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Monday, October 10, 2011

दक्षिण भारत - एक दर्शन

दशहरे की धूम आई और चली गयी !सभी ने अपने - अपने ढंग से इस पर्व को मनाया ! रेलवे की बोनस -हंगामा और गुहार करने के बाद भी , कैस के रूप में ही अदा हुयी , कुछ ज़ोन में अपील करने वालो की बोनस - सीधे उनके बैंक खातो में भेंज दी गयी ! जैसे दक्षिण - पश्चिम रेलवे , पश्चिम -  केन्द्रीय रेलवे और कई रेलवे ! घुश खोर और चापलूस रेलवे   प्रशासन ने  चापलूस मान्यताप्राप्त रेलवे के नेताओ की ही सुनी ! यह बहुत बड़ी बिडम्बना है ! झूठ के आगे -सत्य हारते   जा रहा है ! इस देश को-  अगर इश्वर है , तो वही इसकी रक्षा करेंगे ! आज - कल सत्य वादी लाचार और असहाय हो गए है ! 
                                                मदुरै रेलवे स्टेशन का सुन्दर बाहरी दृश्य !
मैंने एक माह पूर्व ही  दक्षिण - भारत की यात्रा की मनसा बना ली थी अतः रेलवे में सुबिधानुसार रिजर्वेसन भी करा लिया था  ! किन्तु टिकट द्वितीय दर्जे के वातानुकूलित - में वेट लिस्ट में ही था ! मंडल हेड क्वार्टर में होने के नाते मुझे भरोसा था की टिकट को इमरजेंसी कोटा में कन्फर्म  करा लूँगा ! यात्रा के प्रारूप इस प्रकार से थे--
गुंतकल से  मदुरै , मदुरै से कन्याकुमारी और कन्याकुमारी से वापस गुंतकल ! 

बारी थी --गुंतकल से मदुरै जाने की ! यात्रा  के दिन सुबह मैंने अपने बड़े पुत्र  रामजी  को इमरजेंसी कोटा में आवेदन  देने के लिए कह दिया था ! उन्होंने ऐसा ही किया ! ट्रेन संख्या थी - १६३५१ बालाजी एक्सप्रेस ( मुम्बई से मदुरै जाती है ) !  गुंतकल सुबह चार बजे आती है ! लेकिन लिपिक ने बताई की- इस ट्रेन में कोई  भी इमरजेंसी कोटा नहीं  है ! मेरे पुत्र  साहब घर वापस  आ गए  और नेट में तात्कालिक स्थिति की जानकारी ली  ! पाया की अब वेट लिस्ट -१,२,३,और ४ है ! किन्तु चार्ट नोट प्रिपेयर  ! मुझे मेरे दफ्तर से छुट्टी पास हो गयी थी ! शाम को बाजार  से वापस आया और बालाजी से पूछा की आप के  भैया जी कहा गए है ?

 बालाजी ने कहा - " भैया बुकिंग आफिस में गए है !  पता करने की -कहीं चार्ट सबेरे तो नहीं आएगा ? "
उसी समय रामजी भी आ गए ! उन्होंने मुझे सूचना दी की- "  खिड़की के लिपिक ने साढ़े आठ बजे फिर पता करने की इतला दी है  ! चार्ट आठ बजे पूरा हो जायेगा ,जब पुरे भारत के रिजर्वेशन खिड़की बंद हो जायेंगे !"
रामजी ने कहा की मै यात्रा पर नहीं जाऊंगा !  मुझे प्रोजेक्ट वर्क करने है ! सभी के विचार  कमोवेश यही थे ! बालाजी के मन में उदासी घेर गयी ! आखिर बच्चे  का मन जो ठहरा ! मैंने  मन ही मन साई बाबा के नाम को याद किया ! मैंने भी सभी को कह दिया की यात्रा शंका के घेरे में है ! छुट्टी रद्द करनी पड़ेगी ! प्रोग्राम रद्द समझे !

समय की सुई आगे बढ़ी , बालाजी ने याद दिलाई - डैडी .. पि एन आर देखें , समय हो गया ! साढ़े आठ बज रहे थे ! रामजी जो नेट पर ही वैठे थे -- पि.एन.आर.को चेक किये और पाए की  तीन बर्थ कन्फर्म हो गए है ! सभी के चेहरे ख़ुशी से झूम उठे ! फिर क्या था --अपने -अपने सामान सूट केश में रखने की तैयारी होने लगी ! सिर्फ रामजी के चेहरे पर मंद - मंद ख़ुशी दिखी ! हम दोनों  ने फिर रामजी से पूछा की आप के क्या विचार है ?  उन्होंने कहाकि आप लोग यात्रा पर जरुर जाएँ , मेरे बारे में चिंता न करें ! फिर कभी मै अपने दोस्तों के साथ पिकनिक पर निकालूँगा !

दुसरे दिन समयानुसार हम स्टेशन  पर पहुंचे ! रामजी हमें छोड़ने आयें ! ट्रेन समय से आई ! ट्रेन में दाखिल होने पर हमने पाया की -हमारे सभी नॉमिनेटेड बर्थ ओकुपयिड है ! टी.टी.इ साहब आयें ! हमने अपने बर्थ को खाली कराने को कहा -तो उन्होंने हमसे कहा की आप लोग एक बर्थ ले लें और दो छोड़ दे ! मेरे बड़े पुत्र राम को गुस्सा आ गया ! हम तीन व्यक्ति यात्रा पर जा रहे है और आप बर्थ छोड़ने को कह रहे है , वह भी रात को जब सोने का  समय है ! बेचारा टी.टी इ झक मार कर रह गया ! शायद कमाई मार गयी ! इस तरह  से पहले दिन की यात्रा शुरू हुयी !
                                    यात्रा के दौरान  बालाजीअपने मम्मी के गोद में मुहं छुपाते हुए !

यात्रा के दौरान मेरे असोसिएसन के लोगो ने फोन कर मुझे बताया की - मेरे ठहरने का इंतजाम मदुरै में कर दिया गया है ! किन्तु मैंने कहा की मुझे रिटायरिंग रूम ही चाहिए !( होलीडे होम भी बुक करना चाहा था , किन्तु उस दिन खाली नहीं था ! ) रात को साढ़े बारह बजे मदुरै पहुंचे ! यह मेरी दूसरी यात्रा मदुरै की थी अतः कोई असुबिधा नहीं हुयी ! मै ट्रेन से उतर कर  सीधे रिटायरिंग रूम के काउंटर पर गया ! सूचना मिली की आप को रूम सुबह ही मिलेगा ! अभी आप एक बेड वाले रूम में पनाह ले ! हमने भी ऐसा ही किया ! सुबह ६ बजे उन्होंने ही हमारे नींद में दखल किया और दो बेड वाले रूम में जाने के लिए आग्रह किया !
                   रेलवे का रिटायरिंग रूम और सोफे पर - बालाजी आराम करते हुए ! बहुत थक गए है !

 मदुरै रेलवे के   रिटायरिंग रूम  में अति सुन्दर व्यवस्था ! जो प्रायः सस्ते और आराम दायक लगा ! दो बेड , तीन टेबल , चार कुर्सी, दो लोगो को एक साथ बैठने वाला सोफा , रेडिंग  लेम्प , साफ - सुथरा बाथ रूम , ड्रेसिंग  टेबल और टायलेट ....सिर्फ साढ़े चार सौ प्रति चौबीस घंटे के लिए ! सुबह चाय या काफी और तमिल / मलयालम / इंगलिश - पसंदीदा अखबार फ्री सपलाई ! कमरा  भी बड़ा ! मुझे बहुत जंचा ! अगर कभी आप जाये तो इधर ही तशरीफ लें ! अच्छा रहेगा !
मीनाक्षी मंदिर - ऊपर सोने का गुम्बद जो दिखाई दे रहा है , उसके अन्दर ही माँ / देवी की प्रतिमा है !
आठ बजे के करीब , हम पूरी तरह से तैयार हो कर - मीनाक्षी देवी के दर्शन और पूजा हेतु मंदिर की तरफ प्रस्थान किये ! मंदिर अपने आप में बहुत ही भव्य है ! मंदिर के चारो ओर की ऊँची बड़ी सुन्दर मीनारों की कतार प्रान्त भूमि की हरियाली से बहुत ही मनोरंजक मालूम पड़ती है ! सभी बहार से आने वाले दर्शक इसे देख मन्त्र - मुग्ध हो जाते है ! भक्त लोग पूर्वी भाग से ही मंदिर में प्रवेश करते है ! कारण यह है की सबसे पहले देवी मीनाक्षी और फिर सुन्दरेश्वर ( शिव ) के दर्शन करना  तो प्रथा बन गयी है ! 
                   मीनाक्षी मंदिर के अन्दर तालाब में - स्वर्ण कमल ! तालाब में पानी नहीं है !
मंदिर के ध्य में ही एक  तालाब है !  जिसे सोने का तालाब कहते है क्यों की इसके अन्दर सोने का बना हुआ - कमल का फूल है ! कहा जाता है की इन्द्र जी पूजा के लिए यही से सोने का फूल तोड़ते थे ! यह भी कहा गया है की मदुरै शहर भी कमल के फूल जैसा ही है ! मंदिर के अन्दर अष्ट शक्ति  मंडप , मीनाक्षी नायक मंडप स्वर्नापद्म जलाशय  , झुला मंडप ,श्री मीनाक्षी की प्रतिष्ट ,विनायक जी , श्री शिव जी का स्थान ,मीनारे , संगीत स्तंभ ,अलगर मंदिर  देखने योग्य है !

                               मीनाक्षी मंदिर के अन्दर का एक दृश्य और सुन्दर पेंटिंग , मनमोहक !
    नवमी के दिन एक घंटे तक बारिश हुयी और मंदिर के चारो और पानी भर गया ! दर्शक परेशान
                                                             मंदिर का एक   नमूना

कहते है केवल शिव जी की प्रतिमा व् चारो और का अहाता सातवी सदी से बसा हुआ था ! देवी मीनाक्षी का मंदिर बारहवी सदी में बनवाया गया !मंदिर का अधिकांस भाग , जो अभी है बारहवी और चौदहवी सदी के अन्दर निर्मित हुआ ! मदुरै त्योहारों का शहर है !बिना त्यौहार का कोई महिना नहीं गुजरता है !चैत्र , श्रवण और पौष माह के त्यौहार बहुत मुख्य है ! मदुरै शहर दक्षिण की तरफ आने वाले हर यात्री के मन को भर देता है !मीनाक्षी मंदिर तमिल संस्कृति का एक सुन्दर जीता - जगाता उदहारण  प्रस्तुत करता है ! मदुरै शहर दक्षिण दर्शन का केंद्र बिंदु है ! यहाँ से दक्षिण के सभी तीर्थ करीब है और आसानी से जाया जा सकता है !  और ज्यादा जानने के लिए  यहाँ जा सकते है - मेरी पहली यात्रा .. kuchh aur 
  पोस्ट लम्बा हो रहा है , अतः अब आज्ञा दें  - अगली यात्रा रामेश्वरम  की !


Sunday, September 11, 2011

नीति का ईश - आज का बिहार

   कल यानि दिंनाक - १० वी सितम्बर २०११ को सोलापुर में था !  " टाईम आफ इण्डिया " में एक आर्टिकिल पढ़ा ! देखा की बिहार सरकार ने एक आई .ये.एस अफसर के द्वारा अर्जित और धोखे धडी से कमाई हुई -सारी  सम्पति को कोर्ट की इजाजत के बाद सील कर दिया ! इतना ही नहीं - अब उस तीन मंजिले हाई - फाई ईमारत में स्कुल चलने लगा है  क्योकि बिहार सरकार ने उस सम्पति को स्कुल के हवाले कर दिया है ! यह कदम नीतीश कुमार जी ने पहले ही उठाने के लिए कह दिया था !नितीश कुमार जी का यह कदम भारतीय राजनीति में सराहनीय कार्य है ! जो उनके दूरदर्शिता के परिचायक और स्वस्थ शासन का एक मिशाल है ! पूरी रिपोर्ट अंग्रेजी में पढ़े ! नीचे  उपलब्ध है ! बड़ा करने के लिए तस्वीर  पर क्लिक करें -


  ( एक छोटा सा निवेदन - कृपया दिए हुए लिंक पर जाएँ और मेरे ८३ वर्ष के काकाजी को फोल्लोवेर बन कर उत्साहित  करें ! धार्मिक विचार वाले है और अपने अनुभव लिखने में माहिर ! एक बार प्रयास करके देंखें -धन्यवाद -लिंक--hanuman



Wednesday, August 24, 2011

प्यारा सर्प ,मेरी पत्नी और बालाजी

                         उस पहाड़ी के ऊपर तिरुमाला मंदिर स्थित है !रेनिगुनता से ली गयी तस्वीर !
अक्षराज जी को कोई संतान न थी ! एक दिन सुक जी ने उन्हें सुझाव दिया की महाराज - आप पुत्र -कमेष्टि यज्ञं  करे तथा खेत में हल चलाये ! अक्षराज जी ने ऐसा ही किया ! खेत में हल चलाते  वक्त ,एक संदूक मिला ! उन्होंने देखा की उस संदूक में एक लड़की है ! अक्षराज ने उस लड़की को पल-पोस  कर बड़ा किये ! लड़की का नाम पद्मावती   रखा  गया !


  अक्ष राज ने पद्मावती की विवाह के लिए योग्य वर की तलास शुरू की ! वृहस्पति और सुक महर्षि से राय -विमर्श किये ! श्रीनिवास को इसके लिए  सुयोग्य करार दिया गया ! विवाह पक्की हो गयी ! श्रीनिवास के पास शादी के  लिए धन का आभाव था ! ब्रह्मा और महेश ने कुबेर से उधार  लेने का प्रस्ताव रखा ! कुबेर उधार देने के लिए   राजी हो गए ! ब्रह्मा और महेश  ने अस्वाथ  बृक्ष के निचे पत्र  पर गवाह  के तौर पर हस्ताक्षर किये ! ब्रह्मा महेश और सभी देवो के उपस्थिति में श्रीनिवास और पद्मावती का विवाह संपन्न हुए ! इस तरह से यह भू - लोक , देव लोक में बदल गया ! शादी के बाद सुक  महर्षी  और लक्ष्मी देवी कोल्हापुर को चले  गएँ  !

        अब बकाया धन - कुबेर को वापस करने की बारी आई ! पद्मावती ने लक्ष्मी जी को बुलाने के लिए कहा ! अतः श्रीनिवास जी कोल्हापुर गए ! वहा लक्ष्मी जी न मिली ! श्रीनिवास जी ने कमल का फूल रख तपस्या और लक्ष्मी जी को ध्यान करनी शुरू की ! लक्ष्मी जी उसी कमल के फूल से  कार्तिक पंचमी को ( कार्तिक  पंचमी को लक्ष्मी जी की विशेष पूजा होती है ) बाहर निकली ! श्रीनिवास ,ब्रह्मा और महेश के सुझाव पर लक्ष्मी जी आनंदानिलय को प्रवेश की ! इस प्रकार लक्ष्मी जी धन और समृधि  की दात्री  बन गई ! इनके मदद से श्रीनिवास जी ने कुबेर के कर्ज को अदा करना शुरू किये ! लक्ष्मी जी जब जाने लगी तो - श्रीनिवास जी ने उनसे आग्रह किया की आप यही रहे ! आप की मदद से मै कलियुग तक कुबेर के कर्ज को वापस कर दूंगा ! 


 इसी आस्था के अनुरूप -आज भी भक्त -गण तिरुपति के बालाजी / श्रीनिवास मंदिर में दान देने से नहीं हिचकिचाते क्यों की श्रीनिवास जी उन्हें सूद के साथ वापस दे देंगे ! जो गरीब है वे पैसे न होने की परिस्थिति में अपने सीर के बाल  , मुंडन हो, दे  देते है ! सभी की यही आस रहती है की जितना ज्यादा हुंडी में डालेंगे - उतना ही ज्यादा बालाजी देंगे ! यह धारणा , आज तक चली आ रही है ! इसीलिए यह मंदिर भारत का एक अजूबा ही है ! जिन खोजा , तिन पाईय ! जैसी सोंच , वैसी मोक्ष !


मै १९९६ से १९९९ दिसम्बर तक पकाला  डिपो   में लोको पायलट ( पैसेंजर ) के रूप में   कार्य  किया था ! पकाला से काट  पाडी , धर्मावरम   और तिरुपति  तक  ट्रेन   लेकर जाना पड़ता था ! पकाला से तिरूपती महज ४२ किलो मीटर है ! अतः जब मर्जी तब बालाजी के दर्शन के लिए सोंचने नहीं पड़ते थे ! सुबह   नहा -धोकर निकलो और शाम तक वापस ! बहुत ही लोकप्रिय जगह था ! बालाजी सर्प के फन और  उसके कुंडली भरी सैया पर विराजमान होते है ! यह संयोग ही है -कि इस क्षेत्र में या चितूर जिले में ( इसी जिले में तिरुपति शहर है ) सर्प प्रायः बहुतायत में देखने को मिलते है ! मैंने अन्य जगहों में ऐसा नहीं देखा,  न ही अब तक पाया   है !


इस  पोस्ट को ज्यादा लम्बा नहीं करना चाहता ! आयें विषय  पर लौटें  ! मै धर्मावरम  से पकाला- ट्रेन संख्या - २४८ ले कर आया था ! अपने निवास  पर आ स्नान वगैरह कर , चाय - पानी के इंतजार में टीवी पर सोनी चैनल  देखने लगा था ! पत्नी जी चाय लेकर आई  और  चाय देते हुए कहने लगी -- " आज  मै मरने से बच गयी !" मेरे मुह से तुरंत निकला - " ऐसा क्या हो गया जी ! "
 इसके जबाब में  पत्नी जी ने क्या कहा ?  आप उनके शब्दों में ही सुने - 





" मै  सोनू  ( यानि बड़े बेटे राम जी का प्यारा नाम , जो उस समय चौथी कक्षा में पढ़ते  थे   )  को  स्कुल में खाना खिलने के बाद  (दोपहर को) यही पर चटाई के ऊपर लेट गयी थी ! कब नींद आ गयी , मालूम नहीं ! सोयी रही , करवट बदलती रही ! कभी - कभी केहुनी और हाथ से कुछ स्पर्स होता था - ठंढा सा महसूस हुआ ! सोयी रही ! कानो में कुछ हलकी सी हवा जैसी आवाज सुनाई दे रही थी , जैसे कोई फुफकार रहा हो ! ध्यान नहीं दी ! सोयी रही ! बार - बार ठंढी और कोमल चीज के स्पर्स से अनभिग्य ! अचानक नींद टूट गयी ! उठ बैठी ! जो देखी - उस दृश्य पर विश्वास नहीं हो रहा  ! तुरंत शरीर  में , काठ समा  गया ! कूद कर पलंग पर चढ़ गयी ! देखा - दो मीटर का लम्बा   सांप ठीक मेरे बगल में मुझसे सट कर सोया हुआ है ! किसी मनुष्य की तरह - सीधे ! उसकी पूंछ  मेरे पैर की तरफ और मुह मेरे सिर के करीब ! तुरंत पुजारी अंकल को खिड़की से मदद के लिए पुकारी  ! ( मेरा निवास रामांजयालू मंदिर से सटा हुआ था ! खिड़की के पीछे पुजारी , अपने परिवार के साथ रहते थे )


                                                      मंदिर के पुजारी और रामजी !
 पुजारी  और  उनके  सभी   लडके  दौड़े आये !  तब - तक वह सर्प रेंगते हुए - टीवी के ऊपर जाकर ,अपने फन को फैला हम सभी को देख रहा था ! सभी हतप्रभ थे ! किसी ने कहा - इसे मारना जरा मुश्किल है !  लड़को ने पूछा  - आका इने एम् चे लेदा कदा ? ( बहन -इसने कुछ किया है क्या ?) मैंने  सारी घटना को जिक्र कर कहा - इसने मुझे कुछ नहीं किया है ! सभी ने उसे बाहर जाने का आग्रह किया ! किसी की हिम्मत साथ नहीं दे रही थी ! पुजारी - जो उम्र में करीब ६०/६५ वर्ष के थे , ने एक बड़ा लट्ठ लेकर उसे मारने  चले ! मैंने उनके हाथ पकड लिए - - अंकल मत मारिये ? नहीं - नहीं  बहुत खतरनाक सांप है - उन्होंने कहा !  पुजारी अंकल नहीं माने ! सर्प के टीवी से नीचे उतरते ही  उन्होंने जोर के वार किये और दो मीटर का सर्प घायल हो गया ! तुरंत सभी ने मिल कर उसे मार डाला ! काफी हुजूम भी जुट गया था ! क्यों की दोपहर के करीब तीन बजे की बात थी ! पुजारी के लड़को ने कहा की इसे इसी तरह रख दिया जाय  ! अंकल आएंगे तो देखेगे ! किन्तु फिल्मी स्टाईल में सभी ने तुरंत जला देने की सिपारिश की ! तो उस सर्प को लकड़ी के चीते पर रख जला दिया गया ! चलिए उसके राख को दिखा  दूँ !"
    पत्नी के मुख से इतना सुन मै अवाक् रह गया ! मेरे रोंगटे खड़े हो गए ! बहुत ही संवेदन  शील और पूछ बैठा - तुम्हे सुंघा -ऊंघा तो  नहीं है ? चलो नया जन्म हो गया ! पत्नी को सर्प  मरण -दो -तीन दिनों तक सालता रहा ! उस प्यारा सर्प ने कुछ नुकसान  नहीं किया था !

१९९९ दिसंबर में  मुझे लोको पायलट ( मेल ) की पदोन्नति हुयी और पोस्टिंग गुंतकल डिपो में मिली ! मै पकाला  से गुंतकल सपरिवार आ गया ! यहाँ आने के बाद पता चला की पत्नी को गर्भ है ! सकुशल -मंगल से २७ अगस्त २००० , दिन -रविवार , समय -सुबह ६ से ७ बजे के बीच ,सिजेरियन आपरेशन के बाद , मेरे बालाजी का आगमन हुआ !  वजन -ढाई किलो के ऊपर ! पत्नी जी को अस्पताल  में एक सप्ताह से ज्यादा रहना पड़ा था ! एक दिन की बात है मेरी मम्मी , (जो देख - रेख के लिए  गाँव  से यहाँ आई हुयी थीं  ,) अस्पताल में बालाजी को गोद में लेकर हलके - हलके डोला रही थी --अचानक बोल बैठी - समझ में नहीं आ रहा है ये ( बालाजी ) क्यों सांप जैसा जीभ बार - बार बाहर  निकल रहा है ! ऐसा तो कोई बच्चे नहीं करते है ! मैंने   भी कभी ध्यान नहीं दिया था ! देखा- बात सही थी ! 

 जी हाँ , बिलकुल ठीक  ! बालाजी जन्म के बाद से दो - तीन माह तक अपने जीभ को सांप जैसा बाहर लूप-लूप कर निकालते रहते थे ! बाद में पत्नी ने माँ को पकाला वाली घटना बताई ! माँ ने कहा - " लगता है , वही जन्म लिया है क्या ? " अचानक सभी के सोंच में परिवर्तन ....कुछ बिचित्र सा लगा ! अंततः हमने   भी विचार   किया की इस  पुत्र का नाम - साँपों  की शैया पर आसीन ..तिरुपति बालाजी के नाम पर बालाजी ही रखा जाय     ! कितना संयोग है - बालाजी जिस अस्पताल में जन्म लिए, उस अस्पताल का नाम " पद्मावती नर्सिंग होम " है !


     कहानी यही ख़त्म नहीं होती ! सज्जनों हमने बालाजी में ऐसी बहुत सी क्रिया - कलाप देखी है जो माँ के कथनों को  उपयुक्त  करार देती है ! ( इस सन्दर्भ में  और बहुत कुछ , हमने देखा  था और अनुभव किया  है , यहाँ मै उन घटनाओ को नहीं रखना चाहता - इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ! ) अब भविष्य में इस तरह के संतान , किस पथ पर अग्रसर होंगे - नहीं कह सकता !

                                          नाग देव को नमन
 ( अगली पोस्ट -- जादुई  छड़ी !)


Monday, August 8, 2011

अपनी मिट्टी और अपनत्व

सुबह सभी को प्यारी होती है ! गर्मी में शीतल हवाए ,वरसात में बूंदा - बांदी, जाड़े में शबनम की बुँदे तथा बसंत में कोयल की कू-कू  सुबह ही तो देखने को मिलती है !.सुबह -सुबह ही पूजा -अराधना होती है ! मंदिरों में घंटिया बजने लगती है ! सुबह सभी शांत और कोमलता से पूर्ण होते है ! इसी समय घर के सदस्यों में प्यार भी देखने को मिलती है ! सूर्य कड़क होकर भी , इस समय उसकी रोशनी ज्यादा गर्म  नहीं होती ! झगड़े भी सुबह नहीं होते ! अतः सुबह की आगमन हमेशा ही खुशनुमा और लुभावन होती  है ! सुबह की हवाए ..प्रेम और जीवन बिखेरती है !


फूल भी सुबह ही खिलते है ! कहते है - सुबह को जन्म लेने वाली संताने अति तेजस्वी , लायक  और चतुर  होते है ! सुबह पढ़ी हुई विषय लम्बे समय तक याद रहती है ! हमें भी इस वक्त सभी अच्छे कार्यो को  लगन से करने की नीति निर्धारण करनी  चाहिए ! इसी तरह जीवन में भी  कई ऐसे क्षण आते है - जब हमें स्वयं  ही , सही वक्त को परखने पड़ते है ! हमारे देश यानी भारत वर्ष में  महंगाई की बिगुल भी आधी रात को पेट्रोल की दर बढ़ा कर की जाती है ! इससे यह साबित होता है की दिन की पहली पहर हमेशा ही किसी शुभ कार्य के लिए उपयुक्त समझी गयी है !


जब मै कोलकाता में था !  उस दिन कड़ाके की सर्दी थी ! घर के सामने सड़क के ऊपर खड़े होकर , हल्की. और कोमल - कोमल  सूर्य की किरणों की रसा - स्वादन कर रहा था ! आस - पास ..पास पड़ोस  के लोग भी थे !  एक योगी घर के पास आये ! उनके मुख से राजा भरथरी के गीत और हाथ सारंगी के ऊपर ! मधुर स्वर हवा में गूंज रहे थे !  कर्णप्रिय ! आकर प्रत्यक्ष खड़े हो गए !  एक क्षण के लिए आवाज और सारंगी पर विराम लग गई  !  वे नीचे झुके और हाथ जमीन पर  कुछ उठाने के लिए बढ़ गई ! देखा ..उन्होंने कुछ मिटटी को अपने हाथो से उठाये ! उनके हाथ मेरे तरफ बढे ! मैंने देखा - उनके द्वारा मिटटी  रगड़ने पर - मिटटी के रंग बदल गए और वह सिंदूर जैसा हो गया ! उस सिंदूर से उस योगी ने मेरे ललाट पर तिलक लगाए ! - " जाओ वेटा घर से कुछ भिक्षा लाओ ! यह योगी दरवाजे पर खडा है ! "


मै घर के अन्दर गया और दो पैसे के सिक्के लाकर ,उन्हें दे दिया ! सभी ने देखा ! कोई कुतूहल नहीं ! साधारण सी घटना ! उस योगी ने पैसे लेते हुए -आशीर्वाद स्वरुप कहा -" जाओ वेटा ,तुम्हारे भाग्य में बहुत तेज है ! दक्षिण  और विदेश सफ़र के योग है ! " और आगे चले गए ! फिर वही भरथरी के गीत और मधुर सारंगी के धुन वातावरण में गूंज उठे ! किसी को इसकी परवाह नहीं ! बात आई और गई सी रह गई ! 


माने या न माने - जब उस योगी के कथनों को कई बार याद किया तो पाया की  उनके वे शब्द अक्षरसः  सत्य लग रहे है ! आज मै दक्षिण भारत में ही हूँ ! जिसके बारे में मैंने कभी सोचा भी न था ! रही दूसरी बात - विदेश सफ़र की तो वह भी सत्य ही हुई ! पांच -छह माह पूर्व ही मुझे दीपुटेशन पर विदेश जाने के आफर मिले , जिसे मै यह कह कर ठुकरा दिया की मै अपने देश में ही खुश हूँ ! मेरे कुछ साथियों को वह आफर स्वीकार थे और वे जुलाई में विदेश कार्य पर चले गए !


 इस घटना के बाद मैंने अपने माता - पिता और पड़ोसियों  से उस योगी के बारे में जानकारी ली ! सभी ने कहा - वह योगी फिर कभी नहीं दिखे ! उस सुबह की तिलक और वह  स्वर्णिम चक्र आज - तक निरंतर गतिमान  है ! उस स्वप्न और शब्दों को सुनने के लिए कान  ब्याकुल और नेत्र राह देख रहे  है ! ईश्वरीय लीला और इस आभा के खेल सदैव निराले - कोई इसे न समझ सके , तो क्या कहने ? जैसी सोंच वैसी मोक्ष !

 

Wednesday, June 15, 2011

.....अमृत आम रस ....कोई हमारी बातो को सून भी रहा है !

आज - कल आम की मौसम है ! जहा देखो , वही आम की बहार है ! तरह - तरह के आम देखनो को मिल रहे है ! शुरू में ..मैंने आम को चार सौ रुपये किलो तक देखा ! अजब के आम !आम को फलो का राजा कहा गया है ! वह भी वाजिब और सार्थक विशेषण ! कभी - कभी मन में संदेह उत्पन्न होते है ..आखिर आम को फलो का राजा क्यों कहा गया ? क्यों कहा जाता है ? सोंचता हूँ - निम्न लिखित  बिशेषता रही होगी -


१).आम का सब कुछ उपयोगी है ! जड़ से फल और मृत्यु भी !२). आम के पत्ते बिना पूजा शुभ नहीं !३).शुभ कार्यो में या यज्ञ  ही क्यों न हो,इसकी लकड़ी बहुत ही उपयोगी  समझी जाती है !४).वसंत की आगमन और इसके बौरो / मोजर को देख ..सभी के दिल खिल उठते है !५).छोटे टीकोधो का लगना , और मन का ललचाना किसी से नहीं रुकता !६).कच्चे आमो के आचार और खटाई तैयार ...विशेष रूप से मनभावन ! ७). तरह - तरह के मनभावन जूस और  ८).आम के आम , गुठलियों के दाम ...क्या कहना !

 कौन है जिसके मन में लार / पानी  न भर आये ! किसी को आम खाते देख , देखने वाले की नजर अपने को कंट्रोल नहीं कर पाती ! जीभ चटकारे मारने लगती है ! जन्म से मृत्यु तक ..आम उपयोगी सिद्ध ! भला फलो का राजा क्यों न हो ?  बिलकुल सत्य ...दुश्मन हो या दोस्त  ..सभी इसके ऊपर मेहरबान ! यह भी बिना किसी भेद - भाव के सबके आगोश में ...प्यार के नगमे गाने में व्यस्त ! तरह - तरह के आम ...जितने देश उतने भेष ! दूर से खुशबू बिखेरना और अपने सुनहले ..लाल- पीले रंग को दिखा सभी को ललचाना ...वाह क्या कहने ! बनो तो आम नहीं तो कुछ नहीं ! सबका प्यारा / दुलारा !कोई भी दुश्मन नहीं ...जहां देखो वही प्यार  ही प्यार !

आयें ..... अब एक सत्य घटना की जिक्र करते है  , जिसके रूप को समझ पाना ..आज तक मेरे लिए पहेली बनी हुई  है ! कहते है एक बार ..एक पिता अपने छोटे पुत्र के साथ बागीचे से जा रहा था ! वह एक आम के पेड़ के नजदीक से गुजरा ! आम तोड़ने की इच्छा हुई , किन्तु वह पेड़ उसका नहीं था ! अतः अपने पुत्र से कहा कि- तुम नीचे खड़े होकर सावधान रहो और मै पेड़ पर चढ़ कर आम तोड़ता हूँ ! अगर कोई इधर आये तो ताली बजा देना ! पुत्र ने हामी भर दी ! पिता पेड़ पर चढ़ गया ! वह कुछ आम तोड़ने ही वाला था कि पुत्र ने ताली बजा दी ! पिता तुरंत पेड़ से नीचे उतर आया ! देखा.. कोई नहीं दिखाई दिया ! पुत्र से पूछ - " तुमने  ताली क्यों बजाई ? कोई नजर नहीं आ रहा है ?" पुत्र न विनम्र भाव से कहा -" पिता जी इंसान  तो नहीं , पर भगवान सब कुछ देख रहे है !" पुत्र कि बात सुन कर पिता को असलियत  और पुत्र के ईमानदारी का आभास हुआ ! उसने पुत्र को  भावुक हो ,गले से लगा लिया और कहा वेटा ..तुम ठीक कह रहे हो ..हमारी हर कार्य को भगवान देख रहा है ! हमें छुप कर चोरी नहीं करनी चाहिए !

ये तो रही सुनी - सुनाई कहानी ! एक बार कि बात है ! आज से करीब चालीस / बयालिस वर्ष पहले की ! मै कोलकाता से गाँव गया हुआ था ! मई या जून का ही महीना ! उस समय गाँव  में प्रायः घरो में शौचालय नहीं हुआ करते थे ! महिला हो या पुरुष सभी को गाँव के बाहर जाने पड़ते थे ! सभी इसे ही स्वास्थ्य वर्धक मानते थे ! धीरे - धीरे सभ्यता और रहन - सहन बदलने लगे  और आज गाँव  तथा घरो में भी शौचालय बन गए है !

दोपहर का समय ..कड़ी धुप और दुपहरी की उमस ! मुझे शौच लगा ! अतः गमछा सर पर रख ..गाँव के बाहर तालाब और बागीचे की तरफ दौड़ा ! दोपहर का समय .. बिलकुल .सुनसान ! शौच होने के बाद ..एक आम के पेड़ के नीचे आकर बैठ गया ! उस समय मेरी उम्र सात या आठ वर्ष की रही होगी ! बगल में ही डेरा था ! आम के पेड़ को देखा ! काफी आम लटक रहे थे ! पत्थर भी नहीं मार सकता ! मारने जो नहीं आते थे  ! बच्चे का मन ..सोंचा .आंधी आये तो अच्छा होता  !आम अपने - आप गीर पड़ेंगे और मै उन्हें बटोर लूंगा ! फिर क्या था ! मेरा सोंचना और जोर की आंधी आई ! आम टूट - टूट कर गिरने लगे ! मैंने उन्हें अपने अंगोछे में बटोर लिए ! आंधी ज्यादा देर तक नहीं चली ! मै घर आया और देखा मेरे दादा जी घर पर आ गए थे ! उनसे मैंने सारी  बातें बतायी  ! मेरी बात सुन कर वे हंस पड़े और बोले -  " कहीं .. आंधी नहीं आई थी !  झूठ बोल रहे हो ! किसी ने तोड़ कर दिए होंगे " मैंने आंधी कि बात दुहराई , पर घर में किसी ने मेरी बात नहीं मानी !

जी हाँ ..उस समय छोटा था .अतः आंधी नहीं आई थी की बात समझ नहीं पाया ! लेकिन आज - जब सोंचता हूँ (उस उपरोक्त कहानी के माध्यम से  ), तो यही लगता है कि किसी ने मेरी बात सुन ली थी ! वह भगवान थे या शैतान ! यह आज तक नहीं समझ पाया ! तो क्या कोई हमारी बातो को तुरंत भी सुन लेता है ? यह संशय आज भी बनी  हुई है ! आखिर वह घटना कैसे घटी ?

( चित्र साभार -गूगल

Saturday, February 26, 2011

.......... अनुशासन .....

               लोको के केबिन  से बाहर और सामने का दृश्य...
            जीवन में अनुशासन का बड़ा महत्त्व है ! 
           जन्म  में  अनुशासन ..
            पालन-पोषण में अनुशासन ..
           दिन-चर्या में अनुशासन..
           चाल -चलन में अनुशासन..
           पढाई-लिखाई में अनुशासन..
           समाज के हर मोड़ पर अनुशासन..
           माता-पिता-पुत्र के बीच अनुशासन..
           गुरु - शिष्य के बीच अनुशासन..
           नेता और अभिनेता के बीच अनुशासन..
           हित-नाथ के बीच अनुशासन..
            राजा - प्रजा के बीच अनुशासन..
            ब्लॉगर और पाठक  के बीच अनुशासन..
           जन्म से मृत्यु तक अनुशासन..
           और क्या कहू..
           हर क्षेत्र में अनुशासन ..
            का बिशेष महत्त्व है.., क्योकि..
           इससे मिलता है..१००%..सफलता....आये  देखे  कैसे.?
          DISCIPLINE...इसमे हर वर्ड का ..अल्फाबेटिकल संख्या ले कर जोड़ दे !
          जैसे ...
          a=1,b=2,c=3,d=4,e=5,f=6,g=7,h=8,i=9,j=10,k=11,l=12,m=13,n=14
          o=15,p=16,q=17,r=18,s=19,t=20,u=21,v=22,w=23,x=24,y=25 and
           z=26. तो ..ऐसा योग होगा .......
     D  + I + S + C + I + P + L + I + N + E  = 
     4+9+19+3+9+16+12+9+14+5=100    यानि    १००% सफलता..
    जी,,हाँ..ये  झूठ नहीं  है...जीवन के हर कदम पर आजमा के देखिये..मै तो अग्रसर हूँ..
            
           


Thursday, December 9, 2010

काम लिखो,ज्यादा पाओ

                       पहली लाइन में बाएं-श्री नन्द किशोर जी,instructo 
         दिनांक २७-११-२०१० को मै जोनल रेलवे ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट में रेफ्रेशेर कोर्स के लिए गया था और परीक्षा दे रहा था.उस समय उत्तर-पुस्तिका के पुरे पन्ने ख़त्म हो गए .मैंने अपने पर्यवेक्षक  से अलग से पेज पूछा.पर्यवेक्षक यानि श्री नंदकिशोर जी थे (ऑपरेटिंग बिषय के इन्सत्रोक्टोर  थे ),बिसमित से हो गए और मेरे पास आकर -मेरे उत्तर-पुस्तिका को उलट-पलट कर देखने लगे.और बोले-"क्या लिख रहे हो जी ?ज्यादा लिखोगे तो नंबर नहीं मिलेगा.कल्लिंग आन सिग्नल के लिए दो पेज ........वाह.. इतना तो रुल बुक में भी नहीं है." 
         मै अनुतरित सा,आवाक रह गया. कुछ नहीं बोला.उनहोने एक्स्ट्रा पेपर ,मुझे दिया.पर मै चाह कर भी लिख नहीं सका. .उत्तर अधुरा छोड़, उत्तर-पुस्तिका जमा दे एक्साम हॉल से बाहर निकल गया.
         यह घटना आई और गई. किन्तु आज पुनह: तरोताजा हो गई.जब मैंने कौन बनेगा करोड़ पति ,पर थोड़े शब्दों और वाक्यों में राहत की शराहना का पोस्ट लिखा.इस थोड़े वाक्यों का प्रभाव ऐसा हुआ की ,इस पोस्ट पर तीन सुयोग्य महापुरुष ,डाक्टरों की प्रतिक्रिया मिली.वे है --
                ०१) सुश्री डाक्टर मोनिका शर्मा जी
                 ०२)श्री डाक्टर श्याम गुप्त जी  और 
                  ०३)श्री डाक्टर जे.पि. तिवारी जी .
          केवल इतनी सी वाक्य पर तीन डाक्टरों के आगमन किसी शुभ लगन के सूचक लगा क्यों की मै कोई पेशेवर लेखक नहीं हूँ.मन में जो आया और समय मिला ,तो लिख दिया पर सच्ची बातो को ही.मुझे ऐसा लगा जैसे कोई तीन मूर्ति "बालाजी "के पोस्ट पर बिराजमान हें.-जैसे ब्रह्मा ,बिष्णु और महेश. इन तीनो बिभुतियो को मेरा  नमन है.आज मै समझ गया की कम बोलना और कमलिखना कितना सार्थक है.श्री नन्द किशोर जी की भी याद तरोताजा हो गई. गुरु तो गुरु ही होता है.
         यही वजह है की रहीम ,कबीर ,रसखान ,तुलसीदास वगैरह-वगैरह कविओ ने छोटे-छोटे दोहे का इस्तेमाल कर गागर में सागर भरने की भरपूर कोशिश की और अमर हो गए.मै समझता हूँ की ज्यादा लिखने और अलंकृत शब्दों के इस्तेमाल से ,लेख भब्य और आकर्षित हो जाते है , पढ़ने वाले का उपुक्त ध्यान खीचने में सफल किन्तु प्रायोगिक नहीं होते.
       (कोई जरुरी नहीं की पाठक सभी पोस्ट पर पढ़ने के बाद  प्रतिक्रिया दे,क्यों की कुछ बाते उन्हें अनुतरित कर देती है.अगले कुछ दिनों में इस माह की आप-बीती नम्बर ०४ पोस्ट करूँगा.Mobile use in pregnancy tied to ill behaved kids?-read in OMSAI.)

Wednesday, August 4, 2010

BALAJI

बालाजी उस भगवान का नाम है ,जो तिरुपती में,तिरुमाला में बसते है.उनके नाम पर ही इस ब्लॉग का नाम रखा हूँ.!. यह ब्लॉग,मेरे छोटे पुत्र के नाम पर  है !. .धन्यवाद.