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Tuesday, March 6, 2012

होली के रंग !

  जुबान पर होली का नाम आते ही , दिल में एक उमंग हिलोरे लेने लगती है ! रंगों की हमजोली यह होली भी अजब है ! रंग फेंकने वाले की प्यार और नजाकत दोनों इसमे इन्द्र धनुष जैसी दिखती है ! गोरी हो या काली , काली हो या गोरी , सभी के ऊपर रंग की बौछार अपनी उमंग की छाप छोड़ देती है ! सभी को इस पर्व में संयम बरतने पड़ते है , अन्यथा मारा - मारी की भी नौबत   आ जाती है ! जो भी हो होली तो उमंगो की गोली है ! प्यार और रंगों की समागम है ! हम सभी को धर्म - जाति से ऊपर उठा कर एक दुसरे से  भाई चारे बनाते हुए इसके रंग में घुल मिल जाने चाहिए ! होली में मजाक बड़े प्रिय लगते है ! इसी लिए तो बरबस लोग कह देते है की होली में बुड्ढा भी देवर बन जाते है !

मुझे बचपन की एक वाकया याद आ गया , जब मै शायद पांचवी कक्षा का  क्षात्र था ! होली का दिन ! सुबह उठते ही मैंने , पिताजी के सामने पीतल की पुचकारी लाने की ज़िद्द कर दी ! ज़िद्द के आगे पिता जी को झुकाना पड़ा ! वे धोती - कुरता पहन कर  बाजार चले गए ! दो घंटे बाद पुचकारी के साथ घर वापस आये ! किन्तु धोती - कुरता का रंग पूरी तरह से बदल गया था ! फिर भी मुख पर मुस्कान के सिवा कुछ भी नहीं था !

आज वह यादे मुझे कोसती है ! धिक्कारती है ..क्यों मैंने ऐसी ज़िद्द पकड़ी और पिताजी को परेशान किया ! पर पिता जी का प्यार मुझे अपने आगोश में भर लेता है ! होली के रंग बार - बार लग सकते है , पर पिताजी  की  प्यार बारम्बार नहीं मिलती !  

व्यस्तता की वजह से वस इतना ही ! आप सभी को होली की बहुत - बहुत शुभ कामनाये !! ( फिर मिलूँगा शिर्डी से वापस आने के बाद !)

Friday, February 24, 2012

घी बड़ा या अक्लमंद

" जी हुजुर ..हमने ही इनकी घी को छिनी थी !" घिघियाते हुए एक ने स्वीकार की तथा बाकि सभी  ने हामी में सिर हिलाई !  दरोगा ने अपने तेवर बदले ! वह कार्यवाही नहीं करना चाहते थे ! वे जानते थे , ये चारो गाँव के दबंग के बेटे है ! बुरे बापों की दबंगई , इन्हें नालायक बना रखी है ! दरोगा की अंतरात्मा  कार्यवाही करने से डर रही थी , फिर भी कर्तव्य का पालन जरुरी था ! न चाह कर भी कुछ तो करना ही था अन्यथा पद की गरिमा गिरेगी और इनकी हिम्मत बढ़ेगी ! उसने मिल -मिलाप का रास्ता सोंचा और कहा --" तुम लोगो का अपराध सिद्ध हो चूका है ! एक काम करो ?  तुम लोग ,इनके घी की कीमत चूका दो , मै तुम लोगो को छोड़ दूंगा !"
यह कह कर वह सेठ की तरफ मुखातिब हुआ और पूछा -" कहो सेठ घी कितने का था ?    "हुजुर ..बस दो सौ रुपये का ...बेचने के बाद ..करीब तीन सौ कमा लेता ! - सेठ ने मुस्कुराते हुए कहा !       " चलो  तुम लोग जल्दी  रुपये अदा करो अन्यथा रिपोर्ट दर्ज करनी पड़ेगी !" - दरोगा उन चारो को  संबोधित कर कहा ! फिर क्या था , उन चार नालायको ने दरोगा के पैर पकड़ लिए !  

"हुजुर हमें माफ करे ! हम इतने पैसे नहीं दे सकते  ! उन चार घी के डब्बो में घी नहीं पानी था !" वे गिड़गिड़ाने लगे !     " हुजुर ये झूठ बोल रहे है !'  -सेठ झल्लाते हुए बोला !   "  मुझे मालूम है "  -दरोगा ने हामी भरी ! दरोगा जनता था की सुकई सेठ अपने इलाके के नामी - गिरामी सेठ है  और वर्षो  से इनके बाप - दादे तेल और घी का व्यापार करते आ रहे है ! पानी कभी हो ही नहीं सकता !

उनकी अनुनय विनय   रुकने वाली नहीं थी ! वे अंत में सेठ के पैर पकड़ रोने लगे ! सेठ जी हमें माफ करें ऐसी गलती हम कभी नहीं करेंगे! आप ही हमें बचा सकते है ! दरोगा को समझ में नहीं आ रहा था ये क्या हो रहा है ! उनके आंसू और दयनीय दृश्य को देख सेठ का भी दिल पिघल  गया ! उसके दिल में भी एक इन्सान जिन्दा था ! उसने दरोगा को कहा -" हुजुर इन्हें माफ कर दे बशर्ते ये ऐसी घटिया हरकत फिर कभी नहीं करेंगे !"

फिर क्या था वे तुरंत कह बैठे - " जी हुजुर ... हम लोग  वादा करते है कभी ऐसी गलती  नहीं करेंगे !" दरोगा को कुछ समझ में नहीं आया ! पाई - पाई को मरने वाला कंजूस सेठ दो सौ रुपये को भूल ..इन्हें कैसे क्षमा करने के लिए  राजी हो गया !  " ठीक है , तुम लोगो को छोड़ देता हूँ  आईंदा कोई शिकायत आई तो जेल में बंद कर दूंगा !"  वे चारो दरोगा और सुकई सेठ को प्रणाम कर बाहर भाग गए !

" सेठ जी ..मुझे मामला कुछ समझ में नहीं आया ? आप इतना  नुकसान  कैसे सह लिए ! "- दरोगा ने सेठ से पूछा ! सेठ ने कहना शुरू किया -

" जी हुजुर ..बात परसों की है ! जब मै चार घी के डब्बो को घोड़े पर लाद कर व्यापार के लिए  जा रहा था ! ये चारो रास्ते में मिल गए और  खाने-पीने  के लिए पैसे मांगने लगे ! मैंने साफ इंकार कर दिया तो इन्होने  मुझे धमकी देते हुए कहा की  ये मुझे  कल से इस रास्ते व्यापार के लिए नहीं जाने देंगे ! अगर भूले भटके चला भी गया  तो सारे के सारे घी छीन लेंगे ! मैंने भी इनकी शर्त मान ली और आप को इसके बारे में बता दिया था !" 
 सेठ कुछ समय के लिए रुका और गंभीर साँस लेते हुए फिर कहना शुरू किया -"  मै  इन चारो को सबक सिखाना  चाहता था ! मैंने दुसरे दिन चार घी के डब्बे घोड़े पर लादे ....किन्तु उन डब्बो में घी न रख... पानी भर दिए थे !" दरोगा सेठ के अकलमंदी पर आश्चर्य चकित हो गया !

( करीब ६० वर्ष पहले की घटना  जब दो या तीन सौ की कीमत काफी थी !वह भी मेरे पडोसी सेठ की ! सत्य घटना पर आधारित )

Sunday, December 4, 2011

दक्षिण भारत दर्शन -कन्याकुमारी !

गतांक से आगे -
पिछले पोस्ट को पढ़ने के लिए इसे क्लिक करे - Balaji 
 रात होने को थी , अतः समय जाया न कर , हम जल्दी कन्याकुमारी के लिए रवाना हो गए !त्रिवेंद्रम सिटी से बाहर निकलते ही रात्रि और ट्यूब लाईट की चमक सड़क को कुछ गमगीन और डरावनी बना रही थी ! सड़क बिलकुल सूना ही सुना ! रास्ते में कोई किसी के उप्पर आक्रमण कर दे - तो बचाने  वाले शायद ही कोई मिले ! मैंने अपनी उत्सुकता  के निवारण हेतु कार ड्राईवर से पूछ ही लिया ! उसने मेरे संदेह को बिलकुल सही ठहराते हुए , कहा की आप बिलकुल ठीक सोंच रहे है ! इधर नौ बजे रात के बाद - कार लेकर चलने में हमें भी डर  लगता है ! न जाने कहाँ लूटेरे छुपे बैठे हो या पेड़ो की डाली सड़क पर बिछा रखी हो ! 

 जैसे भी हो रात्रि  का भोजन स्वादिष्ट रहा और हम नौ बजे के करीब कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन  पहुँच गएँ ! कार वाले ने शुभ रात्रि कह और दुसरे दिन भी बुलाने का न्योता दे चला गया !  कन्याकुमारी का सूर्योदय बहुत ही प्रसिद्ध है ! अतः हमने भी सुबह जल्द उठने के लिए  साढ़े पाँच बजे का अलार्म लगा सो गए ! स्टेशन के छत के ऊपर जा कर सूर्योदय को भलिभात्ति देखा जा सकता है , यह हमने एक नोटिस देख कर समझ गए ! जो रिटायरिंग   रूम के एक किनारे  दरवाजे पर लगा हुआ था !
                            समुद्र के पीछे से सूर्य का उदय !
 अब आज का दिन ही शेष था ! सुबह जल्द तैयार हो ..त्रिवेणी संगम  ( यानि समुद्र तट , जहाँ बंगाल की खाड़ी, हिन्दमहासागर और अरब सागर - एक साथ मिलते है ! ) के लिए रवाना हो गए ! सुबह के करीब नौ बज रहे होंगे ! सामने तीन सागर , उसकी उच्ची लहरे  रंग बिरंगे बालुओ से रंगी तीर भूमि , आस - पास के चट्टानों से अटखेली करती समुद्री लहरे , लहरों के बीच बच्चे , बूढ़े , नर और नारी स्नान करते और खेलते नजर आ रहे थे ! जिसे देख मन को अजीब सी ख़ुशी महसूस होने लगती है !
                            कन्याकुमारी का त्रिवेणी संगम

                                बालाजी और फिल्मी स्टाईल !

                           चांदनी लहरे और नर - नारी के सुनहले सपने

 माँ की अंदरूनी भय - बालाजी को समुद्र और चट्टानों पर चढ़ने से रोकते हुए !
चलिए बहुत हो गया ! वो देखो - घोडा ! चलिए चढ़ते है !

 घोडा दौड़ा , घोड़े वाला दौड़ा और बालाजी ने एडी मरी ! बहुत मजा आ रहा है !
बहुत हो गया !  चले मंदिर की ओर ! देवी कन्याकुमारी के दर्शन कर लें !

सामने  गली में कन्याकुमारी  मंदिर दिखाई दे रहा है !

 कन्याकुमारी जाने के पूर्व बहुतो को  कहते -सुनते देखा था की कन्याकुमारी में केवल कुवांरी  कन्याये है  या भूतकाल में वहा कोई कुवांरी कन्या रही होगी ! इसी लिए इस जगह का नाम कन्याकुमारी पड़ा होगा ! लेकिन यहाँ जाने के बाद और कुछ किताबो में पढ़ने के बाद , जो कुछ मालूम हुआ , वह कुछ हद तक सही ही था ! कहते है हजारो वर्ष पूर्व यहाँ एक राजा राज करते थे !उस राजा के एक पुत्री और आठ पुत्र थे !बुढ़ापे के कारण राजा ने अपनी सारी सम्पति अपने पुत्र और पुत्रियों में बाँट दिया ! तब कन्या कुमारी का यह भू-भाग इस कन्या के हिस्से लगा और इस स्थान का नाम कन्याकुमारी पड़ा ! पुराणों  के मुताबिक देवी पराशक्ति यहाँ तपस्या करने आई थी ! मंदिर के कुछ शिला लेखो से यह मालूम होता है की पांडिय राजाओ के शासन  काल में देवी की प्रतिमा को समुद्र तट के इस मंदिर में रख दिया गया  ! और भी बहुत सी किद्वान्ति और कथाये है ! जो किसी कन्या के कुवारेपन की तरफ इंगित करते है और वह कुवारा पन ही  - इस जगह का नाम कन्याकुमारी के लिए एक कारण बना !
 मंदिर के अन्दरजाने के पूर्व  , पुरुषो को अपने तन के कपडे उतरने पड़ते है ! मंदिर के अन्दर सेल या कैमरे ले जाना मना  है ! मंदिर के खुले रहने पर आराम से देवी के दर्शन किये जा सकते है ! खैर दर्शन अच्छी तरह से हो गए !मंदिर का पूर्व द्वार बंद रहता है अतः उत्तर भाग से प्रवेश मिलता है ! मंदिर के उत्तर , दक्षिण और पच्छिम  में समुद्री सीप या जन्तुओ से बने , हाथ करघा के सामान  और  तरह -तरह के छोटे और बड़े दुकान , खाने - पीने के होटल है !चारो तरफ लाज बने हुए है ! कन्याकुमारी रेलवे स्टेशन के आस - पास कुछ भी नहीं है ! जो कुछ भी है वह त्रिवेणी संगम और कन्याकुमारी / कन्यामायी मंदिर के पास ही है ! दुनिया और देश के कोने - कोने के लोग यहाँ देखने को मिल जाते है ! विशेष कर उड़िया और बंगाली ज्यादा !
         मंदिर के बाहर ..पर्यटकों के भाग्य बांचते चित्रगुप्त ( तोतेराम )
यहाँ से निकल कर बाहर आयें ! करीब बारह बजने वाले थे !सभी दोस्तों ने बताई थी की विवेकानंद रॉक को जाने के लिए - बारह से एक बजे का समय बेहद उपयुक्त होता है और वहां शाम पाँच बजे तक रहा जा सकता है !  वहां जाने का एक मात्र साधन स्टीमर है ! जो तमिलनाडू सरकार के द्वारा चलाये जाते है ! फिर क्या था मैंने भी अपनी पत्नी और बाला जी को एक उचित स्थान .(.टिकट खिड़की के पास ) पर बैठा लाईन में खड़ा होने के लिए आखिरी छोर को चल पड़ा ! ये क्या ? आखिरी छोर का अंत ही नहीं ! करीब दो किलो मीटर तक लाईन ! मै यह देख दंग रह गया ! विवेकानंद रॉक को जाना ही था ! करीब दो घंटे तीस मिनट के बाद - टिकट खिड़की के पास पहुंचा ! प्रति व्यक्ति  २०  रुपये टिकट ! गर्मी भी कम नहीं थी !

स्वामी विवेकानंद रॉक को जाने के लिए - बोट की टिकट के लिए लगी लम्बी लाईन !एक नमूना !

 अंतरीप कन्याकुमारी के पूर्व में करीब ढाई किलोमीटर दुरी पर समुद्र के बीच में है !यहाँ दो सुन्दर चट्टानें है !ये चट्टानें समुद्र तल से पचपन फूट ऊँची है !इस चट्टान पर पद मुद्रा है , जिसे लोग देवी के चरणों के निशान मानते है !सन १८९२ में ,स्वामी विवेकानंद हिमालय से अपनी यात्रा आरम्भ कर - रास्ते के अनेक पुन्य स्थलों के दर्शन करते हुए , कन्याकुमारी आये थे ! देवी के दर्शन कर - समुद्र में तैर इस चट्टान पर आये और यहाँ बैठ कर चिंतन मनन करने लगे !आत्म बल प्राप्त होने के बाद यहाँ से वे सीधे अमेरिका चले गए ! अपने जोर दर भाषणों से पश्चिमी लोगो को दंग कर दिए ! इस घटना के बाद जिस चट्टान पर बैठ कर आत्मज्ञान पा लिया था उसे विवेकानंद चट्टान कहने लगे !
                         टिकट खिड़की के द्वार !
                        टिकट लेकर फेरी घाट को जाते हुए पर्यटक !
                     खिड़की से समुद्री किनारे के दृश्य 
                   स्टीमर पर चढ़ने के पहले लाईफ गार्ड लेते हुए लोग !
 स्टीमर से ली गयी - एक दुसरे रॉक की तस्वीर , जिसमे एक सन्यासी को खड़े दिखाया गया है !
      लाईफ गार्ड के साथ बालाजी और उनकी मम्मी स्टीमर के अन्दर 
 क्रमशः 




Wednesday, October 19, 2011

दक्षिण भारत - एक दर्शन-रामेश्वरम

एक  अबोध बालक - बालू पर खेलते हुए ! रामेश्वरम शहर के सड़क के किनारे !
अब मै दक्षिण भारत- एक दर्शन के दूसरी पड़ाव की ओर चलता हूँ ! मदुरै में तीन दिन  तक रहा ! पहले दिन मंदिर के दर्शन और स्थानीय साथियों से मिलने में ही गुजर गया ! दिन भर कोई न कोई आकर मुझसे मिलते रहा ! सबसे प्रमुख रहे श्री आर.एस.पांडियन जी , जो रिटायर मेल लोको पायलट तथा भुत पूर्व महा सचिव ( दक्षिण रेलवे / ऐल्र्सा ) रह चुके है ! ये मेरे  साथ रिटायरिंग रूम में करीब डेढ़ घंटे तक साथ रहे !  बहुत बातें  हुयी ! उन्होंने मेरे अगले यात्रा के बारे में पूछा ? मैंने कहा की कल रामेश्वरम के लिए निकल रहा हूँ ! उन्होंने सुझाव दिया की सुबह ६ बजे मदुरै से रामेश्वरम के लिए ट्रेन जाती है , उसमे चले जाय! मैंने सहमति में हामी भरी , किन्तु तमिल नाडू को करीब से देखना चाहता हूँ , अतः टूरिस्ट बस बुक कर लिया हूँ ....से - उन्हें अवगत करा दिया ! उन्होंने क्या और कैसे रामेश्वरम की यात्रा करनी चाहिए , कौन सी सावधानी बरते ,  वगैरह के बारे में मुझे समझा दिए ! अब आयें यात्रा पर चलें --
 दुसरे दिन टूरिस्ट बस साढ़े सात बजे --रामेश्वरम के लिए रवाना होने वाली थी ! इसमे करीब पच्चीस यात्री सवार हो सकते है ! सुबह पूरी तरह से तैयार होकर टूरिस्ट बुकिंग कार्यालय के पास आ गए ! जो पहले से निर्धारित था ! किराया -३००/- रुपये प्रति व्यक्ति लंच के साथ ( मदुरै -रामेश्वरम -मदुरै ), वापसी शाम को साढ़े सात बजे ही ! निर्धारित समय से बस आ गयी और हम तीन अपने रिजर्व सिट पर जा बैठे ! करीब एक घंटे तक बस ड्राईवर इस लोज से उस लोज तक जा -जा कर यात्रिओ को लिफ्ट देते रहा ! करीब नौ बजे टूरिस्ट बस अपने गंतव्य के लिए रवाना हो चली !
                  टूरिस्ट बस के अन्दर से बाहरी दृश्य
तमिलनाडू के रोड सुन्दर ही थे ! आस - पास की हरियाली , नारियल  के पेड़ , कटीली झाडिया , लाल मिटटी मन को मोह ही लेती थी ! कही कहीं गाँव हमारे उत्तर भारत से बिलकुल अलग ! छोटे - छोटे दुकान गाँव की कलपना साकार कर रही थी ! एक जगह बस ड्राईवर ने बस रोकी ! अपने सिट से उठ कर हम लोगो के बिच आया और टूटी - फूटी हिंदी में कहने लगा की आप सभी मुझे २० रुपये पर हेड दें ! यह चार्ज सामान की देख - रेख और जगह - जगह लगाने वाले टिकट के एवज में लिया जा रहा है , जो मै सामूहिक रूप में अदा करते रहूँगा !आप लोगो को कोई परेशानी नहीं होगी ! कुछ ने इसका बिरोध किया ! प्रायः सभी उत्तर भारतीय ही थे ! अंत में एक राय बन ही गयी , तब जब  उसने कहा की अगर आप लोग चाहे तो सभी जगह अपना खर्च अपने बियर करें !
रास्ते में टिफिन के लिए बस रुकी ! हमने टिफिन कर लिया था ! नारियल के पानी पर भीड़ गएँ ! बहुत सस्ता केवल 25/-रुपये  अन्दर!
                          ये है हमारे टूरिस्ट बस की संख्या !
रास्ते भर मै सेल से ही तश्वीर खींचता रहा ! साढ़े तीन घंटे के बाद -रामेश्वरम के करीब आ गए !रामेश्वरम एक छोटा द्वीप है ! बिलकुल शंख के सामान - जैसे विष्णु जी इसे अपने हाथो में धारण किये हुए हो ! यह भारत की जमीं से कुछ अलग होकर समुद्र के बिच है ! समुद्र के बिच बनी रेलवे की पटरिया पामान और मंडप स्टेशन  को जोड़ती है ! रेलवे की पामबन ब्रिज जरुरत पड़ने पर उप्पर भी उठाई जा सकती है , जिससे की जहाज इस ओर से उस ओर जा सके !अन्नायी इंदिरा गाँधी रोड -भारतीय भूमि को समुद्र में स्थित रामेश्वरम से जोड़ता है ! यहाँ की जमी समुद्री रेत और नारियल के पेड़ो से भरी पड़ी है ! यह भी इसे खुबसूरत   बना ही देता है ! यहाँ के लोगो का जीवन यापन टूरिस्ट और नारियल से ही सम्बंधित ज्यादा है !

                            बाहर से रामेश्वर मंदिर का दृश्य 
कहते है की काशी यात्रा तभी पूरी  होती है , जब रामेश्वरम में स्नान व् पूजा की जाय ! इससे मालूम होता है की काशी और रामेश्वरम की  महिमा दोनों  सामान है !अतः यह कहा जा सकता है की रामायण जितना पुराना है उतनी ही यह रामेश्वरम ! यहाँ का विराट मंदिर अपने ज़माने का अद्वितीय  और आज का एक अद्भुत उदहारण ही है !जिसे बनाना आज के धनाढ्यो के वश की बात नहीं है ! रामेश्वरम के मंदिर में देवाधिदेव प्रभु शिव की शिवलिंग है !जिसे राम ने स्वयं स्थापित कर पूजा की थी ! कहते है --
जब रावन का बध कर  राम लक्षमण सीता सहित लौट रहे थे तब गंधानाहन पर्वत के कुछ तपस्वी राम पर ब्राहमण बध का दोष लगा कर उनसे  घृणा  करने लगे  ! राम ने उस स्थान पर शिव लिंग बना कर पूजा करके पाप धोने का निश्चय किया ! किन्तु बालू के रेत से शिव लिंग बनाना मुश्किल काम था ! इसके लिए मुहूर्त निकला गया ! राम ने हनुमान को कैलाश जा कर शिव लिंग लाने  का आदेश दिया !लेकिन बहुत देर हो गयी ! सीताजी ने रेत से शिव लिंग बनायीं और राम ने मुहूर्त अनुसार पूजा की ! जब हनुमान जी शिव लिंग लेकर आये तो सब कुछ जान गुस्से से भर गए ! रामजी ने कहा ठीक है रेत की लिंग हटा कर शिव लिंग की स्थापना कर दें ! किन्तु हनुमान जी पूरी बल लगाकर भी रेत की लिंग न हटा सके ! राम ने कहा ठीक है आप की लिंग की पूजा पहले हो ! आज भी यह प्रथा है ! हनुमान जी की लिंग की पूजा ही पहले होती है !
मंदिर के भीतर और बाहर  कई तीर्थ है ! भीतर के तीर्थ जगह - जगह जा कर शरीर के ऊपर पानी डाल कर होती है !पंडो से बच कर रहने पड़ते है ! वैसे उत्तर भारत के पंडो की चापलूसी जैसी यह स्थान नहीं है !फिर भी सतर्क रहना जरुरी है ! रामेश्वरम के बारे में अधिक जानकारी - मंदिर के वेब साईट पर की जा सकती है ,ये है -  
www.rameswaramtemple.org
 समुद्र के ऊपर बनी रेल ब्रिज और रेलवे लाइन ! जो  सुनामी की वजह से निलंबित है !
 भारतीय भूमि और रामेश्वरम के बिच समुद्र पर बनी अन्ने इंदिरा गाँधी रोड से समुद्र को निहारते हम दोनी !                                                                     फोटो ग्राफी -बालाजी 
पामबन ब्रिज को पार करने के बाद - रामेश्वरम के भूमि में कुछ दूर जाने के बाद यह एक मकबरा है , जिसे बने करीब सवासौ वर्ष हो गए है ! यह एक मुश्लिम लडके की मकबरा है , जिसकी लम्बाई सोलह फुट थी ! इस मकबरे की लम्बाई भी सोलह फुट से ज्यादा है !
   लक्ष्मन तीर्थ के अन्दर सरोवर और चंचल मछलिया मन को मोह लेती है !
 सीता  कुंड में पानी का वनवास ही दिखा ! पार यह भी पवित्र स्थल है !
सीता कुंड के बाद तैरते हुए पत्थर देखने गए ! विडिओ ग्राफी या फोटो लेना मना था ! अतः कोई तश्वीर नहीं है ! यह भी देख हम काफी ताज्जुब कर गए ! पानी में बड़े - बड़े पत्थर रखे हुए थे , जो बिलकुल तैर रहे थे ! हमने उसे पानी में जोर से दबाये , किन्तु वे डुबे नहीं ! अद्भुत -  जीवन में पहली बार तैरते हुए पत्थर देखे थे ! इसे देखने के बाद हनुमान द्वारा समुद्र के ऊपर पत्थर रख पूल बनाने की बात की विश्वसनीयता बढ जाती है !
 समुद्री चीजो और हस्थाकला से निर्मित - दुकान जो वातानुकूलित है ,हमने यहाँ से  दो शंख ख़रीदे !
              स्वाति   सी शेल क्राफ्ट  दुकान के अन्दर का दृश्य 
  बहुत दर्शन हो गए !  भूख लगी है ! टूरिस्ट बस वाले ने होटल की तरफ ले चला ! उत्तर और दक्षिण की समागम ! मजा तो नहीं आया , पर अच्छा रहा ! काम चल सकता है !
 रामेश्वरम में ---सेतु स्नान करना , रामलिंगेश्वर के दर्शन करना - हर एक हिन्दू के जीवन में मुख्य और अनिवार्य मना जाता है ! जो ऐसा नहीं कर पता उसका जीवन निष्फल मना जाता है !भारत भर में सैकड़ो पवन मंदिर है ! पवित्र तीर्थ है !लेकिन एक ही जगह पर तीर्थ और दर्शन दोनों प्रमुख हो तो इस सेतु के आलावा और कोई जगह / क्षेत्र नहीं है ! हमने भी समुद्र में स्नान किये ! इसके लिए अलग से कपडे लेकर गएँ थे ! जिनके पास अलग से कपडे नहीं थे , वे समुद्र की शांत  लहरों  को ही देखते  रह गए !
बालाजी सेतु स्नान के लिए मेरे आने  के  इंतजार में , समुद्र के निश्छल  तरंग को निहारते हुए !
             बालाजी समुद्र  की तस्वीर  लेने  में तल्लीन !
और भी बहुत से तस्वीर है ! कुछ प्रमुख प्रस्तुत किया हूँ ! रामेश्वरम  की यात्रा में एक अनुभूति और आस्था जरुर दृढ हुयी - वह यह की देवाधिदेव  शिव की महिमा ने  इस शहर को सुनामी से बचाए रखा ! जब की तमिलनाडू के सभी तटीय शहर , सुनामी के प्रकोप से तबाह हो गए ! रामेश्वरम शिव की गुण गाते रहा ! इस शहर में जान - माल की हानी बहुत ही कम हुयी ! यह कोई एक अद्भुत शक्ति ही कर सकती  है ! यह बात मुझे यहाँ के स्थानीय लोगो से मालूम हुयी ! जय शिव और शिव शक्ति !
अगली यात्रा -त्रिवेंद्रम की !


 

Thursday, September 15, 2011

त्रिभुज

          जन्म - जन्म का साथ है हमारा  -तुम्हारा ! सभी कही न कही कह या सोंच लेते है ! देव के मन में क्या समायी जो इस दुनिया में औरत और मर्द को जन्म दे दिए ! मैंने ममता के बारे में ज्यादा जानना चाही ! ममता कुछ समय तक हंसती रही और यकायक दिल से रो पड़ी ! वह आंसू बहुत ही पीड़ादायी थे !

वह औरत , जिसे मैंने बचपन से प्रौढ़ और माँ बनते देखा था ! आज वह किसी के सहारे की मोहताज नजर आ रही थी   !संक्षेप में इस कहानी को रख रहा हूँ ! वह भी जो सुना और जान पाया ! उसका नाम ममता है ! घर आते ही , पत्नी ने मुझे बताया की - ममता अपने ससुराल से आ गयी है ! जी हाँ -वह हमारे पड़ोस में रहने वाली लड़की है  ! चार वर्ष पहले उसकी शादी धूम - धाम से हुयी थी ! दो वर्ष बाद वह एक बेटे को जन्म दी ! बेटे का जन्म भी उसके माता - पिता के घर ही हुआ ! ससुराल वाले उसे देखने या लेने नहीं आयें ! लगातार दो वर्ष हो गए ! कुछ सामाजिक दबाव के कारण --उसके ससुराल वाले एक दिन आये और उसे बिदा करा ले गए ! कुछ दिनों बाद ममता ने अपने मायके फोन पर बताई की उसका पति दूसरा शादी कर लिया है , और उस महिला  शारदा को भी घर में ही रखे हुए  है ! यह सुन ममता के मैके वाले सन्न रह गए और तुरंत पांच पुलिस वालो के साथ , उसके ससुराल जा टपके ! कहा सुनी हुयी और ममता ने उस घर में रहने से इंकार कर दिया ! 

सुनील दोनों को पत्नी बना कर रखने के लिए तैयार था !पर  ममता के पिता को  यह परहेज नहीं था , एक म्यान में दो तलवार - भला कैसे रह सकती है और अंत में मामला यहाँ तक आ टपका की  - सुनील के घर वाले शादी के पुरे सामान और खर्च वापस देने पर राजी हो गए !  उसकी सास और ससुर उसे जाते हुए एक तक देखते रहे , ताकि बहु घर से बाहर न जाय  ! ममता दिल पर पत्थर रख - घर से बाहर निकल गयी  ! गाँव और बिरादरी वाले अचंभित देखते रह गए ! ममता अब अपने पिता के घर आ गयी  ! सुनील के परिवार वाले सभी खर्च और सामान वापस कर दिए है ! 


सुनील  दूसरी पत्नी -शारदा के साथ नयी जिंदगी जी रहा है ! ममता अपने दो वर्ष के बेटे के साथ जीवन के घाव को सहला रही है ! अब प्रश्न यह उठता है की आखिर यह सब कैसे और क्यों हुआ ? एक औरत - दुसरे औरत की दुश्मन कैसे हो गयी ? एक मर्द दूसरी शादी के लिए क्यों मजबूर हो गया ? आयें कुछ हवा के रुख को ही समझे , जो कुछ सुनने को मिला !


पहले सुनील को ले ! शादी के बाद से ही उसके व्यवहार ममता के प्रति खिन्न रहा ! ममता पर उसने कई घरेलू आरोप लगाते  रहे जैसे देवर से सम्बन्ध .. गवार ...वगैरह - वगैरह ! बात यहाँ तक पहुंची की दिन प्रतिदिन पति - पत्नी में प्यार के वजाय, एक दुसरे के प्रति घृणा और द्वेष ने जन्म लेना शुरू कर दिया ! ननद के व्यवहार भी रखने लगे ! बेचारी सास और ससुर का ही सहारा बचा था ! जो उसे बेहद चाहते थे ! ममता के मन में आग की ज्वाला धधकने लगी ! एक दिन वह घर छोड़ अकेले मइके चल दी ! उस समय उसे दो माह का गर्भ भी था ! इस अवस्था में देख और चुपके से यहाँ आना , उसके पिता को अच्छा न लगा ! उसके पिता आंसू पी कर रह गए ! 

ममता का घर से मइके जाना - सुनील को एक हाथ में दो लड्डू जैसा प्रतीत हुआ ! अब उसकी कहानी पुराणी मित्र - शारदा के साथ जम गयी ! वह शहर के कालेज में पढ़ती थी ! सुनील उसे मोटर सायकिल पर बैठा कर कालेज ले जाता ! दोनों मौका मिलते ही -सिनेमा को जाते ! कालेज से घर लाता और शारदा के घर वाले कुछ नहीं बोलते थे ! उन्हें इनके नाजायज सम्बन्ध की परख न थी ! क्योकि उन्हें मालूम था - सुनील शादी सुदा है ! आग जलती रही ! रोटी पकाते रहे !  परिणाम भी बाहर आ गया ! तब जाकर सभी के कानखड़े हुए ! आनन् फानन में शारदा के घर वाले - दोनों की शादी मंदिर में कर दिए ! यहाँ से सुनील दो फूल और एक माली बन गया ! उसके घर वालो को इस बात की कोई जानकारी नहीं थी ! शारदा अपने माता- पिता के घर ही थी ! इधर सुनील को शराब   की लत ज्यादा हो गयी ! यह देख सुनील के घर वाले भी परेशां !

इधर समय के अनुसार - ममता ने एक पुत्र को जन्म दिया ! इसकी खबर उसके ससुराल भी गयी ! किन्तु कोई भी इसे देखने या बच्चे को पुचकारने नहीं आया ! देखते- देखते दो वर्ष बीत गए ! ममता का बेटा एक वर्ष का हो गया ! ममता के ससुराल से कोई भी नहीं आया ! तब जाकर ममता के पिता को दुसरे के माध्यम से सूचना देनी पड़ी ! रिश्तेदारों के दबाव में आकर सुनील एक दिन अपने ससुराल आया और ममता को बिदा करा ले गया ! 

एक रात -  सुनील ने ममता को कहा की वह दूसरी शादी करेगा और उसे छोड़ देगा ! ममता बात को गंभीरता से न ली और मजाक समझ -कह दी की कर लीजिये ! वह भी रहेगी ! इसमे क्या हर्ज है ! फिर  क्या था ! दुसरे दिन ही -प्रतीक्षा रत पत्नी  शारदा को घर लेकर आ गया ! यह सब देख घर का पूरा माहौल माता - पिता , पत्नी , भाई - बहन और आस - पास के लोगो के बिच कुरुक्षेत्र के मैदान सा बन गया ! हालत के गंभीरता को देखते हुए , सुनील ने दोनों को पत्नी का दर्जा और एक ही घर में रखने के लिए तैयार हो गया ! ममता के आंसू थमने के नाम नहीं ले रहे थे ! बाद में - वही हुआ जो पहले ऊपर उल्लेख किया जा चूका है !

जी हाँ , यही है त्रिभुज सी जिंदगी ! प्रश्न है ----ममता के पूरी जिंदगी का क्या होगा ? क्या ममता दूसरी शादी करेगी ? कौन है जो एक बेटे की माँ से शादी करेगा ? ममता अगर शादी न की , तो जब बेटा बड़ा होगा और पिता के बारे में जानना चाहेगा , तो क्या बताएगी और कैसी प्रतिक्रिया होगी  ? सुनील शारदा के साथ जीवन निभा पायेगा ? हाँ तो कैसे, नहीं तो क्यों ? शारदा ने इस नारी युग में एक नारी के साथ जो अत्याचार की है - क्या ज़माना भूल पायेगा ? त्रिभुज से ग्रस्त बच्चो  का भविष्य कैसा होगा ? क्या यह सच नहीं की एक नारी ने दुसरे नारी की हत्या कर दी , उसकी अस्मिता लुट ली , उसके गौड़ अधिकार छीन लिए ? समाज क्या इन्हें माफ करेगा ?  बहुत से अनुत्तरित प्रश्न हमारे सामने खड़े है - क्या यही आधुनिकता , शिक्षा , संस्कार और अनुशासन है ?

( सत्य पर आधारित घटना - नाम बदल दिए गए है ! अभी  बहुत कुछ कहा और लिखा जा सकता है इस त्रिभुज पर ! थोड़ी -कुछ कमियों को आप पूरा करें ! )
ये भी कुछ कहता है ----एक सुन्दर गीत 
 sajanawa bairi ho gaye hamar.. 










Wednesday, August 24, 2011

प्यारा सर्प ,मेरी पत्नी और बालाजी

                         उस पहाड़ी के ऊपर तिरुमाला मंदिर स्थित है !रेनिगुनता से ली गयी तस्वीर !
अक्षराज जी को कोई संतान न थी ! एक दिन सुक जी ने उन्हें सुझाव दिया की महाराज - आप पुत्र -कमेष्टि यज्ञं  करे तथा खेत में हल चलाये ! अक्षराज जी ने ऐसा ही किया ! खेत में हल चलाते  वक्त ,एक संदूक मिला ! उन्होंने देखा की उस संदूक में एक लड़की है ! अक्षराज ने उस लड़की को पल-पोस  कर बड़ा किये ! लड़की का नाम पद्मावती   रखा  गया !


  अक्ष राज ने पद्मावती की विवाह के लिए योग्य वर की तलास शुरू की ! वृहस्पति और सुक महर्षि से राय -विमर्श किये ! श्रीनिवास को इसके लिए  सुयोग्य करार दिया गया ! विवाह पक्की हो गयी ! श्रीनिवास के पास शादी के  लिए धन का आभाव था ! ब्रह्मा और महेश ने कुबेर से उधार  लेने का प्रस्ताव रखा ! कुबेर उधार देने के लिए   राजी हो गए ! ब्रह्मा और महेश  ने अस्वाथ  बृक्ष के निचे पत्र  पर गवाह  के तौर पर हस्ताक्षर किये ! ब्रह्मा महेश और सभी देवो के उपस्थिति में श्रीनिवास और पद्मावती का विवाह संपन्न हुए ! इस तरह से यह भू - लोक , देव लोक में बदल गया ! शादी के बाद सुक  महर्षी  और लक्ष्मी देवी कोल्हापुर को चले  गएँ  !

        अब बकाया धन - कुबेर को वापस करने की बारी आई ! पद्मावती ने लक्ष्मी जी को बुलाने के लिए कहा ! अतः श्रीनिवास जी कोल्हापुर गए ! वहा लक्ष्मी जी न मिली ! श्रीनिवास जी ने कमल का फूल रख तपस्या और लक्ष्मी जी को ध्यान करनी शुरू की ! लक्ष्मी जी उसी कमल के फूल से  कार्तिक पंचमी को ( कार्तिक  पंचमी को लक्ष्मी जी की विशेष पूजा होती है ) बाहर निकली ! श्रीनिवास ,ब्रह्मा और महेश के सुझाव पर लक्ष्मी जी आनंदानिलय को प्रवेश की ! इस प्रकार लक्ष्मी जी धन और समृधि  की दात्री  बन गई ! इनके मदद से श्रीनिवास जी ने कुबेर के कर्ज को अदा करना शुरू किये ! लक्ष्मी जी जब जाने लगी तो - श्रीनिवास जी ने उनसे आग्रह किया की आप यही रहे ! आप की मदद से मै कलियुग तक कुबेर के कर्ज को वापस कर दूंगा ! 


 इसी आस्था के अनुरूप -आज भी भक्त -गण तिरुपति के बालाजी / श्रीनिवास मंदिर में दान देने से नहीं हिचकिचाते क्यों की श्रीनिवास जी उन्हें सूद के साथ वापस दे देंगे ! जो गरीब है वे पैसे न होने की परिस्थिति में अपने सीर के बाल  , मुंडन हो, दे  देते है ! सभी की यही आस रहती है की जितना ज्यादा हुंडी में डालेंगे - उतना ही ज्यादा बालाजी देंगे ! यह धारणा , आज तक चली आ रही है ! इसीलिए यह मंदिर भारत का एक अजूबा ही है ! जिन खोजा , तिन पाईय ! जैसी सोंच , वैसी मोक्ष !


मै १९९६ से १९९९ दिसम्बर तक पकाला  डिपो   में लोको पायलट ( पैसेंजर ) के रूप में   कार्य  किया था ! पकाला से काट  पाडी , धर्मावरम   और तिरुपति  तक  ट्रेन   लेकर जाना पड़ता था ! पकाला से तिरूपती महज ४२ किलो मीटर है ! अतः जब मर्जी तब बालाजी के दर्शन के लिए सोंचने नहीं पड़ते थे ! सुबह   नहा -धोकर निकलो और शाम तक वापस ! बहुत ही लोकप्रिय जगह था ! बालाजी सर्प के फन और  उसके कुंडली भरी सैया पर विराजमान होते है ! यह संयोग ही है -कि इस क्षेत्र में या चितूर जिले में ( इसी जिले में तिरुपति शहर है ) सर्प प्रायः बहुतायत में देखने को मिलते है ! मैंने अन्य जगहों में ऐसा नहीं देखा,  न ही अब तक पाया   है !


इस  पोस्ट को ज्यादा लम्बा नहीं करना चाहता ! आयें विषय  पर लौटें  ! मै धर्मावरम  से पकाला- ट्रेन संख्या - २४८ ले कर आया था ! अपने निवास  पर आ स्नान वगैरह कर , चाय - पानी के इंतजार में टीवी पर सोनी चैनल  देखने लगा था ! पत्नी जी चाय लेकर आई  और  चाय देते हुए कहने लगी -- " आज  मै मरने से बच गयी !" मेरे मुह से तुरंत निकला - " ऐसा क्या हो गया जी ! "
 इसके जबाब में  पत्नी जी ने क्या कहा ?  आप उनके शब्दों में ही सुने - 





" मै  सोनू  ( यानि बड़े बेटे राम जी का प्यारा नाम , जो उस समय चौथी कक्षा में पढ़ते  थे   )  को  स्कुल में खाना खिलने के बाद  (दोपहर को) यही पर चटाई के ऊपर लेट गयी थी ! कब नींद आ गयी , मालूम नहीं ! सोयी रही , करवट बदलती रही ! कभी - कभी केहुनी और हाथ से कुछ स्पर्स होता था - ठंढा सा महसूस हुआ ! सोयी रही ! कानो में कुछ हलकी सी हवा जैसी आवाज सुनाई दे रही थी , जैसे कोई फुफकार रहा हो ! ध्यान नहीं दी ! सोयी रही ! बार - बार ठंढी और कोमल चीज के स्पर्स से अनभिग्य ! अचानक नींद टूट गयी ! उठ बैठी ! जो देखी - उस दृश्य पर विश्वास नहीं हो रहा  ! तुरंत शरीर  में , काठ समा  गया ! कूद कर पलंग पर चढ़ गयी ! देखा - दो मीटर का लम्बा   सांप ठीक मेरे बगल में मुझसे सट कर सोया हुआ है ! किसी मनुष्य की तरह - सीधे ! उसकी पूंछ  मेरे पैर की तरफ और मुह मेरे सिर के करीब ! तुरंत पुजारी अंकल को खिड़की से मदद के लिए पुकारी  ! ( मेरा निवास रामांजयालू मंदिर से सटा हुआ था ! खिड़की के पीछे पुजारी , अपने परिवार के साथ रहते थे )


                                                      मंदिर के पुजारी और रामजी !
 पुजारी  और  उनके  सभी   लडके  दौड़े आये !  तब - तक वह सर्प रेंगते हुए - टीवी के ऊपर जाकर ,अपने फन को फैला हम सभी को देख रहा था ! सभी हतप्रभ थे ! किसी ने कहा - इसे मारना जरा मुश्किल है !  लड़को ने पूछा  - आका इने एम् चे लेदा कदा ? ( बहन -इसने कुछ किया है क्या ?) मैंने  सारी घटना को जिक्र कर कहा - इसने मुझे कुछ नहीं किया है ! सभी ने उसे बाहर जाने का आग्रह किया ! किसी की हिम्मत साथ नहीं दे रही थी ! पुजारी - जो उम्र में करीब ६०/६५ वर्ष के थे , ने एक बड़ा लट्ठ लेकर उसे मारने  चले ! मैंने उनके हाथ पकड लिए - - अंकल मत मारिये ? नहीं - नहीं  बहुत खतरनाक सांप है - उन्होंने कहा !  पुजारी अंकल नहीं माने ! सर्प के टीवी से नीचे उतरते ही  उन्होंने जोर के वार किये और दो मीटर का सर्प घायल हो गया ! तुरंत सभी ने मिल कर उसे मार डाला ! काफी हुजूम भी जुट गया था ! क्यों की दोपहर के करीब तीन बजे की बात थी ! पुजारी के लड़को ने कहा की इसे इसी तरह रख दिया जाय  ! अंकल आएंगे तो देखेगे ! किन्तु फिल्मी स्टाईल में सभी ने तुरंत जला देने की सिपारिश की ! तो उस सर्प को लकड़ी के चीते पर रख जला दिया गया ! चलिए उसके राख को दिखा  दूँ !"
    पत्नी के मुख से इतना सुन मै अवाक् रह गया ! मेरे रोंगटे खड़े हो गए ! बहुत ही संवेदन  शील और पूछ बैठा - तुम्हे सुंघा -ऊंघा तो  नहीं है ? चलो नया जन्म हो गया ! पत्नी को सर्प  मरण -दो -तीन दिनों तक सालता रहा ! उस प्यारा सर्प ने कुछ नुकसान  नहीं किया था !

१९९९ दिसंबर में  मुझे लोको पायलट ( मेल ) की पदोन्नति हुयी और पोस्टिंग गुंतकल डिपो में मिली ! मै पकाला  से गुंतकल सपरिवार आ गया ! यहाँ आने के बाद पता चला की पत्नी को गर्भ है ! सकुशल -मंगल से २७ अगस्त २००० , दिन -रविवार , समय -सुबह ६ से ७ बजे के बीच ,सिजेरियन आपरेशन के बाद , मेरे बालाजी का आगमन हुआ !  वजन -ढाई किलो के ऊपर ! पत्नी जी को अस्पताल  में एक सप्ताह से ज्यादा रहना पड़ा था ! एक दिन की बात है मेरी मम्मी , (जो देख - रेख के लिए  गाँव  से यहाँ आई हुयी थीं  ,) अस्पताल में बालाजी को गोद में लेकर हलके - हलके डोला रही थी --अचानक बोल बैठी - समझ में नहीं आ रहा है ये ( बालाजी ) क्यों सांप जैसा जीभ बार - बार बाहर  निकल रहा है ! ऐसा तो कोई बच्चे नहीं करते है ! मैंने   भी कभी ध्यान नहीं दिया था ! देखा- बात सही थी ! 

 जी हाँ , बिलकुल ठीक  ! बालाजी जन्म के बाद से दो - तीन माह तक अपने जीभ को सांप जैसा बाहर लूप-लूप कर निकालते रहते थे ! बाद में पत्नी ने माँ को पकाला वाली घटना बताई ! माँ ने कहा - " लगता है , वही जन्म लिया है क्या ? " अचानक सभी के सोंच में परिवर्तन ....कुछ बिचित्र सा लगा ! अंततः हमने   भी विचार   किया की इस  पुत्र का नाम - साँपों  की शैया पर आसीन ..तिरुपति बालाजी के नाम पर बालाजी ही रखा जाय     ! कितना संयोग है - बालाजी जिस अस्पताल में जन्म लिए, उस अस्पताल का नाम " पद्मावती नर्सिंग होम " है !


     कहानी यही ख़त्म नहीं होती ! सज्जनों हमने बालाजी में ऐसी बहुत सी क्रिया - कलाप देखी है जो माँ के कथनों को  उपयुक्त  करार देती है ! ( इस सन्दर्भ में  और बहुत कुछ , हमने देखा  था और अनुभव किया  है , यहाँ मै उन घटनाओ को नहीं रखना चाहता - इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूँ ! ) अब भविष्य में इस तरह के संतान , किस पथ पर अग्रसर होंगे - नहीं कह सकता !

                                          नाग देव को नमन
 ( अगली पोस्ट -- जादुई  छड़ी !)


Friday, August 5, 2011

...जाको राखे साईया मार सके न कोय ! ( शीर्षक आप का -श्री विजय माथुर जी )

                           ये है मोहित अग्रवाल की जुड़वा बेटियाँ !
आज कुछ न लिख कर , अपनी एक पसंदीदा पोस्ट , जो तारीख १०-११-२०१० को पोस्ट किया था , को फिर से एक बार आप के सामने हाजिर कर रहा हूँ !  उस समय मै इस ब्लॉग जगत में बिलकुल  नया  था ! साथ ही हिंदी पोस्ट करने की पद्धति से भी अनभिग्य  ! पाठक भी कम थे ! अतः ज्यादा लोगो तक नहीं पहुँच सका ! मेरी हिंदी भी शुद्ध नहीं थी ! दक्षिण भारतीय लफ्जो में लिखी गयी थी ! आज मेरी हिंदी कुछ - कुछ सुधर सी गयी लगती है ! इसका भी एक मात्र कारण - यह ब्लॉग जगत ही है ! आज उस पोस्ट को कुछ सुधार कर पेस्ट कर रहा हूँ ! उस समय मैंने इसे -"आप-बीती----०३. नवम्बर माह." के शीर्षक से पोस्ट किया था !
दुनिया में जो कुछ भी हमारे नजरो के सामने है ,उसमे  कुछ न कुछ है.यही कुछ एक छुपी हुई सच्चाई है अथवा सब   मिथ्या ! यानी मानो तो देव , नहीं तो पत्थर ! मैंने  बहुत से व्यक्तियों को तरह -तरह के तर्क देते और आलोचना करते देखा है ,यह आलोचना मौखिक और लिखित  दोनों रूप में मिल जायेगी ! बहुत से लोग इस दुनिया के मूल भूत इकाई पर  ,भरोसा ही नहीं करते! हमारी उपस्थिति ही किसी अनजान सच्चाई की ओर इंगित करती है !.और हम सब किसी के हाथ के गुलाम है .जो हमे पूरी तरह से बन्दर की भाक्ति नचाता है.! 


मै दुनिया के हर सृष्टी में  किसी के सजीव रूप को  प्रत्यक्ष देखता हूँ !. उसके इशारे बिना ,एक पत्ता भी नहीं हील  सकता ! . "जाको राखे  साईया ,मार सके न कोय." यह वाक्य  जब कही गयी होगी उस समय कुछ तो  जरुर हुआ होगा  या जिसने यह पहला उच्चारण किया होगा , उसने  कुछ न कुछ  अनुभव जरुर किया  होगा ! , इसी कड़ी को  सार गत आगे बढाते हुए  ,इस माह के आप-बीती के कड़ी में एक सच्ची घटना प्रस्तुत कर रहा हूँ.! 


बात उन दिनों की है ,जब मै सवारी गाड़ी के लोको चालक के रूप में पदोन्नति लेकर पाकाला डेपो  में पदस्थ था.पाकाला आंध्र प्रदेश के चित्तूर  जिले में पड़ता है.यहाँ से तिरुपति महज ४२ किलोमीटर है! यह घटना तारीख १५.०२.१९९९ की है! दिन सोमवार था.और मै २४८ सवारी ट्रेन को लेकर ,धर्मावरम  ( यहाँ  से सत्य साईं बाबा के आश्रम यानी प्रशांति निलयम ,जो अनंतपुर जिले में पड़ता है, को जाया जा सकता है ) से , अपने मुख्यालय  पाकाला की तरफ आ रहा था.! दोपहर की वेला और ट्रेन बिना किसी समस्या के ...समय से चल रही थी ! होनी को कौन  टाल सकता है! एक ह्रदय बिदारक  घटना घटी ! जिसे मै जीवन  में भूल नहीं पाता हूँ ! यह घटना मुझे हमेशा याद आती रहती है.! इसी लिए २०११ वर्ष में भी एक बार फिर आप के लिए प्रस्तुत कर रहा हूँ !


हुआ यह की जब मेरी ट्रेन मदन पल्ली स्टेशन के होम  सिगनल के करीब पहुँचने वाली थी,तभी एक नौजवान औरत करीब २२-२३ बरस की होगी ,अपने गोद  में  करीब एक बरस की बच्ची को लिए हुए थी ,अचानक पटरी के बीच  में आकर खड़ी हो गई.! .मेरी गाड़ी की गति करीब ५०-६० के बीच  थी ! मैंने जैसे ही उसे देखा आपातकालीन  ब्रेक  लगा दी ! गाड़ी तो रुकी पर उस महिला को समेट ले गई.! मै अनायास इस एक   पाप का भागी बन गया ! नया - नया और जीवन में पहली आत्महत्या देखी थी ! हक्का - बक्का सा हो गया ! समझ में नहीं आया की अब क्या करू !.खैर ट्रेन रुक गई.मैंने  अपने ट्रेन गार्ड को अचानक ट्रेन के रुकने की  सूचना दे दी और कहा की पीछे जाकर उस महिला के मृत शरीर  की मुआयना करें , देंखे  की क्या हम कुछ कर सकते है जैसे की फर्स्ट ऐड वगैरह यदि वह जीवीत हो ! मैंने अपने सहायक लोको पायलट श्री टी.एम्.रेड्डी  को जाकर देखने को कहा !.मेरे ट्रेन गार्ड श्री रामचंद्र जी थे !.कुछ समय के बाद मेरा सहायक चालक  मुझे जो खबर ,वाल्की -तालकी  के माध्यम से दी , वह चौकाने वाली थी! 

सूचना----
१) उस महिला की - सीर  में चोट की वजह से मौत हो चुकी थी.और पटरी  के किनारे उसकी मृत प्राय शारीर  पड़ी हुई थी ! .सीर  से खून  के फब्बारे लगातार रिस रहे  थे !
२)दूर कंकड़-पत्थर के ऊपर उसकी छोटी बच्ची  निश्चेत पड़ी हुई थी !


अब  समस्या थी उनके मृत अस्थि  को उठा कर ट्रेन में लोड करने की ! . मैंने ट्रेन गार्ड और अपने सहायक को कहा की दोनों के अस्थियो को ---उठा कर गार्ड ब्रेकभैन  में लोड कर लिया जाए ! उन्होंने ऐसा ही किया.! महिला के अस्थि को कुछ यात्रियों  की मदद से ब्रेक में लोड कर दिया गया ! जब मेरा सहायक उस  छोटी सी बच्ची को, जो पत्थर  पर मृतप्राय पड़ी थी ,को  उठाना चाहा , तो वह बच्ची तुरंत रो पड़ी और डरी-डरी सी कांपने  लगी.थी ! यह देख हमें आश्चर्य का ठीकाना न रहा क्यों की जिस बच्ची को हमने गेंद की तरह उप्पर उछलते देखा था , वह बिलकुल ज़िंदा थी ! यह विचित्र  दृश्य देख  ,सभी ट्रेन यात्री ,हक्का-बक्का सा हो  गए ! जिस चोट से उसकी माँ की मृत्यु हो गयी थी,उसी गंभीर चोट के बावजूद वह जिन्दा थी ! वाह ..क्या कुदरत की कमाल है.,इस दृश्य को जिन्हों ने देखा,वे जहा भी होंगे लोगो में चर्चा जरुर करते होंगे ! भाई वाह इस उप्पर वाले के खेल निराले !.हमने ट्रेन को चालू किया और मदन पल्ली रेलवे स्टेशन पर आ गये !उस बच्ची को थोड़ी सी चोट लगी  थी ,इस लिए रेलवे डॉक्टर को तुरंत बुलाया गया ! मदनपल्ली में रेलवे स्वास्थ्य केंद्र  है ! बाक़ी  जरुरी प्रक्रिया  करने के बाद ,मृत महिला और उसके जीवीत बेटी  को ड्यूटी पर तैनात स्टेशन मेनेजर को सौप दिया गया ,ताकि आस-पास के गाँव में ,सूचना फैलने के बाद,उचित परिवार को उनकी बॉडी सौपी  जा सके ! फिर हमने अपनी आगे की सफ़र जारी रखी !


मै शाम को ५ बजे पाकाला पहुंचा और सारी घटना - अपनी पत्नी को बताई ! मेरी पत्नी ने जो कहा वह वाकई नमन के योग्य है ! मेरी पत्नी ने कहा की - " उस बच्ची को घर लाना था हम पाल-पोस लेते थे ! " मै अपने पत्नी की इच्छा को सुन कर कुछ समय के लिए दंग रह गया और मन ही मन अपने पत्नी और उस दुनिया को बनाने वाले को नमन किया ! मेरे आँखों में आंसू आ गए ! क्यों की हमें कोई प्यारी सी  लड़की नहीं है ! मै सिर्फ इतना ही कह सका की ठीक है - अगले ट्रिप पर जाने के समय उस स्टेशन पर पता करूँगा ,अगर कोई  न  ले गया होगा तो उस बच्ची को अपने घर ले आऊंगा !


सोंचता हूँ आज मेरे पास वह सब कुछ है जो इस आधुनिक ज़माने में लोग इच्छा रखते है ! दो सुनहले सुपुत्र भी है एक राम जी तो दूजा बालाजी ,पर बेटी नहीं है ! शायद इसकी इच्छा  भगवान ने पूरी नहीं करनी चाही ! फिर भी सोंचते है , चलो दो बेटियाँ बहु बन कर तो आ ही जायेंगी !


दूसरी बार ,जब मै मदनपल्ली गया तो उस बच्ची के बारे में पता किया ! वह महिला पास के गाँव की रहने वाली थी ! उसके माता-पिता ,आकर उसके शव  और बच्ची को  ले गए थे! सोंचता हूँ,आज वह बच्ची करीब १३  बर्ष की हो  ही गयी है ! उससे मिलने और उसे देखने की इच्छा आज भी है ,लेकिन उसका पता मालूम नहीं  !.कई बार मदन पल्ली के स्टेशन मेनेजर से संपर्क बनाया पर उस समय ड्यूटी पर रहने वाले मास्टर के सिवा इस घटना  की जानकारी किसी और को नहीं है !


लोग इस तरह आत्महत्या क्यों करते है ? .क्या इस कार्य से वे संतुष्ट हो जाते है ? क्या घरेलु झगड़े का इस तरह निदान ठीक है ? मनुष्य को श्रद्धा  और सब्र  से काम लेना चाहिए ! सोंचता हूँ इस घटना के पीछे भी कोई घरेलु कारण ही  होंगे !.हमें जीवन को इतना कमजोर  नहीं समझना चाहिए !  जरुरत है अच्छे कर्मो  में लिप्त होने  की ! आखिर क्यों ? उस छोटी बच्ची का बाल न बांका हुआ और उसकी माँ को मृतु लोक मिला ! कुछ तो है !

Thursday, July 21, 2011

जीवन के अनुभव ( शीर्षक श्री दिगंबर नासवा )



इश्वर  ने  हमें  वह  सब  कुछ  दिया  है  , जो  सृष्टि  के किसी  प्राणी  को उचित ढंग से , नहीं मिली ! देखने  के लिए आँख , सुनने के लिए  कान  , खाने के लिए  मुंह  ..आदी  ! इसमे सबसे योग्य  हमारा  मष्तिक है , जो हमसे  सब कुछ करवाने  के लिए , मार्ग  दर्शन देता है ! उचित और अनुचित को इंगित भी करता है ,! बहुत सारे लोग अनुचित की  पहचान नहीं कर पाते और दुर्व्यवहार के आदि हो जाते है ! जब  तक  पहचान  होती  है , बहुत  देर  हो  चुकी   होती   है  ! धर्म और कर्म का बहुत ही  बड़ा सम्बन्ध है ! बिना धर्म के  शुद्ध कर्म नहीं ! बिन  कर्म , कोई धर्म नहीं ! बिना धर्म का किया हुआ कर्म जंगली फल की तरह है ! अतः धर्म से फलीभूत कर्म ही सुफल देता है ! 

मै  लोब्बी में साईन आफ करने के बाद , अपने गार्ड का इंतज़ार कर रहा था ! " सर आप को मालूम है ? "- उस क्लर्क ने मुझसे पूछा ?  क्या ? मै तुरंत प्रश्न कर वैठा   ! " सर  आज  उस अफसर ( नाम  बताया ) के वेटे का देहांत  हो गया  है  !" उसने जबाब दिया ! थोड़े समय के लिए मै सन्न रह गया ! समझ में नहीं आया , कैसे  दुःख  व्यक्त  करूँ ,और  कुछ   कहू ? कितनी बड़ी विडम्बना ! कुदरत ने कितने कहर ढाये थे , उस पर !क्षण  भर के लिए मै मौन ही रहना उचित समझा 
!
मेरे मष्तिक में उसके अतीत घूम गएँ ! एक ज़माना था , जब सब उससे डरते थे ! उसने किसी के साथ भी न्याय नहीं किया था ! बात - बात  पर  किसी को  भी  चार्ज सीट  दे देना , उसके बाएं हाथ का खेल था ! तीन हजार से ज्यादा कर्मचारी उसके अन्दर काम करते थे ! किसी ने भी उसे अच्छा नहीं कहा था ! सभी की बद्दुआ शायद उसे लग गयी थी ! यही वजह था की उसकी पत्नी ने भी अपने आखिरी वक्त में यहाँ तक कह दी थी की -  " मै तुम्हारे पापो की वजह से आज मर रही हूँ ! तुमने आज तक किसी का उपकार किये  है  क्या ?"

जी उसकी पत्नी कैंसर से पीड़ित थी , बहुत  दिनों  तक अपोलो अस्पताल में भरती  रही  और इस दुनिया को छोड़ चली गयी  ! उसके शव को  दूर  शहर  में  हाथ  देने  वाले कोई  नहीं  थे , फिर  भी .. उसके अधीनस्थ कर्मचारी ही , उस  शव को ..ताबूत में भर कर उसके गाँव भेजने में उसकी मदद को , आगे आये  थे !वह अपनी  करनी पर फफक - फफक कर रोया था ! उसके बाद उसमे बहुत कुछ सुधार नजर आये थे ! हर कर्मचारी को मदद करने के लिए तैयार रहता था ! अपने रिटायर मेंट तक , किसी को कोई असुबिधा महसूस होने  नहीं दिया था ! यह एक संयोग ही था , जो वह इतना बदल गया था ! काश इश्वर   उसे अब भी माफ कर दिए होते ! किन्तु नियति के खेल निराले ! न जाने उसके कोटे में पाप कितना था की आज  उसकी दुनिया से  उसका   एकलौता  वेटा  भी उसे  छोड़ कर चल बसा ! आज वह अकेला है ! जिंदगी  के गुनाहों को गिनने में व्यस्त ! सब कुछ कर्मो का फल है ! 

( सत्य  पर आधारित  घटना ! वह व्यक्ति ज़िंदा है ! नाम  छुपा दिए गए है ! ) 





Wednesday, June 15, 2011

.....अमृत आम रस ....कोई हमारी बातो को सून भी रहा है !

आज - कल आम की मौसम है ! जहा देखो , वही आम की बहार है ! तरह - तरह के आम देखनो को मिल रहे है ! शुरू में ..मैंने आम को चार सौ रुपये किलो तक देखा ! अजब के आम !आम को फलो का राजा कहा गया है ! वह भी वाजिब और सार्थक विशेषण ! कभी - कभी मन में संदेह उत्पन्न होते है ..आखिर आम को फलो का राजा क्यों कहा गया ? क्यों कहा जाता है ? सोंचता हूँ - निम्न लिखित  बिशेषता रही होगी -


१).आम का सब कुछ उपयोगी है ! जड़ से फल और मृत्यु भी !२). आम के पत्ते बिना पूजा शुभ नहीं !३).शुभ कार्यो में या यज्ञ  ही क्यों न हो,इसकी लकड़ी बहुत ही उपयोगी  समझी जाती है !४).वसंत की आगमन और इसके बौरो / मोजर को देख ..सभी के दिल खिल उठते है !५).छोटे टीकोधो का लगना , और मन का ललचाना किसी से नहीं रुकता !६).कच्चे आमो के आचार और खटाई तैयार ...विशेष रूप से मनभावन ! ७). तरह - तरह के मनभावन जूस और  ८).आम के आम , गुठलियों के दाम ...क्या कहना !

 कौन है जिसके मन में लार / पानी  न भर आये ! किसी को आम खाते देख , देखने वाले की नजर अपने को कंट्रोल नहीं कर पाती ! जीभ चटकारे मारने लगती है ! जन्म से मृत्यु तक ..आम उपयोगी सिद्ध ! भला फलो का राजा क्यों न हो ?  बिलकुल सत्य ...दुश्मन हो या दोस्त  ..सभी इसके ऊपर मेहरबान ! यह भी बिना किसी भेद - भाव के सबके आगोश में ...प्यार के नगमे गाने में व्यस्त ! तरह - तरह के आम ...जितने देश उतने भेष ! दूर से खुशबू बिखेरना और अपने सुनहले ..लाल- पीले रंग को दिखा सभी को ललचाना ...वाह क्या कहने ! बनो तो आम नहीं तो कुछ नहीं ! सबका प्यारा / दुलारा !कोई भी दुश्मन नहीं ...जहां देखो वही प्यार  ही प्यार !

आयें ..... अब एक सत्य घटना की जिक्र करते है  , जिसके रूप को समझ पाना ..आज तक मेरे लिए पहेली बनी हुई  है ! कहते है एक बार ..एक पिता अपने छोटे पुत्र के साथ बागीचे से जा रहा था ! वह एक आम के पेड़ के नजदीक से गुजरा ! आम तोड़ने की इच्छा हुई , किन्तु वह पेड़ उसका नहीं था ! अतः अपने पुत्र से कहा कि- तुम नीचे खड़े होकर सावधान रहो और मै पेड़ पर चढ़ कर आम तोड़ता हूँ ! अगर कोई इधर आये तो ताली बजा देना ! पुत्र ने हामी भर दी ! पिता पेड़ पर चढ़ गया ! वह कुछ आम तोड़ने ही वाला था कि पुत्र ने ताली बजा दी ! पिता तुरंत पेड़ से नीचे उतर आया ! देखा.. कोई नहीं दिखाई दिया ! पुत्र से पूछ - " तुमने  ताली क्यों बजाई ? कोई नजर नहीं आ रहा है ?" पुत्र न विनम्र भाव से कहा -" पिता जी इंसान  तो नहीं , पर भगवान सब कुछ देख रहे है !" पुत्र कि बात सुन कर पिता को असलियत  और पुत्र के ईमानदारी का आभास हुआ ! उसने पुत्र को  भावुक हो ,गले से लगा लिया और कहा वेटा ..तुम ठीक कह रहे हो ..हमारी हर कार्य को भगवान देख रहा है ! हमें छुप कर चोरी नहीं करनी चाहिए !

ये तो रही सुनी - सुनाई कहानी ! एक बार कि बात है ! आज से करीब चालीस / बयालिस वर्ष पहले की ! मै कोलकाता से गाँव गया हुआ था ! मई या जून का ही महीना ! उस समय गाँव  में प्रायः घरो में शौचालय नहीं हुआ करते थे ! महिला हो या पुरुष सभी को गाँव के बाहर जाने पड़ते थे ! सभी इसे ही स्वास्थ्य वर्धक मानते थे ! धीरे - धीरे सभ्यता और रहन - सहन बदलने लगे  और आज गाँव  तथा घरो में भी शौचालय बन गए है !

दोपहर का समय ..कड़ी धुप और दुपहरी की उमस ! मुझे शौच लगा ! अतः गमछा सर पर रख ..गाँव के बाहर तालाब और बागीचे की तरफ दौड़ा ! दोपहर का समय .. बिलकुल .सुनसान ! शौच होने के बाद ..एक आम के पेड़ के नीचे आकर बैठ गया ! उस समय मेरी उम्र सात या आठ वर्ष की रही होगी ! बगल में ही डेरा था ! आम के पेड़ को देखा ! काफी आम लटक रहे थे ! पत्थर भी नहीं मार सकता ! मारने जो नहीं आते थे  ! बच्चे का मन ..सोंचा .आंधी आये तो अच्छा होता  !आम अपने - आप गीर पड़ेंगे और मै उन्हें बटोर लूंगा ! फिर क्या था ! मेरा सोंचना और जोर की आंधी आई ! आम टूट - टूट कर गिरने लगे ! मैंने उन्हें अपने अंगोछे में बटोर लिए ! आंधी ज्यादा देर तक नहीं चली ! मै घर आया और देखा मेरे दादा जी घर पर आ गए थे ! उनसे मैंने सारी  बातें बतायी  ! मेरी बात सुन कर वे हंस पड़े और बोले -  " कहीं .. आंधी नहीं आई थी !  झूठ बोल रहे हो ! किसी ने तोड़ कर दिए होंगे " मैंने आंधी कि बात दुहराई , पर घर में किसी ने मेरी बात नहीं मानी !

जी हाँ ..उस समय छोटा था .अतः आंधी नहीं आई थी की बात समझ नहीं पाया ! लेकिन आज - जब सोंचता हूँ (उस उपरोक्त कहानी के माध्यम से  ), तो यही लगता है कि किसी ने मेरी बात सुन ली थी ! वह भगवान थे या शैतान ! यह आज तक नहीं समझ पाया ! तो क्या कोई हमारी बातो को तुरंत भी सुन लेता है ? यह संशय आज भी बनी  हुई है ! आखिर वह घटना कैसे घटी ?

( चित्र साभार -गूगल

Friday, June 10, 2011

एक बूंद

जैसा की आज - कल लोग ....भ्रष्टाचार के आन्दोलन और समाचारों से ...अघाए हुए है ! इस परिप्रेक्ष में मनुश्री तरुण सागर जी की कही हुयी ..निम्न सन्देश काफी कुछ कह देता है --

    " शैतान साधू हो जाए ..तो पवीत्रतम हो जाता है ! लेकिन यदि साधू  , शैतान हो जाए , तो शैतान से भी ज्यादा खतरनाक हो जाता है ! जो पहले ही चोर , बेईमान और भ्रष्ट था , उसे सत्ता की ताकत और कुर्सी की ताकत मिल जाए , तो फिर चोर नहीं रहता ....चोर से चाक़ू बन जाता है !आज ऐसा ही कुछ हुआ है ...अपराधिक पृष्टभूमि वाले भी लोक सभा और विधान सभा की सिधिया चढ़ गए है .! "

                 तिजारत ( व्यापार ) अगर साफ - सुथरी हो तो इंसान की आदतों में निखार आता है  और हर एक के प्रति उसमे नरमाई पैदा होती है ! 

   जी हाँ ..आज - कल हम इसी दौर से गुजर रहे है !

Monday, June 6, 2011

योगी बाबा राम देव जी

बाबा राम देव जी ने ..राम लीला मैदान में सत्याग्रह शुरू किया था ! दिनांक -०४ मई २०११ को !  कार्यकर्ताओं की भीड़ उमड़ने लगी थी ! आधी रात को (दिनांक -०५ मई २०११ को )दिल्ली पुलिस बल ने आक्रमण किया और सत्याग्रहियों को मैदान से बाहर निकाल फेंका ! कितने घायल हुए , कुछ गायब ( जैसा की समाचारों में आ रहा है ), बाबा रामदेव को सलवार - समीज में छुप कर भागना पडा ! ज्यादा नहीं लिखूंगा ! कुछ प्रमाणिक लक्षण पेस  कर रहा हूँ , जो इस घटना की पोल खोलती नजर आ रही है !

पौराणिक  / सम सामयिक घटनाओं को देखने से मुझे बिदीत होता है की - राम ने रावण का बध किया था ! राम और रावण ......?
      कृष्ण ने कंस का बध किया था ! कृष्ण और कंस .........?
      गोडसे ने गाँधी का बध किया था ! गोडसे और गाँधी ........?
     बामा ने सामा का बध किया था ! बामा और सामा ...? और अब ..रामदेव जी के साथ हुआ ..वह भी राम लीला मैदान ! राम देव और राम लीला .....? और भी बहुत शब्द  संयोग......

 उपरोक्त शब्दों और अक्षरों .. के संयोग को देखने से पता चलता है की ...राम लीला मैदान  भी कही ...राम देव जी के साथ होने वाली शब्द / अक्षर .. वाली ..किसी  अनहोनी का  संयोग था ! आधी रात को इस तरह से सत्याग्रहियों पर छुपे रूप से आक्रमण और राम देव जी का स्त्री वेश में छुप कर भाग निकलना,किसी साधारण प्रक्रिया का संकेत नहीं लगता ! जिसे राखे साईया , मार सके न कोय ! ...की बात ही साबित करती है ! देश में  भ्रष्टाचार जीतनी  तेजी से बढ़ रहा है , उसे देखते हुए यही लगता है की .. भ्रष्टाचारी .. राम देव जी का अंत चाहते  होंगे  ! जो भ्रष्ट  है , वे उनके आन्दोलन को समर्थन देना नहीं चाहते ! जब की उन्हें साम्प्रदायिकता के रंग से नहला रहे है ! आज प्रश्न यह है की सांप्रदायिक हो या असाम्प्रदायिक ... क्या काले धन को वापस लाना उचित नहीं समझते  है ? क्या भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाना जरुरी नहीं लगता  है ? स्वच्छ और पारदर्शी सुशासन देना/ लेना  जरुरी नहीं दीखता ?  कही सोने की चमक आँखों को ..चकाचौध तो नहीं कर रही है  सब कुछ छुपाने के लिए .. ?

कल की घटनाए ..सोंच कर दिल दहल उठता है    क्यों की लगता है ...उन्हें मार डालने का षड्यंत्र रचा गया था ! न रहेगा बांस , ना बजेगी बांसुरी ! शब्द संयोग -
रामदेव जी = रा 
राम लीला मैदान = रा
देंखे ..बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधता है !

Sunday, May 29, 2011

क्या आप संरक्षा के सहयोगी बनना चाहते है ?

गवर्नमेंट या सरकार ....आखिर कौन है ? क्या सत्ता के लोलुप या वोटर ? हर व्यक्ति सरकारी सुबिधा / लाभ  लेने के लिए इच्छुक रहते है ! क्या इच्छा ही काफी है या हमारे भी कुछ उत्तरदायित्व बनते है !हमारे देश में लोकतंत्रीय शासन विराजमान है ! जो विश्व में अपने तरह का एक नमूना और विश्व के लिए अनुकरणीय बन गया है ! विश्व के सभी देश इस ओर अग्रसर होने के लिए बेसब्री से कतार में खड़े मिल जायेंगे ! मुश्लिम देश भी इससे अछूता नहीं है ! आखिर इसके राज क्या है ?
लोकतंत्र हमें हर चीज की आजादी देता है और वह आजादी ...किसी दुसरे की आजादी को ठेस.... पहुचाने के लिए छुट नहीं देती ! देश के सभी ...धन - संपदा के हिस्सेदार होते है ! सभी को हर क्षेत्र में बराबर की हिस्सेदारी होती है ! चाहे किसी धर्म या जाति या लिंग  का क्यों न हो ! जब हमें इस तरह की आजादी मिलती है ,तो हमारे उत्तरदायित्व ...अपने देश और इसकी धन - संपदा के प्रति और बढ़ जाते है ! हर सरकारी संपदा की हिफाजत करना ...हर नागरिक का परम कर्तव्य है !

गलत लोगो को सार्वजनिक करना भी हमारे उत्तरदायित्व के अन्दर आ जाते है ! देखा जाए तो यही हम असफल हो जाते है ! आखिर क्यों ? गलत लोग हमारे आस - पास ही पनपते और बढ़ते है  !पनपने के पहले ही उनके जड़ को समूल नष्ट  करने चाहिए , कानूनी दायरे में ! अगर ऐसा होता तो हम इन आतंकवाद , भ्रष्टाचार , अलगाववाद और नक्सलवाद के रोग से विल्कुल मुक्त होते थे ! नासूर को बढ़ने देने से .. यह ..एक दिन  बड़ा कैंसर बन जाएगा ! इस तरह के रोगों का इलाज कठिन और महँगा भी होगा ! आज हम इससे रोज जूझ रहे है !

तारीख ---२५-०५-२०११ , मै दादर - चेनई ( १२१६३ ) सुपर फास्ट को लेकर रेनिगुन्ता  तक जा रहा था ! समय से दस मिनट लेट ...ट्रेन गुंतकल से   ...रवाना हुई ! रायालाचेरुवु  तक दोहरी लाईन है ! ट्रेन दोहरी लाईन में ११० किलोमीटर / घंटा के हिसाब से  दौड़ रही थी ! नक्कनादोदी  स्टेशन आने वाला था ! बगल के लाईन से एक पैसेंजर ट्रेन ( हिन्दुपुर - गुंतकल ) दौड़ रही थी ! अचानक उस ट्रेन के लोको पायलट ने हमें वाल्की - ताल्की पर पुकारा ! मेरा सहायक.... तुरंत ..उसका जबाब दिया !

" "ट्रेन के बीच में किसी कोच के अन्दर से  धुँआ निकल रहा है ! "- पैसेंजर लोको पायलट ने खबर दिया ! मैंने पूरी वार्तालाप सुन लिया था ! अतः तुरंत ट्रेन को नक्कन डोंडी  स्टेशन में खडा किया और सहायक लोको पायलट को जाकर चेक करने को कहा ! गार्ड और सहायक ....दोनों ने मिलकर ट्रेन की मुआयना किये ! समस्या बी -१ वातानुकूलित कोच में था ! वातानुकूलित जेनेरेटर से धुँआ आ रहा था ! उसे वातानुकूलित tech .... ने ठीक कर दिया ! ट्रेन फिर अपने गति से चल दी !

इसी दिन फिर ..जब ट्रेन नन्दलुर स्टेशन को रोड -१ से १५ किलोमीटर / घंटा की  गति से पास हो रही थी  , तभी किसी ने आपातकालीन जंजीर खिंच दी ! ब्रेक  पाईप  प्रेसर गिरने लगा और   ट्रेन चिचियाकर रुक गयी ! इसकी सूचना स्टेशन मैनेजर और गार्ड को दे दी गयी ! समस्या के समाधान के लिए , फिर मैंने सहायक को जाकर देखने को कहा ! वह गया ! पीछे से गार्ड साहब भी चेकिंग में जुटे ! ट्रेन का प्रेसर आ गया ! मैंने सिटी बजाई और गार्ड साहब पीछे तथा मेरा सहायक लोको में आ गया ! सहायक ने जो सूचना दी वह इस प्रकार है ---
                                         कोच संख्या -बी.१ में एक युवक शौचालय में गया था और उसका पर्स ..जिसमे दस हजार रुपये ,एतियम कार्ड  , क्रेडिट कार्ड वगैरह था , शौचालय के बीच छिद्र से ...नीचे गीर गया था ! अतः उसी ने चैन खींचा था ! पर्स नहीं मिला है और इसकी सूचना गार्ड ने स्टेशन मैनेजर को दे दी है ! वह व्यक्ति गार्ड ब्रेक में है , अगले स्टेशन में शिकायत करेगा !

देखा  आपने  ...एक ही दिन मैंने दो तरह के लोग से मुखातिब हुआ ! एक पैसेंजर लोको पायलट ...जिसने अपनी सतर्कता से सुपर फास्ट ट्रेन में ....आग जैसी किसी अनहोनी से .....रेलवे की सम्पति और ट्रेन में सफर करने वाले.. लोगो  की सुरक्षा की ! दूसरी तरफ ... एक लापरवाह व्यक्ति ने अपना बहुत कुछ खो दिया ! उसकी ज़रा सी सावधानी उसके पर्स को ...चलती ट्रेन से गिरने से बचा  सकती थी  !

 हम लोको पायलट ...आप की सुरक्षा और संरक्षा  की जिम्मेदारी लेकर .. दिन हो या रात ...सदैव चलते रहते है ! रात को आप अपने बर्थ पर बिना किसी चिंता के सो जाते है और हम आप की मंजिल को ....आप के कदमो के करीब.... ला खडा करते है ! क्या आप हमें कुछ मदद करेंगे ?
          १. अपने सामान को विशेष ध्यान देकर रखे  !
          २.अंजान व्यक्तियों से कुछ खान - पान न करे ! 
          ३. किसी तरह की असुविधा होने पर टी.टी. या पुलिस  स्टाफ  को सूचित करें !
          ४. आप जिस कोच में सफर कर रहे हो ,उसमे किसी तरह की ...अनावश्यक ध्वनी या धुँआ या                  आवाज आ रही हो तो निकट के स्टेशन मैनेजर या गार्ड या लोको पायलट को तुरंत सूचित                      करें!
          ५.ज्यादा खतरा महसूस होने की हालत में ...आपातकालीन जंजीर खींचना न भूलें !हम             
                आपके जंजीर खींचने की परख कर ...गाडी तुरंत खड़ी कर ....समस्या का निदान करने की                    सफल प्रयास करते है !   
           ६.सुरक्षा के मद्दे - नजर ..ट्रेन में झगड़ा - झंझट न करें ! एक दुसरे से शान्ति बनाए रखें!
           ७. छोटे - छोटे बच्चो को कोच से बाहर न जाने दे ! उससे आप और हम रेलवे... समयपालन
                   करने में चुक जायेंगे ! समय की हानि होगी ! 
            ८ ज्वलन शील पदार्थ यात्रा के समय लेकर न चले  ! इससे आप और रेलवे ,,दोनों को           
                    परेशानी .... की सामना करना पडेगा ! 
             ९. कीमती गहने ..पहन यात्रा न करें !
              १०. ट्रेन से यात्रा करते समय ...न हाथ खिड़की से बाहर निकाले , न दरवाजे पर झूले या न दरवाजे पर वैठे ! यह ट्रेन के दौड़ते समय ..घातक सिद्ध हुयी है ! बहुतो ने अपनी जान गवा दी !
              ११.) आप हमारी मदद करें, हम .. आप की सेवा में सदैव नतमस्तक है !

करेंगे न .?        
( कमेन्ट हिंदी में .. लिखने के लिए ..इस ब्लॉग के निचे   सुविधा उपलब्ध है , वहा जाए और अपनी बात इंगलिश में लिखे , वह हिंदी या अन्य भाषा में परिवर्तित हो जायेगी !फिर कॉपी कर ...पोस्ट के कमेन्ट खाने में पेस्ट कर दें ! दूर जाने की झंझट गायब )