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Wednesday, January 4, 2012

सूरज की आखिरी किरण

संसार में जीवो में  जीव महामानव ....मानव ही है ! दुनिया की गन्दगी इसी में है ! थोड़े समय के लिए सोंच लें -अगर मानव के शारीर में पेट नहीं होता , तो वह परिस्थितिया कैसी होती थी ? क्या जीवो के अन्दर हिंसा या अहिंसा होती ? क्या हम सभी लोग आपस में सामाजिक और सम सामायिक  समस्याओ से घिरे होते ? आज दुनिया में आर्थिक राजनीतिक ,सामाजिक और आधुनिक जंग छिड़ी हुयी  है ! कोई भी किसी के सामने झुकने को तैयार नहीं ! इस पेट की आग ऐसी लगी है , जो मरते दम तक बुझ नहीं सकती ! दुनिया के सारे  अनर्थ का अर्थ  यही है !

मै पिछले  वर्ष और दिसंबर के आखिरी माह में  , अपने रिफ्रेशर  ट्रेंनिंग के दौरान  काजीपेट स्टेशन के आस - पास टहल रहा था ! हम कुल तीन थे ! संध्या वेला ! हमने देखा एक तीन वर्ष का लड़का - अंगार के ऊपर मक्के को सेंक रहा था ! बिलकुल काम में  तल्लीन ! मैंने तुरंत उसके फोटे ले लिए  और उसे दिखाया ! वह बहुत खुश हुआ ! उस ख़ुशी  में निश्छल मुस्कराहट छिपी हुयी थी !  मेरे फोटो लेने का अभिप्राय क्या था ? उसे कुछ भी नहीं मालूम ! वह हँसता रहा और पंखे को जोर से झटकते हुए बोला -एम् कवाली ( क्या चाहिए ? ) मुझे उसके परिस्थिति को देख दया आ गई  ! पर वेवस - मेरे पास कोई जादुई चिराग तो  नहीं की उसके जीवन को बदल दूँ ! हमने उससे तीन मक्के खरीद लिए और रोज आने की वादा कर ..आगे बढ़ गए ! जब तक वहा थे - रोजाना मक्का ख़रीदे और मक्के के लुत्फ उठाये  !
 कुछ तस्वीर प्रस्तुत है -
                                                    कल  की लगन और जलते अंगारे !
                                        इनके आँखों में भी एक सुनहरा भारत है ! बेबस
                                  चमकीली आँखें और सुनहले भविष्य ! भारत का एक कोना !  
वैसे मुझे चलते - चलते कहीं भी , तस्वीर लेने की आदत सी पड़ गयी है ! यह उसी का एक अंग है ! आज हम सभी लोक पाल जैसी सख्त कानून की पैरवी में लगे है ! लेकिन इस कोने को कुछ भी नहीं मालूम ! लोकतंत्र क्या है ? आर्थिक स्वतंत्रता कहा है ? सूरज की आखरी किरण कैसी है ? काश उन चमकीले पत्थरो के ऊपर चलने वालो की नजर --एक बार इन जैसे  लोगो पर पड़ती ? वह सोने की चिड़िया कहाँ बंद है ? आज हम स्वतंत्र है या गुलाम ? इन मासूमो की तस्वीरे बहुत कुछ बोलती है !

Tuesday, November 29, 2011

ट्रेन हादसा: पत्रकारों का पागलपन

 ब्लॉग जगत एक समुद्र है ! इसमे तैरने के बाद , जो मिला वो विस्मित कर देता है ! आप भी पढ़े महेंद्र श्रीवास्तव जी का  " आधा सच "

 http://aadhasachonline.blogspot.com/2011/07/blog-post_14.html

Thursday, 14 July 2011


ट्रेन हादसा: पत्रकारों का पागलपन

मित्रों  

आज बात तो रेल हादसे पर करने आया था, लेकिन मुंबई ब्लास्ट का जिक्र ना करुं तो लगेगा कि मैने अपनी जिम्मेदारी ईमानदारी से नहीं निभाई। मुंबई में तीन जगह ब्लास्ट में अभी तक लगभग 20 लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन कई लोग गंभीर रूप से घायल होकर अस्पताल में इलाज करा रहे हैं। ब्लास्ट दुखद है, हम सभी की संवेदना उन परिवारों के साथ है, जिन्होंने इस हादसे में अपनों को खोया है। लेकिन ब्लास्ट के बाद सरकार के रवैये पर बहुत गुस्सा आ रहा है।

बताइये किसी देश का  गृहमंत्री यह कह कर सरकार का बचाव करे कि 31 महीने के बाद मुंबई में हमला हुआ है। इसे अपनी उपलब्धि बता रहा है। इससे ज्यादा तो शर्मनाक कांग्रेस के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी का है। वो कहते हैं कि ऐसे हमलों को रोकना नामुमकिन है। ऐसे बयानों से तो इनके लिए गाली ही निकलती है, लेकिन ब्लाग की मर्यादा में बंधा हुआ हूं। फिर इतना जरूर ईश्वर से प्रार्थना करुंगा कि आगे जब भी ब्लास्ट हो, उसमें मरने वालों में मंत्री का भी एक बच्चा जरूर हो। इससे कम  से कम ये नेता संवेदनशील तो होंगे। चलिए अब मैं आता हूं अपने मूल विषय रेल दुर्घटना पर...


 बीता रविवार मनहूस बनकर आया। मेरे आफिस और बच्चों के स्कूल की छुट्टी थी, लिहाजा घर में आमतौर पर सुबह से शुरू हो जाने वाली भागदौड़ नहीं थी। आराम से हम सब ने लगभग 11 बजे सुबह का नाश्ता किया और लंच में क्या हो, ये बातें चल रही थीं। इस बीच आफिस के एक फोन ने मन खराब कर दिया। चूंकि आफिस में मैं रेल महकमें जानकार माना जाता हूं, लिहाजा मुझे बताया गया कि यूपी में फतेहपुर के पास मालवा स्टेशन पर हावडा़ कालका मेल ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हो गई है और इससे ज्यादा कोई जानकारी नहीं है। मुझे इतना भी समय नहीं दिया गया कि मैं दुर्घटना के बारे में आगे कोई जानकारी कर सकूं और मेरा फोन सीधे एंकर के साथ जोड़ दिया गया। 

चूंकि कई साल से मैं रेल महकमें को कवर करता रहा हूं और कई तरह की दुर्घटनाओं से मेरा सामना हो चुका है, लिहाजा सामान्य ज्ञान के आधार पर मैं लगभग आधे घंटे तक दुर्घटना की बारीकियों यानि ऐसे कौन कौन सी वजहें हो सकती हैं, जिससे इतनी बड़ी दुर्घटना हो सकती है, ये जानकारी देता रहा। बहरहाल मैने आफिस को बताया कि थोड़ी देर मुझे खाली करें तो मैं इस दुर्घटना के बारे में और जानकारी करूं। आफिस में हलचल मची हुई थी, कहा गया सिर्फ पांच मिनट में पता करें, आपको दुबारा फोन लाइन पर लेना होगा।

बहरहाल मैने रेल अफसरों को फोन घुमाना शुरू किया। अब इस बात पर जरूर गौर कीजिए.. पहले तो दिल्ली और इलाहाबाद के कई अफसरों ने  फोन ही नहीं उठाया, क्योंकि छुट्टी के दिन रेल अफसर फोन नहीं उठाते  हैं। इसके अलावा सात आठ अधिकारियों को रेल एक्सीडेंट के बारे में कोई जानकारी ही नहीं थी। उन्होंने उल्टे  मुझसे पूछा कि क्या यात्री ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त हुई है या मालगाड़ी। अब आप समझ सकते हैं कि देश में रेल अफसर ट्रेन संचालन को लेकर कितने गंभीर हैं। 

खैर बाद में रेलवे के एक दूसरे अफसर से बात हुई। मोबाइल उन्होंने आंन किया, लेकिन वो रेलवे के फोन पर किसी और से बात कर रहे थे, इस दौरान मैने इतना भर सुना कि सेना को अलर्ट पर रखना चाहिए, क्योंकि उनके आने से क्षतिग्रस्त बोगी में फंसे यात्रियों को सुरक्षित बाहर निकालने में आसानी होगी। ये बात सुनते ही मेरे कान खड़े हो गए,  क्योंकि ये साफ हो गया कि एक्सीडेंट छोटा मोटा नहीं है। बहरहाल इस अधिकारी ने इतना तो जरूर कहा कि महेन्द्र जी बडा एक्सीडेंट है, लेकिन इससे ज्यादा मैं कुछ नहीं बता सकता, कोशिश है कि पहले कानपुर और इलाहाबाद की एआरटी (एक्सीडेंट रिलीफ ट्रेन) जल्द घटनास्थल पर पहुंच जाए। 

अफसर का फोन काटते ही मैने आफिस को फोन घुमाया और बताया कि दुर्घटना बड़ी है, क्योंकि सेना को अलर्ट किया गया है। बस इतना सुनते ही आफिस ने फिर ब्रेकिंग न्यूज चला दी और मेरा फोन एंकर से जोड़ दिया गया। इस ब्रेकिंग को लेकर मैं काफी देर तक एंकर के साथ जुडा रहा और ये बताने की कोशिश की किन हालातों में सेना को बुलाया जाता है। चूंकि रेल मंत्रालय सेना को बुला रहा है इसका मतलब है कि कुछ बड़ी और बुरी खबर आने वाली है। खैर कुछ देर बाद ही बुरी खबर आनी शुरू हो गई और मरने वाले यात्रियों की संख्या तीन से शुरू होकर आज 69 तक पहुंच चुकी है। 

ट्रेन हादसे की वजह

ट्रेन हादसे की वजह को आप ध्यान से समझें तो आपको पत्रकारों के पागलपन को समझने में आसानी होगी। हादसे की तीन मुख्य वजह है। पहला रेलवे के ट्रैक प्वाइंट में गड़बड़ी। ट्रैक प्वाइंट उसे कहते हैं जहां दो लाइनें मिलतीं हैं। कई बार ये लाइनें ठीक से नहीं जुड़ पाती हैं और सिगनल ग्रीन हो जाता है। इस दुर्घटना में इसकी आशंका सबसे ज्यादा जताई जा रही है। दूसरा रेल फ्रैक्चर । जी हां कई बार रेल की पटरी किसी जगह से टूटनी शुरू होती है और ट्रेनों की आवाजाही से ये टूटते टूटते इस हालात में पहुंच जाती है कि इस तरह की दुर्घटना हो जाती है। इसके लिए गैंगमैन लगातार ट्रैक की पेट्रोलिंग करते हैं, पटरी टूटने पर वो इसकी जानकारी रेल अफसरों को देते हैं और जब तक पटरी ठीक नहीं होती, तब तक ट्रैक पर ट्रेनों की आवाजाही बंद रहती है। तीसरी वजह कई बार इंजन के पहिए में  दिक्कत हो जाती है इससे भी ऐसी गंभीर दुर्घटना हो सकती है। 

ट्रेन के ड्राईवर ने अफसरों को बताया है कि वो पूरे स्पीड से जा रहा था, अचानक इंजन के नीचे गडगड़ाहट हुई, और इसके पहले की मैं कुछ समझ पाता ट्रेन दुर्घटना हो चुकी थी। बताया जा रहा है कि ट्रैक प्वाइंट आपस में ठीक तरह से नहीं जुड पाया और तकनीकि खामी के चलते सिग्नल ग्रीन हो गया। कालका मेल अपनी पूरी रफ्तार से दिल्ली की ओर बढ रही थी,  एक झटके में वो पटरी से उतर गई और उसके कई डिब्बे एक दूसरे के ऊपर चढ गए। 
दुर्घटना सहायता ट्रेन
हां दुर्घटना के बाद राहत का काम कैसे चला इसकी बात जरूर की जानी चाहिए। मित्रों ट्रेनों का संचालन मंडलीय रेल प्रबंधक कार्यालय में स्थापित कंट्रोल रुम से किया जाता है। जैसे ही कोई ट्रेन दुर्घटनाग्रस्त होती है, उसके आसपास के बड़े रेलवे स्टेशनों पर सायरन बजाए जाते हैं, जिससे रेल अफसर, डाक्टर और कर्मचारी बिना देरी किए एक्सीडेंट रिलीफ ट्रेन (एआरटी) में पहुंच जाते हैं। इस एआरटी में एक उच्च श्रेणी का मेडिकल वैन भी होता है, जिसमें घायल यात्रियों को भर्ती करने का भी इंतजाम होता है। सूचना मिलने के बाद 15 मिनट के भीतर कानपुर और इलाहाबाद से एआरटी को घटनास्थल के लिए रवाना हो जाना चाहिए था और 45 मिनट से एक घंटे के भीतर इसे मौके पर होना चाहिए था। लेकिन रेलवे के निकम्मेपन की वजह से ये ट्रेन चार घंटे देरी से घटनास्थल पर पहुंची। सच ये है कि अगर रिलीफ ट्रेन सही समय पर पहुंच जाती तो मरने वालों की संख्या कुछ कम हो सकती थी। 
पत्रकारों का पागलपन
जी हां अब बात करते हैं पत्रकारों के पागलपन की या ये कह लें उनकी अज्ञानता की। रेलवे के अधिकारी अपने निकम्मेपन को छिपाने के लिए अक्सर कोई भी दुर्घटना होने पर इसकी जिम्मेदारी ड्राईवर पर डाल देते हैं। जैसे एक ट्रेन दूसरे से टकरा गई तो कहा जाता है कि ड्राईवर ने सिगनल की अनदेखी की, जिससे ये दुर्घटना हुई। रात में कोई ट्रेन हादसा हो गया तो कहा जाता है कि ड्राईवर सो गया था, इसलिए ये हादसा हुआ। मित्रों आपको इस बात की जानकारी होनी चाहिए, अगर कोई एक्सीडेंट होता है तो सबसे पहले ड्राईवर की जान को खतरा रहता है, क्योंकि सबसे आगे तो वही होता है। लेकिन निकम्मे अफसर ड्राईवर की गल्ती इसलिए बता देते हैं कि ज्यादातर दुर्घटनाओं में ड्राईवर की मौत हो जाती है, उसके बाद जांच का कोई निष्कर्ष ही नहीं निकलता। 

ऐसी ही साजिश इस दुर्घटना में भी की गई। कहा गया कि ड्राईवर ने इमरजेंसी ब्रेक लगा दिया, इसकी वजह से दुर्घटना हुई। अब इनसे कौन पूछे कि अगर इमरजेंसी ब्रेक इतना ही खतरनाक है तो इसका प्रावीजन इंजन में क्यों किया गया है। इसे तो हटा दिया जाना चाहिए। लेकिन नहीं, पागलपन की इंतहा देखिए, पत्रकारों ने घटनास्थल से चीखना शुरू कर दिया कि इमरजेंसी ब्रेक लगाने से दुर्घटना हुई और ये क्रम दूसरे दिन भी जारी रहा। 

हकीकत ये है दोस्तों को अफसरों को लगा कि इतनी बड़ी दुर्घटना हुई है ड्राईवर की मौत हो गई होगी, लिहाजा उस पर ही जिम्मेदारी डाल दी जाए। लेकिन जैसे ही पता चला कि ड्राईवर और सहायक दोनों जिंदा हैं तो रेल अफसरों ने कहना शुरू कर दिया कि इमरजेंसी ब्रेक से ऐसी दुर्घटना नहीं हो सकती। लेकिन तब तक पत्रकारों ने माहौल तो खराब कर ही दिया था। 
  

25 comments:

संध्या शर्मा said...
ट्रेन हादसा तो हो ही गया और ऐसे हादसे आये दिन होते रहते हैं. जो बातें सामने आती हैं उसे पत्रकारों का पागलपन कहें या अज्ञानता या फिर रेलवे के अधिकारियों का निकम्मापन लोग तो मारे जाते हैं और सारे सफाई देते रह जाते हैं, क्या ये दुर्घटनायें रोकी नहीं जा सकती... सार्थक विचार...
अरुण चन्द्र रॉय said...
महेंद्र जी जब हम पढ़ रहे थे पत्रकार बनना एक सपना हुआ करता है... समर्पित हुआ करते थे लोग सपने के लिए.. भाषा और विषय पर पकड़ हुआ करती थी... अब तो विषय और भाषा पर पकड़ ही नहीं है... बस चीखना चिल्लाना है.. कई मेरे स्ट्रिंगर मित्र मुझ से स्क्रिप्ट लिखवाते हैं फिर फ़ोनों करते हैं.... क्या पत्रकार मित्र इसको समझेंगे कि बिना तैयारी के रिपोर्टिंग नहीं करनी चाहिए...
mahendra srivastava said...
अरुण जी, आप तो स्ट्रिंगर की बात कर रहे हैं, मैन जो उल्लेख किया है, वो दिल्ली और लखनऊ के पत्रकारों का हाल है। विषय की जानकारी के बगैर कुछ भी आंय बांय शांय बोलते रहते हैं।
Suman said...
इस हादसे को टी वी पर देखकर बड़ा दुःख हुआ ! बढ़िया जानकारी दी है आपने आभार आपका !
मनोज कुमार said...
आपकी रिपोर्टिंग ग़ज़ब की है। घटना की तह में जाकर आपने कई ऐसी जानकारी दी है जो हमारे लिए नई थी। चाहे वह आपके पत्रकार बिरादरी की ही बात क्यों न हो। ऐसी निष्पक्ष रिपोर्टिंग कम ही देखने को मिलती है।
Kailash C Sharma said...
आज कल घटना की तह में न जाकर केवल sensational reporting करना टी वी चंनेल्स में आम बात होती जा रही है. आपने निष्पक्ष रिपोर्टिंग का जो रूप प्रस्तुत किया है वह काबिले तारीफ़ है..आभार
रविकर said...
धीरज रखें || हमेशा ऐसा नहीं होगा || हम जरुर सुधरेंगे || हर-हर बम-बम बम-बम धम-धम | थम-थम, गम-गम, हम-हम, नम-नम| शठ-शम शठ-शम व्यर्थम - व्यर्थम | दम-ख़म, बम-बम, तम-कम, हर-दम | समदन सम-सम, समरथ सब हम | समदन = युद्ध अनरथ कर कम चट-पट भर दम | भकभक जल यम मरदन मरहम || राहुल उवाच : कई देशों में तो, बम विस्फोट दिनचर्या में शामिल है |
रविकर said...
पकडे गए इन दुश्मनों ने, भोज सालों है किया | मारे गए उन दुश्मनों की लाश को इज्जत दिया || लाश को ताबूत में रख पाक को भेजा किये | पर शिकायत यह नहीं कि आप कुछ बेजा किये --- राम-लीला हो रही | है सही बिलकुल सही || रेल के घायल कराहें, कर्मियों की नजर मैली | जेब कितनों की कटी, लुट गए असबाब-थैली | तृन-मूली रेलमंत्री यात्री सब घास-मूली संग में जाकर बॉस के कर रहे थे अलग रैली | राम-लीला हो रही | है सही बिलकुल सही || नक्सली हमले में उड़ते वाहनों संग पुलिसकर्मी | कूड़ा गाडी में ढोवाये, व्यवस्था है या बेशर्मी | दोस्तों संग दुश्मनी तो दुश्मनों से बड़ी नरमी || राम-लीला हो रही | है सही बिलकुल सही ||
Rajesh Kumari said...
Mahendra ji aapka bahut bahut dhanyavaad aapne baat ki tah tak panhuch kar ye jaankari di hai.isi tarah agar sabhi apni jimmedari sahi dhang se nibhayen to ye haadse hi na ho.aur humaare desh ki security kitni majboot hai yeh to main haal me hi dekh chuki hoon.
रविकर said...
ड्राइवर को दोषी बता, बचा रहे थे जान, जान नहीं पाए उधर, जिन्दा है इंसान | जिन्दा है इंसान, थोपते जिम्मेदारी, आलोचक की देख, बड़ी भारी मक्कारी | कह रविकर समझाय, निकाले मीन-मेख सब- मुंह मोड़े चुपचाप, मिले उनको जिम्मा जब ||
ज़ाकिर अली ‘रजनीश’ (Zakir Ali 'Rajnish') said...
सही कहा आपने। पत्रकार कब किस चीज को किस रूप में प्रस्‍तुत कर दें, कहा नहीं जा सकता। ------ जीवन का सूत्र... लोग चमत्‍कारों पर विश्‍वास क्‍यों करते हैं?
ZEAL said...
आपकी पोस्ट के माध्यम से पूरा सच जान पड़ा ! लोग अपनी गलतियों की जिम्मेदारी दुसरे पर आसानी डाल देते हैं ! ड्राईवर की कोई गलती न होते हुए भी इल्जाम मढ़ा जा रहा था ! पूरे प्रकरण में राहुल गांधी का बयान बेहद भद्दा , बचकाना और गैरजिम्मेदाराना है. शर्मनाक !
रेखा said...
आपने बहुत सारी जानकारी दी है जो हमें पता ही नहीं थी ......इन नेताओं के बयानों को सुनकर कभी -कभी खुद को ही शर्म आने लगाती है
Babli said...
बहुत ही दर्दनाक हादसा रहा जिसमें मासूम लोगों की जान चली गयी! बहुत दुःख हुआ देखकर! आपने बहुत ही बढ़िया जानकारी दी है! मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है- http://seawave-babli.blogspot.com/ http://ek-jhalak-urmi-ki-kavitayen.blogspot.com/
inqlaab.com said...
:)
Maheshwari kaneri said...
आपकी पोस्ट के माध्यम से पूरा सच जान पड़ा...बहुत ही दर्दनाक हादसा रहा ।नेताओं के बयानों को सुनकर शर्म आती है...
निर्मला कपिला said...
दर्दनाक हादसे का कडवा सच जान कर दुख हुया। पता नही हमारा मीडिया कब सुधरेगा। आभार।
Vivek Jain said...
बहुत ही दर्दनाक हादसा विवेक जैन vivj2000.blogspot.com
Amrita Tanmay said...
बहुत अच्छा लिखा है .जैसा दिखाया जाता है समाचारों में वो आधा सच ही होता है .लेकिन आपको पढ़कर बहुत कुछ साफ-साफ समझ में आता है..
Surendra shukla" Bhramar"5 said...
शालिनी पाण्डेय जी - जागरण जंक्शन में बहुत कम मिलते हैं हम ...?? अच्छी जानकारी सुन्दर सन्देश छवियाँ दिल को छू गयीं -ऐसा अक्सर होता है लोग दूसरे के कंधे पर रख बन्दूक से गोली दाग देते हैं - --ढेर सारी शुभ कामनाये - शुक्ल भ्रमर ५ लेकिन जैसे ही पता चला कि ड्राईवर और सहायक दोनों जिंदा हैं तो रेल अफसरों ने कहना शुरू कर दिया कि इमरजेंसी ब्रेक से ऐसी दुर्घटना नहीं हो सकती।
Surendra shukla" Bhramar"5 said...
प्रिय महेंद्र श्रीवास्तव जी क्षमा करियेगा ऊपर की टिपण्णी हटा दीजियेगा कुछ भूल .. अच्छी जानकारी सुन्दर सन्देश छवियाँ दिल को छू गयीं -ऐसा अक्सर होता है लोग दूसरे के कंधे पर रख बन्दूक से गोली दाग देते हैं - --ढेर सारी शुभ कामनाये - शुक्ल भ्रमर ५
Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार said...
आदरणीय महेंद्र श्रीवास्तव जी सादर वंदेमातरम् ! ट्रेन हादसा: पत्रकारों का पागलपन आपकी ऊर्जावान लेखनी से निकले अन्य आलेखों की तरह ही प्रभावशाली है । अपराध की हद तक ग़ैरज़िम्मेवाराना हरक़तें करते टुक्कड़खोर पत्रकार जो कह-लिख-कर जाए वो कम … … … और… मुंबई ब्लास्ट की ताज़ा घटना हर सच्चे भारतीय को आहत कर रही है , वहीं इस नपुंसक-नाकारा सरकार की बेशर्मी आग में घी का काम कर रही है … - ऐसे हमलों को रोकना नामुमकिन है। - 31 महीने के बाद मुंबई में हमला हुआ है। उत्तरदायित्वों को निभाने में सर्वथा असफल रहने के बावजूद भी ऐसे कायरतापूर्ण और बेशर्मी भरे बयान देने वाले नेताओं को चुल्लू पानी में डूब मरना चाहिए … आतंक और आतंकियों के संबंध में मैंने लिखा है - अल्लाहो-अकबर कहें ख़ूं से रंग कर हाथ ! नहीं दरिंदों से जुदा उन-उनकी औक़ात !! दाढ़ी-बुर्के में छुपे ये मुज़रिम-गद्दार ! फोड़ रहे बम , बेचते अस्लहा-औ’-हथियार !! मा’सूमों को ये करें बेवा और यतीम ! ना इनकी सलमा बहन , ना ही भाई सलीम !! इनके मां बेटी बहन नहीं , न घर-परिवार ! वतन न मज़हब ; हर कहीं ये साबित ग़द्दार !! शस्वरंपर आ’कर पढ़ने और अपने बहुमूल्य विचार रखने के लिए निवेदन है … हमेशा ही आवश्यक विषयों पर उत्कृष्ट लेखन द्वारा समाजहित में भावाभिव्यक्ति के लिए आपका आभार ! हार्दिक मंगलकामनाएं- शुभकामनाएं ! -राजेन्द्र स्वर्णकार
सुनीता शानू said...
आपकी पोस्ट की चर्चा कृपया यहाँ पढे नई पुरानी हलचल मेरा प्रथम प्रयास
Rachana said...
mahendra ji aapne to aankhen hi hol din itni gahri baat batai ab kya kahun desh bhi apna aye yahan ke log bhi .bahut dukhta hai dil aap ka abhar rachana
वर्ज्य नारी स्वर said...
सही और सार्थक आलेख

Friday, November 11, 2011

ये क्या हो रहा है ?

  जनता ...पब्लिक  और  क्या न कह लें !  .लोग और उनका समूह ..कब क्या कर दें किसी को नहीं पता ! आज कल  विद्यार्थी आन्दोलन का एक हिस्सा बनते जा रहे है ! इन्हें भुनाने में राजनीतिक गड सबसे आगे है ! विद्यार्थी जीवन सिखने का वक्त है ! विद्यार्थी या ऐसा ही कोई जन समूह जब कोई अनैतिक कार्य करे तो आप को कैसा लगेगा ? वह भी किसी निर्दोष के साथ ! उस ई.बाला कृष्णन  ने लोगो का क्या किया था ? जो उसे यह सजा मिली ? क्या उस व्यक्ति  ने यह नहीं सोंचा की इसकी परिणति क्या होगी ?

आईये एक नजर डालें और आप ही बताएं ? इस तरह के करतूत कब तक होते रहेंगे ?
 ई.बाला कृष्णन लोको पायलट / काट पाडी / दक्षिण रेलवे ,  तारीख ०६-११-२०११ को मदुरै एक्सप्रेस को ले  कर   तिरुपति जा रहे थे !  रास्ते में चित्तूर स्टेशन के पास  किसी ने एक जोर दार पत्थर लोको के उप्पर फेंका !  पत्थर लोको के शीशे को तोड़ती हुयी -ई बाला कृष्णन को जा लगी ! शीशे के तुकडे शारीर पर जा गिरे और कुछ शरीर में भी चुभ गए !  असहनीय पीड़ा से लोको पायलट कराह उठा ! तुरंत ट्रेन रोक दी गयी और सहायक ने ट्रेन को चित्तूर स्टेशन तक ई.बाला कृष्णन की मदद से चला  कर लायें ! 

तुरंत ड्यूटी में तैनात स्टेशन मास्टर को इसकी सूचना दी गयी ! मास्टर प्राथमिक इलाज न कर यह पूछने लगा की आप आगे ट्रेन को लेकर जाओगे या नहीं ? जब की ई . बाला. कृष्णन ने रिलीफ  की मांग की थी ! आखिर कार ई. बाला कृष्णन ने ट्रेन को सुरक्षित खड़ा कर गार्ड की देख - रेख में रख , ऑटो से चित्तूर जनरल अस्पताल को चले गएँ ! ट्रेन करीब दो घंटे तक खड़ी रही ! बाद में वेंक ताद्री  लोको पायलट को मदुरै एक्सप्रेस को काम करने के लिए कहा गया ! 

 संक्षिप्त में --
१) लोको पायलट - ई. बाला कृष्णन और सहायक.टी.गुनेशेखर / मुख्यालय- काट पाडी !
२)गार्ड- टी.एस.रवि./ विलुपुरम 
३) लोको संख्या -१६५८० / जी .ओ.सी. 
४) ट्रेन संख्या -१६७८० ( मदुरै-तिरुपति एक्सप्रेस )
५)घटना स्थल - चित्तूर रेलवे स्टेशन के निकट 
६) किसी ने पत्थर से लोको पायलट को मारी !
७)ई.बाला.कृष्णन घायल ! अस्पताल जाते समय किसी ने साथ नहीं दिया , न ही मास्टर ने किसी को साथ जाने के लिए भेजा ! सहायक ही अंत तक सहायता किया !
८) इस तरह की यह दूसरी घटना है ! इसके पहले मनोहर लोको पायलट / रेनिगुनता इसके परिणाम भुगत चुके है ! अधिक जानने के लिए मेरी पिछली पोस्ट _ मुझसे क्या भूल हुई , जो ये सजा मुझको मिली ?  पढ़ें !
९) रेलवे प्रशाशन ने  अभी तक कोई उचित कार्यवाही नहीं की है ! न ही किसी की गिरफ्तारी  ही हुई !
    कब तक लोको पायलट , जो सभी को सुरक्षित मंजिल तक पहुंचाते है -इस तरह की अनहोनी घटनाओ के शिकार होते रहेंगे ?

Monday, October 24, 2011

हम तो तेरे आशिक है वर्षो पुराने ...

  जी हाँ चौकिये मत ! मै ही नहीं ,हम सब इसके बहुत दीवाने है ! गजब की चीज है ! कान में खुजली पैदा करती है ..तो जाने बगाहे मुंह के पास चिपट कर -तू-तू  मै - मै और बहुत कुछ  ! कितनो को दीवाना बना दी ! पर इसके मर्म अजब है ! कोई इससे छुप नहीं सकता ! छुपा नहीं सकता ! हमेशा दिल के पास रहती है ! कभी हँसाती है - तो कभी रुलाती ! सभी इसके बड़े आदी हो गए है ! 

आज मेरे साथ एक वाकया हुआ ! मै सोंच में पड़ गया ,  उस पर क्या बीती होगी ! आयें नजर डालते है ! हुआ यु की आज मै ट्रेन संख्या -१२१६३ दादर - चेन्नई एक्सप्रेस को काम कर लौटा हूँ ! ट्रेन चेगुन्टा और कृष्णा स्टेशन  के बीच दौड़ रही थी ! अचानक किसी ने जंजीर खींच दिया ! ट्रेन को रोकनी पड़ी ! ट्रेन ५९४/० और ५९३/६ किलो मीटर के मध्य खड़ी हो गयी ! मैंने कारण और  एयर प्रेसर की बहाव को रकने के लिए , अपने सहायक को भेंजा !

कुछ देर बाद , वह अपने कार्य को कर वापस आया और बताया  की एक पैसेंजर का मोबाईल ( सेल फोन ) चलती ट्रेन से बाहर गिर गया है ! वह उसे धुंधने   गया है ! कोच संख्या - सी . आर.जी.एस -९८४१५ था ! हमारी ट्रेन आगे बढ़ने के लिए तैयार थी ! मैंने गार्ड से  ट्रेन स्टार्ट करने की अनुमति पूछी ! गार्ड साहब ने कहा - कुछ वेट करें ! एक मिनट के बाद हमें गार्ड की इजाजत मिली ! ट्रेन चल पड़ी !
गुंतकल लोब्बी में आने के बाद , मैंने फिर गार्ड साहब से पूरी जानकारी मांगी ! उनका कहना था की वह व्यक्ति बिना टिकट का यात्रा कर रहा था और वह अपने सेल फोन को खोज पाने में असमर्थ था ! वह वही है ! आखिर हम कब तक उसका इंतजार करते ! सबसे बड़ी बात यह की उसके पास टिकट भी नहीं है ! गार्ड साहब - श्री एस.एम्.एल.राम / गुंतकल हेड कुँर्टर !

देखा आपने --बिन टिकट यात्रा भी आप को असुबिधा में डाल सकती है ! जैसे की उस व्यक्ति के साथ हुआ ! कभी - कभी हम इतने  स्वार्थी हो जाते है की नुकशान का  भी अंदाजा नहीं लगा सकते ! आज हम मोबाईल फोन / सेल के इतने शौक़ीन   हो गए है की मुझे बड़ा ताज्जुब होता है , जब लोग बुकिंग / रिजर्वेशन  या अन्य  किसी कार्यालय के पास पेन की गुजारिश करते है ! उस समय मै भी उनसे मोबाईल के बारे में पूछ बैठता हूँ ! जो उन्हें चौका देती है ! 

मेरे कहने का तात्पर्य यह है की एक बड़े समूह के पास आज - कल मोबाईल तो मिल जाएगा , पर कलम नहीं मिलेगा ! अब रही ट्रेन में सफर की बात - हमें मोबाईल जैसी छोटी - छोटी चीजो को हिफाजत से रखनी और इस्तेमाल करनी चाहिए ! अन्यथा  लेने के देने पड़ जायेंगे ! सोंचता हूँ कैसे बीतेगी उस व्यक्ति की आज की धन - तेरस  ! हाय रे लापरवाही !

सुझाव - अगर भविष्य में ऐसा कुछ आप के साथ होता है तो आप किसी दुसरे व्यक्ति के सेल / मोबाईल फोन से अपने सेल का नम्बर डायल करें  ! तुरंत रिंग  बजनी शुरू होगी और आप आसानी से उस जगह तक पहुँच जायेंगे , जहाँ सेल / मोबाईल पडा हुआ है ! इससे समय की बचत और मानसिक तनाव से मुक्ति मिलेगी ! भगवान करें - ऐसा किसी के साथ न हो !

Thursday, September 15, 2011

त्रिभुज

          जन्म - जन्म का साथ है हमारा  -तुम्हारा ! सभी कही न कही कह या सोंच लेते है ! देव के मन में क्या समायी जो इस दुनिया में औरत और मर्द को जन्म दे दिए ! मैंने ममता के बारे में ज्यादा जानना चाही ! ममता कुछ समय तक हंसती रही और यकायक दिल से रो पड़ी ! वह आंसू बहुत ही पीड़ादायी थे !

वह औरत , जिसे मैंने बचपन से प्रौढ़ और माँ बनते देखा था ! आज वह किसी के सहारे की मोहताज नजर आ रही थी   !संक्षेप में इस कहानी को रख रहा हूँ ! वह भी जो सुना और जान पाया ! उसका नाम ममता है ! घर आते ही , पत्नी ने मुझे बताया की - ममता अपने ससुराल से आ गयी है ! जी हाँ -वह हमारे पड़ोस में रहने वाली लड़की है  ! चार वर्ष पहले उसकी शादी धूम - धाम से हुयी थी ! दो वर्ष बाद वह एक बेटे को जन्म दी ! बेटे का जन्म भी उसके माता - पिता के घर ही हुआ ! ससुराल वाले उसे देखने या लेने नहीं आयें ! लगातार दो वर्ष हो गए ! कुछ सामाजिक दबाव के कारण --उसके ससुराल वाले एक दिन आये और उसे बिदा करा ले गए ! कुछ दिनों बाद ममता ने अपने मायके फोन पर बताई की उसका पति दूसरा शादी कर लिया है , और उस महिला  शारदा को भी घर में ही रखे हुए  है ! यह सुन ममता के मैके वाले सन्न रह गए और तुरंत पांच पुलिस वालो के साथ , उसके ससुराल जा टपके ! कहा सुनी हुयी और ममता ने उस घर में रहने से इंकार कर दिया ! 

सुनील दोनों को पत्नी बना कर रखने के लिए तैयार था !पर  ममता के पिता को  यह परहेज नहीं था , एक म्यान में दो तलवार - भला कैसे रह सकती है और अंत में मामला यहाँ तक आ टपका की  - सुनील के घर वाले शादी के पुरे सामान और खर्च वापस देने पर राजी हो गए !  उसकी सास और ससुर उसे जाते हुए एक तक देखते रहे , ताकि बहु घर से बाहर न जाय  ! ममता दिल पर पत्थर रख - घर से बाहर निकल गयी  ! गाँव और बिरादरी वाले अचंभित देखते रह गए ! ममता अब अपने पिता के घर आ गयी  ! सुनील के परिवार वाले सभी खर्च और सामान वापस कर दिए है ! 


सुनील  दूसरी पत्नी -शारदा के साथ नयी जिंदगी जी रहा है ! ममता अपने दो वर्ष के बेटे के साथ जीवन के घाव को सहला रही है ! अब प्रश्न यह उठता है की आखिर यह सब कैसे और क्यों हुआ ? एक औरत - दुसरे औरत की दुश्मन कैसे हो गयी ? एक मर्द दूसरी शादी के लिए क्यों मजबूर हो गया ? आयें कुछ हवा के रुख को ही समझे , जो कुछ सुनने को मिला !


पहले सुनील को ले ! शादी के बाद से ही उसके व्यवहार ममता के प्रति खिन्न रहा ! ममता पर उसने कई घरेलू आरोप लगाते  रहे जैसे देवर से सम्बन्ध .. गवार ...वगैरह - वगैरह ! बात यहाँ तक पहुंची की दिन प्रतिदिन पति - पत्नी में प्यार के वजाय, एक दुसरे के प्रति घृणा और द्वेष ने जन्म लेना शुरू कर दिया ! ननद के व्यवहार भी रखने लगे ! बेचारी सास और ससुर का ही सहारा बचा था ! जो उसे बेहद चाहते थे ! ममता के मन में आग की ज्वाला धधकने लगी ! एक दिन वह घर छोड़ अकेले मइके चल दी ! उस समय उसे दो माह का गर्भ भी था ! इस अवस्था में देख और चुपके से यहाँ आना , उसके पिता को अच्छा न लगा ! उसके पिता आंसू पी कर रह गए ! 

ममता का घर से मइके जाना - सुनील को एक हाथ में दो लड्डू जैसा प्रतीत हुआ ! अब उसकी कहानी पुराणी मित्र - शारदा के साथ जम गयी ! वह शहर के कालेज में पढ़ती थी ! सुनील उसे मोटर सायकिल पर बैठा कर कालेज ले जाता ! दोनों मौका मिलते ही -सिनेमा को जाते ! कालेज से घर लाता और शारदा के घर वाले कुछ नहीं बोलते थे ! उन्हें इनके नाजायज सम्बन्ध की परख न थी ! क्योकि उन्हें मालूम था - सुनील शादी सुदा है ! आग जलती रही ! रोटी पकाते रहे !  परिणाम भी बाहर आ गया ! तब जाकर सभी के कानखड़े हुए ! आनन् फानन में शारदा के घर वाले - दोनों की शादी मंदिर में कर दिए ! यहाँ से सुनील दो फूल और एक माली बन गया ! उसके घर वालो को इस बात की कोई जानकारी नहीं थी ! शारदा अपने माता- पिता के घर ही थी ! इधर सुनील को शराब   की लत ज्यादा हो गयी ! यह देख सुनील के घर वाले भी परेशां !

इधर समय के अनुसार - ममता ने एक पुत्र को जन्म दिया ! इसकी खबर उसके ससुराल भी गयी ! किन्तु कोई भी इसे देखने या बच्चे को पुचकारने नहीं आया ! देखते- देखते दो वर्ष बीत गए ! ममता का बेटा एक वर्ष का हो गया ! ममता के ससुराल से कोई भी नहीं आया ! तब जाकर ममता के पिता को दुसरे के माध्यम से सूचना देनी पड़ी ! रिश्तेदारों के दबाव में आकर सुनील एक दिन अपने ससुराल आया और ममता को बिदा करा ले गया ! 

एक रात -  सुनील ने ममता को कहा की वह दूसरी शादी करेगा और उसे छोड़ देगा ! ममता बात को गंभीरता से न ली और मजाक समझ -कह दी की कर लीजिये ! वह भी रहेगी ! इसमे क्या हर्ज है ! फिर  क्या था ! दुसरे दिन ही -प्रतीक्षा रत पत्नी  शारदा को घर लेकर आ गया ! यह सब देख घर का पूरा माहौल माता - पिता , पत्नी , भाई - बहन और आस - पास के लोगो के बिच कुरुक्षेत्र के मैदान सा बन गया ! हालत के गंभीरता को देखते हुए , सुनील ने दोनों को पत्नी का दर्जा और एक ही घर में रखने के लिए तैयार हो गया ! ममता के आंसू थमने के नाम नहीं ले रहे थे ! बाद में - वही हुआ जो पहले ऊपर उल्लेख किया जा चूका है !

जी हाँ , यही है त्रिभुज सी जिंदगी ! प्रश्न है ----ममता के पूरी जिंदगी का क्या होगा ? क्या ममता दूसरी शादी करेगी ? कौन है जो एक बेटे की माँ से शादी करेगा ? ममता अगर शादी न की , तो जब बेटा बड़ा होगा और पिता के बारे में जानना चाहेगा , तो क्या बताएगी और कैसी प्रतिक्रिया होगी  ? सुनील शारदा के साथ जीवन निभा पायेगा ? हाँ तो कैसे, नहीं तो क्यों ? शारदा ने इस नारी युग में एक नारी के साथ जो अत्याचार की है - क्या ज़माना भूल पायेगा ? त्रिभुज से ग्रस्त बच्चो  का भविष्य कैसा होगा ? क्या यह सच नहीं की एक नारी ने दुसरे नारी की हत्या कर दी , उसकी अस्मिता लुट ली , उसके गौड़ अधिकार छीन लिए ? समाज क्या इन्हें माफ करेगा ?  बहुत से अनुत्तरित प्रश्न हमारे सामने खड़े है - क्या यही आधुनिकता , शिक्षा , संस्कार और अनुशासन है ?

( सत्य पर आधारित घटना - नाम बदल दिए गए है ! अभी  बहुत कुछ कहा और लिखा जा सकता है इस त्रिभुज पर ! थोड़ी -कुछ कमियों को आप पूरा करें ! )
ये भी कुछ कहता है ----एक सुन्दर गीत 
 sajanawa bairi ho gaye hamar.. 










Saturday, September 3, 2011

तीसरी नजर

कल यानि दुसरे सितम्बर २०११ को शोला पुर में था ! सोंचा चलो अच्छा हुआ , गणपति दर्शन हो जायेंगे ! शाम को बादल  उमड़ - घुमड़ रहे थे !  छतरी भी साथ ले लिया ! सहायक भी साथ में था ! चारो तरफ शहर में घुमे , पर रौनक नजर नहीं आई ! लगता था जैसे सभी अन्ना हजारे के समर्थन में इस वर्ष की उत्सव -साधारण तौर पर मना रहे  है ! किसी से पूछने का साहस  नहीं किया - आखिर क्यों ऐसा ? हमारे गुंतकल में ही गणपति का उत्सव बड़े धूम - धाम से मनाया गया है ! आज विसर्जन होने वाला है ! सोंचा कुछ बधाई और शुभकामनाओ को ब्लॉग पर डाल ही  दूँ ! मेरे बालाजी का अपना गणपति  पूजा मजेदार का रहा !  यहाँ देंखे - कैसी रही बालाजी की गणपति पूजा ? 

                                     आप सभी को गणेश चतुर्दशी की ढेर सारी शुभकामनाएं !
अब कुछ जेलर की तरफ ध्यान दे ! तिरछी नजर से परेशां -उसने आज खूब चढ़ा ली थी ! डंडे को भांजते हुए वह फिर कसाव के रूम के पास हाजिर हुआ ! नशे में धुत ! जोर से हँसाना शुरू किया ! ह्ह्ह्हह्ह्ह्ह   हां हां हां हां हां हां हां ..ही ही ही ही ही ..हु हु हु हु हु हु हु ...हे हे हे हे हे ...इस जोशीले आवाज को सुन सभी संतरी जेलर के पास आ खड़े हुए ! भय -भीत  !  जेलर की हंसी  ...ठीक गब्बर सिंह के  जैसा ! देखते - देखते सभी संतरी भी हंसी में मशगुल हो गए ! कसाब  को भी हंसी आ ही गयी ! पर आज वह  सहमा सा दिखा ! न जाने क्यों ? उसे कोई  अनजानी आशंका  दबोच ली  ! 
  " अबे कसाब ? "- जेलर कसाब  की तरफ मुखातिब हो बोला !  " स्साले सब बच गए ! कितने  आदमी थे ?..बिलकुल तीन ! हा  हा  हा  ये राजनीति ....बहुत  कमाल  की.. है...... किसी को फांसी पर भी न चढाने देगी ! अबे ..अब तेरी भी बकरी ( बकरीद के वजाय -बकरी बोल गया ) नहीं आएगी .." वह नशे में धुत था ! उसके शब्द टूट -टूट कर  बाहर निकल रहे थे ! वह राजीव गाँधी के गुनाहगारो के फाँसी की सजा पर लगी रोक से तिलमिलाए हुए था ! फिर बोला -" अब तू भी बच जाएगा ,देवेंदर पाल  सिंह भुल्लर भी बचेगा और ...और...और वो संसद वाला ...   सांसदों  का गुरु ......अफजल भी बचेगा ! प्रक्रिया ...मुख्य  मुख्य मंत्रियो .....द्वारा ...तेज  हो गयी  ...है  !" इस समाचार ने  कसाब के मुखमंडल पर...थोड़ी सी मुस्कराहट बिखेर दी !" जेलर  संतरियो की तरफ देखा और फिर कहने लगा ---अब नए सम्मान दिए जायेंगे -जानते हो ? 
एक हत्या वाले को --पद्मश्री  ..हा..हा..हां.
दो हत्या वाले को--पद्मभूषण  ...........................
तीन हत्या वाले को पद्मविभूषण  ..और  
चार से ज्यादा हत्या वाले को  भारतरत्न  " - जेलर अपने डंडे को भांजने लगा ! 
" तो  सर...  क्या इसे ( कसाब को )  भारतरत्न का सम्मान मिलने वाला है ? "- एक  संतरी  ने प्रश्न  किया ! 
  " जरुर ..जरुर मिलेगा ..हाँ मिलेगा जरुर...इसी के काबिल यह है "--जेलर ने कहा और जोर का ठहाका लेकर कसाब को देख बोला -- " तेरे इस दुनिया में , तेरे पास आतंक ,लूट ,दंगा ,भुखमरी , चोरी ,बलात्कारी ,हत्या या क्या-क्या के सिवा क्या है ?..हाँ..हाँ ..हाँ ..हाँ!'' क्षण भर के लिए रुका और बोलने लगा - "जानता है हमारे पास क्या है ?.......हमारे पास ..सिर्फ और सिर्फ....अहिंसा है



Monday, August 8, 2011

अपनी मिट्टी और अपनत्व

सुबह सभी को प्यारी होती है ! गर्मी में शीतल हवाए ,वरसात में बूंदा - बांदी, जाड़े में शबनम की बुँदे तथा बसंत में कोयल की कू-कू  सुबह ही तो देखने को मिलती है !.सुबह -सुबह ही पूजा -अराधना होती है ! मंदिरों में घंटिया बजने लगती है ! सुबह सभी शांत और कोमलता से पूर्ण होते है ! इसी समय घर के सदस्यों में प्यार भी देखने को मिलती है ! सूर्य कड़क होकर भी , इस समय उसकी रोशनी ज्यादा गर्म  नहीं होती ! झगड़े भी सुबह नहीं होते ! अतः सुबह की आगमन हमेशा ही खुशनुमा और लुभावन होती  है ! सुबह की हवाए ..प्रेम और जीवन बिखेरती है !


फूल भी सुबह ही खिलते है ! कहते है - सुबह को जन्म लेने वाली संताने अति तेजस्वी , लायक  और चतुर  होते है ! सुबह पढ़ी हुई विषय लम्बे समय तक याद रहती है ! हमें भी इस वक्त सभी अच्छे कार्यो को  लगन से करने की नीति निर्धारण करनी  चाहिए ! इसी तरह जीवन में भी  कई ऐसे क्षण आते है - जब हमें स्वयं  ही , सही वक्त को परखने पड़ते है ! हमारे देश यानी भारत वर्ष में  महंगाई की बिगुल भी आधी रात को पेट्रोल की दर बढ़ा कर की जाती है ! इससे यह साबित होता है की दिन की पहली पहर हमेशा ही किसी शुभ कार्य के लिए उपयुक्त समझी गयी है !


जब मै कोलकाता में था !  उस दिन कड़ाके की सर्दी थी ! घर के सामने सड़क के ऊपर खड़े होकर , हल्की. और कोमल - कोमल  सूर्य की किरणों की रसा - स्वादन कर रहा था ! आस - पास ..पास पड़ोस  के लोग भी थे !  एक योगी घर के पास आये ! उनके मुख से राजा भरथरी के गीत और हाथ सारंगी के ऊपर ! मधुर स्वर हवा में गूंज रहे थे !  कर्णप्रिय ! आकर प्रत्यक्ष खड़े हो गए !  एक क्षण के लिए आवाज और सारंगी पर विराम लग गई  !  वे नीचे झुके और हाथ जमीन पर  कुछ उठाने के लिए बढ़ गई ! देखा ..उन्होंने कुछ मिटटी को अपने हाथो से उठाये ! उनके हाथ मेरे तरफ बढे ! मैंने देखा - उनके द्वारा मिटटी  रगड़ने पर - मिटटी के रंग बदल गए और वह सिंदूर जैसा हो गया ! उस सिंदूर से उस योगी ने मेरे ललाट पर तिलक लगाए ! - " जाओ वेटा घर से कुछ भिक्षा लाओ ! यह योगी दरवाजे पर खडा है ! "


मै घर के अन्दर गया और दो पैसे के सिक्के लाकर ,उन्हें दे दिया ! सभी ने देखा ! कोई कुतूहल नहीं ! साधारण सी घटना ! उस योगी ने पैसे लेते हुए -आशीर्वाद स्वरुप कहा -" जाओ वेटा ,तुम्हारे भाग्य में बहुत तेज है ! दक्षिण  और विदेश सफ़र के योग है ! " और आगे चले गए ! फिर वही भरथरी के गीत और मधुर सारंगी के धुन वातावरण में गूंज उठे ! किसी को इसकी परवाह नहीं ! बात आई और गई सी रह गई ! 


माने या न माने - जब उस योगी के कथनों को कई बार याद किया तो पाया की  उनके वे शब्द अक्षरसः  सत्य लग रहे है ! आज मै दक्षिण भारत में ही हूँ ! जिसके बारे में मैंने कभी सोचा भी न था ! रही दूसरी बात - विदेश सफ़र की तो वह भी सत्य ही हुई ! पांच -छह माह पूर्व ही मुझे दीपुटेशन पर विदेश जाने के आफर मिले , जिसे मै यह कह कर ठुकरा दिया की मै अपने देश में ही खुश हूँ ! मेरे कुछ साथियों को वह आफर स्वीकार थे और वे जुलाई में विदेश कार्य पर चले गए !


 इस घटना के बाद मैंने अपने माता - पिता और पड़ोसियों  से उस योगी के बारे में जानकारी ली ! सभी ने कहा - वह योगी फिर कभी नहीं दिखे ! उस सुबह की तिलक और वह  स्वर्णिम चक्र आज - तक निरंतर गतिमान  है ! उस स्वप्न और शब्दों को सुनने के लिए कान  ब्याकुल और नेत्र राह देख रहे  है ! ईश्वरीय लीला और इस आभा के खेल सदैव निराले - कोई इसे न समझ सके , तो क्या कहने ? जैसी सोंच वैसी मोक्ष !

 

Friday, August 5, 2011

...जाको राखे साईया मार सके न कोय ! ( शीर्षक आप का -श्री विजय माथुर जी )

                           ये है मोहित अग्रवाल की जुड़वा बेटियाँ !
आज कुछ न लिख कर , अपनी एक पसंदीदा पोस्ट , जो तारीख १०-११-२०१० को पोस्ट किया था , को फिर से एक बार आप के सामने हाजिर कर रहा हूँ !  उस समय मै इस ब्लॉग जगत में बिलकुल  नया  था ! साथ ही हिंदी पोस्ट करने की पद्धति से भी अनभिग्य  ! पाठक भी कम थे ! अतः ज्यादा लोगो तक नहीं पहुँच सका ! मेरी हिंदी भी शुद्ध नहीं थी ! दक्षिण भारतीय लफ्जो में लिखी गयी थी ! आज मेरी हिंदी कुछ - कुछ सुधर सी गयी लगती है ! इसका भी एक मात्र कारण - यह ब्लॉग जगत ही है ! आज उस पोस्ट को कुछ सुधार कर पेस्ट कर रहा हूँ ! उस समय मैंने इसे -"आप-बीती----०३. नवम्बर माह." के शीर्षक से पोस्ट किया था !
दुनिया में जो कुछ भी हमारे नजरो के सामने है ,उसमे  कुछ न कुछ है.यही कुछ एक छुपी हुई सच्चाई है अथवा सब   मिथ्या ! यानी मानो तो देव , नहीं तो पत्थर ! मैंने  बहुत से व्यक्तियों को तरह -तरह के तर्क देते और आलोचना करते देखा है ,यह आलोचना मौखिक और लिखित  दोनों रूप में मिल जायेगी ! बहुत से लोग इस दुनिया के मूल भूत इकाई पर  ,भरोसा ही नहीं करते! हमारी उपस्थिति ही किसी अनजान सच्चाई की ओर इंगित करती है !.और हम सब किसी के हाथ के गुलाम है .जो हमे पूरी तरह से बन्दर की भाक्ति नचाता है.! 


मै दुनिया के हर सृष्टी में  किसी के सजीव रूप को  प्रत्यक्ष देखता हूँ !. उसके इशारे बिना ,एक पत्ता भी नहीं हील  सकता ! . "जाको राखे  साईया ,मार सके न कोय." यह वाक्य  जब कही गयी होगी उस समय कुछ तो  जरुर हुआ होगा  या जिसने यह पहला उच्चारण किया होगा , उसने  कुछ न कुछ  अनुभव जरुर किया  होगा ! , इसी कड़ी को  सार गत आगे बढाते हुए  ,इस माह के आप-बीती के कड़ी में एक सच्ची घटना प्रस्तुत कर रहा हूँ.! 


बात उन दिनों की है ,जब मै सवारी गाड़ी के लोको चालक के रूप में पदोन्नति लेकर पाकाला डेपो  में पदस्थ था.पाकाला आंध्र प्रदेश के चित्तूर  जिले में पड़ता है.यहाँ से तिरुपति महज ४२ किलोमीटर है! यह घटना तारीख १५.०२.१९९९ की है! दिन सोमवार था.और मै २४८ सवारी ट्रेन को लेकर ,धर्मावरम  ( यहाँ  से सत्य साईं बाबा के आश्रम यानी प्रशांति निलयम ,जो अनंतपुर जिले में पड़ता है, को जाया जा सकता है ) से , अपने मुख्यालय  पाकाला की तरफ आ रहा था.! दोपहर की वेला और ट्रेन बिना किसी समस्या के ...समय से चल रही थी ! होनी को कौन  टाल सकता है! एक ह्रदय बिदारक  घटना घटी ! जिसे मै जीवन  में भूल नहीं पाता हूँ ! यह घटना मुझे हमेशा याद आती रहती है.! इसी लिए २०११ वर्ष में भी एक बार फिर आप के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ !


हुआ यह की जब मेरी ट्रेन मदन पल्ली स्टेशन के होम  सिगनल के करीब पहुँचने वाली थी,तभी एक नौजवान औरत करीब २२-२३ बरस की होगी ,अपने गोद  में  करीब एक बरस की बच्ची को लिए हुए थी ,अचानक पटरी के बीच  में आकर खड़ी हो गई.! .मेरी गाड़ी की गति करीब ५०-६० के बीच  थी ! मैंने जैसे ही उसे देखा आपातकालीन  ब्रेक  लगा दी ! गाड़ी तो रुकी पर उस महिला को समेट ले गई.! मै अनायास इस एक   पाप का भागी बन गया ! नया - नया और जीवन में पहली आत्महत्या देखी थी ! हक्का - बक्का सा हो गया ! समझ में नहीं आया की अब क्या करू !.खैर ट्रेन रुक गई.मैंने  अपने ट्रेन गार्ड को अचानक ट्रेन के रुकने की  सूचना दे दी और कहा की पीछे जाकर उस महिला के मृत शरीर  की मुआयना करें , देंखे  की क्या हम कुछ कर सकते है जैसे की फर्स्ट ऐड वगैरह यदि वह जीवीत हो ! मैंने अपने सहायक लोको पायलट श्री टी.एम्.रेड्डी  को जाकर देखने को कहा !.मेरे ट्रेन गार्ड श्री रामचंद्र जी थे !.कुछ समय के बाद मेरा सहायक चालक  मुझे जो खबर ,वाल्की -तालकी  के माध्यम से दी , वह चौकाने वाली थी! 

सूचना----
१) उस महिला की - सीर  में चोट की वजह से मौत हो चुकी थी.और पटरी  के किनारे उसकी मृत प्राय शारीर  पड़ी हुई थी ! .सीर  से खून  के फब्बारे लगातार रिस रहे  थे !
२)दूर कंकड़-पत्थर के ऊपर उसकी छोटी बच्ची  निश्चेत पड़ी हुई थी !


अब  समस्या थी उनके मृत अस्थि  को उठा कर ट्रेन में लोड करने की ! . मैंने ट्रेन गार्ड और अपने सहायक को कहा की दोनों के अस्थियो को ---उठा कर गार्ड ब्रेकभैन  में लोड कर लिया जाए ! उन्होंने ऐसा ही किया.! महिला के अस्थि को कुछ यात्रियों  की मदद से ब्रेक में लोड कर दिया गया ! जब मेरा सहायक उस  छोटी सी बच्ची को, जो पत्थर  पर मृतप्राय पड़ी थी ,को  उठाना चाहा , तो वह बच्ची तुरंत रो पड़ी और डरी-डरी सी कांपने  लगी.थी ! यह देख हमें आश्चर्य का ठीकाना न रहा क्यों की जिस बच्ची को हमने गेंद की तरह उप्पर उछलते देखा था , वह बिलकुल ज़िंदा थी ! यह विचित्र  दृश्य देख  ,सभी ट्रेन यात्री ,हक्का-बक्का सा हो  गए ! जिस चोट से उसकी माँ की मृत्यु हो गयी थी,उसी गंभीर चोट के बावजूद वह जिन्दा थी ! वाह ..क्या कुदरत की कमाल है.,इस दृश्य को जिन्हों ने देखा,वे जहा भी होंगे लोगो में चर्चा जरुर करते होंगे ! भाई वाह इस उप्पर वाले के खेल निराले !.हमने ट्रेन को चालू किया और मदन पल्ली रेलवे स्टेशन पर आ गये !उस बच्ची को थोड़ी सी चोट लगी  थी ,इस लिए रेलवे डॉक्टर को तुरंत बुलाया गया ! मदनपल्ली में रेलवे स्वास्थ्य केंद्र  है ! बाक़ी  जरुरी प्रक्रिया  करने के बाद ,मृत महिला और उसके जीवीत बेटी  को ड्यूटी पर तैनात स्टेशन मेनेजर को सौप दिया गया ,ताकि आस-पास के गाँव में ,सूचना फैलने के बाद,उचित परिवार को उनकी बॉडी सौपी  जा सके ! फिर हमने अपनी आगे की सफ़र जारी रखी !


मै शाम को ५ बजे पाकाला पहुंचा और सारी घटना - अपनी पत्नी को बताई ! मेरी पत्नी ने जो कहा वह वाकई नमन के योग्य है ! मेरी पत्नी ने कहा की - " उस बच्ची को घर लाना था हम पाल-पोस लेते थे ! " मै अपने पत्नी की इच्छा को सुन कर कुछ समय के लिए दंग रह गया और मन ही मन अपने पत्नी और उस दुनिया को बनाने वाले को नमन किया ! मेरे आँखों में आंसू आ गए ! क्यों की हमें कोई प्यारी सी  लड़की नहीं है ! मै सिर्फ इतना ही कह सका की ठीक है - अगले ट्रिप पर जाने के समय उस स्टेशन पर पता करूँगा ,अगर कोई  न  ले गया होगा तो उस बच्ची को अपने घर ले आऊंगा !


सोंचता हूँ आज मेरे पास वह सब कुछ है जो इस आधुनिक ज़माने में लोग इच्छा रखते है ! दो सुनहले सुपुत्र भी है एक राम जी तो दूजा बालाजी ,पर बेटी नहीं है ! शायद इसकी इच्छा  भगवान ने पूरी नहीं करनी चाही ! फिर भी सोंचते है , चलो दो बेटियाँ बहु बन कर तो आ ही जायेंगी !


दूसरी बार ,जब मै मदनपल्ली गया तो उस बच्ची के बारे में पता किया ! वह महिला पास के गाँव की रहने वाली थी ! उसके माता-पिता ,आकर उसके शव  और बच्ची को  ले गए थे! सोंचता हूँ,आज वह बच्ची करीब १३  बर्ष की हो  ही गयी है ! उससे मिलने और उसे देखने की इच्छा आज भी है ,लेकिन उसका पता मालूम नहीं  !.कई बार मदन पल्ली के स्टेशन मेनेजर से संपर्क बनाया पर उस समय ड्यूटी पर रहने वाले मास्टर के सिवा इस घटना  की जानकारी किसी और को नहीं है !


लोग इस तरह आत्महत्या क्यों करते है ? .क्या इस कार्य से वे संतुष्ट हो जाते है ? क्या घरेलु झगड़े का इस तरह निदान ठीक है ? मनुष्य को श्रद्धा  और सब्र  से काम लेना चाहिए ! सोंचता हूँ इस घटना के पीछे भी कोई घरेलु कारण ही  होंगे !.हमें जीवन को इतना कमजोर  नहीं समझना चाहिए !  जरुरत है अच्छे कर्मो  में लिप्त होने  की ! आखिर क्यों ? उस छोटी बच्ची का बाल न बांका हुआ और उसकी माँ को मृतु लोक मिला ! कुछ तो है !