जीवन में हर मोड़ पर ..किसी न किसी निर्णय को लेना या करना पड़ता है !राम ने पिता के आज्ञा को पालन करने का निर्णय लिया था !दसरथ ने कैकेयी के वर और अपने वचनों के पालन का निर्णय लिया था ! लक्षमण ने राम के साथ वन जाने का निर्णय लिया था ! सीता ने पति धर्म निभाते हुए ...पति के साथ वनवास जाने का निर्णय लिया था ! रावण ने सीता का अपहरण करने का निर्णय लिया और यह एक घोर और भीषण लडाई का कारण बना था !बिभीषण ने न्याय का पक्ष लेने का निर्णय किया और घर के भेदी जैसे शुभ नाम से जाना जाने लगें ! राम भक्त हनुमान ने अपने ईस्ट देव / प्रभु राम का साथ देने का निर्णय किया !
महाभारत में देंखे तो युधिष्ठिर ने लडाई से परे रहने का निर्णय लिया ! दुर्योधन ने एक इंच भी जमीन पांडवो को न देने का निर्णय किया और एक लम्बी युद्ध को निमंत्रण दे बैठा ! कृष्ण ने पांडवो का पक्ष लिया , यह भी एक योग रूपी निर्णय था !
हर निर्णय को देंखे तो हमें दो रूप ही दिखाई देते है !
पहला - परोपकार हेतु निर्णय और
दूसरा- स्वार्थ वश !
इसी धुरी पर केन्द्रित निर्णय ..हमें रोज जीवन में लेने पड़ते है ! भुत , वर्त्तमान और भविष्य ...कोई भी काल क्यों न हो हमेशा एक न एक निर्णय के साए में ही ...फला और पनपा है ! सभी दृस्तियो में निर्णय ही भावी रहा है !
ज्यादा शब्द बोझ न देते हुए ...संक्षेप में इस कड़ी को पूरी करना चाहता हूँ !
मै दोपहर को सो कर ही उठा था और टी.वि.देख रहा था , तभी बरिष्ट लोको इंस्पेक्टर जनाब ताज्जुद्दीन का फ़ोन आया ! उन्होंने कहा की जल्द चार पास पोर्ट साइज़ फोटो लेकर ऑफिस में आ जाईये !
मैंने पूछा -क्यों ?
"अरे यार आओ ना " चुकी बैच मेट है , इसीलिए उन्होंने भी सहज रूप में जबाब दिया ! मै थोड़ा घबरा सा गया ! आखिर कौन सी बात आ टपकी ! सर्टीफिकेट का मामला हो सकता है - मैंने सोंचा ! उन्होंने जिद्द कर दी ,अतः मै चार फोटो के साथ ऑफिस में चला गया !
फोटो देते हुए फिर पूछा -" सर मेरे प्रश्न का जबाब नहीं मिला है ?
' यू आर सलेक्टेड फॉर जी .एम्. अवार्ड ! उन्होंने तुरंत जबाब दिया !
" मै नहीं मानता ,भला मुझ जैसे निकम्मे को जी.एम्. अवार्ड कौन देगा ? " - मैंने ब्यंगात्मक भाव से पूछा ! " बिलकुल सच ,यार !" जबाब मिला !. यह घटना मार्च माह के प्रथम वीक की है !
तारीख ०८-०४-२०११ को मै रेनिगुन्ता से सुपर -१२१६४ काम करके आया और आगे जाने वाले लोको पायलट को ट्रेन का कार्यभार सौप रहा था! देखा - बरिष्ट लोको इंस्पेक्टर श्री मुर्ती जी चले आ रहे है ! वे मुझसे उम्र में बड़े है तथा नौकरी में भी बरिष्ट ! आते ही मुझे - " congratulation " कहा !
मैंने पूछा - किस बात का सर ?
आप का नाम जी.एम्.अवार्ड के लिए अनुमोदित हो गया है ! १३ अप्रैल / ११ अप्रैल को दिया जाएगा ! मैंने कुछ नहीं कहा ,सिर्फ धन्यबाद के !
मैंने इस बात की जानकारी अपने मुख्य कर्मी दल नियंत्रक श्री जे.प्रसाद को दी ! इसके बाद से ही मेरे प्रति षडयंत्र शुरू ! दुसरे दिन मेरे लोको इंस्पेक्टर जनाब ताज्जुद्दीन ने बताया की - " दुःख के साथ कहना पड रहा है की आप का नाम जी.एम्.अवार्ड से बंचित हो गया ! इसके पीछे साजिश काम कर गया !" मुझे भी इस समाचार को सुनकर दुःख हुआ !
मै १२६२८ कर्नाटका एक्सप्रेस तारीख १३-०४-२०११ को काम करके आया था और स्नान वगैरह कर सोने की तैयारी में था , तभी गदिलिंगाप्पा ( मुख्य कर्मीदल नियंत्रक / गुड्स ) का फ़ोन आया ! उन्होंने कहा की आज डी.आर.एम्.अवार्ड रेलवे इंस्टिट्यूट में दिया जाएगा और आप का भी नाम शामिल है !मैसेज संख्या -१३ /०४ /२५ है ! आप इंस्टिट्यूट में जाकर इसे ग्रहण करें !
मैंने कहा -ओ.के .और फ़ोन रख दिया ! रात भर ट्रेन चलाने की वजह से नींद आ रही थी अतः सो गया ! यह निर्णय कर की -मै इस अवार्ड को बहिष्कार करूंगा !
जी हाँ ,उस दिन मै सो नहीं सका क्यों की बार - बार सभी लोको इंस्पेक्टरों की रेकुएस्ट भरी फ़ोन आती रही की आप आओ और इस अवार्ड को ग्रहण करें ! मैंने जिद्द कर ली थी और उन लोगो को कहला दिया की मै अवार्ड का भूखा नहीं हूँ ! कृपया मुझे माफ करें! मेरे सर्टिफिकेट को लोब्बी में रख दे तथा जो कैश है उसका स्वीट खरीद कर गरीबो में बाँट दे !
साजिस = जैसे ही कुछ लोको इंस्पेक्टरों और मुख्य शक्ति नियंत्रक को मालूम हुआ की मुझे जी.एम्.अवार्ड मिलने वाला है , त्यों ही उन्होंने एक यूनियन की मदद से उसे तुरंत खारिज करवा दिए ! इस तरह से उस अवार्ड की अस्मिता लूट गयी ! इन भ्रष्ट लोको इंस्पेक्टरों और यूनियन के समूह ने मिल कर इस अवार्ड को मौत के घाट उतार दिया !वह मेरी न हो सकी !उससे मै बंचित रह गया !उसकी अस्मिता वापस लाने के लिए ,डी.आर.एम्.ने तारीख १३-०४-२०११ को रेलवे इंस्टिट्यूट में बुलवाएँ !
इस घिनौनी हरकत और अन्धो के बीच अपनी नाक कटवा दूँ ! यह मुझे गवारा नहीं था ! अतः मैंने इसे लेने से इनकार कर दिया ! आज - कल ..सरकारी क्षेत्र में अवार्ड अपनी अस्मिता बचाने के लिए ...वैभव और स्वर्ण वेला के लिए , मौन मूक तड़प रही है ! ठीक चातक की तरह ...इसी आस में की अमावश की रात कटेगी और पूर्णिमा की चाँदनी रात जरुर आएगी !
मेरे इस निर्णय को पूरी तरह से सराहा गया ! यह मेरे जीवन की अविस्मर्णीय घटना बन गयी है ! चोरो का मुह काला हो गया है !