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Saturday, March 30, 2013

धोती , कुर्ता और टोपी |

ये भाई जरा देख के चलो 
दायें  भी नहीं  , बाएं भी ,
आगे भी नहीं ...  पीछे भी 
ऊपर भी नहीं  , निचे भी | यानी चारो तरफ से सतर्क |
 या 
चाँद न बदला , सूरज न बदला ...पर 
कितना बदल गया इन्सान ?

जी | सही  भी है | हर क्रिया के पीछे प्रतिक्रिया छिपी होती है | बहुत से जिव - जंतु  घास खा सकते है | घास खाने वाले अपने अंग से दूध विसर्जित कर सकते है | जो किसी दैविक शक्ति से कम नहीं | मानव वर्ग  सुन्दर से सुन्दर खाद्य सामग्री  खाकर भी नमकहराम हो जाते है | उनके द्वारा विसर्जित तत्व अनुपयोगी साबित होते  है | थोड़े समय के लिए सोंचे - दुनिया के सभी मानव श्रेणी   एक जैसी  होते तो क्या होता  ? क्या हम उंच - नीच , अल्प - ज्यादा  आदी के अंतर समझ  पाते   ? बड़ा ही कठिन होता | 

समानता में विखराव पण भी लाजमी है | यही वजह है कि हर व्यक्ति एक ही रंग  या एक ही आकार - प्रकार  व् पसंद  वाले नहीं होते | सभी के अंगो से खुशबु( यश ) नहीं निकलती | पर यह सही है कि मानव के कार्यकलाप , गतिविधिया , हाव  - भाव और आँखों की कलाएं ....उनकी पोल खोल देती है | या यूँ कहे कि सभी क्रियाएं  मानव के दर्पण है | जो कभी झूठ नहीं बोलते  | तिरछी आंखे , पलट -पलट  कर  देखना , अंगो को सिकोड़ लेना , गले लगा लेना ,सिर पर हाथ रखना वगैरह - वगैरह बहुत  से अनगिनत शव्द है | जो राज को  छुपाने नहीं देते  |

कहते है -हमारे पूर्वज असभ्य और अशिक्षित थे | जंगलो और पहाड़ो  में निवास करते थे  |  असभ्यता की जंजीरों में जकडे हुए , जीवन को जीते हुए ..सभ्यता के राह पर चल दिए | कहते है आवश्यकता ही अविष्कार की जननी है | सब कुछ बदलने लगा , मानव की आवश्यकता के अनुरूप  | धीरे - धीरे बदलाव आये | आग के से लेकर वायुयान तक के अविष्कार हुए | ध्वनि तेज हुयी  | शर्म और हया की अनुभूति धागे और कपड़ो को विस्तार दिए होंगे  |  कपडे की अविष्कार  की वजह तन को ढकना और सुरक्षित रखना  ही था ,आज -कल की तरह  नुमयिस नहीं | प्राकृतिक आपदाएं और अलग - अलग प्राकृतिक आवोहवा ने सूक्ष्म , पतले और कोमल कपड़ो को  जन्म दिए  |

 मानवीय गुण   और व्यवहार में विकास |  रंगों के समागम और भेद  | रंगों से पहचान  बढ़ी होगी | गेरुवे , काले  , सफ़ेद  और रंगविरंगे परिधान -व्यक्ति के  व्यक्तित्व को उजागर करने के माध्यम बने  होगे | गेरुवे सन्यास , पुजारी ,काले विरोधक और सफ़ेद सादगी की पहचान बनी होगी | इस संसार को वक्त के थपेड़ो का शिकार होना पड़ा ,जो बदलाव के कारन बने   | फिर भी आज भारतीय संस्कृति में बहुत कुछ है सुरक्षित है , जो वक्त के थपेड़ो को झेल गया , उसमे किसी प्रकार की बदलाव नहीं आई  | 

भारतीय संस्कृति की धरोहर और  मिसाल दुनिया में कहीं  नहीं मिलती | मनुष्य के रहन - सहन और  पहनावे बदलते गए | आज हमारे सामने रंग - विरंगी दुनिया खड़ी है |  धोती ज्यो की त्यों हमारे सामने अडिग खड़ी है | जी हाँ ...धोती - कुरते और साडी दुनिया के किसी और छोर में विरले ही मिलते होंगे , अगर मिल भी गएँ , तो भारतीय मूल में ही होंगे | एक नारी के लिए उसके साडी की खुब सुरती नायब है |साडी में नारी की आभा खिल उठती है | वह भी सिर्फ  भारतीय नारी की  | साडी  नारी के  व्यक्तिव में निखार  और सादगी लाती  है | मजाल है जो कोई अंगुली उठा के देखे ? किसी विदेशी को साडी पहना कर देखे -आप हँसे न रह पाएंगे | भारतीय नारी की अस्मिता को ढंकती है --यह भारतीय सांस्कृतिक साडी | पर दुःख है की यह जिसके लिए निर्मित हुयी  थी वह भी समय के साथ बदल गयीं  | अपनी संस्कृति और धरोहर को छोड़ , हम पाश्चात्य के पीछे दौड़ने लगे  | जरूरत से ज्यादा नकलची बन बैठे  |

 किन्तु हमारी भारतीय  संस्कृति और यहाँ के  संस्कार इतने  कमजोर नहीं है , जो इतनी आसानी से बदल जाती  | आज भी देश के कई क्षेत्रो में धोती - कुरते वाले मिल जायेंगे | जो एक महान देश के महान संस्कृति की परिचायक है |  इसका सफ़ेद  रंग सदाचार , सदगुण के धोत्तक  है , अपवाद सवरूप कुछ होंगे जो इस पहचान को मिटटी में मिला रहे है , फिर भी हमारे भारतीय संस्कृति में   धोती की गरिमा अवमुल्य  है | शव्दकोश में धोती के पर्याय शव्द नहीं है | इतनी मजबूत है यह हमारी धोती | आज भी इस  वस्त्र को धारण करने वाले अधिक आदर के पात्र होते है | अतः हम कह सकते है कि हमारे  पहनावे , हमारे आकृति को बुलंदियों पर ले जाते है  | 

एक वाकया याद आ गया , जो प्रासंगिक है , प्रस्तुत है |  वर्ष १९८८ -बंगलूर में गया हुआ था | उस समय जींस - पेंट का बाजार जोर लिए हुए था | जवान था | कुछ वर्ष पूर्व ही शादी हुयी थी | दोस्तों ने जोर दी एक सेट ले लो | एक जींस और टी - शर्ट खरीद ली | उस वक्त करीब सौ रुपये लगे  | दुसरे दिन पत्नी के समक्ष पहन खड़ा हुआ |  घर में बड़े मिरर नहीं थे , जो अपनी तस्वीर देख लेता  | अपनी तस्वीर को दूसरों  के आँखों में देखने पड़ते थे |  जो प्राकृतिक ऐनक हुआ करते थे | पहले पत्नी की प्रमाणिकता जरूरी थी | पत्नी ने मुह विचका लिए | कुछ नहीं बोली |  संसय में झेप  गया | अरे भाग्यवान  कुछ तो बोलिए  ? क्या बात है ? पत्नी ने बहुत ही साधारण सी जबाब दी -" आप के  व्यक्तित्व में नहीं खिलती है | " . ओह ये बात है | जींस पेंट और टी-शर्ट निकाल फेंका | जी यह भी सत्य है कि आज - तक  उधर मुड़कर नहीं देखा | भाई को दे दी | वह भी पहनने से इंकार कर दिया | आज भी वह सेट माँ के कस्टडी में ,  माँ के प्यारे बॉक्स वाली अजायब घर  में बंद है |

ये मेरे अपने विचार है , आप के अपने - अपने विचार व् भाव अलग - अलग हो सकते है | सभी स्वतंत्र है | इस लेख / पोस्ट का मतलब  किसी के वैभव / पसंद को ठेस पहुँचाना नहीं है | हमारे संस्कार अटल है | हमारी संस्कृति अटल है | तभी तो धोती - कुरता के ऊपर इस टोपी की जादू नहीं  चली  | भारतीय संस्कृति हमारी धरोहर है | इसे बचाए रखना हमारा परम कर्तव्य है |


Saturday, March 16, 2013

इतना हम पर अहसान करो |





Ramesh Chandra Srivastava
+91 97524 17392
( श्री गिरिराज शर्मा जी ने मुझे कोटा / राजस्थान से इ-मेल द्वारा भेजी है | जो  लोको पायलटो की दुर्दशा को इंगित कर रही है | यह कविता व्यंग शैली में लिखी गयी है | एक तरह से रेलवे प्रशासन की पोल खोलती है |)

Monday, March 4, 2013

अंक की बिंदिया

कहते है -जो होनी है , वह जरूर होगी | जो हुआ , वह भी ठीक  था  | अथार्थ हर घटना के पीछे कुछ न कुछ कारण होते ही है | पछतावा ,मात्र संयोग रूपी घाव ही है | घटनाओं के अनुरूप सजग प्रहरी , कुछ न कुछ विश्लेषण निकाल  ही लेते है | जो मानव को उसके शिखर पर ले जाने के लिए पर्याप्त होती है | हमें इस संसार में    विभिन्न  परीक्षाओ से गुजरने पड़ते है ,उतीर्ण या अनुतीर्ण , हमारे कर्मो की देन है | 

मन की अभिलाषाएं -असीमित  है | इस असंतोष की  भंवर में जो भी फँस गया , उसे उबरने की आस कम ही होती है | संतोष ही परम धन है | मैंने  अपने  जीवन में सादा  विचार और सादा  रहन - सहन को अहमियत दी है | सदैव पैसे अमूल्य ही रहे है | यही वजह था की उच्च शिक्षा  के वावजूद भी १९८७ में फायर मेन के तौर पर रेलवे की नौकरी स्वीकार की थी | वह एक अपनी  इच्छा थी | उस समय की ट्रेनों को देख मन में ललक होती थी , काश मै भी ड्राईवर होता | किन्तु वास्तविकता से दूर | मुझे ये पता नहीं था कि फायर मेन को करने क्या है ? ड्राईवर का जीवन कितना दूभर है ?

इस नौकरी में आने के बाद , इसकी जानकारी मिली | स्टीम इंजन के साथ लगना पड़ा था | कठिन  कार्य | श्रम करने पड़ते थे | इंजन के अन्दर कोयले के टुकडे को डालना , वह भी बारीक़ करके | कभी - कभी मन में आते थे कि नाहक प्रधानाध्यापक की नौकरी छोड़ी | चलो वापस लौट चले ? पर  दिल की  ख्वायिस और  इच्छा के आगे  घुटने टेकने पड़े थे | मनुष्य उस समय बहुत ही दुविधा  का शिकार हो जाता  है , जब उसके सामने  बहुत सी सुविधाए और अवसर के  मार्ग उपलब्ध हो  |    

मेरे लिए गुंतकल एक नया स्थान था |  मैंने अपने जीवन में इस जगह के नाम को  कभी नहीं सुना था | भारतीय मानचित्र के माध्यम से  -इस जगह को खोज निकाला  था | वह भी दक्षिण भारत | एक नए स्थान में अपने को स्थापित करने की उमंग और आनंद ही कुछ और होते  है | बिलकुल नए घर को बसाना , अपनी दुनिया और प्यार को संवारना  |  बिलकुल एक नयी अनुभव | एक वर्ष के बाद ही पत्नी  को साथ रख लिया था | बिलकुल हम और सिर्फ हम दोनों , इस नयी जगह और  नयी दुनिया के परिंदे | कोई संतान नहीं | नए जीवन की शुरुआत और अपने ढंग से सवारने में मस्त थे | उस समय की  कोमल और अधूरी यादें मन को दर्द और  प्रेरणा मयी जीने की राह प्रदान करती   है | 

उस दिन की काली कोल सी  , काली भयावह रातें  कौन भूल सकता है | जो ड्राईवर या लोको पायलटो के जीवन का एक अंग है | भयावह रातें , असामयिक परिस्थितिया , अनायास  दर्द ही तो उत्पन्न  कराती है | परिजनों से दूर , सामाजिक कार्यो से विरक्तता , वस् एक ही दृष्टि सतत आगे सुरक्षित चलते रहना है और चलते रहने के लिए सदैव तैयार बने रहो  | हजारो के जीवन की लगाम इन प्यारी हाथो में बंधी होती है |

 उस दिन मै एक पैसेंजर ट्रेन ( स्टीम इंजन से चलने वाली  ) में कार्य करते हुए , हुबली से गुंतकल को आ रहा था | संचार व्यवस्था सिमित थी  | संचार को गुप्त रखना भी एक मान्यता थी | रात  के करीब नौ बजे होंगे ,गुंतकल पहुँच चुके थे | शेड में साईन ऑफ करने के लिए जा रहा था | सामने पडोसी महम्मद इस्माईल जी ( जो ड्राईवर ट्रेंनिंग स्कूल के इंस्ट्रक्टर भी थे ) को देख अभिवादन किया | साईनऑफ हो गया हो तो हाथ मुह धो लें - उन्होंने मुझसे कहा  | यह सुन दिल की धड़कन बढ़ गयी | आखिर ये ऐसा क्यूँ कह रहे है ? आखिर इस वक़्त इनके यहाँ आने की वजह क्या है ? मन में तरह - तरह की शंकाएं हिलोरे  लेने लगी | मैंने उनसे पूछ - अंकल क्या बात है ? उन्होंने कहा - कोई बात नहीं है , आप की पत्नी की  तवियत ठीक नहीं है | वह अस्पताल में भरती है |

अब हाथ - मुहं कौन धोये | तुरंत अस्पताल को चल दिए | अस्पताल बीस मीटर की दुरी पर ही था | महिला वार्ड में पत्नी -बिस्तर पर लेटे हुए थी | पास में ही महम्मद इस्माइल जी की पत्नी खड़ी थी | उनके चेहरे पर भी दुःख के निशान नजर आ रहे थे  | पत्नी मुझे देख मुस्कुरायी और धीमे से हंसी | जैसे कह रही हो , मेरी ही गलती है | मै दृश्य को समझ चूका था | एक पूर्ण  औरत की ख़ुशी और उसके अंक  की पहली बिंदी गिर चुकी थी | आँखों में पानी भर आयें | मेरे आँखों में पानी देख पत्नी के हौसले भी ढीले पड़ गएँ , उसके भी  आँखों में आंसू भर आयें  |  दिल के गम को बुझाने के लिए , आंसू की लडिया लगनी वाजिब थी | महम्मद इस्माईल की पत्नी दोनों को संबोधित कर बोलीं - आप लोग दुखी मत होवो , घबड़ाओ मत , अभी जीवन बहुत बाकी है | 

एक दूर अनजान देश में , जहाँ अपने करीब नहीं थे , परायों ने अपनत्व की वारिस की | हम अलग हो सकते है , पर अगर दिल में थोड़ी भी  मानवता है  , तो हमें नजदीक खीच लाती  है | उस समय की असमंजस भरी ठहराव , दृढ संकल्प और कुछ कर सकने की दिली तमन्ना , आज उपुक्त परिणाम उगल रही  है | आज हम दो और हमारे दो है | फायर मेन से उठकर सर्वोच शिखर पर पहुँच राजधानी ट्रेन में कार्य करने की इच्छा पूर्ण हुयी है | आज अनुशासन भरी जिंदगी , एक उच्च कोटि के अभियंता से ऊपर  सैलरी  और जहाँ - चाह  वही राह के मोड़ पर खड़ी जिंदगी , से ज्यादा जीवन में और कुछ क्या चाहिए  ?

 अपने लगन और अनुशासन के बल पर जीवन जीना और इसके अनुभव की खुशबू ही  अनमोल है | आयें हम सब मिल कर , अनुशासन के मार्ग पर चलते हुए , एक नए भारत की सृजन करें | जहाँ भ्रष्टाचार का नामोनिशान न हो | 

Monday, February 11, 2013

हाय जीवन तेरी यही कहानी

मिडिया में खलबली | बारम्बार समाचार  चैनलों पर दिखाया  जाना की अफजल गुरु को ९ फरवरी २०१३ को सुबह फांसी के तख्ते  पर लटका दिया गया | वाकई आश्चर्य चकित करने वाली समाचार थी | सभी प्रतिक्रियाएं   
देश की कानून की जीत  को दर्शाती हुयी , आने लगी |  या यूँ  कहें की दो दिनों की कहानी मानस  पटल पर सदैव यादगार बन कर रहेगी | एक तरफ अफजल गुरु को मृत्यदंड , तो दूसरी तरफ दिनांक १० फरवरी २०१३  को रात्रि सात बजे के करीब , इलाहाबाद में होने वाले भगदड़ और मौत का तांडव | एक तरफ उल्लास तो दूसरी तरफ उदासी का माहौल | 

 किन्तु मैंने कल ( १० फरवरी २०१३ को साढ़े छ बजे के करीब )  इन दो घटनाओ के बीच जो देखा , वह मनुष्य को जीवन और मृत्यु के बारे में सोंचने को मजबूर कर देती है | सभी के लिए जीवन ...जीवन नहीं है | कुछ लोग ऐसे है जो मृत्यु को भी अपने सामने घुटने टेकने के लिए मजबूर कर देते है |काश   मृत्यु प्राप्त लोगो के अनुभव  विश्व में उपलब्ध होते , जब की काल्पनिक अवशेष बहुत मिल जायेंगे |  ऐसा यदि  होता तो मनुष्य के मृत्यु भी हसीन होते | सभी बड़े - बड़े ग्रन्थ फीके पड़ जाते | हाय जीवन तेरी यही कहानी |

कल हुआ यूँ की , मुझे राजधानी एक्सप्रेस ( १२४३०  हजरत निजामुदीन - बंगलुरु एक्सप्रेस ) को  लेकर सिकंदराबाद से गुंतकल तक आना था | अतः ड्यूटी में तैनात था | अभी ट्रेन नहीं आई थी | अतः  मै और लोको इंस्पेक्टर श्री जय प्रकाश एक नंबर प्लेटफ़ॉर्म पर हैदराबाद एंड में खड़े होकर वार्तालाप में व्यस्त थे | हमने देखा ..कुछ पांच /छ युवक एक युवक को पकड़ कर खिंच रहे है  ,( सभी के पीठ पर छोटे - बड़े बैग लटके हुए थे  , शायद वे १२५९१ गोरखपुर - बंगलुरु एक्सप्रेस से उतरे थे ) और स्टेशन से बाहर ले जाने का प्रयास कर रहे थे | वह जाने से इनकार कर रहा था | तभी पास से गुजरते आर.पि.ऍफ़ के पास भी गए | मामला कुछ समझ में नहीं आ रहे  थे | हमने सोंच शायद आपसी झगडा या चोरी का मामला होगा |

और ये क्या ?  पकड़ ढील पड़ते ही वह युवक भाग खड़ा हुआ | एक और युवक अपने बैग को जमीन पर रख उसके पीछे दौड़ा | समय का अंतर बढ़ चला था  | भागने  वाला युवक पास के इलेक्ट्रिक खम्भे से लगा एक इलेक्ट्रिक ट्रांसफोर्मर के खुले तार को अपने हाथो से पकड़ लिया | देखते ही देखते उसके शरीर में आग लग गयी | वह धडाम से जमीन पर गिर गया | उसके पीछे दौड़ने वाले  युवक के पैर जहाँ के तहां रूक गए | लोगो का हुजूम लग गया | किसी को अपने आँखों पर भरोसा नहीं हो रहा था | क्षण में क्या से क्या हो गया था | तुरंत मौके पर जी.आर.पि और आर.पि.ऍफ़ को लोग आ धमके और कानूनी प्रक्रिया तेज हो चली थी | क्या ये आत्महत्या की कोशिश थी , जो  देहदाह में बदल चुकी थी ?

राजधानी एक्सप्रेस  के दस नंबर प्लेटफोर्म पर आने की सूचना दी जा रही थी | हम दोनों उस प्लेटफोर्म की ओर चल दिए | आज के अखबारों में यह समाचार जरूर छपा होगा |

जीवन अमूल्य है , इसका मजा लें  और जीवन से कभी  निराश  न हो |

Saturday, January 26, 2013

कर भला हो भला |

अरे कलुआ ( बदले हुए नाम ) ...कहाँ है रे |  तू बाहर  आ  | क्या कर दिया रे | आज मेरे पुत्र को क्या हो गया  ? बहुत कुछ बडबडाते  हुए वह  औरत आगे बढ़ रही थी | रात्रि  का पहर  | चारो तरफ अँधेरा ही अँधेरा | गाँव का मामला | बिजली की आस नहीं | झींगुरो की आवाज गूंज रही थी | कुत्ते भूकने लगे थे | आचानक वह महिला चिल्लाते हुए कलुआ के दरवाजे पर आ धमकी  | उसके पीछे लोगो का झुण्ड   किसी के हाथ में लाठी  , तो किसी के हाथ में डंडे | टार्च की रोशनी फैल रही थी | शोर गुल तेज हो गए | आस - पास के लोग भी अपने घरो से बाहर  निकल आये | किसी को माजरा  समझ में नहीं आ रहा था, आखिर बात  क्या है ?

उस गरीब के झोपड़ी के सामने , इन दबंगों के भीड़ को देख सभी समझ गए की जरुर कुछ लफडा है | लगता था जैसे भीड़ कलुआ को चिर कर खा जाने के लिए तत्पर हो चली थी  | उस झोपड़ी के अन्दर तेल के मद्धिम  दीप की  रोशनी में कलुआ की बीबी चूल्हे पर कुछ पका रही थी | दो छोटे बच्चे पास में ही चिपके हुए थे | कलुआ पास में बैठा ,बीडी पिने में मशगुल था  | घर के बाहर  उसके सास और ससुर  चौकी पर लेटे हुए थे | इतनी हुजूम ,  देखते ही उनके अन्दर डर समां गयी | अँधेरे में भी उन्हें समझते देर न लगी की कौन उनके घर के पास खड़ा है और  चिल्लाये जा रहा है |

' बबुआ की माँ जी का  बात है ?'-कलुआ के बाप के मुह से सहमी सी  आवाज निकली | पहले बता कलुआ कहा है ? भीड़ से किसी ने कहा | तब तक कलुआ झोपड़ी के अन्दर से धीरे - धीरे  बाहर निकला | उसके बाहर  आते ही वह बुड्ढी ( जो  संपन्न / दबंग घर की महिला थी ) कलुआ के पैर पर गिर पड़ी | कलुआ मेरे बेटे को बचा लो | मेरा बेटा मर जायेगा | मेरा बेटा मर जायेगा | वह एक साँस में बोले जा रही थी  ,  रुकने का नाम नहीं ले रही थी और कहते - कहते बिलख कर रोने लगी | सभी हतप्रभ थे , किसी को समझ में नहीं आया | आखिर मामला क्या है ?

चाची जी रौआ उठी | ऐसन का बात हो गईल , जो इतना परेशान बानी | उसने  भोजपुरी लहजे में   ही कहा  और अपने पैर को दूर खिंच लिया |  वृद्धा उठ चौकी के एक कोने में बैठ गयी  और अपनी बात दुहराते हुए फिर बोल पड़ी  - बेटा  कलुआ , मेरे बेटे से गलती हो गयी | अगर उसने कुछ गलत किये हो तो , उसके लिए मै माफी मांगती हूँ , माफ कर दो | तेरे सभी पैसे मै देने  के लिए तैयार हूँ | कुछ कर धर ( मतलब कोई टोटके ) दिया हो तो उसे वापस ले लो | तू भी मेरे बेटे सामान है | कलुआ मेरा बेटा मर जायेगा | और बहुत कुछ ....

कलुआ हक्का बक्का सा गुमसुम खड़ा रहा  | उसे समझ में नहीं आ रहा था की मामला क्या है ? असमंजस सी स्थिति | आस - पास वाले भी कुछ न समझ पाए |

गाँव के हाट बाजार | जो सप्ताह में दो दिन , वह भी संध्या समय ही लगते है - रविवार और बुधवार | उस दिन रविवार थे | बाजार खाचा - खच भर गया था | इस हाट बाजार में दबंगों की दबंगई जोरो पर रहती है | अतः सभी व्यापारी , इस बाजार में आने से डरते है | कुछ परिस्थिति से सामंजस्य बना लेते है | कलिया (मांस ) के दूकान एक या दो लगती है | मछुआरे एक तरफ चार या पांच की संख्या में आते है | उसमे कलुआ भी एक था | वह अपने टोकरी में मछली लेकर बिक्री कर रहा था | लेने वालो के हुजूम लगे हुए थे | कोई भाव पूछ रहा था तो कोई मोल भाव में व्यस्त | तभी अमर सिंह ( बदले हुए नाम )  दबंगों का झुण्ड आ डाटा | उन्होंने कलुआ से  मछली का रेट पूछा  | बीस रूपए किलो साहब | अबे बीस रुपये मछली कहाँ है रे ?  दस रूपए में दे दो | नहीं साहब घाटा  हो जायेगा | कलुआ गिडगिडाने लगा | दबंगों ने जबरन दो किलो मछली तौल  लिए और जाते - जाते पैसे भी नहीं दिए | कलुआ मुह देखते रह गया |

घर की औरतो ने  मछली  बहुत मसालेदार  बनायीं | घर के सभी छोटे - बड़े .. बारी - बारी से भोजन ग्रहण कर लिए थे | जब अमर सिंह  भोजन करने लगा  ( जिसने कलुआ से जबरन मछली छीन कर लायी थी ) अचानक उसके गले में मछली के कांट फँस गए | बहुत चेष्टा की ,सादे भात खाए  पर  निकलना मुश्किल | घर वाले गाँव के स्वास्थ्य केंद्र में ले गए | डॉक्टर ने जबाब दे दिया |  डॉक्टर ने कहा - शहर के अस्पताल में ले जाएँ | शहर के अस्पताल ने वनारस को रेफर कर दिया | घटना क्रम से प्रभावित हो किसी साथी  ने कह दी की मुफ्त की मछली का नतीजा है | कलुआ ने कोई जादू - टोना की होगी | परिणाम सामने है सभी घर वाले क्षमा - याचना वस् कलुआ के घर दुहाई के लिए जुट गए थे  | कलुआ की अनुनय - विनय हो रही थी |

 संसार में जीवो की उत्पति ही कुछ न कुछ अर्थ रखती  है | मनुष्य सबसे चालक और उत्कृष्ट माना जाता है | इसके कार्यकलापो से  हवा के अन्दर जो स्पंदन उठती  है , वह आस - पास की सभी चीजो को प्रभावित करती है | आग के पास बैठने से गर्मी या सर्दी नही | आम से आम या इमली नही | परिणाम हमारे कर्मो की देन है ,फिर आंसू किस लिए ? इसीलिए कहते है -- कर  भला - हो भला | 

(  यह सत्य घटना मेरे गाँव की | परिणाम बहुत ही दर्दनाक रहें | तीन महीने बाद अमर सिंह की मृत्यु हो गयी | आज गाँव में यह घटना एक उदहारण बन गयी है | जैसी करनी वैसी भरनी | मछुआरो ने गाँव का बहिष्कार कर दिया था |  )

Thursday, December 13, 2012

दुरंतो

हमारे हिन्दू धर्म ग्रंथो  में हिंसा का बहुत ही कम स्थान है । स्वाभाविक है की इस धर्म के अनुयायी भी नर्म , शांत और भाई- चारे से ओत प्रोत होंगे ही । यहाँ किसी धर्म विशेष के बारे में चर्चा नहीं कर रहा हूँ । प्रसंग वश कहने पड़ते है । उस दिन रविवार था अर्थात दिनाँक 9 वि दिसम्बर 2012 ।  गुंतकल से दुरंतो  ट्रेन लेकर सिकंदराबाद जा रहा था । 424 किलो मीटर की दुरी तय करनी थी । वैसे ट्रेन हमेशा ही समय से चलती है । पर उस दिन देर से आई पांच बजे सुबह  , वजह था बंगलुरु मंडल में रेल  लाइन में वेल्ड फेलुर । एक बार गुंतकल से ट्रेन चली तो सिकंदराबाद के पहले कहीं नहीं रुकती है । 

अब आप सोंच सकते है की लोको पायलटो  के ऊपर क्या गुजरती होगी , जब उन्हें संडास /पेशाब की जरुरत महसूस हो । लोको के अन्दर इसकी कोई सुबिधा नहीं है । पानी पीना बंद , नास्ते    बंद । ट्रेन की गति थमने की नाम नहीं लेती । दुरंतो जो है । इस हालत में स्वास्थ्य को ठीक रख पाना   कितना मुश्किल है । यह हमारे जीवन की रोज - मर्रा  और भोगने वाली प्रक्रिया  है । यही वजह है की लोको पायलटो को  सुगर / बीपि खाए जा रही  है ।  " ये भी कोई जीवन है ।"- एक सहायक ने गंभीर हो कहा था ।

 " रेल प्रशासन को कुछ करना चाहिए । आखिर अफसर किस लिए है ?"- एक बार यात्रा के दौरान एक यात्री ने प्रश्न किया  था । आप समझते है । वो समझे तब न । बगल वाले ने प्रश्न जड़ दिया । अजीब सा लगता है , जब यात्रा के दौरान साधारण सी पब्लिक बहुत कुछ कह देती है , जो हमारे जिह्वा पर नहीं आते । आखिर क्यों सत्ताधारी /प्रशासनिक अधिकारी अपने सूझ - बुझ से कल्याणकारी योजनाओ को मूर्त रूप नहीं देतें ?

लिंगम्पल्ली  और हाफिजपेट  के बीच  महज चार किलोमीटर का फासला है । दिल धड़क उठा जब एक दो वर्ष का लड़का  पटरी के बीच में आ गया । सिटी बजाये जा रहें थे । अब कुछ करे , तब तक उसकी माँ सामने आती ट्रेन को भांप ली और तुरंत देर किये बिना बच्चे को पटरी से बाहर  खिंच ली । लोको के अन्दर चार व्यक्ति थे । सभी के मुह से चीख निकल गयी । हे भगवान ! आप की कृपा अपरमपार   है । लोको के अन्दर एक अफसर भी थे , घबडा सा गए । अभी थोड़ी आगे ही बढे थे की फिर दो लडके करीब ग्यारह के आस - पास के होंगे , अपनी साईकिल को रेल के बीच  रख कर विपरीत दिशा से आने वाली ट्रेन को देखने में व्यस्त । सिटी बजती रही , हाई टेक सिटी के प्लेटफोर्म पर खड़े लोगो ने शोर मचाई और वे दोनों लडके ट्रेन के आने की आभास होते ही ,सायकिल को तुरंत रेल की मध्य से बाहर खिंच लिए । ट्रेन  तीब्र  गति से आगे निकल गयी ।फिर कुछ दुरी पर एक महिला मरने से बची । एक ब्लाक के बीच .. तीन  जीवन को जीवनदान मिली ।
सब कुछ उसके हाथ में है , हम तो वश एक आधार /कारक  है । ॐ साईं
 

Monday, October 29, 2012

फर्क तो है ।


जिस तरह दुनिया में कंटीले या बेकार के वृक्ष  कहीं भी स्वतः उग जाते है तथा सदुपयोगी  वृक्ष सभी    जगह नहीं मिलतें  , वैसे ही संसार में बुरे प्रवृति के व्यक्ति सभी जगह भरे पड़े है । अच्छे लोगो की पहचान और उपस्थिति का आभास बड़ा ही कठिन है । अच्छे लोगो की आवश्यकता उनके अनुपस्थिति के समय महसूस होती  है । संसार में बुरे लोग इस तरह से छाये है कि उनके आगे नियम - क़ानून सब फीके पड़  जाते है । रावण  हो या महिसाशुर , कंश  या दुर्योधन सभी  अपने युग के कालिमा / कलंक थे । अंततः विजय उजाले की ही होती है । सच्चे व्यक्ति में त्याग की भावना चरम पर होती है  , यही वह शक्ति है , जो उसे स्वार्थ से दूर ले जाती है , और एक दिन उसके अन्दर ईश्वरीय  शक्ति का विकास हो जाता है । वह इश्वर स्वरुप  बन जाता है । उसके वाणी में ओज , मुख पर आकर्षण और कार्य में शक्ति भर आती है ।

हम इस क्षेत्र में कहाँ तक आगे है , खुद ही महसूस  कर सकते है । मनुष्य जाती ही एक ऐसा प्राणी है , जो कुछ सोंच और महसूस कर सकता है । अन्यथा पत्थर .......और उसमे कोई भिन्नता नहीं । भारतीय संघ में प्रशासन के कई रूप है । कई नियम - कानून । सभी नियम कानून सर्वजन हिताय से प्रेरित है । फिर भी इसके अनुचित उपयोग और परिणाम निकल आते है । आखिर क्यों ?

यह  व्यक्ति विशेष के व्यवहार  और  इमानदारी पर निर्भर करता है । उसके सकारात्मक सोंच पर निर्भर करता है । अब देखिये ना ......हमारे रेलवे में एक प्रावधान है कि कोई भी व्यक्ति चाहे जो भी हो ....वह निरिक्षण के दौरान लोको के अन्दर ....लोको पायलट के सिट पर नहीं बैठ सकता । इससे लोको पायलटो के कार्यनिष्पादन  , सिग्नल को देखने और बहुत सी चीजो में व्यवधान पड़ती है , जो ट्रेन को सुरक्षित परिचालन के लिए सही नहीं है । अब आप ही परख लें ---कौन कैसा है ?

1)  मै  एक दिन 12163 दादर - चेन्नई सुपर लेकर गुंतकल से रेनिगुंता जा रहा था । गुंतकल में ही मंडल सिगनल अधिकारी लोको के अन्दर तशरीफ लायें और आते ही सहायक के सिट पर  ऐसे बैठ गए , जैसे जल्दी ग्रहण ( बैठो  ) करो नहीं तो दूसरा कोई बैठ जायेगा । तादीपत्री   में उतर गएँ ।

2) इसी ट्रेन में कडपा  से एक और अधिकारी लोको में आयें .....आते ही अपना परिचय दिए ...मै सहायक  निर्माण अधिकारी / कडपा हूँ और राजम पेटा  तक आ रहा हूँ । लोको में खड़ा रहे  । सहायक के सिट पर नहीं बैठे । सहायक ने शिष्ठाचार बस  बैठने का आग्रह भी किया ।

3) एक बार मै सिकन्दराबाद से 12430 राजधानी एक्सप्रेस ( हजरत निजामुद्दीन से बंगलुरु  ) आ रहा था । ट्रेन के आने की इंतजार में प्लेटफ़ॉर्म पर खड़ा था । तभी एक व्यक्ति मेरे पास आया और अपना परिचय चीफ कमर्शियल  मैनेजर के निजी सचिव के रूप में करते हुए कहा - कि साहब आपके लोको में फूट प्लेट इन्स्पेक्सन  के लिए आ रहे है । मैंने कहा मोस्ट वेलकम सर । ट्रेन आई । साहब आयें । उन्होंने भी आते ही मुझसे हाथ मिलायी , परिचय का आदान - प्रदान हुयी । लोको के अन्दर आये ।

दक्षिण मध्य रेलवे का मुख्य कमर्शियल मैनेजर ....यह स्वाभाविक   था  कि  हम उनका भरपूर   स्वागत करें  । ट्रेन  चल दी । हमने उनसे सहायक के सिट पर बैठने के लिए आग्रह की , पर वे ऐसा करने से साफ़ इंकार कर  गएँ  और प्यार भरे शव्दों में कहा कि आप लोग मेरे बारे में चिंता न करे ....आप लोगो का कार्य महत्वपूर्ण है । अंततः वे 304 किलो मीटर तक लोको में -खड़े  खड़े  यात्रा / निरिक्षण कियें  और रायचूर में जाते समय दो टूक बधाई देना भी न भूलें ।

जी हाँ --अब आप क्या कहेंगे ?   एक ही कानून ....एक ही संस्था ...किन्तु कार्यप्रणाली ...बदल जाती है । इसके भागीदार हम और आप ही तो है । आखिर फर्क तो है ।

Monday, September 24, 2012

जिंदगी के सफ़र

यात्रा में  मानवी सहकारिता , संयोग , मिलन और अपनापन का एक अनूठा समिश्रण चार चाँद लगा देता है । कभी - कभी यह दुखदायी भी बन जाता है । समयाभाव की वजह मुझे ब्लॉग से दुरी बनाने के लिए मजबूर किये बैठी है । संक्षिप्त में पोस्ट लिखना मेरी मजबूरी बनते जा रही है । एक समाचार मुझे उद्वेलित कर गयी ।

परसों की बात है । जनरल डिब्बे में दो महिलाये बातों - बातों में  ..इस कदर ---- सिट के लिए झगड़ बैठी की एक ने दुसरे की गले को ऐसे दबा दिया , की उसके प्राण पखेरू उड़ गए । माँ के शारीर को पकड़ छोटे बच्चे का बिलखना ....सभी को बिचलित कर दिया । मामला गंभीर था . गाडी रुक गयी  । पुलिस  आई उस महिला को पकड़ कर ले गयी । पत्रकारों  का झुण्ड उमड़ पड़ा । कल समाचार जरूर छपी होगी ।

यात्रा में सावधानी , बरतनी जरूरी है। 

Friday, September 7, 2012

लोहा सिंह

नर - नारी ,  घर परिवार , समाज , जिला ,  प्रदेश , देश - विदेश , संसार और यह व्योम । सम नहीं है , भला मनुष्य सम कैसे हो सकता है । हर मनुष्य में कुछ कर सकने की शक्ति छुपी हुयी होती है । कोई पढ़ने में , कोई खेलने में , कोई राजनीति में , तो कोई -भोग  विलास और योग के क्षेत्र में  माहिर है । एक ही कक्षा में कई विद्यार्थी , एक ही शिक्षक के द्वारा  शिक्षा ग्रहण करने के वावजूद भी अलग - अलग मार्ग पर अग्रसर हो जाते है । एक ही धरती ..अलग - अलग बीज   ग्रहण कर , अलग -अलग आकार   देती है । ये तो व्यापारी और ग्राहक का एक अनूठा सम्बन्ध है ।

कुछ जीवन की अनुभूति -

बाबूलाल यादव का नाम आते ही  सभी यही समझ जाते थे .....पढाई में कमजोर विद्यार्थी । शिक्षक के डांट  या फटकार का  कोई असर नहीं । लोहा सिंह इसके नाम का पर्याय बन चुका था । सभी शिक्षको  के उपहास का पात्र । कोई भी उसके तरफ ध्यान नहीं देते थे । होम वर्क नक़ल कर कक्षा  में ही  तैयार करना , शिक्षको की अनुपस्थिति में क्लास के  अन्दर शोर गुल का भागी दार बनना , उसे बेहद पसंद   था ।

कक्षा -6 , स्कूल के दुसरे मंजिल पर क्लास । उस दिन क्लास का आखिरी पीरियड , वह भी व्यायाम और उससे सम्बंधित । पशु  पति सिंह जी इसके शिक्षक थे  । भलामानस व्यक्तित्व वाले । समय - समय पर सामाजिक कार्यकलापो का जिक्र करने में माहिर । क्लास में आयें , किन्तु देर से । हम  सभी शांत मुद्रा में , अगले विषय के इंतज़ार में । क्लास में सन्नाटा । हम सभी की ओर उन्मुख हो उन्होंने अचानक एक प्रस्ताव रखा । उन्होंने कहा की -" इस दुसरे  मंजिल से निचे कौन कूद सकता है ? हाथ उठाये ?"
 
सभी के बीच सन्नाटा छा  गया । शिक्षक महोदय बारी - बारी से सभी की ओर देखने लगे । एक मिनट , दो मिनट और पांच  मिनट गुजर गए । आखिर में असहाय सा प्रतीत होते देख , एक बार फिर उन्होंने अपनी बात दुहरायी । और ये क्या ? सभी को आश्चर्य ...ही ..आश्चर्य । सभी के सामने ..बाबू लाल यादव ने अपने हाथ ऊपर उठायें । बाबू लाल ने कहा -सर मै  निचे कूद सकता हूँ । इधर आओं । पीपी सिंह जी बाबू लाल को अपने पास बुलाते हुए कहा  । सभी लड़को के बीच  फुसफुसाहट की ध्वनि गूंजने  लगी ।

 पीपी सिंह जी ने कहा - इसका फैसला कल प्रेयर के बाद होगा । दुसरे दिन ..सभी लडके - लड़कियों के बीच सिर्फ बाबू लाल यादव की ही चर्चा । इसके हाथ - पैर जरूर टूट जायेंगे । अपने को तीसमार खा समझता है । पछतायेगा । इसे इस तरह के जोखिम लेने की  क्या जरूरत थी ।..अब क्या होगा ? जानने के लिए सब उतसुक । प्रथम पीरियड ..पीपी सिंह जी का न हो कर भी वह ..कक्षा में आयें । उनके मुख पर मुस्कान की छटा । उन्होंने - बाबू लाल यादव की तरफ इशारा करते हुए कहा -" इधर आओ ।" बाबू लाल उनके करीब जाकर खड़ा हो गया ।  दोस्तों के तरह - तरह की बातो को सुन वह सहम सा गया था । मुख पर सहमी सी मुस्कराहट । पीपी सिंह जी ने  एक बार फिर  बाबू लाल के कंधे पर हाथ रखते हुए पूछा  -" कूदने के लिए तैयार हो ?" बाबू लाल ने हां में सिर हिलाई ।

पीपी सिंह जी हँसे और अपने पाकेट से एक बाल पेन निकाल कर बाबू लाल को उपहार स्वरुप आगे बढ़ाये । उन्होंने कहा -  " बच्चो .. वास्तव में बाबू लाल लोहा सिंह है ।"

Monday, August 20, 2012

छिपकली - डूबते को तिनके का सहारा



थोड़ी सी भूल ....लाखो की बर्बादी  । संभव है सभी सजग ही रहते हों । कोई भी गलती नहीं करना चाहता , समय वलवान है , अन्यास ही हो जाता है । कुछ दिन पहले एक टी .वि.चैनल पर देखा था । बिशाक्त भोजन करने के बाद कई बच्चो को अस्पताल में भरती करवाया गया था । प्रायः नित - प्रति दिन ऐसे खबर आते ही रहते है ।  

ऐसी ही एक वाकया यहाँ प्रस्तुत है । शायद कुछ लोग विश्वास करें या न करें - अपनी - अपनी मर्जी । मै  तो बस उन्ही दृश्यों को पोस्ट करता हूँ , जो मेरे आस - पास गुजर चुकी है , ये धार्मिक हो या अधार्मिक । उन्ही को प्रस्तुत करता हूँ , जिससे समाज की भलाई हो या कुछ सिखने को मिले । अधर्म का बोल बाला हमेशा ही रहा है । राम का युग हो या कृष्ण का -  कंस या रावण उतपन्न हो ही गएँ । आज की विसात ही क्या है । जहाँ देखो वहीँ अधर्मियों के हथकंडे दिख जाएँगे । आखिर अधर्म है क्या ? धर्म में विश्वास नहीं करना या गड्ढे खोदना । जो भी हो विषय नहीं बदलना चाहता ।


उस दिन की बात है , जब हम सभी लोको चालक अपने रेस्ट रूम में एक साथ मिलकर खाना पकाते थे और साथ में बैठ कर खाते भी थे । धर्मावरम रेस्ट रूम । प्रायः सहायक लोको पायलट एक साथ मिल कर खाने -पिने का सामान खरीद कर ले आते थे और रेस्ट रूम के कूक को पकाने के लिए दे देते थे । पन्द्रह - बीस स्टाफ के लिए दाल  लाया गया और पकाने के लिए दे दिया गया था । दाल में भाजी वगैरह भी डाला गया था । दिन के साढ़े बारह बजते होंगे । मैंने एक सहायक से पूछा  - खाना तैयार है या नहीं ? अभी नहीं सर । मथने वाला मसालची बाहर  गया है । दाल मथना बाकी है ।

अन्यास ही मै किचन में गया और कलछुल ( बड़ा सा चम्मच ) से दाल को चला कर  देखा , पतला है या गाढ़ा । मै सन्न रह गया - देखा एक बड़ी सी छिपकली दाल के पतीली में मरी हुयी है । मैंने सभी को आवाज दी , सभी देख घबडा गएँ ।  सभी  के मुंह में बुदबुदाहट ....काश ऐसा नहीं होता तो मसालची छिपकली के साथ ही दाल को मथ  देता  था और आज हम सभी लोको पायलट  विषाक्त फ़ूड के शिकार हो जाते थे । मामले को दबा दिया गया । कोई शिकायत नहीं की गयी ..ड्यूटी वाले कूक के उपर ।

फिर क्या था , उस दाल को नाले में डाल  दिया गया और नए सिरे से तैयारी  की गयी । आज कईयों की जान बच गयी । कर - भला हो भला ।


Thursday, August 2, 2012

दर्द , दवा और दुवाएँ एक भँवर

जिंदगी में कभी - कभी साहस की परीक्षा भी हो जाती है । मेरे लिए दिनांक 17 जुलाई से 29 जुलाई 2012 का समय , एक चुनौती भरा रहा । एक तरफ दर्द तो दूसरी तरफ कर्तव्य । यही वजह था ,जो मुझे कुछ दिनों के लिए ब्लॉग जगत से दूर रखा । यहाँ..., मै उन अनुभूतियो को रखना चाहूँगा । अगर ध्यान से पढ़ा जाय  तो बहुत कुछ समझा जा सकता है । अवश्य पढ़ें
दिनांक 17 जुलाई 2012 -गुंतकल 
मै दिनांक 17 जुलाई को प्रशांति एक्सप्रेस से विजयवाडा जाने वाला था और वातानुकूलित श्रेणी में बर्थ कन्फर्म था । ट्रेन रात को साधे आठ बजे थी ।रिजर्व टिकट किसी दुसरे साथी के पास था । सुबह से ही पूरी तैयारी  कर ली थी । ग्यारह बजे गंगाधरन ने फोन की और कहा की सिखामनी सभी टिकट कैंसिल करवा दिया है । मेरे होश उड़ गए । अब क्या होगा ? जोनल सम्मेलन  में जाना ही होगा , अन्यथा सभी क्या कहेंगे । किन्तु बाद में पता चला की मेरे टिकट सुरक्षित थे ।
दिनांक -18 जुलाई 2012-विजयवाडा 
आल इंडिया लोको रुन्निंग स्टाफ असोसिएसन दक्षिण मध्य रेलवे का ग्यारहवा कांफेरेंस आयोजित था । सभी  कार्यकर्ता और सदस्य एकत्रित हो रहे  थे । मुझे सब्जेक्ट  कमिटी का  चैरमैन बनाया गया था । सभा के कार्यकर्म सुनियोजित ढंग से चल रहे थे । दोपहर बाद गुंतकल से काल आया । फोन मैडम ( पत्नी ) ने किया था । मैडम ने सूचना दी  कि बड़ा बेटा  राम जी अस्पताल में भरती है ! यह खबर घबराहट देने वाली थी  और  मै सभा गृह से बाहर  आ गया । पूरी जानकारी ली ।  अस्पताल में भरती होने का कारण पूछा ? जबाब नकारात्मक थे , क्यों कि डॉक्टर ने कुछ बताने से इंकार कर दिया था । डॉक्टर मुझे ही बताने की जिज्ञासा जाहिर की थी । मैंने मैडम से पूछा -क्या मेरी उपस्थिति जरुरी है ? अगर ऐसा है तो मै  तुरंत घर आने की चेष्टा करता हूँ । मैडम ने कहा कि आप कांफेरेंस  की प्रक्रिया पूरी करके भी आ सकते है । मुझे कुछ शांति मिली और प्रोग्राम में यथास्वरूप शामिल रहा । अंततः रात्रि के साढ़े आठ बजे प्रोग्राम की समाप्ति हुयी । विजयवाडा से गुंतकल जाने के लिए कोई एक्सप्रेस ट्रेन नहीं थी , अतः पसेंजर द्वारा यात्रा शुरू हुयी । ट्रेन करीब रात  के नौ बजे छुटी ।

दिनांक -19 जुलाई 2012 -फिर से गुंतकल 
मै  सुबह नौ बजे गुंतकल पहुंचा । घर आने पर पाया कि मैडम अस्पताल में है ।सुबह के नित्यक्रियाकर्म में व्यस्त हो गया , सोंचा  कि  रिफ्रेश होकर अस्पताल में जाऊं । शेव के लिया तैयार हो ही रहा था कि मोबाइल की आवाज आई । बड़े पुत्र की आवाज थी । मद्धिम  स्वर । डैडी डॉक्टर साहब जल्दी बुला रहे है । मैंने शेव के कार्यक्रम को स्थगित कर जैसे - तैसे चल दी । अस्पताल घर के पास ही है । वार्ड में जाते ही नर्सो ने पे स्लिप के जेरोक्स  और declaration फॉर्म की प्रक्रिया पूरी करने को कहा । मै   अपने साथियों को कुछ कार्य सौप कर डॉक्टर से मिलने चला गया । डॉक्टर श्रीनिवासुलु उस समय महिला वार्ड में निरिक्षण पर थे । मामले की गंभीरता को देखते हुए मै  उनसे वही मिलने चला गया , पर वे मुझसे वहां  मिलने से इंकार कर गए और कहा की मै उनका इंतजार आई सी यु में करूँ , जल्द आ रहे है । करीब  आधे घंटे बाद वे अपने चेंबर में आयें ।मै  अन्दर गया । उन्होंने मुझे बैठने को कहा । मेरे बेटे की रिपोर्ट को देखते हुए उन्होंने कहा कि -मेरे बेटे को डेंगू बुखार है । ह्विट प्लेट लेट की संख्या डेढ़ लाख से 23000 हजार को आ गयी है । इस उपचार  की व्यवस्था अस्पताल में नहीं है , अतः जितना जल्द हो सके लालागुडा ले जाएँ ,वहां व्यवस्था  होगा अन्यथा वे लोग प्राइवेट अस्पताल में रेफर करेंगे । मुझे जैसे सांप सूंघ गया । स्थिति भयावह थी ।  ट्रेन दोपहर और रात को थी । ट्रेन से हैदराबाद जाना , खतरे से खाली  नहीं था । । अस्पताल से अम्बुलेंस की मांग की , पर एक ही अम्बुलेंस है कह कर कन्नी काट लिया गया । मैंने एक दोस्त को फोन की और टाटा सुमो को लाने  को कहा । फिर क्या था , समाचार चारो तरफ फैलते देर न लगी । आधे घंटे में गाडी तैयार ।

गुंतकल से हैदराबाद का सफर 
घर के सभी सदस्य चलने के लिए तैयार । हमारी यात्रा साढ़े ग्यारह बजे शुरू हुयी । हैदराबाद पहुँचने में करीब 6 घंटे लगेगे । टाटा सुमो  बंगलोर - हैदराबाद हाईवे पर दौड़ रही थी । किसी को भी मैंने रोग के बारे में नहीं बताई थी । मुझे पता था - समय बहुत कम है और बेटे की जान खतरे में है । कल क्या होगा ? किसी को नहीं पता ? हाईवे के रास्ते  में एक दुर्गा जी का मंदिर है । कहते है - जो भी बिना पूजा किये  इसे पास करता  है , उसके साथ कोई न कोई अनहोनी होती है । हमने यहाँ पूजा की . नारियल फोड़े और प्रसाद खाते हुए आगे बढ़ चले । कर्नूल के करीब से बेटे की तबियत और बिगड़ने लगी , बुखार बढ़ने लगा । आँखे लाल हो गयी । बदन में दर्द तेज । अस्पताल ने बिना किसी औषधि / नर्स के बिदा कर दिया था । हमें भी जल्दी में कुछ नहीं सुझा था । पत्नी साईं बाबा की गुहार लगाये जा रही थी । बाबा बेटे की जान बचाना । मेरे दिल में धड़कन बढ़ रही थी । भगवान के सिवा , कोई नजर नहीं आ रहा था । रुमाल भींगा कर बेटे के सिर पर रखे थे । अपने साथियों को इतल्ला कर दी थी । वे हैदराबाद के लालागुडा अस्पताल में बेसब्री से इंतज़ार कर रहे थे। पांच  बजे तक शहर के सीमा पर पहुँच गए ।  ट्राफिक  जाम की वजह से सात बजे अस्पताल में पहुंचे । ड्यूटी पर अपातकाली डॉक्टर मौजूद थी ...डॉक्टर पद्द्माप्रिया  । हम  पति -पत्नी के उस डॉक्टर से अच्छे रिश्ते थे क्युकी वे गुंतकल अस्पताल में काम कर चुकी थी । उन्होंने स्थिति को भांप लीं और बिना देर किये ... तुरंत यशोदा अस्पताल को रेफर कर दी , जो एक कारपोरेट अस्पताल है । साढ़े   साथ बजे हम यशोदा अस्पताल के इमरजेंसी में थे ।

यशोदा अस्पताल / सिकंदराबाद 
डोक्टरो  की टीम मुआयेने में जुट गयी । मेरे बेटे की जान खतरे में थी । किसी ने ग्लुकोसे के बोतल चढ़ाये । तो किसी ने खून निकले , जांच के लिए । बाद में किडनी के खराबी की आशंका की वजह से सिने और पेट के स्कैनिंग कराये गए । जांच जोरो पर थी । इस तरह की इलाज सरकारी अस्पतालों में नहीं मिलती। मेरा बेटा नरम पड़ते जा रहा था । दुआ के सिवा कुछ नहीं बचा था । मेरे पुत्र को ACU वार्ड में दाखिल कर दिया गया । जिसे ACUTE केयर UNIT के नाम से जानते है । हम सभी परिवार वेटिंग हॉल में रात गुजार  रहे थे । पल - पल की जानकारी के लिए उत्सुक । रात के बारह बजे के बाद वार्ड से  मुझे फोन आया । मेरा दिल बैठ गया । हे भगवान , मदद करना । मै  जल्द ही लिफ्ट से छठे फ्लोर पर गया । मुझे अन्दर बुलाया गया । मैंने देखा ..मेरा पुत्र बिस्तर पर लेटे  हुए था , उसे नींद नहीं आ रही थी । मुझे देख हल्का सा मुस्कुराया , जैसे कह रहा हो - डैडी मै  बिलकुल ठीक  हूँ आप चिंता न करें । मुझे हिम्मत आई , पूछा ?  तबियत कैसी है । पेशाब नहीं हो रहा है । पेट फूल गया है । नर्स ने मुझे डिस्टर्ब नहीं किया । हम दोनों  की बाते पूरी होने के बाद उसने कहा - हमें जल्द white प्लेट लेट चाहिए , क्युकी  प्लेट लेट की संख्या 13000 आ गयी है । मैंने कहा सिस्टर जैसे भी हो रात को ब्लड  बैंक से मदद ले । अभी तो मै असमर्थ हूँ । सुबह इंतजाम हो जायेगा । ऐसा ही हुआ । ब्लड बैंक से white प्लेट लेट दिया गया ।


दिनांक -20 जुलाई 2012 -की सुबह-शाम 
मैंने तुरंत अपने असोसिएसन के सिकंदराबाद और हैदराबाद के पदाधिकारियों को फोन की । दिन भर लोको पायलटो की आवाजाही शुरू हो गयी । blood  ग्रुप  ओ पोजिटिव की जरुरत  थी । अंततः तीन  लोको पायलट  श्री एन सत्यनारायण , श्री एस सूर्यनारायण  और एम् शिवालकर  चुने गए । एम् शिवालकर सहायक लोको पायलट की white प्लेट लेट को मेरे बेटे को समर्पित किया गया ।

दिनांक -21 जुलाई 2012 -प्लेट लेट 
 सभी देवो के देव महादेव ( एम् शिवालकर ) के खून की शक्ति रंग लायी । प्लेट लेट की संख्या बढ़  कर  20000 हो गयी । सभी के जी में जान आई । फिर क्या था । राम जी  की दशा भी सुधरने लगी । शिर्डी से  डॉक्टर मुकुंद सिंह की काल आई ।  मेरे रूआसे ध्वनि को वे परख लिए और उन्होंने पूछ - सर क्या बात है ? मै  सब कुछ बता दिया । उन्होंने कहा -आप बाबा की भभूती पुत्र को चटायें , मै मंदिर में प्राथना के लिए जा रहा हूँ । बाबा ने भभूती पहले ही भेंज दी थी । मुझे तुरंत पूर्व की घटना याद आ गयी  । पिछले महीने डॉक्टर साहब ने मुझे शिर्डी का प्रसाद और भभूती दी थी , जब वे शिर्डी से बंगलूर कर्नाटक एक्सपेस से जा रहे थे । मैंने वैसा  ही किया । कुदरत की लीला गजब है ।

परिस्थितिया बदली । लोगो के आने का सिलसिला बढ़ने लगा । किन्तु अस्पताल के अन्दर बिना पास के अन्दर जाना मना  है , एक पास पर एक ही व्यक्ति । सैकड़ो  दुआओं के हाथ उठे । प्रतिदिन प्लेट लेट की संख्या बढ़ने लगी । 22 जुलाई को 30000 , 23 जुलाई को 40000 , 24जुलाई को 50000 । हमने डॉक्टर को कहला दिया था की जितना blood  चाहिए , उतना देने के लिए हमारे लोग हमेशा तैयार है । यहाँ तक की इन्डियन एयर फाॅर्स के जवान भी तैयार थे । किन्तु जरुरत नहीं पड़ी । डॉक्टर धीमी गति से  प्लेट लेट के बढ़ोतरी से चिंतित थे । अतः बोन मैरो जाँच की शंका जाता रहे थे । फिर भी उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और मेरे पुत्र को स्वस्थ घोषित कर 24 जुलाई 2012 को संध्या बेला में ACU  वार्ड से साधारण वार्ड में सिफ्ट कर दिए ।

साधारण वार्ड -
धीरे - धीरे पुत्र की दशा में सुधार  होने लगा । 25 जुलाई को प्लेट लेट की संख्या 70000 , 26 जुलाई को 100000 और 27 जुलाई को 1.5 लाख हो गए , जो स्वस्थ व्यक्ति के लिए जरुरी सीमा है । अंततः सैकड़ो हाथो की दुआए और देवी - देवताओ  के आशीर्वाद मेरे पुत्र को संकट से बचा लिए । 27 जुलाई को उसे अस्पताल से डिस्चार्ज कर दिया गया । 28 जुलाई को रेलवे अस्पताल / लालागुडा  को रिपोर्ट किया । वापसी के राह में भी वही डॉक्टर मिली । दवा लिखने के बाद केश गुंतकल को रेफर हुआ । 28 जुलाई को रायलसीमा ( 17429 एक्सप्रेस) के द्वारा हम हैदराबाद से गुंतकल को रवाना  हुए ।  हम  29 जुलाई 2012 , रात को बारह बज कर दस मिनट पर गुंतकल पहुंचे । 30 जुलाई को गुंतकल रेलवे अस्पताल के फिजिसियन से मिले और हमारे लोगो ने उसकी बहुत फजीयत की । उसकी चर्चा यहाँ नहीं करना चाहता ।

अनुभव का भंवर -
इसे क्या कहेंगे ?

1) अस्पताल में भारती की तारीख = 18 और इसके योग =9  ,समय =एक बजे दोपहर के आस- पास 
2)लालागुडा पहुँचाने का समय =19 घंटे और इसमे भी =9
3)ACU  में वेड संख्या =  9
4) साधारण वार्ड में दाखिल और  कमरे की संख्या = 9 , मंजिल के तल्ले भी = 9
5)अस्पताल से डिस्चार्ज की तारीख =27 जुलाई और इसके योग =9
6)वापसी में ट्रेन संख्या = 1742 9 और इस संख्या के आखिरी में = 9
7)गुंतकल पहुँचाने का समय =रात के बारह बजे के बाद और एक के पहले , तारीख 29 जुलाई और इसमे भी आखिरी = 9
आखिर ये क्या है ? नौ देवियाँ या नौ ग्रह या नवरत्न या और भी बहुत कुछ । जो भी हो किसी शक्ति के प्रभाव से इंकार नहीं किया जा सकता ।
पुत्र का नाम - राम जी . इश्वर का नाम । जिस डॉक्टर ने लालागुडा रेफर किया उसका नाम भी - श्रीनिवासुलु
लालागुडा  अस्पताल के  आपातकालीन डॉक्टर का नाम - पद्मप्रिया ,यशोदा के प्रांगन  में जिस डॉक्टर के निगरानी में इलाज चला - उनके नाम भी - शिवचरण और जिस अस्पताल में रेफर हुआ , उस अस्पताल का नाम भी यशोदा ( कृष्ण जी की माता जी/ पालनकर्ता  )
जिनके blood कामयाब हुए , उनके नाम भी - इश्वर के
सत्यानारायण , सुर्यनारायण और शिवालकर । शिव जी संहारक है , शिव जी ने मेरे पुत्र को जीवन दान दी है , शिवालकर ।
इश्वर ने अपने भक्त को कभी नहीं रुलाई । जहाँ आस्था है , वहीँ भक्ति । जहाँ भक्ति है , वही शक्ति । मेरा परिवार उन सभी देवी - देवताओ और सभी सज्जनों को प्रणाम करता है , जिनकी दवा और दुआएं मेरे पुत्र को जीवन दान दिया है । 
( कृपया वैज्ञानिक टिपण्णी न करें = विज्ञानं ने सब कुछ दिया है । घास से दूध नहीं बनायीं । आज तक खून नहीं बना सका है ।)

Wednesday, July 4, 2012

पढ़े लिखे अनपढ़

रेलवे हमें भारतीयता की पहचान  दिलाती है !रेल ही हमें एकता का सन्देश देती है ! यह देश के एक भाग से दुसरे भाग को छूती है , जोड़ती है ! एकता का ऐसा मिसाल शायद ही कोई होगा ! हमें सैकड़ो वर्षो तक गुलाम रहने पड़े ! फिर भी शासको को भारत की उन्नति की ओर ध्यान खींचता रहा ! इसकी एक मिसाल रेल और उसकी स्थापना है ! वृतानियो को अपने देश से रेल को आयातित करने पड़े ! तब  जाकर भारत में रेलवे की नीव पड़ी ! अकसर लोग कहते मिल जायेंगे कि देश में रेलवे को काफी आमदनी है ! रेलवे  चाहे तो सोने की पटरी बिछा सकती है ! बिलकुल सही - भावना ! दूसरी तरफ -लुटेरे इसे कंगाल बनाने में पीछे नहीं रहते ! वर्षो अंग्रेजो ने लूटा - अब भारतीय लूट रहे है ! लूटेरो की भीड़ इतनी बढ़ गयी है कि सही व्यक्ति की पहचान मुश्किल ही नहीं नामुमकिन हो गया है ! जो इमानदार है , उनकी कोई अस्तित्व नहीं !

बचपन में जब रेल गाड़ी की छुक - छुक या -भक - भक की आवाज सुनता तो इस कार्य को  करने की इच्छा मन में हिलोरे लेने लगती थी  ! कौन  ..जाने की  यह एक दिन  सच में बदल जाएगा ! गाँव या वनारस / बलिया जाने के लिए हावड़ा स्टेसन से ट्रेन पकड़नी पड़ती थी ! उस  समय ट्रेनों में जनरल कम्पार्टमेंट ज्यादा और रिजर्व कम होते थे ! पढ़े-  लिखे लोगो की संख्या कम हुआ करती थी ! साधन संपन्न रिजर्व करके यात्रा करते थे ! साधनों की कमी ! यात्री ट्रेन पर चढने के पहले ,  कईयों से - बार बार पूछते थे की फलां  ट्रेन / यह ट्रेन कहाँ जा रही है  ! पूरी तरह चेतन होने के बाद ही ट्रेन पर चढते थे ! यात्रा के दौरान पूरी तरह से सजग ! घर से चलने के पूर्व ही घर के बुजुर्ग सन्देश हेतु कहते थे - किसी के हाथ का  दिया हुआ नहीं खाना  जी ! न जाने - क्या क्या मिला हुआ होता है ! यात्रा भी बड़े ही गंभीरता   के साथ गुजरती थी ! मजा भी था और यात्रा के समय अपनापन भी !

आज - कल कुछ बदला सा ! ट्रेनों की संख्या सुरसा के मुख की भाक्ति दिनोदिन और प्रति बजट में  बढ़ती जा रही है ! शिक्षा का समुद्र लहरे मार रहा है ! अनपढो की संख्या काफी कुछ कम हो गयी है ! ट्रेनों में कोचों की संख्या काफी बढ़ गयी है और बढ़ते जा रही है ! जनरल डिब्बो की संख्या कम हो गयी है ! उनकी जगह आरक्षित और वातानुकूलित डिब्बो की संख्या की बढ़ोतरी ने ले ली  है ! जन सैलाब थमने का नाम नहीं ले रहा है ! आरक्षण की अवधि एक सप्ताह से पखवाडा , पखवाडा से महीना   और महीना  से कई महीनो में बदल चूका है ! फिर भी तत्तकाल पर मारा-  मारी ! वह शांति दूत भारत , अब अशांत सा भागम- भाग में शरीक है ! भागने वाले को यह भी पता नहीं कि  वह किस जगह बैठा /  खड़ा / घुस चूका है ! एक छोटा सा उदहारण --

कल सिकंदराबाद से गरीब - रथ काम कर के आ रहा था ! नाम से परिलक्षित है की यह ट्रेन गरीबो द्वारा इस्तेमाल होती है ! किन्तु वास्तविकता कुछ और है ! इस ट्रेन को चलाने की मनसा... मंत्री जी के मन में क्या थी ? वह मै  नहीं कह सकता ! पर  इतना जरूर है , इसे साफ्ट वेयर इंजिनियर और एक बड़ा शिक्षित तबका जो मेट्रो पोलिटन शहरों में जीवन यापन कर रहा है / से जुड़े हुए है ..100% कर रहा है ! ऐसे लोगो से गलती की अपेक्षा भी करना जुर्म होगा ! किन्तु बार - बार ... प्रति ट्रिप ...चैन  खींचना कोई  इनसे सीखे ! जी हाँ .. यह बिलकुल सत्य है , हम लोको पायलट इन पढ़े लिखे  अनपढ़ लोगो से परेशान हो गए है ! आप पूछेंगे ..आखिर क्यों ?

बात यह है की सिकंदराबाद - यशवंतपुर गरीब रथ 19.15 बजे सिकंदराबाद से चलती है और सिकंदराबाद -विशाखापत्तनम गरीब रथ ..20.15 बजे ! दोनों की दिशाएं भी अलग है ! समय से यशवंतपुर गरीब रथ चलती है और विशाखापत्तनम के यात्री इस ट्रेन में आ कर बैठ जाते है ! ट्रेन के चलने के बाद , जब उन्हें ज्ञात होता है की गलत ट्रेन में चढ़ गए है तो चैन पुल करते है ! जब की गलती का कोई कारण  भी नहीं है क्यों की ट्रेन के प्रतेक डिब्बे पर बोर्ड लगे हुए होते है -सिकंदराबाद--यशवंतपुर गरीब रथ !  आप भी सोंचे ? इसे  क्या कहेंगे -आज का पढ़े लिखे अनपढ़ !

Sunday, June 3, 2012

दिल के अरमां ..आंसुओ में बह गएँ

दिल के अरमां ..आंसुओ में बह गएँ ! मनुष्य दुनिया में सबसे सर्वोत्तम प्राणी के श्रेणी में गिना जाता है !विचार , रहन - सहन ,पराक्रम और बुद्धि में अंतर स्वाभाविक है ! यही मनुष्य को अलग - अलग चोटियों पर ले जाते है ! कुछ गिर जाते है , कुछ सम्हल जाते है  तो कुछ ऐसी स्थान प्राप्त कर लेते है , जहाँ सबके पहुँचने की  आस कम ही होती है !

आखिर ये सब कैसे और क्यूँ होता है ? 

दुनिया में आने और जाने के रास्ते तो एक जैसा ही है ! बीच  में इतने अंतर क्यूँ ? क्या ये सब हमारे मुट्ठी में बंद तकदीर का कमाल है या कोई आप रूपी  शक्ति कंट्रोल करती है ! जो भी हो मै तो तक़दीर और अंगुलियों के सतरंगी ध्वनि  पर ही विश्वास करता हूँ ! हम अपने अंगुलियों के कर्म रूपी शक्ति से तक़दीर रूपी घरौंदे का निर्माण करते है ! सभी के तकदीर सुनिश्चित है ! इसमे फेर बदल हमारे कर्मो पर निर्भर है ! अगर ऐसा नहीं होता तो आकाश में फेंकी हुई पत्थर इधर - उधर न गिर , हमारे निशान पर ही गिरते !




कुछ मेरे अपने अनुभव है , जो मै यहाँ प्रस्तुत कर रहा हूँ ! मैंने अपने २६ वर्षो के सर्विस  जीवन में जो देखा , वह कुछ सोंचने पर बाध्य कर देते है ! मेरे श्रेणी ( लोको चालक  ) में मैंने देखा है की बहुत से लोको चालक कई प्रकार के कठिनाईयों से गुजरे है !  जैसे -
(1) दोस्त की बहाली सिकंदराबाद  हुई, वह स्वतः आवेदन कर सोलापुर गया और शादी के एक दिन पूर्व स्कूटर दुर्घटना में चल बसा ! (2) दोस्त की बहाली गुंतकल हुयी और स्वतः आवेदन पर हुबली गया और हार्ट अटैक का शिकार हो चल बसा ! (3) एक घटना दो कर्मचारियों के अदलाबदली पर हुयी , एक रिलीफ लेकर दुसरे कार्यालय में ज्वाइन किया , दुसरे ने आत्म हत्या कर ली !(4)  एक लोको पायलट की बहाली विजयवाडा में हुई और स्वतः आवेदन पर चेन्नई गया ..ड्यूटी के वक्त दो ट्रेन की टक्कर हुई और वह सजा भुगत रहा है !(5) एक लोको पायलट स्वतः आवेदन पर रेनिगुनता गया और माल गाडी के दुर्घटना में उसके दोनों पैर कट गए ! (6) एक लोको पायलट रायचूर से  स्वतः आवेदन पर पकाला होते हुए रेनिगुनता गया , कार्य करते वक्त किसी ने लोको के ऊपर पत्थर मारी और उसके आँख ख़राब ! आज वह लोको पायलट के  जॉब से मुक्त है !(7)  एक लोको पायलट काटपादी  गया और ट्रेन चलते वक्त उसे दुर्घटना के शिकार होना पड़ा !  


 अभी बहुत से उदहारण मेरे पास  है ! जो ये सिद्ध करते है कि जो कार्य  स्वतः होते है , हमारे तकदीर है , उन्हें छेड़ना हमें कमजोर कर देती है ! दाने - दाने पर लिखा है खाने वाले  का नाम ! यही वजह है कि राजस्थान का निवासी बंगाल , बंगाल का निवासी तमिलनाडू या अन्यत्र  बहाल हो जाते है ! दाने न छोड़ें !


( इस उदहारण में नाम भी लिखा जा सकता है , पर लेख कुरूप हो जायेगा अतः नाम प्रस्तुत नहीं किया हूँ !.ये पुरे मेरे विचार और अनुभव है .कोई जरुरी नहीं आप भी मानें !)

Saturday, April 28, 2012

थोड़ी सी वेवफाई... ..

थोड़ी सी वेवफाई... .. आज के छोटे विचार ....

सज्जन हमेशा  दूसरो को हँसाते है ! 
दुर्जन / दुष्ट हमेशा ही दूसरो को रुलाते है !
जब ......
सज्जन व्यक्ति मरता  है ,
सभी रोने लगते है !
जब ...
दुर्जन / दुष्ट मरता है , 
सभी हंसते है , चलो एक दुष्ट की तो कमी  हुई !
( सौजन्य =मुनिश्री महाराज )

                                 
                                                                                                   ध्यान से देंखे - तस्वीर के अन्दर 

Sunday, April 8, 2012

आज के विचार


                                                                 ट्रेन  से  ली  गयी  एक  पुराने  रेलवे  ब्रिज  के  खम्भे  की  तस्वीर 

 अहंकार  मानव  जाति  को  अँधा  बना  देता  है  ! अतः  मानव  पथ  भ्रष्ट  होकर  ऐसे  कार्यो  में  लीन  हो  जाता  है  कि  उसे  उचित  या  अनुचित  का  ध्यान  ही  नहीं  रहता  !  अंत  में  यह  उसके  जीवन  में  पराजय  का  एक  पहलू  बन  जाता  है  ! रावण  , कंस  या  दुर्योधन  इसके  उदहारण  के  लिए  काफी  है  !

 वहीँ  परमार्थ  के  लिए  उत्पन्न  अहंकार   मानव  को  श्रेठ  और  ईश्वर  बना  देता  है !

Sunday, April 1, 2012

सहमी सी जिंदगी !

आज - कल एक तरफ अन्ना , तो दूसरी तरफ रामदेव और तीसरी तरफ -हम नहीं बदलेंगे ! दुनिया में आन्दोलन होते रहते है और अनर्थकारी अपने हरकतों से बाज नहीं आते ! पिछले तीन   दिनों में जो  कुछ भी महसूस किया , वह मन को उद्वेलित कर गयी ! त्तिरछी नजर ---

१) गोरखपुर सुपर फास्ट एक्सप्रेस को लेकर सिकंदराबाद जा रहा था ! ट्रेन दोहरी लाईन पर दौड़ रही थी ! एक कुत्ता दौड़ते हुए दोनों पटरियों के बीच में आया और राम-राम सत्य ! कुछ गड़बड़ की आभास ...

२) उसी दिन - कुछ और आगे जाने के बाद  देखा एक बुजुर्ग...धोती कुरते में था ..आत्म हत्या वश , तुरंत पटरी पर सो गया ! मेरे होश उड़ गए ! ११० किलो मीटर की रफ्तार से चलने वाली गाडो कब रुकेगी ? किन्तु जिसे वो न मारे , भला दूसरा कैसे मारेगा ? उस व्यक्ति का बाल न बाका हो सका ! है न आश्चर्य वाली बात ! मुझे हंसी भी आ रही है ! क्यों की वह जल्दी में दूसरी लाईन पर जा कर सो गया ! हम सही सलामत अपने रास्ते आगे बढ गए !

३) तारीख ३१-०३ -२०१२ , दिन शनिवार  ! पुरे देश में नवमी की तैयारी ! वाडी जाने के लिए घर से लोब्बी में गया ! जो समाचार मिला वह विस्मित करने वाला था ! मंडल यांत्रिक इंजिनियर (पावर ) को रंगे हाथो विजिलेंस वालो ने पकड़ लिया था ! सुन कर बहुत दुःख हुआ क्यों की उनसे  हमेशा मिलते रहा हूँ ! वह साहब ऐसा भी कर सकते है , वह मैंने कभी नहीं सोंचा था ! हाँ एक बार मैंने उन्हें सजग भी किया था की ऐसी गतिबिधियो से सतर्क रहे ! क्यों की जिनकी दाल नहीं गलेगी वे तरह - तरह के हथकंडे अपना कर बदनाम करने की कोशिश करेंगे ! मेरे विचार में यहाँ भी यही हुआ लगता  है !

आज उनके घर की राम नवमी मद्धिम हो गयी है ! नियति के खेल निराले ! परिवार वालो पर क्या गुजरेगी ? पत्नी के दिल पर क्या गुजरती होगी ? सपने अपने होंगे या अधूरे ?  और  भी बहुत कुछ ..मै  महसूस कर सिहर उठता हूँ ! तकदीर से ज्यादा और समय से पहले कोई भी बलवान या धनवान नहीं बन सकता ! फिर भाग -दौड़ क्यों ? सत्यमेव जयते !


Friday, March 16, 2012

....... माँ का आंचल ......



माँ पलंग  से उतर  ..तुरंत अपने अंक में भर ली  ! मेरी कपकपी दूर हो गयी ! माँ के आंचल से बड़ा सुख , इस दुनिया के किसी  तम्बू में नहीं है ! वह घबडा गयी ! वह घबरायी हुयी - अमला  ( मेरी छोटी बहन ) से बोली --"  जा ..बेटी  जरा मिर्ची  या काली मिर्च लाओ !" बहन  ने माँ के आज्ञा का तुरंत  पालन किया और  तुरंत हाजीर  हो गयी और माँ के हथेली पर रख दी ! माँ  मेरे तरफ मुखातिब हो बोली - " लो बेटा इसे खाओ !" मैंने न में सिर हिलाई , आनाकानी की  किन्तु माँ नहीं  मानी ! जबरन मुझे काली मिर्च खानी ही पड़ी ! तब तक छोटी दादी , चाची और कई लोग आँगन के प्रांगन  में हाजिर हो गए थे ! मेरे आंख में आंसू आ गए  ! काली  मिर्च काफी तीता लग रहा था ! 

माँ ने पूछा - " कैसा लग रहा है ? "   ....." बहुत तीता !" मैंने अपने हाथो से आँख के पोरों पर लुढ़क रहे आंसू के बूंदों को पोंछते हुए कहा ! फिर माँ बोली -" कुछ नहीं हुआ ! वहां  क्यों गए थे ? उस तरफ नहीं जाना था !" और माँ मेरे आंसुओ को  अपने साड़ी के आँचल से पोछने लगी ! मेरा दिल भी हल्का हो गया ! मैंने देखा , माँ के आँखों में भी आंसू भर आयें थे ! जो मौन मूक थे ! छोटी दादी  और सभी ने कौतुहल वस्  पूछ बैठे - " आखिर ऐसा  क्या  हो गया जी ? जो इतनी घबडाई हो !" 
"  इसी से पूछ लीजिये  ! " - माँ ने कहा और सबकी नजर मेरे तरफ ! 
" मेरे पैर के नजदीक से बड़ा  सांप गुजर गया था ! और क्या ? " मैंने  भी संक्षेप में ...अनमनी - शरारती   अंदाज में उत्तर दे दिया  ! आखिर बचपना जो था ! उस समय सांप या किसी जहरीले जंतु से बड़ा भय लगता था ! सभी के मुख से बस एक ही आवाज - "  वापरे ..वाप !" गोरखनाथ बहुत नसीब वाले हो ! सभी मेरे मुख को देखते रह गए !

जी हाँ  ! बिलकुल सही और सत्य घटना है , जब एक दफा , एक लम्बा सांप  , मेरे पैर के  बहुत करीब से गुजर गया था !
 घटना  कुछ  इस प्रकार है --
 मई के महीने थे  ! स्कुलो में छुट्टिया हो गयी थी ! अतः  पिताजी सपरिवार कोलकाता से गाँव आ गए थे ! उस समय कुछ संभ्रांत परिवारों को छोड़ , किसी के भी घर में शौचालय नहीं हुआ करते थे ! स्त्री हो या पुरुष ..सभी को शौच के लिए गाँव के बाहर जाने पड़ते थे ! फिर भी किसी की ये हिम्मत नहीं होती थी कि किसी के भी बहु -बेटियों को छेड़े ! 

कारण एक संस्कार और सभी की इज्जत कि भावना जिन्दा थी ! सभी रीति और रिश्ते की भैलू समझते थे ! सभी के दिलो में बड़ो के प्रति इज्जत और छोटो के प्रति प्यार भरा था ! जिसकी आज - कल की आधुनिकता की होड़ वाली दुनिया में आभाव  ही आभाव नजर आता है ! जो समाज में ब्याभिचार को जन्म देने के लिए काफी है !


! दोपहर का समय ! मुझे शौच लगा ! मेरी उम्र करीब तेरह वर्ष की  होगी ! मै अकेले खेतो की तरफ निकल पड़ा ! शहर में रहने की वजह से - खुले मैदान में शौच की आदत नहीं थी ! शर्म की वजह से एक गन्ने के खेत में जा बैठा ! कुछ देर बाद मुझे सरसराहट की आवाज सुनाई दी ! गन्ने के पत्ते हिलने लगे , जो जमीन पर पड़ी हुयी थी ! मुझे सियार या भेडिये का शक हुआ ! बैठे - बैठे ही  सिर आस - पास घुमा कर  देखने लगा ! कुछ भी नजर नहीं आया ! अचानक पैर के करीब नजर गयी ! देखा एक बड़ा ( करीब दो मीटर का होगा ) और मोटा सांप रेंगते हुए मेरे सामने से पीछे की ओर जा रहा है ! मेरे खून सुख गए ! जरा भी हिला नहीं ! उसके चले जाने तक स्थिर बैठा रहा ! कुछ क्षण रुक कर भाग खड़ा हुआ ! शरीर कांप रहे थे ! जैसे - तैसे घर आया और सारी घटना , माँ को कह सुनाई ! 


कहते है - जिसे सांप काट लेता है , उसे मिर्च या काली मिर्च की तीतापन महसूस नहीं होता ! यह कहाँ तक सही है , मै भी नहीं समझता ! शायद इसी से अभिभूत हो माँ ने मुझे काली मिर्च खाने को दी थी ! 

इस घटना को सुन सभी दंग रह गए ! माँ से ज्यादा संतान का दुःख किसी को नहीं महसूस होता ! माँ और उसका भय   वाजिब था ! दूसरी माँ मिल सकती है , पर माँ का दूध नहीं मिल सकता ! माँ के ऊपर  अपने सारे प्यार और सभी सुख ... न्योक्षावर कर देने पर भी  ...हम उसके  दूध की कर्ज....   अदा नहीं कर सकते  !    माँ तो माँ होती है !
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Friday, February 24, 2012

घी बड़ा या अक्लमंद

" जी हुजुर ..हमने ही इनकी घी को छिनी थी !" घिघियाते हुए एक ने स्वीकार की तथा बाकि सभी  ने हामी में सिर हिलाई !  दरोगा ने अपने तेवर बदले ! वह कार्यवाही नहीं करना चाहते थे ! वे जानते थे , ये चारो गाँव के दबंग के बेटे है ! बुरे बापों की दबंगई , इन्हें नालायक बना रखी है ! दरोगा की अंतरात्मा  कार्यवाही करने से डर रही थी , फिर भी कर्तव्य का पालन जरुरी था ! न चाह कर भी कुछ तो करना ही था अन्यथा पद की गरिमा गिरेगी और इनकी हिम्मत बढ़ेगी ! उसने मिल -मिलाप का रास्ता सोंचा और कहा --" तुम लोगो का अपराध सिद्ध हो चूका है ! एक काम करो ?  तुम लोग ,इनके घी की कीमत चूका दो , मै तुम लोगो को छोड़ दूंगा !"
यह कह कर वह सेठ की तरफ मुखातिब हुआ और पूछा -" कहो सेठ घी कितने का था ?    "हुजुर ..बस दो सौ रुपये का ...बेचने के बाद ..करीब तीन सौ कमा लेता ! - सेठ ने मुस्कुराते हुए कहा !       " चलो  तुम लोग जल्दी  रुपये अदा करो अन्यथा रिपोर्ट दर्ज करनी पड़ेगी !" - दरोगा उन चारो को  संबोधित कर कहा ! फिर क्या था , उन चार नालायको ने दरोगा के पैर पकड़ लिए !  

"हुजुर हमें माफ करे ! हम इतने पैसे नहीं दे सकते  ! उन चार घी के डब्बो में घी नहीं पानी था !" वे गिड़गिड़ाने लगे !     " हुजुर ये झूठ बोल रहे है !'  -सेठ झल्लाते हुए बोला !   "  मुझे मालूम है "  -दरोगा ने हामी भरी ! दरोगा जनता था की सुकई सेठ अपने इलाके के नामी - गिरामी सेठ है  और वर्षो  से इनके बाप - दादे तेल और घी का व्यापार करते आ रहे है ! पानी कभी हो ही नहीं सकता !

उनकी अनुनय विनय   रुकने वाली नहीं थी ! वे अंत में सेठ के पैर पकड़ रोने लगे ! सेठ जी हमें माफ करें ऐसी गलती हम कभी नहीं करेंगे! आप ही हमें बचा सकते है ! दरोगा को समझ में नहीं आ रहा था ये क्या हो रहा है ! उनके आंसू और दयनीय दृश्य को देख सेठ का भी दिल पिघल  गया ! उसके दिल में भी एक इन्सान जिन्दा था ! उसने दरोगा को कहा -" हुजुर इन्हें माफ कर दे बशर्ते ये ऐसी घटिया हरकत फिर कभी नहीं करेंगे !"

फिर क्या था वे तुरंत कह बैठे - " जी हुजुर ... हम लोग  वादा करते है कभी ऐसी गलती  नहीं करेंगे !" दरोगा को कुछ समझ में नहीं आया ! पाई - पाई को मरने वाला कंजूस सेठ दो सौ रुपये को भूल ..इन्हें कैसे क्षमा करने के लिए  राजी हो गया !  " ठीक है , तुम लोगो को छोड़ देता हूँ  आईंदा कोई शिकायत आई तो जेल में बंद कर दूंगा !"  वे चारो दरोगा और सुकई सेठ को प्रणाम कर बाहर भाग गए !

" सेठ जी ..मुझे मामला कुछ समझ में नहीं आया ? आप इतना  नुकसान  कैसे सह लिए ! "- दरोगा ने सेठ से पूछा ! सेठ ने कहना शुरू किया -

" जी हुजुर ..बात परसों की है ! जब मै चार घी के डब्बो को घोड़े पर लाद कर व्यापार के लिए  जा रहा था ! ये चारो रास्ते में मिल गए और  खाने-पीने  के लिए पैसे मांगने लगे ! मैंने साफ इंकार कर दिया तो इन्होने  मुझे धमकी देते हुए कहा की  ये मुझे  कल से इस रास्ते व्यापार के लिए नहीं जाने देंगे ! अगर भूले भटके चला भी गया  तो सारे के सारे घी छीन लेंगे ! मैंने भी इनकी शर्त मान ली और आप को इसके बारे में बता दिया था !" 
 सेठ कुछ समय के लिए रुका और गंभीर साँस लेते हुए फिर कहना शुरू किया -"  मै  इन चारो को सबक सिखाना  चाहता था ! मैंने दुसरे दिन चार घी के डब्बे घोड़े पर लादे ....किन्तु उन डब्बो में घी न रख... पानी भर दिए थे !" दरोगा सेठ के अकलमंदी पर आश्चर्य चकित हो गया !

( करीब ६० वर्ष पहले की घटना  जब दो या तीन सौ की कीमत काफी थी !वह भी मेरे पडोसी सेठ की ! सत्य घटना पर आधारित )

Wednesday, February 15, 2012

नीयत में खोट !

                                                            इन्द्रधनुष  के सात रंग

दुनिया के इतिहास में ....चौदह फरवरी का दिन बहुत ही मायने रखती है ! बच्चो  से लेकर... क्या बुड्ढ़े  ?  सभी अपने - आप में मस्त , प्रायः पश्चिमी देशो में ! कोई भी त्यौहार ..हमें भाई चारे और सदभावनाए  बिखेरने  , एक दुसरे को प्यार से गले लगाने या इजहार करने के सबक देते है ! किसी भी तरह के त्यौहार / पर्व में हिंसा का कोई स्थान नहीं है ! चाहे वह किसी भी जाति /धर्म /मूल /देश - प्रदेश के क्यों न हों !  आज - कल हम  इस क्षेत्र में कहाँ तक सफल हो पाए है . यह सभी के लिए चिंतनीय और विचारणीय विषय है ! आये दिन -सभी जगह हिंसा और व्यभिचार अपना स्थान लेते जा रहा है !

अब आयें विषय पर ध्यान केन्द्रित करते है ! कहते है  जो जैसा  बोयेगा , वो  वैसी  ही फसल कटेगा ! जैसा अन्न - जल खायेंगे , वैसी ही बुद्धि और विचार भी प्रभावित होती है ! ! जैसी राजा , वैसी प्रजा ! जैसी ध्यान वैसी वरक्कत ! यानी व्यक्ति का गुण ... हमेशा  उसके प्रकाश / बिम्ब को ...दुसरे के सामने प्रकट कर ही देता है ! हर व्यक्ति में एक छुपी हुयी आभा होती है ! जो उसके स्वभाव को प्याज के छिलके के सामान ...उधेड़ कर प्रदर्शित करती है ! 

कल प्यार  और मिलन का दिन बीत गया ! वह भी अजीब सी थी ! मै कल ( १४-०२-२०१२ ) सिकंदराबाद में था ! सुना था और आज साक्षी पेपर में छपा हुआ मिला - की हमारे मंडल का  एक कर्मचारी संगठन ( दक्षिण मध्य रेलवे एम्प्लोयी यूनियन ) ने मंडल रेल मैनेजर के कार्यालय के समक्ष प्रदर्शन किया था ! उनकी मांग यह थी की रायल सीमा एक्सप्रेस , जो रोजाना - तिरुपति से हैदराबाद जाती है... को लिंक संख्या -२ में जोड़ दिया जाय ! यह ट्रेन फिलहाल लिंक संख्या -४ में है ! लिंक संख्या दो - सुपर फास्ट ट्रेनों की लिंक है , जो वरिष्ठ लोको पायलटो के द्वारा कार्यरत है ! रायलसीमा एक्सप्रेस फास्ट पैसेंजर ही समझे !
अब प्रश्न यह उठता है की ऐसा क्यों ? 

 उपरोक्त यूनियन कांग्रेस समर्थित है ! लिंक संख्या दो में ज्यादातर उसके समर्थक नहीं है ! रायलसीमा को गुंतकल से हैदराबाद लेकर जाना काफी कष्ट प्रद है ! वह ( यूनियन ).. अन्य यूनियन के  समर्थको को सबक सिखाना चाहती है ! उसने अपने पेपर स्टेटमेंट में कहा है- की हमने लिंक दो में रायलसीमा को जोड़ने के लिए हस्ताक्षर किये थे , फिर यह लिंक चार में कैसे जुट गया ! मंडल यांत्रिक इंजिनियर लापरवाह हैं ! वह अपनी मर्जी को कर्मचारियों के ऊपर थोप रहे हैं !....वगैरह - वगैरह !

लिंक क्या है ? 
 कई ट्रेन के समूह को संयोजित रूप में इकट्ठा कर - इस तरह से सजाया जाता है की लोको पायलट को यह ज्ञात हो की कब कौन सी ट्रेन लेकर कहाँ तक जानी है और वहां से कौन सी ट्रेन लेकर वापस आनी  है ! इससे प्रशासन और लोको पायलट दोनों को ही लाभ होते है ! इसे तैयार करते समय सभी मूल भूत नियम और कानून को ध्यान में रखा जाता है ! इस लिंक को वरिष्ट लोको इंस्पेक्टर तैयार करते है ! इसे तैयार करते समय बहुत ही माथापच्ची करनी पड़ती है ! जिससे लोको पायलट को पूर्ण रात्रि विश्राम / साप्ताहिक विश्राम वगैरह सठिक रूप से मिले ! इस तरह से भारतीय रेलवे में प्रायः दो तरह के लिंक होते है १) साप्ताहिक ट्रेनों की और २ ) रोजाना ट्रेनों की ! कौन सी ट्रेन को किस लिंक में शामिल किया जाय - इसके लिए कोई प्रावधान /कानून नहीं है ! बस स्वतः सेट अप पर निर्भर करता है !

किसी भी यूनियन को क्या करनी चाहिए ?
प्रत्येक यूनियन को  कर्मचारियों के बहुआयामी  हित को ध्यान में रख कर - निर्णय लेने चाहिए ! उनके सामने सभी कर्मचारी बिना भेद - भाव के सामान होते है ! उन्हें ओछे हरकतों और कार्यो से बाज आनी चाहिए , जिसमे कर्मचारियों के हित कम और नुकशान ज्यादा हो ! इनके नेताओ को और भी जागरुक और सतर्क रहनी चाहिए ,जिससे की कोई उन पर अंगुली न दिखाए ! और भी बहुत कुछ ...
उपरोक्त यूनियन  ने क्या किया ? 
इस लिंक से उस लिंक की मांग कर अपने सम्यक धर्म को ताक पर रख दिया है ! जो इन्हें ऐसा नहीं करना चाहिए था ! इन्हें तो समस्याओ को निदान करने के तरीके धुंधने चाहिए ! कोई भी लिंक हो ...एक ..दो...या तीन ..सभी को एक लोको पायलट ही कार्यान्वित करता है ! यहाँ  इस यूनियन ने ....एक लिंक  को  समर्थन कर -- दुसरे लिंक के समस्या को बढाने का कार्य कर रही  है !  यह यूनियन  अपने धर्म को तक पर रख , स्वार्थ में वशीभूत हो ..अनाप - सनाप बयान बाजी और आरोप लगाये जा रही है !  शायद खानदानी असर है ! यह... एक ओछे ज्ञान की पूरी  पोल खुलती नजर आ रही है   ---हाय रे  विवेक हिन् यूनियन !
प्रशासन का खेल ....
 रेलवे प्रशासन मौन मूक है !  लड़ाओ और राज करो - के तारे नजर आ रहे है !  क्या प्रशासनिक अधिकारी अपने कर्तव्य को सही ढंग से निभा पाने में असमर्थ है ? जब की मै भी अपने इंजिनियर साहब  से मिला था और विस्तृत बात हुयी थी ! समस्याओ को उजागर किया था !  उसके निदान के लिए बिना किसी नंबर को उधृत किये हुए ..समस्याओ के निदान की सलाह भी  दी थी ! इंजिनियर साहब ने आश्वासन भी दिया था ! उनके इमानदारी पर तो शक नहीं किया जा सकता , पर उच्च  पद का दबाव  और शक्ति कई बार मनुष्य को लाचार  बना देती है ! वह  असहाय हो जाता है !
समीक्षा  ---
 और कुछ नहीं , बस इनके नियत में खोट है ! कोई भी यूनियन आँख बंद कर कोई हस्ताक्षर नहीं करती ! अगर कर भी दिए तो जल्द बताते नहीं ! इनकी नेताओ की कारगुजारी सामने आ गयी है ! जिसकी कड़ी आलोचना होनी ही चाहिए !  इन्होने अपने  प्यार का इजहार आरोप - प्रत्यारोप में किया , वह भी प्यार के दिन ! मुह में नमक हो तो मिठाई मीठी नहीं लगती ! इसीलिए तो दो नंबर ही पसंद है --है तो दो नम्बरी !  इन्हें एक नम्बरी /  एक याद नहीं आती ! इन जैसी लोलुप और चाटुकार.... वंशी यूनियनों की जीतनी भी भर्त्सना की जाय , वह कम ही है !  कुछ भला  करते हुए और जीवन जियें ....जिससे की  दुनिया याद करे ! नतमस्तक करे ! वह जीवन ..जीवन  नहीं ,    जिसकी कोई कहानी न हो !  कुछ मर के  भी सदैव जिन्दा रहते  है और  कुछ रोज मर-मर  के  जीवन जीते  है ! 
                       पतझड़ में भी फूल खिलते है - पलास के ....आशा अभी भी  जिन्दा है ! !