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Saturday, April 28, 2012

थोड़ी सी वेवफाई... ..

थोड़ी सी वेवफाई... .. आज के छोटे विचार ....

सज्जन हमेशा  दूसरो को हँसाते है ! 
दुर्जन / दुष्ट हमेशा ही दूसरो को रुलाते है !
जब ......
सज्जन व्यक्ति मरता  है ,
सभी रोने लगते है !
जब ...
दुर्जन / दुष्ट मरता है , 
सभी हंसते है , चलो एक दुष्ट की तो कमी  हुई !
( सौजन्य =मुनिश्री महाराज )

                                 
                                                                                                   ध्यान से देंखे - तस्वीर के अन्दर 

Sunday, April 8, 2012

आज के विचार


                                                                 ट्रेन  से  ली  गयी  एक  पुराने  रेलवे  ब्रिज  के  खम्भे  की  तस्वीर 

 अहंकार  मानव  जाति  को  अँधा  बना  देता  है  ! अतः  मानव  पथ  भ्रष्ट  होकर  ऐसे  कार्यो  में  लीन  हो  जाता  है  कि  उसे  उचित  या  अनुचित  का  ध्यान  ही  नहीं  रहता  !  अंत  में  यह  उसके  जीवन  में  पराजय  का  एक  पहलू  बन  जाता  है  ! रावण  , कंस  या  दुर्योधन  इसके  उदहारण  के  लिए  काफी  है  !

 वहीँ  परमार्थ  के  लिए  उत्पन्न  अहंकार   मानव  को  श्रेठ  और  ईश्वर  बना  देता  है !

Sunday, April 1, 2012

सहमी सी जिंदगी !

आज - कल एक तरफ अन्ना , तो दूसरी तरफ रामदेव और तीसरी तरफ -हम नहीं बदलेंगे ! दुनिया में आन्दोलन होते रहते है और अनर्थकारी अपने हरकतों से बाज नहीं आते ! पिछले तीन   दिनों में जो  कुछ भी महसूस किया , वह मन को उद्वेलित कर गयी ! त्तिरछी नजर ---

१) गोरखपुर सुपर फास्ट एक्सप्रेस को लेकर सिकंदराबाद जा रहा था ! ट्रेन दोहरी लाईन पर दौड़ रही थी ! एक कुत्ता दौड़ते हुए दोनों पटरियों के बीच में आया और राम-राम सत्य ! कुछ गड़बड़ की आभास ...

२) उसी दिन - कुछ और आगे जाने के बाद  देखा एक बुजुर्ग...धोती कुरते में था ..आत्म हत्या वश , तुरंत पटरी पर सो गया ! मेरे होश उड़ गए ! ११० किलो मीटर की रफ्तार से चलने वाली गाडो कब रुकेगी ? किन्तु जिसे वो न मारे , भला दूसरा कैसे मारेगा ? उस व्यक्ति का बाल न बाका हो सका ! है न आश्चर्य वाली बात ! मुझे हंसी भी आ रही है ! क्यों की वह जल्दी में दूसरी लाईन पर जा कर सो गया ! हम सही सलामत अपने रास्ते आगे बढ गए !

३) तारीख ३१-०३ -२०१२ , दिन शनिवार  ! पुरे देश में नवमी की तैयारी ! वाडी जाने के लिए घर से लोब्बी में गया ! जो समाचार मिला वह विस्मित करने वाला था ! मंडल यांत्रिक इंजिनियर (पावर ) को रंगे हाथो विजिलेंस वालो ने पकड़ लिया था ! सुन कर बहुत दुःख हुआ क्यों की उनसे  हमेशा मिलते रहा हूँ ! वह साहब ऐसा भी कर सकते है , वह मैंने कभी नहीं सोंचा था ! हाँ एक बार मैंने उन्हें सजग भी किया था की ऐसी गतिबिधियो से सतर्क रहे ! क्यों की जिनकी दाल नहीं गलेगी वे तरह - तरह के हथकंडे अपना कर बदनाम करने की कोशिश करेंगे ! मेरे विचार में यहाँ भी यही हुआ लगता  है !

आज उनके घर की राम नवमी मद्धिम हो गयी है ! नियति के खेल निराले ! परिवार वालो पर क्या गुजरेगी ? पत्नी के दिल पर क्या गुजरती होगी ? सपने अपने होंगे या अधूरे ?  और  भी बहुत कुछ ..मै  महसूस कर सिहर उठता हूँ ! तकदीर से ज्यादा और समय से पहले कोई भी बलवान या धनवान नहीं बन सकता ! फिर भाग -दौड़ क्यों ? सत्यमेव जयते !


Monday, March 26, 2012

शैतान की पीड़ा !


हमें जन्म से मृत्यु तक कभी भी शांति नहीं मिलती  ! अशांति का मुख्य जड़ स्वार्थ और बिवसता है ! स्वार्थ बस  हाथ हिलाते है और विवस हो पैर स्वतः  रुक  जाते है ! मनुष्य  इन्ही उधेड़ बुन में फँस कर , जो भी कृत्य कर बैठता है वही उसके कर्मो के फलदाता बन जाते है ! अर्थार्थ जैसी करनी , वैसी भरनी ! अतः मनुष्य का जीवन कर्म प्रधान है !
हमारे शरीर में मन का बहुत बड़ा स्थान / देन है ! मन की बातों को कोई भी न समझ सका ! इसकी गहराई समुद्र से भी गहरी होती है ! हम मन के नाव  पर बैठ सारी दुनिया की भ्रमण कर आते है ! तो क्या  हमें मन की चंचलता  स्वप्न में भी जगाती है ? हम स्वप्न क्यों देखते है  ? आखिर वह कौन सी दुनिया है , जिसमे सोने के बाद तैरने लगते है ? सोये हुए बिस्तर पर बकना , चिल्लाना , रो पड़ना , डर जाना वगैरह - वगैरह क्रियाये क्यों होती है ? अगर किसी को जानकारी हो तो मेरे जिज्ञासा की पूर्ति करें !

अब आयें एक घटना की जिक्र करें ! उस समय मै सहायक लोको पायलट के पद पर कार्य रत था ! मॉल गाड़ी में कार्य करता था !  मै उस दिन नंदलूर आराम गृह में ठहरा हुआ था ! वापसी के लिए ट्रेन काफी देर से आने वाली थी ! अतः कुछ लोको पायलट और सहायक लोको पायलट मिल कर सिनेमा देखने चले गएँ ! पिक्चर तेलुगु भाषा में थी  ! जिसका अनुबाद हिंदी में भी हो गया है ! शायद - " जुदाई " जिसमे अनिल कपूर , श्रीदेवी और एक हिरोईन है , नाम याद नहीं आ रहे है ! कथानक यह है की - पत्नी अपनी शानशौकत के लिए पति को भी बेच देने के लिए राजी हो जाती है ! अंत में तरह - तरह के परेशानियों से गुजरती है ! देखने वाले चौक जाते है - यह भी एक अजीब  सी लेखक के दिमाग की पैदायिस थी ! फ़िल्म काफी हिट हुई थी ! हिंदी बाद में बनी ! पर तेलगू फ़िल्म की कथानक और सेट अच्छी लगती है !

अब आयें विषय पर लौटे --
फ़िल्म देख बारह बजे रात के करीब लौटे ! आते ही हम सभी रेस्ट रूम में अपने बिस्तर पर सो  गए ! दिन भर की थकावट और देर तक फ़िल्म देखने की वजह से  नींद  तुरंत आ गयी ! 

 नींद के बाद की  वाक्या - 
ओबलेसू जो उस समय रेस्ट रूम का वाच मैन था , अब टी.टी हो गया है , बरांडे  में बैठा पेपर पढ़ रहा था ! वह   मुझे जोर से झकझोरने लगा ! मेरी नींद टूट गयी ! उसने पूछा - "  क्या हो गया जी , इतनी जोर से चिल्ला रहे हो  ?"

मै सकपका गया ! कुछ समझ में नहीं आया ! बिस्तर पर पड़े हुए ही बोला -" न जाने कौन मेरे  सीने पर बैठ , गले को जोर से दबा रहा था , ताकि मेरी  मौत हो जाए ! उसके सिर  और दाढ़ी के बाल लम्बे - लम्बे थे ! भयानक सा दिख रहा था !"" फिर रुक कर बोला - " मदद हेतु स्वप्न में  चिल्ला रहा था ! शायद यही शोर तुम्हे सुनाई दी हो !" इतना कह  उठ बैठा ! शरीर में डर समां गया ! कुछ और सह-कर्मी उठ बैठे ! सभी ने कहना शुरू की यह बिस्तर ठीक नहीं है ! जो भी सोता है , उसके साथ यही होता है ! रात्रि- लैम्प क्यों बंद कर दिए हो ? इसे जला कर सो जाओ !

जी हाँ 
क्या इस आधुनिक ज़माने के लोग इसे विश्वास करेंगे ? अगर नहीं - तो ऐसी घटनाये आखिर क्यों होती है और ये  क्या है ? अगर किसी को कोई लिंक की  सूचना / जानकारी हो तो मुझे/मेरी शंका का समाधान करें ?(  नोट -किसी अंधविश्वास से प्रेरित कथा सर्वथा न समझे , यह ब्लॉग स्वयं में  सत्य पर आधारित है !)

Friday, February 24, 2012

घी बड़ा या अक्लमंद

" जी हुजुर ..हमने ही इनकी घी को छिनी थी !" घिघियाते हुए एक ने स्वीकार की तथा बाकि सभी  ने हामी में सिर हिलाई !  दरोगा ने अपने तेवर बदले ! वह कार्यवाही नहीं करना चाहते थे ! वे जानते थे , ये चारो गाँव के दबंग के बेटे है ! बुरे बापों की दबंगई , इन्हें नालायक बना रखी है ! दरोगा की अंतरात्मा  कार्यवाही करने से डर रही थी , फिर भी कर्तव्य का पालन जरुरी था ! न चाह कर भी कुछ तो करना ही था अन्यथा पद की गरिमा गिरेगी और इनकी हिम्मत बढ़ेगी ! उसने मिल -मिलाप का रास्ता सोंचा और कहा --" तुम लोगो का अपराध सिद्ध हो चूका है ! एक काम करो ?  तुम लोग ,इनके घी की कीमत चूका दो , मै तुम लोगो को छोड़ दूंगा !"
यह कह कर वह सेठ की तरफ मुखातिब हुआ और पूछा -" कहो सेठ घी कितने का था ?    "हुजुर ..बस दो सौ रुपये का ...बेचने के बाद ..करीब तीन सौ कमा लेता ! - सेठ ने मुस्कुराते हुए कहा !       " चलो  तुम लोग जल्दी  रुपये अदा करो अन्यथा रिपोर्ट दर्ज करनी पड़ेगी !" - दरोगा उन चारो को  संबोधित कर कहा ! फिर क्या था , उन चार नालायको ने दरोगा के पैर पकड़ लिए !  

"हुजुर हमें माफ करे ! हम इतने पैसे नहीं दे सकते  ! उन चार घी के डब्बो में घी नहीं पानी था !" वे गिड़गिड़ाने लगे !     " हुजुर ये झूठ बोल रहे है !'  -सेठ झल्लाते हुए बोला !   "  मुझे मालूम है "  -दरोगा ने हामी भरी ! दरोगा जनता था की सुकई सेठ अपने इलाके के नामी - गिरामी सेठ है  और वर्षो  से इनके बाप - दादे तेल और घी का व्यापार करते आ रहे है ! पानी कभी हो ही नहीं सकता !

उनकी अनुनय विनय   रुकने वाली नहीं थी ! वे अंत में सेठ के पैर पकड़ रोने लगे ! सेठ जी हमें माफ करें ऐसी गलती हम कभी नहीं करेंगे! आप ही हमें बचा सकते है ! दरोगा को समझ में नहीं आ रहा था ये क्या हो रहा है ! उनके आंसू और दयनीय दृश्य को देख सेठ का भी दिल पिघल  गया ! उसके दिल में भी एक इन्सान जिन्दा था ! उसने दरोगा को कहा -" हुजुर इन्हें माफ कर दे बशर्ते ये ऐसी घटिया हरकत फिर कभी नहीं करेंगे !"

फिर क्या था वे तुरंत कह बैठे - " जी हुजुर ... हम लोग  वादा करते है कभी ऐसी गलती  नहीं करेंगे !" दरोगा को कुछ समझ में नहीं आया ! पाई - पाई को मरने वाला कंजूस सेठ दो सौ रुपये को भूल ..इन्हें कैसे क्षमा करने के लिए  राजी हो गया !  " ठीक है , तुम लोगो को छोड़ देता हूँ  आईंदा कोई शिकायत आई तो जेल में बंद कर दूंगा !"  वे चारो दरोगा और सुकई सेठ को प्रणाम कर बाहर भाग गए !

" सेठ जी ..मुझे मामला कुछ समझ में नहीं आया ? आप इतना  नुकसान  कैसे सह लिए ! "- दरोगा ने सेठ से पूछा ! सेठ ने कहना शुरू किया -

" जी हुजुर ..बात परसों की है ! जब मै चार घी के डब्बो को घोड़े पर लाद कर व्यापार के लिए  जा रहा था ! ये चारो रास्ते में मिल गए और  खाने-पीने  के लिए पैसे मांगने लगे ! मैंने साफ इंकार कर दिया तो इन्होने  मुझे धमकी देते हुए कहा की  ये मुझे  कल से इस रास्ते व्यापार के लिए नहीं जाने देंगे ! अगर भूले भटके चला भी गया  तो सारे के सारे घी छीन लेंगे ! मैंने भी इनकी शर्त मान ली और आप को इसके बारे में बता दिया था !" 
 सेठ कुछ समय के लिए रुका और गंभीर साँस लेते हुए फिर कहना शुरू किया -"  मै  इन चारो को सबक सिखाना  चाहता था ! मैंने दुसरे दिन चार घी के डब्बे घोड़े पर लादे ....किन्तु उन डब्बो में घी न रख... पानी भर दिए थे !" दरोगा सेठ के अकलमंदी पर आश्चर्य चकित हो गया !

( करीब ६० वर्ष पहले की घटना  जब दो या तीन सौ की कीमत काफी थी !वह भी मेरे पडोसी सेठ की ! सत्य घटना पर आधारित )

Friday, February 3, 2012

पत्नी व्रती और ससुर जी

इस फ्लैश समाचार को देख न चौकें ! इसे देख कुछ यादे ताजी हो गयी ! जो प्रस्तुत कर रहा हूँ ! यह हमारे लोब्बी में टंगा हुआ नोटिश बोर्ड है ! इस पर वही लिखा जाता है , जो अति जरुरी होता है ! इस तरह से प्रमुख घटनाओ की जानकारी , हमें यानि लोको पायलटो को मिलती रहती है ! आज  ( २५-०१.२०१२ ) जब मैंने लोब्बी में प्रवेश किया तो इस सूचना को देखा ! इसे आप भी आसानी से पढ़ सकते है ! " मुख्यतः इस बात पर जोर दिया गया है की जब किसी लोको पायलट के ट्रेन के निचे कोई व्यक्ति आकर आत्म  हत्या या दुर्घटना ग्रष्ट होता है ,तो लोको पायलटो को  इसकी  समुचित जानकारी जी.आर.पि /आर.पि.ऍफ़ को तुरंत  देनी चाहिए ! अन्यथा शिकार व्यक्ति के परिवार / रिश्तेदार टिकट लाश के ऊपर रख कर मुआवजा की मांग करेंगे !"  यह भी एक अजीब सी बात है ! सही है होता होगा !


 अब देखिये ना - हम लोको पायलटो को भी अजीब दौर से गुजरना पड़ता है ! बहुतो को कटी हुई लाश देख चक्कर आने लगते है ! बहुत तो देख भी नहीं सकते ! चलती ट्रेन के सामने लोगो का आत्म हत्या वश आ जाना -आज कल जैसे यह स्वाभाविक सा हो गया है ! घर में , परिवार में , पढाई में या यो कहें और कुछ कारण ...बात ..बात में ट्रेन के सामने आकर अपनी जान दे देना ...कहाँ की बहादुरी है ! जीवन   जीने की एक कला है ! इसे जीना चाहिए और इसकी खुबसूरत  रंगों को इस दुनिया में बिखेरते रहना चाहिए ! अगर दूसरो को कुछ न दें सके तो खैर कोई और बात है .. कम से कम ..अपने लिए तो जीना सीखें ! 

 कुछ सत्य घटनाये प्रस्तुत है -
भाव वश  इस तरह के निर्णय कायरपन है ! एक बार की वाकया याद आ गया ! उस समय दोपहर  के वक्त  थे ! मै उस समय मालगाड़ी का लोको पायलट था ! तारीख याद नहीं ! किन्तु कृष्नापुरम और कडपा के मध्य की घटना है ! मै केवल लोको लेकर कडपा को जा रहा था ! रास्ते में एक नहर पड़ती है ! नहर के उस पार एक गाँव है !  अचानक देखा की , गाँव के बाहर एक बुजुर्ग दम्पति  दोनों लाईन के ऊपर आकर सो गए !मंशा साफ है .. कहने की जरुरत नहीं ! चुकी केवल लोको लेकर जा रहा था , इसलिए तुरंत रोकने में परेशानी नहीं हुई ! लोको रुक गया ! हम देखते रह गए , पर वे दोनों नहीं उठे ! मैंने अपने सहायक को कहा की जाकर उन्हें उठाये और समझाये , जिससे वे दोनों इस भयंकर कृति से मुक्त हो जाएँ ! सहायक गया , समझाया ,पर वे उठने के नाम नहीं ले रहे थे ! मुझसे भी देखा न गया ! मैंने अपने लोको को सुरक्षित कर उनके पास गया ! हम दोनों उन्हें पकड़ कर दोनों लाईन से बाहर कर दिए ! उनके हिम्मत को परखने के लिए - मैंने कहा की आप लोग पहले यह सुनिश्चित करे की पहले कौन मरना चाह रह है और वह आकर लाईन पर सो जाये ..मै लोको चला दूंगा ! यह सुन उनके चेहरे उड़ गए और गाँव की तरफ चले  गए ! इस घटना के पीछे कौन से कारण होंगे ? सोंचने वाली बात है ! बच्चो से तकरार / बहु बेटियों से तकरार  / कर्ज - गुलाम /सामाजिक उलाहना ..वगैरह - वगैरह ! जिस माँ - बाप ने बचपन से अंगुली पकड़ कर ..जवानी की देहली पर पहुँचाया , उसे बुढ़ापे में इस तरह की तिरस्कार का कोप भजन क्यों बनना पड़ता है ? क्या बच्चे माँ - बाप के बोझ को नहीं ढो सकते !

दूसरी घटना - 
तारीख -२३ अगस्त २००८ की बात है ! सिकंदराबाद  से गुंतकल , गरीब रथ एक्सप्रेस ले कर आ रह था ! मेरे सहायक का नाम  श्री के.एन.एम्.राव था ! गार्ड श्री एस.मोहन दास ! शंकरापल्ली स्टेशन के लूप लाईन से पास हो रहे थे ! थोड़ी दूर बाद लेवल क्रोसिंग गेट है ! इस गेट पर  ट्राफिक काफी है !समय रात के करीब  आठ बजते होंगे ! मैंने ट्रेन की हेड लाईट में देखा की एक व्यक्ति अचानक दौड़ते हुए लाईन पर आकर सो गया है ! उसके सिर  लाईन पर और धड ट्रक के बाहर !मैंने तुरंत ट्रेन के आपात  ब्रेक लगायी ! ट्रेन रुक गयी और वह बच गया ! जैसा होना चाहिए - सहायक को जा कर देखने और उसे उठाने के लिए कहा ! चुकी गेट नजदीक था अतः गेट मैन भी सजग हो गया और दौड़ते हुए घटना स्थल पर आ गया ! मैंने घटने की पूरी जानकारी स्टेशन मैनेजर को भी वल्कि - तल्की के द्वारा दे दी ! गेट मैन  और मेरे सहायक के काफी समझाने के बाद वह व्यक्ति उठ कर जाने लगा ! मैंने गेट मैन को कहा की सावधानी से उसे ले जाये और समझाये !  मेरा सहायक ने जो सूचना मुझे दी वह इस प्रकार है ! उसके आत्महत्या के कारण --उसके ससुर जी थे ! वह अपने ससुराल में आया था ! वह पत्नी को लिवा जाना चाहता था ! पर हठी ससुर के आगे उसकी न चली ! 

यह भी एक गजब ! अब तक सास के अत्याचार सुने थे , पर ससुर के नहीं ! ससुर के अत्याचार से पीड़ित , उसने यह निर्णय ले लिया था ! वैसे  पत्नी से प्यार करता था ! उसने अपने ससुर जी से कहा की अगर आप बिदाई नहीं करोगे , तो ट्रेन के निचे सर रख दूंगा ! ससुर ने कहा जा रख दें ! इसी का यह परिणाम ! यह घटना भी एक मिसाल - पत्निव्रता और ससुर जी का !

आये ज्योति  जलाये , पर किसी की  बत्ती न बुझायें ! जीवन अनमोल है ! इसकी संरक्षा और सुरक्षा पर ध्यान दें !लोको पायलट की  हैसियत से यह जरुर कहूँगा की जब भी मैंने किसी की जान बचायी है , तब एक अजीब सी  ख़ुशी महसूस हुई है ! जिसे शब्दों में पिरोना मेरे वश में नहीं ! सबका मालिक एक !

तिरुपति के तिरचानूर --पद्मावती मंदिर के समक्ष ली गयी हम दोनों की तश्वीर -दिनांक  २७-०१-२०१२ 

Sunday, December 18, 2011

दक्षिण भारत दर्शन --कन्याकुमारी भाग -२

गतांक से आगे -
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कहने की जरुरत तो नहीं है कि कन्याकुमारी की सारी चीजे हमारी आँखों को ही नहीं , बल्कि मन को भी आनंद देती है !  प्रकृति  ने इस बालू में अपनी पूर्ण निपुणता  दिखाई है ! हजारो लोग यहाँ आते है और प्रकृति से सुन्दर दृश्य का अवलोकन कर , अनुभूति लिए लौट जाते है ! वे सभी धन्य है , जिनको कन्याकुमारी के दर्शन करने के सौभाग्य मिले है !
यह दक्षिण भारत दर्शन का आखिरी अंक है ! इसमे ज्यादा विषय को पोस्ट न कर , मै अपने कुछ गुदगुदी भरे अनुभओं को बांटने का प्रयास करूँगा ! 

                 विवेकानंद राक से लेकर गोधुली के दर्शन - यहाँ प्रस्तुत है !
             विवेकानंद राक के अन्दर - विवेकानंद  का स्मारक भवन 
                             सूर्योदय से सूर्यास्त तक का नक्शा !
                            ध्यान कक्ष के बाहर लगे सूचना पट्ट 
 राक के अन्दर बना यह कुण्ड , जो वर्षा के पानी को एकत्र करने के काम आता है ! इस पानी को इस जगह पीने के लिए इस्तेमाल किया जाता है ! चूकी समुद्र का पानी पीने योग्य नहीं होता ! 
 इस सुन्दर पत्थर  के हाथी के साथ फोटो खिंचवाते - बालाजी ! हाथी को छूना सख्त मन है !इस भव्य मेमोरियल का उदघाटन तात्कालिक राष्ट्रपति श्री वि.वि.गिरी.जी ने किया था !
                      जल बोट से ली गयी विवेकानंद राक की तश्वीर !
                                 बालाजी की फोटोग्राफी और मै !
 सूर्यास्त के पहले , संगम पर उमड़ता जन सैलाब ! सूर्य की बिदाई के लिए आतुर !सबकी नजर पश्चिम की ओर !जैसे - जैसे पल नजदीक सभी के चेहरे उदास सी दिखने लगे थे ! चिडियों का कोलाहल बंद और पर्यटक भी अपने आश्रय की ओर उन्मुख !भावबिभोर ...  
बिन औरत भला कोई समारोह सफल होता है क्या ? जी यहाँ भी देंखे --मेरी  धर्म पत्नी जी को ..जहाँ रहेंगी , वहां चुप नहीं बैठती ! वश बोलना ही है ! अगल - बगल वाले लोगों  को प्रेरित कर ही लेती है ! बालू के ऊपर बैठे और सूर्यास्त के इंतजार में बैठी , स्पेनिस युवतियों से बात - चीत करने लगीं  ! मुझे दबी जुबान से हंसी आ गयी तब , जब  स्पैनिश युवतियों ने कहा की- हम हिंदी नहीं जानतीं ! फिर क्या था मैडम ने भी उसी तर्ज पर कह दीं  - आई डोंट नो स्पेनिस एंड इंग्लिश ! फिर क्या था - दोनों तरफ से हंसी फुट पड़ी  और आस - पास बैठे / खड़े लोग  भी हंस दिए ! यह भाषा भी गजब की चीज  है !
जीवन चलने का नाम है ! हार - जीत आनी ही है ! बिना हार की जीत और बिन दुःख की  सुख की मजा ही क्या ? दिवस के बाद का अँधेरा हमेशा कुछ कहता है ! सूर्य की आखरी किरण को बिदा देते पर्यटक ! जैसे समुद्र की लहरे भी शांत होती चली गयी !देखते ही देखते अँधेरे का आलम छ गया !
                      बालाजी के हाथ में बत्ती का बाळ ! बहुत खुश -- 
 संगम के किनारे  बने गाँधी स्मारक ! १२ फरवरी सन १९४८ को गाँधी जी के चिता भस्म को कन्याकुमारी के तीर्थ में अर्पण कर दिया गया !उस समय के तिरु- कोचीन सरकार  ने यहाँ एक स्म्मारक बनवाने का वादा किया !अतः आचार्य कृपलानी ने 20 जून १९५४ को इसकी नीव डाली ! सन १९५६ को यह बन कर तैयार हुआ !इस स्मारक का निर्माण उड़ीसा के शिल्प कला पर किया गया है ! याद रखने की बात यह है को दो अक्टूबर को सूर्य की किरणे छत की छिद्र  से हो कर , अन्दर रखी मूर्ति पर पड़ती है ! दिन में इसके ऊपर चढ़ कर समुद्र के क्रिया - कलापों का विहंगम दृश्य देखा जा सकता है !
कहते है ह़र चीज का अंत एक याद गार होता है , चाहे ख़ुशी भरा हो या दुखी ! मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ ! पर मै इस चीज को आप के साथ नहीं बांटना चाहता ! अच्छा तो हम चलते है , फिर कभी मिलेंगे ! 

अलबिदा कन्याकुमारी ! कन्यामयी !

Sunday, December 4, 2011

दक्षिण भारत दर्शन -कन्याकुमारी !

गतांक से आगे -
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 रात होने को थी , अतः समय जाया न कर , हम जल्दी कन्याकुमारी के लिए रवाना हो गए !त्रिवेंद्रम सिटी से बाहर निकलते ही रात्रि और ट्यूब लाईट की चमक सड़क को कुछ गमगीन और डरावनी बना रही थी ! सड़क बिलकुल सूना ही सुना ! रास्ते में कोई किसी के उप्पर आक्रमण कर दे - तो बचाने  वाले शायद ही कोई मिले ! मैंने अपनी उत्सुकता  के निवारण हेतु कार ड्राईवर से पूछ ही लिया ! उसने मेरे संदेह को बिलकुल सही ठहराते हुए , कहा की आप बिलकुल ठीक सोंच रहे है ! इधर नौ बजे रात के बाद - कार लेकर चलने में हमें भी डर  लगता है ! न जाने कहाँ लूटेरे छुपे बैठे हो या पेड़ो की डाली सड़क पर बिछा रखी हो ! 

 जैसे भी हो रात्रि  का भोजन स्वादिष्ट रहा और हम नौ बजे के करीब कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन  पहुँच गएँ ! कार वाले ने शुभ रात्रि कह और दुसरे दिन भी बुलाने का न्योता दे चला गया !  कन्याकुमारी का सूर्योदय बहुत ही प्रसिद्ध है ! अतः हमने भी सुबह जल्द उठने के लिए  साढ़े पाँच बजे का अलार्म लगा सो गए ! स्टेशन के छत के ऊपर जा कर सूर्योदय को भलिभात्ति देखा जा सकता है , यह हमने एक नोटिस देख कर समझ गए ! जो रिटायरिंग   रूम के एक किनारे  दरवाजे पर लगा हुआ था !
                            समुद्र के पीछे से सूर्य का उदय !
 अब आज का दिन ही शेष था ! सुबह जल्द तैयार हो ..त्रिवेणी संगम  ( यानि समुद्र तट , जहाँ बंगाल की खाड़ी, हिन्दमहासागर और अरब सागर - एक साथ मिलते है ! ) के लिए रवाना हो गए ! सुबह के करीब नौ बज रहे होंगे ! सामने तीन सागर , उसकी उच्ची लहरे  रंग बिरंगे बालुओ से रंगी तीर भूमि , आस - पास के चट्टानों से अटखेली करती समुद्री लहरे , लहरों के बीच बच्चे , बूढ़े , नर और नारी स्नान करते और खेलते नजर आ रहे थे ! जिसे देख मन को अजीब सी ख़ुशी महसूस होने लगती है !
                            कन्याकुमारी का त्रिवेणी संगम

                                बालाजी और फिल्मी स्टाईल !

                           चांदनी लहरे और नर - नारी के सुनहले सपने

 माँ की अंदरूनी भय - बालाजी को समुद्र और चट्टानों पर चढ़ने से रोकते हुए !
चलिए बहुत हो गया ! वो देखो - घोडा ! चलिए चढ़ते है !

 घोडा दौड़ा , घोड़े वाला दौड़ा और बालाजी ने एडी मरी ! बहुत मजा आ रहा है !
बहुत हो गया !  चले मंदिर की ओर ! देवी कन्याकुमारी के दर्शन कर लें !

सामने  गली में कन्याकुमारी  मंदिर दिखाई दे रहा है !

 कन्याकुमारी जाने के पूर्व बहुतो को  कहते -सुनते देखा था की कन्याकुमारी में केवल कुवांरी  कन्याये है  या भूतकाल में वहा कोई कुवांरी कन्या रही होगी ! इसी लिए इस जगह का नाम कन्याकुमारी पड़ा होगा ! लेकिन यहाँ जाने के बाद और कुछ किताबो में पढ़ने के बाद , जो कुछ मालूम हुआ , वह कुछ हद तक सही ही था ! कहते है हजारो वर्ष पूर्व यहाँ एक राजा राज करते थे !उस राजा के एक पुत्री और आठ पुत्र थे !बुढ़ापे के कारण राजा ने अपनी सारी सम्पति अपने पुत्र और पुत्रियों में बाँट दिया ! तब कन्या कुमारी का यह भू-भाग इस कन्या के हिस्से लगा और इस स्थान का नाम कन्याकुमारी पड़ा ! पुराणों  के मुताबिक देवी पराशक्ति यहाँ तपस्या करने आई थी ! मंदिर के कुछ शिला लेखो से यह मालूम होता है की पांडिय राजाओ के शासन  काल में देवी की प्रतिमा को समुद्र तट के इस मंदिर में रख दिया गया  ! और भी बहुत सी किद्वान्ति और कथाये है ! जो किसी कन्या के कुवारेपन की तरफ इंगित करते है और वह कुवारा पन ही  - इस जगह का नाम कन्याकुमारी के लिए एक कारण बना !
 मंदिर के अन्दरजाने के पूर्व  , पुरुषो को अपने तन के कपडे उतरने पड़ते है ! मंदिर के अन्दर सेल या कैमरे ले जाना मना  है ! मंदिर के खुले रहने पर आराम से देवी के दर्शन किये जा सकते है ! खैर दर्शन अच्छी तरह से हो गए !मंदिर का पूर्व द्वार बंद रहता है अतः उत्तर भाग से प्रवेश मिलता है ! मंदिर के उत्तर , दक्षिण और पच्छिम  में समुद्री सीप या जन्तुओ से बने , हाथ करघा के सामान  और  तरह -तरह के छोटे और बड़े दुकान , खाने - पीने के होटल है !चारो तरफ लाज बने हुए है ! कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन के आस - पास कुछ भी नहीं है ! जो कुछ भी है वह त्रिवेणी संगम और कन्याकुमारी / कन्यामायी मंदिर के पास ही है ! दुनिया और देश के कोने - कोने के लोग यहाँ देखने को मिल जाते है ! विशेष कर उड़िया और बंगाली ज्यादा !
         मंदिर के बाहर ..पर्यटकों के भाग्य बांचते चित्रगुप्त ( तोतेराम )
यहाँ से निकल कर बाहर आयें ! करीब बारह बजने वाले थे !सभी दोस्तों ने बताई थी की विवेकानंद रॉक को जाने के लिए - बारह से एक बजे का समय बेहद उपयुक्त होता है और वहां शाम पाँच बजे तक रहा जा सकता है !  वहां जाने का एक मात्र साधन स्टीमर है ! जो तमिलनाडू सरकार के द्वारा चलाये जाते है ! फिर क्या था मैंने भी अपनी पत्नी और बाला जी को एक उचित स्थान .(.टिकट खिड़की के पास ) पर बैठा लाईन में खड़ा होने के लिए आखिरी छोर को चल पड़ा ! ये क्या ? आखिरी छोर का अंत ही नहीं ! करीब दो किलो मीटर तक लाईन ! मै यह देख दंग रह गया ! विवेकानंद रॉक को जाना ही था ! करीब दो घंटे तीस मिनट के बाद - टिकट खिड़की के पास पहुंचा ! प्रति व्यक्ति  २०  रुपये टिकट ! गर्मी भी कम नहीं थी !

स्वामी विवेकानंद रॉक को जाने के लिए - बोट की टिकट के लिए लगी लम्बी लाईन !एक नमूना !

 अंतरीप कन्याकुमारी के पूर्व में करीब ढाई किलोमीटर दुरी पर समुद्र के बीच में है !यहाँ दो सुन्दर चट्टानें है !ये चट्टानें समुद्र तल से पचपन फूट ऊँची है !इस चट्टान पर पद मुद्रा है , जिसे लोग देवी के चरणों के निशान मानते है !सन १८९२ में ,स्वामी विवेकानंद हिमालय से अपनी यात्रा आरम्भ कर - रास्ते के अनेक पुन्य स्थलों के दर्शन करते हुए , कन्याकुमारी आये थे ! देवी के दर्शन कर - समुद्र में तैर इस चट्टान पर आये और यहाँ बैठ कर चिंतन मनन करने लगे !आत्म बल प्राप्त होने के बाद यहाँ से वे सीधे अमेरिका चले गए ! अपने जोर दर भाषणों से पश्चिमी लोगो को दंग कर दिए ! इस घटना के बाद जिस चट्टान पर बैठ कर आत्मज्ञान पा लिया था उसे विवेकानंद चट्टान कहने लगे !
                         टिकट खिड़की के द्वार !
                        टिकट लेकर फेरी घाट को जाते हुए पर्यटक !
                     खिड़की से समुद्री किनारे के दृश्य 
                   स्टीमर पर चढ़ने के पहले लाईफ गार्ड लेते हुए लोग !
 स्टीमर से ली गयी - एक दुसरे रॉक की तस्वीर , जिसमे एक सन्यासी को खड़े दिखाया गया है !
      लाईफ गार्ड के साथ बालाजी और उनकी मम्मी स्टीमर के अन्दर 
 क्रमशः 




Friday, October 28, 2011

असुबिधा के लिए खेद है !

आदरणीय पाठक गण-
 १) मैंने कुछ तकनीक दोष की वजह से अपने ब्लोग्स के पते को बदल दिया हूँ ! अतः बहुत से पाठक   मेरे नए  पोस्ट से अनभिग्य हो गए है ! मेरा पुराना URL  बदल गया है ! इस लिए मेरे कोई भी पोस्ट उन फोल्लोवेर्स के दैसबोर्ड पर प्रकाशित नहीं हो रहे है , जो मेरे ब्लोग्स के फोल्लोवेर्स दिनांक - ११-१०-२०११ के पहले के  है !  इतना ही नहीं वे मेरे किसी भी ब्लॉग को खोल नहीं पा रहे है ! इसकी शिकायत कुछ पाठको के तरफ से मिली है ! अतः इस के लिए क्षमाप्रार्थी हूँ !

२) मेरा नया URL / ब्लोग्स के लिंक निम्नलिखित है ! भविष्य में इस पते पर ही मेरे ब्लोग्स को खोला जा सकता है----

बालाजी के  लिए --www.gorakhnathbalaji.blogspot.com 
OMSAI  के लिए-- www.gorakhnathomsai.blogspot.com 
रामजी के लिए --- www.gorakhnathramji.blogspot.com 
 
३) आप को अपने - दैसबोअर्ड के ऊपर मेरे  ताजे पोस्ट के प्रकाशन को प्रदर्शित  ,  हेतु कुछ मूल सुधार करने होंगे यदि आप मेरे ब्लोग्स के पुराने फोल्लोवेर्स है ! इसके लिए आप को मेरा पुराना फोल्लोवेर निलंबित कर फिर से नया फोल्लोवेर्स बनने होंगे !

४) सारी फेर - बदल मैंने अपने ब्लोग्स के सुरक्षा हेतु किया है , जो गायब होने के मूड में था ! 

असुबिधा के लिए खेद है ! आशा करता हूँ , आप का सहयोग बना रहेगा !
विनीत -गोरख नाथ साव !
 

Wednesday, October 19, 2011

दक्षिण भारत - एक दर्शन-रामेश्वरम

एक  अबोध बालक - बालू पर खेलते हुए ! रामेश्वरम शहर के सड़क के किनारे !
अब मै दक्षिण भारत- एक दर्शन के दूसरी पड़ाव की ओर चलता हूँ ! मदुरै में तीन दिन  तक रहा ! पहले दिन मंदिर के दर्शन और स्थानीय साथियों से मिलने में ही गुजर गया ! दिन भर कोई न कोई आकर मुझसे मिलते रहा ! सबसे प्रमुख रहे श्री आर.एस.पांडियन जी , जो रिटायर मेल लोको पायलट तथा भुत पूर्व महा सचिव ( दक्षिण रेलवे / ऐल्र्सा ) रह चुके है ! ये मेरे  साथ रिटायरिंग रूम में करीब डेढ़ घंटे तक साथ रहे !  बहुत बातें  हुयी ! उन्होंने मेरे अगले यात्रा के बारे में पूछा ? मैंने कहा की कल रामेश्वरम के लिए निकल रहा हूँ ! उन्होंने सुझाव दिया की सुबह ६ बजे मदुरै से रामेश्वरम के लिए ट्रेन जाती है , उसमे चले जाय! मैंने सहमति में हामी भरी , किन्तु तमिल नाडू को करीब से देखना चाहता हूँ , अतः टूरिस्ट बस बुक कर लिया हूँ ....से - उन्हें अवगत करा दिया ! उन्होंने क्या और कैसे रामेश्वरम की यात्रा करनी चाहिए , कौन सी सावधानी बरते ,  वगैरह के बारे में मुझे समझा दिए ! अब आयें यात्रा पर चलें --
 दुसरे दिन टूरिस्ट बस साढ़े सात बजे --रामेश्वरम के लिए रवाना होने वाली थी ! इसमे करीब पच्चीस यात्री सवार हो सकते है ! सुबह पूरी तरह से तैयार होकर टूरिस्ट बुकिंग कार्यालय के पास आ गए ! जो पहले से निर्धारित था ! किराया -३००/- रुपये प्रति व्यक्ति लंच के साथ ( मदुरै -रामेश्वरम -मदुरै ), वापसी शाम को साढ़े सात बजे ही ! निर्धारित समय से बस आ गयी और हम तीन अपने रिजर्व सिट पर जा बैठे ! करीब एक घंटे तक बस ड्राईवर इस लोज से उस लोज तक जा -जा कर यात्रिओ को लिफ्ट देते रहा ! करीब नौ बजे टूरिस्ट बस अपने गंतव्य के लिए रवाना हो चली !
                  टूरिस्ट बस के अन्दर से बाहरी दृश्य
तमिलनाडू के रोड सुन्दर ही थे ! आस - पास की हरियाली , नारियल  के पेड़ , कटीली झाडिया , लाल मिटटी मन को मोह ही लेती थी ! कही कहीं गाँव हमारे उत्तर भारत से बिलकुल अलग ! छोटे - छोटे दुकान गाँव की कलपना साकार कर रही थी ! एक जगह बस ड्राईवर ने बस रोकी ! अपने सिट से उठ कर हम लोगो के बिच आया और टूटी - फूटी हिंदी में कहने लगा की आप सभी मुझे २० रुपये पर हेड दें ! यह चार्ज सामान की देख - रेख और जगह - जगह लगाने वाले टिकट के एवज में लिया जा रहा है , जो मै सामूहिक रूप में अदा करते रहूँगा !आप लोगो को कोई परेशानी नहीं होगी ! कुछ ने इसका बिरोध किया ! प्रायः सभी उत्तर भारतीय ही थे ! अंत में एक राय बन ही गयी , तब जब  उसने कहा की अगर आप लोग चाहे तो सभी जगह अपना खर्च अपने बियर करें !
रास्ते में टिफिन के लिए बस रुकी ! हमने टिफिन कर लिया था ! नारियल के पानी पर भीड़ गएँ ! बहुत सस्ता केवल 25/-रुपये  अन्दर!
                          ये है हमारे टूरिस्ट बस की संख्या !
रास्ते भर मै सेल से ही तश्वीर खींचता रहा ! साढ़े तीन घंटे के बाद -रामेश्वरम के करीब आ गए !रामेश्वरम एक छोटा द्वीप है ! बिलकुल शंख के सामान - जैसे विष्णु जी इसे अपने हाथो में धारण किये हुए हो ! यह भारत की जमीं से कुछ अलग होकर समुद्र के बिच है ! समुद्र के बिच बनी रेलवे की पटरिया पामान और मंडप स्टेशन  को जोड़ती है ! रेलवे की पामबन ब्रिज जरुरत पड़ने पर उप्पर भी उठाई जा सकती है , जिससे की जहाज इस ओर से उस ओर जा सके !अन्नायी इंदिरा गाँधी रोड -भारतीय भूमि को समुद्र में स्थित रामेश्वरम से जोड़ता है ! यहाँ की जमी समुद्री रेत और नारियल के पेड़ो से भरी पड़ी है ! यह भी इसे खुबसूरत   बना ही देता है ! यहाँ के लोगो का जीवन यापन टूरिस्ट और नारियल से ही सम्बंधित ज्यादा है !

                            बाहर से रामेश्वर मंदिर का दृश्य 
कहते है की काशी यात्रा तभी पूरी  होती है , जब रामेश्वरम में स्नान व् पूजा की जाय ! इससे मालूम होता है की काशी और रामेश्वरम की  महिमा दोनों  सामान है !अतः यह कहा जा सकता है की रामायण जितना पुराना है उतनी ही यह रामेश्वरम ! यहाँ का विराट मंदिर अपने ज़माने का अद्वितीय  और आज का एक अद्भुत उदहारण ही है !जिसे बनाना आज के धनाढ्यो के वश की बात नहीं है ! रामेश्वरम के मंदिर में देवाधिदेव प्रभु शिव की शिवलिंग है !जिसे राम ने स्वयं स्थापित कर पूजा की थी ! कहते है --
जब रावन का बध कर  राम लक्षमण सीता सहित लौट रहे थे तब गंधानाहन पर्वत के कुछ तपस्वी राम पर ब्राहमण बध का दोष लगा कर उनसे  घृणा  करने लगे  ! राम ने उस स्थान पर शिव लिंग बना कर पूजा करके पाप धोने का निश्चय किया ! किन्तु बालू के रेत से शिव लिंग बनाना मुश्किल काम था ! इसके लिए मुहूर्त निकला गया ! राम ने हनुमान को कैलाश जा कर शिव लिंग लाने  का आदेश दिया !लेकिन बहुत देर हो गयी ! सीताजी ने रेत से शिव लिंग बनायीं और राम ने मुहूर्त अनुसार पूजा की ! जब हनुमान जी शिव लिंग लेकर आये तो सब कुछ जान गुस्से से भर गए ! रामजी ने कहा ठीक है रेत की लिंग हटा कर शिव लिंग की स्थापना कर दें ! किन्तु हनुमान जी पूरी बल लगाकर भी रेत की लिंग न हटा सके ! राम ने कहा ठीक है आप की लिंग की पूजा पहले हो ! आज भी यह प्रथा है ! हनुमान जी की लिंग की पूजा ही पहले होती है !
मंदिर के भीतर और बाहर  कई तीर्थ है ! भीतर के तीर्थ जगह - जगह जा कर शरीर के ऊपर पानी डाल कर होती है !पंडो से बच कर रहने पड़ते है ! वैसे उत्तर भारत के पंडो की चापलूसी जैसी यह स्थान नहीं है !फिर भी सतर्क रहना जरुरी है ! रामेश्वरम के बारे में अधिक जानकारी - मंदिर के वेब साईट पर की जा सकती है ,ये है -  
www.rameswaramtemple.org
 समुद्र के ऊपर बनी रेल ब्रिज और रेलवे लाइन ! जो  सुनामी की वजह से निलंबित है !
 भारतीय भूमि और रामेश्वरम के बिच समुद्र पर बनी अन्ने इंदिरा गाँधी रोड से समुद्र को निहारते हम दोनी !                                                                     फोटो ग्राफी -बालाजी 
पामबन ब्रिज को पार करने के बाद - रामेश्वरम के भूमि में कुछ दूर जाने के बाद यह एक मकबरा है , जिसे बने करीब सवासौ वर्ष हो गए है ! यह एक मुश्लिम लडके की मकबरा है , जिसकी लम्बाई सोलह फुट थी ! इस मकबरे की लम्बाई भी सोलह फुट से ज्यादा है !
   लक्ष्मन तीर्थ के अन्दर सरोवर और चंचल मछलिया मन को मोह लेती है !
 सीता  कुंड में पानी का वनवास ही दिखा ! पार यह भी पवित्र स्थल है !
सीता कुंड के बाद तैरते हुए पत्थर देखने गए ! विडिओ ग्राफी या फोटो लेना मना था ! अतः कोई तश्वीर नहीं है ! यह भी देख हम काफी ताज्जुब कर गए ! पानी में बड़े - बड़े पत्थर रखे हुए थे , जो बिलकुल तैर रहे थे ! हमने उसे पानी में जोर से दबाये , किन्तु वे डुबे नहीं ! अद्भुत -  जीवन में पहली बार तैरते हुए पत्थर देखे थे ! इसे देखने के बाद हनुमान द्वारा समुद्र के ऊपर पत्थर रख पूल बनाने की बात की विश्वसनीयता बढ जाती है !
 समुद्री चीजो और हस्थाकला से निर्मित - दुकान जो वातानुकूलित है ,हमने यहाँ से  दो शंख ख़रीदे !
              स्वाति   सी शेल क्राफ्ट  दुकान के अन्दर का दृश्य 
  बहुत दर्शन हो गए !  भूख लगी है ! टूरिस्ट बस वाले ने होटल की तरफ ले चला ! उत्तर और दक्षिण की समागम ! मजा तो नहीं आया , पर अच्छा रहा ! काम चल सकता है !
 रामेश्वरम में ---सेतु स्नान करना , रामलिंगेश्वर के दर्शन करना - हर एक हिन्दू के जीवन में मुख्य और अनिवार्य मना जाता है ! जो ऐसा नहीं कर पता उसका जीवन निष्फल मना जाता है !भारत भर में सैकड़ो पवन मंदिर है ! पवित्र तीर्थ है !लेकिन एक ही जगह पर तीर्थ और दर्शन दोनों प्रमुख हो तो इस सेतु के आलावा और कोई जगह / क्षेत्र नहीं है ! हमने भी समुद्र में स्नान किये ! इसके लिए अलग से कपडे लेकर गएँ थे ! जिनके पास अलग से कपडे नहीं थे , वे समुद्र की शांत  लहरों  को ही देखते  रह गए !
बालाजी सेतु स्नान के लिए मेरे आने  के  इंतजार में , समुद्र के निश्छल  तरंग को निहारते हुए !
             बालाजी समुद्र  की तस्वीर  लेने  में तल्लीन !
और भी बहुत से तस्वीर है ! कुछ प्रमुख प्रस्तुत किया हूँ ! रामेश्वरम  की यात्रा में एक अनुभूति और आस्था जरुर दृढ हुयी - वह यह की देवाधिदेव  शिव की महिमा ने  इस शहर को सुनामी से बचाए रखा ! जब की तमिलनाडू के सभी तटीय शहर , सुनामी के प्रकोप से तबाह हो गए ! रामेश्वरम शिव की गुण गाते रहा ! इस शहर में जान - माल की हानी बहुत ही कम हुयी ! यह कोई एक अद्भुत शक्ति ही कर सकती  है ! यह बात मुझे यहाँ के स्थानीय लोगो से मालूम हुयी ! जय शिव और शिव शक्ति !
अगली यात्रा -त्रिवेंद्रम की !