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Thursday, June 28, 2012

सिल्वर जुबिली समारोह -1987 की मार्मिक यादें

जीवन में  संघर्ष और उल्लास का अंत नहीं है ! जो जीता वही  सिकंदर ! भावनाए उमड़ती है , स्वप्न आते है , परछाईया साथ देती है किन्तु स्पंदन के साथ ही परिवर्तित हो जाती है ! हवा स्पर्स करती हुयी आगे बढ़ जाती है ! पीछे मुड़  कर नहीं देखती ! वस् यादें रह जाती है ! संजोये रखने के लिए ! कभी - कभी चेहरे  की झुर्रिया देख मन व्याकुल हो जाता है !


25 जून और 26 जून 2012 , मेरे लिए बहुत कुछ लेकर आया ! 25 जून को लोको पायलटो और उनकी परिवार के सदस्यों ने मंडल रेल प्रबंधक कार्यालय के समक्ष धरना दिया ! जो मूल भुत सुबिधाओ और अनुशासन की मांग पर केन्द्रित था ! वही यह दिन मेरे कैरियर के पच्चीसवे वर्ष का अंतिम दिन था ! एक  लम्बी अंतराल और देखते - देखते दिन  निकल गए  ! सोंचने पर मजबूर होना पड़ा , क्या खोया और क्या पाया !

मेरे बैच  के दोस्तों ने सिल्वर जुबिली मनाने का प्रस्ताव रख दिए ! फिर क्या था -26 जून 2012 को इस प्रोग्राम को अंजाम मिल गया ! दो -तीन साथियो  की कड़ी मेहनत के बाद रेलवे इंस्टिट्यूट में इस प्रोग्राम को सफलता पूर्वक आयोजित किया गया ! यह प्रोग्राम सुबह आठ बजे से शुरू होकर रात्रि के साढ़े दस बजे समाप्त हुआ !

हमसभी 1987 में अपरेंटिस फायर मेन " ये " ग्रेड में ज्वाइन किये थे ! उस समय स्टीम  लोको चलती थी ! नए - नए थे ! सभी के अन्दर उल्लास भरे हुए थे ! जिधर छुओ उधर कालिख , तेल ! दो वर्ष ट्रेंनिंग करनी पड़ी थी ! इसी दौरान सभी स्टीम लोको धीरे - धीरे गायब हो गए ! पहले तो ऐसा लगा की नौकरी छोड़ कर भाग जाए , किन्तु ड्राईवर बनने की तमन्ना दिल में उछाले ले रही थी ! प्रायः सभी साथी  पदोन्नति करते हुए लोको इंस्पेक्टर / क्रू कंट्रोलर /ऑफिस मैनेजर /लोको पायलट ( मेल / एक्सप्रेस) वगैरह तक कार्यरत  है ! किसी ने भी ऑफिसर बनने की इच्छा नहीं जताई और न बने  ! उसमे मै  भी एक हूँ !

सभी को समय रहते ही निमंत्रित कर दिया गया था ! हम कुल 34 थे !  20 साथी ही अपने परिवार के साथ शामिल हुयें ! दो साथी इस दुनिया में नहीं रहे ! उनके याद में, श्रधांजलि हेतु ,  दो मिनट का मौन  रखा गया ! सुबह की शुरुआत   दक्षिण भारतीय इडली , दोसे , वडा  चटनी और  साम्भर के नास्ते  से शुरू हुआ ! दोपहर का मेनू बड़ा ही स्वादिस्ट - चिकन , मटन,  रोटी  हलीम , ब्रिंजल करी , रायता , ice  cream ,सलाद तले  हुए  चावल ,  वेज कुरमा  वगैरह - वगैरह ! सभी की हालत देखते बनती थी  , क्या खाएं न खाए की चिंता !सब कुछ स्वादिस्ट ! रात का भोजन बिलकुल शाकाहारी ! रोटी चावल दाल रसम साम्भर पापड़ दही केला  आदी ! मनोरंजन के लिए आर्केस्ट्रा का इंतजाम ! बच्चे और कई साथियों ने नृत्य कर इसके लुत्फ लिए !छोटा सा शहर , किन्तु मेट्रोपोलिटन के इंतजाम , किसी को किसी तरह की कमी महसूस नहीं हुयी !


 जो भी हो यह सिल्वर जुबिली एक याद ले कर आई और यादगार बन कर चली गयी ! 25 को पच्चीसवे का अंत और 26 को छब्बीसवे की शुरुआत अपने आप में एक अर्थ छोड़ चली गयी  !सभी परिवार एक दुसरे से मिलकर अत्यंत खुश थे !सभी साथियों ने अपने - अपने अनुभव बाँटें ! जो सुन और देख परिवार के सदस्य अचंभित थे !बच्चो को  कभी भी स्टीम लोको देखने को नहीं  मिली थी , वे मंच पर लगे फ्लक्स के तस्वीर से संतुष्ट लग रहे थे ! कईयों ने इसके कार्य पद्धति पर कई प्रश्न पूछ डाले !स्टीम लोको में कार्य करना कठिन , किन्तु बहुत ही स्वास्थ्य बर्धक !
परिवार और छोटे - बड़े बच्चो को देख ऐसा लगा  जैसे  - इंजन के पीछे रंग - विरंगे डब्बे ! एक  और अनेक में परिवर्तित ! सभी इस   अनोखी समागम को देख दंग ! हमारे पीछे इतनी बड़ी संख्या ! कल क्या होगा ?अब वह दिन दूर नहीं जब हमें बच्चो के शादी - व्याह के मौके पर शरीक होना होगा ! इस समूह में लड़कियों की संख्या ज्यादा और लड़को की कम थी !इस समारोह के मुख्य अतिथि सीनियर मंडल यांत्रिक इंजिनियर और उनकी टीम थी ! उन्होंने अपने अविभाषण  में सभी की मंगल की कामनाये करते हुए  बधाई दी ! संध्या के समय  सहायक  मंडल यांत्रिक  इंजिनियर के कर कमलो से सभी साथियों को मोमेंटो प्रदान की गयी ! जो हमेशा इस सुनहरे दिन की याद दिलाता रहेगा !  इस तरह से रेलवे के अंतिम और आखिरी   स्टीम लोको के साक्षियों की सिल्वर जुबिली 26 जून 2012 को हर्षौल्लास के साथ संपन्न हुआ !

Friday, April 20, 2012

ईश्वर अल्ला तेरो नाम ..सबको सन्मति दे भगवान !

 आयें आज कुछ नेकी- बदी की बात हो जाय ! कल यानि दिनांक १९ अप्रैल २०१२ को मुझे १२१६३ दादर - चेन्नई सुपर फास्ट लेकर रेनिगुन्ता जाना था ! अतः समय से साढ़े दस बजे गुंतकल लोब्बी में पहुंचा !  जैसे ही ये.सी.लाँग में जाने के लिए दरवाजा खोला ! सामने मेरा एक सह -कर्मी ( लोको पायलट/ नाम न बताने की मनाही है  ) बाहर आते हुए मिल गए और तुरंत हाथ मिलाते हुए , उन्होंने मुझे कहा -"  आप को   भगवान स्वास्थ्य और समृधि प्रदान करें !" 

मै कुछ समय के लिए सकारात्मक भाव , जड़वत  खड़े रहा और उनके मुंह और दाढ़ी को देख- मुस्कुराया !  ख़ुशी जाहिर की ! " और कुछ दुवा करूँ ?"- उन्होंने प्रश्न जड़ दिया ! मैंने कहा - "  हाजी अली ...आप  और भगवान की कृपा बनी रहे ! इससे ज्यादा क्या चाहिए ? वैसे भगवान को मालूम है , मुझे किस चीज की आवश्यकता है !" फिर क्या था वे भी हंस दिए ! मेरे साथ फिर ये.सी.रूम के अन्दर वापस  आ गए ! मेरी ट्रेन के आने में आधे घंटे की देरी थी ! उन्होंने मेरी अंगुली पकड़ जबरदस्ती बैठने के लिए कहा ! मै अपने सूट केश और बैग को साईड में रख , उनके साथ बैठ गया !

" कहिये ?  क्या कोई खास समाचार है  ? "- मैंने पूछ बैठा !
" नहीं यार ! आप  ने भगवान का नाम लिया और मुझे एक वाकया याद आ गयी ! समझ - समझ की बात है ,बिलकुल ईश्वर हमारे ख्याल रखते है !" उन्होंने कहा ! एक लम्बी साँस और छोटी सी विराम ! मै सुनाने को उतावला ! उन्होंने  आगे जो कहा , वह इस प्रकार है--

" मै पिछले हप्ते  एक मॉल गाड़ी लेकर धर्मावरम से गूटी आ रहा था ! मेरी गाड़ी कई घंटो के लिए रामराजपल्ली रेलवे स्टेशन पर रोक दी गयी क्यों की गूटी जंक्शन के यार्ड में लाईन खाली नहीं थी ! दोपहर का समय , कड़ाके की धुप ,पानी ही सब कुछ !  हम लोग बिना खाने का पैकेट लिए ही  चल दिए थे , इस आस में की जल्द घर पहुँच जायेंगे ! पेट में चूहे कूद रहे थे ! खाने का सामान न मेरे पास था , न ही सहायक के पास  ! उसमे रामराज पल्ली में पानी तक नहीं मिलता है ! दोपहर हो चला था ! लोको के कैब में ही नमाज के लिए बैठ गया ! नमाज अदा करने के  समय ही मन में विचार आये --या अल्ला .गाड़ी को जल्दी लाईन क्लियर मिल जाये तो अच्छा हो ! भूख सता रही है ! 

 नमाज पढ़ , स्टेशन मास्टर के ऑफिस की तरफ चल दिया ! मास्टर मुझे देखते ही बोले --पायलट साहब खाना वगैरह हो गया या नहीं ? मैंने कहा - नहीं सर ! खाने के लिए कुछ नहीं है ! फिर क्या था , मास्टर जी अपने भोजन के कैरियर खोल मुझे खाने के लिए दे दिए ! मै  कुछ हिचकिचाया , मन ही मन सोंचा - आखिर सहायक को छोड़ कैसे खा लूं ! उन्होंने दूसरी कप को मुझे देते हुए कहा - ये अपने सहायक  को दे दें !

तब -तक देखा एक रेलवे  ठेकेदार जीप में अपने लेबर के लिए बहुत से खाने का पैकेट लेकर आया और  जबरदस्ती एक पैकेट हमें दे चला गया !

इतना ही नहीं -जब मै लोको के पास आया तो सहायक ने मुझे इत्तला दी की पावर कंट्रोलर गूटी से खाने का दो पैकेट ट्रेन संख्या -११०१३ एक्सप्रेस ( कुर्ला - बंगलुरु ) में भेंजे है ! ट्रेन आते ही उसे पिक अप करनी है ! "

शा जी  ..है न आश्चर्य की बात ! उस परवर दिगार ने एक नहीं , दो नहीं ,  तीन -तीन खाने की बन्दों बस्त कर दी ! मै तो वैसे ही धार्मिक विचार का व्यक्ति हूँ ! यह सुन आस्था और मजबूत हो गयी ! मैंने उनसे और जानकारी चाही , ताकि भालिभक्ति ब्लॉग पर पोस्ट कर सकूँ ! उन्होंने इससे इंकार कर दिया और बोले -नेकी कर दरिया में डाल ! मेरी ट्रेन  आने वाली थी अतः इजाजत ले बाहर आ गया !

जी हाँ इसी लिए मैंने भी  यहाँ उनके नाम को उजागर नहीं किया है ! वे हाजी है ! मै उन्हें संक्षेप में हाजी अली कह कर ही पुकार लेता हूँ ! वे मुझसे एक वर्ष बड़े ही है ! सब कुछ विश्वास और भावना के ऊपर निर्भर है ! ये तो सही है , जो पढ़ेगा और परीक्षा देगा , उसे ही सर्टिफिकेट मिलेगी ! अन्य तो बिन ...?...सुन !

बस इतना ही ....
मै तो   उसके  प्यार  में अँधा हूँ.,
क्यूँ की उसका एक नेक  बंदा हूँ  !

Tuesday, March 6, 2012

होली के रंग !

  जुबान पर होली का नाम आते ही , दिल में एक उमंग हिलोरे लेने लगती है ! रंगों की हमजोली यह होली भी अजब है ! रंग फेंकने वाले की प्यार और नजाकत दोनों इसमे इन्द्र धनुष जैसी दिखती है ! गोरी हो या काली , काली हो या गोरी , सभी के ऊपर रंग की बौछार अपनी उमंग की छाप छोड़ देती है ! सभी को इस पर्व में संयम बरतने पड़ते है , अन्यथा मारा - मारी की भी नौबत   आ जाती है ! जो भी हो होली तो उमंगो की गोली है ! प्यार और रंगों की समागम है ! हम सभी को धर्म - जाति से ऊपर उठा कर एक दुसरे से  भाई चारे बनाते हुए इसके रंग में घुल मिल जाने चाहिए ! होली में मजाक बड़े प्रिय लगते है ! इसी लिए तो बरबस लोग कह देते है की होली में बुड्ढा भी देवर बन जाते है !

मुझे बचपन की एक वाकया याद आ गया , जब मै शायद पांचवी कक्षा का  क्षात्र था ! होली का दिन ! सुबह उठते ही मैंने , पिताजी के सामने पीतल की पुचकारी लाने की ज़िद्द कर दी ! ज़िद्द के आगे पिता जी को झुकाना पड़ा ! वे धोती - कुरता पहन कर  बाजार चले गए ! दो घंटे बाद पुचकारी के साथ घर वापस आये ! किन्तु धोती - कुरता का रंग पूरी तरह से बदल गया था ! फिर भी मुख पर मुस्कान के सिवा कुछ भी नहीं था !

आज वह यादे मुझे कोसती है ! धिक्कारती है ..क्यों मैंने ऐसी ज़िद्द पकड़ी और पिताजी को परेशान किया ! पर पिता जी का प्यार मुझे अपने आगोश में भर लेता है ! होली के रंग बार - बार लग सकते है , पर पिताजी  की  प्यार बारम्बार नहीं मिलती !  

व्यस्तता की वजह से वस इतना ही ! आप सभी को होली की बहुत - बहुत शुभ कामनाये !! ( फिर मिलूँगा शिर्डी से वापस आने के बाद !)

Friday, October 28, 2011

असुबिधा के लिए खेद है !

आदरणीय पाठक गण-
 १) मैंने कुछ तकनीक दोष की वजह से अपने ब्लोग्स के पते को बदल दिया हूँ ! अतः बहुत से पाठक   मेरे नए  पोस्ट से अनभिग्य हो गए है ! मेरा पुराना URL  बदल गया है ! इस लिए मेरे कोई भी पोस्ट उन फोल्लोवेर्स के दैसबोर्ड पर प्रकाशित नहीं हो रहे है , जो मेरे ब्लोग्स के फोल्लोवेर्स दिनांक - ११-१०-२०११ के पहले के  है !  इतना ही नहीं वे मेरे किसी भी ब्लॉग को खोल नहीं पा रहे है ! इसकी शिकायत कुछ पाठको के तरफ से मिली है ! अतः इस के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ !

२) मेरा नया URL / ब्लोग्स के लिंक निम्नलिखित है ! भविष्य में इस पते पर ही मेरे ब्लोग्स को खोला जा सकता है----

बालाजी के  लिए --www.gorakhnathbalaji.blogspot.com 
OMSAI  के लिए-- www.gorakhnathomsai.blogspot.com 
रामजी के लिए --- www.gorakhnathramji.blogspot.com 
 
३) आप को अपने - दैसबोअर्ड के ऊपर मेरे  ताजे पोस्ट के प्रकाशन को प्रदर्शित  ,  हेतु कुछ मूल सुधार करने होंगे यदि आप मेरे ब्लोग्स के पुराने फोल्लोवेर्स है ! इसके लिए आप को मेरा पुराना फोल्लोवेर निलंबित कर फिर से नया फोल्लोवेर्स बनने होंगे !

४) सारी फेर - बदल मैंने अपने ब्लोग्स के सुरक्षा हेतु किया है , जो गायब होने के मूड में था ! 

असुबिधा के लिए खेद है ! आशा करता हूँ , आप का सहयोग बना रहेगा !
विनीत -गोरख नाथ साव !
 

Monday, October 10, 2011

दक्षिण भारत - एक दर्शन

दशहरे की धूम आई और चली गयी !सभी ने अपने - अपने ढंग से इस पर्व को मनाया ! रेलवे की बोनस -हंगामा और गुहार करने के बाद भी , कैस के रूप में ही अदा हुयी , कुछ ज़ोन में अपील करने वालो की बोनस - सीधे उनके बैंक खातो में भेंज दी गयी ! जैसे दक्षिण - पश्चिम रेलवे , पश्चिम -  केन्द्रीय रेलवे और कई रेलवे ! घुश खोर और चापलूस रेलवे   प्रशासन ने  चापलूस मान्यताप्राप्त रेलवे के नेताओ की ही सुनी ! यह बहुत बड़ी बिडम्बना है ! झूठ के आगे -सत्य हारते   जा रहा है ! इस देश को-  अगर इश्वर है , तो वही इसकी रक्षा करेंगे ! आज - कल सत्य वादी लाचार और असहाय हो गए है ! 
                                                मदुरै रेलवे स्टेशन का सुन्दर बाहरी दृश्य !
मैंने एक माह पूर्व ही  दक्षिण - भारत की यात्रा की मनसा बना ली थी अतः रेलवे में सुबिधानुसार रिजर्वेसन भी करा लिया था  ! किन्तु टिकट द्वितीय दर्जे के वातानुकूलित - में वेट लिस्ट में ही था ! मंडल हेड क्वार्टर में होने के नाते मुझे भरोसा था की टिकट को इमरजेंसी कोटा में कन्फर्म  करा लूँगा ! यात्रा के प्रारूप इस प्रकार से थे--
गुंतकल से  मदुरै , मदुरै से कन्याकुमारी और कन्याकुमारी से वापस गुंतकल ! 

बारी थी --गुंतकल से मदुरै जाने की ! यात्रा  के दिन सुबह मैंने अपने बड़े पुत्र  रामजी  को इमरजेंसी कोटा में आवेदन  देने के लिए कह दिया था ! उन्होंने ऐसा ही किया ! ट्रेन संख्या थी - १६३५१ बालाजी एक्सप्रेस ( मुम्बई से मदुरै जाती है ) !  गुंतकल सुबह चार बजे आती है ! लेकिन लिपिक ने बताई की- इस ट्रेन में कोई  भी इमरजेंसी कोटा नहीं  है ! मेरे पुत्र  साहब घर वापस  आ गए  और नेट में तात्कालिक स्थिति की जानकारी ली  ! पाया की अब वेट लिस्ट -१,२,३,और ४ है ! किन्तु चार्ट नोट प्रिपेयर  ! मुझे मेरे दफ्तर से छुट्टी पास हो गयी थी ! शाम को बाजार  से वापस आया और बालाजी से पूछा की आप के  भैया जी कहा गए है ?

 बालाजी ने कहा - " भैया बुकिंग आफिस में गए है !  पता करने की -कहीं चार्ट सबेरे तो नहीं आएगा ? "
उसी समय रामजी भी आ गए ! उन्होंने मुझे सूचना दी की- "  खिड़की के लिपिक ने साढ़े आठ बजे फिर पता करने की इतला दी है  ! चार्ट आठ बजे पूरा हो जायेगा ,जब पुरे भारत के रिजर्वेशन खिड़की बंद हो जायेंगे !"
रामजी ने कहा की मै यात्रा पर नहीं जाऊंगा !  मुझे प्रोजेक्ट वर्क करने है ! सभी के विचार  कमोवेश यही थे ! बालाजी के मन में उदासी घेर गयी ! आखिर बच्चे  का मन जो ठहरा ! मैंने  मन ही मन साई बाबा के नाम को याद किया ! मैंने भी सभी को कह दिया की यात्रा शंका के घेरे में है ! छुट्टी रद्द करनी पड़ेगी ! प्रोग्राम रद्द समझे !

समय की सुई आगे बढ़ी , बालाजी ने याद दिलाई - डैडी .. पि एन आर देखें , समय हो गया ! साढ़े आठ बज रहे थे ! रामजी जो नेट पर ही वैठे थे -- पि.एन.आर.को चेक किये और पाए की  तीन बर्थ कन्फर्म हो गए है ! सभी के चेहरे ख़ुशी से झूम उठे ! फिर क्या था --अपने -अपने सामान सूट केश में रखने की तैयारी होने लगी ! सिर्फ रामजी के चेहरे पर मंद - मंद ख़ुशी दिखी ! हम दोनों  ने फिर रामजी से पूछा की आप के क्या विचार है ?  उन्होंने कहाकि आप लोग यात्रा पर जरुर जाएँ , मेरे बारे में चिंता न करें ! फिर कभी मै अपने दोस्तों के साथ पिकनिक पर निकालूँगा !

दुसरे दिन समयानुसार हम स्टेशन  पर पहुंचे ! रामजी हमें छोड़ने आयें ! ट्रेन समय से आई ! ट्रेन में दाखिल होने पर हमने पाया की -हमारे सभी नॉमिनेटेड बर्थ ओकुपयिड है ! टी.टी.इ साहब आयें ! हमने अपने बर्थ को खाली कराने को कहा -तो उन्होंने हमसे कहा की आप लोग एक बर्थ ले लें और दो छोड़ दे ! मेरे बड़े पुत्र राम को गुस्सा आ गया ! हम तीन व्यक्ति यात्रा पर जा रहे है और आप बर्थ छोड़ने को कह रहे है , वह भी रात को जब सोने का  समय है ! बेचारा टी.टी इ झक मार कर रह गया ! शायद कमाई मार गयी ! इस तरह  से पहले दिन की यात्रा शुरू हुयी !
                                    यात्रा के दौरान  बालाजीअपने मम्मी के गोद में मुहं छुपाते हुए !

यात्रा के दौरान मेरे असोसिएसन के लोगो ने फोन कर मुझे बताया की - मेरे ठहरने का इंतजाम मदुरै में कर दिया गया है ! किन्तु मैंने कहा की मुझे रिटायरिंग रूम ही चाहिए !( होलीडे होम भी बुक करना चाहा था , किन्तु उस दिन खाली नहीं था ! ) रात को साढ़े बारह बजे मदुरै पहुंचे ! यह मेरी दूसरी यात्रा मदुरै की थी अतः कोई असुबिधा नहीं हुयी ! मै ट्रेन से उतर कर  सीधे रिटायरिंग रूम के काउंटर पर गया ! सूचना मिली की आप को रूम सुबह ही मिलेगा ! अभी आप एक बेड वाले रूम में पनाह ले ! हमने भी ऐसा ही किया ! सुबह ६ बजे उन्होंने ही हमारे नींद में दखल किया और दो बेड वाले रूम में जाने के लिए आग्रह किया !
                   रेलवे का रिटायरिंग रूम और सोफे पर - बालाजी आराम करते हुए ! बहुत थक गए है !

 मदुरै रेलवे के   रिटायरिंग रूम  में अति सुन्दर व्यवस्था ! जो प्रायः सस्ते और आराम दायक लगा ! दो बेड , तीन टेबल , चार कुर्सी, दो लोगो को एक साथ बैठने वाला सोफा , रेडिंग  लेम्प , साफ - सुथरा बाथ रूम , ड्रेसिंग  टेबल और टायलेट ....सिर्फ साढ़े चार सौ प्रति चौबीस घंटे के लिए ! सुबह चाय या काफी और तमिल / मलयालम / इंगलिश - पसंदीदा अखबार फ्री सपलाई ! कमरा  भी बड़ा ! मुझे बहुत जंचा ! अगर कभी आप जाये तो इधर ही तशरीफ लें ! अच्छा रहेगा !
मीनाक्षी मंदिर - ऊपर सोने का गुम्बद जो दिखाई दे रहा है , उसके अन्दर ही माँ / देवी की प्रतिमा है !
आठ बजे के करीब , हम पूरी तरह से तैयार हो कर - मीनाक्षी देवी के दर्शन और पूजा हेतु मंदिर की तरफ प्रस्थान किये ! मंदिर अपने आप में बहुत ही भव्य है ! मंदिर के चारो ओर की ऊँची बड़ी सुन्दर मीनारों की कतार प्रान्त भूमि की हरियाली से बहुत ही मनोरंजक मालूम पड़ती है ! सभी बहार से आने वाले दर्शक इसे देख मन्त्र - मुग्ध हो जाते है ! भक्त लोग पूर्वी भाग से ही मंदिर में प्रवेश करते है ! कारण यह है की सबसे पहले देवी मीनाक्षी और फिर सुन्दरेश्वर ( शिव ) के दर्शन करना  तो प्रथा बन गयी है ! 
                   मीनाक्षी मंदिर के अन्दर तालाब में - स्वर्ण कमल ! तालाब में पानी नहीं है !
मंदिर के ध्य में ही एक  तालाब है !  जिसे सोने का तालाब कहते है क्यों की इसके अन्दर सोने का बना हुआ - कमल का फूल है ! कहा जाता है की इन्द्र जी पूजा के लिए यही से सोने का फूल तोड़ते थे ! यह भी कहा गया है की मदुरै शहर भी कमल के फूल जैसा ही है ! मंदिर के अन्दर अष्ट शक्ति  मंडप , मीनाक्षी नायक मंडप स्वर्नापद्म जलाशय  , झुला मंडप ,श्री मीनाक्षी की प्रतिष्ट ,विनायक जी , श्री शिव जी का स्थान ,मीनारे , संगीत स्तंभ ,अलगर मंदिर  देखने योग्य है !

                               मीनाक्षी मंदिर के अन्दर का एक दृश्य और सुन्दर पेंटिंग , मनमोहक !
    नवमी के दिन एक घंटे तक बारिश हुयी और मंदिर के चारो और पानी भर गया ! दर्शक परेशान
                                                             मंदिर का एक   नमूना

कहते है केवल शिव जी की प्रतिमा व् चारो और का अहाता सातवी सदी से बसा हुआ था ! देवी मीनाक्षी का मंदिर बारहवी सदी में बनवाया गया !मंदिर का अधिकांस भाग , जो अभी है बारहवी और चौदहवी सदी के अन्दर निर्मित हुआ ! मदुरै त्योहारों का शहर है !बिना त्यौहार का कोई महिना नहीं गुजरता है !चैत्र , श्रवण और पौष माह के त्यौहार बहुत मुख्य है ! मदुरै शहर दक्षिण की तरफ आने वाले हर यात्री के मन को भर देता है !मीनाक्षी मंदिर तमिल संस्कृति का एक सुन्दर जीता - जगाता उदहारण  प्रस्तुत करता है ! मदुरै शहर दक्षिण दर्शन का केंद्र बिंदु है ! यहाँ से दक्षिण के सभी तीर्थ करीब है और आसानी से जाया जा सकता है !  और ज्यादा जानने के लिए  यहाँ जा सकते है - मेरी पहली यात्रा .. kuchh aur 
  पोस्ट लम्बा हो रहा है , अतः अब आज्ञा दें  - अगली यात्रा रामेश्वरम  की !


Sunday, September 11, 2011

नीति का ईश - आज का बिहार

   कल यानि दिंनाक - १० वी सितम्बर २०११ को सोलापुर में था !  " टाईम आफ इण्डिया " में एक आर्टिकिल पढ़ा ! देखा की बिहार सरकार ने एक आई .ये.एस अफसर के द्वारा अर्जित और धोखे धडी से कमाई हुई -सारी  सम्पति को कोर्ट की इजाजत के बाद सील कर दिया ! इतना ही नहीं - अब उस तीन मंजिले हाई - फाई ईमारत में स्कुल चलने लगा है  क्योकि बिहार सरकार ने उस सम्पति को स्कुल के हवाले कर दिया है ! यह कदम नीतीश कुमार जी ने पहले ही उठाने के लिए कह दिया था !नितीश कुमार जी का यह कदम भारतीय राजनीति में सराहनीय कार्य है ! जो उनके दूरदर्शिता के परिचायक और स्वस्थ शासन का एक मिशाल है ! पूरी रिपोर्ट अंग्रेजी में पढ़े ! नीचे  उपलब्ध है ! बड़ा करने के लिए तस्वीर  पर क्लिक करें -


  ( एक छोटा सा निवेदन - कृपया दिए हुए लिंक पर जाएँ और मेरे ८३ वर्ष के काकाजी को फोल्लोवेर बन कर उत्साहित  करें ! धार्मिक विचार वाले है और अपने अनुभव लिखने में माहिर ! एक बार प्रयास करके देंखें -धन्यवाद -लिंक--hanuman



Monday, August 8, 2011

अपनी मिट्टी और अपनत्व

सुबह सभी को प्यारी होती है ! गर्मी में शीतल हवाए ,वरसात में बूंदा - बांदी, जाड़े में शबनम की बुँदे तथा बसंत में कोयल की कू-कू  सुबह ही तो देखने को मिलती है !.सुबह -सुबह ही पूजा -अराधना होती है ! मंदिरों में घंटिया बजने लगती है ! सुबह सभी शांत और कोमलता से पूर्ण होते है ! इसी समय घर के सदस्यों में प्यार भी देखने को मिलती है ! सूर्य कड़क होकर भी , इस समय उसकी रोशनी ज्यादा गर्म  नहीं होती ! झगड़े भी सुबह नहीं होते ! अतः सुबह की आगमन हमेशा ही खुशनुमा और लुभावन होती  है ! सुबह की हवाए ..प्रेम और जीवन बिखेरती है !


फूल भी सुबह ही खिलते है ! कहते है - सुबह को जन्म लेने वाली संताने अति तेजस्वी , लायक  और चतुर  होते है ! सुबह पढ़ी हुई विषय लम्बे समय तक याद रहती है ! हमें भी इस वक्त सभी अच्छे कार्यो को  लगन से करने की नीति निर्धारण करनी  चाहिए ! इसी तरह जीवन में भी  कई ऐसे क्षण आते है - जब हमें स्वयं  ही , सही वक्त को परखने पड़ते है ! हमारे देश यानी भारत वर्ष में  महंगाई की बिगुल भी आधी रात को पेट्रोल की दर बढ़ा कर की जाती है ! इससे यह साबित होता है की दिन की पहली पहर हमेशा ही किसी शुभ कार्य के लिए उपयुक्त समझी गयी है !


जब मै कोलकाता में था !  उस दिन कड़ाके की सर्दी थी ! घर के सामने सड़क के ऊपर खड़े होकर , हल्की. और कोमल - कोमल  सूर्य की किरणों की रसा - स्वादन कर रहा था ! आस - पास ..पास पड़ोस  के लोग भी थे !  एक योगी घर के पास आये ! उनके मुख से राजा भरथरी के गीत और हाथ सारंगी के ऊपर ! मधुर स्वर हवा में गूंज रहे थे !  कर्णप्रिय ! आकर प्रत्यक्ष खड़े हो गए !  एक क्षण के लिए आवाज और सारंगी पर विराम लग गई  !  वे नीचे झुके और हाथ जमीन पर  कुछ उठाने के लिए बढ़ गई ! देखा ..उन्होंने कुछ मिटटी को अपने हाथो से उठाये ! उनके हाथ मेरे तरफ बढे ! मैंने देखा - उनके द्वारा मिटटी  रगड़ने पर - मिटटी के रंग बदल गए और वह सिंदूर जैसा हो गया ! उस सिंदूर से उस योगी ने मेरे ललाट पर तिलक लगाए ! - " जाओ वेटा घर से कुछ भिक्षा लाओ ! यह योगी दरवाजे पर खडा है ! "


मै घर के अन्दर गया और दो पैसे के सिक्के लाकर ,उन्हें दे दिया ! सभी ने देखा ! कोई कुतूहल नहीं ! साधारण सी घटना ! उस योगी ने पैसे लेते हुए -आशीर्वाद स्वरुप कहा -" जाओ वेटा ,तुम्हारे भाग्य में बहुत तेज है ! दक्षिण  और विदेश सफ़र के योग है ! " और आगे चले गए ! फिर वही भरथरी के गीत और मधुर सारंगी के धुन वातावरण में गूंज उठे ! किसी को इसकी परवाह नहीं ! बात आई और गई सी रह गई ! 


माने या न माने - जब उस योगी के कथनों को कई बार याद किया तो पाया की  उनके वे शब्द अक्षरसः  सत्य लग रहे है ! आज मै दक्षिण भारत में ही हूँ ! जिसके बारे में मैंने कभी सोचा भी न था ! रही दूसरी बात - विदेश सफ़र की तो वह भी सत्य ही हुई ! पांच -छह माह पूर्व ही मुझे दीपुटेशन पर विदेश जाने के आफर मिले , जिसे मै यह कह कर ठुकरा दिया की मै अपने देश में ही खुश हूँ ! मेरे कुछ साथियों को वह आफर स्वीकार थे और वे जुलाई में विदेश कार्य पर चले गए !


 इस घटना के बाद मैंने अपने माता - पिता और पड़ोसियों  से उस योगी के बारे में जानकारी ली ! सभी ने कहा - वह योगी फिर कभी नहीं दिखे ! उस सुबह की तिलक और वह  स्वर्णिम चक्र आज - तक निरंतर गतिमान  है ! उस स्वप्न और शब्दों को सुनने के लिए कान  ब्याकुल और नेत्र राह देख रहे  है ! ईश्वरीय लीला और इस आभा के खेल सदैव निराले - कोई इसे न समझ सके , तो क्या कहने ? जैसी सोंच वैसी मोक्ष !

 

Friday, August 5, 2011

...जाको राखे साईया मार सके न कोय ! ( शीर्षक आप का -श्री विजय माथुर जी )

                           ये है मोहित अग्रवाल की जुड़वा बेटियाँ !
आज कुछ न लिख कर , अपनी एक पसंदीदा पोस्ट , जो तारीख १०-११-२०१० को पोस्ट किया था , को फिर से एक बार आप के सामने हाजिर कर रहा हूँ !  उस समय मै इस ब्लॉग जगत में बिलकुल  नया  था ! साथ ही हिंदी पोस्ट करने की पद्धति से भी अनभिग्य  ! पाठक भी कम थे ! अतः ज्यादा लोगो तक नहीं पहुँच सका ! मेरी हिंदी भी शुद्ध नहीं थी ! दक्षिण भारतीय लफ्जो में लिखी गयी थी ! आज मेरी हिंदी कुछ - कुछ सुधर सी गयी लगती है ! इसका भी एक मात्र कारण - यह ब्लॉग जगत ही है ! आज उस पोस्ट को कुछ सुधार कर पेस्ट कर रहा हूँ ! उस समय मैंने इसे -"आप-बीती----०३. नवम्बर माह." के शीर्षक से पोस्ट किया था !
दुनिया में जो कुछ भी हमारे नजरो के सामने है ,उसमे  कुछ न कुछ है.यही कुछ एक छुपी हुई सच्चाई है अथवा सब   मिथ्या ! यानी मानो तो देव , नहीं तो पत्थर ! मैंने  बहुत से व्यक्तियों को तरह -तरह के तर्क देते और आलोचना करते देखा है ,यह आलोचना मौखिक और लिखित  दोनों रूप में मिल जायेगी ! बहुत से लोग इस दुनिया के मूल भूत इकाई पर  ,भरोसा ही नहीं करते! हमारी उपस्थिति ही किसी अनजान सच्चाई की ओर इंगित करती है !.और हम सब किसी के हाथ के गुलाम है .जो हमे पूरी तरह से बन्दर की भाक्ति नचाता है.! 


मै दुनिया के हर सृष्टी में  किसी के सजीव रूप को  प्रत्यक्ष देखता हूँ !. उसके इशारे बिना ,एक पत्ता भी नहीं हील  सकता ! . "जाको राखे  साईया ,मार सके न कोय." यह वाक्य  जब कही गयी होगी उस समय कुछ तो  जरुर हुआ होगा  या जिसने यह पहला उच्चारण किया होगा , उसने  कुछ न कुछ  अनुभव जरुर किया  होगा ! , इसी कड़ी को  सार गत आगे बढाते हुए  ,इस माह के आप-बीती के कड़ी में एक सच्ची घटना प्रस्तुत कर रहा हूँ.! 


बात उन दिनों की है ,जब मै सवारी गाड़ी के लोको चालक के रूप में पदोन्नति लेकर पाकाला डेपो  में पदस्थ था.पाकाला आंध्र प्रदेश के चित्तूर  जिले में पड़ता है.यहाँ से तिरुपति महज ४२ किलोमीटर है! यह घटना तारीख १५.०२.१९९९ की है! दिन सोमवार था.और मै २४८ सवारी ट्रेन को लेकर ,धर्मावरम  ( यहाँ  से सत्य साईं बाबा के आश्रम यानी प्रशांति निलयम ,जो अनंतपुर जिले में पड़ता है, को जाया जा सकता है ) से , अपने मुख्यालय  पाकाला की तरफ आ रहा था.! दोपहर की वेला और ट्रेन बिना किसी समस्या के ...समय से चल रही थी ! होनी को कौन  टाल सकता है! एक ह्रदय बिदारक  घटना घटी ! जिसे मै जीवन  में भूल नहीं पाता हूँ ! यह घटना मुझे हमेशा याद आती रहती है.! इसी लिए २०११ वर्ष में भी एक बार फिर आप के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ !


हुआ यह की जब मेरी ट्रेन मदन पल्ली स्टेशन के होम  सिगनल के करीब पहुँचने वाली थी,तभी एक नौजवान औरत करीब २२-२३ बरस की होगी ,अपने गोद  में  करीब एक बरस की बच्ची को लिए हुए थी ,अचानक पटरी के बीच  में आकर खड़ी हो गई.! .मेरी गाड़ी की गति करीब ५०-६० के बीच  थी ! मैंने जैसे ही उसे देखा आपातकालीन  ब्रेक  लगा दी ! गाड़ी तो रुकी पर उस महिला को समेट ले गई.! मै अनायास इस एक   पाप का भागी बन गया ! नया - नया और जीवन में पहली आत्महत्या देखी थी ! हक्का - बक्का सा हो गया ! समझ में नहीं आया की अब क्या करू !.खैर ट्रेन रुक गई.मैंने  अपने ट्रेन गार्ड को अचानक ट्रेन के रुकने की  सूचना दे दी और कहा की पीछे जाकर उस महिला के मृत शरीर  की मुआयना करें , देंखे  की क्या हम कुछ कर सकते है जैसे की फर्स्ट ऐड वगैरह यदि वह जीवीत हो ! मैंने अपने सहायक लोको पायलट श्री टी.एम्.रेड्डी  को जाकर देखने को कहा !.मेरे ट्रेन गार्ड श्री रामचंद्र जी थे !.कुछ समय के बाद मेरा सहायक चालक  मुझे जो खबर ,वाल्की -तालकी  के माध्यम से दी , वह चौकाने वाली थी! 

सूचना----
१) उस महिला की - सीर  में चोट की वजह से मौत हो चुकी थी.और पटरी  के किनारे उसकी मृत प्राय शारीर  पड़ी हुई थी ! .सीर  से खून  के फब्बारे लगातार रिस रहे  थे !
२)दूर कंकड़-पत्थर के ऊपर उसकी छोटी बच्ची  निश्चेत पड़ी हुई थी !


अब  समस्या थी उनके मृत अस्थि  को उठा कर ट्रेन में लोड करने की ! . मैंने ट्रेन गार्ड और अपने सहायक को कहा की दोनों के अस्थियो को ---उठा कर गार्ड ब्रेकभैन  में लोड कर लिया जाए ! उन्होंने ऐसा ही किया.! महिला के अस्थि को कुछ यात्रियों  की मदद से ब्रेक में लोड कर दिया गया ! जब मेरा सहायक उस  छोटी सी बच्ची को, जो पत्थर  पर मृतप्राय पड़ी थी ,को  उठाना चाहा , तो वह बच्ची तुरंत रो पड़ी और डरी-डरी सी कांपने  लगी.थी ! यह देख हमें आश्चर्य का ठीकाना न रहा क्यों की जिस बच्ची को हमने गेंद की तरह उप्पर उछलते देखा था , वह बिलकुल ज़िंदा थी ! यह विचित्र  दृश्य देख  ,सभी ट्रेन यात्री ,हक्का-बक्का सा हो  गए ! जिस चोट से उसकी माँ की मृत्यु हो गयी थी,उसी गंभीर चोट के बावजूद वह जिन्दा थी ! वाह ..क्या कुदरत की कमाल है.,इस दृश्य को जिन्हों ने देखा,वे जहा भी होंगे लोगो में चर्चा जरुर करते होंगे ! भाई वाह इस उप्पर वाले के खेल निराले !.हमने ट्रेन को चालू किया और मदन पल्ली रेलवे स्टेशन पर आ गये !उस बच्ची को थोड़ी सी चोट लगी  थी ,इस लिए रेलवे डॉक्टर को तुरंत बुलाया गया ! मदनपल्ली में रेलवे स्वास्थ्य केंद्र  है ! बाक़ी  जरुरी प्रक्रिया  करने के बाद ,मृत महिला और उसके जीवीत बेटी  को ड्यूटी पर तैनात स्टेशन मेनेजर को सौप दिया गया ,ताकि आस-पास के गाँव में ,सूचना फैलने के बाद,उचित परिवार को उनकी बॉडी सौपी  जा सके ! फिर हमने अपनी आगे की सफ़र जारी रखी !


मै शाम को ५ बजे पाकाला पहुंचा और सारी घटना - अपनी पत्नी को बताई ! मेरी पत्नी ने जो कहा वह वाकई नमन के योग्य है ! मेरी पत्नी ने कहा की - " उस बच्ची को घर लाना था हम पाल-पोस लेते थे ! " मै अपने पत्नी की इच्छा को सुन कर कुछ समय के लिए दंग रह गया और मन ही मन अपने पत्नी और उस दुनिया को बनाने वाले को नमन किया ! मेरे आँखों में आंसू आ गए ! क्यों की हमें कोई प्यारी सी  लड़की नहीं है ! मै सिर्फ इतना ही कह सका की ठीक है - अगले ट्रिप पर जाने के समय उस स्टेशन पर पता करूँगा ,अगर कोई  न  ले गया होगा तो उस बच्ची को अपने घर ले आऊंगा !


सोंचता हूँ आज मेरे पास वह सब कुछ है जो इस आधुनिक ज़माने में लोग इच्छा रखते है ! दो सुनहले सुपुत्र भी है एक राम जी तो दूजा बालाजी ,पर बेटी नहीं है ! शायद इसकी इच्छा  भगवान ने पूरी नहीं करनी चाही ! फिर भी सोंचते है , चलो दो बेटियाँ बहु बन कर तो आ ही जायेंगी !


दूसरी बार ,जब मै मदनपल्ली गया तो उस बच्ची के बारे में पता किया ! वह महिला पास के गाँव की रहने वाली थी ! उसके माता-पिता ,आकर उसके शव  और बच्ची को  ले गए थे! सोंचता हूँ,आज वह बच्ची करीब १३  बर्ष की हो  ही गयी है ! उससे मिलने और उसे देखने की इच्छा आज भी है ,लेकिन उसका पता मालूम नहीं  !.कई बार मदन पल्ली के स्टेशन मेनेजर से संपर्क बनाया पर उस समय ड्यूटी पर रहने वाले मास्टर के सिवा इस घटना  की जानकारी किसी और को नहीं है !


लोग इस तरह आत्महत्या क्यों करते है ? .क्या इस कार्य से वे संतुष्ट हो जाते है ? क्या घरेलु झगड़े का इस तरह निदान ठीक है ? मनुष्य को श्रद्धा  और सब्र  से काम लेना चाहिए ! सोंचता हूँ इस घटना के पीछे भी कोई घरेलु कारण ही  होंगे !.हमें जीवन को इतना कमजोर  नहीं समझना चाहिए !  जरुरत है अच्छे कर्मो  में लिप्त होने  की ! आखिर क्यों ? उस छोटी बच्ची का बाल न बांका हुआ और उसकी माँ को मृतु लोक मिला ! कुछ तो है !

Sunday, July 31, 2011

चलना ही जीवन है ! ( शीर्षक --डॉ मोनिका शर्मा जी )

कल रेनिगुंता में था !बारिश की फुहार पड़ रही थी ! हौले - हौले ! न जाने कितनी पानी की बुँदे ,जैसे दर्द बन कर गीर रही थी ! टप- टप ! लगता था जैसे सारा वातावरण रो रहा हो ! उमस के बाद ठंढी मिली थी ! बड़ी सुहावन लगी ! जल ही जल ! इसी लिए कहते है - जल ही जीवन है ! बूंद टूटा आसमान से ! धरती पर गीरा ,बहते हुए कुछ मिटा ,कुछ खिला और कुछ अपने अस्तित्व को बचा लिया ! यही तो जीवन है ! इसमे न पहिया है , न तेल ! बिलकुल चलता ही रहता है ! अजीव है यह जीवन ! कितना प्यारा ! कितना दुलारा ! सब चीज का जड़ ! क्या काटना अच्छा होगा ? या संवारना ? 

 सभी को अपने प्राण प्यारे होते है ! थोडा ही सही , किन्तु बहुत प्यारे ! आईये देखते है , वह भी बिना टिकट के ! आज की बात है ! जब मै रेनिगुंता से चेन्नई - दादर सुपर फास्ट लेकर चला ! मेरे साथ हवा चली ! लोको चला और पीछे यात्रियों से भरा कोच ! सभी अपने में मग्न ! मै भी , प्राकृतिक छटाओ को निहारते ,सिटी बजाते , जंगल के मध्य बने दो पटरियों पर , लगातार बढ़ते जा रहा था ! जब ट्रेन जंगल से गुजरती है तो बहुत ही मनोहारी दृश्य देखने को मिलते है ! आप को कोच से जीतनी सुहानी लगती है , उससे ज्यादा हमें ! कभी मोर दिखे तो कभी कोई हिरन छलांग लगा दी !

लेकिन आज जो मै देखा , वह एक अजीब सी लगी ! उस बिन टिकट यात्री को ! जो मेरे लोको के अन्दर चिमट कर बैठ  गयी  थी  ! हम  पूरी ड्यूटी के दौरान ,कई बोतल पानी गटक गए ! रास्ते में कहीं गर्मी तो कही बादल ! रेनिगुंता से गुंतकल की दुरी ३०८ किलोमीटर ! वह बिना पानी और भोजन के एक कोने में सिमटी हुयी जिंदगी की आस में उछल - कूद किये जा रही थी ! जब मेरी नजर उस पर पड़ी ! मै  उसे देखते रह गया ! इतनी सुन्दर  चित्रकारी और बेजोड़ कलाकारी ,वाह ! बार - बार ध्यान से देखा ! अपने सहायक को देखने के लिए विवस किया ! वह भी मुह खोले रह गया  ! इश्वर ने क्या चीज बनायी है !

छोटी सी दुनिया , इतनी खुबसूरत ! आज मेरे लोको में यात्री थी ,बिना टिकट के ! २७५ किलोमीटर तक मेरे साथ रही ! न पानी पी न भोजन  ! उसकी दशा  देख  , मुझे  तरस आ गयी  ! मैंने उससे कह दी तू गूत्ति आने के पहले अपने दुनिया में चली जा ! कब तक बिन खाए पीये  यहाँ पड़ी रहेगी ! शायद वह मेरे मन की बात समझ गयी ! गूत्ति आने के पहले ही वह फुर्र हो गयी ! क्योकि चलना ही जीवन है ! अगर वह और कुछ घडी रुक जाती , तो मौत  निश्चित थी ! मैंने उसमे जुरासिक पार्क के डायनासोर देखें! अब आप भी देंख लें -
 बिन टिकट यात्री !शीशे के पास दुबकी हुयी !
 ट्रेन की गति कम होने पर , जीवन की एक कला   !
 अपनी दुनिया के लिए बेचैन !
ध्यान से देंखें - उसके पंख पर डायनासोर ही तो है !इस्वरीय करामात !
यह तितली अपने को पूर्ण रूप से सुरक्षित रखते हुए यात्रा करती रही ! ट्रेन के रुकने पर पंख को फैलाना  और तेज गति के समय सिकोड़ लेना , जीवन की बुद्धिमता ही तो है ! हम भी इस मायावी संसार में फैलने और सिकुड़ने में व्यस्त है ! आखिर एक दिन सभी को बिन टिकट यात्रा करनी पड़ेगी ! यही तो कह गयी यह मेरी  प्यारी तितली !

Thursday, July 21, 2011

जीवन के अनुभव ( शीर्षक श्री दिगंबर नासवा )



इश्वर  ने  हमें  वह  सब  कुछ  दिया  है  , जो  सृष्टि  के किसी  प्राणी  को उचित ढंग से , नहीं मिली ! देखने  के लिए आँख , सुनने के लिए  कान  , खाने के लिए  मुंह  ..आदी  ! इसमे सबसे योग्य  हमारा  मष्तिक है , जो हमसे  सब कुछ करवाने  के लिए , मार्ग  दर्शन देता है ! उचित और अनुचित को इंगित भी करता है ,! बहुत सारे लोग अनुचित की  पहचान नहीं कर पाते और दुर्व्यवहार के आदि हो जाते है ! जब  तक  पहचान  होती  है , बहुत  देर  हो  चुकी   होती   है  ! धर्म और कर्म का बहुत ही  बड़ा सम्बन्ध है ! बिना धर्म के  शुद्ध कर्म नहीं ! बिन  कर्म , कोई धर्म नहीं ! बिना धर्म का किया हुआ कर्म जंगली फल की तरह है ! अतः धर्म से फलीभूत कर्म ही सुफल देता है ! 

मै  लोब्बी में साईन आफ करने के बाद , अपने गार्ड का इंतज़ार कर रहा था ! " सर आप को मालूम है ? "- उस क्लर्क ने मुझसे पूछा ?  क्या ? मै तुरंत प्रश्न कर वैठा   ! " सर  आज  उस अफसर ( नाम  बताया ) के वेटे का देहांत  हो गया  है  !" उसने जबाब दिया ! थोड़े समय के लिए मै सन्न रह गया ! समझ में नहीं आया , कैसे  दुःख  व्यक्त  करूँ ,और  कुछ   कहू ? कितनी बड़ी विडम्बना ! कुदरत ने कितने कहर ढाये थे , उस पर !क्षण  भर के लिए मै मौन ही रहना उचित समझा 
!
मेरे मष्तिक में उसके अतीत घूम गएँ ! एक ज़माना था , जब सब उससे डरते थे ! उसने किसी के साथ भी न्याय नहीं किया था ! बात - बात  पर  किसी को  भी  चार्ज सीट  दे देना , उसके बाएं हाथ का खेल था ! तीन हजार से ज्यादा कर्मचारी उसके अन्दर काम करते थे ! किसी ने भी उसे अच्छा नहीं कहा था ! सभी की बद्दुआ शायद उसे लग गयी थी ! यही वजह था की उसकी पत्नी ने भी अपने आखिरी वक्त में यहाँ तक कह दी थी की -  " मै तुम्हारे पापो की वजह से आज मर रही हूँ ! तुमने आज तक किसी का उपकार किये  है  क्या ?"

जी उसकी पत्नी कैंसर से पीड़ित थी , बहुत  दिनों  तक अपोलो अस्पताल में भरती  रही  और इस दुनिया को छोड़ चली गयी  ! उसके शव को  दूर  शहर  में  हाथ  देने  वाले कोई  नहीं  थे , फिर  भी .. उसके अधीनस्थ कर्मचारी ही , उस  शव को ..ताबूत में भर कर उसके गाँव भेजने में उसकी मदद को , आगे आये  थे !वह अपनी  करनी पर फफक - फफक कर रोया था ! उसके बाद उसमे बहुत कुछ सुधार नजर आये थे ! हर कर्मचारी को मदद करने के लिए तैयार रहता था ! अपने रिटायर मेंट तक , किसी को कोई असुबिधा महसूस होने  नहीं दिया था ! यह एक संयोग ही था , जो वह इतना बदल गया था ! काश इश्वर   उसे अब भी माफ कर दिए होते ! किन्तु नियति के खेल निराले ! न जाने उसके कोटे में पाप कितना था की आज  उसकी दुनिया से  उसका   एकलौता  वेटा  भी उसे  छोड़ कर चल बसा ! आज वह अकेला है ! जिंदगी  के गुनाहों को गिनने में व्यस्त ! सब कुछ कर्मो का फल है ! 

( सत्य  पर आधारित  घटना ! वह व्यक्ति ज़िंदा है ! नाम  छुपा दिए गए है ! ) 





Sunday, July 10, 2011

परिणाम

                   मै  और बालाजी गंगा जी में स्नान करने जाते हुए !


परिणाम  - पिछले पोस्ट - " आप एक सुन्दर शीर्षक बतावें ?" के प्रयास स्वरुप मुझे कई रोचक और सार्थक सुझाव मिले , जो टिपण्णी के साथ मौजूद है ! सभी को मेरी बधाई !उसे एक बार उधृत करना चाहूँगा !

  1.  
१) श्री सुरेन्द्र सिंह "झंझट "= खतरों से खेलती जिंदगी ! 

२) श्री राकेश कुमार जी =सर्प में रस्सी ! 

३) श्री विजय माथुर जी =जाको राखे साईया मार सके न कोय ! 

४) डॉ  मोनिका शर्मा जी =  चलना ही जीवन है ! 

५) सुश्री  रेखा जी = सतर्कता हर जगह ! 

६) श्री सुधीर जी =खतरे में आप और सांप ! 



७ ) श्री संजय @मो सम कौन ? = कर्मचारी अपने जान के खुद जिम्मेदार है ! और  

८) श्री दिगंबर नासवा =जीवन के अनुभव ! 

यहाँ नंबर एक ही सर्वश्रेष्ट है अर्थात श्री सुरेन्द्र सिंह " झंझट " के सुझाव अत्यंत योग्य लगे ! क्योकि सर्प और लोको पायलट , दोनों की जिंदगी एक सामान है !  दोनों ही अपने क्षेत्र में खतरों से खेलते है ! यह लेख भी सर्प और लोको पायलटो के जिंदगी के इर्द - गिर्द ही सिमटी हुई थी ! बाकी सभी 7 सुधि पाठको के विचार भी योग्य है ! भविष्य में , मै इन शीर्षकों से सम्बंधित पोस्ट लिखूंगा और आप सभी के शीर्षक ही विचारणीय होंगे !  


अभी मै दक्षिण सम्मलेन में व्यस्त हूँ , जो तारीख - २०-०७-२०११ को गुंतकल में ही आयोजित की गयी है ! जिसमे दक्षिण रेलवे , दक्षिण - पश्चिम  रेलवे और दक्षिण - मध्य रेलवे के लोको पायलट भाग ले रहे है ! इसके  संचालन , व्यवस्था  और देख -भाल की जिम्मेदारी मेरे ऊपर ही है ! अतः १०  / १२ दिनों तक ब्लॉग जगत से दुरी बनी रहेगी ! ब्लॉग पोस्ट पढ़ने और टिपण्णी देने में भी असमर्थ ! 


                  अब आज के विचार-


  जब हम निस्वार्थ भाव से नदी के पानी में डुबकी लगाते है ,  तो हमारे सिर के ऊपर हजारो टन पानी ..होने के वावजूद भी , हमें कोई बोझ मालूम नहीं होता ! किन्तु उसी नदी के पानी को स्वार्थ में वशीभूत होकर , जब घड़े में लेकर चलते है , तो बोझ महसूस होती है ! अतः स्वार्थी व्यक्ति इस दुनिया में सदैव बोझ से उलझते रहते है और निस्वार्थ लोग सदैव मस्त !

Wednesday, June 15, 2011

.....अमृत आम रस ....कोई हमारी बातो को सून भी रहा है !

आज - कल आम की मौसम है ! जहा देखो , वही आम की बहार है ! तरह - तरह के आम देखनो को मिल रहे है ! शुरू में ..मैंने आम को चार सौ रुपये किलो तक देखा ! अजब के आम !आम को फलो का राजा कहा गया है ! वह भी वाजिब और सार्थक विशेषण ! कभी - कभी मन में संदेह उत्पन्न होते है ..आखिर आम को फलो का राजा क्यों कहा गया ? क्यों कहा जाता है ? सोंचता हूँ - निम्न लिखित  बिशेषता रही होगी -


१).आम का सब कुछ उपयोगी है ! जड़ से फल और मृत्यु भी !२). आम के पत्ते बिना पूजा शुभ नहीं !३).शुभ कार्यो में या यज्ञ  ही क्यों न हो,इसकी लकड़ी बहुत ही उपयोगी  समझी जाती है !४).वसंत की आगमन और इसके बौरो / मोजर को देख ..सभी के दिल खिल उठते है !५).छोटे टीकोधो का लगना , और मन का ललचाना किसी से नहीं रुकता !६).कच्चे आमो के आचार और खटाई तैयार ...विशेष रूप से मनभावन ! ७). तरह - तरह के मनभावन जूस और  ८).आम के आम , गुठलियों के दाम ...क्या कहना !

 कौन है जिसके मन में लार / पानी  न भर आये ! किसी को आम खाते देख , देखने वाले की नजर अपने को कंट्रोल नहीं कर पाती ! जीभ चटकारे मारने लगती है ! जन्म से मृत्यु तक ..आम उपयोगी सिद्ध ! भला फलो का राजा क्यों न हो ?  बिलकुल सत्य ...दुश्मन हो या दोस्त  ..सभी इसके ऊपर मेहरबान ! यह भी बिना किसी भेद - भाव के सबके आगोश में ...प्यार के नगमे गाने में व्यस्त ! तरह - तरह के आम ...जितने देश उतने भेष ! दूर से खुशबू बिखेरना और अपने सुनहले ..लाल- पीले रंग को दिखा सभी को ललचाना ...वाह क्या कहने ! बनो तो आम नहीं तो कुछ नहीं ! सबका प्यारा / दुलारा !कोई भी दुश्मन नहीं ...जहां देखो वही प्यार  ही प्यार !

आयें ..... अब एक सत्य घटना की जिक्र करते है  , जिसके रूप को समझ पाना ..आज तक मेरे लिए पहेली बनी हुई  है ! कहते है एक बार ..एक पिता अपने छोटे पुत्र के साथ बागीचे से जा रहा था ! वह एक आम के पेड़ के नजदीक से गुजरा ! आम तोड़ने की इच्छा हुई , किन्तु वह पेड़ उसका नहीं था ! अतः अपने पुत्र से कहा कि- तुम नीचे खड़े होकर सावधान रहो और मै पेड़ पर चढ़ कर आम तोड़ता हूँ ! अगर कोई इधर आये तो ताली बजा देना ! पुत्र ने हामी भर दी ! पिता पेड़ पर चढ़ गया ! वह कुछ आम तोड़ने ही वाला था कि पुत्र ने ताली बजा दी ! पिता तुरंत पेड़ से नीचे उतर आया ! देखा.. कोई नहीं दिखाई दिया ! पुत्र से पूछ - " तुमने  ताली क्यों बजाई ? कोई नजर नहीं आ रहा है ?" पुत्र न विनम्र भाव से कहा -" पिता जी इंसान  तो नहीं , पर भगवान सब कुछ देख रहे है !" पुत्र कि बात सुन कर पिता को असलियत  और पुत्र के ईमानदारी का आभास हुआ ! उसने पुत्र को  भावुक हो ,गले से लगा लिया और कहा वेटा ..तुम ठीक कह रहे हो ..हमारी हर कार्य को भगवान देख रहा है ! हमें छुप कर चोरी नहीं करनी चाहिए !

ये तो रही सुनी - सुनाई कहानी ! एक बार कि बात है ! आज से करीब चालीस / बयालिस वर्ष पहले की ! मै कोलकाता से गाँव गया हुआ था ! मई या जून का ही महीना ! उस समय गाँव  में प्रायः घरो में शौचालय नहीं हुआ करते थे ! महिला हो या पुरुष सभी को गाँव के बाहर जाने पड़ते थे ! सभी इसे ही स्वास्थ्य वर्धक मानते थे ! धीरे - धीरे सभ्यता और रहन - सहन बदलने लगे  और आज गाँव  तथा घरो में भी शौचालय बन गए है !

दोपहर का समय ..कड़ी धुप और दुपहरी की उमस ! मुझे शौच लगा ! अतः गमछा सर पर रख ..गाँव के बाहर तालाब और बागीचे की तरफ दौड़ा ! दोपहर का समय .. बिलकुल .सुनसान ! शौच होने के बाद ..एक आम के पेड़ के नीचे आकर बैठ गया ! उस समय मेरी उम्र सात या आठ वर्ष की रही होगी ! बगल में ही डेरा था ! आम के पेड़ को देखा ! काफी आम लटक रहे थे ! पत्थर भी नहीं मार सकता ! मारने जो नहीं आते थे  ! बच्चे का मन ..सोंचा .आंधी आये तो अच्छा होता  !आम अपने - आप गीर पड़ेंगे और मै उन्हें बटोर लूंगा ! फिर क्या था ! मेरा सोंचना और जोर की आंधी आई ! आम टूट - टूट कर गिरने लगे ! मैंने उन्हें अपने अंगोछे में बटोर लिए ! आंधी ज्यादा देर तक नहीं चली ! मै घर आया और देखा मेरे दादा जी घर पर आ गए थे ! उनसे मैंने सारी  बातें बतायी  ! मेरी बात सुन कर वे हंस पड़े और बोले -  " कहीं .. आंधी नहीं आई थी !  झूठ बोल रहे हो ! किसी ने तोड़ कर दिए होंगे " मैंने आंधी कि बात दुहराई , पर घर में किसी ने मेरी बात नहीं मानी !

जी हाँ ..उस समय छोटा था .अतः आंधी नहीं आई थी की बात समझ नहीं पाया ! लेकिन आज - जब सोंचता हूँ (उस उपरोक्त कहानी के माध्यम से  ), तो यही लगता है कि किसी ने मेरी बात सुन ली थी ! वह भगवान थे या शैतान ! यह आज तक नहीं समझ पाया ! तो क्या कोई हमारी बातो को तुरंत भी सुन लेता है ? यह संशय आज भी बनी  हुई है ! आखिर वह घटना कैसे घटी ?

( चित्र साभार -गूगल

Friday, June 10, 2011

एक बूंद

जैसा की आज - कल लोग ....भ्रष्टाचार के आन्दोलन और समाचारों से ...अघाए हुए है ! इस परिप्रेक्ष में मनुश्री तरुण सागर जी की कही हुयी ..निम्न सन्देश काफी कुछ कह देता है --

    " शैतान साधू हो जाए ..तो पवीत्रतम हो जाता है ! लेकिन यदि साधू  , शैतान हो जाए , तो शैतान से भी ज्यादा खतरनाक हो जाता है ! जो पहले ही चोर , बेईमान और भ्रष्ट था , उसे सत्ता की ताकत और कुर्सी की ताकत मिल जाए , तो फिर चोर नहीं रहता ....चोर से चाक़ू बन जाता है !आज ऐसा ही कुछ हुआ है ...अपराधिक पृष्टभूमि वाले भी लोक सभा और विधान सभा की सिधिया चढ़ गए है .! "

                 तिजारत ( व्यापार ) अगर साफ - सुथरी हो तो इंसान की आदतों में निखार आता है  और हर एक के प्रति उसमे नरमाई पैदा होती है ! 

   जी हाँ ..आज - कल हम इसी दौर से गुजर रहे है !

Monday, June 6, 2011

योगी बाबा राम देव जी

बाबा राम देव जी ने ..राम लीला मैदान में सत्याग्रह शुरू किया था ! दिनांक -०४ मई २०११ को !  कार्यकर्ताओं की भीड़ उमड़ने लगी थी ! आधी रात को (दिनांक -०५ मई २०११ को )दिल्ली पुलिस बल ने आक्रमण किया और सत्याग्रहियों को मैदान से बाहर निकाल फेंका ! कितने घायल हुए , कुछ गायब ( जैसा की समाचारों में आ रहा है ), बाबा रामदेव को सलवार - समीज में छुप कर भागना पडा ! ज्यादा नहीं लिखूंगा ! कुछ प्रमाणिक लक्षण पेस  कर रहा हूँ , जो इस घटना की पोल खोलती नजर आ रही है !

पौराणिक  / सम सामयिक घटनाओं को देखने से मुझे बिदीत होता है की - राम ने रावण का बध किया था ! राम और रावण ......?
      कृष्ण ने कंस का बध किया था ! कृष्ण और कंस .........?
      गोडसे ने गाँधी का बध किया था ! गोडसे और गाँधी ........?
     बामा ने सामा का बध किया था ! बामा और सामा ...? और अब ..रामदेव जी के साथ हुआ ..वह भी राम लीला मैदान ! राम देव और राम लीला .....? और भी बहुत शब्द  संयोग......

 उपरोक्त शब्दों और अक्षरों .. के संयोग को देखने से पता चलता है की ...राम लीला मैदान  भी कही ...राम देव जी के साथ होने वाली शब्द / अक्षर .. वाली ..किसी  अनहोनी का  संयोग था ! आधी रात को इस तरह से सत्याग्रहियों पर छुपे रूप से आक्रमण और राम देव जी का स्त्री वेश में छुप कर भाग निकलना,किसी साधारण प्रक्रिया का संकेत नहीं लगता ! जिसे राखे साईया , मार सके न कोय ! ...की बात ही साबित करती है ! देश में  भ्रष्टाचार जीतनी  तेजी से बढ़ रहा है , उसे देखते हुए यही लगता है की .. भ्रष्टाचारी .. राम देव जी का अंत चाहते  होंगे  ! जो भ्रष्ट  है , वे उनके आन्दोलन को समर्थन देना नहीं चाहते ! जब की उन्हें साम्प्रदायिकता के रंग से नहला रहे है ! आज प्रश्न यह है की सांप्रदायिक हो या असाम्प्रदायिक ... क्या काले धन को वापस लाना उचित नहीं समझते  है ? क्या भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना जरुरी नहीं लगता  है ? स्वच्छ और पारदर्शी सुशासन देना/ लेना  जरुरी नहीं दीखता ?  कही सोने की चमक आँखों को ..चकाचौध तो नहीं कर रही है  सब कुछ छुपाने के लिए .. ?

कल की घटनाए ..सोंच कर दिल दहल उठता है    क्यों की लगता है ...उन्हें मार डालने का षड्यंत्र रचा गया था ! न रहेगा बांस , ना बजेगी बांसुरी ! शब्द संयोग -
रामदेव जी = रा 
राम लीला मैदान = रा
देंखे ..बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधता है !

Tuesday, May 24, 2011

.....नामकरण .....

                                 जीवन में नाम का बड़ा ही महत्त्व है ! छोटा हो या बड़ा ..सभी को नाम धारण करना पड़ता है ! यह परिवार का सूचक , खानदान का सूचक , जाति  का सूचक , साम्राज्य का सूचक , पार्टी का सूचक , देश का सूचक , मूल का सूचक , समाज का सूचक ..और भी बहुत से चीजो का सूचक होता है ! हमें नाम से बहुत कुछ जानने को मिल जाता है ! यह किसी से छुपी नहीं है ! हर जगह नाम तो बताना ही पड़ता है , बिना नाम के कुछ हासिल होने वाला नहीं ! नाम एक तरह से बहुत ही मददगार है !

                              बिन बाप का बेटा ...हां जी ...एक गाने की बोल है ! आखिर क्यों ऐसा ? क्योकि नाम नहीं मिला ! इसमे भी दो नाम हो जाते है ..एक सभ्य और सुसंस्कृत  तो दूजा असभ्य और बदनाम !  तारीख -बीस -मई - २०११ को याद करें तो हम देखते है की  ...एक महिला ने अपने बल और बूते पर ....पहली महिला मुख्य मंत्री के...... उपहार से नवाजी गयी ( सुश्री ममता बेनर्जी ), तो दूसरी तरफ फले - फुले समाज में रहते हुए भी... एक मुख्य मंत्री की बेटी कोणी मणि को जेल की हवा खानी पड़ी ! दोनों में कितना फर्क है ! यह कर्म ही है , जो मनुष्य जाति को अनुपम उपहार ....उसके कर्मानुसार देता है ! 

                            भगवान ने हमें वह सब कुछ दिया है , जो  हमें अन्य प्राणी -जाति से भिन्न बनाता है ! मनुष्य जाति अतिउत्तम माना जाता है ! उसका सदुपयोग करना और न करना ...ही बिभिन्न फलो का धोत्तक है ! इसमे प्रायः नाम भी बहुत कुछ प्रभाव डालते है ! नाम के शब्दों का असर मनुष्य पर बहुत ही पड़ता है ! इसी लिए प्रायः लोग तरह - तरह के मुहावरे कहते मिल जायेंगे ..जैसे नाम बड़े दर्शन थोड़े !  नाम नयन सुख पर दर्शन थोड़े ! जैसा नाम वैसा काम ! यह तो बिलकुल रावण निकला !  वगैरह - वगैरह ..

                                  अब आये एक सच्ची घटना का जिक्र करे !  

                                     मेरे दादा जी ..मेरे बड़े पुत्र ..राम को गोद में लिए हुए !

                         मेरे बड़े पुत्र का जन्म दिनांक २५ -०५-१९९२ को कलकत्ता के  मतियाबुर्ज़  में हुआ  था !  १९९३ में मै पुरे परिवार के साथ  उत्तर प्रदेश के बलिया जिले में गया हुआ था , जो मेरा पुश्तैनी गाँव है ! शायद छठ पूजा में शरीक होना था ! एक दिन की बात है ..सुबह - सुबह  मै अपने बेटे राम को गोद में लेकर ..आँगन में पलंग पर बैठा हुआ था ! मेरी पत्नी जी घूँघट निकाले लकड़ी के चूल्हे पर नास्ता तैयार कर रही थी ! उस समय गाँव में गैस नहीं मिलता था ! आज गैस मौजूद है ! 

                            मेरे बाबा ( दादाजी ) जो अनपढ़ थे ! सुबह - सुबह खेतो में खाद वगैरह डाल कर घर लौटे थे !   खेती गृहस्थी  में माहिर थे ! आंगन में आकर खड़े हो गए ! मेरी पत्नी आशय समझ गयी और बैठने के लिए पीढ़ा ( लकड़ी का बना हुआ ख़ास सामान जो बैठने के लिए इस्तेमाल होता है ) दे दी ! बाबा जी बैठ गए ! मेरी पत्नी ...उन्हें नास्ता परोस  दी !  बाबा नास्ते को खाते हुए मुझसे पूछ बैठे ?

" बबुआ का नाम का रखायिल बा ? "
 "अभी कुछ ना ...पर अभिषेक राखे के बिचार बा !" मैंने जबाब दिया !
 बाबा मुह में कौर लिए हुए ..मंद मंद मुसकुराये ! कुछ नहीं कहें !
 तब - तक मेरी पत्नी ने घूँघट से मेरे तरफ इशारा करते हुए ...कहना चाही की आप बाबाजी के राय ले ले ! मै उसके इशारे को समझ गया और बाबा से पूछ बैठा?
  " क्या नाम रखा जाय ..? रउवे कही ना  !"..बाबा चुप रहे ! कुछ देर बाद बोले !
"भगवान के नाम रखल चाहता !  जो कोई भी पुकारी .. कम से कम एक बार भगवान के नाम ...जरुर  ली न ! " बाबा का सुझाव बहुत सुन्दर लगा और  जब हमने नामकरण का भोज और महोत्सव मनाया , उसमे बड़े बेटे का नाम बाबा से पूछ कर ही ...राम ..रख दिए ! 

                                इतना ही नहीं ..सभी कहते है की मेरा नाम ..गोरख नाथ भी बाबा ने ही रखी थी ! अतः मेरे पुरे परिवार में जो कोई भी है ... सभी का नाम भगवान से सम्बंधित है ! अब देंखे मैंने इससे प्रभावित हो कर अपने ब्लॉग का नाम भी  १) बालाजी ( छोटे पुत्र का नाम )..२) राम जी ( बड़े पुत्र का नाम )  और ३) ॐ साई  रख दी है ! इसका मकसद साफ है की जो कोई भी इस ब्लॉग पर आयेगा ...भगवान को जरुर एक बार  याद करेगा  या उसके नाम का रट लगाएगा !! यह एक सुन्दर धर्म  और भाव को प्रोत्साहित करेगा !  मन पवित्र होगा , अपवित्र लोग इसे पसंद नहीं करेंगे !  ये जग जाहिर है ! आप भी बताएं ---आप के बिचार क्या है ?

Monday, May 16, 2011

साई मंगलम ......साई नाम मंगलम.......

                                                                                                                                                                               
     दुनिया में समय - समय पर महापुरुषों का आगमन होता रहा है ! महापुरुषों को समझ पाना......
किसी साधारण ब्यक्ति के वश में नहीं ! जब तक ..हमने उन्हें समझा , तब तक काफी देर हो चुकी होती है ! महापुरुषों ने अपने अद्भुत कार्यप्रणाली के द्वारा ..हमें हमेशा आश्चर्य चकित करते रहे है ! उनके पग - पग पर मानवता के सद्गुणों की महक हवा के झोंको के साथ ..इस पृथ्वी पर बिखरती रही है ! जिन्होंने चाहा , उन्होंने उसे लूट लिया ! सफल हो गए ! बहारे आती है , मनुष्य के जीवन में हरियाली फैलती है , जीवन सोना हो जाता है ..जब हम अपने काम ,क्रोध लोभ ,और स्वार्थ को भूल जाते है ! जीवन के हर पल हमें कुछ करने के लिए उकसाते है ! परमार्थ हित में किये गए हर कार्य ....की प्रसंशा होती है ! यही जीवन दायनी और मन को शान्ति प्रदान कराती है ! 
                
                       शासन में मनुष्य को कुछ शक्ति मिलती है , उस शक्ति का इस्तेमाल परोपकार में होनी चाहिए या अपने जीवन में इसे ढाल बनाना चाहिए ! जिसकी सोंच जैसी होगी वैसी ही ....फल उत्पन्न  होगे ! आम लगाओ   आम खाओ ! इमली लगी ...इमली  मिली, फिर इसमे किसका दोष ! इसीलिए कहते है , जैसी करनी वैसी भरनी ! जिनके दिल में  आस्था और समर्पण की भावना होती है ...उनके समक्ष प्रभु को आते देर नहीं लगती ! प्रभु तो प्रेम के भूखे है ! प्रेम तो प्रेम है , जो पत्थर को भी मोम बना देता है !

                       मेरे साई के बारे में कुछ भी न कहे ! वो तो सर्व ब्याप्त है ! दिल से प्यार करने पर , वे तुरंत भाग कर ..अपने भक्त के पास आते है ! स्वप्न में आना , असमय किसी न किसी रूप में मदद करना , चिंता के समय बुद्धि  या राह बताना , तो उनके आने के आभास है ! अपने जीवन काल में उन्होंने बहुत से अद्भुत कार्य किये , जो किसी भी इंसान को भगवान बनाने के लिए काफी है ! वे कहा करते थे --" मै रहू या न रहू ..पर याद करते ही भाग   दौड़ा आउंगा ! यह कार्य मै हजारो वर्षो तक करता रहूंगा !" 
                            
                          जी हाँ आप मानो या न मानो ....पर यह बिलकुल  सच है ! मै पहले यह सभी बातें ,सुना करता था ! अतः एक दिन योजना बना ली और शिर्डी  के लिए सपरिवार रवाना हो गया ! दिनांक ११ से १५ जनवरी २००५ ...का समय शिर्डी में बीता ! मुझे दान - दक्षिणा देने की बहुत लालसा रहती है ! शक्ति के मुताबिक़ दे ही देता हूँ ! तारीख १३-०१-२००५ ...सुबह का समय ...साई मंदिर में साई बाबा का दर्शन कर  बाहर सड़क पर टहल रहे थे ! सोंचा  कुछ साई ट्रस्ट में दान देनी चाहिए ! आज शिर्डी में आये तीसरा दिन था ! काफी पैसे खर्च हो गए थे ! मेरे पास बस ५ हजार रुपये बचे थे ! इस पैसे को दान दे कर .....जोखिम नहीं उठाना चाहता था ! अतः ये.टी.एम्  की खोज में निकल गया ! शिर्डी में ये.टी.एम् बहुत कम थे ! दुसरे ये.टी.एम्.से पैसे निकालने पर सर्विस चार्ज देने पड़ते थे ! मेरे पास SBI  के ATM कार्ड था ! मैंने बहुत लोगो से SBI  का ATM   कहा है ? पूछा !गली -गली फिरा ,पर कही पता नहीं चला !

                             मै पुरे परिवार के साथ , वि .आई.पि गेट के पास खडा था और पत्नी से कहा - " कल हमें औरंगाबाद जाना है , वहा पर ATM होगा ! वही से पैसा ड्रा कर ले आयेंगे और ट्रस्ट में दे देंगे ! " यह बात आई और गयी ! दोपहर का खाना खाने के पास , हम अपने होटल  के  कमरे में जाकर सो गए ! थके होने की वजह से नींद जल्दी आ गयी ! मैंने करीब साढ़े तीन बजे के करीब ....एक स्वप्न देखी ! एक भिखारी बच्चा मेरी अंगुली पकड़ कर ...खींच रहा था और मै उस वि.आई.पि.गेट पर ही खडा था ! बच्चा कह रहा था -वो देखो ..उधर है ..( भक्ति निवास की तरफ इशारा करते हुए ) यानी वह मुझे SBI का ATM   के बारे में बता रहा था ! अचानक मेरी आँखे खुल गयी और मै उठ बैठा ! देखा....... दोनों बेटे और पत्नी साहिबा आपस में बाते कर रहे थे ! शाम के चार बजने वाले थे ! मैंने स्वप्न वाली बात ..पत्नी जी को बता दी ! किसी ने इस तरफ ध्यान नहीं दिया ! न ही कोई महत्व समझा ! सायं काल ..... फिर शिर्डी दर्शन के लिए निकले ! अचानक घुमाते हुए ..उसी रास्ते पर हो लिया  , जिधर उस भिखारी बच्चे ने ...ATM   के बारे में  स्वप्न में  ...बतायी थी ! 
                                 
                             मेरे हर्ष का पारावार न रहा ! देखा ...सड़क के बाए तरफ ..SBI  का ATM ..एक lodge के  प्रांगण में  था ! मैंने तुरंत पैसे निकाले और ट्रस्ट में जमा करा दिए ! ये है मेरे साई के चमत्कार ! है न .....! आज वही ATM /SBI ..मंदिर के प्रांगण में सिफ्ट हो गया है !  इसके बाद बहुत से चमत्कार देखने को मिले ! जी हां आप लोगो ने ..साई बाबा के बहुत से चमत्कारों की कहानियाँ ..रामानंद सागर के सीरियल - साई बाबा ..में भी देंखे होंगे ! मेरे साई ने मुझे प्रत्यक्ष मदद दी !
                                 
                                 
            इसी लिए कहते है -- साई मंगलम..साई नाम मंगलम ...