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Monday, October 24, 2011

हम तो तेरे आशिक है वर्षो पुराने ...

  जी हाँ चौकिये मत ! मै ही नहीं ,हम सब इसके बहुत दीवाने है ! गजब की चीज है ! कान में खुजली पैदा करती है ..तो जाने बगाहे मुंह के पास चिपट कर -तू-तू  मै - मै और बहुत कुछ  ! कितनो को दीवाना बना दी ! पर इसके मर्म अजब है ! कोई इससे छुप नहीं सकता ! छुपा नहीं सकता ! हमेशा दिल के पास रहती है ! कभी हँसाती है - तो कभी रुलाती ! सभी इसके बड़े आदी हो गए है ! 

आज मेरे साथ एक वाकया हुआ ! मै सोंच में पड़ गया ,  उस पर क्या बीती होगी ! आयें नजर डालते है ! हुआ यु की आज मै ट्रेन संख्या -१२१६३ दादर - चेन्नई एक्सप्रेस को काम कर लौटा हूँ ! ट्रेन चेगुन्टा और कृष्णा स्टेशन  के बीच दौड़ रही थी ! अचानक किसी ने जंजीर खींच दिया ! ट्रेन को रोकनी पड़ी ! ट्रेन ५९४/० और ५९३/६ किलो मीटर के मध्य खड़ी हो गयी ! मैंने कारण और  एयर प्रेसर की बहाव को रकने के लिए , अपने सहायक को भेंजा !

कुछ देर बाद , वह अपने कार्य को कर वापस आया और बताया  की एक पैसेंजर का मोबाईल ( सेल फोन ) चलती ट्रेन से बाहर गिर गया है ! वह उसे धुंधने   गया है ! कोच संख्या - सी . आर.जी.एस -९८४१५ था ! हमारी ट्रेन आगे बढ़ने के लिए तैयार थी ! मैंने गार्ड से  ट्रेन स्टार्ट करने की अनुमति पूछी ! गार्ड साहब ने कहा - कुछ वेट करें ! एक मिनट के बाद हमें गार्ड की इजाजत मिली ! ट्रेन चल पड़ी !
गुंतकल लोब्बी में आने के बाद , मैंने फिर गार्ड साहब से पूरी जानकारी मांगी ! उनका कहना था की वह व्यक्ति बिना टिकट का यात्रा कर रहा था और वह अपने सेल फोन को खोज पाने में असमर्थ था ! वह वही है ! आखिर हम कब तक उसका इंतजार करते ! सबसे बड़ी बात यह की उसके पास टिकट भी नहीं है ! गार्ड साहब - श्री एस.एम्.एल.राम / गुंतकल हेड कुँर्टर !

देखा आपने --बिन टिकट यात्रा भी आप को असुबिधा में डाल सकती है ! जैसे की उस व्यक्ति के साथ हुआ ! कभी - कभी हम इतने  स्वार्थी हो जाते है की नुकशान का  भी अंदाजा नहीं लगा सकते ! आज हम मोबाईल फोन / सेल के इतने शौक़ीन   हो गए है की मुझे बड़ा ताज्जुब होता है , जब लोग बुकिंग / रिजर्वेशन  या अन्य  किसी कार्यालय के पास पेन की गुजारिश करते है ! उस समय मै भी उनसे मोबाईल के बारे में पूछ बैठता हूँ ! जो उन्हें चौका देती है ! 

मेरे कहने का तात्पर्य यह है की एक बड़े समूह के पास आज - कल मोबाईल तो मिल जाएगा , पर कलम नहीं मिलेगा ! अब रही ट्रेन में सफर की बात - हमें मोबाईल जैसी छोटी - छोटी चीजो को हिफाजत से रखनी और इस्तेमाल करनी चाहिए ! अन्यथा  लेने के देने पड़ जायेंगे ! सोंचता हूँ कैसे बीतेगी उस व्यक्ति की आज की धन - तेरस  ! हाय रे लापरवाही !

सुझाव - अगर भविष्य में ऐसा कुछ आप के साथ होता है तो आप किसी दुसरे व्यक्ति के सेल / मोबाईल फोन से अपने सेल का नम्बर डायल करें  ! तुरंत रिंग  बजनी शुरू होगी और आप आसानी से उस जगह तक पहुँच जायेंगे , जहाँ सेल / मोबाईल पडा हुआ है ! इससे समय की बचत और मानसिक तनाव से मुक्ति मिलेगी ! भगवान करें - ऐसा किसी के साथ न हो !

Thursday, September 29, 2011

रेलवे की बोनस

आज - कल दसहरे की धूम है ! सभी जगह गहमा-    गहमी ! कलकत्ते की दुर्गापूजा की याद आ ही जाती है ! एक महीने पहले से ही कपडे सिलवाने  पड़ते थे अन्यथा टेलर की दुकान पर " नो आर्डर  / आर्डर क्लोज्ड " के तख्ती लटके मिलते थे ! खैर जो भी हो , नवरतन तो नवरातन ही है ! बच्चे , बूढ़े या जवान सभी उमंग से भर जाते है !   

अब बात करें रेलवे की  - रेलवे ने ७८ दिनों की बोनस देने की घोषणा कर दी   है ! आप सोंचते होंगे की रेलवे वालो को खूब ज्यादा बोनस मिलती है ! बीस -पचीस हजार पाते होंगे ! मजे से दसहरा गुजरता होगा !  किन्तु ऐसा बिलकुल नहीं है ! सच्चाई तो ये है की रेलवे के क्लास चतुर्थ  और क्लास थ्री के कर्मचारियों को २५००/- और 3500/- महीने की दर से  क्रमशः बोनस मिलती है !  इस बर्ष  की बोनस राशी करीब ८९७५ /- है !

कर्मचारियों में सन्नाटा है ! उन लोलुप नेताओ और कर्मचारी संगठनो से , जो इस दिन मनमानी तौर पर चंदे की उगाही करेंगे ! लाखो में उगाही होती है ! नेता मालामाल और कर्मचारी बेहाल ! यह  प्रणाली १९७९ से चली आ रही है ! इन लोलुप और भ्रष्ट नेताओ से लोग परेशान ! करें तो क्या करें ? कोई मजबूत आन्दोलन नहीं !

रेलवे बोर्ड की अनुमति के बाद -कर्मचारियों की मासिक बेतन , भत्ते , कोई बकाया या लोन की रकम - चाहे जो भी हो सीधे बैंक के अकाउंट में चली जाती है ! कर्मचारी अपने बगार को बैंक के माध्यम से ही ड्रा करते है ! एक तरह से यह पद्धति सभी को कारगर साबित हुयी है ! लेकिन नेताओ के  मनमानी उगाही वाले -मनसूबो पर पानी फिर गया ! उन्होंने एक तरकीब निकाली - रेलवे बोर्ड से मिल कर बोनस की रकम कैश में देने की -अनुमति ले लेते है ! अतः रेलवे के सभी जोन या मंडल , बोनस की रकम ---सीधे बैंक में न भेंज ---कैश के रूप में बितरित करते है ! इस प्रकार से कर्मचारियो के करीब हजार रुपये ---बोनस बितरण के स्थान पर ही ,  लुट लिए जाते है ! इस व्यवस्था में  चतुर्थ क्लास के कर्मचारियों की दशा काफी दयनीय होती है ! जिन्होंने देने से इंकार  किया - उन्हें--- देखेंगे ? जैसे शब्द  सुनाये  जाते है !

रेलवे में हमारा एसोसिएसन ( आल इण्डिया लोको रुन्निंग स्टाफ एसोसिएसन ) केवल लोको चालको के सुबिधाओ को ध्यान में रखते हुए --तरह - तरह की  मांग  प्रशासन के समक्ष रखता है और  अपनी सकारात्मक जिम्मेदारी को  निभाता है ! यह एसोसिएसन बहुत ही अनुशासित और कड़क है ! बोनस की भ्रष्टाचार देख हमने जोनल लेवल पर जागरूकता अभियान शुरू किये और रेलवे प्रशासन के समक्ष मांग  रखी  कि इस बर्ष बोनस की रकम बैंक के माध्यम से भुगतान की जाय ! मैंने रेलवे बोर्ड को एक बिस्तृत लेटर  भेंजी है , उस लेटर कि कापी -सभी जोन को भी भेजी गयी !

अब देखना है कि रेलवे बोर्ड कौन सा कदम उठता है ! कर्मचारियों में जागरूकता लाने के लिए -एक हैण्ड बिल निकला गया है ! यह हिंदी और तेलगू में निकला है ! २०११ का बर्ष --और आंध्र- प्रदेश में हिंदी का हैण्ड बिल ,   यह एक पहला कदम है ! इस हैण्ड बिल के बाद जागरूकता जगी है ! सभी कि नजर सम्मान से लोको पायलटो कि तरफ उठ गयी है ! जिन्होंने सभी कर्मचारियों के हित में आवाज बुलंद किया है ! हैण्ड बिल नीचे है - इसे क्लिक कर ध्यान से जरुर पढ़े -

इस हैण्ड बिल में   शब्द त्रुटी भी है ! जो तेलगू भाषी प्रेस वाले की वजह से है ! प्रूफ  न देखने से हुयी है ! जिसे  आप लोग आसानी से समझ  सकते है ! हाँ - इस तेलगू  प्रेस  ने बहुत कठिन मेहनत कर बनाया  है ! जो वाकई सराहनीय   है ! 

  इस दसहरे में "  दक्षिण  भारत दर्शन  " के लिए  सपरिवार  - मदुरै , रामेश्वरम और कन्याकुमारी तक जा रहा हूँ  ! अब अगली मुलाकात दस दिनों बाद होगी ! आप सभी को नवरातन , दसहरे ,और विजयादसमी की शुभ कामनाये ! माता सबकी रक्षा करें ! जय दुर्गे !



Wednesday, September 7, 2011

बुझ गयी जिंदगी !

  "" दुर्घटना स्थल पर जांच किया और पाया की जीवन समाप्त हो गयी है "    लाल रंग के स्याही से रेलवे डाक्टर ने इस बात की पुष्टि की ! जी हाँ जिस महीने में सारी दुनिया मजदूर दिवस मनाने में मशगुल थी , उसी माह में ऐसी दर्द नाक दुर्घटना होगी - किसी ने स्वप्न में भी नहीं सोचा था ! सहायक लोको पायलट - एन.एस .प्रबोध की तिरुनेलवेली यार्ड में -एक ट्रेन के रेक को पीछे धकेलते समय - यार्ड में ,धक्का लगाने से  रात्रि के दो बज कर पैतालीस मिनट पर, तारीख ३० मई २०११ को - दुर्घटना का शिकार हो गए ओर तुरंत मृत्यु हो गयी  ! जिसकी पुष्टि रेलवे डाक्टर ने लाल स्याही में कर दी थी  ! असावधानी ही जीवन ले ली  !
                                                                      एन.एस.प्रबोध

शायद इसी लिए लोको पायलटो की पत्निया हमेश एक इंतजार की घडी में ही जीती है ! वह इंतजार भी अपने - अपने इष्ट देव की पूजा और अर्चना में व्यतीत हो जाती है , जिससे की उनके पति सकुशल घर वापस लौटे ! एन.एस.प्रबोध को दो बेटे है ! सात वर्ष का सिद्धार्थ और दो वर्ष का सचिन  ! पत्नी मंजू इस युवा अवस्था में ही अपने पति से बिछड़ गयी , जो काफी असहनीय है ! उसके कंधे पर दो बच्चो की परवरिश और सास -ससुर की देख भाल की जिम्मेदारी आ पड़ी है !

   एन.एस.प्रबोध हमारे असोसिएसन का एक अनुशासित  कार्यकर्ता थे ! आप दिनांक - २५-०९-२००० में रेलवे में सहायक लोको पायलट के रूप में ज्वाइन किया था  ! शुरुवाती पोस्टिंग दक्षिण रेलवे  के इरोड डिपो  में हुयी थी ! इन्होने पालघाट , एरनाकुलम और अंत में अपने पैत्रिक नगर कुईलों में कार्य किया ! इनके अनुशासित रवैये से बहुतो को अपने हाथ सेकने में कठिनाई का सामना करना पड़ता था और बहुत कुछ !

        दिनांक ०३-०६-२०११ को कुईलों में आल  इंडिया लोको रंनिंग स्टाफ  एसोसिएसन ने एक शोक -सभा का आयोजन किया और इस एसोसिएसन के तरफ से पांच लाख पच्चीस हजार रुपये  का एक सहायता चेक , उनके धर्मपत्नी को भेंट किया गया !  आल  इण्डिया  लोको रुन्निंग स्टाफ एसोसिएसन गहरा दुःख ब्यक्त करते हुए ,  भगवान से प्रार्थना करता है - की उनके शोक संतप्त परिवार को धैर्य और साहस दे , ताकि वे इस गम को सह  और भुला सके ! पुरे  लोको पायलटो की ओर से  स्वर्गीय एन.एस.प्रबोध को भाव भीनी श्रद्धांजलि ! भारतीय रेलवे के लोको पायलट रोजाना एक नयी जीवन पाते है ! कब क्या हो जाये किसे पता ?

Friday, August 5, 2011

...जाको राखे साईया मार सके न कोय ! ( शीर्षक आप का -श्री विजय माथुर जी )

                           ये है मोहित अग्रवाल की जुड़वा बेटियाँ !
आज कुछ न लिख कर , अपनी एक पसंदीदा पोस्ट , जो तारीख १०-११-२०१० को पोस्ट किया था , को फिर से एक बार आप के सामने हाजिर कर रहा हूँ !  उस समय मै इस ब्लॉग जगत में बिलकुल  नया  था ! साथ ही हिंदी पोस्ट करने की पद्धति से भी अनभिग्य  ! पाठक भी कम थे ! अतः ज्यादा लोगो तक नहीं पहुँच सका ! मेरी हिंदी भी शुद्ध नहीं थी ! दक्षिण भारतीय लफ्जो में लिखी गयी थी ! आज मेरी हिंदी कुछ - कुछ सुधर सी गयी लगती है ! इसका भी एक मात्र कारण - यह ब्लॉग जगत ही है ! आज उस पोस्ट को कुछ सुधार कर पेस्ट कर रहा हूँ ! उस समय मैंने इसे -"आप-बीती----०३. नवम्बर माह." के शीर्षक से पोस्ट किया था !
दुनिया में जो कुछ भी हमारे नजरो के सामने है ,उसमे  कुछ न कुछ है.यही कुछ एक छुपी हुई सच्चाई है अथवा सब   मिथ्या ! यानी मानो तो देव , नहीं तो पत्थर ! मैंने  बहुत से व्यक्तियों को तरह -तरह के तर्क देते और आलोचना करते देखा है ,यह आलोचना मौखिक और लिखित  दोनों रूप में मिल जायेगी ! बहुत से लोग इस दुनिया के मूल भूत इकाई पर  ,भरोसा ही नहीं करते! हमारी उपस्थिति ही किसी अनजान सच्चाई की ओर इंगित करती है !.और हम सब किसी के हाथ के गुलाम है .जो हमे पूरी तरह से बन्दर की भाक्ति नचाता है.! 


मै दुनिया के हर सृष्टी में  किसी के सजीव रूप को  प्रत्यक्ष देखता हूँ !. उसके इशारे बिना ,एक पत्ता भी नहीं हील  सकता ! . "जाको राखे  साईया ,मार सके न कोय." यह वाक्य  जब कही गयी होगी उस समय कुछ तो  जरुर हुआ होगा  या जिसने यह पहला उच्चारण किया होगा , उसने  कुछ न कुछ  अनुभव जरुर किया  होगा ! , इसी कड़ी को  सार गत आगे बढाते हुए  ,इस माह के आप-बीती के कड़ी में एक सच्ची घटना प्रस्तुत कर रहा हूँ.! 


बात उन दिनों की है ,जब मै सवारी गाड़ी के लोको चालक के रूप में पदोन्नति लेकर पाकाला डेपो  में पदस्थ था.पाकाला आंध्र प्रदेश के चित्तूर  जिले में पड़ता है.यहाँ से तिरुपति महज ४२ किलोमीटर है! यह घटना तारीख १५.०२.१९९९ की है! दिन सोमवार था.और मै २४८ सवारी ट्रेन को लेकर ,धर्मावरम  ( यहाँ  से सत्य साईं बाबा के आश्रम यानी प्रशांति निलयम ,जो अनंतपुर जिले में पड़ता है, को जाया जा सकता है ) से , अपने मुख्यालय  पाकाला की तरफ आ रहा था.! दोपहर की वेला और ट्रेन बिना किसी समस्या के ...समय से चल रही थी ! होनी को कौन  टाल सकता है! एक ह्रदय बिदारक  घटना घटी ! जिसे मै जीवन  में भूल नहीं पाता हूँ ! यह घटना मुझे हमेशा याद आती रहती है.! इसी लिए २०११ वर्ष में भी एक बार फिर आप के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ !


हुआ यह की जब मेरी ट्रेन मदन पल्ली स्टेशन के होम  सिगनल के करीब पहुँचने वाली थी,तभी एक नौजवान औरत करीब २२-२३ बरस की होगी ,अपने गोद  में  करीब एक बरस की बच्ची को लिए हुए थी ,अचानक पटरी के बीच  में आकर खड़ी हो गई.! .मेरी गाड़ी की गति करीब ५०-६० के बीच  थी ! मैंने जैसे ही उसे देखा आपातकालीन  ब्रेक  लगा दी ! गाड़ी तो रुकी पर उस महिला को समेट ले गई.! मै अनायास इस एक   पाप का भागी बन गया ! नया - नया और जीवन में पहली आत्महत्या देखी थी ! हक्का - बक्का सा हो गया ! समझ में नहीं आया की अब क्या करू !.खैर ट्रेन रुक गई.मैंने  अपने ट्रेन गार्ड को अचानक ट्रेन के रुकने की  सूचना दे दी और कहा की पीछे जाकर उस महिला के मृत शरीर  की मुआयना करें , देंखे  की क्या हम कुछ कर सकते है जैसे की फर्स्ट ऐड वगैरह यदि वह जीवीत हो ! मैंने अपने सहायक लोको पायलट श्री टी.एम्.रेड्डी  को जाकर देखने को कहा !.मेरे ट्रेन गार्ड श्री रामचंद्र जी थे !.कुछ समय के बाद मेरा सहायक चालक  मुझे जो खबर ,वाल्की -तालकी  के माध्यम से दी , वह चौकाने वाली थी! 

सूचना----
१) उस महिला की - सीर  में चोट की वजह से मौत हो चुकी थी.और पटरी  के किनारे उसकी मृत प्राय शारीर  पड़ी हुई थी ! .सीर  से खून  के फब्बारे लगातार रिस रहे  थे !
२)दूर कंकड़-पत्थर के ऊपर उसकी छोटी बच्ची  निश्चेत पड़ी हुई थी !


अब  समस्या थी उनके मृत अस्थि  को उठा कर ट्रेन में लोड करने की ! . मैंने ट्रेन गार्ड और अपने सहायक को कहा की दोनों के अस्थियो को ---उठा कर गार्ड ब्रेकभैन  में लोड कर लिया जाए ! उन्होंने ऐसा ही किया.! महिला के अस्थि को कुछ यात्रियों  की मदद से ब्रेक में लोड कर दिया गया ! जब मेरा सहायक उस  छोटी सी बच्ची को, जो पत्थर  पर मृतप्राय पड़ी थी ,को  उठाना चाहा , तो वह बच्ची तुरंत रो पड़ी और डरी-डरी सी कांपने  लगी.थी ! यह देख हमें आश्चर्य का ठीकाना न रहा क्यों की जिस बच्ची को हमने गेंद की तरह उप्पर उछलते देखा था , वह बिलकुल ज़िंदा थी ! यह विचित्र  दृश्य देख  ,सभी ट्रेन यात्री ,हक्का-बक्का सा हो  गए ! जिस चोट से उसकी माँ की मृत्यु हो गयी थी,उसी गंभीर चोट के बावजूद वह जिन्दा थी ! वाह ..क्या कुदरत की कमाल है.,इस दृश्य को जिन्हों ने देखा,वे जहा भी होंगे लोगो में चर्चा जरुर करते होंगे ! भाई वाह इस उप्पर वाले के खेल निराले !.हमने ट्रेन को चालू किया और मदन पल्ली रेलवे स्टेशन पर आ गये !उस बच्ची को थोड़ी सी चोट लगी  थी ,इस लिए रेलवे डॉक्टर को तुरंत बुलाया गया ! मदनपल्ली में रेलवे स्वास्थ्य केंद्र  है ! बाक़ी  जरुरी प्रक्रिया  करने के बाद ,मृत महिला और उसके जीवीत बेटी  को ड्यूटी पर तैनात स्टेशन मेनेजर को सौप दिया गया ,ताकि आस-पास के गाँव में ,सूचना फैलने के बाद,उचित परिवार को उनकी बॉडी सौपी  जा सके ! फिर हमने अपनी आगे की सफ़र जारी रखी !


मै शाम को ५ बजे पाकाला पहुंचा और सारी घटना - अपनी पत्नी को बताई ! मेरी पत्नी ने जो कहा वह वाकई नमन के योग्य है ! मेरी पत्नी ने कहा की - " उस बच्ची को घर लाना था हम पाल-पोस लेते थे ! " मै अपने पत्नी की इच्छा को सुन कर कुछ समय के लिए दंग रह गया और मन ही मन अपने पत्नी और उस दुनिया को बनाने वाले को नमन किया ! मेरे आँखों में आंसू आ गए ! क्यों की हमें कोई प्यारी सी  लड़की नहीं है ! मै सिर्फ इतना ही कह सका की ठीक है - अगले ट्रिप पर जाने के समय उस स्टेशन पर पता करूँगा ,अगर कोई  न  ले गया होगा तो उस बच्ची को अपने घर ले आऊंगा !


सोंचता हूँ आज मेरे पास वह सब कुछ है जो इस आधुनिक ज़माने में लोग इच्छा रखते है ! दो सुनहले सुपुत्र भी है एक राम जी तो दूजा बालाजी ,पर बेटी नहीं है ! शायद इसकी इच्छा  भगवान ने पूरी नहीं करनी चाही ! फिर भी सोंचते है , चलो दो बेटियाँ बहु बन कर तो आ ही जायेंगी !


दूसरी बार ,जब मै मदनपल्ली गया तो उस बच्ची के बारे में पता किया ! वह महिला पास के गाँव की रहने वाली थी ! उसके माता-पिता ,आकर उसके शव  और बच्ची को  ले गए थे! सोंचता हूँ,आज वह बच्ची करीब १३  बर्ष की हो  ही गयी है ! उससे मिलने और उसे देखने की इच्छा आज भी है ,लेकिन उसका पता मालूम नहीं  !.कई बार मदन पल्ली के स्टेशन मेनेजर से संपर्क बनाया पर उस समय ड्यूटी पर रहने वाले मास्टर के सिवा इस घटना  की जानकारी किसी और को नहीं है !


लोग इस तरह आत्महत्या क्यों करते है ? .क्या इस कार्य से वे संतुष्ट हो जाते है ? क्या घरेलु झगड़े का इस तरह निदान ठीक है ? मनुष्य को श्रद्धा  और सब्र  से काम लेना चाहिए ! सोंचता हूँ इस घटना के पीछे भी कोई घरेलु कारण ही  होंगे !.हमें जीवन को इतना कमजोर  नहीं समझना चाहिए !  जरुरत है अच्छे कर्मो  में लिप्त होने  की ! आखिर क्यों ? उस छोटी बच्ची का बाल न बांका हुआ और उसकी माँ को मृतु लोक मिला ! कुछ तो है !

Sunday, July 31, 2011

चलना ही जीवन है ! ( शीर्षक --डॉ मोनिका शर्मा जी )

कल रेनिगुंता में था !बारिश की फुहार पड़ रही थी ! हौले - हौले ! न जाने कितनी पानी की बुँदे ,जैसे दर्द बन कर गीर रही थी ! टप- टप ! लगता था जैसे सारा वातावरण रो रहा हो ! उमस के बाद ठंढी मिली थी ! बड़ी सुहावन लगी ! जल ही जल ! इसी लिए कहते है - जल ही जीवन है ! बूंद टूटा आसमान से ! धरती पर गीरा ,बहते हुए कुछ मिटा ,कुछ खिला और कुछ अपने अस्तित्व को बचा लिया ! यही तो जीवन है ! इसमे न पहिया है , न तेल ! बिलकुल चलता ही रहता है ! अजीव है यह जीवन ! कितना प्यारा ! कितना दुलारा ! सब चीज का जड़ ! क्या काटना अच्छा होगा ? या संवारना ? 

 सभी को अपने प्राण प्यारे होते है ! थोडा ही सही , किन्तु बहुत प्यारे ! आईये देखते है , वह भी बिना टिकट के ! आज की बात है ! जब मै रेनिगुंता से चेन्नई - दादर सुपर फास्ट लेकर चला ! मेरे साथ हवा चली ! लोको चला और पीछे यात्रियों से भरा कोच ! सभी अपने में मग्न ! मै भी , प्राकृतिक छटाओ को निहारते ,सिटी बजाते , जंगल के मध्य बने दो पटरियों पर , लगातार बढ़ते जा रहा था ! जब ट्रेन जंगल से गुजरती है तो बहुत ही मनोहारी दृश्य देखने को मिलते है ! आप को कोच से जीतनी सुहानी लगती है , उससे ज्यादा हमें ! कभी मोर दिखे तो कभी कोई हिरन छलांग लगा दी !

लेकिन आज जो मै देखा , वह एक अजीब सी लगी ! उस बिन टिकट यात्री को ! जो मेरे लोको के अन्दर चिमट कर बैठ  गयी  थी  ! हम  पूरी ड्यूटी के दौरान ,कई बोतल पानी गटक गए ! रास्ते में कहीं गर्मी तो कही बादल ! रेनिगुंता से गुंतकल की दुरी ३०८ किलोमीटर ! वह बिना पानी और भोजन के एक कोने में सिमटी हुयी जिंदगी की आस में उछल - कूद किये जा रही थी ! जब मेरी नजर उस पर पड़ी ! मै  उसे देखते रह गया ! इतनी सुन्दर  चित्रकारी और बेजोड़ कलाकारी ,वाह ! बार - बार ध्यान से देखा ! अपने सहायक को देखने के लिए विवस किया ! वह भी मुह खोले रह गया  ! इश्वर ने क्या चीज बनायी है !

छोटी सी दुनिया , इतनी खुबसूरत ! आज मेरे लोको में यात्री थी ,बिना टिकट के ! २७५ किलोमीटर तक मेरे साथ रही ! न पानी पी न भोजन  ! उसकी दशा  देख  , मुझे  तरस आ गयी  ! मैंने उससे कह दी तू गूत्ति आने के पहले अपने दुनिया में चली जा ! कब तक बिन खाए पीये  यहाँ पड़ी रहेगी ! शायद वह मेरे मन की बात समझ गयी ! गूत्ति आने के पहले ही वह फुर्र हो गयी ! क्योकि चलना ही जीवन है ! अगर वह और कुछ घडी रुक जाती , तो मौत  निश्चित थी ! मैंने उसमे जुरासिक पार्क के डायनासोर देखें! अब आप भी देंख लें -
 बिन टिकट यात्री !शीशे के पास दुबकी हुयी !
 ट्रेन की गति कम होने पर , जीवन की एक कला   !
 अपनी दुनिया के लिए बेचैन !
ध्यान से देंखें - उसके पंख पर डायनासोर ही तो है !इस्वरीय करामात !
यह तितली अपने को पूर्ण रूप से सुरक्षित रखते हुए यात्रा करती रही ! ट्रेन के रुकने पर पंख को फैलाना  और तेज गति के समय सिकोड़ लेना , जीवन की बुद्धिमता ही तो है ! हम भी इस मायावी संसार में फैलने और सिकुड़ने में व्यस्त है ! आखिर एक दिन सभी को बिन टिकट यात्रा करनी पड़ेगी ! यही तो कह गयी यह मेरी  प्यारी तितली !

Thursday, July 21, 2011

जीवन के अनुभव ( शीर्षक श्री दिगंबर नासवा )



इश्वर  ने  हमें  वह  सब  कुछ  दिया  है  , जो  सृष्टि  के किसी  प्राणी  को उचित ढंग से , नहीं मिली ! देखने  के लिए आँख , सुनने के लिए  कान  , खाने के लिए  मुंह  ..आदी  ! इसमे सबसे योग्य  हमारा  मष्तिक है , जो हमसे  सब कुछ करवाने  के लिए , मार्ग  दर्शन देता है ! उचित और अनुचित को इंगित भी करता है ,! बहुत सारे लोग अनुचित की  पहचान नहीं कर पाते और दुर्व्यवहार के आदि हो जाते है ! जब  तक  पहचान  होती  है , बहुत  देर  हो  चुकी   होती   है  ! धर्म और कर्म का बहुत ही  बड़ा सम्बन्ध है ! बिना धर्म के  शुद्ध कर्म नहीं ! बिन  कर्म , कोई धर्म नहीं ! बिना धर्म का किया हुआ कर्म जंगली फल की तरह है ! अतः धर्म से फलीभूत कर्म ही सुफल देता है ! 

मै  लोब्बी में साईन आफ करने के बाद , अपने गार्ड का इंतज़ार कर रहा था ! " सर आप को मालूम है ? "- उस क्लर्क ने मुझसे पूछा ?  क्या ? मै तुरंत प्रश्न कर वैठा   ! " सर  आज  उस अफसर ( नाम  बताया ) के वेटे का देहांत  हो गया  है  !" उसने जबाब दिया ! थोड़े समय के लिए मै सन्न रह गया ! समझ में नहीं आया , कैसे  दुःख  व्यक्त  करूँ ,और  कुछ   कहू ? कितनी बड़ी विडम्बना ! कुदरत ने कितने कहर ढाये थे , उस पर !क्षण  भर के लिए मै मौन ही रहना उचित समझा 
!
मेरे मष्तिक में उसके अतीत घूम गएँ ! एक ज़माना था , जब सब उससे डरते थे ! उसने किसी के साथ भी न्याय नहीं किया था ! बात - बात  पर  किसी को  भी  चार्ज सीट  दे देना , उसके बाएं हाथ का खेल था ! तीन हजार से ज्यादा कर्मचारी उसके अन्दर काम करते थे ! किसी ने भी उसे अच्छा नहीं कहा था ! सभी की बद्दुआ शायद उसे लग गयी थी ! यही वजह था की उसकी पत्नी ने भी अपने आखिरी वक्त में यहाँ तक कह दी थी की -  " मै तुम्हारे पापो की वजह से आज मर रही हूँ ! तुमने आज तक किसी का उपकार किये  है  क्या ?"

जी उसकी पत्नी कैंसर से पीड़ित थी , बहुत  दिनों  तक अपोलो अस्पताल में भरती  रही  और इस दुनिया को छोड़ चली गयी  ! उसके शव को  दूर  शहर  में  हाथ  देने  वाले कोई  नहीं  थे , फिर  भी .. उसके अधीनस्थ कर्मचारी ही , उस  शव को ..ताबूत में भर कर उसके गाँव भेजने में उसकी मदद को , आगे आये  थे !वह अपनी  करनी पर फफक - फफक कर रोया था ! उसके बाद उसमे बहुत कुछ सुधार नजर आये थे ! हर कर्मचारी को मदद करने के लिए तैयार रहता था ! अपने रिटायर मेंट तक , किसी को कोई असुबिधा महसूस होने  नहीं दिया था ! यह एक संयोग ही था , जो वह इतना बदल गया था ! काश इश्वर   उसे अब भी माफ कर दिए होते ! किन्तु नियति के खेल निराले ! न जाने उसके कोटे में पाप कितना था की आज  उसकी दुनिया से  उसका   एकलौता  वेटा  भी उसे  छोड़ कर चल बसा ! आज वह अकेला है ! जिंदगी  के गुनाहों को गिनने में व्यस्त ! सब कुछ कर्मो का फल है ! 

( सत्य  पर आधारित  घटना ! वह व्यक्ति ज़िंदा है ! नाम  छुपा दिए गए है ! ) 





Tuesday, July 5, 2011

आप एक सुन्दर शीर्षक बतावें ?....... शीर्षक = खतरों से खेलती जिंदगी ( श्री सुरेन्द्र सिंह " झंझट " )

लोको पायलट भारतीय  रेल  के रीढ़ की हड्डी है ! इनके लिए न कोई त्यौहार है , न ही उत्साह ! बस दिन - रात चलते रहते है , उस ट्रेन के चक्के के साथ ! यु कहे की ये एक तरह से कोल्हू के बैल की तरह है ! दिन हो या रात ..चलते ही रहना है ! रुक गयी तो परेशानी ही परेशानी !  जीवन चलने का नाम है ! इनके जीवन में  , एक चीज बहुत ही महत्त्व पूर्ण है ! वह है रात की नींद ! इन्हें सौभाग्य से  ही , एक पूरी रात सोने के लिए  मिलती  है ! अतः रात में काम और दिन में खूब सोना  जिंदगी का रूटीन सा हो गया है !!जब भी अवसर मिला ...सोने में मस्त !

कभी आधी रात को ड्यूटी में जाना पड़ता है ,  तो कभी पूरी रात के लिए ! रात में ड्यूटी के वक्त .. एक सेकेण्ड के लिए भी पलक झपकाना , खतरे से खाली नहीं ! अजीव सा जीवन है !  आप एक सेकेण्ड के लिए , लोको पायलट बन कर( सभी चीजो की ) अनुभूति कर सकते है ! किन्तु बहुत ही शानदार जीवन है , यहाँ आप को एक अनुशासित जीवन जीने की प्रेरणा मिलती है ! बिना अनुशासन के जीवन दूभर हो जाता है !

बात तारीख ०१-०७-२०११ की है ! मै सोलापुर आराम गृह में  अच्छी नींद में सो हुआ  था ! साधे ग्यारह बजे रात को काल बॉय मुझे उठाया , चुकी ट्रेन संख्या -१२६२८ ( नयी दिल्ली से बंगलुरु एक्सप्रेस ) समय से चल रही थी ! मै पूरी तरह से तैयार होकर डायनिंग रूम में  आकर सोफे पर बैठ गया और सहायक के आने की इंतज़ार करने लगा !  कुछ लोको पायलटो को बरांडे में शोर - गुल करते देखा ! मुझे ज़रा खीज भी आई ! इसलिए की ..सोने  के ac समय , ये लोग इधर - उधर टहल रहे है ! बहुमूल्य वक्त खराब कर रहे है !ये लोग  सो क्यो नही जाते ?

खैर , थोड़े समय बाद कूक चाय का प्याला मेरे सामने रख गया ! मै चुसकी ले ही रहा था की युनुस ( रेस्ट रूम का केयर टेकर )  मेरे सामने एक बोतल ला कर , तिपाई पर रख दिया !बोला सर - देखिये ? 
मैंने जो  देखा ..आप भी देंखे ? 
जी हाँ बोतल में सर्प ! मैंने युनुस से पूछ बैठा ! ये कैसे ? उसने कहा -  यह बाहर से आकर ..आप के रूम के तरफ जा रहा था ! यह तो ठीक हुआ की  मैंने देख लिया  अन्यथा  किसके पलंग या बैग में घुस जाता , किसी को नहीं मालूम ? मैंने उसे शाबासी दी और कहा - बहुत अच्छा काम किये जी ! इसे अपने अफसर लोगो को दिखाओ ? इस हालत में रेस्ट रूम कितना सुरक्षित है ? अब तो इस रेस्ट रूम में जल्द नींद भी नहीं आएगी ? संयोग अच्छा था जो तुमने इसे पकड़ लिए ? इसके बाद मैंने और दो तस्वीर लिए वह भी देंखे -

                                           युनूस बोतल को पकडे हुए !

                                  रेस्ट रूम कूक बोतल को खडा किये हुए !

दो जुलाई को ..मै गुंतकल आ गया ! फिर तारीख ०३ -०७-२०११ को ट्रेन संख्या -१२१६३ (दादर से चेन्नई ) को लेकर रेनिगुंता गया ! वहा भी शाम पांच बजे , जब रेस्ट रूम में गया , तो  देखा .. वाच मैन  एक सर्प को मार रहा था ! देंखें -

                                                     वाच मैन डंडे के साथ 
वाच मैन ने सर्प को मार कर बीच में जख्मी कर दिया था ! वह सर्प एक अमरूद के तने  के एक  खोह में छिपा हुआ था ! पौधों में जल डालते समय , माली ने सर्प को देखा था !

 इन घटनाओं को देखने से ऐसा लगता है की आज - कल हमारे रेस्ट रूम सजावट की वजह से सुरक्षित नहीं है ! रेलवे प्रशासन ने रेस्ट रूम के चारो तरफ छोटे - छोटे पौधों को लगा रखा है , जो मच्छर और इन निरीह जन्तुओ के आश्रय बन जाते है ! गाहे - बगाहे अगर किसी ने गलती कर दी तो परिणाम भुगतने पड़ जाते है !उपरोक्त घटनाए कोई नई नहीं है ! इस तरह की कई घटनाए मेरे जेहन में  बहुत सी  है , जिन्हें मै बाद में समयानुसार पोस्ट करूंगा ! उन्हें सोंच कर रोंगटे खड़े हो जाते है ! मैंने इन तस्वीरो को डी.आर.एम्./सोलापुर और गुंतकल मंडल को इ- मेल कर दी है !

आप सभी से निवेदन है की एक सुन्दर शीर्षक सुझाए ! अगली पोस्ट लिखने के पूर्व ही पसंदीदा शीर्षक (.आप के नाम के साथ ).ऊपर पोस्ट कर दूंगा ! कोशिश  करके देंखें !

Friday, June 24, 2011

अनुभूति

     जीवन  में कभी - कभी , कुछ चीजे मानव को सोंचने पर मजबूर कर देती है ! मनुष्य की दरिंदगी अपने आप में निष्ठुर और विनाशक है ! आज  मानव हर चीज को पाने की लालसा में , कुछ भी कर गुजरने के लिए तैयार है ! उसकी मन की आकांक्षा ..और भी तीब्र हो जाती है जब वह आधुनिक परिवेश की तरफ आकर्षित होता है ! उसके आकर्षण ,  दुनिया की हर पहलुओ को ध्यान से देखती  है ! चाहे पहनावा हो या खान - पान या अति - सुवीधाजनक  शानशौकत ! खान - पान में शाकाहारी हो या मांसाहारी  !  सभी के अपने रंग ! सभी अति की तरफ इंगित करते है ! 

तारीख २१-०६-२०११ को मै गरीब रथ एक्सप्रेस को लेकर सिकंदराबाद जा रहा था ! सिटी में इंटर कर गया था ! ट्रेन धीरे - धीरे स्व-चालित सिगनल  क्षेत्र में आगे बढ़ रही थी ! सनत नगर के पहले एक बूचड़ खाना है , जो रेलवे लाइन के बिलकुल किनारे में ही है ! वहां  रोज दो -तीन जानवरों की ह्त्या हो ही जाती है ! मैंने देखा ..कसाई कमरे के अन्दर ..किसी जानवर को काट कर .बगल में खड़े ऑटो रिक्सा पर लाद रहा था ! कमरे के बाहर दो बैल बिलकुल शांत मुद्रा में  खड़े थे और  एक बैल जमीन पर चारो पैर फैला कर लेटा हुआ था ! मेरे मन में हलचाल सी हुई ! आज उसके दिल पर क्या गुजरती होगी ,शायद वह अपने अंत को भाप गया है ,  अनुभव करने की जरुरत है ! वह सोंचता होगा की कल का उसका एक दोस्त , आज कसाई के जुल्म का शिकार हो गया ! कल उसकी पारी है !  वह बेजान धरती के ऊपर पडा हुआ था !

फिर दुसरे दिन यानी तारीख २३-०६-२०११ को गरीब रथ लेकर  सिकंदरा वाद  जा रहा था ! सहसा फिर उसी बूचड़ खाने पर नजर पड़ी ! देखा दो बैल खड़े थे , पर वह बेचारा नहीं था ! आज वे दोनों भी इस दुनिया में नहीं होंगे ! कितनी बड़ी विडम्बना है ! एक जीव दुसरे जीव की ह्त्या करने से नहीं चुकता ! उस कसाई का दिल कैसा होगा ? निष्ठुर , बेदर्दी और कुछ क्या - क्या ?

जो ह्त्या में विश्वास करते है , क्या उनसे प्रेम की निर्झर बहेगी ? क्या प्रेम उनके लिए कोई मायने रखती  है ? क्या उनके दिल में कोमलता की दीप होगी  ? क्या उनका प्यार भरोसे के काबिल है ? ऐसे स्वभाव के लोगो से जागरुक और सतर्क रहना ही उचित उपाय है !

कहते है ---जो बोल नहीं सकते   वे आने वाली कष्टों  को भाप जाते है ! जो देख नहीं सकते वे अपने दिल के आईने में वह सब कुछ देख लेते है , जो एक आँख वाले को मयस्सर नहीं होती !

आखिर हम इतने निष्ठुर और निर्दयी क्यों हो जाते है ? जो चीज हम खुद नहीं चाहते , वह दूसरो के लिए क्यों पैदा करते है ? क्या दूसरो को मार कर , हमारा अस्तित्व बना रहेगा ? ताकत से सत्ता तो मिल जाती है पर वह प्यार नहीं मिलता ! जिसके लिए सभी तरसते है !

Sunday, May 29, 2011

क्या आप संरक्षा के सहयोगी बनना चाहते है ?

गवर्नमेंट या सरकार ....आखिर कौन है ? क्या सत्ता के लोलुप या वोटर ? हर व्यक्ति सरकारी सुबिधा / लाभ  लेने के लिए इच्छुक रहते है ! क्या इच्छा ही काफी है या हमारे भी कुछ उत्तरदायित्व बनते है !हमारे देश में लोकतंत्रीय शासन विराजमान है ! जो विश्व में अपने तरह का एक नमूना और विश्व के लिए अनुकरणीय बन गया है ! विश्व के सभी देश इस ओर अग्रसर होने के लिए बेसब्री से कतार में खड़े मिल जायेंगे ! मुश्लिम देश भी इससे अछूता नहीं है ! आखिर इसके राज क्या है ?
लोकतंत्र हमें हर चीज की आजादी देता है और वह आजादी ...किसी दुसरे की आजादी को ठेस.... पहुचाने के लिए छुट नहीं देती ! देश के सभी ...धन - संपदा के हिस्सेदार होते है ! सभी को हर क्षेत्र में बराबर की हिस्सेदारी होती है ! चाहे किसी धर्म या जाति या लिंग  का क्यों न हो ! जब हमें इस तरह की आजादी मिलती है ,तो हमारे उत्तरदायित्व ...अपने देश और इसकी धन - संपदा के प्रति और बढ़ जाते है ! हर सरकारी संपदा की हिफाजत करना ...हर नागरिक का परम कर्तव्य है !

गलत लोगो को सार्वजनिक करना भी हमारे उत्तरदायित्व के अन्दर आ जाते है ! देखा जाए तो यही हम असफल हो जाते है ! आखिर क्यों ? गलत लोग हमारे आस - पास ही पनपते और बढ़ते है  !पनपने के पहले ही उनके जड़ को समूल नष्ट  करने चाहिए , कानूनी दायरे में ! अगर ऐसा होता तो हम इन आतंकवाद , भ्रष्टाचार , अलगाववाद और नक्सलवाद के रोग से विल्कुल मुक्त होते थे ! नासूर को बढ़ने देने से .. यह ..एक दिन  बड़ा कैंसर बन जाएगा ! इस तरह के रोगों का इलाज कठिन और महँगा भी होगा ! आज हम इससे रोज जूझ रहे है !

तारीख ---२५-०५-२०११ , मै दादर - चेनई ( १२१६३ ) सुपर फास्ट को लेकर रेनिगुन्ता  तक जा रहा था ! समय से दस मिनट लेट ...ट्रेन गुंतकल से   ...रवाना हुई ! रायालाचेरुवु  तक दोहरी लाईन है ! ट्रेन दोहरी लाईन में ११० किलोमीटर / घंटा के हिसाब से  दौड़ रही थी ! नक्कनादोदी  स्टेशन आने वाला था ! बगल के लाईन से एक पैसेंजर ट्रेन ( हिन्दुपुर - गुंतकल ) दौड़ रही थी ! अचानक उस ट्रेन के लोको पायलट ने हमें वाल्की - ताल्की पर पुकारा ! मेरा सहायक.... तुरंत ..उसका जबाब दिया !

" "ट्रेन के बीच में किसी कोच के अन्दर से  धुँआ निकल रहा है ! "- पैसेंजर लोको पायलट ने खबर दिया ! मैंने पूरी वार्तालाप सुन लिया था ! अतः तुरंत ट्रेन को नक्कन डोंडी  स्टेशन में खडा किया और सहायक लोको पायलट को जाकर चेक करने को कहा ! गार्ड और सहायक ....दोनों ने मिलकर ट्रेन की मुआयना किये ! समस्या बी -१ वातानुकूलित कोच में था ! वातानुकूलित जेनेरेटर से धुँआ आ रहा था ! उसे वातानुकूलित tech .... ने ठीक कर दिया ! ट्रेन फिर अपने गति से चल दी !

इसी दिन फिर ..जब ट्रेन नन्दलुर स्टेशन को रोड -१ से १५ किलोमीटर / घंटा की  गति से पास हो रही थी  , तभी किसी ने आपातकालीन जंजीर खिंच दी ! ब्रेक  पाईप  प्रेसर गिरने लगा और   ट्रेन चिचियाकर रुक गयी ! इसकी सूचना स्टेशन मैनेजर और गार्ड को दे दी गयी ! समस्या के समाधान के लिए , फिर मैंने सहायक को जाकर देखने को कहा ! वह गया ! पीछे से गार्ड साहब भी चेकिंग में जुटे ! ट्रेन का प्रेसर आ गया ! मैंने सिटी बजाई और गार्ड साहब पीछे तथा मेरा सहायक लोको में आ गया ! सहायक ने जो सूचना दी वह इस प्रकार है ---
                                         कोच संख्या -बी.१ में एक युवक शौचालय में गया था और उसका पर्स ..जिसमे दस हजार रुपये ,एतियम कार्ड  , क्रेडिट कार्ड वगैरह था , शौचालय के बीच छिद्र से ...नीचे गीर गया था ! अतः उसी ने चैन खींचा था ! पर्स नहीं मिला है और इसकी सूचना गार्ड ने स्टेशन मैनेजर को दे दी है ! वह व्यक्ति गार्ड ब्रेक में है , अगले स्टेशन में शिकायत करेगा !

देखा  आपने  ...एक ही दिन मैंने दो तरह के लोग से मुखातिब हुआ ! एक पैसेंजर लोको पायलट ...जिसने अपनी सतर्कता से सुपर फास्ट ट्रेन में ....आग जैसी किसी अनहोनी से .....रेलवे की सम्पति और ट्रेन में सफर करने वाले.. लोगो  की सुरक्षा की ! दूसरी तरफ ... एक लापरवाह व्यक्ति ने अपना बहुत कुछ खो दिया ! उसकी ज़रा सी सावधानी उसके पर्स को ...चलती ट्रेन से गिरने से बचा  सकती थी  !

 हम लोको पायलट ...आप की सुरक्षा और संरक्षा  की जिम्मेदारी लेकर .. दिन हो या रात ...सदैव चलते रहते है ! रात को आप अपने बर्थ पर बिना किसी चिंता के सो जाते है और हम आप की मंजिल को ....आप के कदमो के करीब.... ला खडा करते है ! क्या आप हमें कुछ मदद करेंगे ?
          १. अपने सामान को विशेष ध्यान देकर रखे  !
          २.अंजान व्यक्तियों से कुछ खान - पान न करे ! 
          ३. किसी तरह की असुविधा होने पर टी.टी. या पुलिस  स्टाफ  को सूचित करें !
          ४. आप जिस कोच में सफर कर रहे हो ,उसमे किसी तरह की ...अनावश्यक ध्वनी या धुँआ या                  आवाज आ रही हो तो निकट के स्टेशन मैनेजर या गार्ड या लोको पायलट को तुरंत सूचित                      करें!
          ५.ज्यादा खतरा महसूस होने की हालत में ...आपातकालीन जंजीर खींचना न भूलें !हम             
                आपके जंजीर खींचने की परख कर ...गाडी तुरंत खड़ी कर ....समस्या का निदान करने की                    सफल प्रयास करते है !   
           ६.सुरक्षा के मद्दे - नजर ..ट्रेन में झगड़ा - झंझट न करें ! एक दुसरे से शान्ति बनाए रखें!
           ७. छोटे - छोटे बच्चो को कोच से बाहर न जाने दे ! उससे आप और हम रेलवे... समयपालन
                   करने में चुक जायेंगे ! समय की हानि होगी ! 
            ८ ज्वलन शील पदार्थ यात्रा के समय लेकर न चले  ! इससे आप और रेलवे ,,दोनों को           
                    परेशानी .... की सामना करना पडेगा ! 
             ९. कीमती गहने ..पहन यात्रा न करें !
              १०. ट्रेन से यात्रा करते समय ...न हाथ खिड़की से बाहर निकाले , न दरवाजे पर झूले या न दरवाजे पर वैठे ! यह ट्रेन के दौड़ते समय ..घातक सिद्ध हुयी है ! बहुतो ने अपनी जान गवा दी !
              ११.) आप हमारी मदद करें, हम .. आप की सेवा में सदैव नतमस्तक है !

करेंगे न .?        
( कमेन्ट हिंदी में .. लिखने के लिए ..इस ब्लॉग के निचे   सुविधा उपलब्ध है , वहा जाए और अपनी बात इंगलिश में लिखे , वह हिंदी या अन्य भाषा में परिवर्तित हो जायेगी !फिर कॉपी कर ...पोस्ट के कमेन्ट खाने में पेस्ट कर दें ! दूर जाने की झंझट गायब )      

Monday, April 25, 2011

दिल न तोड़ें .......handle with care

                                    चित्र में -बाए से चौथा--  मेरे बालाजी....... ..नृत्य करते हुए !
                  बच्चे बहुत भाऊक होते है ! विशेष कर बचपन में ! उन्हें अच्छे - बुरे की परिपक्वता नहीं होती ! बात - बात पर रूठना , गुस्से करना ,बहाना बनाना ,हिचकिचाना ,नक़ल करना , आदि ख़ास बाते ...बच्चो में प्रमुखता से पायी जाती है ! इन सभी गुणों का बड़ो में भी पाया जाना ...एक बचपनी हरकत से कम नहीं ! इसीलिए तो कहते है -बुढापा बहुधा बचपन का पुर्नागमन  होता है !

                       इन सभी बातो के मद्दे नजर यह जरुरी है की बच्चो के साथ ..बड़ी सावधानी से वर्ताव किया जाय ! माता - पिता हो या गुरुजन .......बच्चो के  मनोविज्ञान को समझ कर ही ....डाटने / फटकारने / और अपने विचार प्रकट करने  की कोशिश होनी  चाहिए ! बच्चे प्यार के भूखे होते है ! प्यार से इन्हें कुछ भी कहा या समझाया जा सकता है !

                        चाणक्य ने कहा था --" माता - पिता / गुरुजन को अपने बच्चो / शिष्यों से ज्यादा प्यार नहीं करना चाहिए ! समयानुसार माता - पिता को बच्चो को डांटने / गुरु को शिष्य को पीटने से नहीं हिचकना चाहिए ! ज्यादा प्यार उद्दंड बना देता है  और बच्चे सही मार्ग से भटक जाते है !"

                        संक्षेप में सोंचे तो हम यह पाते है की कोई भी  माता - पिता / गुरु  का ....व्यवहार  बच्चो के लिए उपयोगी और मददगार ही होता है ! कोई यह नहीं चाहता की उसका शिष्य या संतान ...दुनिया की नजरो में अयोग्य  ,दुराचारी और जीवन की दौड़ में नाकाम रहे ! बच्चे यदि शांत प्रिय और आकर्षण के धनी हो तो ...सोने पे सुहागा ! किन्तु बच्चो में नक़ल की प्रवृति ...बड़ी तेज होती है ! अभिभावक / गुरुजन में गलती हो , तो ये आसानी से ग्रहण कर लेते है ! जिससे हमें काफी सतर्क रहनी चाहिए ! इसीलिए तो कहते है --" पारिवारीक संस्कार का बच्चो पर काफी प्रभाव पड़ता है ! " यानी जैसा बांस , वैसी बांसुरी !

                      बहुत सी बातें होती है , जिन्हें हम अभिभावक गण ..बच्चो के सामने प्रकट नहीं करे , तो बेहद सुन्दर !जैसे -माता - पिता  का आपस में झगड़ना ,दूसरो की निंदा करना ,किसी को भद्दी गाली देना , किसी दुसरे बच्चे की शेखी बघारना इत्यादी ! अच्छी देख - भाल ..पौधे को उन्नत और सुदृढ़ बनाती है!  आईये एक सुन्दर बच्चो के उपवन और भविष्य के तारो की सृजन में लग जाएँ ! बच्चे ही हमारे कल की आलंबन है !

                      आज - कल परीक्षा और उसके परिणामो के दिन है ! सफलता और असफलता ..आएँगी , कोई रोयेगा , कोई रुलाएगा ! किसी ने आत्म -ह्त्या की, तो  किसी ने आग लगायी , तो कोई तीन मंजिले भवन से नीची छलांग ! आये दिन  अखबार लिखेंगे और हम पढेंगे ! कब क्या होगी किसी को नहीं मालुम ! इस विषय पर सोंचने के लिए बाध्य होना पड़ा और पुरानी यादे तरो - ताजा हो मष्तिष्क  पर घूम गयी ! आप भी देख लें -

                  तारीख -०४ / ०५-०५-२००८...दिनांक रविवार /सोमवार , मै उस दिन ट्रेन संख्या -२४२९ .बंगलोर से हजरत - निजामुदीन जाने वाली राजधानी एक्सपेस काम करते हुए आ रहा था ! रात्री का समय था ! रात के बारह बजे के आस - पास ट्रेन अनंतपुर......... (स्वर्गीय / भूतपूर्व राष्ट्रपति ...श्री नीलम संजीव रेड्डी का पैत्रिक  शहर और सत्य साई बाबा का जिला , जिनका आज पुर्त्त्पर्ती में देहांत हो गया है ) ...में रुकी ! दो मिनट के बाद सिगनल मिला ! मेरा सहायक लोको पायलट श्री के.एन.एम्.राव थे ! गार्ड के अनुमति के बाद ..हमने ट्रेन को चालू किया ! प्लेटफोर्म से ट्रेन ...धीरे - धीरे बहार निकल रही थी ,  घोर अन्धेरा ...ट्रेन की  हेड लाइट तेज ! हम लास्ट स्टॉप सिगनल के करीब पहुँच रहे थे ! मैंने देखा की कोई बण्डल या कोई मृत बॉडी........ दोनों पटरियों के बीच...पड़ी हुई है ! मैंने अपने सहायक का ध्यान आकर्षित  किया ! उसने भी देखा ! तब - तक ट्रेन ..बहुत नजदीक आ चुकी थी ! मैंने उस जगह एक हलचल देखी और तुरंत ट्रेन को रोक दिया !  मैंने सहायक को जा कर देखने को कहा !
                   सहायक गया और  जो देखा ...वह ....यह  की एक सोलह / पंद्रह वर्ष का लड़का ...स्पोर्ट पायजा और टी - शर्ट पहने हुए ...घायल अवस्था में दोनों पटरियों के बीच कराह रहा था  ! उसके पैर और सिर में काफी चोट लगी थी और वह लहू- लुहान था ! टी - शर्ट खून से भींग गए थे ! मामला समझते देर नहीं लगी .....क्योकि.......परीक्षा के परिणाम के दिन थे ! शायद घर वाले कुछ कहे हो या खुद...असफलता वश .... उसने ऐसी साहसिक  कदम उठाये हो ! हमारे आगे कई एक्सप्रेस ट्रेन जा चुकी थी , उन्ही में से किसी के सामने आया होगा , पर अपने मनसूबे में सफल नहीं हो सका था ! हमने पास के ट्राफिक गेट-मैन को उसे अस्पताल भेजने के लिए सौप दिया तथा इसकी सूचना स्टेशन मैनेजर को वल्कि - तल्की के द्वारा दे दी ! फिर आगे बढ़ गए !
                 अप्रैल और मई के महीनो में...... शहरों से गुजरते समय..... भगवान से यही प्राथना करते है ......की कोई मासूम हमारे ट्रेन के निचे.... न आये !  उस दिन हमने एक माँ के जिगर के टुकडे को... उसे सुरक्षित वापस भेज दिया ! एक अनर्थ से बचे !  इसीलिए तो कहते है.....दिल न तोड़ें ..
       

Thursday, April 14, 2011

एक रूप भ्रष्टाचार का ......

भ्रष्टाचार   शब्द  आज के जीवन में ...चरम रोग बन गया है ! किसी न किसी रूप में हर ब्यक्ति , इस कैंसर से पीड़ित है ! किसी भी सरकारी कार्यालय में ..किसी कार्य वश    जाने पर  हमें  इसके प्रभाव से ग्रसित होना पड़ता है ! लिपिक का समय पर काम न करना, अधिकारी द्वारा फरियाद न सुनना, बार - बार कार्यालय का चक्कर लगाना ,समाधान को टालते रहना .....वगैरह - वगैरह ! ट्रेन में वर्थ खाली रहने पर भी .टी.टी.द्वारा वर्थ किसी को अलाट न करना ....सरकारी अस्पताल में दवा रहने पर भी न देना, पंचायत /पौर सभा  कार्यालय में बर्थ  प्रमाण पत्र का न देना  ,समय से किसी चीज का  न मिलना ! कितना गिनाऊ !हर क्षेत्र में तथा हर मोड़  पर हमें भ्रष्टाचार घेरे हुए है !
 प्रश्न उठता है की आखिर भ्रष्टाचार है क्या ? 
      इससे कौन ग्रस्त है ? 
    आखिर ऐसा क्यों ?
    देने वाला भ्रष्ट है या लेने वाला ?
 क्या इससे बचा जा सकता है ? वगैरह - वगैरह !
 संक्षेप में देखें  तो उस देश की संबैधानिक क्रिया - कलाप को ताक पर रख..उलटा - पुलटा कार्यवाही ही भ्रष्टाचार की सीमा में आती है !मनमानी करना और अपने धौश  को ज़माना भी इससे परे नहीं है !किसी से भय नहीं ..या भय नाम की कोई चीज नहीं !संस्कार का आभाव ! मान- मर्यादा का उलंघन ! 
जी हाँ ताली दोनों हाथो से बजती है ! मरीज बीमार तो डाक्टर होशियार ! दोनों अपने -अपने जगह तीस  - मार खान ! सभी को जीवन में इतनी जल्दी पड़ी है  , की कोई भी ज्यादा इंतज़ार नहीं करना चाहता ! भाग - दौड़ की जिंदगी में फटाफट की चित्तकार ! कोई किसी का सुनाने वाला नहीं  ! सभी  शिक्षित , पर सदाचरण का अभाव !
 इससे ज्यादातर ..सभी और सुसंस्कृति को पालन करने वाले पूर्ण रूप से परेशान !
सभी कम समय में बलवान  और शक्तिशाली बन जाना चाहते है ! निति का कोई मोल नहीं तथा  इस पथ पर चलने वाले को मुर्ख तक कह दिया जाता है ! किशी को कोई नौकरी मिली , तो आस - पास वाले पहले यही पूछते है की - उपरवार आमदनी है या नहीं ! अगर नहीं है तो सब कहते मिल जायेंगे की ..तन्खवाह तो ईद का चाँद है !
भ्रष्टाचार  को बढ़ावा देने वाले ..तो और कोई नहीं ऊपर से हाथ बढाने वाले ही है ! लेने वालो का हाथ ..सदैव  निचे होता है ! क्या आप दोनों पसंद करते है या नापसंद ? हमें भय मुक्त होकर तप करने होंगे , तभी समृधि आएगी ..परिवार में , समाज में , देश में और फिर हमारे मान और सम्मान में !
संतोष सबसे बड़ा धन है ! बिना संतोष   सभी निर्धन ! यही कारण है  की असंतोष मानव को विभिन्न तरह के दुष्कर्मो को करने के लिए प्रेरित करता है ! यही  दुष्कर्म   एक दिन हमारे अंत के रूप में ..उदय होता है !
खैर मै कोई दार्शनिक नहीं ...धर्मवेत्ता नहीं ...प्रचंड विद्वान् नहीं ..वश एक साधारण सा इंसान हूँ ! जो महसूस किया , उसे अपने ब्लॉग के माध्यम से आप के सामने प्रस्तुत कर देता हूँ !
 प्रसंग वश कुछ कहना अच्छा लगता  है ! अन्ना हजारे साहब ने ..जंतर -मंतर पर बैठ ...आमरण अनशन कर ..भ्रष्टाचार के बिरुद्ध लडाई छेड़ी, जो अपने - आप में ...आज की आवाज और समय की मांग है ! इसे हम सभी को एक जुट होकर लड़ना चाहिए !
मतदान के वक्त ..स्पस्ट  मतदान उस उम्मीदवार को दे , जो सबमे सुन्दर हो !
पार्टियों  के बिल्ले पर न जाए !
भ्रष्टाचार का बिरोध करना जरुरी है ! बढ़ावा न दें !
सरकार को चाहिए की भ्रष्टाचारियो  के पुरे  सम्पति को सिल कर... राष्ट्रीय  कोष में जमा करे !
हर सरकारी विभाग में ..सभी कार्यो के लिए  समय सीमा का निर्धारण होनी चाहिए ! इसका उलंघन होने पर सजा का प्रावधान हो !
सरकार को चाहिए की ऐसी सुबिधा  अपने कर्मचारियों को दे , जिससे की उन्हें अगल - बगल न झांकना पड़े ! जैसे -आवास , शिक्षा ( बच्चो को ), बिजली ,सामाजिक उत्थान , इत्यादी मुहैया कराने की  जिम्मेदारी सरकार ले !
किसी भी तरह के खरीद - फ़रोख ...रुपये से न कर ....इलेक्ट्रोनिक आधार से किया जाय !
भ्रष्टाचारियो  का सामाजिक बहिष्कार होनी चाहिए ! न इनके समारोह में भाग लें , न ही इन्हें अपने समारोह में निमंत्रित करें !
अब  आये  एक घटना की जिक्र करे -----
मै उस दिन  यस्वन्तापुर रेलवे स्टेशन पर .....गरीब रथ के लोको में  प्रवेश कर ..लोको के भीतरी उपकरणों की जांच - परख कर रहा था ! ट्रेन रात को आठ बज कर पचास मिनट पर छुटने वाली थी ! तभी एक युवती  करीब सत्रह - अठ्ठारह वर्ष की होगी , जींस और टी - शर्ट पहने हुए थी , लोको के खिड़की के समक्ष आ कर खड़ी  हो गयी !
 सर ..आप ही इस ट्रेन के लोको पायलट  है ? उसने पूछा !
 जी हाँ ! मैंने जबाब दिया !
 सर  मेरी बहन का लैप-टाप घर पर ही छुट गया है !वह हैदराबाद जा रही है ! कृपया ट्रेन को एक मिनट के लिए दोदबल्लपुर में खड़ा करेंगे ?-  उसने प्रश्न किया ! मैंने सीधे इनकार कर दिया क्यों की रात का समय और उस स्टेशन में गरीब रथ भी नहीं रुकती है !
 वह मानी नहीं ! अपने जिद्द पर अड़ गयी थी ! मेरी कुछ न सुनी ! आखिर मै...उसके विवसता को भाप गया तथा ..सोंचा ...मदद करनी चाहिए !जो मेरे वश में है ,उसे मदद में इस्तेमाल करने से कोई हानि नहीं !
फिर क्या था , मै अपने लोको के मेधा स्क्रीन के रीडिंग  पढ़ने के लिए मुडा ! तभी देखा की वह युवती लोको के अन्दर   घुस गयी और मेरे करीब आकर खड़ी हो गयी ! मेरा सहायक लोको की जाँच - पड़ताल में बाहर व्यस्त था ! मुझे कभी भी महिलाओं से नजदीकी नहीं रही है और इससे परहेज भी करता हूँ ! किसी महिला से बात करना , मेरे वश में नहीं ! ब्लॉग में महिलाओ के ब्लॉग पर हिम्मत जुटा कर टिपण्णी करता हूँ ! ऐसा क्यों , शायद  मुझे भी   नहीं मालूम !
अन्दर आते ही उसने कहा - सर ....please .
 मै मेधा स्कीन को देखते हुए बोला - " मैंने कह दिया है न !मुझे परेशान क्यों कर रही हो ! कुछ हो गया तो मै इसका जिम्मेदार हूंगा ! "  इतना कहने के बाद मै उसके तरफ मुखातिब हुआ ! देखा वह पांच सौ  के नोट को मेरे तरफ बढ़ाये हुए खड़ी थी ! वश क्या था , मै आपे से बाहर हो गया ! कहा - गेट आउट फ्रॉम हियर ! शर्म नहीं आती ! क्या बिकाऊ समझी हो ! पैसे से सब - कुछ खरीदना चाहती हो ! क्या जीवन में पैसा ही सब - कुछ है !
 वह डरी और सहमी सी   तुरंत लोको से नीछे उतर गयी ! फिर उसने सहस नहीं की  , कुछ बोलने की !
       जी हाँ  दुनिया में बहुत से लोग ...पैसे से सब - कुछ खरीदना चाहते है ! इतना ही नहीं ..बिकाऊ भी बिक जाते है !कुछ सच्चेऔर ईमानदार ब्यक्ति होते है , जिन्हें इस दुनिया  की कोई सम्पति खरीद नहीं सकती ! वे अनमोल होते है ! ऐसे लोग आज - कल विरले ही मिलते है ! उन्हें उपहास में गाँधी जी या राजा हरिश्चंद्र जैसे उपाधि मिल जाते है !
   आज के विचार ----


''हमें  यदि किसी को गाली का उत्तर नहीं दिया जाय , तो उसका क्रोध शांत हो जाएगा ! इसीलिए मौन को सबसे बड़ा वरदान और सुख माना गया है !जागरुक और सावधान ब्यक्ति को किसी प्रकार के भय की आशंका नहीं रहती ! प्रायः रोग , शत्रु , तथा चोर - डाकू आदि असावधान और सोते ब्यक्ति पर ही आघात करते है !जागते को देख कर सभी भाग जाते है !अतः स्पस्ट है की उद्योग  ......समृधि का ,  तप...पाप नष्ट का ,  मौन.....शांति का ,  और  सावधानी...भय से , बचने के लिए निश्चित माध्यम है !-''----चाणक्य 

 आप सभी को बैशाखी की शुभ कामना !

Saturday, April 9, 2011

कभी - कभी --०३..महाप्रबधक( दूसरा भाग )

सिकंदराबाद रेलवे स्टेशन  का बाहरी दृश्य !
पत्र संख्या  - डी.पि.०४२/८३/२००६.   दिनांक -२१-०१-२००६.गुंतकल.
 महामहिम 
        माननीय महाप्रबंधक जी.
        दक्षिण मध्य रेलवे ,सिकंदराबाद 
       ( गुंतकल आगमन पर ,निरिक्षण के दौरान )
       गुंतकल.
   विषय -रंनिंग कर्मचारियों की दर्दनाक वेदना और क्षेत्रीय मेल / एक्सप्रेस लिंक का लागू किया जाना !
           श्रीमान , मै गोरख नाथ साव (G .N .SHAW) उपरोक्त एसोसिएसन के मंडल अध्यक्ष के पदा-धिकारी 
 के तौर पर , इस पत्र के माध्यम से , आप का ध्यान , निम्न कुछ बातो पर आकर्षित करना चाहता हूँ:-

                                    सबसे पहले सभी रुन्निंग कर्मचारियों के तरफ से ,गुंतकल मंडल में ,आप का 
 हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ ! जैसा की सर्व विदित है , रंनिंग कर्मचारी चाहे मेल/एक्सप्रेस/मालगाड़ी चालक 
 हो या सहायक चालक या संटर ,सभी रेलवे के अर्थ  को बढाने तथा  माल - जान की सुरक्षा में प्रमुख भूमिका 
 निभाते है ! यह तभी सम्भाव्शील होता है जब सभी रुन्निंग कर्मचारी , मानसिक व् शारीरिक रूप से स्वक्छ हो     !
         यह स्वच्छता तभी संभव है ,जब सुचारू रूप से अनुशासन को पालन करने दिया जाय ! अनुशासन  तभी पालन होगा , जब मानव पूर्ण रूप से तैयार और जागरुक हो ! तैयार और जागरुक तभी होगा , जब काम करने की क्षमता हो ! काम करने की क्षमता ..तभी प्रखर होगी , जब मनुष्य पूर्ण आराम किया हो ! और आखिरी में यही पूर्ण आराम संरक्षा का दूसरा रूप भी है !

                                 संक्षेप में पुरे रेलवे की व्यस्था का परिवाहक   ये रुन्निंग स्टाफ होते है ! अंततः रंनिंग स्टाफ रेलवे में उत्पन्न  ,उत्पादकता का ग्राहक है ! उत्पाद जैसा होगा ,वैसी ही परिणाम प्राप्त होगी ! अतः अच्छे और सुरक्षित अर्थ व्यवस्था के लिए --यह आवश्यक हो जाता है की रंनिंग कर्मियों के रहन - सहन तथा कार्य प्रणाली पर विशेष ध्यान दिया जाय ! इसके अंतर्गत उनके मानसिक ,शारीरिक ,सामाजिक व् आर्थिक व्यवस्था  को समृद्ध बनाना बहुत जरुरी हो जाता है !क्योकि रुन्निंग कर्मचारी रेलवे की रीढ़ है १ अगर रीढ़ की हड्डी टूट गयी ,तो पुरे रेलवे  की व्यवस्था चरमरा जाएगी !

                                      मैंने तीन बातो /शब्दों का उपयोग ज्यादा किया है ( मानसिक ,सामाजिक व् आर्थिक )क्योकि रुन्निंग कर्मचारी के शरीर को ये शब्द बुरी तरह से प्रभावित करते है ! उदाहरणार्थ -आर्थिक स्थिति बिगड़ने से मानसिक संतुलन घटता है व् मनुष्य  समाज से अलग थलग होने लगता है ! परिणामतः शारीरिक प्रक्रिया में वीकार उतपन्न हो जाते है !यह शारीरिक वीकार किसी को भी सुरक्षा की गारंटी नहीं दे सकती !जब ब्यक्ति खुद शारीरिक विकार से पीड़ित हो , तो वह किसी को कहाँ से सुरक्षा प्रदान करेगा !नतीजतन --दुर्घटना अवश्यमभावी है !

                                    रेलवे में दुर्घटनाये होती है तथा विभिन्न प्रकार के कमेटियो के द्वारा , इसकी जाँच करायी जाती है !परिणाम --कुछ नहीं मिला तो मानवी भूल बता कर काम चला लिया जाता है !अगर ऐसा ही है , तो क्या ?..किसी ने सोंचने की कोशिश की है ? आखिर क्यों ?यह मानवी भूल ?


                          जी हाँ ,इन सभी मानवी भूल का मूल कारन शारीरिक ,मानसिक ,आर्थिक व् यांत्रिक असहयोग ही है ! और इन सभी कारणों के कारन कौन है ?आखिर कब तक ऐसा चलता रहेगा ?


                        अगर यही सिलसिला जरी रहा तो वह दिन दूर नहीं , जैसा की सन २००३-२००४ के दौरान हुआ !( लगातार पैसेंजर ट्रेन दुर्घटना ),फिर भविष्य में देखने को मिले १अगर ऐसा हुआ तो  यह जान बुझ कर की गयी , मानवी भूल की श्रेणी में आयेगा ! हमें सोंचना पडेगा परिणामो के बारे में !

                     समय की पुकार है , रुन्निंग कर्मचारियों के काम के घंटे कम किये जाय ! फास्ट ट्रेनों की वजह से 
 दुरीया स्वतः बढ़ती जायेंगी !रंनिंग कर्मियों के भीतर अराजकता का फैलाव ,कुपोषण तंत्र को पैदा कर सकता है !जिससे हमें होशियार रहना चाहिए !

                         आज के आवश्यकता के अनुसार रुन्निंग कर्मियों को वीकार की तरफ धकेलने के वजाय,प्यार और उनके अधिकार की आवश्यकता पर ध्यान देना ..सबसे जरुरी बात है ! अगर रुन्निंग कर्मचारी सुरक्षित है .तो रेलवे में कार्यरत सभी कर्मी सुरक्षित है ! देश की करोडो जनता ..सुरक्षित है ! हम और आप सुरक्षित है !  रही अर्थव्यवस्था की सुदृढ़ करने की ,तो इसे सुदृढ़ बनाने के लिए ..और कई साधन है जैसे -अर्थ अपव्यय को रोकना आदि !

                      रुन्निंग कर्मचारियों को , अपने सामाजिक चिन्तनो को भुलाकर नए - नए तकनीकी साधनों से गुजरना पड़ता है ! चाहे इंजीनियरिंग विभाग हो या सिग नलिंग या लोकोमोटिव या नियम - कानून !किसी ने भी यदि किसी तरह की त्रुटी की ,तो वह रंनिंग कर्मचारी है , जो प्रत्यक्ष प्रभावित होगा या सभी को प्रभाव से बचाएगा !

          देश में कर्तव्य निभाते हुए        दो श्रेणोयो को ही मौत को गले लगाते देखा गया है ! १) सीमा के प्रहरी ..हमारे वीर सैनिक  व् २) दुर्घटना के समय रंनिंग कर्मचारी ( रेलवे में )! दूसरा कोई विरले ही होगा जो कर्तव्य करते -करते मृत्यु को प्राप्त हो !

                                           उपरोक्त ,कुछ तथ्यों को देखते हुए कहा या समझा जा सकता है की अर्थव्यवस्था को सुदृढ़ करने के लिए ,रंनिंग कर्मचारियों के काम के घंटे तथा कार्य करने की प्रणाली में फेर बदल करने से ,उनकी सामाजिक , मानसिक तथा आर्थिक प्रक्रिया को उन्नतिशील या अवन्नितशील बनाया जा सकता है !

                             कोई भी फेर बदल ,आराम दायक होनी  चाहिए ! अन्यथा यह दुर्घटना तथा अनर्थ का आगामी होगा ! आज के रंनिंग कर्मचारी सच में कहा जाय तो मुह है ,लेकिन गूंगे है ! कान है , पर बहरे है ! आँख नहीं है ..पर देखते है !अर्थात व्यवस्था से ये इतने भयभीत हो चुके है की मूकदर्शक होकर , सब कुछ सहने को तैयार लगते है !क्यों की खौफ ( अधिकारियो की ) से सामना करने की व्यक्तिगत क्षमता चूर्ण हो चुकी है मान्यता  प्राप्त  यूनियन   अपने दायित्व को भुला चुके है ! इसके प्रमुख कारण स्वार्थ, लोलुपता है !

                                                                                                                         ऐसी स्थिति में , रंनिंग कर्मचारी अपनी बातो को उजागर करने के लिए , रास्ता ढूढते नजर आ रहे है ! आखिरी में उनको आल इंडिया लोको रंनिंग स्टाफ एसोसिएसन के तले शकुन एवंम राहत की एक छोटी सी किरण नजर आती है ! जो आप को भी भली - भांति जानकारी होगी ! यह एसोसिएसन केन्द्रीय , क्षेत्रीय तथा मंडलीय रेलवे के स्तर पर ,कार्यकारी कमेटियो के द्वारा संचालित हो रही है !

                                                       इसी माह , गुंतकल मंडल के रंनिंग कर्मचारोयो ने १८-०१-२००६ को मंडल रेल प्रबंधक आफिस के सामने सपरिवार एकजुट धरना दिया ! जिसका प्रमुख मुद्दा था  - क्षेत्रीय मेल / एक्सप्रेस लिंक को रद्द की मांग और यह उचित भी है ! क्योकि क्षेत्रीय लिंक रंनिंग कर्मचारियों को अपने परिवार तथा सामाजिक परिवीश से काफी दूर ले जाएगा ! काम के घंटे बढ़ेगें ! जिससे थकान व् असुरक्षा बढ़ेगी ! दुर्घटना की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता ! बहुत से उदाहरण भी है !जब रंनिंग कर्मी , दुसरे मंडल में काम करते हुए दुर्घटना का शिकार हुया है ! क्षमा कीजिये --मै उनके नाम नहीं गि ना सकता !इससे रंनिंग स्टाफ के स्वाभिमान और मंडल के सम्मान को धक्का लगेगा !

                                                                             महोदय , रंनिंग कर्मचारी एवं सुरक्षा के ऊपर एक पूरी किताब लिखी जा सकती है !यह विडम्बना है की सुरक्षा के उपाय बनाते समय ---रंनिंग कर्मी या उससे सम्बंधित संगठनो की राय नहीं ली जाती ! नियम बनाने वाले या तो अरन्निंग या रंनिंग काम के अनुभव से परे होते है ,जो दुर्घटना के कारण का बढ़ावा ही है !

                                                                  जब - तक रंनिंग कर्मियों को हे की दृष्टी से देखा ( मानसिक , शारीरिक ,आर्थिक व् यंत्र्रिक क्षेत्र में ) जाएगा , तब - तक सत प्रतिसत सुरक्षा  का दावा ( रेलवे में )असंभव है !

                             अति लिखावट एवं भूल चुक के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ !आप को  यह आवेदन आल इंडिया लोको रंनिंग स्टाफ एसोसिएसन के तरफ से देने का प्रमुख कारण यह है की कृपया आप क्षेत्रीय लिंक को रद्द करें ! क्योकि उपरोक्त कारण लागू होते है ! लगातार कार्य करने से मशीन को भी शेड को भेजना पड़ता है ! मनुष्य तो मनुष्य है ! इसे आराम एवं सुरक्षा की जरुरत है ! लम्बे समय तक कार्य करने की पद्धति स्वस्थ दीर्घायु को भी प्रभावित करती है ! दुर्भाग्य से ...दुर्घटना में रंनिंग कर्मचारी की मौत हो जाने पर ...उसके परिवार - जन मानसिक वेदना से पीड़ित हो जाते है ! यह सामाजिक एवं  पारिवारिक असंतुलन को बढ़ावा देता है !

                                                                                                          महोदय , कृपया सकारात्मक निर्णय लेकर , इस क्षेत्रीय लिंक को ख़ारिज करें तथा रंनिंग कर्मचारियों के भविष्य में चार चाँद लगाये ! आशा ही नहीं पूर्ण विश्वास है ,आप रंनिंग कर्मियों के व्यथागाथा को समझेंगे !

                                          आप का शुभाकांक्षी -
                                               ( हस्ताक्षर  )



Thursday, December 30, 2010

लोको पायलट और उसकी ........................................................................

                                     एस.के.साहू.सहायक   लोको पायलट.गुंतकल   डिपो.
           रेलवे के लोको पायलटो की कहानी भी अजीबो किस्म की होती है. जैसे ही लडके आई.टी.आई /डिप्लोमा /कोई टेकनिकल डिग्री किया और लोको पायलट  की वांट निकली, वह फुले नहीं समाता है.वह तुरंत अप्लिकेसन लगा ही देता है .चुने जाने के बाद ,उसकी पोस्टिंग होती है. फिर  ट्रेनिंग  ,उसके  बाद  कार्य   शुरू.. धीरे -धीरे सगाई  भी हो जाती है ......शादी कैसे हुई , ये मै नहीं बताऊंगा......इसे बाद के लिए छोड़ दें.
           फिर  क्या था......पत्नी भी  साथ   रहने  लगी.....शादी  के  पहले  , पत्नी  ने  बहुत  मनसूबे  बनाये  होंगे ,जो  स्वाभाविक ही है..और  होना  भी  चाहिए..अन्यथा  शादी  का  मजा  ही क्या  है.. पत्नी  आज -कल  पढ़ी  लिखी  ही  मिलाती  है.वह  भी भारतीय  नारी  , जो  आज -कल आकाश  को  छूने  के  लिए  बेचैन  है. कभी  मनसूबे  पर पानी  फिरते  नहीं  देख  सकती. 
         फिर क्या  था .एक  दिन सहायक लोको  पायलट ,जो लोको पायलटो  का  शुरूआती  ग्रेड   है ,जी बीमार पड़  गए .
    उनकी  पत्नी  बोली ------"आप  जाकर   जानवर  के  डाक्टर   को  दिखाओ , जल्दी ठीक  हो जाओगे  ."
        सहायक  लोको  पायलट बोला ---" क्यों  ? " 
     पत्नी  ने  कहा -----" रोज  तुम  मुर्गा  की  तरह  जल्दी  उठ  जाते  हो .घोड़े  की  तरह  भाग  कर  ड्यूटी  जाते  हो. गधे  की  तरह  सामान  ढोने  का  काम  करते  हो .उल्लू  की  तरह रात भर  जागते  हो .घर  आकर  कुत्ते  की  तरह  ,सभी  के  ऊपर  भोंकते  हो .और  अजगर  की  तरह  खा-पीकर  सो  जाते  हो........................"
    (रियल घटनाओ का  पर्दा-फास  एस.के.साहू.ने किया है  और  प्रस्तुति ,संयोजन   मेरी )