएगा !  मैंने कुछ नहीं कहा ,सिर्फ धन्यबाद के !

               मैंने इस बात की जानकारी अपने मुख्य कर्मी दल नियंत्रक  श्री जे.प्रसाद को दी ! इसके बाद से ही मेरे प्रति षडयंत्र शुरू ! दुसरे दिन मेरे लोको इंस्पेक्टर जनाब ताज्जुद्दीन ने बताया की - " दुःख के साथ कहना पड रहा है की आप का नाम  जी.एम्.अवार्ड से बंचित हो गया ! इसके पीछे साजिश काम कर गया !" मुझे भी इस समाचार को सुनकर दुःख हुआ !

              मै १२६२८ कर्नाटका एक्सप्रेस तारीख १३-०४-२०११ को काम करके आया था और स्नान वगैरह कर सोने की तैयारी में था , तभी गदिलिंगाप्पा ( मुख्य कर्मीदल नियंत्रक / गुड्स ) का फ़ोन आया ! उन्होंने कहा की आज डी.आर.एम्.अवार्ड रेलवे इंस्टिट्यूट में दिया जाएगा और आप का भी नाम शामिल है !मैसेज संख्या -१३ /०४ /२५ है ! आप इंस्टिट्यूट में जाकर इसे ग्रहण करें ! 

               मैंने कहा -ओ.के .और फ़ोन रख दिया !  रात भर ट्रेन चलाने की वजह से नींद आ रही थी अतः सो गया !             यह निर्णय कर की -मै इस अवार्ड को बहिष्कार करूंगा !

              जी हाँ ,उस दिन मै सो नहीं सका क्यों की बार - बार सभी लोको इंस्पेक्टरों  की रेकुएस्ट भरी फ़ोन आती रही की आप आओ और इस अवार्ड को ग्रहण करें ! मैंने जिद्द कर ली थी और उन लोगो को कहला दिया की मै अवार्ड का भूखा नहीं हूँ ! कृपया मुझे माफ करें! मेरे सर्टिफिकेट को लोब्बी में रख दे तथा जो कैश है उसका स्वीट खरीद कर गरीबो में बाँट दे !

            साजिस = जैसे ही कुछ लोको इंस्पेक्टरों और मुख्य शक्ति नियंत्रक को मालूम हुआ की मुझे जी.एम्.अवार्ड मिलने वाला है , त्यों ही उन्होंने एक यूनियन की मदद से उसे तुरंत खारिज करवा दिए ! इस तरह से उस अवार्ड की अस्मिता लूट गयी ! इन भ्रष्ट लोको इंस्पेक्टरों और यूनियन   के समूह ने मिल कर इस अवार्ड को मौत के घाट उतार दिया !वह मेरी न हो सकी !उससे मै बंचित रह गया !उसकी अस्मिता वापस लाने के लिए ,डी.आर.एम्.ने तारीख १३-०४-२०११ को रेलवे इंस्टिट्यूट में बुलवाएँ !

              इस घिनौनी हरकत और अन्धो के बीच अपनी नाक कटवा दूँ ! यह मुझे गवारा नहीं था ! अतः मैंने इसे लेने से इनकार कर दिया ! आज - कल ..सरकारी क्षेत्र में अवार्ड अपनी अस्मिता बचाने के लिए ...वैभव और स्वर्ण वेला के लिए , मौन मूक तड़प रही है ! ठीक चातक की तरह ...इसी आस में की अमावश की रात कटेगी   और पूर्णिमा की चाँदनी रात जरुर आएगी ! 
   
             मेरे इस निर्णय को पूरी तरह से सराहा गया ! यह मेरे जीवन की अविस्मर्णीय घटना बन गयी है ! चोरो का मुह काला हो गया है !

Monday, April 25, 2011

दिल न तोड़ें .......handle with care

                                    चित्र में -बाए से चौथा--  मेरे बालाजी....... ..नृत्य करते हुए !
                  बच्चे बहुत भाऊक होते है ! विशेष कर बचपन में ! उन्हें अच्छे - बुरे की परिपक्वता नहीं होती ! बात - बात पर रूठना , गुस्से करना ,बहाना बनाना ,हिचकिचाना ,नक़ल करना , आदि ख़ास बाते ...बच्चो में प्रमुखता से पायी जाती है ! इन सभी गुणों का बड़ो में भी पाया जाना ...एक बचपनी हरकत से कम नहीं ! इसीलिए तो कहते है -बुढापा बहुधा बचपन का पुर्नागमन  होता है !

                       इन सभी बातो के मद्दे नजर यह जरुरी है की बच्चो के साथ ..बड़ी सावधानी से वर्ताव किया जाय ! माता - पिता हो या गुरुजन .......बच्चो के  मनोविज्ञान को समझ कर ही ....डाटने / फटकारने / और अपने विचार प्रकट करने  की कोशिश होनी  चाहिए ! बच्चे प्यार के भूखे होते है ! प्यार से इन्हें कुछ भी कहा या समझाया जा सकता है !

                        चाणक्य ने कहा था --" माता - पिता / गुरुजन को अपने बच्चो / शिष्यों से ज्यादा प्यार नहीं करना चाहिए ! समयानुसार माता - पिता को बच्चो को डांटने / गुरु को शिष्य को पीटने से नहीं हिचकना चाहिए ! ज्यादा प्यार उद्दंड बना देता है  और बच्चे सही मार्ग से भटक जाते है !"

                        संक्षेप में सोंचे तो हम यह पाते है की कोई भी  माता - पिता / गुरु  का ....व्यवहार  बच्चो के लिए उपयोगी और मददगार ही होता है ! कोई यह नहीं चाहता की उसका शिष्य या संतान ...दुनिया की नजरो में अयोग्य  ,दुराचारी और जीवन की दौड़ में नाकाम रहे ! बच्चे यदि शांत प्रिय और आकर्षण के धनी हो तो ...सोने पे सुहागा ! किन्तु बच्चो में नक़ल की प्रवृति ...बड़ी तेज होती है ! अभिभावक / गुरुजन में गलती हो , तो ये आसानी से ग्रहण कर लेते है ! जिससे हमें काफी सतर्क रहनी चाहिए ! इसीलिए तो कहते है --" पारिवारीक संस्कार का बच्चो पर काफी प्रभाव पड़ता है ! " यानी जैसा बांस , वैसी बांसुरी !

                      बहुत सी बातें होती है , जिन्हें हम अभिभावक गण ..बच्चो के सामने प्रकट नहीं करे , तो बेहद सुन्दर !जैसे -माता - पिता  का आपस में झगड़ना ,दूसरो की निंदा करना ,किसी को भद्दी गाली देना , किसी दुसरे बच्चे की शेखी बघारना इत्यादी ! अच्छी देख - भाल ..पौधे को उन्नत और सुदृढ़ बनाती है!  आईये एक सुन्दर बच्चो के उपवन और भविष्य के तारो की सृजन में लग जाएँ ! बच्चे ही हमारे कल की आलंबन है !

                      आज - कल परीक्षा और उसके परिणामो के दिन है ! सफलता और असफलता ..आएँगी , कोई रोयेगा , कोई रुलाएगा ! किसी ने आत्म -ह्त्या की, तो  किसी ने आग लगायी , तो कोई तीन मंजिले भवन से नीची छलांग ! आये दिन  अखबार लिखेंगे और हम पढेंगे ! कब क्या होगी किसी को नहीं मालुम ! इस विषय पर सोंचने के लिए बाध्य होना पड़ा और पुरानी यादे तरो - ताजा हो मष्तिष्क  पर घूम गयी ! आप भी देख लें -

                  तारीख -०४ / ०५-०५-२००८...दिनांक रविवार /सोमवार , मै उस दिन ट्रेन संख्या -२४२९ .बंगलोर से हजरत - निजामुदीन जाने वाली राजधानी एक्सपेस काम करते हुए आ रहा था ! रात्री का समय था ! रात के बारह बजे के आस - पास ट्रेन अनंतपुर......... (स्वर्गीय / भूतपूर्व राष्ट्रपति ...श्री नीलम संजीव रेड्डी का पैत्रिक  शहर और सत्य साई बाबा का जिला , जिनका आज पुर्त्त्पर्ती में देहांत हो गया है ) ...में रुकी ! दो मिनट के बाद सिगनल मिला ! मेरा सहायक लोको पायलट श्री के.एन.एम्.राव थे ! गार्ड के अनुमति के बाद ..हमने ट्रेन को चालू किया ! प्लेटफोर्म से ट्रेन ...धीरे - धीरे बहार निकल रही थी ,  घोर अन्धेरा ...ट्रेन की  हेड लाइट तेज ! हम लास्ट स्टॉप सिगनल के करीब पहुँच रहे थे ! मैंने देखा की कोई बण्डल या कोई मृत बॉडी........ दोनों पटरियों के बीच...पड़ी हुई है ! मैंने अपने सहायक का ध्यान आकर्षित  किया ! उसने भी देखा ! तब - तक ट्रेन ..बहुत नजदीक आ चुकी थी ! मैंने उस जगह एक हलचल देखी और तुरंत ट्रेन को रोक दिया !  मैंने सहायक को जा कर देखने को कहा !
                   सहायक गया और  जो देखा ...वह ....यह  की एक सोलह / पंद्रह वर्ष का लड़का ...स्पोर्ट पायजा और टी - शर्ट पहने हुए ...घायल अवस्था में दोनों पटरियों के बीच कराह रहा था  ! उसके पैर और सिर में काफी चोट लगी थी और वह लहू- लुहान था ! टी - शर्ट खून से भींग गए थे ! मामला समझते देर नहीं लगी .....क्योकि.......परीक्षा के परिणाम के दिन थे ! शायद घर वाले कुछ कहे हो या खुद...असफलता वश .... उसने ऐसी साहसिक  कदम उठाये हो ! हमारे आगे कई एक्सप्रेस ट्रेन जा चुकी थी , उन्ही में से किसी के सामने आया होगा , पर अपने मनसूबे में सफल नहीं हो सका था ! हमने पास के ट्राफिक गेट-मैन को उसे अस्पताल भेजने के लिए सौप दिया तथा इसकी सूचना स्टेशन मैनेजर को वल्कि - तल्की के द्वारा दे दी ! फिर आगे बढ़ गए !
                 अप्रैल और मई के महीनो में...... शहरों से गुजरते समय..... भगवान से यही प्राथना करते है ......की कोई मासूम हमारे ट्रेन के निचे.... न आये !  उस दिन हमने एक माँ के जिगर के टुकडे को... उसे सुरक्षित वापस भेज दिया ! एक अनर्थ से बचे !  इसीलिए तो कहते है.....दिल न तोड़ें ..
       

Monday, April 18, 2011

मौत का अनूठा चांस ...

हम लोको पायलट   जीवन में अजीव सी जिंदगी जीते है ! वह भी ड्यूटी के वक्त .! जीवन चलने का नाम है  और चलती का नाम गाड़ी  ! रेलवे की ट्रेन चौबीसों घंटे चलती और दौड़ती रहती है ! इस दौड़ में दर्शक......ये  यात्री और उनकी गवाह ...  ये लोको पायलट ही होते है ! ट्रेन  नदियों- नालो ,जंगलो -झाडो  , पर्वत - पहाड़ो से गुनगुनाती हुई निकलती रहती है और ये लोको पायलट ...सजग और होशियारी पूर्वक ...समय के साथ ..जीवन की गीत गाते हुए ...सभी को उस पार ....  दूर  नियत स्थान पर ले जाकर सुरक्षित छोड़ देते है ! उतरने वाले ..एक टक भी इनके तरफ   नहीं देखते,  कितनी आत्मीयता है !
               सिटी बजी ...और फिर यह गाड़ी चल दी ! उसी धुन और राग को अलापते ! जीवन भी तो एक गाडी ही है ! इसे जैसे चाहो ...चलाओ ! उस पर भी इस लोकतंत्रीय भारत वर्ष में ! लोक - तंत्र सबके लिए ..समानता का अधिकार देता  है , पर असलियत दूर ! किसी के पास अरबो की सम्पति है ,तो कोई दाने - दाने के लिए मोहताज है ! ये कैसी व्यवस्था  ?
              अब आये विषय पर ध्यान केन्द्रित करते है ! हम लोको  पायलट  ट्रेन की भागम - दौड़ में ..इन दो रेल की पटरियों ( या जीवन की सुख - दुःख ) के बीच ..बहुतो को आत्महत्या या मरे हुए देखा है ! मरने वाले इंसान  हो या जानवर या पशु - पक्षी ...सभी घटनाए   अपने - आप में कुछ शब्द छोड़ जाती है , जिन्हें व्यक्त करना या शब्दों में बांधना ...बड़ा ही कठिन जान पड़ता है ! यह तो सच है की हमें किसी ने बनाया है ! माता - पिता हो या भगवान ...जो भी मान ले ! उसी तरह मृत्यु भी ..इस सृष्टी की एक अजूबा है !   जो सत्य है  ! सभी महसूस  करते है ! जानते है ! फिर भी बेवजह , जबान पर भी लाने से  डरते है ! किन्तु इससे कोई भी नहीं बचेगा ! बचेगा सिर्फ  हमारे कर्म और धर्म से कमाई हुयी ..सम्पति !
            जी ,आज  ( १८-०४-२०११ ) मै ट्रेन संख्या - १२१६३ एक्सप्रेस  ( दादर -चेन्नई सुपर ) वाडी जंक्शन  से लेकर गुंतकल आ रहा था ! यात्रा के दौरान  एक अजीव घटना घटी ! जिसे मैंने व्याख्या कर यही पाया की मौत भी सभी को बचने का चांस देती  है ! ठीक उसी तरह  जैसे  - मृत्यु दंड के अपराधी को ..देश के राष्ट्रपति का स्वर्ण चांस  !  
                     हुआ यूँ की  एक कुत्ता ( मटमारी - मंत्रालयम स्टेशन के बीच ) अचानक दो पटरी के बीच आया ! उसे जब ट्रेन के आने की आभास हुआ, वह तुरंत पटरी से बहार गया ! बाहर जाकर फिर ..पटरी के बीच में आया !  बाहर गया और  फिर ...वापस पटरी के बीचो-बीच आया  ! सामने दौड़ाने लगा ! तब - तक ट्रेन नजदीक   और वह एक जोर झटके के साथ ...मृत्यु लोक को सिधार गया !
             क्या  इस घटना से  ऐसा नहीं लगता की मृत्यु भी ...सभी को एक चांस   जीने के लिए देती है ?

Thursday, April 14, 2011

एक रूप भ्रष्टाचार का ......

भ्रष्टाचार   शब्द  आज के जीवन में ...चरम रोग बन गया है ! किसी न किसी रूप में हर ब्यक्ति , इस कैंसर से पीड़ित है ! किसी भी सरकारी कार्यालय में ..किसी कार्य वश    जाने पर  हमें  इसके प्रभाव से ग्रसित होना पड़ता है ! लिपिक का समय पर काम न करना, अधिकारी द्वारा फरियाद न सुनना, बार - बार कार्यालय का चक्कर लगाना ,समाधान को टालते रहना .....वगैरह - वगैरह ! ट्रेन में वर्थ खाली रहने पर भी .टी.टी.द्वारा वर्थ किसी को अलाट न करना ....सरकारी अस्पताल में दवा रहने पर भी न देना, पंचायत /पौर सभा  कार्यालय में बर्थ  प्रमाण पत्र का न देना  ,समय से किसी चीज का  न मिलना ! कितना गिनाऊ !हर क्षेत्र में तथा हर मोड़  पर हमें भ्रष्टाचार घेरे हुए है !
 प्रश्न उठता है की आखिर भ्रष्टाचार है क्या ? 
      इससे कौन ग्रस्त है ? 
    आखिर ऐसा क्यों ?
    देने वाला भ्रष्ट है या लेने वाला ?
 क्या इससे बचा जा सकता है ? वगैरह - वगैरह !
 संक्षेप में देखें  तो उस देश की संबैधानिक क्रिया - कलाप को ताक पर रख..उलटा - पुलटा कार्यवाही ही भ्रष्टाचार की सीमा में आती है !मनमानी करना और अपने धौश  को ज़माना भी इससे परे नहीं है !किसी से भय नहीं ..या भय नाम की कोई चीज नहीं !संस्कार का आभाव ! मान- मर्यादा का उलंघन ! 
जी हाँ ताली दोनों हाथो से बजती है ! मरीज बीमार तो डाक्टर होशियार ! दोनों अपने -अपने जगह तीस  - मार खान ! सभी को जीवन में इतनी जल्दी पड़ी है  , की कोई भी ज्यादा इंतज़ार नहीं करना चाहता ! भाग - दौड़ की जिंदगी में फटाफट की चित्तकार ! कोई किसी का सुनाने वाला नहीं  ! सभी  शिक्षित , पर सदाचरण का अभाव !
 इससे ज्यादातर ..सभी और सुसंस्कृति को पालन करने वाले पूर्ण रूप से परेशान !
सभी कम समय में बलवान  और शक्तिशाली बन जाना चाहते है ! निति का कोई मोल नहीं तथा  इस पथ पर चलने वाले को मुर्ख तक कह दिया जाता है ! किशी को कोई नौकरी मिली , तो आस - पास वाले पहले यही पूछते है की - उपरवार आमदनी है या नहीं ! अगर नहीं है तो सब कहते मिल जायेंगे की ..तन्खवाह तो ईद का चाँद है !
भ्रष्टाचार  को बढ़ावा देने वाले ..तो और कोई नहीं ऊपर से हाथ बढाने वाले ही है ! लेने वालो का हाथ ..सदैव  निचे होता है ! क्या आप दोनों पसंद करते है या नापसंद ? हमें भय मुक्त होकर तप करने होंगे , तभी समृधि आएगी ..परिवार में , समाज में , देश में और फिर हमारे मान और सम्मान में !
संतोष सबसे बड़ा धन है ! बिना संतोष   सभी निर्धन ! यही कारण है  की असंतोष मानव को विभिन्न तरह के दुष्कर्मो को करने के लिए प्रेरित करता है ! यही  दुष्कर्म   एक दिन हमारे अंत के रूप में ..उदय होता है !
खैर मै कोई दार्शनिक नहीं ...धर्मवेत्ता नहीं ...प्रचंड विद्वान् नहीं ..वश एक साधारण सा इंसान हूँ ! जो महसूस किया , उसे अपने ब्लॉग के माध्यम से आप के सामने प्रस्तुत कर देता हूँ !
 प्रसंग वश कुछ कहना अच्छा लगता  है ! अन्ना हजारे साहब ने ..जंतर -मंतर पर बैठ ...आमरण अनशन कर ..भ्रष्टाचार के बिरुद्ध लडाई छेड़ी, जो अपने - आप में ...आज की आवाज और समय की मांग है ! इसे हम सभी को एक जुट होकर लड़ना चाहिए !
मतदान के वक्त ..स्पस्ट  मतदान उस उम्मीदवार को दे , जो सबमे सुन्दर हो !
पार्टियों  के बिल्ले पर न जाए !
भ्रष्टाचार का बिरोध करना जरुरी है ! बढ़ावा न दें !
सरकार को चाहिए की भ्रष्टाचारियो  के पुरे  सम्पति को सिल कर... राष्ट्रीय  कोष में जमा करे !
हर सरकारी विभाग में ..सभी कार्यो के लिए  समय सीमा का निर्धारण होनी चाहिए ! इसका उलंघन होने पर सजा का प्रावधान हो !
सरकार को चाहिए की ऐसी सुबिधा  अपने कर्मचारियों को दे , जिससे की उन्हें अगल - बगल न झांकना पड़े ! जैसे -आवास , शिक्षा ( बच्चो को ), बिजली ,सामाजिक उत्थान , इत्यादी मुहैया कराने की  जिम्मेदारी सरकार ले !
किसी भी तरह के खरीद - फ़रोख ...रुपये से न कर ....इलेक्ट्रोनिक आधार से किया जाय !
भ्रष्टाचारियो  का सामाजिक बहिष्कार होनी चाहिए ! न इनके समारोह में भाग लें , न ही इन्हें अपने समारोह में निमंत्रित करें !
अब  आये  एक घटना की जिक्र करे -----
मै उस दिन  यस्वन्तापुर रेलवे स्टेशन पर .....गरीब रथ के लोको में  प्रवेश कर ..लोको के भीतरी उपकरणों की जांच - परख कर रहा था ! ट्रेन रात को आठ बज कर पचास मिनट पर छुटने वाली थी ! तभी एक युवती  करीब सत्रह - अठ्ठारह वर्ष की होगी , जींस और टी - शर्ट पहने हुए थी , लोको के खिड़की के समक्ष आ कर खड़ी  हो गयी !
 सर ..आप ही इस ट्रेन के लोको पायलट  है ? उसने पूछा !
 जी हाँ ! मैंने जबाब दिया !
 सर  मेरी बहन का लैप-टाप घर पर ही छुट गया है !वह हैदराबाद जा रही है ! कृपया ट्रेन को एक मिनट के लिए दोदबल्लपुर में खड़ा करेंगे ?-  उसने प्रश्न किया ! मैंने सीधे इनकार कर दिया क्यों की रात का समय और उस स्टेशन में गरीब रथ भी नहीं रुकती है !
 वह मानी नहीं ! अपने जिद्द पर अड़ गयी थी ! मेरी कुछ न सुनी ! आखिर मै...उसके विवसता को भाप गया तथा ..सोंचा ...मदद करनी चाहिए !जो मेरे वश में है ,उसे मदद में इस्तेमाल करने से कोई हानि नहीं !
फिर क्या था , मै अपने लोको के मेधा स्क्रीन के रीडिंग  पढ़ने के लिए मुडा ! तभी देखा की वह युवती लोको के अन्दर   घुस गयी और मेरे करीब आकर खड़ी हो गयी ! मेरा सहायक लोको की जाँच - पड़ताल में बाहर व्यस्त था ! मुझे कभी भी महिलाओं से नजदीकी नहीं रही है और इससे परहेज भी करता हूँ ! किसी महिला से बात करना , मेरे वश में नहीं ! ब्लॉग में महिलाओ के ब्लॉग पर हिम्मत जुटा कर टिपण्णी करता हूँ ! ऐसा क्यों , शायद  मुझे भी   नहीं मालूम !
अन्दर आते ही उसने कहा - सर ....please .
 मै मेधा स्कीन को देखते हुए बोला - " मैंने कह दिया है न !मुझे परेशान क्यों कर रही हो ! कुछ हो गया तो मै इसका जिम्मेदार हूंगा ! "  इतना कहने के बाद मै उसके तरफ मुखातिब हुआ ! देखा वह पांच सौ  के नोट को मेरे तरफ बढ़ाये हुए खड़ी थी ! वश क्या था , मै आपे से बाहर हो गया ! कहा - गेट आउट फ्रॉम हियर ! शर्म नहीं आती ! क्या बिकाऊ समझी हो ! पैसे से सब - कुछ खरीदना चाहती हो ! क्या जीवन में पैसा ही सब - कुछ है !
 वह डरी और सहमी सी   तुरंत लोको से नीछे उतर गयी ! फिर उसने सहस नहीं की  , कुछ बोलने की !
       जी हाँ  दुनिया में बहुत से लोग ...पैसे से सब - कुछ खरीदना चाहते है ! इतना ही नहीं ..बिकाऊ भी बिक जाते है !कुछ सच्चेऔर ईमानदार ब्यक्ति होते है , जिन्हें इस दुनिया  की कोई सम्पति खरीद नहीं सकती ! वे अनमोल होते है ! ऐसे लोग आज - कल विरले ही मिलते है ! उन्हें उपहास में गाँधी जी या राजा हरिश्चंद्र जैसे उपाधि मिल जाते है !
   आज के विचार ----


''हमें  यदि किसी को गाली का उत्तर नहीं दिया जाय , तो उसका क्रोध शांत हो जाएगा ! इसीलिए मौन को सबसे बड़ा वरदान और सुख माना गया है !जागरुक और सावधान ब्यक्ति को किसी प्रकार के भय की आशंका नहीं रहती ! प्रायः रोग , शत्रु , तथा चोर - डाकू आदि असावधान और सोते ब्यक्ति पर ही आघात करते है !जागते को देख कर सभी भाग जाते है !अतः स्पस्ट है की उद्योग  ......समृधि का ,  तप...पाप नष्ट का ,  मौन.....शांति का ,  और  सावधानी...भय से , बचने के लिए निश्चित माध्यम है !-''----चाणक्य 

 आप सभी को बैशाखी की शुभ कामना !

Saturday, April 9, 2011

कभी - कभी --०३..महाप्रबधक( दूसरा भाग )

सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन  का बाहरी दृश्य !
पत्र संख्या  - डी.पि.०४२/८३/२००६.   दिनांक -२१-०१-२००६.गुंतकल.
 महामहिम 
        माननीय महाप्रबंधक जी.
        दक्षिण मध्य रेलवे ,सिकंदराबाद 
       ( गुंतकल आगमन पर ,निरिक्षण के दौरान )
       गुंतकल.
   विषय -रंनिंग कर्मचारियों की दर्दनाक वेदना और क्षेत्रीय मेल / एक्सप्रेस लिंक का लागू किया जाना !
           श्रीमान , मै गोरख नाथ साव (G .N .SHAW) उपरोक्त एसोसिएसन के मंडल अध्यक्ष के पदा-धिकारी 
 के तौर पर , इस पत्र के माध्यम से , आप का ध्यान , निम्न कुछ बातो पर आकर्षित करना चाहता हूँ:-

                                    सबसे पहले सभी रुन्निंग कर्मचारियों के तरफ से ,गुंतकल मंडल में ,आप का 
 हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ ! जैसा की सर्व विदित है , रंनिंग कर्मचारी चाहे मेल/एक्सप्रेस/मालगाड़ी चालक 
 हो या सहायक चालक या संटर ,सभी रेलवे के अर्थ  को बढाने तथा  माल - जान की सुरक्षा में प्रमुख भूमिका 
 निभाते है ! यह तभी सम्भाव्शील होता है जब सभी रुन्निंग कर्मचारी , मानसिक व् शारीरिक रूप से स्वक्छ हो     !
         यह स्वच्छता तभी संभव है ,जब सुचारू रूप से अनुशासन को पालन करने दिया जाय ! अनुशासन  तभी पालन होगा , जब मानव पूर्ण रूप से तैयार और जागरुक हो ! तैयार और जागरुक तभी होगा , जब काम करने की क्षमता हो ! काम करने की क्षमता ..तभी प्रखर होगी , जब मनुष्य पूर्ण आराम किया हो ! और आखिरी में यही पूर्ण आराम संरक्षा का दूसरा रूप भी है !

                                 संक्षेप में पुरे रेलवे की व्यस्था का परिवाहक   ये रुन्निंग स्टाफ होते है ! अंततः रंनिंग स्टाफ रेलवे में उत्पन्न  ,उत्पादकता का ग्राहक है ! उत्पाद जैसा होगा ,वैसी ही परिणाम प्राप्त होगी ! अतः अच्छे और सुरक्षित अर्थ व्यवस्था के लिए --यह आवश्यक हो जाता है की रंनिंग कर्मियों के रहन - सहन तथा कार्य प्रणाली पर विशेष ध्यान दिया जाय ! इसके अंतर्गत उनके मानसिक ,शारीरिक ,सामाजिक व् आर्थिक व्यवस्था  को समृद्ध बनाना बहुत जरुरी हो जाता है !क्योकि रुन्निंग कर्मचारी रेलवे की रीढ़ है १ अगर रीढ़ की हड्डी टूट गयी ,तो पुरे रेलवे  की व्यवस्था चरमरा जाएगी !

                                      मैंने तीन बातो /शब्दों का उपयोग ज्यादा किया है ( मानसिक ,सामाजिक व् आर्थिक )क्योकि रुन्निंग कर्मचारी के शरीर को ये शब्द बुरी तरह से प्रभावित करते है ! उदाहरणार्थ -आर्थिक स्थिति बिगड़ने से मानसिक संतुलन घटता है व् मनुष्य  समाज से अलग थलग होने लगता है ! परिणामतः शारीरिक प्रक्रिया में वीकार उतपन्न हो जाते है !यह शारीरिक वीकार किसी को भी सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकती !जब ब्यक्ति खुद शारीरिक विकार से पीड़ित हो , तो वह किसी को कहाँ से सुरक्षा प्रदान करेगा !नतीजतन --दुर्घटना अवश्यमभावी है !

                                    रेलवे में दुर्घटनाये होती है तथा विभिन्न प्रकार के कमेटियो के द्वारा , इसकी जाँच करायी जाती है !परिणाम --कुछ नहीं मिला तो मानवी भूल बता कर काम चला लिया जाता है !अगर ऐसा ही है , तो क्या ?..किसी ने सोंचने की कोशिश की है ? आखिर क्यों ?यह मानवी भूल ?


                          जी हाँ ,इन सभी मानवी भूल का मूल कारन शारीरिक ,मानसिक ,आर्थिक व् यांत्रिक असहयोग ही है ! और इन सभी कारणों के कारन कौन है ?आखिर कब तक ऐसा चलता रहेगा ?


                        अगर यही सिलसिला जरी रहा तो वह दिन दूर नहीं , जैसा की सन २००३-२००४ के दौरान हुआ !( लगातार पैसेंजर ट्रेन दुर्घटना ),फिर भविष्य में देखने को मिले १अगर ऐसा हुआ तो  यह जान बुझ कर की गयी , मानवी भूल की श्रेणी में आयेगा ! हमें सोंचना पडेगा परिणामो के बारे में !

                     समय की पुकार है , रुन्निंग कर्मचारियों के काम के घंटे कम किये जाय ! फास्ट ट्रेनों की वजह से 
 दुरीया स्वतः बढ़ती जायेंगी !रंनिंग कर्मियों के भीतर अराजकता का फैलाव ,कुपोषण तंत्र को पैदा कर सकता है !जिससे हमें होशियार रहना चाहिए !

                         आज के आवश्यकता के अनुसार रुन्निंग कर्मियों को वीकार की तरफ धकेलने के वजाय,प्यार और उनके अधिकार की आवश्यकता पर ध्यान देना ..सबसे जरुरी बात है ! अगर रुन्निंग कर्मचारी सुरक्षित है .तो रेलवे में कार्यरत सभी कर्मी सुरक्षित है ! देश की करोडो जनता ..सुरक्षित है ! हम और आप सुरक्षित है !  रही अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ करने की ,तो इसे सुदृढ़ बनाने के लिए ..और कई साधन है जैसे -अर्थ अपव्यय को रोकना आदि !

                      रुन्निंग कर्मचारियों को , अपने सामाजिक चिन्तनो को भुलाकर नए - नए तकनीकी साधनों से गुजरना पड़ता है ! चाहे इंजीनियरिंग विभाग हो या सिग नलिंग या लोकोमोटिव या नियम - कानून !किसी ने भी यदि किसी तरह की त्रुटी की ,तो वह रंनिंग कर्मचारी है , जो प्रत्यक्ष प्रभावित होगा या सभी को प्रभाव से बचाएगा !

          देश में कर्तव्य निभाते हुए        दो श्रेणोयो को ही मौत को गले लगाते देखा गया है ! १) सीमा के प्रहरी ..हमारे वीर सैनिक  व् २) दुर्घटना के समय रंनिंग कर्मचारी ( रेलवे में )! दूसरा कोई विरले ही होगा जो कर्तव्य करते -करते मृत्यु को प्राप्त हो !

                                           उपरोक्त ,कुछ तथ्यों को देखते हुए कहा या समझा जा सकता है की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए ,रंनिंग कर्मचारियों के काम के घंटे तथा कार्य करने की प्रणाली में फेर बदल करने से ,उनकी सामाजिक , मानसिक तथा आर्थिक प्रक्रिया को उन्नतिशील या अवन्नितशील बनाया जा सकता है !

                             कोई भी फेर बदल ,आराम दायक होनी  चाहिए ! अन्यथा यह दुर्घटना तथा अनर्थ का आगामी होगा ! आज के रंनिंग कर्मचारी सच में कहा जाय तो मुह है ,लेकिन गूंगे है ! कान है , पर बहरे है ! आँख नहीं है ..पर देखते है !अर्थात व्यवस्था से ये इतने भयभीत हो चुके है की मूकदर्शक होकर , सब कुछ सहने को तैयार लगते है !क्यों की खौफ ( अधिकारियो की ) से सामना करने की व्यक्तिगत क्षमता चूर्ण हो चुकी है मान्यता  प्राप्त  यूनियन   अपने दायित्व को भुला चुके है ! इसके प्रमुख कारण स्वार्थ, लोलुपता है !

                                                                                                                         ऐसी स्थिति में , रंनिंग कर्मचारी अपनी बातो को उजागर करने के लिए , रास्ता ढूढते नजर आ रहे है ! आखिरी में उनको आल इंडिया लोको रंनिंग स्टाफ एसोसिएसन के तले शकुन एवंम राहत की एक छोटी सी किरण नजर आती है ! जो आप को भी भली - भांति जानकारी होगी ! यह एसोसिएसन केन्द्रीय , क्षेत्रीय तथा मंडलीय रेलवे के स्तर पर ,कार्यकारी कमेटियो के द्वारा संचालित हो रही है !

                                                       इसी माह , गुंतकल मंडल के रंनिंग कर्मचारोयो ने १८-०१-२००६ को मंडल रेल प्रबंधक आफिस के सामने सपरिवार एकजुट धरना दिया ! जिसका प्रमुख मुद्दा था  - क्षेत्रीय मेल / एक्सप्रेस लिंक को रद्द की मांग और यह उचित भी है ! क्योकि क्षेत्रीय लिंक रंनिंग कर्मचारियों को अपने परिवार तथा सामाजिक परिवीश से काफी दूर ले जाएगा ! काम के घंटे बढ़ेगें ! जिससे थकान व् असुरक्षा बढ़ेगी ! दुर्घटना की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता ! बहुत से उदाहरण भी है !जब रंनिंग कर्मी , दुसरे मंडल में काम करते हुए दुर्घटना का शिकार हुया है ! क्षमा कीजिये --मै उनके नाम नहीं गि ना सकता !इससे रंनिंग स्टाफ के स्वाभिमान और मंडल के सम्मान को धक्का लगेगा !

                                                                             महोदय , रंनिंग कर्मचारी एवं सुरक्षा के ऊपर एक पूरी किताब लिखी जा सकती है !यह विडम्बना है की सुरक्षा के उपाय बनाते समय ---रंनिंग कर्मी या उससे सम्बंधित संगठनो की राय नहीं ली जाती ! नियम बनाने वाले या तो अरन्निंग या रंनिंग काम के अनुभव से परे होते है ,जो दुर्घटना के कारण का बढ़ावा ही है !

                                                                  जब - तक रंनिंग कर्मियों को हे की दृष्टी से देखा ( मानसिक , शारीरिक ,आर्थिक व् यंत्र्रिक क्षेत्र में ) जाएगा , तब - तक सत प्रतिसत सुरक्षा  का दावा ( रेलवे में )असंभव है !

                             अति लिखावट एवं भूल चुक के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ !आप को  यह आवेदन आल इंडिया लोको रंनिंग स्टाफ एसोसिएसन के तरफ से देने का प्रमुख कारण यह है की कृपया आप क्षेत्रीय लिंक को रद्द करें ! क्योकि उपरोक्त कारण लागू होते है ! लगातार कार्य करने से मशीन को भी शेड को भेजना पड़ता है ! मनुष्य तो मनुष्य है ! इसे आराम एवं सुरक्षा की जरुरत है ! लम्बे समय तक कार्य करने की पद्धति स्वस्थ दीर्घायु को भी प्रभावित करती है ! दुर्भाग्य से ...दुर्घटना में रंनिंग कर्मचारी की मौत हो जाने पर ...उसके परिवार - जन मानसिक वेदना से पीड़ित हो जाते है ! यह सामाजिक एवं  पारिवारिक असंतुलन को बढ़ावा देता है !

                                                                                                          महोदय , कृपया सकारात्मक निर्णय लेकर , इस क्षेत्रीय लिंक को ख़ारिज करें तथा रंनिंग कर्मचारियों के भविष्य में चार चाँद लगाये ! आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है ,आप रंनिंग कर्मियों के व्यथागाथा को समझेंगे !

                                          आप का शुभाकांक्षी -
                                               ( हस्ताक्षर  )



Friday, April 1, 2011

कभी - कभी --०३..महाप्रबधक

दाहिने  तरफ  एक    लोको  के  अन्दर  का  दृश्य , देंखे  उस  लोको   पायलट    की सीट  को जिसपर  वह आठ -नौ  घंटे लगातार  बैठ  कर  ट्रेन को  चलाते  हुए  आप  को ...आप  के  मंजिल  तक  सुरक्षित   पहुंचाता   है!  उस  सीट  के  पीछे  कोई  बैक  रेस्ट  नहीं  है  ! साधारण   सा सीट !  माल गाड़ी  में तो  कुछ हद तक ....संभव  है ..पर  मेल  और एक्सप्रेस के क्या कहने , जब  ट्रेन दौड़ती ही रहती है !आज - कल बहुत  सालो  के  बाद ..सीटो   में कुछ सुधार शुरू  हो  रहा  है ! वह  भी अधिकारिओ  की मानसिकता में बदलाव तथा हमारे ऐल्र्सा  के मांग  के  बाद ! इसके पीछेअधिकारिओ  का  मानना  था   की    बैक  रेस्ट देने  से  लोको पायलट ..ट्रेन  चलाते  समय   सो  जायेंगे !    इस वजह से प्रायः सभी   लोको   पायलट  बैक पेन से पीड़ित है , मै भी हूँ ! समय - समय   पर   दवा   लेनी ही पड़ती है ! योगा भी  करनी पड़ती है ! धुल , धुएं तो साधारण ही है !लोको की वनावट स्वास्थ्य बर्धक तो नहीं ही है !
                 छोडिये  इन  बातो  को  ! हम  तो  ठहरे  गूंगे  और  बहरे  ! ट्रेन  तो  चलानी  ही  है ..सीट  के  लिए  ट्रेन  क्यों   रोके  ? इस   तरह  के  कई   मिशाल     ऐसे  मिल  जायेंगे  ..जिन्हें  ये    लोको      पायलट    ..आसानी  से .निः  सहाय   होकर   झेलते  ही  रहते  है !    एक  इसी  तरह  की  घटना ...जो  जोनल  लिंक  से  सम्बंधित  है ..प्रस्तुत  है ! जोनल  लिंक  से  काम  के  घंटे  बढ़  जाते  है  और   खाली  पदों  की  संख्या     भी  घट  जाती  है  ! तदुपरांत ..सरकार    की  जेब  खर्च में  कटौती ! वह  भी  अजब  के ! लूट  सके  तो  लूट !   नहीं  तो  कोरे  भुत  !चेन्नई  और  गुंतकल  मंडल  के बीच ..जोनल  लिंक  स्टार्ट  करने की    समझौता  हुई  !    एक    बेचारे    ने   ( लोको  पायलट ..श्री .सी.ये.एन .बाबु ) ने      सर्वप्रथम   एल.आर ( यानी  रास्ता ,   सिगनल   और     भगौलिक  संरचना देखने  जाना  ) लेने  के  लिए  चेन्नई  गए ! हेड क्वार्टर  पर ..  आने  के  बाद  काम  के  घंटे  देख ..पस्त  हो  गए  और   सिक  कर  दिए (यानी  ..अस्वस्थ   की वजह  से  मेडिकल  छुट्टी  पर !)  चुकी   सबसे  पहले  रास्ता  उन्होंने  ही  देखा  था ..इसीलिए .. प्रथम  ट्रेन भी  गुंतकल  से   चेन्नई तक ...  उन्हें  ही  ले जाना पडेगा  ! 
           यह  देख  हमारे  अन्य  साथी  भी  घबरा  गए !पूरी  घटना  मुझे  बताई  गयी ! मैंने  तुरंत एक आपात कालीन बैठक  बुलाई और  पारिवारिक  धरने  की  मंजूरी ..  सभी  ने पास  किया ! पुरे परिवार  के  साथ , सभी  लोको  पायलट ..गुंतकल  मंडल ऑफिस ... के  सामने तारीख .१८-०१-२००६ को  धरना  पर  बैठ  गए ! उस  समय के मंडल  रेलवे मैनेजर  श्री  प्रवीण  कुमार  जैन जी  थे ! धरने  के  दिन ही  लोको  पायलटो  के  सभी  सदस्य ..ड़ी.आर.एम्. साहब  के  चेम्बर  में  घुस   गए !  वार्ता  चली और  चेन्नई  का  जोनल  लिंक  रद्द  हो  गया ! इसके  बाद  वह  लोको पायलट श्री  सी.एन.बाबू वि . आर   दे  दिए  !
           हाथी  ने  रास्ता  बना दिया  था ! प्रशासन  कहा  रुकने  वाला ! सभी  मेल / एक्सप्रेस / पैसेंजर  लिंकों  को  काफी  टाईट  कर  दिया  गया  ! न बाहर  आराम  , न भीतर !   लोको पायलटो  के  ऊपर   अमानुषिक 
अत्याचार  लाजिमी  हो  गया ! इस  टाईट  लिंक  के  पीछे  एक  लोको  इंस्पेक्टर  का हाथ  था ! उसे  सभी  लोको  पायलटो  से द्वेष  था ! वजह  यहाँ  उधृत  करना  उचित  नहीं  समझता ! अतः  कुछ  करना जरुरी  था , वह  भी संबैधानिक  तौर  पर ! एक  दिन  की  बात  है ! श्री दीप नारायण माथुर .महाप्रबंधक  दक्षिण मध्य रेलवे सिकंदराबाद ...का  गुंतकल में  एक प्रोग्राम  पर आगमन  हुआ ! मुझे  इस की  सूचना .. मेरे  सदस्यों  ने  दी और  आग्रह  किया  की  मुझे  महाप्रबंधक  साहब  से  मिलकर  कोई  रास्ता  निकालना  चाहिए  ! मेरे  पास  समय  का अभाव  था ! अतः मैंने तुरंत एक  हस्थ  लिखित  पत्र  तैयार  किया , जिसे महाप्रबंधक  जी  को सौपना  था !पत्र  का  बिषय  तुरंत  महाप्रबंधक  जी को  स्वतः  मालूम  हो , इसीलिए  मैंने  पत्र  को  हिंदी  में  ही  लिखा , जिससे  की निजी  सचिव  न  पढ़  सके और  माथुर जी   को  स्वयं  ही  ....इसे  पढ़ना  पड़े !
            शाम का  समय ! महाप्रबंधक जी रेलवे  मैदान  में किसी   प्रोग्राम  के  उदघाटन  में  भाग  ले  रहे  थे  और  रंगारंग प्रोग्राम  देख  रहे  थे ! मै  अपने  साथियों  के  साथ  वहा  पहुंचा और पत्र  उन्हें  देने  के  लिए यथोचित  रूप  से ..गया  ! सतर्कता वाले ..हमें यहाँ देखते  ही मामले को भाप गए ! हम  भी  पहले से तैयार थे ! अतः एक  कॉपी  उन्हें भी सौप  दिया गया !हम सीधे डी.आर.एम् के निजी सचिव के साथ ....श्री प्रवीण  जी के पास गए !  वे  हमारे आने का  आशय समझ गए  ! प्रवीण जी  ने मेरा  परिचय .. माथुर  जी  से करवाया ! शायद  प्रवीण  जी समझे की ..कोई शिकायत  ये  लोग  मेरे  बारे  में भी  करेंगे ? मैंने प्रवीण जी  के  तरफ  मुखातिब  होकर  कहा - यह पत्र   निजी  नहीं  सार्वजनिक  है ! माथुर  जी  बैठे  हुए  थे ! तुरंत खड़े  होकर ..आगे  बढे  ..हाथ मिलाये  और पूछा - कहिये क्या  बात  है ?
          मैंने  कहा -"  सर ...मध्य  में  अवरोध  के  लिए ..हम क्षमा प्रार्थी  है ! अभी  वार्तालाप  का  वक्त  नहीं है !आप  से  गुजारिश  है की इस  पत्र  को  आप  खुद  ही पढ़ें !  क्योकि  पत्र  भी  हिंदी  में  लिखा  गया है !"
"  हिंदी में है  ,  तब तो  मुझे  ही  पढ़ना  पड़ेगा ...जरुर  पढूंगा  और  यथा संभव  समस्या  का  निदान  जरुर  करूंगा   !"  माथुर  जी  ने कहा !  हमने  उन्हें  धन्यबाद  दिया और  बाहर आ  गए  ! पत्र का असर पड़ा ! इसके  बाद माथुर जी  ने  लिंक  बनाने  वाले  को ..सिकंदराबाद  तलब  किया ! उसे एक सप्ताह तक सिकंदराबाद में रखा ! जो चला........  वह  यहाँ  नहीं  बताउंगा ! कांफिदेंशियल  ! जी  हां  .माथुर  जी  जब - तक रहे ..लोको पायलटो  की परेशानिया  ...कंट्रोल  में  थी  !  अब  वे  अवकाश ग्रहण  कर  चुके  है  ! उस भलमानस को आज भी ..लोको पायलट श्रधा से याद करते है ! जिन्होंने हम लोगो की कठिनाईयों को समझा और  यथाबिधि दूर करने की कोशिश की !ऐसे लोग कभी - कभी ही मिलते है !
        अगर  आप लोगो  की  इच्छा  हो  तो  मै  उस  पत्र  के  शब्दों  को  यहाँ ..आप  के  लिए  रखना  चाहूँगा ! 
जिससे लोको पायलटो के जीवन  और गतिबिधियो  को  सक्षेप  में समझा  जा  सकता  है !..देंखे --और पढ़े         कभी - कभी -०३ का दूसरा भाग ..अगले पोस्ट पर !
  ( एक इ-मेल ...जिसे मुझे v .n .श्रीवास्तव जी ने ...मेरे इ-मेल के पते पर भेजा है  USA से ! आप भी अनुभव करे ---काका और काकी जी को मेरा प्रणाम ..इस ब्लॉग पोस्ट के जरिये !
प्रियवर गोरखजी, 

अपना प्रथम धर्म है -- अपनी DUTY करना ! सच्चाई  इमानदारी से (जो काम अपने प्यारे प्रभु ने जीविकोपार्जन के लिए हमे दिया है ,उसे करना )

दूसरा धर्म है "प्रेम करना" सर्व प्रथम "अपने आप से" ,फिर अपने परिवार वालों से ,
फिर "अपने देश से "! जो हम केवल "पर सेवा" से कर सकते हैं !
So do not worry if you are unable to go through my blogs when on duty. 
Read them whenever you find time.

महावीर जी के सेवा अंगूर से चाहे चिनियाबदाम से कर ! ऊ ता कृपा करते रहियें !
तू दूनो जन के हम दूनो के आशीर्वाद !

भोला काका  कृष्णा काकी 
बहुत ही सुन्दर  लिखा  है  आप ने !....

http://mahavir-binavau-hanumana.blogspot.com/2011/03/3-3-4.html

Thursday, March 17, 2011

..पत्नी का अपहरण....( बुरा न माने ...होली..है !)

आज तारीख -१६-०३-२०११ है ! होली का त्यौहार अब ज्यादा दूर नहीं ! साढ़े तीन बजे ...१२१६४ चेन्नई -दादर सुपर एक्सप्रेस लेकर आया हूँ ! तरो -ताजा होकर सोफे पर बैठ और टी .वी .आन किये !समाचार देखने लगा ,तभी सामने से श्रीमती जी ..सज -संवर कर... बेड रूम से ..बहार आ सामने खड़ी हो गयी ! मैंने पूछ बैठ - " ओ मेरी महँगी सबला ..कहा जाने की तैयारी है !"
 "बाजार..! " उनका सीधा सा जबाब !
मैंने कहा - " इस तरह से न निकला करो ? कोई देख लेगा तो नजर लग जाएगी !...और  जमाना भी ख़राब है ..इस समय अपहरण ज्यादा हो रहे है ! अपहरण करने वाले को आसानी से तीन - चार लाख मिल जायेंगे ! "
श्रीमती जी कहा चुप रहने वाली , बोली -" नजर लगे मेरे दुश्मन के ..मुझे कौन अपहरण करेगा , जब आप मेरे साथ है ..!"
मै मुस्करा दिया और  चुटकी लेते हुए बोला - " ऐसा नहीं कहते ?..मै तो अबला पति हूँ ...भला आप जैसी  सबला को मेरी क्या जरुरत .."
" छोडो भी ..कपडे पहनिए ..तैयार होईये ...कोई अपहरण कर लेगा तो क्या हो जायेगा ? "  मैडम ने ताना मार ही दिया !
 " क्या होगा ?"--मैंने भी आश्चर्य से पूछा !..बात जारी रखा - " किसी टी - शर्ट और जींस वाली को ले आउंगा ! फिर मैडम खिल - खिला कर हंस पड़ी    और बात को आगे बढ़ाते हुए .... पूछ बैठी - " उससे क्या होने वाला ? " मैंने कहा - ' क्या होगा ..? जानती हो ..वह नयी श्रीमती जी सस्ती होंगी ..न चाँदी की जरुरत..न सोने का क्युकी उनके पोषक पर , उस गहने की जरुरत नहीं पड़ेगी !वे करेंगी नौकरी..मस्त - मस्त रहेंगी !वह डिस्को को जाएँगी ,मै जाउंगा रेल्त्रैन....न पैसे पूछेंगी ..न पॉकेट का भार घटेगा  ..,! बच्चे होस्टल में नयी संस्कृति सीखेंगे  और इधर मै पढूंगा ..संस्कृत ...! वह अमेरिकन  स्टाइल की  होगी  ...मै  स्वच्छ  हिन्दुस्तानी !वह करेगी रचना ..मै करूंगा संरचना ..!"..मैडम हंस पड़ी और कोयल सी बोंली - "आप भी बड़े शरारती हो जी ! छोड़ो ऐसी बातें..कहो हम है ..हिन्दुस्तानी ...अँधेरा हो जाएगा ..जल्दी तैयार हो जाईये !"...जी हाँ ...देंखे नीचे  -
 ये है मेरी एकलौती पत्नी श्रीमती मीना देवी साव  ! मन की गंगा...तन से चांदी भक्ति मय..पूजा -पाठ में रूचि ..सदैव भारतीय परंपरा और शांति में विश्वास .इन्हें अपने पती से कोई शिकायत गिला ..नहीं !भारतीय मानवता से कोई शिकायत नहीं ! किसी  अधिकार की मनसा नहीं !हर पल साथ - साथ दुःख - सुख में सहभागी और इस अनपढ़ लोको पायलट  की बीबी ...,जो हर समय मुझे ड्यूटी पर बिदाई के वक्त ..दिल में उदासी और प्रभु से मंगलमय की कामना रखती है ! वापस आने पर मुस्कुराते हुए स्वागत के लिए हमेशा तैयार !इन्हें गर्व है की इनका पति ...रोजाना ..हजारो  मुशाफिरो को एक जगह से दूसरी जगह ..सुरक्षित पहुंचाते है !जो इस कलयुग में पुण्य नहीं तो और क्या है ?
             जी हाँ ...मुझे भी नाज है ऐसी पत्नी पर ...!मुझे नाज है ऐसे माँ - बाप पर जिन्होंने ऐसी लड़की को जन्म दिया !इन्हें नहीं आता ..अपने माँ -बाप ..के  अधिकारों की धज्जीया उड़ना ...उनके मान - सम्मान का मर्दन करना !जीना है हमें ...आगे बढ़ाना है हमें ..अकेले नहीं बिलकुल साथ - साथ !किसी अधिकार की लडाई नहीं ....हमारे लिए श्रद्धा और शब्र ही मूल्यवान है !प्रिय पत्नी जी ...........आप को सलाम !
  आप सभी को इस पावन पर्व..होली की ढेर सारी शुभ कामनाये !





Orkutfans.in Send 1000+ holi orkut scraps and glitter images to your all friend
 

 (सत्य और सामाजिक परिवेश पर आधारित .......अगली पोस्ट ....आप - बीती =७ ...गुरूजी के थप्पड़ ....होली के बाद पोस्ट करूँगा ..जो गुरु और शिष्य के आपसी संबंधो पर आधारित मार्मिक और शिक्षाप्रद होगी ! )

Tuesday, February 15, 2011

कभी-कभी - ०१....मानवमन...

                    जीवन में कुछ चीजे  ऐसी  होती  है , जो  मनुष्य को बार-बार  नहीं  मिलती  -जैसे -बचपन  ,जवानी,  खूबसूरती ,  और  बीते  हुए  कल ....वगैरह -वगैरह  ....इसी  कड़ी  में  आज  प्रस्तुत  है  नया  सीरियल ....
 कभी - कभी  ........!
    मंडल रेलवे प्रबंधक /गुंतकल  मंडल-श्री भी.कार्मेलुस.और श्री जी.एन.शाव,माल्यार्पण एवं हाथ मिलाते हुए..
                 श्री भी.कार्मेलुस साहब गुंतकल मंडल में, साल २००२ में मंडल रेलवे प्रबंधक के रूप में कार्यभार संभाली थी.
  वे म्रिदुभासी,  धैर्यवान, कर्मठ ,परोपकारी, उदारवादी,  ब्यक्तित्व के धनी ....  जैसे  कई  गुणों  के भंडार  थे .साधारण रहन-सहन..........
 , धार्मिक बिचार वाले .!जिस समय  उनका  इस  मंडल  में  पदार्पण हुआ , उस  समय  हम  दोनों  एक  दुसरे  से  काफी
   अपरिचित  थे .हम  दोनों  की  पहली  मुलाकात  ,श्री दोरैराज  लोको  चालक  / मेल  ,के अवकाश  ग्रहण  समारोह  में  हुयी थी !उस  समारोह  का   आयोजन  भी  हमारे  एसोसिएसन  के सदस्यों ने ही की थी !अवकाश ग्रहण समारोह के मंच पर बैठने के लिए , स्थानीय पादरी जी ,कार्मेलुस जी और मुझे बुलाया गया क्योकि मै उस समय एसोसिएसन का मंडल सचिव था !
     अपने संबोधन के समय पादरी साहब..... धर्म और मनुष्य के संबंधो पर बिचार ब्यक्त कियें, तो कार्मेलुस साहब..... कर्मचारियो और प्रशासन के संबंधो पर दो बाते कहीं.मेरी बरी आने पर .....मैंने एसोसिएसन  परिप्रेक्ष से अलग ,रेलवे के प्राचीन और नवीनतम ढांचे के सम्बन्ध और हम कर्मचारियो के बारे में कुछ कहा.---! फिर क्या  था  -...कार्मेलुस साहब...मुझसे  काफी  प्रभावित  हुए.!
 इसके बाद हम दोनों के पहचान बेहतर हो गयी! 
                                                मैंने  सुना था --जब  कार्मेलुस  साहब  दक्षिण रेलवे में रोल्लिंग स्टॉक के अधिकारी  थे ,उस  समय लोको चालको  से  काफी  परेशान थे.! उनके दिल और दिमाग में लोको चालको के प्रति नफ़रत भरी पड़ी थी! भबिश्य  में मेरे प्रयास ने ,  इन भावनाओ को झूठा शाबित कर दिखाया ! वे इस मंडल में आते ही समझ गए की ,वे जैसा सोंचते थे वैसा लोको चालक नहीं है,! कार्मेलुस जी जब - तक इस मंडल में रहे, तब - तक किसी भी लोको चालक को किसी भी मुश्किल का सामना नहीं करना पडा  तथा इस मंडल को सबसे ज्यादा आर्थिक फायदा भी हुआ ! प्रति बर्ष लोको चालको को कुछ न कुछ उपहार देते रहे ! लोको चालको के पनिशमेंट में भी कमी आ गयी .! कार्मेलुस साहब ने अपने कार्यकाल के दौरान यह साबित कर दिया की पनिशमेंट से ,लोको चालक हतोत्साहित हो जाते है --....और  भय की  भावना  कार्यकुशलता घटाती है ! 
                जब कभी भी निरिक्षण या यात्रा के दौरान मुझे देखते ,तो बिना हाल-चल पूछे ...आगे  न बढ़ाते  थे !
 बास्तव में वे मिलनसार और खुले बिचार के प्रेरक थे ! उन्हें देखने से नहीं लगता था की यह शख्स किसी मंडल का प्रबंधक है !
 किसी भी श्रेणी के कर्मचारी से मिलाना या उसके कोई समारोह में जाना  उनके लिए  चुटकी का खेल था ! कभी भी इंकार नहीं करते थे ! यही वे कारण थे , जब मैंने उनके ट्रान्सफर के समय बिदाई और सम्मान के लिए सभा का आयोजन का प्रस्ताव ,अपने सदस्यों के सामने रखी !.... तब कुछ सदस्यों के न के बावजूद भी,सभी ने  मेरे प्रस्ताव को मंजूरी दे दी ! चंद समय के भीतर ही रेलवे  इंस्टिट्यूट में सम्मान सभा का आयोजन किया गया !
             चित्र में..श्री आर.बलारामैः (दक्षि मध्य रेलवे -कार्यकारी अध्यक्ष -ऐल्र्सा.भाषण देते हुए.)
                श्री कार्मेलुस जी ने अपने संबोधन के समय   कहा था की - " लोको चालक रेलवे के रीढ़ की  हड्डी है ! .बिना इनके मदद के...आर्थिक  उन्नति संभव नहीं है..इनके  मांगो  और  सुबिधाओ की आंकड़ा ...इनके  योगदान  के  आगे  कुछ  नहीं  है....इन्हें  प्रशासन  की ओर  से भरपूर सहयोग  मिलनी  चाहिए..लोको  चालक  ही  तो  है  जो  दिन  - रात एक  करके  भारतीय  रेल  के  गरिमा  को बढ़ाये   हुए  है....आज  मै  एक  बात  और  कहना  चाहूँगा   की  यदि  किसी  के  घर  में  कोई  हन्दिकाप  है और उसके  ईलाज के लिए  आर्थिक  मदद चाहिए , तो मैडम  से  मिलें...उन्हें  मदद दी  जाएगी  ! मै ऐल्र्सा  का  आभार  ब्यक्त  करता हूँ .....जिसने  मुझे  मेरे  कार्य निष्पादन  में  भरपूर  सहयोग दिया है . मै  वादा  करता  हूँ   की  मै  जहाँ   भी  रहूँगा.....किसी भी लोको  चालक  को  मुझसे  कोई  शिकायत  नहीं  होगी......आप ...........सभी  को  बहुत-बहुत धन्यवाद !"
                              इसके  बाद  वे  दक्षिण   रेलवे  में सेनिओर डेपुटी जेनेरल  मैनेजेर  (सतर्कता  ) के पोस्ट पर ट्रान्सफर होकर  चले गए .वहा वे सभी  कर्मियों चाहे लोको चालक हो या अन्य  कर्मी -----सभी  के पसंदीदा अधिकारी  रहें...वे अपनी बेटी के विवाह  के समय ,हमें  कन्याकुमारी  आने के लिए भी  निमंत्रित  किये.! मै तो नहीं जा सका  ,पर अपने कार्यकारी अध्यक्ष को भेजा था!
                     इस तरह ......." कभी - कभी ".....शासन-प्रशासन  में ऐसे अधिकारी  मिल जाते है ..जिनकी  यादे  भुलाये  नहीं  भूलती!  शायद वे पक्के  लोकतान्त्रिक  पद्धति के रक्षक होते है ! पिछले  वर्ष ..श्री  कार्मेलुस जी ..रेलवे  से  अवकाश ग्रहण  कर गए....फिर भी दक्षिण मध्य रेलवे हो या दक्षिण  रेलवे ....कोई  भी  कर्मचारी  ..उन्हें  याद   कर  भावुक  हो  जाता है ! बसन्त आएगी  और  जाएगी ...पर  उनकी  कार्यशैली  हमेशा  दूसरो  के  लिए प्रेरणादायी  होगी.!   भगवान उन्हें दीर्घायु  प्रदान  करें.!
                     साभार...जी.एन.शाव मंडल सचिव /गुंतकल मंडल ( दक्षिण मध्य रेलवे )
                          आल इंडिया लोको रुन्निंग स्टाफ एसोसिएसन

Wednesday, January 26, 2011

भगवन का इंसाफ.

  कुछ शुरू करने के पहले आप सभी को गणतंत्र दिवस की शुभ बधाई .किसी कर्मचारी संघ  का प्रमुख होने के नाते ,मुझे समय मिलना काफी मुश्किल हो गया है.फिर भी मेरी चेष्टा रहती है की कुछ पोस्ट करू तथा अन्य ब्लोग्गेर्स के पोस्ट को पढूं.
           आज कुछ ज्यादा के पक्छ में नहीं हूँ.परसों यानि २४-०१-२०११ को गरीब रथ लेकर यास्वन्तपुर गया था.रेस्ट रूम में रेस्ट लेने के बाद शाम को सोंचा कुछ सिटी का भ्रमण हो जाये.वैसे महीने में दो-तीन बार जाना हो ही जाता है.,सो ईस कान मंदिर को हो लिया ,जो हमारे रेस्ट रूम से काफी नजदीक ही है.साढ़े सात बजे शाम तक वही रहा.शांति की खोज में.१०८ बार "हरे कृष्ण हरे कृष्ण ,कृष्ण कृष्ण हरे हरे .हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे." का उच्चारण मंदिर के प्रवेश द्वार पर किया,जो बहुत ही अच्छा लगा.१०८ पत्थर के तुकडे रखे हुए है और सभी को एक-एक करके , उपरोक्त उच्चारण के साथ पार करना पड़ता है.मेरे सहायक लोको चालक का पुत्र ,जो बंगलुरु में ही रहता है ,उपरोक्त तस्वीर को खिंचा, जिसमे मै ही हूँ.
        अगर आप लोग कभी बंगलुरु जाये ,तो अवस्य ही इस मंदिर में जाये.यदि जा चुकें हो तो इससे भली-भक्ति परिचित जरुर होंगे .बिसेष  बताने की कोई आवश्यकता नहीं है.मंदिर से बाहर आने के बाद ,मुझे एक ब्यंग याद आ गया,जो लोको चालक के श्रम शील अवस्था  तथा कार्य निष्पादन को चित्रित करता है.जो निम्न-लिखित है---
                 तीन ब्यक्ति मृत्यु के बाद स्वर्ग के द्वार पर जा कर खड़े थे.स्वर्ग का द्वार काफी संकीर्ण था.भगवान दरवाजे पर बैठे मिले.उनका कहना था की कोई एक ही अन्दर जा सकता है.-
     पहला-मै पुजारी हूँ,सारी जीवन आप ही की पूजा की है.स्वर्ग पर मेरा ही हक़ है.
     भगवान.....हूँ.....?
      दूसरा---मै एक डाक्टर हूँ.सारी उम्र लोगो की सेवा की है.स्वर्ग पर तो मेरा ही हक़ है.
     भगवान......अच्छा  .....?
     तीसरा--मै भारतीय रेलवे में लोको चालक का काम करता हूँ............(अभी बात पूरी नहीं हुयी....तभी...भगवान ने टोका...)
       भगवान.....कुछ मत बोल....मुझे रुलाएगा क्या. ?सारी जीवन तू नरक में रहा है.....स्वर्ग पर तेरे ही हक़ है....

Sunday, January 2, 2011

अनुशासन ही देश को महान बनाता है.

नया साल शुरू हो गया फिर भी अतीत के बुलन्दियो या पाताल की गहराई को महसूस करने से कोई कैसे बच सकता है.जो बीत गया वह कितना सत्य था,कितना ठीक था-यह तभी पता चलेगा जब हम उससे भी अच्छा कर दिखाए.किन्तु यह सत्य है की पिछला बरस,बिलकुल अनुशासनहिन्  था .कही भी अनुशासन की रोशनी ज्यादा न दिखी. 
      एक बार फिर उस शासन की याद ताजा हो गई -जब इमरजेंसी का राज था और किसी को कुछ कहते नहीं बनता था.चारो तरफ बेकारी,अराजकता,भूख-मरी ,भय का तांडव छाये हुए था.गैर-क़ानूनी रूप से परिवार नियोजन किया जाता था.नेताओ को जेल की आटा पिसनी पड़ रही थी. जो शक्ति में था वह लूट रहा था...वगैरह-वगैरह..
     पिचले बरस भी ठीक वैसी ही वातावरण का कंडिशनिंग हो गया था.उसका प्रभाव अभी भी ब्याप्त है.सरकारी तंत्र में लूट सके तो लूट.बाजार में हाहाकार.नौकरी  पेशे में भत्ता की कमी,शासन-प्रशासन में अनियमितता.जिसे काम की जिम्मेदारी सौपी गई ,वही लूटने में शुमार.अधिकारिओ में लोलुपता,खिंचा-तानी.काम में लापरवाही,बिना घुस कुछ होने का नहीं.जमाखोरों का जमावड़ा तेज .किसी की परवाह नहीं.बाजार में किसी का कंट्रोल नहीं .जैसी -मर्जी वैसी रेट.बिजली..पेट्रोल...डीजल..का रेट बढाओ..और बाजार को बहाना दो जिससे की उछाल आ सके.
         कहने को गरीब सरकार  , पर अमीर बने...अमीर ही...गरीबो को सुनने वाला कोई नहीं.....गरीबो के  गरीबी  के आधार पर नियम कानून ही नहीं बने.  जो बने वह  गरीबो को ही चूस लिए.गरीब हाथ मलता रहा  और  सब कुछ चुपचाप  देखता रहा.
 उन्हें वोट बैंक से ज्यादा महत्व नहीं दिया गया.शायद उनके बारे में यही धारणा रही की इन्हें कल के लिए गरीब ही रहने दो.क्यों की कल बोलने के लिए मुद्दा चाहिए और इनसे बड़ा मुद्दा कोई हो ही नहीं सकता...वगैरह-वगैरह..
        घपलेबाजी कम नहीं हुए, अगर कम हो जाएगी  तो सी .बी.आई. को काम नहीं मिलेगा.उसके लिए काम हमेशा तैयार रखो.जाँच बैठाओ और क्लीन चीट ले लो.किसकी हिम्मत है जो मुह खोले.करोगे क्या,अभी मतदान बहुत दूर है.हो सकता है सत्ता न रहे इस लिए खूब कमा लो अन्यथा चांस मिले या न मिले.खूब रही.......
          अफसर गिरी भी कम नहीं ठेकेदारी   से काम करने का जिम्मा लो  और कमिसन कमाओ....पकडे गए तो बहुत होगा , नौकरी जाएगी .जमानत पर बाहर आ जायेंगे और छुपाई हुई दौलत पर राज करेंगे दस पीढ़ी बैठ कर खाएगी.इसलिए डर काहें का.  बगैरह-बगैरह......
       बहुत और बहुत यादे  २०१०  अपने जेहन में समेत कर ले गया  और २०११ को कह गया देंखेगे तुम क्या करते हो?
         मुझे नेताओ में राज ठाकरे ही अच्छा लगे और वह भी भारतीय लोकतंत्र में .उन्हें मै सलाम करता हूँ,जिसने कम से कम दो तीन उत्तरी राज्यों को सोंचने के लिए मजबूर तो किया की अपने राज्य की उन्नति करो.अन्यथा इस मुंबई में नो रूम.इसका जीता जगाता उदाहरण हमारे सामने बिहार खड़ा है ,जिसे श्री नितीश कुमार जैसा लीडर मिला.जिसने बिहार के नब्ज को पहचाना और उसके तरक्की की ओर ध्यान देना शुरू किया आज बिहार तरक्की  की ओर अग्रसर हो गया है.दूसरी तरफ सुश्री मायावती भी सोंचने के लिए बाध्य हो गई है.जी हाँ उत्तर भारत के राज्यों के कर्ण धारों को अपने राज्य की उन्नति  के लिए आगे आना होगा ,उन्नतिगामी हो कर ,राज ठाकरे को जबाब देना होगा,
           मै तो समझता हूँ की उत्तर के राज्यों के लोग अनुशासन का पालन करें.सरकार को उंनती की प्रयासों में मदद करें.साधन की सफलता उसके उपयोग करता  के ईमानदारी पर निर्भर करता है.सरकार अपने राज्यों में चौबीसों घंटे बिजली  मुहैया  कराये ,जिससे सभी लोग आधुनिक प्रसाधनो का इस्तेमाल कर सके .और चारो तरफ रात-हो या दिन ,दीपावली हिनजर आये.जैसे सभी की इच्छा हो की फ्रिज या टीवी रखु,पर करंट न रहने से ऐसा संभव ही नहीं है.कल-कारखाने ठीक से कम ही नहीं कर सकते.वगैरह-वगैरह....
     आषा है आज की सरकार पिछली परेशानियो को निरस्त कर, गरीबो के उत्थान के लिए ज्यादा गंभीर  होगी,तभी हम कह सकते है नव-बरस मंगल मय हो.अनुशासन ही देश को महान बनाता  है.

Friday, December 31, 2010

नव -वरस मंगल मय...हो......


             नव -वरस मंगल मय...हो.......

         (  मै अपने इस ब्लॉग की महता को नाम के प्रतिकूल  नहीं चाहता . जीवन की सार्थक और  असीम गरिमा अवश्य जिन्दा  रहेगी.आज सोंचा शीर्षक ही लिख दूँ.कहानी जरूरत नहीं ,सो बैठ गया.कम लिखना ,ज्यादा समझना जैसे शब्द दो-तीन दशक पहले लोग चिट्ठी-पत्तियों में प्रायः लिखा करते थे और मैं भी इस  शब्द का इस्तेमाल किया करता था.दक्षिण में आने के पूर्व,मेरे हिंदी बहुत अच्छे थे.अभी  मिलावटी हो गया है.अब हिंदी ब्लॉग को जैसे-जैसे पढ़  रहा हूँ....,हिंदी फिर सुधर रही है.सच्ची बातो को सुनना और लेख में शामिल करना ,मेरी शत प्रतिशत इच्छा रही है). आए अब .....................             ...............जीवन.............................................................
          जड़.....................................................................
         बिकास.................................................................
             जन्म................................................................
          बचपन.................................................................
            शिक्षा................................................................
             जवानी...........शादी........दुनियादारी.....................
          अनुशासन/दुशासन................................................
          अभिलासा............................................................
              ब्याभिचार........................................................
           आशा/निराशा......................................................
          सरकारी/बेसरकारी................................................
          लूट/परोपकार.......................................................
           ढलान................................................................
         रेल/जेल...............................................................
        बुढ़ापा..................................................................
           कोना.....................और.....................................
        हसना /रोना..........................................................
          करम./धरम.........................................................
         मृत्यु ...............और................वह भी.....................
       अकेला...............जिसके   लिए  जिया,,,,,....................
    कोई  साथ   न  आया..................................................
     पीछे के कल ............................................................
         याद  है ...............................................................
     आने  वाला  कल....... किसने  देखा  है.?........................
        अनुशासन   अपना कर ...........................................
     इस  कल  .....नव  बरस     को   .....................................
      सफल   और   सुदृढ़   बनाना   है..................................
   नव-वरस मंगलमय  हो.................................................
      

Wednesday, December 29, 2010

बैंक ................

बैंक ................,जी हाँ......आज बैंक की उस घटना की याद आ गई, जब मुझे  एक बैंक ओफ्फिसियल  से झगड़  हो गया था.क्यों की कुछ दिनों पूर्व एक ब्लॉग में बैंक कर्मचारियो  के बारे में निंदा  की गई थी, समय अभाव के वजह से, बराबर अपने ,बालाजी ब्लॉग पर पोस्ट नहीं दे पाता हूँ.अत आज लिख रहा हूँ........
              घटना ........तारीख  ०७-१२-२०१०  की है जब मै स्टेट बैंक आफ इंडिया की शाखा में ,एस .यम.एस अलर्ट एक्टिवेट करने गया था.मै इसके लिए अलग से एक अप्प्लिकैसन लिख कर ले गया था.काउंटर पर वैठा हुआ ओफ्फिसियल  ,उस अप्लिकासन को अस्वीकार कर दिया  तथा एक प्रिंटेड अप्लिकेसन देते हुए कहा की इसे भरे और जमा करे.मैंने उसके मुताबिक ही  अनुशरण किया.अप्लिकेसन जमा करने के समय ,मैंने उस ओफ्फिसियल को कहा की कृपा कर मेरा इ-मेल भी मेरे अकाउंट में इन्ट्री कर दें. उसने मुझे ऐसा शब्द कहते हुए इंकार किया की मै यहाँ प्रस्तुत करना नहीं चाहता.
            खैर बातो-बातो में बात बढ़ गई ,मै इस मामले को साधारण रूप से लेना / छोड़ना उचित नहीं समझा क्यों की उस ओफ्फिसियल की आदत बढ़ जाएगी और वह भाबिष्य में किसी और के साथ वैसा ही व्यवहार कर सकता है.जो मुझे पसंद नहीं.अतः मैंने कम्प्लेन बुक की मांग रखी .वह थोडा सकपकाया ,पर अब  करता क्या.मैंने जिद कर ली थी की बिना कम्प्लेन किये नहीं जाऊंगा.अंत में उसे कहना पड़ा की कम्प्लेन बुक चीएफ़ मैनेजर के पास है,अत मै चीएफ़ मैनेजर के केबिन में पहुँच गया.पूरी बातो का खुलासा मैनेजर के सामने की.मैनेजर उस ओफ्फिसियल को अपने केबिन में बुलवाया और काफी  झाड़ दी और आईंदा किसी ग्राहक के साथ, दुबारा न हो , की हिदायत दी.
           मैनेजर मुझसे शिकायत न लिखने का निवेदन भी किया और कहा आप जाएँ,अब वह ऐसा किसी के साथ नहीं करेगा.नया -नया भर्ती हुआ है ,सिख जायेगा .मै भी मान गया .
           यहाँ प्रश्न उठता है की ऐसी परिस्थितियों में क्या करे ?    मेरा जबाब और अनुभव कहता है की इस तरह की या किसी भी सरकारी कर्मचारी के बारे में ,अगर आप को किसी प्रकार की असुबिधा हो तो तुरंत अपनी शिकायत कम्प्लेन बुक में दर्ज करें.आप ये न सोंचे की वह बिभाग कोई उचित कार्यवाही नहीं करेंगा.किसी भी तरह के कम्प्लेन के ऊपर उसके सीनियर जरुर कार्यवाही करते है.आवश्यकता हुई तो इस कार्यवाही की सूचना आप को भी दी जाती है इस लिए अपना पोस्टल एड्रेस जरुर दें..इससे उस सरकारी बिभाग की निरपेक्षता जाहिर होती है.अतः हमें सरकारी काम-काज में पारदर्शिता लाने के लिए कम्प्लेन बुक का भरपूर इस्तेमाल करनी चाहिए.
            

Tuesday, December 14, 2010

जानवर............

जानवर............इन्सान की हर बातो को समझते है,इस तस्बीर में देंखे-बन्दर कितने प्यार भरी निगाहों से कुछ पाने के लिए उत्सुक  है,पर तत्पर नहीं.उसके दो पैरो पर खड़ा होना ,कितने प्यारे है.लगता है वह अब कुछ कहने वाला ही है.बिन आवाज भी बहुत कुछ कहा जा सकता है.बस जरुरत है -अपनत्व की.अपना बना लेने की.